पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Monday, August 31, 2009

सेवानिवृत्ति से 3 दिन पहले बहाली।


उच्च न्यायालय ने नौ साल पूर्व साम्प्रदायिक दंगे के दौरान हत्या के मामले में गिरफ्तारी के बाद निलम्बित शारीरिक शिक्षक को बहाल कर दिया है, वह 31 अगस्त को सेवानिवृत होने जा रहा है।
मालपुरा में शारीरिक शिक्षक के पद से निलम्बित रामस्वरूप ने याचिका के जरिए उच्च न्यायालय को बताया था कि उसके खिलाफ चल रहे मामले में अधीनस्थ अदालत की कार्यवाही पर 2006 से उच्चतम न्यायालय ने रोक लगा रखी है और 31 अगस्त 09 को वह सेवानिवृत होने वाला है।
उच्चतम न्यायालय के विभिन्न निर्णयों का हवाला देकर कहा कि कर्मचारी को लम्बे समय तक निलम्बित रखना जायज नहीं है। न्यायाधीश अजय रस्तोगी ने इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए प्रार्थी को बहाल करने का आदेश दिया।

जयपुर शहर में एक एडीएम, तीन एसडीएम के नये पद सृजित किये जाएगें।

जयपुर शहर में जल्द ही एडिशनल डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर (एडीएम) और तीन सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) के नए पद और सृजित जा रहे हैं। जयपुर जिला कलेक्टर कुलदीप रांका की ओर से भेजे गए प्रस्ताव पर राज्य सरकार ने मंजूरी दे दी है, गृह विभाग से नोटिफिकेशन जारी होते ही ये चारों पद प्रभाव में आ जाएंगे। नए अफसर सिर्फ शहर की कानून व्यवस्था बनाए रखने का ही काम करेंगे। राज्य में पहली बार केवल कानून व्यवस्था के लिए एसडीएम अलग से लगाए जा रहे हैं। वर्तमान में जयपुर शहर की कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए एडीएम (उत्तर) व एडीएम (दक्षिण) हैं। दूसरी ओर पुलिस व्यवस्था के तहत तीन पुलिस अधीक्षक लगे हुए हैं। एडीएम का नया पद एडीएम (पूर्व) सृजित होगा।
एडीएम के सहयोगी के रूप में तीन एसडीएम भी लगाए जा रहे हैं। कलेक्टर ने बताया कि प्रशासन की ओर से भेजे गए प्रस्ताव को सरकार की मंजूरी मिल गई है। गृह विभाग के नोटिफिकेशन के साथ ही नए पद सृजित कर दिए जाएंगे। कानून व्यवस्था में लगाए जाने वाले अधिकारी एसडीएम ही कहलाएंगे। ये सीआरपीसी की धारा 107, 116,151, 176, 174, 144,145, 133 के तहत आने वाले कार्य को संभालेंगे। नए लगाए जाने वाले तीन एसडीएम व एक एडीएम राजस्व विभाग के अधीन होने के बजाय गृह विभाग के अधीन रहेंगे तथा इसके लिए नोटिफिकेशन भी गृह विभाग की ओर से ही निकाला जाएगा। नए लगाए जाने वाले एसडीएम का कार्य क्षेत्र भी गृह विभाग ही तय करेगा तथा इन पर कंट्रोल भी गृहविभाग का ही रहेगा।

राज्य के अन्य जिलों में भी कानून व्यवस्था के लिए नए पद सृजित हो सकते हैं। फिलहाल जयपुर के अलावा जोधपुर में सरकार ने एसडीएम (कानून व व्यवस्था) का एक पद सृजित किया गया है।

आए दिन जन आंदोलनों के चलते तथा पुलिस से बढ़ती झड़पों की वजह से कानून व्यवस्था की दिक्कत महसूस हो रही है। कानून व्यवस्था में लगे दो एडीएम भी व्यवस्था को नहीं संभाल पा रहे हैं, इससे उनके सहयोग के लिए अन्य कार्यपालक मजिस्ट्रेट लगाने पड़ते हैं।
फिलहाल शहर में पुलिस के 15 सर्किल ऑफिस व 46 थाने है, इसमें रोजाना करीब 500 से ज्यादा धारा 151 के तहत गिरफ्तार व्यक्ति एसडीएम के सामने पेश किए जाते हैं। इसके साथ ही सीआरपीसी की धारा 176 के केस में भी एसडीएम को जाना पड़ता है। शादी के सात साल के भीतर महिला की मौत हो जाने की स्थिति में पूरी जांच करनी पड़ती है। इससे राजस्व अदालतों का काम ठप हो जाता है तथा लोगों को कई सालों से फैसलों का इंतजार करना पड़ रहा है। हर एसडीओ को हर महीने 20 राजस्व मामलों का निपटारा करने का लक्ष्य दे रखा है, लेकिन कानून व्यवस्था में लगे होने से राजस्व मामले देख ही नहीं पाते हैं।

हाई कोर्ट ने पीसीएस (प्रारंभिक) का परिणाम रद्द किया


इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश प्रांतीय लोक सेवा (प्रारंभिक) परीक्षा-2007 के परिणामों को रद्द कर दिया है और राज्य लोक सेवा आयोग से एक महीने के अंदर फिर से परीक्षा आयोजित करने को कहा है।

न्यायाधीश अमिताव लाल और उमानाथ सिंह की खंडपीठ ने बुधवार को धनंजय सिंह द्वारा दायर रिट याचिका को अनुमति देते हुए यह आदेश जारी किया। सिंह 30 सितंबर 2007 को आयोजित परीक्षा में शामिल हुए थे जिसका परिणाम इस वर्ष एक फरवरी को घोषित किया गया था।

याचिकाकर्ता ने कहा कि भले ही वह सफल नहीं हुए लेकिन जिन उम्मीदवारों को उनसे कम अंक प्राप्त हुए वह सफल घोषित किए गए क्योंकि सामान्य श्रेणी, ओबीसी, एससी एवं एसटी के लिए अलग-अलग कटऑफ निर्धारित किया गया है।

उनके वकील संतोष कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि प्रारंभिक परीक्षा मुख्य परीक्षा का हिस्सा नहीं है बल्कि मुख्य परीक्षा के लिए उपस्थित होने वाले छात्रों की पात्रता निर्धारित करने के लिए महज एक स्क्रीनिंग टेस्ट है और इस प्रकार प्रारंभिक परीक्षा में आरक्षण नहीं दिया जा सकता। उन्होंने कहा, ‘‘किसी उम्मीदवार का चयन पूरी तरह मुख्य परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर होता है और उम्मीदवारों की योग्यता का पता लगाने के लिए प्रारंभिक परीक्षा में प्राप्त अंकों को नहीं गिना जाता है।’’ अदालत ने कहा, ‘‘आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को प्रारंभिक स्तर पर अंक को कम करना संवैधानिक जनादेश नहीं है। यह सिर्फ पदोन्नति के लिए उचित है। जो लोग मूल योग्यता रखते हैं वहीं मुख्य परीक्षा में उपस्थित होने के हकदार हैं।’’

हिमाचल हाईकोर्ट के जज करेंगे संपत्ति की घोषणा


दिल्ली और केरल हाईकोर्ट के न्यायधीशों के बाद हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायधीशों ने भी सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों के नक्शे कदम पर चलते हुए अपनी संपति की घोषणा करने का फैसला किया है। हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल वी. के. शर्मा ने बताया कि "मुख्य न्यायधीश आर. बी. मिश्रा सहित सभी नौ न्यायधीशों ने सर्वसम्मति से संपति की घोषणा करने का फैसला लिया है।"

उन्होंने कहा कि इस जल्द ही हाईकोर्ट की वेबसाइट पर प्रकाशित कर दिया जाएगा। शर्मा ने कहा कि "हम इस बारे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तैयार दिशा निर्देशों का इंतजार कर रहे हैं। जैसे ही हमें यह हासिल होगा हम हाईकोर्ट की वेबसाइट पर संपति की घोषणा कर देंगे।"

उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने वर्ष 2008 के उस प्रस्ताव को स्वीकार किया है जिसमें कहा गया था कि सभी न्यायधीशों को स्वयं और उनकी पत्नियों की संपति और उनके द्वारा किए गए निवेश को सार्वजनिक करना चाहिए।

Sunday, August 30, 2009

लोक अदालत में 7.34 करोड़ के केस निपटाए।

जहाँ एक ओंर अदालतों में मुकदमों की संख्या बढ़ती जा रही है वहीं लुधियाना -सेशन जज जीके राय की अध्यक्षता में लुधियाना, समराला, खन्ना व जगराओं में लगाई लोक-अदालतों में 7 करोड़ 34 लाख 65 हजार 616 रुपये धनराशि के विवादित 609 केसों का निपटारा आपसी सहमति के आधार पर करवाया गया। अतिरिक्त सेशन जज एमएस विरदी, जीएस सरां, अशोक कुमार, हरवीन भारद्वाज, सिविल जज लखविंदर कौर, बलवंत सिंह, युक्ति गोयल, अमित थिंद व जरनैल सिंह ने विभिन्न लोक अदालत बैंचों की अध्यक्षता की। इस मौके पर 40 करोड़ 44 लाख 65 हजार 814 रुपये धनराशि के 50 केस निपटाए गए। खन्ना में 59 लाख 33 हजार 227 रुपये के 70 केस, जगराओं में 43 लाख 58 हजार 312 रुपये धनराशि के 39 केसों का निपटारा किया गया। सिविल जज सीनियर डिवीजन जेपी एस वेहनीपाल ने बताया कि लुधियाना जिले में अब तक लगाई गई 320 लोक अदालतों में 1 लाख 81 हजार से अधिक केसों का निपटारा करवाया जा चुका है। जबकि 4 हजार से अधिक लोगों को मुफ्त कानूनी सहायता उपलब्ध करवाई जा चुकी है। सहायक जिला अटार्नी अरविंदर मड़कन के अनुसार लोक अदालत में सिविल केस, चेक बाउंस केस, किराएदार-मकान मालिक के केस, मोटर-वाहन दुघर्टना आदि केस पेश किए गए थे।

1984 के दंगाईयों को सजा सुनाते हुए जज ने कहा 'इतिहास पुलिस को माफ नहीं करेगा'

वर्ष 1984 के दंगे के दौरान परिवार के तीन लोगों को घायल कर लूटपाट करने के एक मामले में तीसहजारी कोर्ट स्थित अतिरिक्त जिला जज सुरेंद्र एस. राठी ने दोषी मंगल सेन, बृजमोहन वर्मा व भगत सिंह को हत्या का प्रयास, दंगा भड़काने व लूट के मामले में उम्रकैद व 6.20-6.20 लाख जुर्माने की सजा सुनाई है। अदालत ने पीड़ितों के साथ हुई घटना पर खेद जताते हुए कहा कि जुर्माने की राशि में से 18 लाख रुपये पीड़ितों को दिए जाएंगे।ज्ञात हो कि 22 अगस्त को अदालत ने तीनों आरोपियों को दोषी करार दिया था। यह पहला मामला है जब अदालत ने इस दंगे के किसी ऐसे मामले में सजा सुनाई है जिसके पीडि़त जिंदा हैं। उधर, दोषियों के परिजनों ने फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देने की बात कही है। दंगे में घायल हुए दोनों भाइयों ने अदालत के फैसले पर संतुष्टि जताई। सरकारी वकील इरफान अहमद भी फैसले से खुश दिखे। फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि हमारे समाज में सहनशक्ति खत्म होती जा रही है। 1984 के दंगों के बाद यह खतरनाक ट्रेंड विस्फोटक होता जा रहा है और समय-समय पर सिर उठाता रहता है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में सबसे दुखदायक तथ्य यह है कि जिन आरोपियों ने पीड़ितों को घायल किया, उनको लूटा और उनका घर का जला दिया वह उनके पड़ोसी थे। दुख के ऐसे समय में उनकी सहायता करने के बजाय आरोपी खुद दंगे का हिस्सा बन गए। समय आ गया है कि आम आदमी सोचे कि क्यों ऐसे अपराध हो रहे है और पीडि़तों की जिंदगी तबाह की जा रही है। इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि इस तरह की हरकत भविष्य में न दोहराई जाए। अदालत ने दंगों के दौरान पुलिस व सरकार की भूमिका पर भी खेद व्यक्त किया। कोर्ट ने कहा कि भावुकता के नाम पर बिना दिमाग का प्रयोग किए गए इस तरह के अपराध के मामलों में कोर्ट की जिम्मेदारी बनती है कि वह ऐसी सजा दे जो समाज में सही संदेश दे। 

अदालत ने पुलिस के खिलाफ सख्त टिप्पणी की, अदालत ने कहा कि पुलिस ने इस मामले में जिस तरह अपना रवैया दिखाया है, उसके बाद इतिहास उसे कभी माफ नहीं करेगा। सजा पर बहस के दौरान बचाव पक्ष की तरफ से दलील दी गई थी कि तीनों आरोपियों के बीवी-बच्चे हैं और उन पर परिवार की जिम्मेदारी है। मंगल सेन दिल का मरीज है जबकि बृजमोहन को टीबी है। वहीं सरकारी वकील ने अधिकतम सजा की मांग करते हुए कहा कि यह सोची समझी साजिश थी। पीडि़तों की पूरी जिंदगी तबाह हो गई इसलिए उनको मुआवजा भी दिया जाना चाहिए। 

उल्लेखनीय है कि वर्ष 1992 में जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग के सामने जोगेंद्र सिंह ने एक हलफनामा दायर किया था। इसके बाद दंगे के इस मामले की फिर से जांच की गई और अदालत में आरोप पत्र दायर किया गया। वर्ष 2001 में आरोपियों पर आरोप तय किए गए थे। अभियोजन पक्ष के अनुसार एक नवंबर 1984 को एक भीड़ ने जोगेंद्र सिंह के सावित्री नगर स्थित घर पर हमला कर दिया। भीड़ का नेतृत्व मंगल सेन, बृज मोहन व भगत सिंह कर रहे थे। भीड़ ने जोगेंद्र, उसके बेटे गुरविंद्र व जगमोहन को घायल कर सामान लूट लिया। अभियोजन पक्ष ने मामले में नौ गवाह पेश किए।

भू-अभिलेख निरीक्षक रिश्वत लेते पकड़ा।

निरोधक ब्यूरो ने शनिवार को भू-अभिलेख निरीक्षक वृत झाड़ोल,उदयपुर को उसके मकान पर दो हजार रूपये की रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार किया । ब्यूरो के उपमहानिरीक्षक टी सी डामोर ने बताया कि परिवादी देवास (झाड़ोल) निवासी मदन सिंह राठौड़ ने शुक्रवार को ब्यूरो में भू-अभिलेख निरीक्षक वृत्त झाड़ोल हाल प्रगति नगर मल्लातलाई निवासी कालू लाल गन्धर्व के विरूद्ध भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में रिश्वत की शिकायत की थी। इस पर ब्यूरो द्वारा शिकायत का भौतिक सत्यापन कराया गया। जिसके बाद आज सुबह ब्यूरो एएसपी राजेन्द्र गोयल के नेतृत्व में कैलाशचन्द्र व्यास, जितेन्द्र कुमार, दिनेश मीणा, अख्तर खान, वगतराम, कंवरपाल परिवादी के साथ भू अभिलेख निरीक्षक कालूलाल गन्धर्व के प्रगति नगर स्थित मकान पर पहुंचे । ब्यूरो कर्मी मकान से दूर खड़े रहे। परिवादी मदन सिंह ने भू-अभिलेख निरीक्षक को रूपये देकर बाहर आने के बाद इशारा कर दिया। जिस पर ब्यूरो दल ने गन्धर्व के मकान पर जाकर उसकी तलाशी ली तो उसकी टी शर्ट की जेब से दो हजार रूपये की रिश्वत राशि बरामद हुई। मौके पर हाथ धुलवाने पर रंग निकल आया।
यह था मामला : ब्यूरो एएसपी राजेन्द्र गोयल ने बताया कि परिवादी मदन सिंह ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि उसके पिता दौलत सिंह के भाई भंवर सिंह व नवल सिंह ने राजस्वकर्मियों की मिलीभगत से पिता के नाम कब्जेशुदा जमीन को उनके नाम आवंटित करवा दी । वर्ष ०४ में आवंटन के दौरान उसे अपने चाचा द्वारा की गई जालसा का पता चला। जिस पर परिवादी मदन सिंह ने अति.जिला कलेक्टर न्यायालय में वाद दायर किया। २४ जून ०८ को कोर्ट ने परिवादी के पक्ष में फैसला दिया। २८ जून ०६ को नायब तहसीलदार ने मौका रिपोर्ट बनाई । मदन सिंह राजस्व निरीक्षक से कब्जा दर्शाने बाबत मिलता रहा जहां राजस्व निरीक्षक कालूलाल गन्धर्व ने उससे बतौर रिश्वत ४ हजार रूपये की मांग की थी।

मंदबुद्धि महिला का गर्भपात भी बिना सहमति नहीं।

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि गर्भपात में मां की सहमति अनिवार्य होने का कानून मंदबुद्धि महिला के मामले में भी लागू होगा। यानी मंदबुद्धि महिला का गर्भपात भी उसकी सहमति के बगैर नहीं कराया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के दूरगामी परिणाम होंगे। मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्णन, न्यायमूर्ति पी. सत्शिवम व न्यायमूर्ति बी.एस. चौहान की पीठ ने यह फैसला चंडीगड़ की दुष्कर्म पीड़ित मंदबुद्धि अनाथ युवती के गर्भपात की अनुमति देने वाले पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि भारतीय कानून सिर्फ कुछ परिस्थितियों में ही गर्भपात की अनुमति देता है। मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी [एमटीपी] एक्ट 1971 सशर्त 'गर्भपात का अधिकार' देता है, जिसकी सामान्य परिस्थितियों में मनाही है। कोर्ट ने कहा कि महिला को मिला जन्म देने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आता है। इस अधिकार में जन्म देने की इच्छा या जन्म न देने की इच्छा, दोनों शामिल हैं। यह महिला की व्यक्तिगत आजादी का मामला है। उसकी निजता और गरिमा का सम्मान किया जाना चाहिए। जन्म देने के अधिकार पर उसी तरह कोई रोक नहीं हो सकती जैसे महिला को शारीरिक संबंध बनाने से मना करने या गर्भनिरोधक उपाय के उपयोग की बाध्यता से मना करने का अधिकार प्राप्त है। महिलाएं परिवार नियोजन के उपाय अपनाने के लिए भी स्वतंत्र हैं। अंतत: निष्कर्ष यही है कि महिला को प्राप्त जन्म देने के अधिकार में गर्भधारण करना, जन्म देना और बच्चे का पालन-पोषण करने का अधिकार शामिल है।

एमटीपी कानून सशर्त गर्भपात की अनुमति देता है। कानून की धारा 3 [4][ए] में कहा गया है कि अगर कोई महिला 18 वर्ष से कम आयु की हो या फिर वह मानसिक रोगी हो तो उसका गर्भपात संरक्षक की लिखित अनुमति के बगैर नहीं होगा। इस परिस्थिति के अलावा मां की सहमति के बगैर गर्भपात नहीं किया जा सकता है। सिर्फ महिला की जान को खतरे की स्थिति में रजिस्टर्ड प्रैक्टिशनर्स को तत्काल गर्भपात करने का अधिकार प्राप्त है। कानून में मंदबुद्धि और मानसिक रोगी में अंतर बताया गया है। मानसिक रोगी की तरफ से संरक्षक गर्भपात की अनुमति दे सकता है, जबकि मंदबुद्धि की ओर से नहीं। कोर्ट ने कहा है कि मां की अनिवार्य सहमति के कानून में ढिलाई की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि इससे जन्म देने के अधिकार पर रोक लगती है। जिस समाज में लिंग परीक्षण कर गर्भपात कराने की बुराई व्याप्त हो वहां कानून में ढिलाई की अनुमति देने से उसका दुरुपयोग हो सकता है। इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सरकारी संरक्षण गृह में दुष्कर्म की शिकार मंदबुद्धि युवती के मामले में सुनाए गए फैसले में कोर्ट ने कहा है कि सरकारी कल्याण गृहों का प्रशासन सुधारने की जरूरत के संदर्भ में यह मामला हम सब को सतर्क करता है।
सम्पूर्ण निर्णय

Saturday, August 29, 2009

चार जिलों में शुरू होंगी ईवनिंग कोर्ट।

देशभर की अदालतों में लंबित चल आ रहे मामलों का बोझ कम करने के लिए देश भर में ईवनिंग कोर्ट शुरू करने पर गंभीरता से विचार चल रहा है। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने फिलहाल प्रदेश में जालंधर, लुधियाना, पटियाला और अमृतसर में इन्हें शुरू करने की तैयारी की है। 

इस संबंध में चारों जिलों की अदालतों को आदेश-पत्र जारी कर दिया गया है। इन अदालतों में चैक बाऊंस, लड़ाई- झगड़े और उन छिटपुट मामलों की सुनवाई होगी, जिसमें दोनों पक्षों में सहमति कराकर मामले जल्द निपटाए जा सकें। ईवनिंग कोर्ट शाम पांच से सात बजे तक लगाने पर विचार चल रहा है।

मुबई हमला 26/11 का प्रमुख गवाह लापता

मुंबई में पिछले वर्ष नवंबर में हुए आतंकी हमले के सह अभियुक्त फाहिम असांरी तथा सबाउद्दीन अहमत के खिलाफ गवाही देने वाला प्रमुख गवाह नूरूदीन शेख शुक्रवार को अदालत में पेश नहीं हुआ। आभियोजन पक्ष ने उसे लापता घोषित किया। क्राईम ब्राच के मुताबिक नूरूदीन एवं फाहिम दोनों दोस्त थे और मुंबई मे दोनों का आवास भी गौरेगांव में ही है। गवाह नूरूदीन ने गुरूवार को अदालत में बताया था कि दोनों अभियुक्तों उसे नेपाल में मिले थे और मुंबई के कुछ स्थानों के बारे में नक्शे के साथ उससे चर्चा की थी बाद में इन्ही स्थानों पर 26/11/08 को आतंकवादियों ने हमला बोला था।
जिसके क्रास इनवेस्टीगेसन के लिए नूरूदीन को अदालत ने शुक्रवार सुबह 11 बजे बुलाया था। लेकिन वह रहस्यमय ढंग से लापता हो गया। क्राईम ब्राच के अफसर जब नूरूदीन के गौरेगांव स्थित उसके निवास पर गये तो उसकी पत्नी ने कहा कि वह सुबह ही अदालत जाने को कहकर निकल गये थे। यह दोनों अभियुक्त भारतीय नागरिक है, उनके खिलाफ मुंबई हमले के अभियुक्त पाकिस्तानी नागरिक कसाब के साथ सुनवाई चल रही है। मामले की सुनवाई कर रहे जज एम एल ताहिलियानी मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा है कि वे बाद में यह तय करेगे कोर्ट इस मामले में क्या कदम उठाना है। क्राईम ब्राच नूरूदीन का पता लगाने के लिए तीन टीम प्रत्येक में सात-सात पुलिसकर्मी का गठन किया है।

नेपाली उपराष्ट्रपति ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को दी चुनौती।

नेपाल में पिछले कुछ समय से चल रहे हिंदी विवाद में शुक्रवार को उस समय नया मोड़ गया जब उपराष्ट्रपति परमानंद झा ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दे दी। उन्होंने महान्यायवादी से इस फैसले की समीक्षा करने को भी कहा है। 
सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले दिनों अपने अपने आदेश में कहा था कि झा या तो नेपाली में अपने पद की शपथ लें अथवा बर्खास्तगी का सामना करें। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने से पहले झा ने दबाव में आकर नेपाली में शपथ लेने से इंकार कर दिया था। झा के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने से पहले अटकलों का दौर जारी था कि एक बार और शपथ लेने के अपमान से बचने के लिए झा अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं। 
झा के कानूनी सलाहकार मिथिलेश सिंह ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के विवादास्पद फैसले की पांच न्यायाधीशों की पूर्ण पीठ समीक्षा करेगी। इसका मतलब यह हुआ नेपाल में हिंदी विवाद अभी कुछ दिन और चलेगा।  यह विवाद पिछले वर्ष तब शुरू हुआ था जब नेपाल गणराज्य बना था और झा उपराष्ट्रपति चुने गए थे।  
काठमांडू के एक वकील बालकृष्ण नेपाने ने एक याचिका दाखिल कर परमानंद झा के हिंदी में शपथ लेने को असंवैधानिक कहा था। भारत की सीमा से लगे नेपाल के तराई क्षेत्र में हिंदी भाषा बोली जाती है। 

पाकः ए. क्यू. खान से प्रतिबंध समाप्त

ईरान, लीबिया और उत्तर कोरिया को चोरी छुपे परमाणु तकनीक बेचने के आरोपी पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल कदीर खान अब पूरी तरह स्वतंत्र हो गए हैं। लाहौर उच्च न्यायालय ने खान के खिलाफ लगे सारे प्रतिबंध हटाने के आदेश दे दिए हैं। यह जानकारी शुक्रवार को उनके वकील ने दी।
खान के वकील अली जाफर ने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश के बाद खान अब कहीं भी आने-जाने के लिए स्वतंत्र हैं। जाफर ने बताया कि कोर्ट ने शुक्रवार को आदेश दिया, "कोई भी खान की आवजाही पर रोक नहीं लगा सकता।"
समाचार पत्र 'डॉन' के मुताबिक खान ने इस फैसले पर खुशी जाहिर करते हुए कहा, "मेरा मानना है कि अब मेरे साथ शरारत करने वालों को एक संदेश मिलेगा और वे मुझे शांतिपूर्ण ढंग से और एक आम नागरिक के रूप में अपनी जिंदगी जीने देंगे।"
यह अभी साफ नहीं हो पाया है कि सरकार इस निर्णय को स्वीकार करेगी या नहीं। खान को वर्ष 2004 में नजरबंद किया गया था। इसी वर्ष फरवरी में इस्लामाबाद उच्च न्यायालय ने उन्हें 'स्वतंत्र व्यक्ति' घोषित किया था परंतु बाद में उन पर बंदिशें जारी रहीं।

उल्लेखनीय है कि खान पर ईरान, लीबिया और उत्तर कोरिया को परमाणु तकनीक बेचने का आरोप है। पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने उन्हें माफी दे दी थी लेकिन उनकी आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

बीमा दावे के निपटारे में देरी, सेना पर जुर्माना।


दिल्ली उच्च न्यायालय ने “विकलांग पेंशन योजना” के तहत एक सैन्यकर्मी के बीमा दावे का निपटारा करने का सेना को कल निर्देश दिया और साथ ही इस मामले में उदासीन रवैया अपनाने पर सेना पर 25 हजार रूपये का जुर्माना भी लगाया।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुदर्शन मिश्रा की एक खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को अदालत आने को मजबूर करने के लिए बतौर जुर्माना 25 हजार रूपये देने का सेना प्रमुख को निर्देश दिया। न्यायालय ने कहा कि सैन्यकर्मी को बीमा दावे के निपटारे के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाना पडा।

न्यायालय ने यह आदेश श्री सिंघेश्वर सिंह की याचिका पर दिया। श्री सिंह को सेना में नौकरी के दौरान विकलांगता के कारण सेवानिवृत्त होना पडा था। याचिकाकर्ता ने कहा कि विकलांग होने के मामले में किसी व्यक्ति के लाभों के लिए नियम स्पष्ट है लेकिन सेना ने इसका पालन करने से इंकार कर दिया। इस की वजह से याचिकाकर्ता को न्याय पाने के लिए अदालत आना पडा।

संविदा नरेगाकर्मियों को हटाने पर रोक।

राजस्थान हाई कोर्ट ने नरेगा (राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना) के तहत संविदा पर काम कर रहे ग्राम रोजगार सहायकों, सहायक लेखाकारों, कंप्यूटर सहायकों सहित अन्य कर्मचारियों के हटाने की प्रक्रिया पर शुक्रवार को रोक लगा दी। साथ ही पंचायतीराज विभाग के सचिव व निदेशक सहित सीकर के जिला कलेक्टर को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। 
न्यायाधीश अजय रस्तोगी ने यह आदेश राजेश कुमार यादव व अन्य की ओर से दायर तीन यचिकाओं पर प्रारंभिक सुनवाई करते हुए दिया है। यह आदेश याचिकाकर्ताओं के मामले में ही प्रभावी रहेगा। याचिका में कहा है कि नरेगा के तहत 2008 में विभिन्न पंचायत समितियों में संविदा के आधार पर हजारों रोजगार सहायकों एवं अन्य पदों पर अभ्यर्थियों को नियुक्त किया था। 

याचिकाकर्ता भी नीम का थाना पंचायत समिति में नियुक्त किया गया, लेकिन 3 अगस्त, 2009 को राज्य सरकार ने आदेश जारी कर कहा कि रोजगार सहायक व अन्य पदों पर काम कर रहे लोगों की सेवाएं 31 अगस्त से समाप्त की जा रही हैं और इनकी जगह पर प्लेसमेंट एजेंसी के जरिए नियुक्ति की जाएगी। राज्य सरकार के इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी। 

याचिकाओं में कहा कि वित्त विभाग ने जुलाई में एक परिपत्र में इन पदों पर प्लेसमेंट एजेंसी के जरिए नियुक्ति कराने का निर्णय लिया है। सरकार का यह निर्णय असंवैधानिक है क्योंकि संविदाकर्मियों को हटाकर उनकी जगह नए संविदा कर्मियों को नियुक्त किया जा रहा है, इसलिए सरकार के आदेश पर रोक लगाई जाए। न्यायाधीश ने याचिकाओं पर सुनवाई कर सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह न तो याचिकाकर्ताओं को उनके पदों से हटाए, न उनके पदों पर संविदा के आधार पर नई नियुक्तियां करे। हालांकि न्यायाधीश ने सरकार को यह स्वतंत्रता दी है कि यदि वह चाहे तो इन पदों को नियमित भर्ती से भर सकती है।

आपत्तिजनक हालात में मिला मजिस्ट्रेट गिरफ्तार, रिहा।

तीस हजारी कोर्ट के एक मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट को समालखा थाने की पुलिस ने बुधवार देर रात जब एक गुप्त सूचना पर पंजाबी मोहल्ला स्थित एक मकान में छापा मारा तो वहां वह एक लड़की के साथ आपत्तिजनक हालत में देखे गए। उनके साथ दो अन्य लोग भी थे। मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट का नाम राजकुमार अग्रवाल है। पुलिस ने युवती के साथ आपत्तिजनक हालात में पड़े तीनों पुरुषों को धर दबोचा। 
आरोपी सुभाष दूहन, शमशेर और युवती दीप्ति उर्फ बॉबी को शुक्रवार को कुमुद गुगनानी (जूनियर डिविजन कम मजिस्ट्रेट फस्र्ट क्लास) की अदालत में पेश किया गया। वहां से शमशेर को 20 हजार और दीप्ति को 5 हजार बेल बाउंड पर बेल दे दी गई, वहीं मकान मालिक सुभाष दूहन की बेल एप्लीकेशन खारिज कर दी गई। उनको न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। उधर समालखा थाना पुलिस ने मजिस्ट्रेट को गुरुवार रात को छोड़ दिया।


समालखा थाना प्रभारी कप्तान शर्मा का कहना है कि दिल्ली हाईकोर्ट को फैक्स भेजकर मजिस्ट्रेट के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति मांगी गई है। हाईकोर्ट से अनुमति नहीं मिली है। इसी वजह से मजिस्ट्रेट को छोड़ दिया गया है। हाईकोर्ट की अनुमित मिलने के बाद ही आगे की कार्रवाई की जाएगी। पुलिस ने मजिस्ट्रेट को गिरफ्तार नहीं किया था। पुलिस ने आरोपी सुभाष दूहन, शमशेर और दीप्ति उर्फ बॉबी को गुरुवार को भी अदालत में पेश किया था।
राजकुमार अग्रवाल और उनके दो साथियों को एक काल गर्ल के साथ पकड़े जाने के मामले को लेकर हाईकोर्ट परिसर में चर्चा का दौर शुरू हो गया है। वकील इस मामले में नैतिकता और पारदर्शिता के सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि जज के खिलाफ भी उसी तरह कार्यवाही होनी चाहिए, जिस तरह उसके दो अन्य साथियों के खिलाफ कार्रवाई हुई है। जजों के इस तरह के आचरण को बेहद शर्मनाक बताते हुए वरिष्ठ वकील वीके ओहरी ने कहा कि इस मामलें में तुरंत और कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए थी। आखिर उनके खिलाफ कार्रवाई में इतनी देर किस वजह से हो रही है। 

जिस तरह इस मामले से जुड़े अन्य दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है, न्याय का तकाजा यही है कि हाईकोर्ट को इन जज महोदय के खिलाफ भी कार्रवाई की तुरंत इजाजत दे देनी चाहिए। ओहरी ने कहा कि सभी आरोपियों के साथ एक समान व्यवहार होना जरूरी है। दूसरी ओर कई लोग इस मामले में मौजूदा समय के हालात को ज्यादा दोषी मानते हैं, उनका कहना है कि जो पकड़ा गया वो चोर है। लेकिन, ऐसा तो नहीं है कि उनके अलावा अन्य लोग इस तरह के मामलों में संलिप्त नहीं होते हैं।

Friday, August 28, 2009

जयपुर बम घमाका के आरोपियों ने ब्रेन मैपिंग व नारको टेस्ट करवाने से मना किया।

जयपुर शहर के सीजेएम (मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट) ने जयपुर बम घमाका कांड के तीन आरोपियों के ब्रेन मैपिंग नारको टेस्ट करवाने से इनकार कर दिया है। साथ ही एटीएस के उस प्रार्थन पत्र को खारिज कर दिया जिसमें बम कांड के तीन आरोपियों मोहम्मद सैफ, मोहम्मद सरवर आजमी सैफुर्रहमान के नारको अन्य टेस्ट करवाने की गुहार की थी।
प्रार्थन पत्र एटीएस के अतिरिक्त पुलिस अघीक्षक सत्येन्द्र सिंह राणावत ने दायर किया था। इसमें कहा कि आरोपी अनुसंघान कार्य में सहयोग नहीं कर रहे हैं। पूछताछ के बाद भी बम कांड से जुडे कुछ प्रश्न अनुत्तरित हैं, इसलिए अभियोजन की कहानी की कडी को जोडने पूरी करने के लिए इनके ब्रेन मैपिंग नारकों टेस्ट करवाए जाने की अनुमति दी जाए।
सीजेएम महावीर स्वामी ने प्रार्थन पत्र पर सुनवाई करते हुए कहा कि केस डायरी के अवलोक से स्पष्ट कि इसी कोर्ट ने पूर्व में भी 30 अप्रैल 09 को सैफुर्रहमान के नारकों टेस्ट करवाए जाने से इनकार कर दिया था।
उस समय भी एटीएस ने कहा था कि जयपुर बम कांड से जुडे आंतककारियों के नेटवर्क का पता लगाने के लिए सैफुर्रहमान के नारको टेस्ट की अनुमति दी जाए। नारको ब्रेन मैपिंग टेस्ट आरोपी को एनेस्थीसिया के जरिए कॉन्शियस कर किया जाता है इस स्थिति में उनके बयान न्यायालय में पठनीय नही हैं। चूंकि प्रकरण में अप्रैल 09 से अभी तक कोई बदलाव नहीं आया है, इसलिए प्रार्थन पत्र खारिज किए जाने योग्य है।

जेल में फोन की सुविधा क्यों ना हो? कोर्ट ने मांगी रिपोर्ट

शिवानी भटनागर मर्डर केस में उम्रकैद की सजा काट रहे आर। के. शर्मा के उस लेटर पर दिल्लीहाई कोर्ट ने सरकार से रिपोर्ट मांगी है, जिसमें कहा गया है कि जेल में बंद कैदियों को उनके परिजनों से फोन पर बात करने की इजाजत होनी चाहिए। इससे उसकी मानसिक स्थिति पर विपरीत असर नहीं पड़ेगा। हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से कहा गया कि इससे फोन का गलत इस्तेमाल भी हो सकता है। बहरहाल, अदालत ने इस बाबत सरकार से विस्तार से बताने को कहा है। साथ ही एमिकस क्यूरी (कोर्ट की सहायता के लिए कोर्ट द्वारा नियुक्त वकील) नियुक्त कर उन्हें सुझाव देने को कहा है।

पिछले दिनों एक विजिटिंग जज ने जब तिहाड़ का दौरा किया था, तभी वहां बंद शर्मा ने उन्हें कहा कि जेल में फोन की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि कैदी अपने परिजनों से बात कर सकें। इस बारे में शर्मा ने हाई कोर्ट को एक लेटर भी लिखा था। कोर्ट ने इस पर संज्ञान लेते हुए सरकार से जवाब देने को कहा था। सरकार की ओर से कहा गया कि यह सुविधा नहीं दी जा सकती क्योंकि इसका दुरुपयोग होने का भारी खतरा है और यह अंदेशा है कि इसका गलत इस्तेमाल होगा। भारत की किसी जेल में ऐसी व्यवस्था नहीं है। सरकार से जब पूछा गया कि विदेश में यह सुविधा है या नहीं, तो जवाब मिला कि इस बारे में उन्हें नहीं पता। हाई कोर्ट ने इस मामले में विस्तार से रिपोर्ट देने के लिए 7 अक्टूबर की तारीख तय की है।

Thursday, August 27, 2009

उच्च न्यायालय ने राजस्थान सरकार से पूछा कैसे तय की स्कूलों की फीस?

राजस्थान उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर पूछा है कि गैर अनुदानित निजी स्कूलों की फीस बढ़ोतरी की सीमा किस आधार पर तय की।

मुख्य न्यायाधीश जगदीश भल्ला व न्यायाधीश मनीष भण्डारी की खण्डपीठ ने सोसायटी फॉर अनएडेड प्राईवेट स्कूल्स ऑफ राजस्थान व अन्य की याचिकाओं पर बुधवार को प्राथमिक सुनवाई के बाद नोटिस जारी किया। प्रार्थीपक्ष की ओर से अधिवक्ता ने न्यायालय को बताया कि राज्य सरकार ने जून 09 में निजी स्कूलों को शिक्षा सत्र 2007-08 से 2009-10 के बीच अधिकतम 27.5 से 32.5 प्रतिशत तक ही फीस बढ़ोतरी की छूट दी। 

प्रार्थीपक्ष ने आदेश को चुनौती देते हुए कहा कि उच्चतम न्यायालय गैर अनुदानित निजी शिक्षण संस्थाओं की फीस से सम्बन्घित विभिन्न मामलों में स्कूल को व्यवसाय की श्रेणी में मान चुका है। न्यायालय ने इस मामले में मुख्य सचिव व प्रमुख शिक्षा सचिव के जरिए राज्य सरकार से जवाब तलब किया है।

बटाला हाउस मुठभेड : जांच का आदेश देने से मना

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी) की जांच पर पूरा भरोसा जताते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले साल दिल्ली में हुई बाटला हाउस मुठभेड़ मामले में बुधवार को किसी भी तरह की अन्य जांच का आदेश देने से इंकार कर दिया। 
बाटला हाउस मुठभेड़ के दौरान एक इंस्पेक्टर शहीद हो गया था और दो संदिग्ध आतंकवादी मारे गए थे। मुख्य न्यायाधीश अजीत प्रकाश शाह और न्यायाधीश मनमोहन की खंडपीठ ने 19 सितम्बर 2008 को हुई मुठभेड़ की एक विशेष जांच दल से न्यायिक जांच की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया। 
दक्षिण दिल्ली के जामिया नगर इलाके में हुई इस मुठभेड़ की जांच के लिए 'एक्ट नाउ फॉर हारमोनी एंड डेमोक्रेसी' (अनहद) नामक मानवाधिकार संगठन ने याचिका दायर की थी। अपने विस्तृत आदेश में पीठ ने कहा कि एनएचआरसी एक संवैधानिक संस्था है और इस मामले में उसकी जांच संतोषप्रद है। मामले को जांच के लिए किसी तीसरे पक्ष के पास भेजना हमारे लिए बहुत कठिन है। न्यायालय ने कहा कि एनएचआरसी की प्रतिष्ठा और गरिमा कायम रहनी चाहिए और इस समय जांच किसी अन्य एजेंसी के हवाले करने की सलाह नहीं दी जा सकती।

मध्यस्थता विधेयक में संशोधन पर विचार:मोइली

कानून मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने आज कहा कि मध्यस्थता में विलंब के मद्देनजर केंद्र सरकार मध्यस्थता और मेलमिलाप विधेयक 1968 में संशोधन करने पर विचार कर रही है।
मोइली ने कहा कि मध्यस्थता में देरी के कारण सरकार मौजूदा कानून में संशोधन पर विचार कर रही है। उन्होंने कहा कि देर के कारणों पर विचार के लिए एक समिति भी गठित की जा रही है।
वैकल्पिक विवाद समाधान प्रकोष्ठ (एडीआर) का उद्घाटन करने के बाद मोइली ने मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि इस प्रकोष्ठ का मकसद मुकदमेबाजी को खत्म करना नहीं बल्कि अदालतों में लगने वाले समय में कमी लाना है।
उन्होंने कहा कि यह न सिर्फ किफायती है बल्कि इसमें समय भी कम लगेगा और इसमें शिकायतकर्ता तथा प्रतिवादी को फायदा होगा क्योंकि इसमें शिकायतों का हल मेलमिलाप से होगा। मोइली ने कहा कि उच्चतम न्यायालय में इस साल 30 जून तक 52592 मामले लंबित थे वहीं दिसंबर 2007 तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 71680 तथा कोलकाता उच्च न्यायालय में 49417 मामले लंबित थे।
मंत्री ने कहा कि एडीआर वक्त की मांग है। उन्होंने कहा कि एडीआर को आंदोलन का रूप देने की आवश्कता है। इसके लिए कानूनी साक्षरता की जरूरत है।

बीकानेर में वकील बेमियादी हड़ताल पर ।

बीकानेर में हाई कोर्ट की बैंच स्थापित करने की मांग को लेकर वकील समुदाय ने बेमियादी हड़ताल की राह पकड़ ली है। मंगलवार को हुई बार एसोसिएशन की बैठक में वकीलों ने बेमियादी हड़ताल और राजनीति, सामाजिक व अन्य संगठनों का समर्थन हासिल करने का प्रस्ताव पारित किया। 

वकीलों ने मंगलवार को भी वर्क सस्पेंड रखा। बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एडवोकेट जरनैलसिंह टूरना ने बताया कि आगामी दिनों में राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक व अन्य संगठनों के साथ बैठक कर बीकानेर में हाईकोर्ट की बैंच स्थापित करने की मांग पर समर्थन मांगा जाएगा।

मंगलवार को हुई बैठक में बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष राकेश मिड्ढ़ा, एडवोकेट भूरामल स्वामी, चरणदास कंबोज, जितेंद्र किनरा, केशोराम गर्ग, जसासिंह आदि ने कहा कि बीकानेर में हाईकोर्ट की बैंच स्थापित होने से संभाग के लोगों को सस्ता न्याय सुलभ होगा।

वकील को फीस नही देने के मामले में अदालत ने सन्नी देओल को नोटिस दिया।


फिल्म शूटिंग के दौरान नरैना रेलवे स्टेशन पर रेल रोकने के मामले में पैरवी करने वाले वकील को तयशुदा फीस नहीं देना। फिल्म अभिनेता सन्नी देओल को भारी पड गया है। इस मामले में जिला व सत्र न्यायाघीश क्रम-आठ जयपुर शहर ने सन्नी देओल को नोटिस देकर हाजिर होने को कहा है।
अदालत ने यह आदेश अघिवक्ता सुरेश कुमार साहनी के फीस वसूलने के लिए दायर परिवाद पर प्राथमिक सुनवाई के बाद सुनाए। मामले की अगली तारीख पेशी तीन अक्टूबर, 2009 है। परिवादी के अघिवक्ता मुकेश घाकड ने अदालत में दायर परिवाद में बताया कि फिल्म बजरंगी की शूटिंग के दौरान नरेना स्टेशन पर रेल रोकने के मामले में अभियुक्त अभिनेता सन्नी देओल ने राजस्थान हाईकोर्ट तथा अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (रेलवे) जयपुर में जमानत मुचलके पेश करने आदि कार्य में पैरवी के लिए सुरेश कुमार साहनी को वकील किया। इसकी फीस एक लाख चालीस हजार रूपए तय हुई। शुरू आत में सन्नी देओल ने करीब 22 हजार रूपए का एक चेक वकील को दिया, लेकिन शेष राशि नहीं दी। सन्नी देओल को कई नोटिस भी दिए गए, लेकिन उसने यह राशि नहीं लौटाई। बिना अनुमति के रोकी ट्रेन: करीब 12 साल पहले बजरंगी फिल्म की शूटिंग के दौरान नरेना रेलवे स्टेशन पर रेल को बिना इजाजत रोक लिया।
इस पर फुलेरा जीआरपी थाना पुलिस में अभिनेत्री करिश्मा,अभिनेता सन्नी देओल, सतीश शाह व टीनू वर्मा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हुई। मामले में रेलवे अदालत ने रेलवे अघिनियम की घारा 141,145,146 व 147 के तहत प्रसंज्ञान ले चारों को जमानत वारंट से तलब किया। बाद में चारों ने जमानत करवाई। अभी मामला रेलवे अदालत में विचाराघीन है।

सुप्रीम कोर्ट के जज संपत्ति का ब्यौरा देंगे।

जजों की संपत्ति की घोषणा किए जाने के चौतरफा दबाव के बीच सुप्रीम कोर्ट के सभी जज अपनी संपत्तियों का ब्योरा देने को सहमत हो गए हैं। शीर्ष अदालत एक सूत्र ने बताया कि मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन की अध्यक्षता में दो घंटे तक चली बैठक के बाद जजों ने अपनी संपत्ति सार्वजनिक करने के सैद्धांतिक फैसले पर मुहर लगा दी। वे अपनी संपत्ति की घोषणा सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर जल्द ही कर देंगे।
भारत सरकार के पूर्व अटॉर्नी जरनल सोली सोराबजी और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने इस फैसले का स्वागत किया है। सोली सोराबजी कहते हैं कि न्यायपालिका में इतना भ्रष्टाचार नहीं हैं कि उसे छुपाने की ज़रूरत पड़े लेकिन हां, न्यायपालिका के बारे में कुछ अविश्वास ज़रूर हैं।दरअसल कुछ महीनों में ही भारत में ये मांग उठी है कि अगर चुनाव के समय नेता अपनी संपत्ति का ब्यौरा दे सकते हैं तो जजों को ऐसा करना चाहिए। सरकार ने इस बारे में कानून बनाने से इनकार करते हुए गेंद जजों के ही पाले में डाल दी और कहा कि इसका फ़ैसला जज ख़ुद करें। 
सूत्रों ने बताया कि कानून के रूप में स्वीकृत यह फैसला सभी जजों के दस्तखत के बाद ही लागू हो गया है। उधर केंद्रीय कानून मंत्री एम. वीरप्पा मोइली ने बुधवार को संपत्ति घोषणा मामले में मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन के रुख पर सहमति जताई और कहा कि यदि जज स्वैच्छिक रूप से अपनी संपत्ति घोषित करना और हीरो बनना चाहते हैं तो यह उनकी सदिच्छा है। इससे पहले पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के जज के. कन्नन तथा कर्नाटक हाईकोर्ट के जज शलेंद्र कुमार ने अपनी संपत्ति की घोषणा की थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के जजों पर भी नैतिक दबाव बढ़ गया था। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बालाकृष्णन जजों द्वारा संपत्ति घोषित किए जाने की मांग ठुकरा चुके थे। कर्नाटक हाईकोर्ट के जज शैलेंद्र कुमार ने एक अखबार में लिखा था कि चीफ जस्टिस को शीर्ष अदालत के सभी जजों की ओर से बोलने का कोई अधिकार नहीं है। इस पर रविवार को मुख्य न्यायाधीश ने उन्हें पब्लिसिटी क्रेजी बताया था।

न्यायाधीश जांच विधेयक अगले सत्र में।

न्यायाधीशों की सम्पत्ति से सम्बंधित विधेयक राज्यसभा में पेश करने में विफल रहने के बावजूद सरकार संसद के अगले सत्र में न्यायाधीश जांच विधेयक लाने की योजना बना रही है। प्रस्तावित विधेयक में गलत आचरण की स्थिति में उच्च न्यायपालिका के सदस्यों के खिलाफ कदम उठाने से सम्बंधित प्रक्रिया का उल्लेख होगा।

कानून मंत्री एम. वीरप्पा मोइली ने सोमवार को कहा कि मौजूदा न्यायाधीश जांच कानून, 1968 में सिर्फ महाभियोग प्रक्रिया का जिक्र है। अगर कोई शिकायत की जाती है तो सरकार कुछ नहीं कर सकती क्योंकि इसमें शिकायतों की जांच का कोई प्रावधान नहीं है। 

उन्होंने कहा कि नए विधेयक से न्यायपालिका में जवाबदेही बढ़ेगी क्योंकि शिकायतों की जांच के लिए कानून होगा। हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि सरकार का इरादा न्यायपालिका पर अपनी मर्जी चलाने का नहीं है। नए विधेयक को तैयार करने में न्यायपालिका का सहयोग भी लिया जाएगा।


मोइली से जब पूछा गया कि क्या न्यायाधीश सम्पत्ति विधेयक अब संसद के अगले सत्र में पेश किया जाएगा, तो उन्होंने जवाब हां में दिया। उल्लेखनीय है कि विपक्ष के विरोध के कारण सरकार संसद के बीते सत्र में न्यायाधीश सम्पत्ति विधेयक पेश नहीं कर सकी थी।

Wednesday, August 26, 2009

अदालत की शरण में पहुंचे बूटा।

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष बूटा सिंह ने सीबीआई के नोटिस को चुनौती देने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट की शरण ली जिसने अपने पुत्र के खिलाफ कथित रिश्वत मामले में उन्हें गवाह के तौर पर पेश होने का आदेश दिया था। बूटा सिंह की याचिका पर संभवत: बुधवार को सुनवाई होगी। 

उन्होंने सीबीआई द्वारा स्वयं को सौंपे उस नोटिस को खारिज करने की मांग की है जिसमें उन्हें अपने पुत्र सरबजीत सिंह के खिलाफ कथित रिश्वत मामले में गवाह के तौर पर पेश होने के लिए कहा गया है। बूटा सिंह ने अपनी याचिका में तर्क दिया है कि वह कैबिनेट मंत्री पद के बराबर के पद पर हैं और जांच एजेंसी सरकार से मंजूरी लिए बिना उनसे सवाल जवाब नहीं कर सकती। बूटा ने अपनी याचिका में कहा, कि सीबीआई द्वारा नोटिस जारी करना दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम का उल्लंघन है जिसके अनुसार उप सचिव के पद से उपर के लोक सेवक से पूछताछ के लिए सरकारी मंजूरी आवश्यक है। उन्होंने यह भी कहा कि सीबीआई ने अपने नोटिस में यह स्पष्ट नहीं किया है कि उन्हें इस मामले में गवाह के तौर पर पेश होने के लिए कहा गया है या आरोपी के तौर पर। 

बूटा सिंह के पुत्र को सीबीआई ने 31 जुलाई को कथित तौर पर नासिक के एक ठेकेदार से एक करोड़ रुपये की रिश्वत मांगने के आरोप में गिरफ्तार किया था।

जसवंत की किताब पर प्रतिबंध को हाईकोर्ट में चुनौती।

पूर्व भाजपा नेता जसवंत सिंह की विवादित पुस्तक पर लगाए गए प्रतिबंध को गुजरात हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। इस संबंध में सोमवार को दाखिल की गई याचिका पर एक-दो दिन में सुनवाई की उम्मीद है। जसवंत सिंह की विवादित पुस्तक ‘जिन्ना : इंडिया, पार्टीशन, इंडिपेंडेंस’ को लेकर पूरे देश में बवाल मचा हुआ है। गुजरात सरकार ने राज्य में पुस्तक की बिक्री पर प्रतिबंध लगा रखा है, जिसके विरोध में नवनिर्माण आंदोलन के नेता मनीषी जानी व मशहूर लेखक प्रकाश न. शाह ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है। याचिकाकर्ता राज्य सरकार के आदेश को रद्द करने की मांग कर रहे हैं।

याचिका में कहा गया है कि पुस्तक को प्रतिबंधित करने के बारे में 19 अगस्त को राज्य सरकार की ओर से जारी अधिसूचना गैरकानूनी व असंवैधानिक है। यह लोगों की पढ़ने-लिखने की स्वतंत्रता पर प्रहार है और 1973 के संशोधित सीआरपीसी की धारा 96 के प्रावधानों के खिलाफ है।

रीता बहुगुणा के घर आगजनी मामले में, मायावती समेत 4 को नोटिस।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी के घर हुई आगजनी और तोड़फोड़ के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने मुख्यमंत्री मायावती समेत 4 को नोटिस जारी कर अदालत में जबाब देने का आदेश दिया है। हाई कोर्ट ने मायावती के अलावा केन्द्रीय गृह सचिव, सीबीआई के निदेशक, राज्यपाल के प्रमुख सचिव, उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव गृह व थाना हुसैनगंज के प्रभारी निरीक्षक को भी नोटिस जरी कर अदालत में अपना जबाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही हाई कोर्ट ने जोशी की याचिका की सुनवाई के लिए १३ अक्टूबर की तारीख तय कर दी।
न्यायमूर्ति अब्दुल मतीन और न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार सिंह की खंडपीठ ने सीबीसीआईडी से भी रीता बहुगुणा के घर में हुई आगजनी के मामले में अपनी जंच रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा। रीता बहुगुणा जोशी ने गत १५ जुलाई की रात लखनऊ स्थित उनके आवास में हुई आगजनी और तोड़फोड़ के मामले में दाखिल अपनी याचिका में इन सभी को पक्षकार बनाया था। जोशी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी, इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता उमेश नारायण शर्मा, राकेश मिश्रा और इशहाक फारूकी उपस्थित हुए।

विदेशी वकीलों को प्रैक्टिस की इजाजत अभी नहीं : मोइली

देश में वकीलों के विरोध को देखते हुए सरकार ने विदेशी लॉ फर्म्स को भारत में काम करने की अनुमति देने पर अभी कोई फैसला नहीं लिया है। यह बात विधि मंत्री वीरप्पा मोइली और ब्रिटेन के विधि मामलों के संसदीय उपसचिव लॉर्ड विलियम बैच के बीच मुलाकात में सामने आई।

बैच ने देश में विदेशी वकीलों को प्रैक्टिस की इजाजत दिए जाने पर जोर देते हुए कहा था कि अगर ऐसा नहीं हो सका तो कम से कम उन्हें अपने भारतीय सहयोगियों को सलाह देने की इजाजत मिलनी चाहिए। जवाब में मोइली ने उनसे कहा कि भारतीय वकीलों को भरोसे में लिए बगैर इस मुद्दे पर कोई फैसला नहीं लिया जा सकता। भारतीय वकील विदेशी वकीलों को प्रैक्टिस की इजाजत देने के खिलाफ हैं। उनका मानना है कि इससे उनके हित प्रभावित होंगे।

बालाकृष्णन अपनी संपत्ति सार्वजनिक करें।

न्यायाधीशों की संपत्ति सार्वजनिक करने को लेकर जारी बहस पर अप्रसन्नता जताते हुए उच्चतम न्यायालय के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जेएस वर्मा ने कहा है कि वर्तमान मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन को पहले अपनी संपत्ति सार्वजनिक कर इस विवाद को खत्म करना चाहिए। उन्होंने दावा किया कि अधिकतर न्यायाधीश संपत्ति सार्वजनिक करने के लिए राजी हैं।

न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के कई न्यायाधीशों ने उनके साथ व्यक्तिगत बातचीत में स्वीकार किया है कि वे ऐसा करने को तैयार हैं। न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा कि बस मैं चाहता हूँ कि मुख्य न्यायाधीश अपनी संपत्ति सार्वजनिक कर इस विवाद का पटाक्षेप करें। न्यायमूर्ति वर्मा ने भरोसा जताया कि जो न्यायाधीश अपनी संपत्ति सार्वजनिक करने को राजी हैं, वे मुख्य न्यायाधीश द्वारा अपनी संपत्ति सार्वजनिक किए जाने के बाद तुरंत ही ऐसा करेंगे और न्यायपालिका के खिलाफ अरुचिकर बहस का अंत हो जाएगा। प्रधान न्यायाधीश द्वारा इस मामले पर आम सहमति की आवश्यकता बताए जाने पर न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा कि यह पहले से ही है।

Tuesday, August 25, 2009

नेपाल के उप-राष्ट्रपति को अपने पद की शपथ पुनः राष्ट्रीय भाषा में लेने का आदेश: उच्च न्यायलय

नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय ने, देश के उप-राष्ट्रपति को आदेश दिया है कि वह, अपने पद की शपथ फिर से, नेपाली भाषा मे लें अन्यथा उन्हें अपने पद से हटना होगा। न्यायलय ने ये आदेश दिया है कि उप-राष्ट्रपति, परमानन्द झा ने पिछले वर्ष, जो शपथ ली थी वो अमान्य है क्योंकि उन्होंने वह हिंदी में ली थी।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश ने कल रविवार को, एक आदेश पर हस्ताक्षर किये थे जिसमें उनसे कहा गया है कि उप -राष्ट्रपति ७ दिनों के अन्दर, फिर से शपथ ले अथवा उन्हें पद से हटा दिया जाएगा। न्यायालय के इस निर्णय पर उप-राष्ट्रपति ने, कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन इससे पहले उन्होंने, अपने पद की शपथ फिर से लेने की मांगों को मानने से इनकार कर दिया था।
श्री झा के हिंदी भाषा में शपथ लेने को, एक राजनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा है, जिसने नेपाल में भाषा को लेकर बहस शुरू कर दी है, जहां दर्जनों विभिन्न जातीय समुदाय, भिन्न- भिन्न भाषाएं बोलते हैं।

कसाब के व्यवहार पर खबर न दें-कोर्ट

मुम्बई में हुए आतंककारी हमले से सम्बंधित मामले की सुनवाई कर रहे विशेष न्यायाधीश एम एल तहलियानी ने सोमवार को कहा कि मीडिया अदालत में सुनवाई से जुडे पहलुओं के सिवाय और कुछ भी प्रसारित नहीं करें। 

तहलियानी ने मीडिया के लोगों को सख्त चेतावनी देते हुए कहा कि यदि किसी ने भी गिरफ्तार पाकिस्तानी आतंककारी अजमल आमिर कसाब के व्यवहार के सम्बंध में लिखा या टीवी पर कोई बात की गई तो उसके खिलाफ कडी कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

अखंड हाईकोर्ट की मांग पर आज जोधपुर बंद।

राजस्थान हाईकोर्ट मुख्यपीठ जोधपुर बचाओ संघर्ष समिति ने मंगलवार को उच्च न्यायालय के विभाजन की मांग के विरोध में मंगलवार को जोधपुर बंद का आह्वान किया है। बंद को सूर्यनगरी के सवा सौ से ज्यादा संगठनों ने समर्थन दिया है। बंद के दौरान स्कूल, कॉलेज व शिक्षण संस्थाओं सहित संपूर्ण बाजार, पेट्रोल पंप, सिटी बस, ऑटो रिक्शा सेवाएं तथा सिनेमाघर बंद रहेंगे।
चिकित्सा व आपातकालीन सेवाओं सहित रामदेवरा मेले के जातरुओं के लिए लगाए गए शिविर सहित निजी वाहनों के आवागमन को बंद से मुक्त रखा है। संघर्ष समिति के संयोजक आनंद पुरोहित व रणजीत जोशी ने बताया कि उदयपुर में सर्किट बैंच की मांग के विरोध में जारी आंदोलन के आठवें दिन भी वकीलों ने हड़ताल रखी धरना दिया तथा न्यायिक कार्र्यो का बहिष्कार जारी रखा। 
सोमवार अपराह्न् 3 बजे बंद के समर्थन में आयोजित मीटिंग में विभिन्न संगठनों के पदाधिकारियों ने शिरकत कर संघर्ष समिति को भरपूर समर्थन का विश्वास दिलाया।

नोएडा कोर्ट में जज और वकीलों में हाथापाई।

नोएडा के फेस 2 स्थित डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में सोमवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान वकीलों और जज के बीच हाथापाई हो गई। इस घटना के बाद हालात तनावपूर्ण हो गए। कोर्ट परिसर में पीएससी लगा दी गई है। उधर, वकील हड़ताल पर चले गए हैं। 

जानकारी के मुताबिक डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में दहेज मामले में फंसे एक वकील के केस की सुनवाई हो रही थी। तभी वकील के समर्थन में कुछ और वकील कोर्ट में घुस गए। मामला गर्माने पर जज और वकीलों के बीच हाथापाई हो गई।

एक जज न्यायपालिका को शर्मसार नहीं कर सकता-मुख्य न्यायाधीश

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन का कहना है कि किसी उच्च न्यायालय के एक जज की टिप्पणी को पूरी न्यायपालिका के लिए शर्मनाक कहना ठीक नहीं है। नई दिल्ली में पत्रकारों के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, "सिर्फ़ एक जज की टिप्पणी से पूरी न्यायपालिका कैसे शर्मिंदा हो सकती है. ये एक बड़ी संस्था है।"
बालाकृष्णन ने ये टिप्पणी उस सवाल के जवाब में की, जब उनसे पूछा गया कि क्या कर्नाटक हाई कोर्ट के जज शैलेंद्र कुमार की टिप्पणी न्यायपालिका के लिए शर्मनाक है।
शैलेंद्र कुमार ने जजों की संपत्ति की घोषणा के मामले में मुख्य न्यायाधीश के अधिकार पर सवाल उठाया था और कहा था कि इस मामले में वो सभी जजों की ओर से नहीं बोल सकते हैं।
मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा कि उन्होंने न्यायाधीशों के बारे में कुछ सामान्य बातें कहीं थी और मुझे लगता है मुझे इसका अधिकार प्राप्त है। उल्लेखनीय है कि कर्नाटक हाईकोर्ट के न्यायाधीश शैलेंद्र कुमार ने संपत्ति की घोषणा के बारे में हाईकोर्ट के तमाम न्यायाधीशों की ओर से प्रधान न्यायाधीश के बोलने के अधिकार पर सवाल खड़े किए थे। इसके बाद रविवार को प्रधान न्यायाधीश ने न्यायाधीश कुमार को प्रचार की चाह रखने वाला बताया था और कहा था कि इस तरह की चीजें किसी न्यायाधीश के लिए अच्छी नहीं हैं। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की संपत्तिकी घोषणा के मामले पर आम सहमति पर पहुंचने की जरूरत है। 

बालाकृष्णन ने कहा कि हाईकोर्ट के प्रत्येक न्यायाधीश को अपनी संपत्ति की घोषणा की स्वतंत्रता है। सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीशों के बीच इस पर आम सहमति बनाने की जरूरत है और इसके बाद हम तय करेंगे। उन्होंने कहा कि सुप्रीमकोर्ट संपत्तिकी घोषणा के मामले में हाईकोर्ट के न्यायाधीशों को सलाह नहीं देता और उन्होंने जो बयान जारी किया था, वह सामान्य प्रकृति का था। 

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मैंने कहा कि हाईकोर्ट के प्रत्येक न्यायाधीश को संपत्तिकी घोषणा की स्वतंत्रता है और हमें इससे कोई दिक्कत नहीं है। इस मामले पर हम हाईकोर्ट के न्यायाधीशों को कोई सलाह नहीं देते। मुझे कुछ सामान्य बातें कहीं थी। मुझे लगता है कि मुझे इसका अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के किसी आम सहमति पर पहुंचने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि अभी तक कोई आम सहमति नहीं बनी है


लाभ के पद का कानून संवैधानिकः सुप्रीमकोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को लाभ के पद के कानून में किए गए एक संशोधन को बरकरार रखा है। इस संशोधन में कुछ पदों को इस कानून से मुक्त रखने की बात कही गई थी। तीन साल पहले समाजवादी पार्टी की सांसद जया बच्चन को अयोग्य ठहराए जाने के बाद उठे विवाद के बीच इस कानून को लाया गया था। 

चीफ जस्टिस के. जी. बालाकृष्णन की बेंच ने कहा कि संसद ने पार्लियामेंट (प्रिवेंशन ऑफ डिस्क्वॉलिफिकेशन) अमेंडमेंट ऐक्ट लाकर अपने अधिकार क्षेत्र का ही इस्तेमाल किया है। संसद यह तय कर सकती है कि किस पद को लाभ का पद नहीं माना जाए। 

अदालत ने यह आदेश गुजरात बेस्ड एनजीओ कंस्यूमर एजुकेशन रिसर्च सोसायटी की जनहित याचिका पर दिया। इसमें यूपीए सरकार द्वारा लाए गए विवादित संशोधन को चुनौती दी गई थी। इसमें कुछ पदों को लाभ के पद की श्रेणी से बाहर किया गया था। 

तब इस संशोधन को लेकर इसलिए विवाद उठा था क्योंकि जिन पदों को इस कानून से अलग रखने की मांग की गई थी, उसमें राष्ट्रीय परामर्श परिषद का अध्यक्ष पद भी था, जो तब सोनिया गांधी संभाल रही थीं। हालांकि सोनिया ने आयोग्य करार दिए जाने से बचने के लिए सांसद के तौर पर और इस पद से इस्तीफा दे दिया था और रायबरेली संसदीय क्षेत्र से दोबारा चुनाव लड़ा था। 

तृणमूल कांग्रेस के सांसद दिनेश त्रिवेदी और एनजीओ द्वारा दायर दो अलग-अलग याचिकाओं में लाभ के पद पर संसद के संशोधन अधिनियम को यह आरोप लगाते हुए चुनौती दी गई है कि यह केवल संसद के 40 मौजूदा सदस्यों को बचाने के लिए पूर्वव्यापी प्रभावों से पारित किया गया था।

Sunday, August 23, 2009

केवल नामित नहीं बल्कि सभी उत्तराधिकारी अधिकारी-सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि पत्नी के उत्तराधिकार का अधिकार सिर्फ इसलिए खत्म नहीं हो जाता कि पति ने विवाह से पहले अपनी मां को प्रोविडेंट फंड एवं सेवानिवृत्ति के अन्य लाभों में नामित किया था।
न्यायाधीश दलवीर भंडारी और मुकुंदकम शर्मा की पीठ ने कहा कि कोई नामित सिर्फ इसलिए स्वत: अधिकार प्राप्त नहीं कर लेता, क्योंकि उसे मृतक को प्राप्त होने वाली राशि के लिए नामित किया गया था। सरबती देवी मामले का उदाहरण देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बीमा कराने वाले की मौत हो जाने पर जीवन बीमा के तहत दी जाने वाली राशि का लाभ किसी को सिर्फ इसलिए नहीं मिल सकता कि नामित में उसका नाम था।
अदालत ने कहा कि राशि के लिए बीमित व्यक्ति के उत्तराधिकारी भी दावा कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने विधवा शिप्रा सेनगुप्ता की याचिका पर यह फैसला दिया। शिप्रा ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी जिसमें हाईकोर्ट ने फैसला दिया था कि निहारबाला सेनगुप्ता को लाभ मिलना चाहिए क्योंकि बेटे ने विवाह से पहले उन्हें नामित किया था। भारतीय स्टेट बैंक में काम करने वाली शिप्रा के पति श्यामल गुप्ता की 1990 में मौत हो गई थी जिसके बाद उत्तराधिकार की लड़ाई शुरू हो गई थी।

संजीव नंदा को तीन महीने पहले मिली जेल से रिहाई।

बीएमडब्लू हिट एंड रन मामले में तिहाड़ में दो वर्ष कैद की सजा काट रहे संजीव नंदा को अच्छे आचरण के कारण शुक्रवार को तीन महीने पहले ही जेल से रिहा कर दिया गया। करीब दस वर्ष तक चली सुनवाई के बाद अदालत ने उसे दो वर्ष के कैद की सजा सुनाई थी। वह तिहाड़ की जेल संख्या चार में बंद था। उसे जेल से ले जाने के लिए शुक्रवार को पिता-मां व उसकी बहन आई थी।

ज्ञात हो कि शराब के नशे में धुत्ता संजीव नंदा ने 10 जनवरी 1999 को अपनी बीएमडब्लू कार से छह लोगों को कुचल दिया था। मरने वालों में तीन पुलिसकर्मी भी थे। अदालत में मामले की लंबी सुनवाई चली। पिछले वर्ष निचली अदालत ने संजीव नंदा को पांच वर्ष की कैद की सजा सुनाई थी। बाद में हाईकोर्ट ने उसकी सजा को पांच वर्ष से घटाकर दो वर्ष की कर दी थी।

जेल के कानून अधिकारी सुनील गुप्ता का कहना है कि जेल में अच्छे आचरण वाले कैदियों को राष्ट्रीय त्योहार के समय हर वर्ष सजा में कुछ छूट दी जाती थी। जेल में रहने के दौरान संजीव नंदा का काफी अच्छा व्यवहार रहा। उसने जेल में कैदियों के उत्थान के कार्यो में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने के साथ ही उन्हें कंप्यूटर और अंग्रेजी की शिक्षा भी दी। इन सभी चीजों को देखते हुए इस वर्ष पंद्रह अगस्त को सजा कम किए गए 600 कैदियों में से संजीव नंदा के नाम की भी संस्तुति की गई थी। बाद में कुछ लोगों समय से पहले छोड़ दिया गया था। इसी घटना क्रम में शुक्रवार को संजीव नंदा को भी आजाद कर दिया गया।

छह सौ जजो से सम्पत्ति घोषित करने के निवेदन पर मात्र एक ने घोषित की।

जजों के संपत्ति घोषित करने को लेकर जारी विवाद के बीच पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट के जज के कण्णन ने खुद पहल करते हुए अपनी संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक कर दी है। इसके साथ ही वे देश के ऐसे एकमात्र जज हो गए हैं जिन्होंने वकील एवं कार्यकर्ता प्रशांत भूषण के जनवरी में लिखे गए पत्र का जवाब दिया है।

भूषण के मुताबिक, उन्होंने देश के विभिन्न हाईकोर्टे के करीब 600 जजों को यह पत्र भेजा है, लेकिन केवल जस्टिस कण्णन ने संपत्ति की घोषणा की है। जानकारी के मुताबिक जस्टिस कण्णन ने बताया है कि उनके 1.03 लाख रुपए बैंक में जमा हैं और उन्होंने 3.87 लाख रुपए का निवेश किया है। उनकी पत्नी के नाम पर 10.59 लाख रुपए जमा हैं। इसके साथ ही, उन्होंने न्यायपालिका के आचरण को नियमित करने के लिए इन-हाउस तंत्र स्थापित करने की भी वकालत की है।

नौकरानी पर डाला खौलता पानी।

टीवी कलाकार उवर्शी धनोरकर को मुंबई पुलिस ने अपनी नौकरानी को प्रताड़ित करने के मामले में गिरफ्तार कर लिया है। उवर्शी पर अपनी नौकरानी पर खौलता पानी डालने का आरोप है। उनकी नौकरानी केवल 10 साल की है और उनके ही घर में रहती थी।

लड़की की मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार उसे खौलता पानी डालकर जलाने की कोशिश की गई है। टीवी कलाकार ने न केवल उसे जलाने की कोशिश की बल्कि उसकी आंखों को चोट पहुंचाते हुए आंखे फोड़ने की कोशिश भी की, जिसके चलते उसी आंखो में गहरी चोट आई है। एक्ट्रेस ने नौकरानी को इतना मारा की उसके हाथ में फ्रेक्चर हो गया। टीवी एक्ट्रेस उवर्शी धनोरकर को पुलिस ने क्रूरता करने और बाल मजदूरी करवाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया है। 

उवर्शी बच्ची के माता-पिता से यह कहकर उसे अमरावती से लाई थी कि वह मुंबई ले जाकर उसे पढ़ाएगी। बाद में उसने लड़की से घर के काम करवाए और उसे प्रताड़ित भी किया। उवर्शी ने नौकरानी को हफ्ते भर तक घर में बंद रखा, बाद में घर से भागकर नौकरानी ने पास ही के पुलिस स्टेशन में अपने साथ हुए अत्याचार की कहानी पुलिस को बताई। फिलहाल उवर्शी अंबोला पुलिस स्टेशन में है और पुलिस नौकरानी के माता पिता के आने का इंतजार कर रही है।

पुलिस ने बाद में टीवी अभिनेत्री को जमानत पर छोड़ दिया। अभिनेत्री के वकील का कहना है कि नौकरानी को चोट अभिनेत्री के मारने की वजह से नहीं आई हैं। वहीं उवर्शी के पड़ोसियों ने उवर्शी के खिलाफ पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवाई है।

गलती से दांत निकलवाने पर मिले 20 लाख डॉलर।

साऊथ कैरोलिना के शहर कोलंबिया की एक महिला को 16 दांत निकलवाने पर 20 लाख डॉलर करीब 9 करोड़ 72 लाख 60 हजार रुपए मिले हैं। उसने जानबूझ कर ऐसा नहीं किया बल्कि डैंटिस्ट की गलती से ऐसा हुआ। 

महिला द्वारा मुकदमा किए जाने के बाद उसे हर्जाने के तौर पर इतने पैसे मिले। मुकदमे के दौरान बताया गया कि डॉक्टर ने उसके ऊपरी पूरे 16 दांत गलती से उखाड़ दिए। महिला के वकील के मुताबिक अब महिला जल्द से जल्द सर्जरी करवाना चाहती है। इस पर 80 हजार डॉलर करीब 3 लाख 89 हजार रुपए खर्च आएगा।

जबलपुर हाईकोर्ट ने जज की निन्दा, रजिस्ट्रार के खिलाफ कार्रवाई आदेश।

जबलपुर  हाईकोर्ट ने डीआरटी के पूर्व पीठासीन अधिकारी (जज) सीके सोलंकी की निन्दा की है। उन पर आरोप था कि जज की हैसियत से उन्होंने एक बंधक रखी गई सम्पत्ति की नीलामी कराई, जो उनके बेटे ऋषि कुमार ने खरीद ली। यह षड्यंत्र रिकवरी ऑफीसर के साथ मिलकर रचा गया था। जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस सुषमा श्रीवास्तव की युगलपीठ ने न सिर्फ जज सीके सोलंकी के इस कृत्य की निन्दा की, बल्कि तत्कालीन रिकवरी ऑफीसर (वर्तमान में रजिस्ट्रार) बीएम शर्मा के खिलाफ विभागीय कार्रवाई के आदेश दिए हैं। युगलपीठ ने नीलामी की पूरी कार्रवाई खारिज कर दी है।

इन्दौर में रहने वाले रामलाल गौंड़ व उनके पुत्र प्रदीप कुमार ने हाईकोर्ट में यह याचिका वर्ष 2002 में दायर की थी। उनका आरोप था कि प्रदीप कुमार ने अपनी इन्दौर की सम्पत्ति बैंक ऑफ बड़ौदा में गिरवी रखकर लोन लिया था। लोन की रकम समय पर न चुकाए जाने पर बैंक ने एक प्रकरण ऋण वसूली अधिकरण (डीआरटी) में दायर किया गया था। डीआरटी ने उक्त सम्पत्ति नीलाम करने की डिक्री पारित की थी।

याचिका में आरोप था कि नीलामी की डिक्री की जो कार्रवाई सितम्बर 2002 में की गई, वह पूरी तरह से फर्जी थी। इस प्रक्रिया को इस ढंग से अंजाम दिया गया, ताकि कोई अन्य व्यक्ति उसमें शामिल न हो सके और सम्पत्ति डीआरटी जज सोलंकी के बेटे ऋषि कुमार सोलंकी को मिल जाए। नीलामी में 8 लाख कीमत वाली सम्पत्ति मात्र साढ़े तीन लाख रुपए में खरीदी गई।
आवेदकों का आरोप था कि नीलाम की गई सम्पत्ति को खरीदने के लिए जो रकम चुकाई गई, वह खुद जज सीके सोलंकी की थी। आवेदकों का दावा था कि सीके सोलंकी के बेटे ऋषि कुमार सोलंकी की आय का कोई जरिया नहीं था और वो पूरी तरह से अपने पिता पर ही निर्भर थे। 
आवेदक के अधिवक्ता आलोक पाठक ने वर्ष 2002 में यह याचिका दायर की, तब डीआरटी जज सोलंकी ने उनके अलावा चार अन्य वकीलों को अवमानना का नोटिस थमा दिया, ताकि मोलभाव के जरिए अवमानना की कार्रवाई से बचने के लिए वकील हाईकोर्ट से इस मामले को वापस ले सकें।

इस मामले में हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने भी एक याचिका हाईकोर्ट में दायर की। बार की याचिका में डीआरटी जज पर कई सनसनीखेज आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी।

इस मामले पर हुई सुनवाई के बाद युगलपीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि चूंकि डीआरटी जज सोलंकी जनवरी 2003 में रिटायर हो चुके हैं, इसलिए उनके खिलाफ कोई कार्रवाई के निर्देश नहीं दिए जा रहे हैं। इस पूरे मामले में उनकी भूमिका की निन्दा करते हुए युगलपीठ ने रजिस्ट्रार बीएम शर्मा के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए हैं। मामले पर युगलपीठ द्वारा सुनाए गए विस्तृत आदेश की फिलहाल प्रतीक्षा है।

समस्याओं के हल को आगे आये अधिवक्ता समाज : जस्टिस काटजू

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति मार्कडेय काटजू ने आज यहां कहा कि देश इस समय बड़े संकट से गुजर रहा है। मंदी, महंगाई और सूखे की मार से समाज के लोग परेशान हैं। किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं। ऐसे में अधिवक्ता समाज को आगे आकर इन समस्याओं का हल खोजना होगा। 

जस्टिस काटजू शुक्रवार को इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सीनेट हाल में प्रथम राजाराम मेमोरियल नेशनल टैक्स मूटकोर्ट प्रतियोगिता के उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। इस प्रतियोगिता का आयोजन इलाहाबाद विश्वविद्यालय और आल इंडिया फेडरेशन आफ टैक्स प्रैक्टिसनर्स के संयुक्त तत्वावधान में किया गया है। इसमें देश के विभिन्न ला कालेजों और विश्वविद्यालयों की बीस से अधिक टीमें भाग ले रही हैं। 

न्यायमूर्ति काटजू ने कहा कि मंदी, महंगाई और सूखे से उपजी स्थितियां देश को संघर्ष की स्थिति में ला रही हैं। ऐसे में बुद्धिजीवियों की भूमिका अहम हो जाती है। अधिवक्ता बुद्धिजीवियों की श्रेणी में आते हैं, इसलिए उन्हें समाज को नेतृत्व प्रदान करना होगा। इतिहास साक्षी है कि चाहे, अमेरिका हो या फिर फ्रांस या रूस की क्रांति या फिर भारत की आजादी का आंदोलन, अधिवक्ताओं ने अग्रणी रहकर लोगों को नेतृत्व दिया। वकीलों में डाक्टर या इंजीनियर की तुलना में नेतृत्व की अधिक क्षमता इसलिए अधिक होती है क्योंकि वे अपने मुवक्किलों के माध्यम से समाज की समस्याओं को जानते होते हैं। उन्होंने विधि के छात्रों का भी आह्वान किया कि वे सफलता के लिए कठिन परिश्रम का मार्ग अपनायें। 



सम्पत्ति मामला:न्यायाधीशों के विचार पर एकमत नहीं विशेषज्ञ


उच्च अदालतों के न्यायाधीशों की सम्पत्ति की घोषणा करने के पक्ष में कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के खुलकर सामने आने के बीच विधि विशेषज्ञों की इस बात पर अलग-अलग राय है कि भारत के प्रधान न्यायाधीश को उन सभी की ओर से राय व्यक्त करने का अधिकार नहीं है।
पूर्व विधि मंत्री एवं वरिष्ठ वकील शांति भूषण जहां उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवी शैलेन्द्र कुमार के विचारों से सहमत है,वहीं जाने माने न्यायविद पीपी राव ने कहा कि न्यायपालिका के प्रधान की हैसियत से भारत के प्रधान न्यायाधीश विवादित मुद्दों पर बोलने का अधिकार रखते हैं।
राव ने कहाकि संस्थान के प्रधान की हैसियत से भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायपालिका की ओर से बोल सकते हैं। उन्होंने कहा कि कानून की भाषा में भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायपालिका की ओर से केवल एक संस्था के रूप में और अपने लिए बोल सकते हैं तथा उन्हें किसी न्यायाधीश को अपनी सम्पत्ति की घोषणा करने से रोकने का अधिकार नहीं है।
बहरहाल शांति भूषण ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के लेख का समर्थन करते हुए कहा कि भारत के प्रधान न्यायाधीश को सभी न्यायाधीशों की ओर से बोलने का कोई अधिकार नहीं है।

बुद्धा गार्डन गैंगरेप : राष्ट्रपति के दो सुरक्षाकर्मियों को उम्रकैद, दो को 10 साल की कैद ।

दिल्ली की एक अदालत ने छह वर्ष पुराने बुद्धा गार्डन सामूहिक बलात्कार मामले में राष्ट्रपति के सुरक्षा दस्ते के गार्ड हरप्रीत सिंह और सत्येंद्र सिंह को उम्रकैद तथा कुलदीप सिंह व मनीष कुमार को 10-10 साल की सजा सुनायी है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एसके सरवरिया ने अभियोजन और बचाव पक्ष की दलीलें सुनने के बाद सभी आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत गत 17 अगस्त को दोषी करार दिया था. न्यायाधीश ने शनिवार को फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि हरप्रीत और सत्येंद्र बलात्कार, अपहरण और डकैती के प्रयास के दोषी हैं, जबकि कुलदीप और मनीष ने उन्हें यह अपराध करने में मदद की.अभियोजन पक्ष के अनुसार दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़नेवाली पीड़ित लड़की छह अक्तूबर 2003 को अपने मित्र के साथ राष्ट्रपति भवन के निकट इस पार्क में घूमने आयी थी। उसी समय वहां आये राष्ट्रपति भवन के सुरक्षा गाडाब हरप्रीत और सत्येंद्र ने उसके साथ बलात्कार किया, जबकि उनके दो सहयोगी कुलदीप और मनीष आसपास नजर रखे हुए थे।

यह है मामला 
दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने वाली छात्रा 6 अक्टूबर 2003 को अपने मित्र के साथ राष्ट्रपति भवन के निकट बुद्धा पार्क में घूमने गई थी। उसी समय वहां आए राष्ट्रपति भवन के सुरक्षा गार्डो हरप्रीत और सत्येन्द्र ने पहले लड़की के मित्र के साथ मारपीट की और फिर लड़की को पार्क में सुनसान जगह पर ले जाकर उसके साथ बलात्कार किया। इस दौरान उनके दो सहयोगी कुलदीप और मनीष आसपास नजर रखे हुए थे। अपराध के दौरान चारों डयूटी पर थे। निचली अदालत ने उसे क्षतिपूर्ति के तौर पर पांच लाख 66 हजार रूपए देने का आदेश दिया हुआ है।

Saturday, August 22, 2009

अपराधी की गवाही भी स्वीकार्य: सुप्रीम कोर्ट


सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति की गवाही भी मानी जा सकती है। जस्टिस वीएस सिरपुरकर तथा सी जोसेफ की बेंच ने अपने ताजा फैसले में यह कहा है।

जजों ने एक फैसले में कहा कि गवाही में आपराधिक पृष्ठभूमि का कोई ज्यादा असर नहीं हो सकता। हालांकि ऐसी गवाही पर गौर करते समय गवाह की आपराधिक पृष्ठभूमि को भी ध्यान में रखना चाहिए।

शीर्ष कोर्ट ने ये टिप्पणियां मुरली और हीरा की अपील खारिज करते हुए कीं। इन दोनों ने सेशन कोर्ट द्वारा उन्हें दी गई उम्रकैद की सजा को राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा बरकरार रखने को चुनौती दी थी। उन्हें वीरेंद्र सिंह की 1987 में हुई हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था।

मुजरिमों के वकील का कहना था क उसके मुवक्किलों का अभियोजन इसलिए अवैध है, क्योंकि वह बद्रीलाल की गवाही पर आधारित है। बद्रीलाल खुद भी कई फौजदारी मामलों का सामना कर रहा है। 

सुप्रीम कोर्ट ने ये तर्क दस्तावेज देखने, परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर विचार करने और बद्रीलाल व कुछ अन्य चश्मदीद गवाहों की गवाहियों के मद्देनजर स्वीकार नहीं किए।

तीनों सेनाओं में स्थायी कमीशन पर सुनवाई आज।


सेना में महिला अफसरों के साथ हो रहे भेदभाव पर आज दिल्ली हाईकोर्ट एक अहम फैसला सुना सकती है। इस मामले में तीनों सेनाओं की 30 महिला अफसरों ने याचिका दायर कर मांग की है कि सेना के उस नियम को बदला जाए जिसके मुताबिक उन्हें 14 साल की सर्विस के बाद रिटायर कर दिया जाता है।
तीनों सेनाओं की करीब ढाई हजार महिला अधिकारियों को आज दिल्ली हाई कोर्ट में होने वाली सुनवाई का इंतजार है। जहां सरकार को यह बताना है कि तीन सेवा विस्तार और 14 साल की सेवा के बावजूद महिला अधिकारियों को सेना क्यों न तो स्थायी कमीशन दे रही है और न ही सेवानिवृत्ति का लाभ। 
तीन साल से कोर्ट में चल रहे मामले की सुनवाई के दौरान सरकार कभी अमरीका सेना के मॉडल का हवाला देती है तो कभी महिला अधिकारियों के कम प्रशिक्षण का। महिलाओं को स्थायी कमीशन न देने के पीछे सरकार यहां तक कहती है कि युद्ध बंदी बनाए जाने की सूरत में महिलाओं की मुसीबत बढ़ सकती है।
1992 में सेना में महिलाओं की भागीदारी के लिए अल्प सेवा कमीशन शुरू किया गया। शुरुआती पांच साल की सेवाओं के बाद इन अधिकारियों को पहले पांच साल और बाद में चार साल का सेवा विस्तार दिया गया। लेकिन अब इन महिला अफसरों को रक्षा मंत्रालय 14 साल की सेवा के बाद सेना से चलता कर रहा है। वहीं फौज में अपनी जिंदगी के कीमती साल देने वाली महिलाओं के लिए न तो पेंशन है न मेडिकल सुविधाएं और न ही पूर्व सैनिक का दर्जा। 
वहीं दो फीसदी विधवा कोटे से सेना में शामिल हुई महिला अधिकारियों की मुसीबत दोहरी है। अधेड़ उम्र की बेरोजगारी से निपटने के लिए सहारा कुछ भी नहीं है। 
महिलाओं के लिए भारतीय सेना में न तो सेवा शर्तों में कोई छूट है न ही सेवा स्थितियों में कोई रियायत। महिला अफसरों के लिए न तो प्रमोशन का प्रावधान है और न ही वह मेजर रैंक तक पहुंच सकती हैं। 
खास बात यह है कि सेना में अफसरों के 24 हजार से ज्यादा पद खाली हैं।
रक्षा मंत्रालय की नाकाम नीतियों का ही नतीजा है कि अल्प सेवा कमीशन की महिला अधिकारी सेना छोड़ने को मजबूर हैं।

अदालत से मिली मायावती सरकार को राहत।


उच्चतम न्यायालय ने लखनऊ स्थित पुरानी जेल को तोड़ने के निर्णय पर आगे बढ़ने के मायावती सरकार के कदम पर रोक लगाने से इंकार करते हुए कहा है कि इसे धरोहर इमारत घोषित नहीं किया गया है।

उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति के जी बालाकृष्णन तथा न्यायमूर्ति पी सदाशिवम की पीठ ने कहा अगर इसे धरोहर इमारत घोषित नहीं किया गया है तो हम ऐसा आदेश नहीं दे सकते हैं कि इसे नहीं तोड़ा जाए। उच्चतम न्यायालय में एक वकील संगम लाल पांडे की याचिका पर सुनवाई चल रही थी जिन्होंने कथित धरोहर के निर्माण के उद्देश्य से वर्तमान जेल को तोड़ने के प्रशासन के निर्णय पर प्रश्न खड़ा किया था।

बहरहाल, पीठ ने याचिका दायर करने वाले वकील से जानना चाहा कि क्या लखनऊ स्थित जेल को धरोहर इमारत घोषित किया गया है।

पीठ ने कहा जब आपने अपनी याचिका में यह नहीं बताया है कि जेल को क्या धरोहर इमारत घोषित किया गया है तो हम कुछ नहीं कर सकते हैं। उच्चतम न्यायालय ने मुद्दा उठाने वाले वकील से पूछा कि वह जेल से जुड़े मुद्दे से इतने चिंतित क्यों हैं।

मुशर्रफ को न्यायालय ने किया तलब।


कराची में मई 2007 में वकीलों के विरोध-प्रदर्शन के दौरान हिंसक झड़पों के सिलसिले में पाकिस्तान की एक अदालत ने देश के पूर्व सैन्य शासक जनरल परवेज मुशर्रफ को 31 अगस्त को तलब किया। झड़पों में चालीस से ज्यादा लोग मारे गए थे।
सिंध उच्च न्यायालय ने मुशर्रफ और एमक्यूएम के प्रमुख अल्ताफ हुसैन को नोटिस जारी किए हैं। दोनों फिलहाल लंदन में हैं। इनमें अलावा प्रांतीय गृहमंत्री वसीम अख्तर और कुछ अन्य को गुरूवार को नोटिस जारी किए गए। सभी से कहा गया है कि अदालत की 31 अगस्त को होने वाली अगली सुनवाई के लिए वह दो न्यायाधीशों वाली पीठ के समक्ष हाजिर हों।
ताजा घटनाक्रम से करीब दो हफ्ते पहले इस्लामाबाद पुलिस ने नवम्बर 2007 में आपातकाल के दौरान साठ से भी ज्यादा न्यायाधीशों को ‘अवैध रूप से’ बंधक बनाने के लिए मुशर्रफ के खिलाफ मामला दर्ज किया था।
लाहौर की एक अदालत ने स्थानीय पुलिस को मंगलवार को निर्देशित किया था कि वह दो सितम्बर तक इस बात का स्पष्टीकरण दे कि न्यायाधीशों के ‘अवैध रूप से’ दमन का आदेश देने के लिए मुशर्रफ के खिलाफ कोई मामला क्या दर्ज नहीं किया गया।

उत्तर प्रदेश सरकार ने मायावती की मूर्तियों को जायज ठहराया।


उत्तर प्रदेश सरकार को मुख्यमंत्री मायावती की मूर्तियां लगाए जाने में कोई हर्ज नजर नहीं आता। मायावती की मूर्तियों को जायज ठहराते हुए प्रदेश सरकार ने कहा कि यह प्रकरण सुप्रीम कोर्ट के क्षेत्राधिकार से बाहर है। वजह यह कि मूर्तियां लगाने का बजट विधानसभा से पारित हुआ है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट को इसमें दखल नहीं देना चाहिए। प्रदेश सरकार की दलील है कि मायावती की मूर्तियां लोगों के लिए प्रेरणा बनेंगी। 

प्रदेश में पार्को और मूर्तियों के निर्माण पर धन की बर्बादी का आरोप लगाने वाली याचिका के जवाब में राज्य सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीमकोर्ट में हलफनामा दाखिल किया और याचिका को खारिज करने की मांग की। इस मामले पर सुप्रीमकोर्ट सोमवार को सुनवाई करेगा। राज्य सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 212 का हवाला देते हुए कहा है कि विधानसभा ने विभिन्न परियोजनाओं के निर्माण के लिए बजट पास किया है। सदन से पास हुए बजट प्रावधानों को याचिका के माध्यम से अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है और न ही अदालत उन मुददों पर विचार कर सकती है, जो विधानसभा के विशेष क्षेत्राधिकार में आते हों। 

राज्य सरकार का कहना है कि मूर्तियों,पार्को, स्मारकों और स्थलों का निर्माण जनहित में है। इससे समाज के गरीब और निचले तबके को प्रेरणा मिलती है। इसे सार्वजनिक धन का दुरूपयोग नहीं कहा जा सकता। मुख्यमंत्री के महिमा मंडन करने के लिए उनकी मूर्तियां नहीं लगाई गई हैं। प्रदेश सरकार ने तर्क दिया है कि समाज सुधारक कांशीराम ने भी यही इच्छा जताई थी कि जहां उनकी मूर्तियां लगें उसके साथ ही उनकी एकमात्र राजनैतिक उत्तराधिकारी मायावती की भी मूर्ति लगाई जाए। राज्य सरकार ने कहा है कि मूर्तियां लगाने का निर्णय विधानसभा में चर्चा के बाद किया गया है। 

राज्य सरकार ने यह भी कहा है कि चुनकर आए विधायकों ने सदन में अपने क्षेत्र की जनता की भावनाएं व्यक्त करते हुए लखनऊ में कांशीराम के साथ मायावती की मूर्ति लगाने की मांग की थी। प्रदेश सरकार ने कहा कि जीवित लोगों की मूर्तियां कई जगह लगी हैं। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के चित्र हर सरकारी विभाग में लगे होते हैं। फोटो और मूर्ति में किसी तरह का अंतर नहीं किया जा सकता है। राज्य सरकार ने विकास परियोजनाओं के लिए पास बजट का ब्योरा भी हलफनामे में दिया है।

Friday, August 21, 2009

लाख समझाने पर भी नहीं कहा जज को जस्टिस।


गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में उस समय अजीब स्थिति पैदा हो गई जब न्यायालय की अवमानना के आरोपों का सामना कर रही लड़की ने न्यायमूर्ति पसायत के नाम के आगे जस्टिस लगाने से इनकार कर दिया। एनिट कोटियन ने जैसे ही कहा- पसायत, कोर्ट ने आपत्ति की और नाम के आगे जस्टिस लगाने का आदेश दिया। कोटियन ने नहीं माना और मिस्टर पसायत कहा। संबोधन के तरीके पर नाराज पीठ ने कहा कि मिस्टर नहीं, जस्टिस पसायत बोलो। कोर्ट की मर्यादा का ध्यान रखो, लेकिन कोटियन अड़ गई। उसने पीठ से मुखातिब हो कर कहा कि वे जस्टिस नहीं हैं। मेरे दिल में उनके लिए कोई सम्मान नहीं है। 

इस आचरण पर सौम्य स्वभाव वाले न्यायमूर्ति अल्तमश कबीर को क्रोध आ गया। उन्होंने कोटियन को आदेश दिया कि उसे जस्टिस कह कर संबोधित करना ही होगा। कोटियन ने इतने पर भी नहीं माना। आखिरकार उसने जज को जस्टिस कह कर संबोधित नहीं ही किया। उसने न्यायाधीशों से कहा, 'आप लोग भी हमारी तरह महज व्यक्ति हैं। कानून के सामने सब समान हैं।' पीठ ने इस पर भी ऐतराज जताया। 

कोर्ट ने कहा कि क्या उसकी निगाह में संवैधानिक संस्थाओं का कोई सम्मान नहीं है? वह राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, अटार्नी जनरल के खिलाफ कार्रवाई चाहती है? कोटियन की दलील थी कि वह सिर्फ संविधान का सम्मान करती है। उसे देश की संप्रभुता की चिंता है। 

कोटियन व अन्य आरोपियों के व्यवहार से अदालत खफा हो गई और उनके खिलाफ अवमानना के नए नोटिस जारी कर दिए। जस्टिस पसायत पर जूता फेंकने के आरोप में बास स्कूल आफ म्यूजिक की चार लड़कियों के खिलाफ पहले ही न्यायालय की अवमानना का मुकदमा चल रहा है। अवमानना कार्यवाही का सामना कर रही इन लड़कियों ने एक नई याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की है, जिसमें राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग लाने और उन्हें दंडित किए जाने, प्रधानमंत्री को बुलाये जाने और अटार्नी जनरल को गिरफ्तार किए जाने की मांग की गई है। कोर्ट ने अभद्र आचरण और बेतुकी याचिका को न्यायालय की अवमानना मानते हुए लीला डेविड, एनिट कोटियन, पवित्रा मुरली व सरिता पारीख के खिलाफ नए अवमानना नोटिस जारी किए और सुनवाई के लिए 21 अगस्त की तिथि तय कर दी।