पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Wednesday, October 13, 2010

एफआईआर दर्ज में देरी साक्ष्य खारिज का आधार नही -उच्चतम न्यायालय

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि प्राथमिकी दर्ज कराने में देरी और गवाहों के बयानों में असंगति अभियोजन पक्ष के साक्ष्य को खारिज करने का आधार नहीं हो सकता.

न्यायालय ने कहा कि ऐसी अनियमितता विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में संभव है क्योंकि गांव और थाने के बीच दूरी होती है और समय के साथ व्यक्ति की यादयादश्त भी कमजोर होने लगती है.


राम नरेश ने दुश्मनी के चलते 11 अगस्त 1978 को पीडित शिव विलास को गोली मार कर घायल कर दिया था. सत्र अदालत ने राम विलास और लालू के बयानों के आधार पर आरोपी को पांच साल की सजा सुनायी. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सजा को बरकरार रखा.


न्यायमूर्ति एच एस बेदी और न्यायमूर्ति सी के प्रसाद की पीठ ने एक आदेश में कहा कि गवाहों राम विलास और लालू के साक्ष्य को खारिज करने का कोई आधार नहीं है.


पीठ ने कहा कि यह ध्यान में रखना चाहिए कि घटना 1978 की है और बयान 1986 में दर्ज किए गए. इतने समय में बयानों में कुछ अनियमितता सामान्य बात है क्योंकि समय के साथ यादयादश्त भी धुंधली होने लगती है.

एक साल पुराने मुकदमे एरियर नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमों के अंबार से जूझ रही न्यायपालिका को अक्षमता के आरोपों से बचाने का नायाब तरीका निकाला है। भारत के मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाड़िया ने कहा है कि 'एरियर' और 'पेंडेंसी' में अंतर है। एक साल पुराने मुकदमों को बकाया या एरियर नहीं कहा जा सकता, उन्हें विचाराधीन या पेंडिंग केस माना जाएगा। 'एरियर' का वास्तविक आकलन करते समय इस अंतर पर ध्यान दिया जाना चाहिए। ये बातें मुख्य न्यायाधीश ने कोर्ट न्यूज के ताजा अंक में कही हैं। इस अंक में सुप्रीम कोर्ट में लंबित कुल मुकदमों की संख्या तथा एक साल पुराने मुकदमों की संख्या अलग-अलग दी गई है ताकि उसे 'एरियर' न माना जाए।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा है कि बकाया मुकदमों के बढ़ती संख्या [एरियर] के कारण कई वर्गो द्वारा न्यायपालिका पर अक्षमता के आरोप लगाए जा रहे हैं। आज तक किसी ने यह नहीं सोचा कि एरियर का वास्तविक मतलब क्या है? क्या पेंडेंसी को एरियर के दायरे में शामिल किया जा सकता है? सुबह दाखिल हुए मुकदमे को शाम को 'एरियर' की श्रेणी में नहीं शामिल किया जा सकता। एक साल तक के पुराने मुकदमे को भी 'एरियर' नहीं कहा जा सकता। उसे विचाराधीन या 'पेन्डिंग केस' माना जाएगा। मुकदमों के 'एरियर' का वास्तविक आकलन करते समय इस अंतर को समझा जाना चाहिए। कोर्ट न्यूज में दिए गए आंकड़ों के अनुसार, 31 अगस्त तक सुप्रीम कोर्ट में 55,717 मुकदमे लंबित थे। इसमें से 19,680 मामले एक साल पुराने हैं। अत: सिर्फ 36,037 मुकदमे ही बकाया यानी 'एरियर' माने जाएंगे।

रिपोर्ट बताती है कि सुप्रीम कोर्ट में बदलाव आ रहा है। यहां का तंत्र पारदर्शी और त्वरित बनाने के लिए कदम उठाए गए हैं। उनमें तत्काल मामलों की सुनवाई, कंप्यूटर के जरिए सूची तय होना, सामान्य प्रक्रिया के अलावा नोटिस भेजने के लिए ई-मेल का उपयोग होना तथा प्रादेशिक भाषाओं का अच्छा अंग्रेजी अनुवाद कराने के लिए अनुवाद प्रकोष्ठ बनाना शामिल हैं। सूचनाएं और आंकड़े एक साथ एक जगह रखने के लिए नया सूचना व सांख्यिकी विभाग भी बनाया गया है।

बेअंत सिंह के हत्यारे को उम्र कैद की सजा

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मुख्य आरोपी जगतार सिंह हवारा की फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया है। न्यायालय ने हवारा तथा बलवंत सिंह की फांसी की सजा के खिलाफ दायर अपील पर मंगलवार को अपना फैसला सुनाया।

न्यायाधीश मेहताब सिंह गिल और अरविंद कुमार की ख्डांपीठ ने बेअंत सिंह हत्याकांड के दोषी बलवंत सिंह को केन्द्रीय जांच ब्यूरो की विशेष अदालत के मृत्युदंड के फैसले को बरकरार रखा। इसी मामले में शमशेर सिंह, गुरमीत सिंह और लखविंदर सिंह उम्रकैद की सजा काट रहे हैं।

हवारा तथा अन्य दोषियों की उच्च न्यायालय में दायर अपीलों की नियमित सुनवाई के बाद गत एक अक्टूबर को न्यायाधीश गिल तथा अरविंद कुमार की खंडपीठ ने अपना फैसला मंगलवार तक के लिए सुरक्षित रखा था। आतंकी संगठन बब्बर खालसा का कुख्यात सदस्य जगतार सिंह हवारा इस समय यहां की बुडैल जेल में बंद है तथा बलवंत सिंह तथा अन्य दोषी पटियाला की जेल में बंद हैं।

ज्ञातव्य है कि गत 31 अगस्त 1995 को चंडीगढ़ सिविल सचिवालय के बाहर बम विस्फोट में पूर्व मुख्यमंत्री सहित सत्रह लोगों की मौत हो गई थी। इस मामले में निचली अदालत ने वर्ष 2007 में जगतार सिंह हवारा और बलवंत सिंह को फांसी की सजा तथा शमशेर सिंह, गुरमीत सिंह और लखविंदर सिंह को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

माकपा विधायक के खिलाफ चलेगा अवमानना का मामला

मुख्य न्यायाधीश जे. चेलामेश्वर, न्यायाधीश ए.के. बशीर और न्यायाधीश के.एम. जोसेफ की पीठ ने एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया।

जयराजन (50) ने जुलाई में एक सभा के दौरान उच्च न्यायालय के सड़क पर सभा नहीं करने के आदेश पर न्यायाधीशों की आलोचना की थी।

इस संबंध में न्यायालय ने मंगलवार को पी. रहीम की ओर से दायर जनहित याचिका की सुनवाई की। रहीम ने अपनी याचिका में माकपा नेता द्वारा न्यायाधीशों की आलोचना करने पर उनके खिलाफ अवमानना का मामला चलाने की मांग की थी।

न्यायालय ने कहा कि जयराजन के खिलाफ अवमानना का मामला चलाया जाएगा।

Monday, October 11, 2010

बहुओं को जलाने वालों को फांसी की सजा मिले

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जब तक अपनी पत्नियों को जलाने वालों को फांसी पर नहीं लटकाया जाएगा, तब तक यह क्रूर अपराध नहीं रूकेगा। सर्वोच्चा न्यायालय के न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू और न्यायमूर्ति टी.एस.ठाकुर की पीठ ने कहा, ""बहुओं को जलाया जाना बर्बर और जंगली जानवरों जैसा कृत्य है। जब इस तरह के अपराध को अंजाम देने वालों को फांसी के फंदे पर लटकाया जाएगा, तब लोग महसूस करेंगे कि बहुओं को जलाया जाना अपराध है।"" अदालत ने मिलाप कुमार नामक दोषी ठहराए गए व्यक्ति की याचिका को सोमवार को खारिज करते हुए ये बातें कही थी। मिलाप कुमार को पंजाब के फिरोजपुर जिले में निचली अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
न्यायमूर्ति काटजू ने कहा कि ""हमारे कई सारे न्यायाधीश भाई अहिंसावादी हैं, लेकिन मैं ऎसा नहीं हूं।"" मैं मानता हूं कि इस तरह के जघन्य अपराधों को अंजाम देने वालों को क़डी से क़डी सजा दी जानी चाहिए। दरअसल, मिलाप कुमार ने अपनी पत्नी राज बाला को इसलिए जला कर मार डाला था, क्योंकि उसने उसके साथ खेत में काम करने से इंकार कर दिया था। यह घटना 10 मई, 1995 में फजिल्का शहर में घटी थी। अभियोजन ने कहा कि मिलाप कुमार ने मिट्टी का तेल छि़डक कर अपनी पत्नी को आग के हवाले कर दिया और घर का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया। परिणामस्वरूप दो बच्चाों की मां राज बाला 80 प्रतिशत जल गई। उसके बाद 14 मई, 1995 को उसकी मौत हो गई। निचली अदालत ने नौ नवंबर, 1999 को मिलाप कुमार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। पंजाब एवं हरियाणा उच्चा न्यायालय ने उसकी याचिका छह जनवरी, 2009 को खारिज कर दी थी।

क्यों न रिश्वत को मान्यता दे दें राज्य सरकारें: सुप्रीम कोर्ट

भारत में सरकारी दफ्तरों में फाइलें कैसे आगे बढ़ती है इससे देशवासी भलीभांति परिचित हैं। अब देश के सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि भ्रष्टाचार सरकारी तंत्र का हिस्सा बन चुका है। एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने देश में बढ़ रहे भ्रष्टाचार पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि सरकारी विभागों खासतौर पर आयकर, बिक्रीकर और आबकारी विभागों में कोई भी काम बिना पैसा दिए नहीं होता

न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू और न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर की पीठ ने कहा कि भारत के लिए सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि अब भ्रष्टाचार पर कोई नियंत्रण नहीं रह गया है। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए बनाई गई इकाईयां ही भ्रष्टाचार में लिप्त पाई जाती हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने खासतौर पर आबकारी, आयकर और बिक्रीकर विभागों में व्याप्त रिश्वतखोरी पर चिंता जाहिर की। देश के शीर्ष न्यायालय ने यह बात पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा आयकर निरिक्षक मोहनलाल शर्मा को बरी किए जाने के फैसले के विरोध में दायर की गई सीबीआई की याचिका पर सुनवाई करते हुए कही।


सीबीआई की ओर से अतिरक्त महाधिवक्ता पीपी मल्होत्रा ने कहा कि निचली अदालत द्वारा शर्मा को एक व्यक्ति से 10 हजार रुपए रिश्तव लेने का दोषी पाए जाने पर एक साल की सजा सुनाने के बाद भी हाईकोर्ट ने बरी कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने व्यंग्य करते हुए कहा कि बेहतर है राज्य सरकारे रिश्वतखोरी को वैध कर दे ताकि लोग एक निश्चित राशि देकर सरकारी विभागों में अपना काम करा ले। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बेहतर होगा रिश्वतखोरी की एक दर तय कर दी जाए जिससे लोगों को भी रिश्वत देने में आसानी होगी। इससे हर आदमी को यह भी पता लग जाए की अमुख काम के लिए उसे कितनी रिश्वत देनी है।

अदालत में मौजूद आरोपी शर्मा ने पीठ के सामने कहा कि वो काफी गरीब है और उसे गलत तरीके से फंसाया जा रहा है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आयकर, आबकारी और बिक्रीकर विभागों के में भ्रष्टाचार व्याप्त है और अधिकारी काफी अमीर है।

पीठ ने वरिष्ठ वकील केके वेणुगोपाल से भी रिश्वत को वैध करने संबंधी अपनी बात पर राय मांगी। इस वेणुगोपाल ने कहा कि देश के लिए बेहतर होगा कि स्कूलों में बच्चों को अच्छी नैतिक शिक्षा दी जाए।

नहीं बदली जा सकती सेवा शर्ते-जबलपुर हाईकोर्ट

एक महत्वपूर्ण फैसले में हाईकोर्ट ने अभिनिर्धारित किया है कि एक बार नौकरी ज्वाइन करने के बाद किसी भी कर्मचारी की सेवाएं बदली नहीं जा सकतीं, खासकर एक साल बाद। जस्टिस राजेन्द्र मेनन की एकलपीठ ने लोक स्वास्थ्य विभाग के हैण्डपंप मैकेनिकों की याचिकाएं सुनवाई बाद मंजूर करते हुए यह फैसला दिया

यह मामले छिंदवाड़ा जिले के लोक स्वास्थ्य एवं यांत्रिकी विभाग में हैण्डपंप मैकेनिक के पदों पर अगस्त 2007 से कार्यरत कर्मचारियों की ओर से दायर किये गये थे। आवेदकों का कहना था कि इन पदों के लिए जारी किये गये विज्ञापन में कई शर्ते दशाई गई थीं, जिनमें से एक यह थी कि यदि कर्मचारियों की नियुक्तियां वर्क चार्ज इस्टेब्लिशमेंट में हुईं तो चयनित उम्मीदवारों को दो साल के लिए परिवीक्षा में रखा जाएगा।

इसके बाद उन्हें नियमित करने पर विचार किया जाएगा। आवेदकों का कहना है कि अप्रैल 2008 में अचानक उनकी सेवा शर्तो में बदलाव करके कहा गया कि उनकी सेवाएं नियुक्ति के तीन साल के बाद नियमित की जाएंगी। इसे अवैधानिक बताते हुए यह याचिकाएं दायर की गईं।

मामले पर हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता राकेश राजेश सोनी और केएन पेठिया ने अपना पक्ष रखा। सुनवाई के बाद अदालत ने राज्य सरकार के इस कदम को अवैध ठहराते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं को विज्ञापन में दर्शाई गईं शर्तो के मुताबिक ही सारे लाभ दिये जाएं।

Friday, October 8, 2010

न्यायालय आदेश की अवमानना के मामले में दारोगा पर सौ रुपये का जुर्माना

न्यायालय आदेश की अवमानना के मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट सूर्यप्रकाश शर्मा ने एक उप निरीक्षक के वेतन से सौ रुपया काटने का आदेश पारित किया है।

थाना फतेहपुर से संबंधित फौजदारी के मामले के गवाह दारोगा प्रेमलाल वर्मा सम्मन व कारण बताओ नोटिस के तामील के बाद भी न्यायालय पर गवाही देने नहीं आये। न्यायालय ने इसे मुकदमे के निस्तारण में विलंब का दोषी माना। आज नियत तिथि पर साक्ष्य के लिए न्यायालय पर उपस्थित न होने पर न्यायालय ने पुलिस अधीक्षक व ट्रेजरी अफसर को आदेश दिया कि वह उसके वेतन से एक सौ रुपया काटकर राजकोष में जमा करे तथा आगामी नियत तिथि 20 अक्टूबर को न्यायालय पर उपस्थित करायें।

ललित मोदी बन गए मोस्ट वांटेड ‘अपराधी’

आईपीएल के पूर्व आयुक्त ललित मोदी की मुसीबतें और बढ़ गई हैं। भारतीय प्रवर्तन निदेशालय ने मोदी के खिलाफ ब्लू अलर्ट जारी किया है। इसके तहत उन्हें दुनिया के किसी भी पोर्ट या एयरपोर्ट पर पूछताछ के लिए गिरफ्तार किया जा सकता है। ये अलर्ट एक अक्टूबर से मान्य होगा। ब्लू अलर्ट के बाद ललित मोदी भारत छोड़कर किसी और देश नहीं जा पाएंगे।
अगर वो किसी एयरपोर्ट या सार्वजनिक स्थान पर मिलते हैं, तो वहां के अधिकारी उन्हें गिरफ्तार कर भारतीय प्रवर्तन निदेशालय के सुपुर्द करेंगे। गौरतलब है कि मोदी पर आईपीएल के सौदों में सैंकड़ों करोड़ रुपए के घपले का आरोप है।
अब इस अलर्ट के जारी होने के बाद मोदी किसी मोस्ट वांटेड अपराधी की तरह हो गए हैं। प्रवर्तन निदेशालय द्वारा अनेकों बार पेश होने के आदेश देने के बाद भी ललित मोदी सुनवाई के लिए नहीं पहुंचे थे। इसी से तंग आकर निदेशालय ने ये अलर्ट जारी किया है।

उल्लेखनीय है कि आईपीएल में वित्तीय गड़बड़ियों के उजागर होने के बाद मोदी को अध्यक्ष के पद से निलंबित कर दिया गया था। इसके बाद से सभी आईपीएल फ्रेंचाइजियों के विरूद्ध आयकर विभाग ने जांच शुरू की थी।

Thursday, October 7, 2010

बिना विवाह का साथी भी गुजारे भत्ते की हकदार-सर्वोच्च न्यायालय

न्यायाधिश मरकडेय काटजू की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह व्यवस्था दी है कि  शादी नहीं भी की है तो भी अगर आप संबंध तोड़ लेते हैं तो आप गुजारा भत्ता देने की जिम्मेदारी से नहीं बच सकते.

डी वेलुसामी की अपील पर बेंच ने यह भी कहा है कि 1960 के दशक से बिना विवाह के साथ रहने के मामले बढ़ते जा रहे हैं.  हालांकि भारतीय कानून में अभी इसकी इजाजत नहीं है, पर अमेरिका में न्यायालय ऐसे मामलों में ‘तलाक भत्ता सिद्धांत’ के आधार पर राहत देती है.

डी वेलुसामी ने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि पत्चाइम्मल कानूनी तौर पर विवाह बंधन में नहीं बंधी है और इसलिए वह किसी भुगतान की हकदार नहीं है. मगर तमिलनाडु के एक न्यायालय ने डी पत्चाइम्मल को पांच सौ रुपए का गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था.  इसके बाद वेलुसामी ने सर्वोच्च न्यायालय में गए.

संस्कृत भाषा में नहीं दाखिल हो सकती याचिका : हाईकोर्ट

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि संस्कृत न्यायालय की भाषा नहीं है। संस्कृत में न तो याचिका ड्राफ्ट की जा सकती है और न ही इस भाषा में बहस की अनुमति ही दी जा सकती है। संस्कृत भाषा में कोई आदेश या डिक्री को भी नहीं पारित किया जा सकता है। इसी के साथ न्यायालय ने संस्कृत भाषा में दाखिल याचिका को बिना गुणदोष पर ध्यान दिये खारिज कर दिया।

यह आदेश न्यायमूर्ति सभाजीत यादव ने वीरेन्द्र शाह सोध की याचिका पर दिया है। यह याचिका आज से 24 साल पहले हिन्दी प्रति के साथ संस्कृत भाषा में भी दाखिल की गयी थी। 2 जुलाई 86 को हाईकोर्ट ने याचिका सुनवाई के लिए मंजूर कर ली थी और विपक्षियों को नोटिस जारी किया था। यह आदेश न्यायमूर्ति वीएल यादव ने पारित किया था। याची का कहना था कि न्यायमूर्ति वीएल यादव ने संस्कृत में निर्णय दिया था इसलिए उसने संस्कृत में याचिका दाखिल की है।

न्यायालय ने कहा है कि न्यायिक कार्यवाही में अंग्रेजी के अलावा हिन्दी भाषा को शामिल करने की व्यवस्था है। हाईकोर्ट किसी वादकारी व अधिवक्ता को हिन्दी में बहस करने से नहीं रोक सकता। कोई ऐसा कानून नहीं है जो संस्कृत भाषा में याचिका दाखिल करने की अनुमति देता हो। हिन्दी भाषा में हलफनामे या अर्जियां या याचिका दाखिल की जा सकती हैं किंतु संस्कृत में ऐसा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

Wednesday, October 6, 2010

सुप्रीम कोर्ट का नटवर को झटका

उच्चतम न्यायालय ने इराक से जुड़े तेल के बदले अनाज घोटाले की जाँच में देर करने के प्रयासों को लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री नटवरसिंह और उनके पुत्र की खिंचाई की तथा प्रवर्तन निदेशालय को 2006 से रुकी जाँच प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की मंगलवार को अनुमति दे दी।

न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी और न्यायमूर्ति एसएस निज्जर की पीठ ने सिंह और उनके पुत्र की अपील को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने कुछ खास दस्तावेजों की आपूर्ति की माँग की थी। इसके साथ ही अदालत ने अधिकारियों को मामले की जाँच में तेजी लाने का निर्देश दिया।

पीठ ने कहा कि सिंह और उनके बेटे जगतसिंह की ओर से दायर ये याचिकाएँ मामले में देरी करने का तरीका हैं। याचिका प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के सामने मामले की सुनवाई में बाधा डालने का प्रयास हैं। पीठ ने कहा कि ईडी के सामने सुनवाई को तेजी से खत्म किया जाए।

नटवर सिंह ने दिल्ली उच्च न्यायालय में अपनी याचिका खारिज होने के फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी। याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में वोल्कर और आरएस पाठक समितियों के दस्तावेजों की माँग की थी।

मनगंढ़त आरोप पर स्थानान्तरित नहीं हो सकते मुकदमे-इलाहाबाद उच्च न्यायालय

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि किसी न्यायिक अधिकारी के समक्ष लंबित मुकदमे को केवल आरोप लगाने मात्र से हटाया नहीं जा सकता। किसी भी व्यक्ति को मनगढ़ंत आरोपों के आधार पर न्यायिक अधिकारी का शिकार करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। न्यायालय न कहा है कि एक न्यायिक अधिकारी से मुकदमे की सुनवाई तभी हटायी जा सकती है जबकि उसके विरुद्ध दुर्भावनापूर्ण कार्य करने के विश्वसनीय साक्ष्य मौजूद हों।

इसी के साथ न्यायालय ने जिला न्यायाधीश द्वारा सिविल जज वरिष्ठ श्रेणी चतुर्थ वाराणसी से याची के मुकदमे को हटाने से इन्कार करने के आदेश पर हस्तक्षेप से इन्कार कर दिया है। इस आदेश के खिलाफ दाखिल याचिका 15 हजार रुपये हर्जाने के साथ खारिज कर दी है।

यह आदेश न्यायमूर्ति राकेश तिवारी ने दीनानाथ उपाध्याय व अन्य की याचिका पर दिया है। याचिका के अनुसार याची ने 2 अप्रैल 99 को सिविल जज वाराणसी के समक्ष लंबित मुकदमे को अन्य कोर्ट में स्थानान्तरित करने की मांग में जिला न्यायाधीश को अर्जी दी। याची का कहना था कि सिविल जज मुकदमे को निर्णीत करने में ज्यादा रुचि ले रहे हैं और शीघ्र ही तिथि नियत कर रहे हैं। ऐसे में मुकदमे का स्थानान्तरण अन्य न्यायाधीश को किया जाना न्यायहित में है। किन्तु जिला न्यायाधीश ने निराधार व मनगढ़ंत आरोपों पर मुकदमे को स्थानान्तरित करने से इन्कार कर दिया जिसे याचिका में चुनौती दी गयी थी।

सजा सुनते ही बिहार के पूर्व मंत्री संजय सिंह की मौत

चर्चित टाटी नरसंहार में कोर्ट द्वारा दोषी करार दिए जाने के बाद पूर्व मंत्नी संजय सिंह की कोर्ट परिसर में ही दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई।

गौरतलब है कि बिहार में शेखपुरा जिले की बहुचर्चितत टांटी नरसंहार कांड के मामले में आज विशेष अदालत ने राज्य के पूर्व मंत्नी संजय सिंह समेत आठ लोगों को दोषी ठहराया था। मुंगेर कोर्ट में दोषी करार दिए जाने के बाद ही पूर्व मंत्री को दिल का दौरा पड़ गया और उनकी मौत हो गई।

विशेष अदालत के न्यायाधीश सुरेश चंद्र श्रीवास्तव ने करीब नौ वर्ष पुराने मामले में सुनवाई के बाद बिहार के पूर्व ग्रामीण विकास राज्य मंत्नी संजय कुमार समेत आठ लोगों को भारतीय दंड विधान की धारा 302 के तहत दोषी करार दिया।

इस मामले में अदालत ने गांव के तत्कालीन मुखिया बांके सिंह और एक अन्य को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया।  सजा की बिंदुओं पर सुनवाई के  लिए अदालत ने सात अक्टूबर की तिथि तय की है।

मामले के अनुसार दोषियों ने 26 दिसम्बर 2001 को राष्ट्रीय जनता  दल के तत्कालीन जिलाध्यक्ष काशी नाथ यादव समेत आठ लोगों की
जिले के टांटी नदी पुल के निकट गोली मारकर हत्या कर दी थी।

इस मामले में कांग्रेस के तत्कालीन सांसद राजो सिंह और उनके  पुत्न संजय कुमार समेत 11 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कराया गया था। वर्ष 2005 में राजो सिंह की अज्ञात अपराधियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।

राजस्थान में 30 न्यायिक अधिकारियों की ग्राम न्यायालयों में नियुक्ति

 राजस्थान हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने मंगलवार को एक आदेश जारी कर 30 न्यायिक अधिकारियों को ग्राम न्यायालयों में न्यायाधिकारी नियुक्त किया है।

रजिस्ट्रार कार्यालय से जारी आदेशानुसार न्यायिक मजिस्ट्रेट धूंकलराम कसवां को ग्राम न्यायालय पीसांगन (अजमेर), शक्तिसिंह को तिजारा (अलवर), जयपाल जानी को बाड़मेर, दीपक दुबे को अटरू (बांरा), राजेन्द्रसिंह जाटव को गड्डी (बांसवाड़ा), नरेन्द्रसिंह को रूपवास (भरतपुर), राजेन्द्र चौधरी को मांडल (भीलवाड़ा), सुनील कुमार बिश्रोई को बीकानेर, रिषीकुमार को कोलायत (बीकानेर), रामचन्द्र मीना को तालेरा (बूंदी), हेमराज को चित्तौडग़ढ़, अशीन कुलश्रेष्ठ को राजगढ़ (चूरू), जगतसिंह पंवार को दौसा, देवेन्द्रसिंह भाटी को आसपुर (डूंगरपुर), संतोषकुमार को श्रीगंगानगर, महेन्द्र प्रताप बेनीवाल को अनूपगढ़ (श्रीगंगानगर), शिवकुमार को हनुमानगढ़, पंकज नरूका को बस्सी (जयपुर), योगेशचन्द्र यादव को सांभर (जयपुर), राजेश शर्मा को पोकरण (जैसलमेर), दलपतसिंह राजपुरोहित को मण्डोर (जोधपुर), प्रदीप कुमार (द्वितीय) को ओसियां (जोधपुर), महावीर महावर को हिंडौन (करौली), किशोर कुमार तालेपा को खेराबाद (कोटा), वीरेन्द्रप्रतापसिंह को जायल (मेड़ता), शिवप्रसाद तम्बोली को रेलमगरा (राजसमंद), इसरत खोखर को पीपराली (सीकर), तनसिंह चारण को पिंडवाड़ा (सिरोही), मुकेश आर्य को देवली (टोंक) और न्यायिक मजिस्ट्रेट डॉ.सूर्यप्रकाश पारीक को गिरवा (उदयपुर) ग्राम न्यायालय का न्यायाधिकारी नियुक्त किया गया है।
इन मामलों की होगी सुनवाई
 ग्राम पंचायत में फौजदारी, सिविल व अन्य विवादों से जुड़े मामलों की सुनवाई होगी। फौजदारी कानून के तहत ऐसे मुकदमें सुने जाएंगे जिनमें दो साल या इससे कम कैद की सजा का प्रावधान है। चोरी, चोरी का माल खरीदने, चोरी का माल नष्ट करने के मामलों की भी सुनवाई होगी। इसमें शर्त है कि संपत्ति बीस हजार रुपए से ज्यादा की नहीं हो। आईपीसी की धारा 454, 456, 504 और 506 व आपराधिक मामले भी सुने जाएंगे।

मजदूरी भुगतान अधिनियम, न्यूनतम मजूदरी अधिनियम, सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 125 सीआरपीसी के तहत परिवार, बच्चों व माता पिता के भरण पोषण से जुड़े मामले, बंधुआ मजदूर अधिनियम, समान मजदूरी अधिनियम, घरेलू हिंसा कानून के मामले, संपत्ति की खरीद फरोख्त, आम रास्ते से उपयोग का मामला, सिंचाई पानी से जुड़ा विवाद, कृषि भूमि व फार्म हाउस के मामले, वाटर चैनल, कुंए व टयूबवैल से पानी लेने का अधिकार, व्यापार व उधारी से जुड़े धन वाद, पार्टनरशिप, जुताई साझेदारी विवाद, वन संपदा के उपयोग से जुड़े विवाद सुने जाएंगे।