पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Friday, December 24, 2010

दहेजलोभी मजिस्ट्रेट हंगामा करने और दुल्हन को चांटे मारने के मामले में बर्खास्त

मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य के शहडोल जिले में पदस्थ न्यायिक मजिस्ट्रेट को अपनी शादी के दौरान बारात लेकर दुल्हन के घर पहुंचने के बाद दहेज में एक लाख रुपए और कार की मांग पूरी नहीं करने पर हंगामा करने और दुल्हन को चांटे मारने के मामले में बर्खास्त कर दिया है।

उच्च न्यायालय के सतर्कता पंजीयक के डी खान ने दूरभाष पर बताया कि इस मामले में राज्यपाल से आदेश प्राप्त होने के बाद आरोपी न्यायिक मजिस्ट्रेट इंदर सिंह मालवीय को गुरुवार को बर्खास्त कर दिया गया। इस मामले में देवास के पुलिस अधीक्षक ने उच्च न्यायालय को लगभग 20 दिन पहले उच्च न्यायालय को न्यायिक मजिस्ट्रेट के खिलाफ शिकायत भेजी थी। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के निर्देश पर न्यायालय के सतर्कता विभाग ने जांच शुरू की और इंदौर खंडपीठ के मुख्य सतर्कता प्रमुख और शहडोल जिला न्यायाधीश से रिपोर्ट मांगी थी। एक सप्ताह पहले सभी रिपोर्ट मिलने पर मुख्य न्यायाधीश और प्रशासनिक समिति के समक्ष यह मामला रखा गया था। कमेटी ने आरोपी मजिस्ट्रेट की बर्खास्तगी की अनुशंसा राज्य सरकार को भेज दी थी।

राज्यपाल कार्यालय से बुधवार को आरोपी मजिस्ट्रेट की बर्खास्तगी के आदेश उच्च न्यायालय को प्राप्त हुए और इस आदेश को गुरुवार को शहडोल में मजिस्ट्रेट इंदर सिंह को थमा दिए गए। दुल्हन मोनिका ने दहेज लोभी मजिस्ट्रेट इंदर सिंह के खिलाफ देवास के कोतवाली थाने में लिखित शिकायत की थी। पुलिस ने मौके पर पहुचंने के बाद मोनिका का मेडिकल कराया और आरोपी इंदर सिंह के खिलाफ मारपीट और दहेज प्रतिषेध अधिनियम के तहत प्रकरण दर्ज किया था।

आरोपी मजिस्ट्रेट गत दो दिसंबर को अपनी बारात लेकर देवास शहर के कोतवाली थाना क्षेत्र में मोनिका के घर गया था। बारात पहुंचने के बाद दूल्हा मजिस्ट्रेट ने दुल्हन के पिता से दहेज में एक लाख रुपए नगद और मारुति कार की मांग करने लगा। दुल्हन के पिता ने इस मांग को मानने से इन्कार करने पर आरोपी ने दुल्हन को चांटे मारे थे।

सेवानिवृत्ति की उम्र 60 साल करने पर रोक

राजस्थान उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने गुरुवार को उरमूल डेयरी बीकानेर के कर्मचारियों की सेवानिवृत्त 60 साल में करने पर रोक लगा दी है। अब उन्हें 58 साल की उम्र में ही सेवानिवृत्त किया जाएगा।

हाईकोर्ट की एकल पीठ ने 13 दिसंबर को एक आदेश जारी कर उरमूल डेयरी के कर्मचारियों को साठ साल में सेवानिवृत्त करने के आदेश दिए थे। इस पर उरमूल डेयरी ने सेवानिवृत्ति की उम्र साठ साल कर दी, फिर डेयरी ने अपने अधिवक्ता राजेश जोशी के मार्फत हाईकोर्ट की खंडपीड में विशेष अपील लगाई। इस अपील की गुरुवार को हाईकोर्ट की खंडपीठ के न्यायाधीश एएम सप्रे और सीएम तोतला ने सुनवाई की। दोनों न्यायाधीशों की खंडपीठ ने इस अपील पर अपना फैसला देते हुए एकल पीठ के उस निर्णय को अपास्त कर दिया, जिसमें सेवानिवृत्ति की उम्र 58 से 60 साल की गई थी। इस फैसले के बाद उरमूल डेयरी के कर्मचारियों को अब 58 साल की उम्र में सेवानिवृत्त किया जा सकेगा।

Sunday, December 19, 2010

आपराधिक मामलों में बयानों में मामूली फर्क की अनदेखी जायज-सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आपराधिक मामलों में किसी अभियुक्त को दोषी ठहराते वक्त गवाहों के बयानों में मामूली अंतरों की उपेक्षा की जा सकती है।

न्यायमूर्ति एच एस बेदी और न्यायमूर्ति सी के प्रसाद की पीठ ने अपने एक फैसले में कहा कि सुनवाई के दौरान बड़ी संख्या में गवाह पेश किए जाते हैं और ऐसे में उनके बयानों में अंतर आना स्वाभावित है, इसके तहत किसी अभियुक्त को संदेह का लाभ दिए जाने को उचित नहीं ठहराया जा सकता।

पीठ ने कहा कि ऐसे मामले में अभियोजन पक्ष के कई गवाह पूरी तरह स्वतंत्र होते हैं और उनकी गवाही पर यकीन न करने की कोई वजह नहीं दिखती।

न्यायालय ने यह बात दहेज उत्पीड़न के मामले में दोषी करार दिए नंदयाला वेंकटरमन नामक एक शख्य की अपील खारिज करते हुए कही। आंध्र प्रदेश के कड़प्पा जिले में वेंकटरमन की पत्नी भवानी ने 10 अप्रैल, 1993 को फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी और इसी मामले में निचली अदालत ने उसे दोषी करार दिया था। बाद में आंधच् उच्च न्यायालय ने भी इस फैसले को सही ठहराया।

वेंकटरमन ने सुप्रीम कोर्ट में यह दावा करते हुए अपनी रिहाई की गुहार लगाई थी कि इस मामले के गवाहों के बयानों में अंतर है। न्यायालय उसकी इस दलील से सहमत नहीं हुआ और उसकी याचिका खारिज कर दी गई।

दुष्कर्म का झूठा मामला, महिला पर मुकदमा

दिल्ली की एक अदालत ने हरियाणा के एक पुलिसकर्मी पर दुष्कर्म का झूठा आरोप लगाने वाली एक महिला, उसके पति एवं ससुर के खिलाफ मुकदमा चलाने का आदेश दिया है।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कामिनी लाउ ने पुलिस सब इंसपेक्टर तथा दो कांस्टेबलों को इस महिला के अपहरण और उसके साथ दुष्कर्म के आरोपों से बरी कर दिया है तथा आरोप लगाने वाली इस महिला और उसके दो रिश्तेदारों के खिलाफ आपराधिक सुनवाई का आदेश दिया। यह महिला जहांगीरपुरी की रहने वाली है।

अदालत ने कहा कि महिला के ससुर ने दुष्कर्म की सारी कहानी गढ़ी क्योंकि हरियाणा पुलिस उसके खिलाफ विभिन्न आपराधिक मामलों की जाचं कर रही थी।

महिला ने आरोप लगाया कि सब इंसपेक्टर ओम प्रकाश और कांस्टेबल राकेश उर्फ पहलवान एवं टेक चंद ने 09 अप्रैल, 2004 को उसका और उसके पति का अपहरण कर लिया था और गुड़गांव के फिरोजपुर झिरका थाने में उसके साथ दुष्कर्म किया था। महिला के अनुसार हालांकि इन तीनों पुलिसकर्मियों ने उसे उसी दिन छोड़ दिया जबकि उसके पति निसार अहमद को 16 अप्रैल, 2004 तक हिरासत में रखा।

पत्र में राजा का नाम था: न्यायाधीश रघुपति

एक आपराधिक मामले में न्यायपालिका को प्रभावित करने के पूर्व दूरसंचार मंत्री राजा के कथित प्रयास को लेकर उठा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। पूर्व न्यायधीश एस रघुपति ने दोहराया कि उनके पत्र में राजा का नाम था। उन्होंने कहा कि जो पत्र उन्होंने मद्रास उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायधीश एच एल गोखले को लिखा था, उसमें ए राजा का नाम था।

गौरतलब है कि एक वकील आपराधिक मामले में बंद आरोपी को जमानत दिलाने की सिफारिश लेकर न्यायाधीश के पास पहुंचा था और उसने इस संदर्भ में ए राजा का नाम लिया था, हालांकि न्यायाधीश ने ऐसा करने से मना भी कर दिया था।

उन्होंने तमिलनाडु और पुडुचेरी के बार कौंसिल के अध्यक्ष पद से वकील आर के चंद्रमोहन को निलंबित किए जाने संबंधी मद्रास उच्च न्यायालय खंडपीठ के आदेश में उस पत्र के कुछ अंश को जोड़े जाने का हवाला देते हुए संवाददाताओं से कहा कि वह उस आदेश में हमेशा से था। आपने उसे देखा है। यह खंडपीठ के आदेश में हमेशा से था।

वकीलों द्वारा दायर की गयी इस याचिका पर सुनवाई करते हुये खंडपीठ ने रघुपति के लिखे पत्र का कुछ अंश इसमें जोड़ा था जिसमें वकील चंद्रमोहन के उनके चैंबर में आने का उल्लेख था।

गौरतलब है कि वकील चंद्रमोहन ने पिछले साल न्यायाधीश के कमरे में प्रवेश कर अंक घोटाला में आरोपी एक पिता पुत्र को केंद्रीय दूर संचार मंत्री ए राजा का पारिवारिक मित्र बताकर उनकी अग्रिम जमानत याचिका पर विचार करने को कहा था।

न्याय के मंदिर में ईमान से भरा समझौता

मध्य प्रदेश के छतरपुर एडीजे कोर्ट में एक रोचक मामला सामने आया है। यहां एक जमीन विवाद के मामले में दोनों पक्षों के बीच केवल एक कसम खा लेने मात्र से समझौता हो गया। न्याय के मंदिर में ईमान से भरा यह समझौता चर्चा का विषय रहा।

वकील अनिल द्विवेदी ने बताया कि बेनीगंज में रहने वाली सलमा मकसूद पति मकसूद अहमद हाल निवासी भोपाल की जमीन ग्राम परा में स्थित थी। मुख्य रोड पर 1.748 हेक्टेयर क्षेत्र में स्थित यह जमीन बेचने के लिए सलमा मकसूद ने बगौता निवासी चतुर सिंह चंदेल को अधिकृत किया था। चतुर सिंह ने सलमा मकसूद को यह लालच दिया कि वह महंगे रेट पर

उसकी जमीन बिकवा देगा,बशर्ते वह उसके नाम जमीन का मुख्तारनामा लिख दे। चतुर सिंह ने मुख्तारनामा लिखवाने के बाद जमीन की पावर ऑफ अटॉर्नी भी अपने नाम करा ली थी। लेकिन बाद में चतुर सिंह ने उस जमीन को अपने परिवार की एक महिला के नाम कर दिया।

जब सलमा मकसूद को इस बारे में जानकारी लगी तो उन्होंने छतरपुर आकर पूरे मामले की जानकारी लेने के बाद एक सिविल केस जिला न्यायालय में पेश किया।

सुनवाई के दौरान एडीजे पीके शर्मा के सामने चतुर सिंह ने अपना पक्ष रखते हुए सलमा मकसूद के पति को ढाई लाख रुपए जमीन के एवज में देने की बात कही, लेकिन सलमा ने बताया कि उसे केवल 30 हजार रुपए ही दिए गए हैं।

इस पर चतुर सिंह ने कोर्ट में कहा कि यदि वादी पक्ष मस्जिद में जाकर अपने बच्चे की कसम खाकर यह कहे कि उसे विवादित जमीन के विक्रय के संबंध में ढाई लाख नहीं मिले हैं तो पूरी रकम देने को तैयार है। इस पर एडीजे ने वकील के माध्यम से तुरंत सलमा मकसूद को मस्जिद भेजकर कसम कराई। इसके बाद चतुर सिंह ढाई लाख रुपए देने को तैयार हो गया और कोर्ट में दोनों पक्षों ने राजीनामा लिखकर दे दिया।

Saturday, December 4, 2010

हाईकोर्ट ने जारी किया छुट्टियों का कैलेंडर



राजस्थान हाईकोर्ट ने अगले साल के लिए छुट्टियों का कैलेंडर जारी कर दिया है। कैलेंडर के अनुसार दीर्घकालीन अवकाश के तहत 1 जून से 28 जून तक गर्मियों की छुट्टियां रहेगी, जबकि 25 दिसंबर से 31 दिसंबर तक शीतकालीन अवकाश रहेगा।

छुट्टियों में सभी रविवार व द्वितीय शनिवार के अवकाश तो होंगे ही, पर्व अवकाश के रूप में 1 जनवरी को नूतन वर्ष दिवस, 26 जनवरी गणतंत्र दिवस, 16 फरवरी को बारावफात, 3 मार्च को महाशिवरात्रि, 19 से 21 मार्च तक होली, 5 अप्रैल को चेटीचंड, 12 अप्रैल को रामनवमी, 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती, 16 अप्रैल को महावीर जयंती, 4 जून को प्रताप जयंती, 13 अगस्त को रक्षा बंधन, 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस, 22 अगस्त को जन्माष्टमी, 31 अगस्त को ईदुलफितर, 28 सितंबर को नवरात्रा स्थापना, 2 अक्टूबर को गांधी जयंती, 3 से 7 अक्टूबर तक दशहरा, 24 से 28 अक्टूबर तक दीपावली, 7 नवंबर को ईदुल जुहा, 10 नवंबर को गुरु नानक जयंती, 6 दिसंबर को मोहर्रम व 25 दिसंबर को क्रिसमस का अवकाश रहेगा।


इसी तरह ऐच्छिक अवकाश के तहत 11 जनवरी को गुरु गोविंदसिंह जयंती, 22 अप्रैल को गुड फ्राइडे, 23 अप्रैल को ईस्टर सेटरडे, 6 मई को आखातीज, 17 मई को बुद्ध पूर्णिमा, 15 जुलाई को गुरु पूर्णिमा, 21 अगस्त को थदड़ी, 26 अगस्त को जुमातुल विदा, 1 सितंबर को गणोश चतुर्थी, 2 सितंबर को संवत्सरी, 19 सितंबर को अनंत चतुर्दशी व 20 दिसंबर को पाश्र्वनाथ जयंती शामिल किए हैं।

जुमातुल विदा, मोहर्रम, ईदुलजुहा, ईदुल फितर और बारावफात के अवकाश चंद्र दर्शन पर आधारित होंगे। कैलेंडर के मुताबिक 29 व 30 सितंबर तथा 1 अक्टूबर को कार्यालय का कार्य दिवस रहेगा। इसी तरह 26 मार्च, 24 सितंबर व 22 अक्टूबर को न्यायालय और कार्यालय दोनों का कार्य दिवस रहेगा।

गरीबों को नहीं मिल रहा न्याय : दिल्ली हाईकोर्ट

ना तो कोई आरोपी इस कारण छूटना चाहिए कि न्यायालय के पास अपील पर सुनवाई के लिए समय नहीं है और न ही इसके चलते कोई निर्दोष जेल में रहे। दहेज हत्या के एक मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी की। कहा, आपराधिक न्याय प्रणाली में व्यापक सुधार की जरूरत है, ताकि समानता के संवैधानिक उद्देश्य को सार्थक बनाया जा सके। क्योंकि गरीबों को उच्च न्यायालयों में समय पर न्याय नहीं मिल पाता है और शक्तिशाली लोगों से जुड़े मामले ही चलते रहते हैं।

न्यायमूर्ति एस.एन. धींगरा ने दहेज हत्या व दहेज प्रताड़ना के मामले में एक सब्जी बेचने वाले परिवार से संबंध रखने वाली महिला रानी को बरी कर दिया। इस मामले में महिला के पति व बेटे की अपील पर सुनवाई करने के लिए उच्च न्यायालय के पास समय ही नहीं था, इसलिए बिना अपराध के ही उन्होंने इतने दिन जेल में बिता दिए कि अपील पर फैसला आने से पहले ही उनकी सजा पूरी हो गई थी।

निचली अदालत ने 13 अक्टूबर 2003 को रानी, उसके बेटे व पति को बहू जानकी को दहेज के लिए प्रताडि़त करने व हत्या के मामले में सात-सात साल के कारावास की सजा सुनाई थी। जिसे उन्होंने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।

निचली अदालत की खिंचाई करते हुए कहा कि इस मामले में बिना पर्याप्त सबूतों के ही उनको सजा दे दी गई। न तो बचाव पक्ष ने अपनी भूमिका निभाई, और न पुलिस ने, न ही सरकारी वकील और न जज ने। तकनीकी तरह से मामले में सजा दे दी गई। जजों के पास अधिकार है कि वह गवाहों से सवाल पूछ कर सच्चाई जानने की कोशिश करें, परंतु ऐसा नहीं किया जा रहा है। गवाहों को वकीलों के भरोसे छोड़ दिया जाता है और जज बैठकर निगरानी का काम करते हैं। उनका यह व्यवहार गरीबों के लिए भारी पड़ जाता है, क्योंकि उनके पास अच्छे वकील नहीं होते हैं।

मामले में ऐसा कोई सबूत नहीं मिला जिससे जाहिर हो सके कि आरोपियों ने मृतका को प्रताड़ित किया था। अदालत ने कहा कि भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली पुराने ढर्रे पर चल रही है जिसमें आरोपी को बोलने की अनुमति नहीं दी जाती है। जो कि इस तरह के मामलों में अदालत के सामने सच्चाई लाने से रोक देता है। गरीबी के कारण यह परिवार एक वकील भी नहीं नियुक्त कर पाया जिस कारण न तो गवाहों से जिरह हो पाई और न ही अपील के दौरान उसके पति व बेटे को जमानत मिली। रानी के बेटे का विवाह दिसंबर 2000 में जानकी से हुआ था। एक मार्च 2001 को जानकी ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी।

विश्व विकलांग दिवस पर नि:शक्त को पहली ही सुनवाई पर फैसले का तोहफा

आमतौर पर अदालत में मुकदमे पर तारीख पर तारीख पड़ने की बात सुनने को मिलती है, लेकिन राजस्थान हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक नि:शक्त को पहली ही सुनवाई पर राहत देकर विश्व विकलांग दिवस का तोहफा दिया।

न्यायाधीश मोहम्मद रफीक ने मानसिंह की याचिका यह कार्यवाही की। प्रार्थी ने पीटीईटी के जरिए बीएड में दाखिले की पात्रता हासिल की थी , उसे कॉलेज भी आवंटित हो गया। फीस जमा कराने के बावजूद भरतपुर के महाराजा अग्रसेन टी.टी. महाविद्यालय ने उसे पाठ्यक्रम में शामिल करने से इनकार कर दिया।

प्रार्थीपक्ष के अनुसार कॉलेज प्रार्थी के दोनों पैरों से चलने-फिरने में अक्षम होने के कारण दाखिले से इनकार कर रहा है, जबकि वह पूरे सत्र कुर्सी या जमीन पर बैठकर पढ़ाई करने को तैयार है। प्रार्थी ने डीग के एमएजे गवर्नमेंट कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की है। उसने बीएड के लिए आवंटित कॉलेज में फीस जमा कराने की रसीद भी दिखाई।

न्यायालय ने इसे नोटिस जारी किए बिना ही मंजूर कर लिया और कॉलेज को निर्देश दिया कि वह पाठ्यक्रम की पढ़ाई में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं होने दे। साथ ही नि:शक्तजन सम्बन्धी कानून के तहत सभी आवश्यक सुविधाएं मुहैया कराए।

Tuesday, November 2, 2010

ब्लूलाइन बसों पर लगे प्रतिबंध को कोर्ट की मंजूरी


दिल्ली उच्च न्यायालय ने ब्लूलाइन बसों को हटाने के राष्ट्रीय राजधानी की सरकार के फैसले पर सोमवार को रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा कि ब्लूलाइन संचालकों की रोजी रोटी से ज्यादा महत्वपूर्ण लोगों की जिंदगी है।

न्यायमूर्ति संजीव किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने बस संचालकों की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि ब्लूलाइन बसों पर रोक लगाने से उनकी रोजी रोटी छिन जाएगी। पीठ ने कहा कि उन लोगों के परिजनों की रोजी रोटी का क्या होगा जिन्होंने ब्लूलाइन बसों की वजह से अपनी जिंदगी खो दी।

अदालत ने दिल्ली सरकार द्वारा 27 अक्टूबर को राजधानी से ब्लूलाइन बसों के संचालन पर पूरी तरह से रोक लगाने संबंधी अधिसूचना पर स्थगनादेश देने से इंकार कर दिया। अदालत ने हालांकि संचालकों की फरियाद भी सुनने पर सहमति जताई और सरकार से जवाब दाखिल करने के लिए कहा। इस मामले पर अगली सुनवाई के लिए अगले वर्ष 10 जनवरी की तारीख मुकर्रर की गई है।

अदालत ने ब्लूलाइन बसों के संगठन की ओर से दाखिल याचिका पर यह आदेश दिया। इस याचिका में ब्लूलाइन बसों को बंद करने के दिल्ली सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी। उपराज्यपाल तेजेंद्र खन्ना से स्वीकृति मिलने के बाद सरकार ने इन बसों को हटाने के लिए 27 अक्टूबर को अधिसूचना जारी की थी।

दिल्ली सरकार ने राजधानी में ब्लूलाइन बसें पूरी तरह से प्रतिबंधित करने के लिए 14 दिसंबर की तारीख तय की है।

अब विदेशों से परीक्षा संचालन सीखेंगे राज्य आयोगों के अध्यक्ष

देश के राज्य लोक सेवा आयोगों के अध्यक्ष अब परीक्षा संचालन व अन्य व्यवस्थाओं की बेहतरीन प्रणाली सीखने के लिए विदेश यात्राएं करेंगे। यूपीएससी ने केन्द्र सरकार से इस संबंध में अनुमति प्राप्त कर ली है। मामले की जानकारी देते हुए नेशनल कान्फ्रेंस ऑफ चेयरपर्सन्स ऑफ पब्लिक सर्विस कमीशंस की स्टैंडिंग कमेटी के चेयरमैन व आन्ध्र प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष डॉ. वाई वेंकटरामी रेड्डी ने बताया कि इसके लिए फिलहाल, छह देश चयनित किए गए हैं। इसमें इंग्लैंड, जापान, फ्रांस, आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका व कनाडा शामिल हैं।

डॉ. रेड्डी के अनुसार कुछ वर्ष पूर्व तक राज्य के आयोगों के अध्यक्षों को विदेश जाने की छूट थी। अब इसे वापस लागू किया जा रहा है। डॉ. रेड्डी ने बताया कि देश के सभी 28 आयोगों के अध्यक्ष हर वर्ष किसी न किसी राज्य में सम्मेलन आयोजित करते हैं। इसमें राज्य आयोगों में चल रही अच्छी प्रक्रियाओं को साझा करने के साथ ही विभिन्न समस्याओं पर भी चर्चा की जाती है। इसी क्रम में अगले साल जनवरी में महाराष्ट्र में कान्फ्रेंस आयोजित किया जाएगा। स्टैंडिंग कमेटी की बैठक में आज इसके लिए एजेन्डा निर्धारित किया गया। उन्होने बताया कि अध्यक्षों व सदस्यों की सेवानिवृत्ति की आयु सीमा 62 साल से बढ़ा कर 65 साल करने की मांग पिछले कई वर्ष से की जा रही है। इसके लिए संविधान में संशोधन की जरूरत है। सरकार ने हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की आयु सीमा बढ़ा दी है। इसी क्रम में आयोगों के लिए भी आयु सीमा बढ़ाने की जरूरत है। बैठक में इसके साथ ही देश में आयोग के अध्यक्षों व सदस्यों के क्षेत्रीय सम्मेलन आयोजित करने का निर्णय लिया गया है। यह सम्मेलन नेशनल कान्फ्रेंस से पहले आयोजित होंगे। उत्तरी राज्यों का सम्मेलन इस साल उत्तर प्रदेश में, दक्षिणी राज्यों का कर्नाटक में, पूर्वी राज्यों का बिहार में, पश्चिमी राज्यों का राजस्थान में व पूर्वोत्तर के राज्यों का सम्मेलन आसाम में आयोजित किया जाएगा। इनमें होने वाले निर्णयों की चर्चा नेशनल कान्फ्रेंस में की जाएगी। बैठक में उत्तर प्रदेश समेत कुल नौ राज्यों के लोक सेवा आयोगों के अध्यक्ष उपस्थित रहे। इनके साथ ही यूपीएससी के उप सचिव किशन लाल भी उपस्थित रहे।

राखी सावंत को कोर्ट में घसीटा

अक्सर विवाद में रहने वाली राखी सावंत एक बार फिर सुर्खियों में हैं। राखी सावंत का टीवी शो 'राखी का इंसाफ' कानूनी पचड़े में फंसता नजर आ रहा है। मुंबई के एक वकील को इस शो में राखी सावंत की अदाएं और उनका तौर तरीका नागवार गुजरा है। वकील सुशन कुंजुरमन ने बांबे हाई कोर्ट में इस बाबत एक जनहित याचिका दायर की है। सुशन का कहना है कि इस शो में राखी सावंत के तौर तरीके बेहद आपत्तिजनक हैं और इसमें न्यायपालिका का मखौल उड़ाया गया है।

वकील के मुताबिक इस शो में राखी सावंत जिस तरह की आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल करती हैं, वह कानून, न्याय, नियमों, जजों, पुलिस मशीनरी, वादी और उनके परिवार वालों, अदालत और महिलाओं के कल्याण के लिए बने संगठनों, सबके मान-सम्मान को ठेस पहुंचाती है।

सुशन ने शो पर तुरंत प्रतिबंध लगाए जाने की मांग की है। इस मामले की सुनवाई कुछ दिनों में शुरू होगी। इस कार्यक्रम के निर्माता को केस की कॉपी भेज दी गई है। हालांकि, निर्माता का कहना है कि उसे कोर्ट की ओर से भेजा गया कोई नोटिस नहीं मिला है।


कैसे करती हैं राखी 'इंसाफ'

एनडीटीवी इमेजिन पर प्रसारित होने वाले इस शो में राखी सावंत आम लोगों को बुलाकर उनकी समस्याएं सुनती हैं और फैसले सुनाती हैं। आम तौर पर इस शो में शामिल होने वाले लोग विवाहेत्तर संबंध, शराबी पति, सास-ससुर द्वारा प्रताड़ना और पत्नी को पीटने जैसी घरेलू लेकिन जटिल समस्याएं लेकर आते हैं। इस शो की एंकर राखी ने शो शुरू होने से पहले दावा किया था कि उनके पास ऐसी परेशानियों का हल है। राखी के मुताबिक उनका शो लोगों को कानूनी इंसाफ नहीं दिलाएगा। उनके मुताबिक यह शो उन लोगों के लिए है जो कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाए बिना अपनी घरेलू परेशानियों से निजात पाना चाहते हैं।

राखी के मुताबिक वे अपनी अनूठी स्टाइल, ईमानदारी, बिंदास रवैये और बहिर्मुखी स्वभाव के चलते लोगों की दिक्कतें दूर करेंगी। उनका यह भी कहना है कि वह अपने दिल से निकले उपायों से लोगों की मुश्किलें कम करती हैं। उनका यह भी कहना है कि वह पुलिस नहीं हैं। न ही उनके पास पढ़ाई-लिखाई की कोई डिग्री है। लेकिन राखी का कहना है कि उनके पास जीवन प्रबंधन की डिग्री है।

तलाक के लिए अदालत पहुंचीं आशा भोंसले की बहू

दिग्गज गायिका आशा भोंसले की बहू साजिदा उर्फ रमा भोसले ने क्रूरता के आधार पर तलाक के लिए परिवार अदालत का दरवाजा खटखटाया है। इस अदालत ने आशा के बेटे और संगीत निर्देशक हेमंत भोसले को अंतरिम गुजारा भत्ता के रूप में अपनी पत्नी साजिदा को 25 हजार रुपए प्रति माह देने का आदेश दिया।

बांद्रा में परिवार अदालत ने हाल में साजिदा की तलाक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। साजिदा ने आरोप लगाया था कि उसके साथ 1985 में शादी के बाद से बुरा बर्ताव हो रहा है।

पिछले वर्ष एयर इंडिया की विमान परिचायिका के पद से सेवानिवृत्त हुई साजिदा ने अपनी याचिका में प्रति माह पांच लाख रुपए के गुजारे भत्ते की मांग करते हुए कहा कि हेमंत ने मेरा अपमान किया और अंतत: वर्ष 2003 में एक ब्रिटिश महिला के लिए मुझे छोड़कर चला गया।

उन्होंने हालांकि अपनी सास आशा भोसले के खिलाफ कोई आरोप नहीं लगाए हैं। साजिदा ने अपने पति पर संपत्ति बेचने संबंधी कई आरोप लगाए हैं।

उधर 61 वर्षीय हेमंत का कहना है कि साजिदा गुजारा भत्ता लेने की हकदार नहीं हैं क्योंकि वह पैसे कमा रही हैं और उनकी अच्छी खासी आमदनी है।

उन्होंने कहा कि उनके पास मुंबई में कोई संपत्ति नहीं है और पंचगनी बंगला उनकी मां आशा का है। हेमंत ने कहा कि उनके पास स्काटलैंड में संपत्ति है जिसका मालिकाना हक संयुक्त रूप से उनके और एक ब्रिटिश महिला के बीच है।

Wednesday, October 13, 2010

एफआईआर दर्ज में देरी साक्ष्य खारिज का आधार नही -उच्चतम न्यायालय

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि प्राथमिकी दर्ज कराने में देरी और गवाहों के बयानों में असंगति अभियोजन पक्ष के साक्ष्य को खारिज करने का आधार नहीं हो सकता.

न्यायालय ने कहा कि ऐसी अनियमितता विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में संभव है क्योंकि गांव और थाने के बीच दूरी होती है और समय के साथ व्यक्ति की यादयादश्त भी कमजोर होने लगती है.


राम नरेश ने दुश्मनी के चलते 11 अगस्त 1978 को पीडित शिव विलास को गोली मार कर घायल कर दिया था. सत्र अदालत ने राम विलास और लालू के बयानों के आधार पर आरोपी को पांच साल की सजा सुनायी. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सजा को बरकरार रखा.


न्यायमूर्ति एच एस बेदी और न्यायमूर्ति सी के प्रसाद की पीठ ने एक आदेश में कहा कि गवाहों राम विलास और लालू के साक्ष्य को खारिज करने का कोई आधार नहीं है.


पीठ ने कहा कि यह ध्यान में रखना चाहिए कि घटना 1978 की है और बयान 1986 में दर्ज किए गए. इतने समय में बयानों में कुछ अनियमितता सामान्य बात है क्योंकि समय के साथ यादयादश्त भी धुंधली होने लगती है.

एक साल पुराने मुकदमे एरियर नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमों के अंबार से जूझ रही न्यायपालिका को अक्षमता के आरोपों से बचाने का नायाब तरीका निकाला है। भारत के मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाड़िया ने कहा है कि 'एरियर' और 'पेंडेंसी' में अंतर है। एक साल पुराने मुकदमों को बकाया या एरियर नहीं कहा जा सकता, उन्हें विचाराधीन या पेंडिंग केस माना जाएगा। 'एरियर' का वास्तविक आकलन करते समय इस अंतर पर ध्यान दिया जाना चाहिए। ये बातें मुख्य न्यायाधीश ने कोर्ट न्यूज के ताजा अंक में कही हैं। इस अंक में सुप्रीम कोर्ट में लंबित कुल मुकदमों की संख्या तथा एक साल पुराने मुकदमों की संख्या अलग-अलग दी गई है ताकि उसे 'एरियर' न माना जाए।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा है कि बकाया मुकदमों के बढ़ती संख्या [एरियर] के कारण कई वर्गो द्वारा न्यायपालिका पर अक्षमता के आरोप लगाए जा रहे हैं। आज तक किसी ने यह नहीं सोचा कि एरियर का वास्तविक मतलब क्या है? क्या पेंडेंसी को एरियर के दायरे में शामिल किया जा सकता है? सुबह दाखिल हुए मुकदमे को शाम को 'एरियर' की श्रेणी में नहीं शामिल किया जा सकता। एक साल तक के पुराने मुकदमे को भी 'एरियर' नहीं कहा जा सकता। उसे विचाराधीन या 'पेन्डिंग केस' माना जाएगा। मुकदमों के 'एरियर' का वास्तविक आकलन करते समय इस अंतर को समझा जाना चाहिए। कोर्ट न्यूज में दिए गए आंकड़ों के अनुसार, 31 अगस्त तक सुप्रीम कोर्ट में 55,717 मुकदमे लंबित थे। इसमें से 19,680 मामले एक साल पुराने हैं। अत: सिर्फ 36,037 मुकदमे ही बकाया यानी 'एरियर' माने जाएंगे।

रिपोर्ट बताती है कि सुप्रीम कोर्ट में बदलाव आ रहा है। यहां का तंत्र पारदर्शी और त्वरित बनाने के लिए कदम उठाए गए हैं। उनमें तत्काल मामलों की सुनवाई, कंप्यूटर के जरिए सूची तय होना, सामान्य प्रक्रिया के अलावा नोटिस भेजने के लिए ई-मेल का उपयोग होना तथा प्रादेशिक भाषाओं का अच्छा अंग्रेजी अनुवाद कराने के लिए अनुवाद प्रकोष्ठ बनाना शामिल हैं। सूचनाएं और आंकड़े एक साथ एक जगह रखने के लिए नया सूचना व सांख्यिकी विभाग भी बनाया गया है।

बेअंत सिंह के हत्यारे को उम्र कैद की सजा

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मुख्य आरोपी जगतार सिंह हवारा की फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया है। न्यायालय ने हवारा तथा बलवंत सिंह की फांसी की सजा के खिलाफ दायर अपील पर मंगलवार को अपना फैसला सुनाया।

न्यायाधीश मेहताब सिंह गिल और अरविंद कुमार की ख्डांपीठ ने बेअंत सिंह हत्याकांड के दोषी बलवंत सिंह को केन्द्रीय जांच ब्यूरो की विशेष अदालत के मृत्युदंड के फैसले को बरकरार रखा। इसी मामले में शमशेर सिंह, गुरमीत सिंह और लखविंदर सिंह उम्रकैद की सजा काट रहे हैं।

हवारा तथा अन्य दोषियों की उच्च न्यायालय में दायर अपीलों की नियमित सुनवाई के बाद गत एक अक्टूबर को न्यायाधीश गिल तथा अरविंद कुमार की खंडपीठ ने अपना फैसला मंगलवार तक के लिए सुरक्षित रखा था। आतंकी संगठन बब्बर खालसा का कुख्यात सदस्य जगतार सिंह हवारा इस समय यहां की बुडैल जेल में बंद है तथा बलवंत सिंह तथा अन्य दोषी पटियाला की जेल में बंद हैं।

ज्ञातव्य है कि गत 31 अगस्त 1995 को चंडीगढ़ सिविल सचिवालय के बाहर बम विस्फोट में पूर्व मुख्यमंत्री सहित सत्रह लोगों की मौत हो गई थी। इस मामले में निचली अदालत ने वर्ष 2007 में जगतार सिंह हवारा और बलवंत सिंह को फांसी की सजा तथा शमशेर सिंह, गुरमीत सिंह और लखविंदर सिंह को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

माकपा विधायक के खिलाफ चलेगा अवमानना का मामला

मुख्य न्यायाधीश जे. चेलामेश्वर, न्यायाधीश ए.के. बशीर और न्यायाधीश के.एम. जोसेफ की पीठ ने एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया।

जयराजन (50) ने जुलाई में एक सभा के दौरान उच्च न्यायालय के सड़क पर सभा नहीं करने के आदेश पर न्यायाधीशों की आलोचना की थी।

इस संबंध में न्यायालय ने मंगलवार को पी. रहीम की ओर से दायर जनहित याचिका की सुनवाई की। रहीम ने अपनी याचिका में माकपा नेता द्वारा न्यायाधीशों की आलोचना करने पर उनके खिलाफ अवमानना का मामला चलाने की मांग की थी।

न्यायालय ने कहा कि जयराजन के खिलाफ अवमानना का मामला चलाया जाएगा।

Monday, October 11, 2010

बहुओं को जलाने वालों को फांसी की सजा मिले

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जब तक अपनी पत्नियों को जलाने वालों को फांसी पर नहीं लटकाया जाएगा, तब तक यह क्रूर अपराध नहीं रूकेगा। सर्वोच्चा न्यायालय के न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू और न्यायमूर्ति टी.एस.ठाकुर की पीठ ने कहा, ""बहुओं को जलाया जाना बर्बर और जंगली जानवरों जैसा कृत्य है। जब इस तरह के अपराध को अंजाम देने वालों को फांसी के फंदे पर लटकाया जाएगा, तब लोग महसूस करेंगे कि बहुओं को जलाया जाना अपराध है।"" अदालत ने मिलाप कुमार नामक दोषी ठहराए गए व्यक्ति की याचिका को सोमवार को खारिज करते हुए ये बातें कही थी। मिलाप कुमार को पंजाब के फिरोजपुर जिले में निचली अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
न्यायमूर्ति काटजू ने कहा कि ""हमारे कई सारे न्यायाधीश भाई अहिंसावादी हैं, लेकिन मैं ऎसा नहीं हूं।"" मैं मानता हूं कि इस तरह के जघन्य अपराधों को अंजाम देने वालों को क़डी से क़डी सजा दी जानी चाहिए। दरअसल, मिलाप कुमार ने अपनी पत्नी राज बाला को इसलिए जला कर मार डाला था, क्योंकि उसने उसके साथ खेत में काम करने से इंकार कर दिया था। यह घटना 10 मई, 1995 में फजिल्का शहर में घटी थी। अभियोजन ने कहा कि मिलाप कुमार ने मिट्टी का तेल छि़डक कर अपनी पत्नी को आग के हवाले कर दिया और घर का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया। परिणामस्वरूप दो बच्चाों की मां राज बाला 80 प्रतिशत जल गई। उसके बाद 14 मई, 1995 को उसकी मौत हो गई। निचली अदालत ने नौ नवंबर, 1999 को मिलाप कुमार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। पंजाब एवं हरियाणा उच्चा न्यायालय ने उसकी याचिका छह जनवरी, 2009 को खारिज कर दी थी।

क्यों न रिश्वत को मान्यता दे दें राज्य सरकारें: सुप्रीम कोर्ट

भारत में सरकारी दफ्तरों में फाइलें कैसे आगे बढ़ती है इससे देशवासी भलीभांति परिचित हैं। अब देश के सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि भ्रष्टाचार सरकारी तंत्र का हिस्सा बन चुका है। एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने देश में बढ़ रहे भ्रष्टाचार पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि सरकारी विभागों खासतौर पर आयकर, बिक्रीकर और आबकारी विभागों में कोई भी काम बिना पैसा दिए नहीं होता

न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू और न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर की पीठ ने कहा कि भारत के लिए सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि अब भ्रष्टाचार पर कोई नियंत्रण नहीं रह गया है। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए बनाई गई इकाईयां ही भ्रष्टाचार में लिप्त पाई जाती हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने खासतौर पर आबकारी, आयकर और बिक्रीकर विभागों में व्याप्त रिश्वतखोरी पर चिंता जाहिर की। देश के शीर्ष न्यायालय ने यह बात पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा आयकर निरिक्षक मोहनलाल शर्मा को बरी किए जाने के फैसले के विरोध में दायर की गई सीबीआई की याचिका पर सुनवाई करते हुए कही।


सीबीआई की ओर से अतिरक्त महाधिवक्ता पीपी मल्होत्रा ने कहा कि निचली अदालत द्वारा शर्मा को एक व्यक्ति से 10 हजार रुपए रिश्तव लेने का दोषी पाए जाने पर एक साल की सजा सुनाने के बाद भी हाईकोर्ट ने बरी कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने व्यंग्य करते हुए कहा कि बेहतर है राज्य सरकारे रिश्वतखोरी को वैध कर दे ताकि लोग एक निश्चित राशि देकर सरकारी विभागों में अपना काम करा ले। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बेहतर होगा रिश्वतखोरी की एक दर तय कर दी जाए जिससे लोगों को भी रिश्वत देने में आसानी होगी। इससे हर आदमी को यह भी पता लग जाए की अमुख काम के लिए उसे कितनी रिश्वत देनी है।

अदालत में मौजूद आरोपी शर्मा ने पीठ के सामने कहा कि वो काफी गरीब है और उसे गलत तरीके से फंसाया जा रहा है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आयकर, आबकारी और बिक्रीकर विभागों के में भ्रष्टाचार व्याप्त है और अधिकारी काफी अमीर है।

पीठ ने वरिष्ठ वकील केके वेणुगोपाल से भी रिश्वत को वैध करने संबंधी अपनी बात पर राय मांगी। इस वेणुगोपाल ने कहा कि देश के लिए बेहतर होगा कि स्कूलों में बच्चों को अच्छी नैतिक शिक्षा दी जाए।

नहीं बदली जा सकती सेवा शर्ते-जबलपुर हाईकोर्ट

एक महत्वपूर्ण फैसले में हाईकोर्ट ने अभिनिर्धारित किया है कि एक बार नौकरी ज्वाइन करने के बाद किसी भी कर्मचारी की सेवाएं बदली नहीं जा सकतीं, खासकर एक साल बाद। जस्टिस राजेन्द्र मेनन की एकलपीठ ने लोक स्वास्थ्य विभाग के हैण्डपंप मैकेनिकों की याचिकाएं सुनवाई बाद मंजूर करते हुए यह फैसला दिया

यह मामले छिंदवाड़ा जिले के लोक स्वास्थ्य एवं यांत्रिकी विभाग में हैण्डपंप मैकेनिक के पदों पर अगस्त 2007 से कार्यरत कर्मचारियों की ओर से दायर किये गये थे। आवेदकों का कहना था कि इन पदों के लिए जारी किये गये विज्ञापन में कई शर्ते दशाई गई थीं, जिनमें से एक यह थी कि यदि कर्मचारियों की नियुक्तियां वर्क चार्ज इस्टेब्लिशमेंट में हुईं तो चयनित उम्मीदवारों को दो साल के लिए परिवीक्षा में रखा जाएगा।

इसके बाद उन्हें नियमित करने पर विचार किया जाएगा। आवेदकों का कहना है कि अप्रैल 2008 में अचानक उनकी सेवा शर्तो में बदलाव करके कहा गया कि उनकी सेवाएं नियुक्ति के तीन साल के बाद नियमित की जाएंगी। इसे अवैधानिक बताते हुए यह याचिकाएं दायर की गईं।

मामले पर हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता राकेश राजेश सोनी और केएन पेठिया ने अपना पक्ष रखा। सुनवाई के बाद अदालत ने राज्य सरकार के इस कदम को अवैध ठहराते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं को विज्ञापन में दर्शाई गईं शर्तो के मुताबिक ही सारे लाभ दिये जाएं।

Friday, October 8, 2010

न्यायालय आदेश की अवमानना के मामले में दारोगा पर सौ रुपये का जुर्माना

न्यायालय आदेश की अवमानना के मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट सूर्यप्रकाश शर्मा ने एक उप निरीक्षक के वेतन से सौ रुपया काटने का आदेश पारित किया है।

थाना फतेहपुर से संबंधित फौजदारी के मामले के गवाह दारोगा प्रेमलाल वर्मा सम्मन व कारण बताओ नोटिस के तामील के बाद भी न्यायालय पर गवाही देने नहीं आये। न्यायालय ने इसे मुकदमे के निस्तारण में विलंब का दोषी माना। आज नियत तिथि पर साक्ष्य के लिए न्यायालय पर उपस्थित न होने पर न्यायालय ने पुलिस अधीक्षक व ट्रेजरी अफसर को आदेश दिया कि वह उसके वेतन से एक सौ रुपया काटकर राजकोष में जमा करे तथा आगामी नियत तिथि 20 अक्टूबर को न्यायालय पर उपस्थित करायें।

ललित मोदी बन गए मोस्ट वांटेड ‘अपराधी’

आईपीएल के पूर्व आयुक्त ललित मोदी की मुसीबतें और बढ़ गई हैं। भारतीय प्रवर्तन निदेशालय ने मोदी के खिलाफ ब्लू अलर्ट जारी किया है। इसके तहत उन्हें दुनिया के किसी भी पोर्ट या एयरपोर्ट पर पूछताछ के लिए गिरफ्तार किया जा सकता है। ये अलर्ट एक अक्टूबर से मान्य होगा। ब्लू अलर्ट के बाद ललित मोदी भारत छोड़कर किसी और देश नहीं जा पाएंगे।
अगर वो किसी एयरपोर्ट या सार्वजनिक स्थान पर मिलते हैं, तो वहां के अधिकारी उन्हें गिरफ्तार कर भारतीय प्रवर्तन निदेशालय के सुपुर्द करेंगे। गौरतलब है कि मोदी पर आईपीएल के सौदों में सैंकड़ों करोड़ रुपए के घपले का आरोप है।
अब इस अलर्ट के जारी होने के बाद मोदी किसी मोस्ट वांटेड अपराधी की तरह हो गए हैं। प्रवर्तन निदेशालय द्वारा अनेकों बार पेश होने के आदेश देने के बाद भी ललित मोदी सुनवाई के लिए नहीं पहुंचे थे। इसी से तंग आकर निदेशालय ने ये अलर्ट जारी किया है।

उल्लेखनीय है कि आईपीएल में वित्तीय गड़बड़ियों के उजागर होने के बाद मोदी को अध्यक्ष के पद से निलंबित कर दिया गया था। इसके बाद से सभी आईपीएल फ्रेंचाइजियों के विरूद्ध आयकर विभाग ने जांच शुरू की थी।

Thursday, October 7, 2010

बिना विवाह का साथी भी गुजारे भत्ते की हकदार-सर्वोच्च न्यायालय

न्यायाधिश मरकडेय काटजू की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह व्यवस्था दी है कि  शादी नहीं भी की है तो भी अगर आप संबंध तोड़ लेते हैं तो आप गुजारा भत्ता देने की जिम्मेदारी से नहीं बच सकते.

डी वेलुसामी की अपील पर बेंच ने यह भी कहा है कि 1960 के दशक से बिना विवाह के साथ रहने के मामले बढ़ते जा रहे हैं.  हालांकि भारतीय कानून में अभी इसकी इजाजत नहीं है, पर अमेरिका में न्यायालय ऐसे मामलों में ‘तलाक भत्ता सिद्धांत’ के आधार पर राहत देती है.

डी वेलुसामी ने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि पत्चाइम्मल कानूनी तौर पर विवाह बंधन में नहीं बंधी है और इसलिए वह किसी भुगतान की हकदार नहीं है. मगर तमिलनाडु के एक न्यायालय ने डी पत्चाइम्मल को पांच सौ रुपए का गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था.  इसके बाद वेलुसामी ने सर्वोच्च न्यायालय में गए.

संस्कृत भाषा में नहीं दाखिल हो सकती याचिका : हाईकोर्ट

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि संस्कृत न्यायालय की भाषा नहीं है। संस्कृत में न तो याचिका ड्राफ्ट की जा सकती है और न ही इस भाषा में बहस की अनुमति ही दी जा सकती है। संस्कृत भाषा में कोई आदेश या डिक्री को भी नहीं पारित किया जा सकता है। इसी के साथ न्यायालय ने संस्कृत भाषा में दाखिल याचिका को बिना गुणदोष पर ध्यान दिये खारिज कर दिया।

यह आदेश न्यायमूर्ति सभाजीत यादव ने वीरेन्द्र शाह सोध की याचिका पर दिया है। यह याचिका आज से 24 साल पहले हिन्दी प्रति के साथ संस्कृत भाषा में भी दाखिल की गयी थी। 2 जुलाई 86 को हाईकोर्ट ने याचिका सुनवाई के लिए मंजूर कर ली थी और विपक्षियों को नोटिस जारी किया था। यह आदेश न्यायमूर्ति वीएल यादव ने पारित किया था। याची का कहना था कि न्यायमूर्ति वीएल यादव ने संस्कृत में निर्णय दिया था इसलिए उसने संस्कृत में याचिका दाखिल की है।

न्यायालय ने कहा है कि न्यायिक कार्यवाही में अंग्रेजी के अलावा हिन्दी भाषा को शामिल करने की व्यवस्था है। हाईकोर्ट किसी वादकारी व अधिवक्ता को हिन्दी में बहस करने से नहीं रोक सकता। कोई ऐसा कानून नहीं है जो संस्कृत भाषा में याचिका दाखिल करने की अनुमति देता हो। हिन्दी भाषा में हलफनामे या अर्जियां या याचिका दाखिल की जा सकती हैं किंतु संस्कृत में ऐसा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

Wednesday, October 6, 2010

सुप्रीम कोर्ट का नटवर को झटका

उच्चतम न्यायालय ने इराक से जुड़े तेल के बदले अनाज घोटाले की जाँच में देर करने के प्रयासों को लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री नटवरसिंह और उनके पुत्र की खिंचाई की तथा प्रवर्तन निदेशालय को 2006 से रुकी जाँच प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की मंगलवार को अनुमति दे दी।

न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी और न्यायमूर्ति एसएस निज्जर की पीठ ने सिंह और उनके पुत्र की अपील को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने कुछ खास दस्तावेजों की आपूर्ति की माँग की थी। इसके साथ ही अदालत ने अधिकारियों को मामले की जाँच में तेजी लाने का निर्देश दिया।

पीठ ने कहा कि सिंह और उनके बेटे जगतसिंह की ओर से दायर ये याचिकाएँ मामले में देरी करने का तरीका हैं। याचिका प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के सामने मामले की सुनवाई में बाधा डालने का प्रयास हैं। पीठ ने कहा कि ईडी के सामने सुनवाई को तेजी से खत्म किया जाए।

नटवर सिंह ने दिल्ली उच्च न्यायालय में अपनी याचिका खारिज होने के फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी। याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में वोल्कर और आरएस पाठक समितियों के दस्तावेजों की माँग की थी।

मनगंढ़त आरोप पर स्थानान्तरित नहीं हो सकते मुकदमे-इलाहाबाद उच्च न्यायालय

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि किसी न्यायिक अधिकारी के समक्ष लंबित मुकदमे को केवल आरोप लगाने मात्र से हटाया नहीं जा सकता। किसी भी व्यक्ति को मनगढ़ंत आरोपों के आधार पर न्यायिक अधिकारी का शिकार करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। न्यायालय न कहा है कि एक न्यायिक अधिकारी से मुकदमे की सुनवाई तभी हटायी जा सकती है जबकि उसके विरुद्ध दुर्भावनापूर्ण कार्य करने के विश्वसनीय साक्ष्य मौजूद हों।

इसी के साथ न्यायालय ने जिला न्यायाधीश द्वारा सिविल जज वरिष्ठ श्रेणी चतुर्थ वाराणसी से याची के मुकदमे को हटाने से इन्कार करने के आदेश पर हस्तक्षेप से इन्कार कर दिया है। इस आदेश के खिलाफ दाखिल याचिका 15 हजार रुपये हर्जाने के साथ खारिज कर दी है।

यह आदेश न्यायमूर्ति राकेश तिवारी ने दीनानाथ उपाध्याय व अन्य की याचिका पर दिया है। याचिका के अनुसार याची ने 2 अप्रैल 99 को सिविल जज वाराणसी के समक्ष लंबित मुकदमे को अन्य कोर्ट में स्थानान्तरित करने की मांग में जिला न्यायाधीश को अर्जी दी। याची का कहना था कि सिविल जज मुकदमे को निर्णीत करने में ज्यादा रुचि ले रहे हैं और शीघ्र ही तिथि नियत कर रहे हैं। ऐसे में मुकदमे का स्थानान्तरण अन्य न्यायाधीश को किया जाना न्यायहित में है। किन्तु जिला न्यायाधीश ने निराधार व मनगढ़ंत आरोपों पर मुकदमे को स्थानान्तरित करने से इन्कार कर दिया जिसे याचिका में चुनौती दी गयी थी।

सजा सुनते ही बिहार के पूर्व मंत्री संजय सिंह की मौत

चर्चित टाटी नरसंहार में कोर्ट द्वारा दोषी करार दिए जाने के बाद पूर्व मंत्नी संजय सिंह की कोर्ट परिसर में ही दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई।

गौरतलब है कि बिहार में शेखपुरा जिले की बहुचर्चितत टांटी नरसंहार कांड के मामले में आज विशेष अदालत ने राज्य के पूर्व मंत्नी संजय सिंह समेत आठ लोगों को दोषी ठहराया था। मुंगेर कोर्ट में दोषी करार दिए जाने के बाद ही पूर्व मंत्री को दिल का दौरा पड़ गया और उनकी मौत हो गई।

विशेष अदालत के न्यायाधीश सुरेश चंद्र श्रीवास्तव ने करीब नौ वर्ष पुराने मामले में सुनवाई के बाद बिहार के पूर्व ग्रामीण विकास राज्य मंत्नी संजय कुमार समेत आठ लोगों को भारतीय दंड विधान की धारा 302 के तहत दोषी करार दिया।

इस मामले में अदालत ने गांव के तत्कालीन मुखिया बांके सिंह और एक अन्य को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया।  सजा की बिंदुओं पर सुनवाई के  लिए अदालत ने सात अक्टूबर की तिथि तय की है।

मामले के अनुसार दोषियों ने 26 दिसम्बर 2001 को राष्ट्रीय जनता  दल के तत्कालीन जिलाध्यक्ष काशी नाथ यादव समेत आठ लोगों की
जिले के टांटी नदी पुल के निकट गोली मारकर हत्या कर दी थी।

इस मामले में कांग्रेस के तत्कालीन सांसद राजो सिंह और उनके  पुत्न संजय कुमार समेत 11 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कराया गया था। वर्ष 2005 में राजो सिंह की अज्ञात अपराधियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।

राजस्थान में 30 न्यायिक अधिकारियों की ग्राम न्यायालयों में नियुक्ति

 राजस्थान हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने मंगलवार को एक आदेश जारी कर 30 न्यायिक अधिकारियों को ग्राम न्यायालयों में न्यायाधिकारी नियुक्त किया है।

रजिस्ट्रार कार्यालय से जारी आदेशानुसार न्यायिक मजिस्ट्रेट धूंकलराम कसवां को ग्राम न्यायालय पीसांगन (अजमेर), शक्तिसिंह को तिजारा (अलवर), जयपाल जानी को बाड़मेर, दीपक दुबे को अटरू (बांरा), राजेन्द्रसिंह जाटव को गड्डी (बांसवाड़ा), नरेन्द्रसिंह को रूपवास (भरतपुर), राजेन्द्र चौधरी को मांडल (भीलवाड़ा), सुनील कुमार बिश्रोई को बीकानेर, रिषीकुमार को कोलायत (बीकानेर), रामचन्द्र मीना को तालेरा (बूंदी), हेमराज को चित्तौडग़ढ़, अशीन कुलश्रेष्ठ को राजगढ़ (चूरू), जगतसिंह पंवार को दौसा, देवेन्द्रसिंह भाटी को आसपुर (डूंगरपुर), संतोषकुमार को श्रीगंगानगर, महेन्द्र प्रताप बेनीवाल को अनूपगढ़ (श्रीगंगानगर), शिवकुमार को हनुमानगढ़, पंकज नरूका को बस्सी (जयपुर), योगेशचन्द्र यादव को सांभर (जयपुर), राजेश शर्मा को पोकरण (जैसलमेर), दलपतसिंह राजपुरोहित को मण्डोर (जोधपुर), प्रदीप कुमार (द्वितीय) को ओसियां (जोधपुर), महावीर महावर को हिंडौन (करौली), किशोर कुमार तालेपा को खेराबाद (कोटा), वीरेन्द्रप्रतापसिंह को जायल (मेड़ता), शिवप्रसाद तम्बोली को रेलमगरा (राजसमंद), इसरत खोखर को पीपराली (सीकर), तनसिंह चारण को पिंडवाड़ा (सिरोही), मुकेश आर्य को देवली (टोंक) और न्यायिक मजिस्ट्रेट डॉ.सूर्यप्रकाश पारीक को गिरवा (उदयपुर) ग्राम न्यायालय का न्यायाधिकारी नियुक्त किया गया है।
इन मामलों की होगी सुनवाई
 ग्राम पंचायत में फौजदारी, सिविल व अन्य विवादों से जुड़े मामलों की सुनवाई होगी। फौजदारी कानून के तहत ऐसे मुकदमें सुने जाएंगे जिनमें दो साल या इससे कम कैद की सजा का प्रावधान है। चोरी, चोरी का माल खरीदने, चोरी का माल नष्ट करने के मामलों की भी सुनवाई होगी। इसमें शर्त है कि संपत्ति बीस हजार रुपए से ज्यादा की नहीं हो। आईपीसी की धारा 454, 456, 504 और 506 व आपराधिक मामले भी सुने जाएंगे।

मजदूरी भुगतान अधिनियम, न्यूनतम मजूदरी अधिनियम, सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 125 सीआरपीसी के तहत परिवार, बच्चों व माता पिता के भरण पोषण से जुड़े मामले, बंधुआ मजदूर अधिनियम, समान मजदूरी अधिनियम, घरेलू हिंसा कानून के मामले, संपत्ति की खरीद फरोख्त, आम रास्ते से उपयोग का मामला, सिंचाई पानी से जुड़ा विवाद, कृषि भूमि व फार्म हाउस के मामले, वाटर चैनल, कुंए व टयूबवैल से पानी लेने का अधिकार, व्यापार व उधारी से जुड़े धन वाद, पार्टनरशिप, जुताई साझेदारी विवाद, वन संपदा के उपयोग से जुड़े विवाद सुने जाएंगे।

Thursday, September 30, 2010

रामलला नहीं हटेंगें, विवादित भूमि को तीन हिस्से में बांटा जाएगा- उत्तरप्रदेश हाई कोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बाबरी मस्जिद रामजन्मभूमि पर फैसला देते हुए सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा खारिज कर दिया है। राम चबूतरा और सीता रसोई दोनों निर्मोही अखाड़ा को दे दिया गया। कोर्ट ने यह भी कहा कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी।
तीनों जजों ने अपने फैसले में कहा कि विवादित भूमि को तीन हिस्से में बांटा जाएगा। उसका एक हिस्सा (जहां राम लला की प्रतिमा विराजमान है हिंदुओं को मंदिर के लिए) दिया जाएगा। दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को दिया जाएगा और तीसरा हिस्सा मस्जिद के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाएगा।
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच की जस्टिस डी. वी. शर्मा, जस्टिस एस. यू. खान और जस्टिस सुधीर अग्रवाल की बेंच ने इस मामले में अपना फैसला कोर्ट नंबर 21 में दोपहर 3.30 बजे से सुनाना शुरू कर दिया। मीडियाकर्मियों को अदालत जाने की अनुमति नहीं दी गई थी। बाद में डीसी ऑफिस में बनाए गए मीडिया सेंटर में मीडियाकर्मियों को तीनों जजों के फैसलों की सिनॉप्सिस दी गई। यह फैसला बेंच ने बहुमत से दिया। दो जज - जस्टिस एस.यू. खान और जस्टिस सुधीर अग्रवाल - ने कहा कि जमीन को तीन हिस्सों में बांटा जाए। जस्टिस डी.वी. शर्मा की राय थी कि विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटने की जरूरत नहीं है। वह पूरी जमीन हिंदुओं को देने के पक्ष में थे।
निर्णय सार लिंक
गौरतलब है कि हाईकोर्ट को 24 सितंबर को ही फैसला सुना देना था, लेकिन पूर्व नौकरशाह रमेश चंद्र त्रिपाठी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 23 सितंबर को निर्णय एक हफ्ते के लिए टाल दिया था। याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने त्रिपाठी की अर्जी खारिज कर दी। उसके बाद हाई कोर्ट के फैसले सुनाने का रास्ता साफ हुआ।. अर्से पुराने मुद्दे का दोनों समुदायों के बीच बातचीत से कोई हल नहीं निकल सका। पूर्व प्रधानमंत्रियों- पी. वी. नरसिम्हा राव, विश्वनाथ प्रताप सिंह और चंद्रशेखर ने भी इस मुद्दे के बातचीत से निपटारे की कोशिश की थी, लेकिन कामयाबी नहीं मिली।
हालांकि, उस जमीन पर विवाद तो मध्ययुग से चला आ रहा है लेकिन इसने कानूनी शक्ल वर्ष 1950 में ली। देश में गणतंत्र लागू होने से एक हफ्ते पहले 18 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद ने विवादित स्थल पर रखी गईं मूर्तियों की पूजा का अधिकार देने की मांग करते हुए मुकदमा दायर किया था।
तब से चली आ रही इस कानूनी लड़ाई में बाद में हिन्दुओं और मुसलमानों के प्रतिनिधि के तौर पर अनेक पक्षकार शामिल हुए। अदालत ने इस मुकदमे की सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों के सैकड़ों गवाहों का बयान लिया। अदालत में पेश हुए गवाहों में से 58 हिन्दू पक्ष के, जबकि 36 मुस्लिम पक्ष के हैं और उनके बयान 13 हजार पन्नों में दर्ज हुए।
हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए वर्ष 2003 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ( एएसआई ) से विवादित स्थल के आसपास खुदाई करने के लिए कहा था। इसका मकसद यह पता लगाना था कि मस्जिद बनाए जाने से पहले उस जगह कोई मंदिर था या नहीं। हिंदुओं और मुसलमानों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में हुई खुदाई मार्च में शुरू होकर अगस्त तक चली।
इस विवाद की शुरुआत सदियों पहले सन् 1528 में मुगल शासक बाबर के उस स्थल पर एक मस्जिद बनवाने के साथ हुई थी। हिंदू समुदाय का दावा है कि वह स्थान भगवान राम का जन्मस्थल है और पूर्व में वहां मंदिर था। विवाद को सुलझाने के लिए तत्कालीन ब्रितानी सरकार ने वर्ष 1859 में दोनों समुदायों के पूजा स्थलों के बीच बाड़ लगा दी थी। इमारत के अंदर के हिस्से को मुसलमानों और बाहरी भाग को हिन्दुओं के इस्तेमाल के लिए निर्धारित किया गया था। यह व्यवस्था वर्ष 1949 में मस्जिद के अंदर भगवान राम की मूर्ति रखे जाने तक चलती रही।
उसके बाद प्रशासन ने उस परिसर को विवादित स्थल घोषित करके उसके दरवाजे पर ताला लगवा दिया था। उसके 37 साल बाद एक याचिका पर वर्ष 1986 में फैजाबाद के तत्कालीन जिला जज ने वह ताला खुलवा दिया था
समय गुजरने के साथ इस मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया। वर्ष 1990 में वरिष्ठ बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ मंदिर से अयोध्या के लिए एक रथयात्रा निकाली, मगर उन्हें तब बिहार में ही गिरफ्तार कर लिया गया था। केंद्र में उस वक्त विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार थी और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में जनता दल की सरकार थी। 31 अक्टूबर 1990 को बड़ी संख्या में राम मंदिर समर्थक आंदोलनकारी अयोध्या में आ जुटे और पहली बार इस मुद्दे को लेकर तनाव, संघर्ष और हिंसा की घटनाएं हुईं।
सिलसिला आगे बढ़ा और 6 दिसम्बर 1992 को कार सेवा करने के लिए जुटी लाखों लोगों की उन्मादी भीड़ ने वीएचपी, शिव सेना और बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में बाबरी मस्जिद को ढहा दिया। प्रतिक्रिया में प्रदेश और देश के कई भागों में हिंसा हुई, जिसमें लगभग दो हजार लोगों की जान गई। उस समय उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार थी और केंद्र में पी. वी. नरसिम्हा राव की अगुवाई वाली कांग्रेस की सरकार थी। हालांकि, इस बार अदालत का फैसला आने के समय वर्ष 1990 व 1992 की तरह कोई आंदोलन नहीं चल रहा था, बावजूद इसके सुरक्षा को लेकर सरकार की सख्त व्यवस्था के पीछे कहीं न कहीं उन मौकों पर पैदा हुई कठिन परिस्थितियों की याद से उपजी आशंका थी।
अयोध्या के विवादित स्थल पर स्वामित्व संबंधी पहला मुकदमा वर्ष 1950 में गोपाल सिंह विशारद की तरफ से दाखिल किया गया , जिसमें उन्होंने वहां रामलला की पूजा जारी रखने की अनुमति मांगी थी। दूसरा मुकदमा इसी साल 1950 में ही परमहंस रामचंद्र दास की तरफ से दाखिल किया गया , जिसे बाद में उन्होंने वापस ले लिया। तीसरा मुकदमा 1959 में निर्मोही अखाड़े की तरफ से दाखिल किया गया, जिसमें विवादित स्थल को निर्मोही अखाड़े को सौंप देने की मांग की गई थी। चौथा मुकदमा 1961 में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल बोर्ड की तरफ से दाखिल हुआ और पांचवां मुकदमा भगवान श्रीरामलला विराजमान की तरफ से वर्ष 1989 में दाखिल किया गया। वर्ष 1989 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन महाधिवक्ता की अर्जी पर चारों मुकदमे इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में स्थानांतरित कर दिए गए थे।
अयोध्या विवाद: 1528 से लेकर 2010 तक
अयोध्या में विवादित भूमि का मुद्दा शताब्दियों से एक भावनात्मक मुद्दा बना हुआ है और इसे लेकर विभिन्न हिन्दू एवं मुस्लिम संगठनों ने तमाम कानूनी वाद दायर कर रखे हैं। अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद को लेकर इतिहास एवं घटनाक्रम इस प्रकार है :-

1528: मुगल बादशाह बाबर ने उस भूमि पर एक मस्जिद बनवाई, जिसके बारे हिन्दुओं का दावा है कि वह भगवान राम की जन्मभूमि है और वहां पहले एक मंदिर था।

1853: विवादित भूमि पर सांप्रदायिक हिंसा संबंधी घटनाओं का दस्तावेजों में दर्ज पहला प्रमाण।

1859: ब्रिटिश अधिकारियों ने एक बाड़ बनाकर पूजास्थलों को अलग अलग किया। अंदरूनी हिस्सा मुस्लिमों को दिया गया और बाहरी हिस्सा हिन्दुओं को।

1885: महंत रघुवीर दास ने एक याचिका दायर कर राम चबूतरे पर छतरी बनवाने की अनुमति मांगी, लेकिन एक साल बाद फैजाबाद की जिला अदालत ने अनुरोध खारिज कर दिया।

1949: मस्जिद के भीतर भगवान राम की प्रतिमाओं का प्राकट्य। मुस्लिमों का दावा कि हिन्दुओं ने प्रतिमाएं भीतर रखवाई। मुस्लिमों का विरोध। दोनों पक्षों ने दीवानी याचिकाएं दायर की। सरकार ने परिसर को विवादित क्षेत्र घोषित किया और द्वार बंद कर दिए।

18 जनवरी 1950: मालिकाना हक के बारे में पहला वाद गोपाल सिंह विशारद ने दायर किया। उन्होंने मांग की कि जन्मभूमि में स्थापित प्रतिमाओं की पूजा का अधिकार दिया जाए। अदालत ने प्रतिमाओं को हटाने पर रोक लगाई और पूजा जारी रखने की अनुमति दी।

24 अपैल 1950: यूप राज्य ने लगाई रोक। रोक के खिलाफ अपील।

1950: रामचंद्र परमहंस ने एक अन्य वाद दायर किया, लेकिन बाद में वापस ले लिया।

1959: निर्मोही अखाड़ा भी विवाद में शामिल हो गया तथा तीसरा वाद दायर किया। उसने विवादित भूमि पर स्वामित्व का दावा करते हुए कहा कि अदालत द्वारा नियुक्त रिसीवर हटाया जाए। उसने खुद को उस स्थल का संरक्षक बताया जहां माना जाता है कि भगवान राम का जन्म हुआ था।

18 दिसंबर 1961: यूपी सुन्नी सेन्ट्रल बोर्ड आफ वक्फ भी विवाद में शामिल हुआ। उसने मस्जिद और आसपास की भूमि पर अपने स्वामित्व का दावा किया।

1986: जिला जज ने हरिशंकर दुबे की याचिका पर मस्जिद के फाटक खोलने और की अनुमति प्रदान की। मुस्लिमों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की।

1989: वीएचपी के उपाध्यक्ष देवकी नंदन अग्रवाल ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में एक ताजा याचिका दायर करते हुए मालिकाना हक और स्वामित्व भगवान राम के नाम पर घोषित करने का अनुरोध किया।

23 अक्तूबर 1989 : फैजाबाद में विचाराधीन सभी चारों वादों को इलाहाबाद हाई कोर्ट की स्पेशल बेंच में स्थानांतरित किया गया।

1989 : वीएचपी ने विवादित मस्जिद के समीप की भूमि पर राममंदिर का शिलान्यास किया।

1990: वीएचपी के कार्यकर्ताओं ने मस्जिद को आंशिक तौर पर क्षतिग्रस्त किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने बातचीत के जरिए विवाद का हल निकालने का प्रयास किया।

6 दिसंबर 1992 : विवादित मस्जिद को वीएचपी, शिवसेना और बीजेपी के समर्थन में हिन्दू स्वयंसेवकों ने ढहाया। इसके चलते देश भर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, जिनमें 2000 से अधिक लोगों की जान गई।

16 दिसंबर 1992: विवादित ढांचे को ढहाये जाने की जांच के लिए जस्टिस लिब्रहान आयोग का गठन। 6 माह के भीतर जांच खत्म करने को कहा गया।

जुलाई 1996 : इलाहाबाद हाई कोर्च ने सभी दीवानी वादों पर एकसाथ सुनवाई करवाने को कहा।

2002: हाई कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से खुदाई कर यह पता लगाने को कहा कि क्या विवादित भूमि के नीचे कोई मंदिर था।

अपैल 2002: हाई कोर्च के 3 न्यायाधीशों ने सुनवाई शुरू की।

जनवरी 2003 : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अदालत के आदेश पर खुदाई शुरू की ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या वहां भगवान राम का मंदिर था।

अगस्त 2003 : सर्वेक्षण में कहा गया कि मस्जिद के नीचे मंदिर होने के प्रमाण। मुस्लिमों ने निष्कर्षों से मतभेद जताया।

जुलाई 2005: संदिग्ध इस्लामी आतंकवादी ने विवादित स्थल पर हमला किया। सुरक्षा बलों ने 5 आतंकियों को मारा।

जून 2009 : लिब्रहान आयोग ने अपनी जांच शुरू करने के 17 साल बाद अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस बीच आयोग का कार्यकाल 48 बार बढ़ाया गया।

26 जुलाई 2010: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने वादों पर अपना फैसला सुरक्षित रखा। फैसला सुनाने की तारीख 24 सितंबर तय की।

Wednesday, September 29, 2010

कॉमनवेल्थ भ्रष्टाचार पर आँख मुंदना मुश्किल : सर्वोच्च न्यायालय


सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में वित्तीय अनियमितताओं पर वह अपनी आखें बंद नहीं रख सकता। पहला मौका है जब सर्वोच्च न्यायालय ने कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन में बदइंतजामी पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. न्यायाधिश सिंघवी ने कहा कि "अब यह जगजाहिर है कि कॉमनवेल्थ में क्या हो रहा है. जब हर ओर बदइंतजामी है, तो आखिर 70 हजार करोड़ रूपए कहां खर्च किए गए? 15 अक्टूबर तक कॉमनवेल्थ को सार्वजनिक उद्देश्य बताकर लोगों को ठगा जा रहा है और उसके बाद सब निजी हो जाएगा.

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी एवं अशोक कुमार गांगुली की खंडपीठ ने कहा कि 'इस देश में कार्य पूरा कराए बगैर भुगतान कर दिया जाता है' और इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। न्यायाधिश सिंघवी ने यह भी कहा कि कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है. जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम के पास निर्माणाधीन फुटओवर पूल के हिस्से का ढ़हना और स्टेडियम की फॉल्स सीलिंग गिरना भ्रष्टाचार का ही नतीजा है.

संसद मार्ग पर अवैध रूप से बनाई जा रही एक इमारत के मामले में सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने कॉमनवेल्थ
खेलों की तैयारियों की कड़ी निंदा की.

अदालत ने कहा कि नई दिल्ली नगर पालिका परिषद ने भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण की आपत्तियों के बावजूद 30 फुट ऊंची पालिका केंद्र का निर्माण कराया। इन दोनों इमारतों के बनने से ऐतिहासिक जंतर मंतर छिप गया है, जिसे 1724 में जयपुर के महाराजा जय सिंह द्वितीय ने बनवाया था। नई दिल्ली नगर पालिका परिषद की खिंचाई करते हुए अदालत ने कहा कि इसका शासी निकाय 'दिमागी और कानूनी' दोनों तौर पर खोखला है और इतिहास के प्रति संवेदनहीन है। 

अयोध्या विवाद: पाँच मुकदमें, 60 साल, हजारों पेज का निर्णय। कोर्ट में केस से जुड़े लोगों को ही मिलेगी एंट्री।

अयोध्या विवाद में गुरुवार को आ रहे फैसले के मद्देनजर पूरे उत्तर प्रदेश में सुरक्षा के जबर्दस्त बंदोबस्त करके प्रशासन ने यह साफ संदेश दे दिया है कि अमन में खलल डालने की किसी भी कोशिश को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और ऐसा करने वालों से सख्ती से निपटा जाएगा। प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने कानून-व्यवस्था से जुड़े सभी अधिकारियों से पूरी तरह चौकस रहने को कहा है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच की जस्टिस डी. वी. शर्मा, जस्टिस एस. यू. खान और जस्टिस सुधीर अग्रवाल की बेंच इस मामले में अपना फैसला कोर्ट नंबर 21 में दोपहर बाद साढ़े तीन बजे सुनाएगी। अदालत परिसर छावनी में तब्दील हो चुका है और उसे वर्जित क्षेत्र घोषित कर दिया गया है।

लखनऊ के डीएम अनिल कुमार सागर ने कहा कि मामले से सीधे तौर पर जुड़े लोग ही कोर्ट नंबर 21 में प्रवेश कर सकेंगे और फैसला सुनाए जाने से पहले उन्हें कक्ष से बाहर निकलने की इजाजत नहीं होगी। डीआईजी राजीव कृष्ण ने कहा कि फैसला सुनाए जाने के बाद किसी तरह का विजय जुलूस या गम के प्रदर्शन के आयोजन पर पाबंदी होगी। किसी भी कोशिश से सख्ती से निपटा जाएगा। लखनऊ में 1500 संदिग्ध लोगों को हिरासत में लिया गया है। शहर में सुरक्षा के लिए अर्द्धसैनिक बलों के करीब दो हजार जवान तैनात किए गए हैं।

कृष्ण ने कहा कि हाई कोर्ट कैंपस को छोड़कर शहर के अन्य हिस्सों में लोगों की आवाजाही पर कोई रोक नहीं होगी। उन्होंने कहा कि सभी स्कूल, कॉलेज और ऑफिस खुले रहेंगे।

पाँच मुकदमें, 60 साल, हजारों पेज का निर्णय!

उधर देश भर की निगाहें इलाहाबाद हाईकोर्ट लखनऊ बेंच के कमरा नम्बर 21 पर हैं, जहाँ अयोध्या विवाद से सम्बधित चार मुकदमों का फैसला 30 सितम्बर को आने वाला है। इस विवाद से सम्बंधित एक मुकदमा पहले वापस लिया जा चुका है। आने वाला अदालती फैसला एक या अधिक हो सकता है तथा इसे आठ हजार से दस हजार पृष्ठों के होने की संभावना है।

1992 तक जहाँ बाबरी मस्जिद बनी हुई थी, उस जमीन के मालिकाना हक से सम्बन्धित इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के तीन जजों की एक विशेष अदालत पाँच मुकदमों की सुनवाई पूरी होने के बाद उस पर अपना फैसला 30 सितम्बर को तीसरे पहर 3.30 बजे सुनाएगी।

इन चार मुकदमों की सुनवाई के बाद फैसला आने में लगभग 60 वर्ष लगे। अयोध्या मामले की सुनवाई करने उच्च न्यायालय की विशेष पीठ पिछले 21 साल में 13 बार बदल चुकी है और 1989 से अब तक कुल 18 उच्च न्यायालय के न्यायाधीश इस मामले की सुनवाई कर चुके हैं।

इन मुकदमों में लगभग कुल 92 इश्यू बने। इन सम्पूर्ण मुकदमें मे कुल 82 गवाहों का परीक्षण हुआ। हिन्दू पक्ष के 54 गवाहों ने कुल 7128 पृष्ठों में गवाहियाँ दी तथा मुस्लिम पक्ष के 28 गवाहों ने 3343 पृष्ठों में अपनी गवाहियाँ दीं। एएसआई रिपोर्ट आने के बाद हिन्दू पक्ष के चार गवाहों ने 1209 पृष्ठों में तथा मुस्लिम पक्ष के 8 गवाहों ने 2311 पृष्ठों में अपनी गवाहियाँ दीं थीं।

14 न्यायिक अफसरों के तबादले

राजस्थान हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल टीएच सम्मा ने मंगलवार को 14 न्यायिक अधिकारियों के तबादले कर दिए।

इनमें तीन जिला जज भी शामिल हैं। रजिस्ट्रार जनरल के अनुसार एचएस सक्सेना को जिला जज बीकानेर, एसपी बुंदेल को जिला जज बालोतरा और बीएम गुप्ता को जिला जज धौलपुर और जेपी शर्मा (द्वितीय) को जोधपुर सीबीआई कोर्ट में विशेष जज के पद पर लगाया गया है।

इसी तरह आरके माहेश्वरी को एडीजे (संख्या एक) बूंदी, आरडी रोहिला को एडीजे (फास्ट ट्रैक-6) जयपुर सिटी, सीपी श्रीमाली को एडीजे (फास्ट ट्रैक) बहरोड़, ओमी पुरोहित को एडीजे (फास्ट ट्रैक) छबड़ा, लक्ष्मणसिंह को एडीजे (फास्ट ट्रैक-2) पाली, जगदीश जानी को एसीजेएम सीबीआई कोर्ट जोधपुर, शक्तिसिंह शेखावत को सीजे (जेडी) जेएम ब्यावर, बालकिशन गोयल सीजे (जेडी) जेएम वेर, बीना गुप्ता सीजे (जेडी) जेएम लक्ष्मणगढ़ अलवर और हेमंतसिंह बघेला सीजे (जेडी) जेएम कोटा नोर्थ के पद पर लगाया गया है।

सदी के सबसे बड़े रेपिस्ट पर मुकदमा शुरू

जर्मनी में एक व्यक्ति ने फिल्म 'साइलेंस आफ द लैंब्स' में दिखाई गई एक ट्रिक के जरिए एक हजार से ज्यादा महिलाओं का शारिरिक शोषण करने की बात मानी है।

46 वर्षीय जार्ज पी नाम के इस व्यक्ति ने पिछले 22 साल के दौरान एक हजार से ज्यादा महिलाओं के साथ जबर्दस्‍ती की। उसे मीडिया में 'सदी का सबसे बड़ा रेपिस्‍ट' कहा जा रहा है। जर्मनी में अब उसके खिलाफ मामले की सुनवाई शुरू हो गई है।

जार्ज हॉलीवुड की फिल्म साइलेंस ऑफ द लैंब्स में दिखाई गई एक ट्रिक का इस्तेमाल कर महिलाओं को खुद पर रहम खाने के लिए मजबूर करता। फिल्म में दिखाया गया है कि कातिल अपनी बांह के टूटे होने का नाटक करता और मौका देखते ही अपने शिकार पर हमला कर देता। ठीक उसी तरह जार्ज भी चोट लगे होने का नाटक करता और महिलाओं के दरवाजे खटखटाता और टॉयलेट इस्तेमाल करने का आग्रह करता। उसने जर्मनी, बेल्जियम, हालैंड और लक्जमबर्ग में 20 रेप करने और करीब 1000 सेक्स अपराध करना स्वीकार किया है।

जार्ज ने स्वीकार किया है कि उसके मन में चालाक महिलाओं के खिलाफ नफरत थी। डसलडॉर्फ के कोर्ट को जार्ज ने बताया कि वो किसी भी तरह महिलाओं से बदला लेना चाहता था। कोर्ट में सुनवाई के दौरान सामने आया कि जार्ज पढ़ने-लिखने में बेहद कमजोर था। वो सेक्स अपराध कर अपने आप को साबित करना चाहता था। जार्ज ने कहा कि वो मेधावी महिलाओं से बदला लेने की फिराक में लगा रहता था।

जार्ज को इस साल मार्च में गिरफ्तार किया गया था। अपनी गिरफ्तारी के वक्त जार्ज ने कहा था कि महिलाओं का रेप करने पर उसे भी दुख होता था लेकिन वो खुद को रोक नहीं पाता था। जार्ज ने पुलिस को बताया था कि अपनी सेक्स इच्छाओं पर काबू पाने के लिए वह वेश्याओं के पास भी जाता था लेकिन इससे भी कुछ फायदा नहीं हुआ।

Sunday, September 26, 2010

डिलिवरी के वक्त पेट में छोड़ी सूई

महिला डिलिवरी के लिए अस्पताल में भर्ती हुई। डिलिवरी के वक्त उसके पेट में डॉक्टरों ने कथित तौर पर सूई छोड़ दी।
इस कारण महिला अब मां नहीं बन सकती। महिला ने यह आरोप लगाते हुए डॉक्टरों के खिलाफ केस दर्ज कराने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है। महिला का आरोप है कि पुलिस ने जब कोई कार्रवाई नहीं की, तब उसने अदालत से गुहार लगाई है। चीफ मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट विनोद यादव की अदालत ने इस मामले की सुनवाई के लिए 30 सितंबर की तारीख तय की है।

सदर बाजार इलाके में रहने वाली महिला के वकील एच.एस. अरोड़ा ने सीएमएम की अदालत में अर्जी दाखिल कर कहा है कि महिला की डिलिवरी होनी थी। इस कारण वह सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट इलाके में स्थित एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती हुई। 15 सितंबर, 2009 को महिला ने बच्ची को जन्म दिया। इस दौरान अस्पताल के डॉक्टरों ने महिला को जब टांके लगाए तो उन्होंने महिला के गर्भाशय में टांका लगाने वाली सूई लापरवाही से छोड़ दी।

इसके बाद महिला को लगातार दर्द हो रहा था और साथ ही उसे ब्लीडिंग भी हो रही थी। लेकिन जब महिला ने इसकी शिकायत डॉक्टरों से की तो डॉक्टरों ने लापरवाही दिखाई और कहा कि सब ठीक हो जाएगा। महिला को इतनी ब्लीडिंग हुई कि उसकी बेड शीट खून से भर गई। महिला का जब दर्द नहीं रुका, तब आखिर में महिला ने दूसरे अस्पताल में जाकर एक्स-रे कराया। एक्स-रे से मालूम हुआ कि उसके गर्भाशय में सूई फंसी हुई है। फिर महिला का ऑपरेशन किया गया और सूई निकाली गई। इस सूई के कारण महिला का गर्भाशय बुरी तरह से डैमेज हुआ और उसे तरह-तरह की परेशानियों से जूझना पड़ा। महिला को इन्फेक्शन हो गया और साथ ही जब उसने दूसरे अस्पताल में अपना इलाज कराया तो वहां अल्ट्रासाउंड के बाद यह बातें सामने आई कि महिला अब मां नहीं बन सकती।

महिला ने अपनी याचिका में कहा कि डॉक्टरों की लापरवाही से यह सब हुआ, साथ ही उसकी जिंदगी खतरे में पड़ी। इस बाबत देशबंधु गुप्ता रोड थाने में 28 अप्रैल, 2010 को शिकायत की गई और डॉक्टरों के खिलाफ केस दर्ज करने की गुहार लगाई गई। लेकिन जब कोई एक्शन नहीं हुआ, तब महिला ने सीएमएम विनोद यादव की अदालत में सीआरपीसी की धारा-156 (3) के तहत अर्जी दाखिल कर गुहार लगाई है कि पुलिस को निर्देश दिया जाए कि आरोपियों के खिलाफ धारा-338 (जीवन को खतरे में डालने के लिए जख्म देने) के तहत केस दर्ज किया जाए। इस मामले की अगली सुनवाई 30 सितंबर को होगी।

पाकिस्तानी राष्ट्रपति को मिला अभयदान

पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति ने कहा कि पद की गरिमा के कारण राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों को फिर से शुरू नहीं किया जा सकता।

महान्यायवादी न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अनवर-उल-हक ने जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों को फिर से शुरू किए जाने संबंधी सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी को शुक्रवार को एक पत्र भेजा। इस बीच कानून मंत्रालय ने महान्यायवादी के पत्र की व्याख्या के साथ प्रधानमंत्री को यह कहते हुए एक पत्र भेजा है कि जरदारी के खिलाफ मामलों को फिर से इसलिए नहीं शुरू किया जा सकता, क्योंकि राष्ट्रपति कार्याकाल में उन्हें अभयदान प्राप्त है।

खबर है कि प्रधानमंत्री ने कानून मंत्रालय से सहमति जताई है और 27 सितम्बर को अगली सुनवाई के दौरान इस पक्ष को सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत किया जाएगा। सूचना मंत्री कमर जमान कैरा ने कहा, "राष्ट्रपति को अभयदान प्राप्त है और हमें इस मामले में कोई भ्रम नहीं है। हम किसी भी संस्थान के साथ कोई गतिरोध नहीं चाहते और जब तक हमें संसद में बहुमत प्राप्त रहेगा, हम सत्ता में बने रहेंगे।" ज्ञात हो कि पाकिस्तानी संविधान की धारा 248 के तहत राष्ट्रपति को अभयदान प्राप्त है।

सांध्य न्यायालय संचालन पर सहमत नहीं हुए अधिवक्ता.

न्यायिक अधिकारियों के सामने लम्बी होती मुकदमों की फेहरिस्त कम करने के लिए उत्तरप्रदेश उच्च न्यायालय ने जिला स्तर पर एक सांध्य न्यायालय संचालित करने की व्यवस्था दी थी। इस सम्बंध में उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार दिनेश गुप्ता की ओर से जनपद न्यायाधीश को पत्र भेजा गया था। यह कहा गया था कि जिला न्यायाधीश अधिवक्ताओं से इस मसौदे पर सहमति लेकर सांध्य न्यायालय का संचालन शुरू कर सकते हैं। इस न्यायालय पर पारिवारिक विवाद से सम्बंधित मामलों के अलावा गुजारा भत्ता व 156(3) में आने वाली शिकायतों के निस्तारण की व्यवस्था सुझायी गयी थी।
इसी मुद्दे पर जिला अधिवक्ता संघ के प्रशासनिक भवन में आम सभा की बैठक आयोजित की गयी।अध्यक्षता बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय कुमार कालिया ने की। जबकि बैठक का संचालन महामंत्री वीरेन्द्र विक्रम सिंह ने किया। आम सभा के सामने सांध्य न्यायालय का मसौदा रखा गया। जिसे अधिवक्ताओं ने स्वीकार नहीं किया। इस सम्बंध में जिला अधिवक्ता संघ ने अपने सुझाव के साथ कार्रवाई की जानकारी जनपद न्यायाधीश को भेजने का निर्णय लिया है। बैठक में बार-बेंच के मध्य सामंजस्य बनाये रखने पर जोर दिया गया। वरिष्ठ उपाध्यक्ष द्वारिका प्रसाद तिवारी, सभाजीत मिश्र, विष्णुशंकर त्रिपाठी, दिलीप पाठक,उमाशंकर मिश्र, पूर्व अध्यक्ष रामछबीले शुक्ल, गया प्रसाद मिश्र, एस.एन. कनौजिया, अनुराधा सिंह, कर्मवीर सिंह, प्रमोद आजाद मौजूद रहे।

हेडमास्टर लड़कियों से छेड़छाड़ करता था, कोर्ट ने फटकारा

अपने ही स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों से अशोभनीय व्यवहार करने वाले हेडमास्टर की अपील हाईकोर्ट ने खारिज कर दी है। हिसार के एक स्कूल में हेडमास्टर रवि कुमार ने शिक्षा विभाग के उस फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी, जिसमें उनके पांच इंक्रीमेंट रोकने के लिए कहा गया था।

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस रणजीत सिंह ने इस पर सुनवाई करते हुए अपने फैसले में कहा कि बच्चियों के साथ अशोभनीय व्यवहार करने वाले टीचर्स को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। इन्हें स्कूलों में कोई जगह नहीं मिलनी चाहिए। फैसले में यह भी कहा गया है कि यदि हेडमास्टर ऐसा करेगा तो दूसरे टीचर्स से क्या उम्मीद की जा सकती है?

ऐसे मामले बर्दाश्त करने लायक नहीं है और इन्हें सख्ती से निपटाए जाने की जरूरत है। स्कूल महज पढ़ाई के लिए नहीं होते बल्कि बच्चे यहां से भले-बुरे की सीख भी लेते हैं। एक शिक्षक जो स्कूल का हेडमास्टर है, उस पर ये जिम्मेदारियां और भी कड़ाई से लागू होती हैं। उससे पिता के समान जिम्मेदारियों को निभाने की उम्मीद की जाती है।

इस केस में एसडीएम के निर्देश पर 40 स्कूली बच्चियों के बयान दर्ज किए गए थे। लड़कियों के आरोपों में यह भी था कि हेडमास्टर लड़कियों के विरोध और आपत्ति के बावजूद उनसे छेड़छाड़ करते रहे हैं। यही नहीं बच्चियों को उसने विरोध करने पर उनके नाम स्कूल से काटने की धमकी भी दी थी।

शिकायत और जांच के बाद विभाग ने दंड देते हुए हेडमास्टर के मांच इंक्रीमेंट रोकने का फैसला लिया था। इसी के खिलाफ हेडमास्टर हाईकोर्ट पहुंचे थे जहां से उसकी सजा को बरकरार रखते हुए कड़ी फटकार लगाई गई। । अदालत का मानना है कि विभाग ने तो उनके साथ फिर भी नरमी बरती है उन्हें किसी तरह की राहत नहीं दी जा सकती।

सदन में अयोग्य ठहराए गए अमर सिंह न्यायालय पहुंचे

समाजवादी पार्टी से निष्कासित राज्यसभा सांसद अमर सिंह ने सदन से अयोग्य ठहराये जाने के मामले में उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।

श्री सिंह ने अपनी याचिका में कहा है कि पार्टी से निष्कासित किये जाने के बाद उन्हें निर्दलीय सदस्य का दर्जा प्राप्त हो चुका है और पार्टी का व्हिप मानने के लिए वह बाध्य नहीं हैं।

उनकी दलील है कि संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत कोई सांसद या विधायक जब अपनी मर्जी से पार्टी छोडता है तो उसे अयोग्य ठहराये जाने का प्रावधान है। लेकिन जब किसी सांसद या विधायक को पार्टी से निकाला जाता है तो उसे अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता।

उनकी इस याचिका की सुनवाई संभवतः अगले सप्ताह होगी।

अयोध्या अध्याय: सीजे की अध्यक्षता में नई बेंच

अयोध्या मामले में दाखिल विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यीय बेंच गठित की है। ऐसा सुप्रीम कोर्ट में पिछली सुनवाई के दौरान दो जजों की बेंच में दोनों जजों के विचार अलग अलग होने के कारण किया गया है। चीफ जस्टिस एस.एच. कपाड़िया की अध्यक्षता वाली यह बेंच मंगलवार सुबह 10:30 बजे सुनवाई करेगी।

बताया जाता है कि इस बेंच में जस्टिस आफताब आलम तथा के.एस. राधाकृष्णन भी शामिल रहेंगे। अटॉर्नी जनरल जी. ई. वाहनवटी से सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद रहने तथा जरूरी सहयोग देने को कहा गया है। बेंच सबसे पहले रमेश चंद्र त्रिपाठी की एसएलपी पर सुनवाई करेगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच अयोध्या मामले में 24 सितंबर को फैसला सुनाने वाली थी।

लेकिन शीर्ष कोर्ट ने त्रिपाठी की याचिका आने के बाद फैसला सुनाने पर 28 तारीख तक अंतरिम रोक लगाई थी। इस याचिका में आग्रह किया था कि अयोध्या विवाद का कोर्ट के बाहर समझौता करके हल निकालने के लिए फैसला टाल दिया जाए।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड: लखनऊ में आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि वह त्रिपाठी की याचिका के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा सकता है। बोर्ड की वर्किग कमेटी के सदस्य कासिम रसूल इलियास ने बताया, ‘पहले भी इस विवाद को सौहार्द से हल करने की कोशिशें हुई हैं। लेकिन उनका कोई नतीजा नहीं निकला। ऐसे में बोर्ड जरूरी होने पर सुप्रीम कोर्ट में त्रिपाठी की याचिका के खिलाफ आवेदन लगा सकता है।’

सुनवाई का महत्व:

मंगलवार को शीर्ष कोर्ट में होने वाली सुनवाई विशेष महत्व रखती है। इससे यह तय हो जाएगा कि हाईकोर्ट अपना फैसला कब सुना सकता है। इस सिलसिले में यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि लखनऊ बेंच के तीन जजों में से एक जस्टिस धर्मवीर शर्मा 1 अक्टूबर को रिटायर होने वाले हैं।

हैरत में आडवाणी :

सोमनाथ (गुजरात).भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अयोध्या विवाद में हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की अंतरिम रोक पर आश्चर्य जताया है। उन्होंने उम्मीद जताई कि शीर्ष कोर्ट अगले हफ्ते फैसला सुनाने के लिए हाईकोर्ट को हरी झंडी दे देगी। आडवाणी ने आम लोगों और भाजपा कार्यकर्ताओं से शांति रखने तथा कोर्ट के फैसले का आदर करने की अपील की। इस मौके पर भाजपा से निष्कासित उमा भारती भी उनके साथ नजर आईं। आडवाणी ने 1990 में यहीं से अयोध्या के लिए विवादित रथ यात्रा शुरू की थी।

जज जो करेंगे सुनवाई

चीफ जस्टिस एसएच कपाड़िया : राजस्व और जमीन से संबंधित विवादों के विशेषज्ञ। फौजदारी व सिविल मामलों का खास अनुभव। हिंदू व बौद्ध दर्शन, अर्थशास्त्र आदि में विशेष रुचि।

जस्टिस आफताब आलम : श्रमिकों, सर्विस और संविधान से जुड़े मामलों का अच्छा अनुभव। कानून के अतिरिक्त क्लासिकल उर्दू व फारसी शायरी तथा सूफी मत में खास रुचि।

जस्टिस केएस राधाकृष्णन : कई सामाजिक और शैक्षणिक संगठनों के लिए वकालत का अच्छा अनुभव। कानून की तमाम शाखाओं में कई यादगार निर्णयों के लिए विख्यात।

Friday, September 24, 2010

बाल न्याय कानून लागू किया जाए: सर्वोच्च न्यायालय

सर्वोच्च न्यायालय ने बाल न्याय (बच्चों की देखभाल एवं सुरक्षा) कानून को लागू न करने लिए शुक्रवार को केंद्र सरकार की आलोचना की। संसद ने इस कानून को एक दशक पहले ही पारित कर दिया है।

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर.वी. रवींद्रन और न्यायमूर्ति एच.एल. गोखले की पीठ ने कहा कि इस कानून को लागू कराने के लिए केंद्र को राज्य सरकारों के साथ सहयोग करने का निर्देश दिए जाने के बावजूद उसने इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की है।

मालों का फेर विवाह नहीं : सर्वोच्च न्यायालय

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश मार्कण्डेय कात्जू और न्यायमूर्ति टी.एस. ठाकुर की खंडपीठ ने कहा कि विवाह विधिपूर्वक संपादित की जाने वाली प्रथा है और हिंदू  विवाह अधिनियम 1955 के तहत अकेले में ऐसा आयोजन करने से विवाह की पवित्रता पर सवाल उठेगा।

अदालत ने यह व्यवस्था याचिकाकर्ता के.पी. थिमप्पा गौड़ा द्वारा कर्नाटक  उच्च न्यायालय की अभिशंसा को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान दी, जिसमें एक महिला से बार-बार यौन संबंध बनाने और उसके गर्भवती हो जाने पर विवाह का झूठा आश्वासन दिए जाने का जिक्र है।

राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन एक माह टालने संबंधी याचिका दायर

सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन को कम से कम एक महीने टालने और अरबों रुपए की हेराफेरी की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच कराने के निर्देश देने संबंधी एक जनहित याचिका पर सोमवार को सुनवाई करेगा।

पेशे से वकील अजय कुमार अग्रवाल की ओर से दायर यह याचिका मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडिया की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।

याचिकाकर्ता ने देश की प्रतिष्ठा दांव पर लगे होने का हवाला देते हुए राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन कम से कम एक माह के लिए टालने तथा इसकी आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाडी को तत्काल हटाने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की है।

अग्रवाल ने खेलगांव में स्वच्छता की बदतर स्थिति के मद्देनजर कलमाडी के खिलाफ आपराधिक लापरवाही का मामला दर्ज करने की भी मांग की है।

याचिकाकर्ता ने कलमाडी के खिलाफ अनियमितता और भ्रष्टाचार के मामले की सीबीआई जांच के निर्देश देने की मांग भी की है। उन्होंने कलमाडी द्वारा खेलों के आयोजन के नाम पर अधिग्रहित भूमि के दुरुपयोग किए जाने की भी आरोप लगाया है।

Wednesday, September 22, 2010

कोलकाता उच्च न्यायालय में हड़ताल, न्यायाधीशों को बरामदों में बैठना पडा

कलकत्ता उच्च न्यायालय में आज न्यायाधीशों को बरामदों में बैठना पडा. कर्मचारियों की अनिश्चितकालीन हड़ताल के कारण आज न्यायाधीशों के कक्षों के दरवाजे भी नहीं खुल सके.

कर्मचारी वेतनवृद्धि की मांग को लेकर हड़ताल कर रहे हैं. कर्मचारियों की हड़ताल जारी रहने तक मुकदमों की सुनवाई नहीं हो सकेगी. उच्च न्यायालय के एक अधिकारी ने बताया कि कर्मचारियों ने अलग-अलग यूनियनों के साथ हड़ताल की अपील की हुई है, जिसके चलते कोई अदालतों और न्यायाधीशों के कक्षों के ताले खोलने वाला भी नहीं था. कर्मचारी वेतन आयोग की अनुशंसाओं के हिसाब से वेतन की मांग कर रहे हैं.

कलकत्ता उच्च न्यायालय की एक समिति ने कर्मचारियों के वेतन में इजाफ़े की अनुशंसा की थी, लेकिन यह अनुशंसा पश्चिम बंगाल सरकार के पास लंबित पड़ी है.

अयोध्या विवाद के मद्देनजर बड़े स्तर पर एसएमएस और एमएमएस पर प्रतिबंध, शांति बनाये रखने की अपील ।

सरकार ने टेलीकॉम नेटवर्क पर बड़े स्तर पर एसएमएस और एमएमएस पर 72 घंटे का प्रतिबंध तत्काल प्रभाव से लागू किया।

अयोध्या विवाद का इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ द्वारा परसों फैसला सुनाए जाने के मद्देनजर संवेदनशील क्षेत्रों में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने और विभिन्न हिन्दू एवं मुस्लिम संगठनों की शांति की अपील के बीच केन्द्र और राज्य सरकारों ने किसी भी स्थिति से निपटने के लिए कमर कस ली है। केन्द्र ने बुधवार को अयोध्या मामले के पक्षों और आम जनता से अपील की कि वे अदालत के फैसले पर जल्दबाजी में कोई निष्कर्ष न निकालें। गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि जल्दबाजी में किसी ऐसे निष्कर्ष पर पहुंचना अनुचित होगा कि कोई एक पक्ष ‘‘जीत गया’’ है या दूसरा पक्ष ‘‘हार गया’’ है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह संभव है कि तीन न्यायाधीशों की विशेष खंडपीठ द्वारा एक या अधिक निर्णय सुनाये जाएं। इन निर्णयों को सावधानीपूर्वक पढ़ना होगा तथा कोई निष्कर्ष निकालने से पूर्व प्रत्येक मुद्दे पर माननीय न्यायाधीशों के निर्णयों का विश्लेषण बारीकी से करना होगा।’’ इस बीच उच्चतम न्यायालय में न्यायमूर्ति अल्तमश कबीर और न्यायमूर्ति एके पटनायक की खंडपीठ ने सेवानिवृत्त नौकरशाह रमेश चंद्र त्रिपाठी की ओर से मामले पर उच्च न्यायालय का फैसला टालने के बारे में दायर याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। शीर्ष कृष्ण कोई तारीख नहीं बताई कि कब उस पर सुनवाई की जा सकती है, लेकिन उसने अदालत की रजिस्ट्री को सामान्य प्रक्रिया के तहत इसे किसी और खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।

उधर, उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में अगले आदेश तक शांति मार्च, रैली या ऐसे किसी भी सार्वजनिक आयोजन पर रोक लगा दी है जिसमें बडीं संख्या में लोग एकत्र हों। शांति मार्च के लिए पहले दी गयी सभी अनुमतियां रद्द कर दी गयी है।

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्य के लोगों से अयोध्या विवाद में मालिकाना हक विषय पर अदालती फैसले के बाद शांति बनाये रखने की अपील की। उन्होंने कहा ‘‘अयोध्या मामले में लग्बे समय से जारी कानूनी लड़ाई के बाद इस मामले में फैसला आने के बारे में लोगों में काफी उत्सुकता होगी लेकिन क्षणिक जोश से किसी का भला नहीं होगा।’’ बालीवुड के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन ने जनता से शांति और भाईचारा बनाये रखने की अपील करते हुए अपने ब्लॉग में कहा, ‘‘अयोध्या, बाबरी मस्जिद मसले पर 24 सितंबर को न्यायालय का निर्णय आने वाला है और इस दौरान काफी लोगों ने हमसे शांति और सौहार्द बनाये रखने के लिये अपील जारी करने का आग्रह किया।’’ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राज्य में किये जा रहे सुरक्षा इंतजामों की तैयारियों पर नजर रखेंगे तथा किसी सार्वजनिक समारोह अथवा बैठक आदि में भाग नहीं लेंगे। मुख्यमंत्री निवास के सूत्रों ने बताया कि चौहान ने राज्य के मुख्य सचिव एवं पुलिस महानिदेशक से जिलों की स्थिति और सुरक्षा को लेकर उठाए गए कदमों पर चर्चा की है। मध्यप्रदेश के गृह मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने बताया कि प्रदेश में हर थाना स्तर पर तैयारी की जा रही है कि परसों आने वाले फैसले के बाद शांति बनी रहे और कोई भी हालात को बिगाडने का प्रयास न कर सके। कर्नाटक सरकार ने राज्य के सभी शिक्षण संस्थानों में ऐहतियाती कदम के तौर पर 24 तथा 25 सितंबर को अवकाश की घोषणा कर दी है। मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने कहा कि सरकार ने किसी भी अवांछित घटना को रोकने के लिए एहतियाती कदम उठाए हैं।

उत्तराखंड सरकार ने उत्तर प्रदेश से सटे जिलों को सतर्क कर दिया है। राज्य के पुलिस महानिदेशक ज्योति स्वरूप पांडेय ने बताया कि उधमसिंहनगर, हरिद्वार, हल्द्वानी तथा देहरादून में पुलिस और सुरक्षाकर्मियों को सतर्क कर दिया गया है। इन जिलों में जरूरत पडने पर अतिरिक्त पुलिस बल को तैनात करने की व्यवस्था की गयी है। उत्तर प्रदेश के कई सामाजिक संगठनों तथा प्रबुद्ध लोगों ने आधुनिक तकनीक का सहारा लेते हुए ‘एसएमएस’ के जरिये देश में शांति व्यवस्था बनाये रखने की आम जनता से अपील की है।

तृणमूल कांग्रेस ने कहा कि अयोध्या में मालिकाना हक संबंधी मुकदमे के फैसले का सभी को सम्मान करते हुए उसे स्वीकार करना चाहिए। पार्टी नेता सुदीप बंदोपाध्याय ने कहा ‘‘सभी को, चाहे किसी भी धर्म या जाति के हों, फैसले को स्वीकार करना चाहिए।’’ उत्तर प्रदेश के बरेली और पीलीभीत जिलों तथा उत्तराखंड से सटी नेपाल सीमा को सील कर दिया गया है।

इस बीच इंदौर में पुलिस ने एक नवगठित दक्षिणपंथी संगठन के संयोजक को रासुका के तहत गिरफ्तार किया है। यह संगठन मध्यप्रदेश में विवादास्पद पोस्टर चिपकाकर कथित तौर पर 10,000 ‘हिंदू योद्धाओं’ की भर्ती में जुटा था। शहर में सात दिन की निषेधाज्ञा भी लागू की गई है। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग और केरल में अन्य मुस्लिम संगठनों ने समाज के सभी तबकों से अनुरोध किया है कि अयोध्या मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 24 सितंबर के फैसले के बाद शांति और सद्भावना बनाए रखें।

आध्यात्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर ने हिन्दु और मुस्लिम समुदाय से शांति और सौहार्द्र बनाए रखने की अपील की। उन्होंने कहा ‘‘24 सितंबर को अदालती फैसले के आलोक में लोगों को शांति एवं व्यवस्था बनाए रखनी चाहिए। उन्हें किसी भी तरह से साम्प्रदायिक घृणा फैलाने के प्रयासों से बचना चाहिए।’’