पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Sunday, December 19, 2010

न्याय के मंदिर में ईमान से भरा समझौता

मध्य प्रदेश के छतरपुर एडीजे कोर्ट में एक रोचक मामला सामने आया है। यहां एक जमीन विवाद के मामले में दोनों पक्षों के बीच केवल एक कसम खा लेने मात्र से समझौता हो गया। न्याय के मंदिर में ईमान से भरा यह समझौता चर्चा का विषय रहा।

वकील अनिल द्विवेदी ने बताया कि बेनीगंज में रहने वाली सलमा मकसूद पति मकसूद अहमद हाल निवासी भोपाल की जमीन ग्राम परा में स्थित थी। मुख्य रोड पर 1.748 हेक्टेयर क्षेत्र में स्थित यह जमीन बेचने के लिए सलमा मकसूद ने बगौता निवासी चतुर सिंह चंदेल को अधिकृत किया था। चतुर सिंह ने सलमा मकसूद को यह लालच दिया कि वह महंगे रेट पर

उसकी जमीन बिकवा देगा,बशर्ते वह उसके नाम जमीन का मुख्तारनामा लिख दे। चतुर सिंह ने मुख्तारनामा लिखवाने के बाद जमीन की पावर ऑफ अटॉर्नी भी अपने नाम करा ली थी। लेकिन बाद में चतुर सिंह ने उस जमीन को अपने परिवार की एक महिला के नाम कर दिया।

जब सलमा मकसूद को इस बारे में जानकारी लगी तो उन्होंने छतरपुर आकर पूरे मामले की जानकारी लेने के बाद एक सिविल केस जिला न्यायालय में पेश किया।

सुनवाई के दौरान एडीजे पीके शर्मा के सामने चतुर सिंह ने अपना पक्ष रखते हुए सलमा मकसूद के पति को ढाई लाख रुपए जमीन के एवज में देने की बात कही, लेकिन सलमा ने बताया कि उसे केवल 30 हजार रुपए ही दिए गए हैं।

इस पर चतुर सिंह ने कोर्ट में कहा कि यदि वादी पक्ष मस्जिद में जाकर अपने बच्चे की कसम खाकर यह कहे कि उसे विवादित जमीन के विक्रय के संबंध में ढाई लाख नहीं मिले हैं तो पूरी रकम देने को तैयार है। इस पर एडीजे ने वकील के माध्यम से तुरंत सलमा मकसूद को मस्जिद भेजकर कसम कराई। इसके बाद चतुर सिंह ढाई लाख रुपए देने को तैयार हो गया और कोर्ट में दोनों पक्षों ने राजीनामा लिखकर दे दिया।

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