पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Wednesday, October 6, 2010

मनगंढ़त आरोप पर स्थानान्तरित नहीं हो सकते मुकदमे-इलाहाबाद उच्च न्यायालय

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि किसी न्यायिक अधिकारी के समक्ष लंबित मुकदमे को केवल आरोप लगाने मात्र से हटाया नहीं जा सकता। किसी भी व्यक्ति को मनगढ़ंत आरोपों के आधार पर न्यायिक अधिकारी का शिकार करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। न्यायालय न कहा है कि एक न्यायिक अधिकारी से मुकदमे की सुनवाई तभी हटायी जा सकती है जबकि उसके विरुद्ध दुर्भावनापूर्ण कार्य करने के विश्वसनीय साक्ष्य मौजूद हों।

इसी के साथ न्यायालय ने जिला न्यायाधीश द्वारा सिविल जज वरिष्ठ श्रेणी चतुर्थ वाराणसी से याची के मुकदमे को हटाने से इन्कार करने के आदेश पर हस्तक्षेप से इन्कार कर दिया है। इस आदेश के खिलाफ दाखिल याचिका 15 हजार रुपये हर्जाने के साथ खारिज कर दी है।

यह आदेश न्यायमूर्ति राकेश तिवारी ने दीनानाथ उपाध्याय व अन्य की याचिका पर दिया है। याचिका के अनुसार याची ने 2 अप्रैल 99 को सिविल जज वाराणसी के समक्ष लंबित मुकदमे को अन्य कोर्ट में स्थानान्तरित करने की मांग में जिला न्यायाधीश को अर्जी दी। याची का कहना था कि सिविल जज मुकदमे को निर्णीत करने में ज्यादा रुचि ले रहे हैं और शीघ्र ही तिथि नियत कर रहे हैं। ऐसे में मुकदमे का स्थानान्तरण अन्य न्यायाधीश को किया जाना न्यायहित में है। किन्तु जिला न्यायाधीश ने निराधार व मनगढ़ंत आरोपों पर मुकदमे को स्थानान्तरित करने से इन्कार कर दिया जिसे याचिका में चुनौती दी गयी थी।

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