पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Thursday, September 2, 2010

कंपनी विधेयक में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश शामिल होंगे: खुर्शीद

केंद्र सरकार प्रस्तावित कंपनी विधेयक में भोपाल गैस त्रासदी के मामले में दायर सुधार याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को शामिल करेगी। कंपनी मामलों के मंत्री सलमान खुर्शीद ने गुरूवार को कहा, ""सीबीआई द्वारा भोपाल गैस त्रासदी के मामले में दायर सुधार याचिका पर सर्वोच्चा न्यायालय जो भी निर्देश देगा उन्हें इस विधेयक में शामिल किया जाएगा। निदेशकों की आपराधिक जिम्मेदारी तय करने के लिए हमें निर्देश की जरूरत है।"" 
कंपनी सचिवों के 38वें राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा, ""मैं नहीं जानता कि इसमें कितना समय लगेगा लेकिन जब तक यह मामला सर्वोच्चा न्यायालय में है हम इंतजार करेंगे।"" उन्होंने कहा कि 1984 की भोपाल गैस त्रासदी में मारे गए 5,295 लोगों और प्रभावित हुए 5,68,292 लोगों के मामले में कई चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। अपनी बात को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि घटना के 26 साल बाद सर्वोच्चा न्यायालय सुधार याचिका पर सुनवाई कर रहा है। सीबीआई ने दो अगस्त को 1996 में आए न्यायालय के फैसले की समीक्षा करने की मांग करते हुए सुधार याचिका दायर की थी। सर्वोच्चा न्यायालय के उस वक्त के निर्णय के कारण यूनियन कार्बाइड इंडिया के पूर्व अध्यक्ष केशव महिन्द्रा सहित सात आरोपियों पर गैर इरादतन हत्या का मामला हटाकर लापरवाही से मौत के आरोप लगाए गए थे। भोपाल की निचली अदालत में सात जून को हुए फैसले में सातों आरोपियों को दो-दो साल की सजा सुनाई गई थी। बाद में इन सभी को जमानत मिल गई। गैर इरादतन हत्या के मामले में अधिकतम सजा 10 साल की सजा का प्रावधान है।

1 टिप्पणियाँ:

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक said...

आज के समय की मांग है कि-कंपनी विधेयक में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को जरुर शामिल करना चाहिए. न जाने हमारा देश अंग्रेजों के ज़माने के सड़े-गले कानूनों से कब मुक्त होगा. वो दिन कब आएगा जब हमारे देश की अदालतें आधुनिक ज़माने के कानूनों और सामानों से सुसज्जित होगी. आज अपराध करने का तरीका और अपराधी दोनों बदल चुके हैं. आज कानूनों में बदलाव समय की आवश्कता है.

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