पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Wednesday, August 4, 2010

पुलिस को निर्णय देने का अधिकार नहीं -राजस्थान हाईकोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक मामले में कहा है कि प्रसंज्ञान योग्य और गैर-जमानतीय अपराध के मामले में पुलिस को मामले को अपने स्तर पर ही दबाने या उस पर स्वयं निर्णय करने का अधिकार नहीं है।

अदालत ने भरतपुर जिले में एक महिला के जहर खाकर खुदकुशी करने के गैर-जमानतीय व प्रसंज्ञान योग्य मामले को मृतका के परिजनों व ससुराल वालों के साथ मिलीभगत कर रफा-दफा करने और बिना पोस्टमार्टम के अंतिम संस्कार की इजाजत देने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ डीजीपी को कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं।

कोर्ट ने तीन माह में कार्रवाई से कोर्ट को बताने को भी कहा है। न्यायाधीश मोहम्मद रफीक ने यह आदेश आरोपित प्रार्थी सुरेंद्र सिंह की जमानत याचिका को खारिज करते हुए दिए। मृतका के खुदकुशी करने का तथ्य उसके पति सुरेंद्र सहित गवाहों और गांव के अनेक लोगों को मालूम था लेकिन पुलिस ने मूकदर्शक रहते हुए अपराध के सबूत मिटाने में मदद की, जबकि यह एक गैर जमानतीय और प्रसंज्ञान योग्य अपराध था। पुलिस ने आरोपित के खिलाफ पेश चालान में से सबूत मिटाने के अपराध की धारा 201 को हटा ही दिया।

अदालत ने कहा है कि उन्होंने बिना पोस्टमार्टम के मृतका के अंतिम संस्कार की इजाजत कैसे दी ? भले ही इसके लिए मृतका के चाचा-भाई आदि रिश्तेदारों ने लिख कर दिया हो। पुलिस से यह आशा नहीं की जाती कि वह प्रसंज्ञान योग्य और गैर-जमानतीय अपराध को छिपाने और दबाने में पक्षकार बने। कानून में पुलिस को इसकी कोई अधिकारिता नहीं है। विधायिका ने सोच-समझकर ही आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध को गैर-जमानतीय और प्रसंज्ञान योग्य अपराध की श्रेणी में रखा है।

ऐसे मामले में दोषी को सजा दिलाने की जिम्मेदारी सरकार ने ली है, क्योंकि प्रत्येक नागरिक की जीवन और संपत्ति की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है। ऐसे में जब राज्य की ही यह जिम्मेदारी है तो फिर पुलिस कैसे आरोपित और मृतक के परिजनों की इच्छानुसार मामले को दबा सकते हैं ?


मामले के तहत आरोपित सुरेंद्र सिंह की पत्नी वीरो कौर ने 16 मार्च 10 को ससुराल भोजपुर गांव में आत्महत्या कर ली थी। मृतका के पीहर व ससुराल पक्ष ने गोपालगढ़ एसएचआ॓ को लिखित में कहा कि वीरो की प्राकृतिक मौत हुई है और वे कोई कार्रवाई नहीं चाहते। एसएचआ॓ ने बिना पोस्टमार्टम अंत्येष्टि की इजाजत दे दी, लेकिन वीरो की मां ने अदालत के जरिए आरोपित के खिलाफ शिकायत की।


पुलिस ने 24 मार्च 10 को आरोपित के खिलाफ धारा मामला दर्ज कर लिया। पुलिस ने दो मई 10 को मृतका के पति सुरेंद्र को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार कर धारा 306 में चालान पेश कर दिया जबकि यह तथ्य पुलिस को पता चल चुका था कि सुरेंद्र के मारपीट करने के बाद ही मृतका ने जहर खाकर आत्महत्या की थी।

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