पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Thursday, August 26, 2010

बिना सबूत पति को नहीं ठहराएं नपुंसक -गुजरात उच्च न्यायालय

गुजरात उच्च न्यायालय ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि नपुंसकता के आधार तलाक लेने के लिए यह आवश्यक है कि इसे सिद्घ करने के लिए खास मेडिकल सबूत हों। न्यायाधीश जयंत पटेल और न्यायाधीश अभिलाष् कुमारी की खण्डपीठ ने उन आधारों को खारिज कर दिया जिनके आधार पर पारिवारिक अदालत ने फैसला दिया था।

भूकंप से प्रभावित पति और पत्नी से जुड़े एक मामले में पारिवारिक अदालत ने नपुंसकता और क्रूरता के आधार पर तालाक मंजूर किया था। न्यायालय ने इस फैसले को अस्वीकार कर दिया, लेकिन उसने त्याग देने और क्रूरता के आधार पर इसी अदालत के तलाक के आदेश को सही ठहराया।

1 टिप्पणियाँ:

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक said...

एक महत्वपूर्ण फैसला कि नपुंसकता के आधार तलाक लेने के लिए यह आवश्यक है कि इसे सिद्घ करने के लिए खास मेडिकल सबूत हों।
मेरा यह विचार है कि-पत्नी द्वारा दो बार गर्भवती होने के बाद भी अपने पति पर नपुंसक होने का आरोप लगते हुए पति को अपनी जांचों के लिए मजबूर किये जाने को और बगैर किसी मेडिकल सबूत के अपने पति पर नपुंसक होने का आरोप लगाने वाली महिला को भी क्रूरता का दोषी माना जाए. ऐसी महिला के पति को क्रूरता के आधार पर तलाक दें देना चाहिए और उसको किसी प्रकार का कोई मुआवजा भी नहीं दिलवाना चाहिए. बल्कि उससे आदेश दिया जाना चाहिए कि अपने पति की समाज में बदनामी की है. जिससे उसका मान-सम्मान की हानि हुई है. इसलिए वो इतना ..........मुआवजा दे अथवा इतने ...........दिनों की सजा जेल में काटें. जब ऐसे आदेश आने शुरू होंगे, तब देखना कि- नपुंसकता के आरोप लगाने वाले केस कितने कम हो जाते हैं.
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