पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Sunday, December 19, 2010

आपराधिक मामलों में बयानों में मामूली फर्क की अनदेखी जायज-सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आपराधिक मामलों में किसी अभियुक्त को दोषी ठहराते वक्त गवाहों के बयानों में मामूली अंतरों की उपेक्षा की जा सकती है।

न्यायमूर्ति एच एस बेदी और न्यायमूर्ति सी के प्रसाद की पीठ ने अपने एक फैसले में कहा कि सुनवाई के दौरान बड़ी संख्या में गवाह पेश किए जाते हैं और ऐसे में उनके बयानों में अंतर आना स्वाभावित है, इसके तहत किसी अभियुक्त को संदेह का लाभ दिए जाने को उचित नहीं ठहराया जा सकता।

पीठ ने कहा कि ऐसे मामले में अभियोजन पक्ष के कई गवाह पूरी तरह स्वतंत्र होते हैं और उनकी गवाही पर यकीन न करने की कोई वजह नहीं दिखती।

न्यायालय ने यह बात दहेज उत्पीड़न के मामले में दोषी करार दिए नंदयाला वेंकटरमन नामक एक शख्य की अपील खारिज करते हुए कही। आंध्र प्रदेश के कड़प्पा जिले में वेंकटरमन की पत्नी भवानी ने 10 अप्रैल, 1993 को फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी और इसी मामले में निचली अदालत ने उसे दोषी करार दिया था। बाद में आंधच् उच्च न्यायालय ने भी इस फैसले को सही ठहराया।

वेंकटरमन ने सुप्रीम कोर्ट में यह दावा करते हुए अपनी रिहाई की गुहार लगाई थी कि इस मामले के गवाहों के बयानों में अंतर है। न्यायालय उसकी इस दलील से सहमत नहीं हुआ और उसकी याचिका खारिज कर दी गई।

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