पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Wednesday, September 30, 2009

उच्चतम न्यायालय का एसिड की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने से इंकार!


एसिड फेंकने की घटना की शिकार एक नाबालिग लड़की लक्ष्मी ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर  केन्द्र सरकार को इस तरह के मामलों में दोषियों को कड़ी सजा देने के लिए भारतीय दंड संहिता में संशोधन करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है! लक्ष्मी ने अपने पिता के माध्यम से दायर की गई याचिका में न्यायालय से यह भी अनुरोध किया है कि केन्द्र सरकार इस तरह की घटनाओं के पीड़ितों को तुरंत उचित मुआवजा दे क्योंकि यह हत्या से भी बड़ा अपराध है !
याचिकाकर्ता ने न्यायालय से एसिड की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का भी अनुरोध किया है जिससे कि यह अपराधियों को आसानी से उपलब्ध नहीं हो सके ! याचिकाकर्ता के वकील ने न्यायालय को बताया कि सरकार इस तरह की घटनाओं की पीड़ितों के प्रति गंभीर नहीं है और न तो उन्हें तुरंत मुआवजा देने की दिशा में कदम उठाया जाता है और न ही अपराधी को कड़ी सजा की दिशा में कार्रवाई की जाती है !
 न्यायालय ने मामले की सुनवाई 30 अक्तूबर तक स्थगित करते हुए एसिड की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के अनुरोध पर यह कहते हुए कोई फैसला नहीं दिया कि ऐसा करना व्यावहारिक नहीं है !
केन्द्र सरकार ने आज उच्चतम न्यायालय को बताया कि लड़कियों और महिलाओं पर एसिड फेंकने की बढती घटनाओं पर रोक लगाने के अभियान के तहत ज्यादातर राज्य एसिड की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के लिए सहमत नहीं हैं !
 मुख्य न्यायाधीश के जी बालाकृष्णन. न्यायमूर्ति पी सदाशिवम और न्यायमूर्ति बी एस चौहान की पीठ ने हालाकि याचिकाकर्ता के वकील को सभी राज्यों को इस मामले में पक्षकार बनाने के निर्देश दिये जिससे कि उन्हें नोटिस जारी किये जा सकें !

माता-पिता की देखभाल कानूनी बाध्यता


दिल्ली की एक अदालत ने व्यवस्था दी है कि कोई व्यक्ति अपने बुजुर्ग माता-पिता को गुजारा भत्ता देने के लिए न केवल कानूनी रूप से बाध्य है बल्कि यह उसका नैतिक व सामाजिक कर्तव्य भी है। कोर्ट ने ये टिप्पणी दो भाइयों की अपील खारिज करते हुए की। इन भाइयों ने अपनी विधवा मां को एक-एक हजार रुपए का गुजारा भत्ता देने के आदेश को चुनौती दी थी। यह बात और है कि दोनों भाइयों की मासिक आय एक लाख रुपए से भी ज्यादा है।
अतिरिक्त सेशन जज केएस मोही ने कहा कि मामले का रिकॉर्ड देखने से पता चलता है कि मां अपने प्रिय (पुत्र) से गुजारा भत्ता चाहती है जो कि उनका सामाजिक तथा नैतिक कर्तव्य भी है। इस मामले में मां ने दावा किया था कि उसके बेटे लाखों की आय होने और यह जानकारी होने के बावजूद कि वह वृद्ध और अशिक्षित महिला है, उसे एक धेला भी नहीं देते हैं। सीआरपीसी का सेक्शन 125 परित्यक्ता विवाहित महिलाओं तथा माता-पिता को गुजारे भत्ते का अधिकार देता है।

शाइनी संत नहीं तो बलात्कारी भी नहीं है : वकील


अभिनेता शाइनी आहूजा के वकील ने बंबई उच्च न्यायालय में उनके लिए जमानत की मांग करते हुए कहा कि भले ही शाइनी संत नहीं हो लेकिन वह बलात्कारी नहीं हैं। सत्र न्यायालय द्वारा शाइनी के जमानत आवेदन को खारिज किये जाने के बाद उनके वकील ने उच्च न्यायालय में दलील देते हुए कहा कि साक्ष्य दिखाते हैं कि शाइनी और शिकायती लड़की के बीच सहमति से शारीरिक संबध बने थे।

वकील शिरीष गुप्ते ने शाइनी की तरफ से कहा मैं (शाइनी) भले ही संत नहीं हूं लेकिन बलात्कारी भी नहीं हूं। शाइनी को 15 जून को उनकी घरेलू नौकरानी के बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। तब से ही वह हिरासत में हैं और निचली अदालत मामले में आरोप तय करेगी। गुप्ते ने कहा कि चिकित्सकीय और अन्य साक्ष्य दर्शाते हैं कि यौन संबंध लड़की की सहमति से बनाये गये। उन्होंने कहा वह इसकी आदी थी। उसका मर्दों से निकटता का इतिहास रहा है। गुप्ते ने कहा कि मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार शाइनी के हाथ की दो अंगुलियो के बीच छोड़कर उनके शरीर पर कोई जख्म नहीं था।

उन्होंने कहा हो सकता है कि उसने (लड़की ने) कसकर हाथ पकड़ लिया हो। उन्होंने कहा कि यदि लड़की विरोध करती तो शाइनी के चेहरे या शरीर के उपरी हिस्से पर खरोंच आदि आ सकती थी। गुप्ते ने कहा कि घटना से पहली रात लड़की ने अपने मोबाइल से 10 बार शाइनी के घर फोन किया था।

क्वात्रोची पर मामला वापस लेने का केंद्र का फैसला


केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि उसने इटली के व्यापारी ओतावियो क्वात्रोची के खिलाफ़ दायर बोफोर्स मामले को वापस लेने का फैसला कर लिया है. क्वात्रोची के खिलाफ कोई सबूत नहीं है. चीफ जस्टिस केजी बालाकृष्णन, न्यायमूर्ति पी सदाशिवम और न्यायमूर्ति बीएस चौहान की खंडपीठ को सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रहमण्यम ने बताया कि सरकार ने मामले को बंद करने और आरोप वापस लेने का फैसला कर लिया.  सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि बोफोर्स कंपनी के साथ 1986 में तोपों की आपूर्ति को लेकर समझौता हुआ था. 1990 में अंतिम भुगतान कर दिया गया था. उन्होंने उच्चतम न्यायालय को याद दिलाते हुए कहा कि इस सम्मानीय अदालत ने कहा था कि या तो मामला अभी जारी है या फिर नहीं. इस मामले में याचिकाकर्ता अशोक अग्रवाल ने न्यायालय से कहा है कि सीबीआइ खुले रूप से दोषियों का साथ दे रही है. क्वात्रोची  के साथ ऐसे पेश आया जा रहा है कि जैसे वह देश का दामाद हो. सरकार ने कोर्ट को यह भी बताया कि इटली के इस व्यापारी के खिलाफ़ कोई सुबूत नहीं है. उसके स्विस खातों पर लगी रोक हट चुकी है. उच्चतम न्यायालय ने इस याचिका और मुख्य याचिका की सुनवाई अब 11 दिसंबर तक के लिए टाल दी है.

केंद्रीय उत्पाद शुल्क अधिकारी को सजा


केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की विशेष अदालत ने रिश्वत के एक मामले में केंद्रीय उत्पाद शुल्क अधिकारी को तीन साल की सश्रम कैद की सजा सुनाई है। अधिकारी पर दो लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है।

सीबीआई के प्रवक्ता ने बताया कि विशेष न्यायाधीश ने तत्कालीन केंद्रीय उत्पाद शुल्क अधीक्षक जी शिवबालन को भ्रष्टाचार निरोधक कानून की विभिन्न धाराओं के तहत यह सजा सुनाई है। शिवबालन ने सेवा कर रिटर्न का मामला निपटाने के लिए 25,000 करोड़ रुपये की रिश्वत मांगी थी और सीबीआई ने उसे रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया।

सार्वजनिक जगहों पर पूजास्थल बर्दाश्त नहीं: सुप्रीमकोर्ट


अब देश में कहीं भी सड़कों, गलियों या सार्वजनिक स्थलों को घेर कर अवैध रूप से मंदिर, मस्जिद, चर्च अथवा गुरुद्वारा नहीं बनाया जाएगा। मंगलवार को सुप्रीमकोर्ट ने सार्वजनिक स्थलों पर न सिर्फ नए पूजास्थलों के निर्माण पर रोक लगाई, बल्कि पहले से बने पुराने पूजा स्थलों की समीक्षा के भी आदेश दिए हैं।

न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी व न्यायमूर्ति मुकुंदकम शर्मा की पीठ ने सार्वजनिक स्थलों पर अवैध रूप से बनाए गए धार्मिक स्थलों के मामले में सुनवाई करते हुए ये अंतरिम आदेश जारी किए। कोर्ट ने कहा कि मामले पर निपटारा होने तक उनका अंतरिम आदेश जारी रहेगा। पीठ ने जिलाधिकारियों को आदेश का पूरी तरह पालन सुनिश्चित कर राज्य के मुख्य सचिवों को अनुपालन रिपोर्ट भेजने का आदेश दिया है। मुख्य सचिव आठ सप्ताह में सुप्रीमकोर्ट में रिपोर्ट दाखिल करेंगे। इसके साथ ही मामले को मेरिट पर सुनने के लिए कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पक्षकार बनने के लिए नोटिस जारी किया। मामले की अगली सुनवाई सात दिसंबर को निश्चित करते हुए पीठ ने कहा कि राज्य सरकारें चाहें तो हलफनामा दाखिल कर अपना पक्ष रख सकती हैं।

पीठ ने अंतरिम आदेश केंद्र सरकार की ओर से पेश सालीसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम की दलीलें सुनने और उनके द्वारा पेश गृह सचिव गोपाल के. पिल्लै का पत्र देखने के बाद जारी किए। गृह सचिव के पत्र में कहा गया है कि गत 17 सितंबर को सभी राज्यों के मुख्य सचिवों के साथ हुई बैठक में सार्वजनिक स्थलों पर धार्मिक स्थलों का अवैध निर्माण रोकने के बारे में आमसहमति बन गई है। यह दो मुददों पर बनी है। पहली यह कि किसी भी गली, सड़क व सार्वजनिक स्थल पर चर्च, मंदिर, मस्जिद या गुरुद्वारे आदि का निर्माण नहीं होगा और दूसरी, ऐसी जगहों पर बने पुराने धार्मिक स्थलों की मामलेवार समीक्षा कर कार्रवाई की जाएगी। राज्य सरकारें जितनी जल्दी हो इसे पूरा कर लेंगी।

कोर्ट ने पत्र में बताई गई आम सहमति के आधार पर आदेश पारित कर दिया। हालांकि गोपाल सुब्रमण्यम की दलील थी कि भूमि राज्य का मुद्दा है ऐसे में कोर्ट सभी राज्यों को पक्षकार बना कर उनका पक्ष सुने और तभी कोई अंतिम आदेश पारित करे। पीठ ने जब उनसे पूछा कि सरकार इस आदेश को कैसे लागू कराएगी, क्योंकि कई मामलों में आदेश का पालन पूरी तरह नहीं हो पाता। सुब्रमण्यम ने कहा कि इस मुद्दे पर सभी राज्यों का पक्ष सुना जाए क्योंकि हो सकता है कि अलग-अलग राज्यों में इसे लागू करने का तरीका भिन्न हो। लेकिन सभी राज्य इसे लागू करने पर आमराय हैं जो कि एक बड़ी सफलता है।

सुप्रीमकोर्ट में यह मामला वर्ष 2006 में तब पहुंचा, जब सार्वजनिक स्थलों पर बने पूजा स्थलों को ढहाने के गुजरात हाईकोर्ट ने आदेश जारी किए। केंद्र सरकार ने कानून व्यवस्था की दुहाई देते हुए हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दे रखी है।

Tuesday, September 29, 2009

राजस्थान बार कौंसिल चुनाव में जोधपुर के वकीलों को वोट नहीं।



जोधपुर के अधिवक्ताओं ने पहले तो उदयपुर में हाईकोर्ट बैंच स्थापना का विरोध किया। वहीं अब राजस्थान बार कौंसिल के सदस्य पद के चुनाव में जोधपुर से खड़े हुए अधिवक्ता अपने पक्ष में मतदान करने की अपील के पत्र उदयपुर भेज रहे हैं। वहीं उदयपुर संभाग के वकीलों ने जोधपुर से खड़े अधिवक्ता प्रत्याशियों को मतदान नहीं करने का निर्णय लिया है।
सूत्रों के अनुसार ९ अक्टूबर को राजस्थान बार कौंसिल के सदस्य पद के लिए मतदान होगा। राजस्थान बार कौंसिल के २५ सदस्यों के पद के लिए राज्य के विभिन्न जिलों के अधिवक्ताओं ने नामांकन फार्म भरा है। इनमें जोधपुर के अधिवक्ता भी प्रत्याशी है। जोधपुर से खड़े हुए प्रत्याशियों ने उदयपुर में अपने पक्ष में वोट करने के लिए पत्र भेजे है जबकि इन्हीं जोधपुर के अधिवक्ताओं ने पिछले दिनों उदयपुर में हाईकोर्ट बैंच स्थापना आंदोलन का विरोध किया था।
राजस्थान बार कौंसिल के चुनाव नजदीक आते देख जोधपुर के अधिवक्ता प्रत्याशियों ने उदयपुर के मतदाताओं को लुभाना शुरू कर दिया है। वहीं संभाग के अधिवक्ता भी जोधपुर के विरोध में लामबंद हो चुके है। कोई भी वकील जोधपुर के वकीलों को अपना वोट नहीं देगा। संभाग की छहों बार एसोसिएशन इस मुद्दे पर अपना निर्णय कर चुकी है तथा सभी ने अपना फैसला भी सुना दिया है। वकीलों का कहना है कि जब उदयपुर में हाईकोर्ट बैंच स्थापना का आंदोलन चल रहा था तब जोधपुर के सारे अधिवक्ता उदयपुर के विरोध में खड़े हो गए थे तथा राज्य सरकार पर दबाव भी बनाया था। ऐसी स्थिति में उदयपुर संभाग के सारे वकील जोधपुर के विरोध में एक बार फिर पुन: लामबंद हो गए है।

कोर्ट मार्शल के पहले चार दिन का समय तो दें- उच्चतम न्यायालय


उच्चतम न्यायलय ने व्यवस्था दी है कि कोर्ट मार्शल कार्यवाही के गंभीर नतीजे निकलते हैं लिहाजा सेना के जवान पर किसी अपराध का अरोप लगाये जाने के बाद मुकदमा चलाये जाने से पहले उसे 96 घंटे का अनिवार्य समय दिया जाना चाहिए।
उच्च न्यायालय की पीठ ने 12 कार्प सिग्नल रेजीमेंट के एके पांडेय को बरी करने के खिलाफ केन्द्र सरकार की अपील को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। पांडेय को कोट मार्शल कारवाई के बाद छह नवंबर को सुनाये गये फैसले में सेवा से बख्रास्त कर दिया गया और तीन साल की सजा सुनायी गयी।
न्यायमूर्ति बी एन अग्रवाल, न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति आर एम लोढ़ा की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा, ‘‘ जनरल कोर्ट मार्शल : सैन्य अदालत : में मुकदमे के गंभीर परिणाम निकलते हैं। आरोपी को जेल की सजा सुनायी जा सकती है। उसे सेवा से बख्रास्त किया जा सकता है। नियम 34 में समयावधि का पालन नहीं करने के नतीजे गंभीर और कठोर हो सकते हैं। हमारा मानना हे कि उक्त प्रावधान पूर्ण और अनिवार्य हैं।’’
पांडेय ने आरोप लगाया गया था कि उसने देश में बनी पिस्तौल और एक चक्र कारतूस अपनी ही यूनिट के सिंग्नलमैन जे एन नरसिम्लु को गैर कानूनी रूप से बेच दिये। बहरहाल, पांडेय ने राजस्थान उच्च न्यायालय में अपनी बख्रास्तगी और दोषी साबित करने को इस आधार पर चुनौती दी कि ऐसा करना गैर कानूनी है क्योंकि 1954 के सेना निमयों के नियम 34 के तहत आरोप लगाये जाने के समय और वास्तविक मुकदमे के समय में 96 घंटे के अंतराल का पालन नहीं किया गया।
राजस्थान उच्च न्यायालय ने पांडेय के तर्क को सही ठहराया और सजा को खारिज कर दिया । इसके बाद केन्द्र ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ शीर्ष न्यायालय में अपील की।
मामले में केन्द्र का तर्क था कि नियम 34 अनिवार्य न होकर महज निर्देशात्मक है।


यात्री की गलती पर भी कार मालिक को देना होगा हर्जाना


बांबे हाई कोर्ट ने कहा है कि सड़क पार करने में पैदल यात्री की लापरवाही से दुर्घटना होने के बावजूद कार चालक को हर्जाना देना होगा। अदालत ने व्यवस्था दी कि महज इस तथ्य पर कि पैदल यात्री ने सड़क पार करने के लिए जेब्रा क्रासिंग का इस्तेमाल नहीं किया, कार चालक को मुआवजा भरने से राहत नहीं मिल सकती।

अदालत दुर्घटनाग्रस्त कार के मालिक मेघराज एंड संस की ओर से दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। वाहन दुर्घटना ट्रिब्यूनल ने कार मालिक को पैदल यात्री को 5.89 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया था। 23 साल पहले हुई इस दुर्घटना में विंग कमांडर जितेंद्र नाथ की मौत हो गई थी। मामले की सुनवाई कर रहीं जस्टिस निशिता म्हात्रे ने हालांकि मुआवजे की रकम कुछ घटाकर 5.21 लाख कर दी। अदालत ने कहा, 'ट्रिब्यूनल ने सही कहा है कि चालक दुर्घटना को टाल सकता था।'

घटना के अनुसार 9 अक्टूबर 1986 को जितेंद्र नाथ अपनी दो छोटी बेटियों के साथ तारपोरवाला एक्वेरियम जा रहे थे। सड़क पार करने के दौरान एक कार ने उन्हें टक्कर मार दी, जिससे उनकी मौत हो गई। जितेंद्र की पत्नी ने वाहन दुर्घटना ट्रिब्यूनल में दस लाख मुआवजे का दावा किया था। ट्रिब्यूनल ने अपने फैसले में कहा, 'हालांकि लापरवाही जितेंद्र नाथ की थी लेकिन कार मालिक को मुआवजा देना पड़ेगा क्योंकि दुर्घटना टाली जा सकती थी। कार चालक ने दुर्घटना के शिकार व्यक्ति और उनकी बेटियों को हार्न बजाकर सावधान नहीं किया था।'

भूमि विकास संभावना कम मुआवजे का आधार नहीं-उच्चतम न्यायालय


हजारों भूमि मालिकों को लाभ पहुंचाने वाले एक फैसले में उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि सरकार किसी भूमि मालिक को महज इस आधार पर कम मुआवजा नहीं दे सकती क्योंकि जमीन में विकास की संभावना नहीं है।
शीर्ष न्यायालय ने गोवा सरकार द्वारा बंबई उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ की गयी अपील को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया। बंबई उच्च न्यायालय ने पांडा बाईपास रोड के निर्माण के लिए कर्टी गांव में अधिग्रहीत जमीन के लिए दिये जाने वाले मुआवजे की राशि बढ़ाकर 200 रूपये प्रति वर्ग मीटर कर दिया था।
न्यायमूर्ति आर वी रवीन्द्रन और न्यायमूर्ति बी सुदर्शन रेड्डी की पीठ ने कहा कि राजमार्ग के समीप दो तिहाई एकड़ वाले भूखंड को महज इस आधार पर बिना मूल्य वाली या विकास की संभावना से रहित नहीं माना जा सकता कि हाईवे से संबंधित कानून राजमार्ग के मध्य से दोनों तरफ 40 मीटर तक किसी निर्माण को प्रतिबंधित करता है। राज्य सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून के तहत इस जमीन को सात रूपये प्रति वर्ग मीटर की दर से जमीन अधिग्रहीत की जिसे संदर्भित अदालत ने बढ़ाकर 154 रूपये प्रति वर्ग मीटर कर दिया। बहरहाल, उच्च न्यायालय ने इसे बढ़ाकर 200 रूपये प्रति वर्ग मीटर कर दिया। इसके बाद राज्य सरकार ने शीर्ष न्यायालय की शरण ली।
तर्क दिया गया था कि ऐसे भूखंड के लिए उच्च मुआवजे का निर्देश नहीं दिया जा सकता है क्योंकि इसमें विकास की संभावना नहीं है और कोई निर्माण भी नहीं किया जा सकता।

पति पर शक करना क्रूरता नहीं: कोर्ट


बंबई उच्च न्यायालय ने एक अहम फैसले में कहा है कि पति पर पत्नी का शक करना क्रू रता के दायरे में नहीं आता और इसके आधार पर पति को तलाक नहीं दिया जा सकता है। अदालत ने पुणे की एक परिवार अदालत के फैसले को पलटते हुए कहा कि महज इस आधार पर कि कि पत्नी को लगता है कि पति का किसी दूसरी औरत के साथ चक्कर चल रहा है, तलाक नहीं दिया जा सकता है।

न्यायमूर्ति पी बी मजमूदार और आर वी मोरे ने अपने फैसले में कहा कि शादी के बाद कोई स्त्री अपने पति की जिंदगी में दूसरी औरत बर्दाश्त नहीं कर सकती है। परिवार अदालत के फैसले को पलटते हुए जजों ने राजेश और स्मिता (बदला हुआ नाम) को फिर से साथ होने के लिए कहा, ताकि वे एक दूसरे को बेहतर तरीके से समझ सकें। इस मामले में राजेश ने इस आधार पर तलाक के लिए मामला दायर किया था कि उसकी पत्नी उसके चरित्र पर संदेह करती है। यह स्मिता का उसके प्रति क्रूर आचरण है।

विदेशी संस्थान को नहीं देना होगा आरक्षण कोटा- कपिल सिब्बल


केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा है कि ऐसे विदेशी संस्थान और शिक्षा प्रदाता जिन्होंने भारत में अपना कैंपस लगाया है उन्हें अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों को आरक्षण नहीं देना होगा।

हालांकि कल भाषा की ओर से दी गई एक खबर में कहा गया था कि सिब्बल ने कहा है कि विदेशी संस्थानों को भारत में आरक्षण के नियमों को मानना होगा। सिब्बल ने कहा था कि केवल सरकारी शिक्षा संस्थानों को आरक्षण कोटा मानना होगा। गैर वित्त पोषित निजी शिक्षा संस्थानों के लिए यह अनिवार्य नहीं होगा।

Saturday, September 26, 2009

दोषमुक्ति तर्कविरूद्ध हो तो इसे पलट सकते हैः सुप्रीम कोर्ट



सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर वह किसी हाई कोर्ट की ओर से पारित दोषमुक्ति के आदेश को तर्कविरूद्ध और मोटे तौर पर अन्यायपूर्ण पाता है तो वह उसे पलटने के लिये अपनी विशिष्ट शक्तियों के इस्तेमाल से नहीं हिचकेगा। शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर दो मत तर्कसंगत रूप से संभव हैं यानी एक दोषसिद्धी का संकेत दे और एक अन्य दोषमुक्ति का, तो यह अदालत दोषमुक्ति के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करेगी।
 
न्यायालय ने एक दोहरे हत्याकांड में तीन व्यक्तियों की दोषसिद्धी और उम्र कैद की सजा बहाल रखते हुए कहा कि लेकिन अगर यह न्यायालय दोषमुक्ति को तर्कविरूद्ध, प्रत्यक्ष रूप से अवैध या मोटे तौर पर अन्यायपूर्ण पाता है तो वह उस आदेश में हस्तक्षेप करने से नहीं हिचकेगा। शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत प्रदत्त विशिष्ट अपीलीय शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए आरोपियों को दोषी करार दिया।
 
इस मामले में आरोपी पेट्रोल पंप संचालक कएणाकर पांडे तथा प्रभाकर पांडे और एक अन्य व्यक्ति ने उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में 24 मई 1994 को दिनदहाड़े दो लोगों की हत्या की थी। आपस में भाई राजेश और ब्रजेश को आरोपियों ने पेट्रोल पंप पर विवाद होने के बाद गोली मार दी थी। इसके गवाह मृतकों के पिता राज नारायण सिंह थे। एक अन्य चश्मदीद गवाह सुनील सिंह थे।
 
बहरहाल, सत्र अदालत ने दोनों को दोषी करार देते हुए उम्र कैद की सजा सुनायी थी, पर बाद में हाई कोर्ट ने दोनों को बरी कर दिया। इसके बाद मृतकों के पिता ने शीर्ष अदालत में अपील की।
सम्पूर्ण निर्णय

मीना गोम्बर राजस्थान हाईकोर्ट न्यायाधीश नियुक्त।


राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील ने राज्य न्यायिक सेवा की वरिष्ठतम अधिकारी एवं सीकर की जिला एवं सत्र न्यायाधीश मीना. वी. गोम्बर को राजस्थान हाईकोर्ट में न्यायाधीश नियुक्त किया है। वे उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के पद पर नियुक्त होने वाली चौथी महिला न्यायाधीश हैं।

विश्वस्त सूत्रों के अनुसार राष्ट्रपति भवन में मीना.वी. गोम्बर के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के वारंट जारी हो गए। वे सम्भवत: 29 सितम्बर को न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगी। उच्च न्यायिक सेवा कोर्ट से नियुक्त हुईं न्यायाधीश मीना मूलत: कोटा जिले की हैं।

उन्होंने बीए एवं एलएलबी की डिग्री के बाद लंदन में भी अध्ययन किया। वे 12 मई, 1975 को राज्य न्यायिक सेवा में चुनी गईं तथा 5 जून 1989 को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट तथा 28 सितम्बर, 2002 को उच्च न्यायिक सेवा में पदोन्नत हुईं। राजस्थान उच्च न्यायालय में इससे पूर्व तीन महिला न्यायाधीश रह चुकी हैं। इनमें दो राज्य न्यायिक सेवा से श्रीमती कांता भटनागर व श्रीमती मोहनी कपूर जबकि श्रीमती ज्ञान सुधा मिश्रा पटना उच्च न्यायालय से राजस्थान स्थानांतरित हो कर आई थीं।

दलित होने के कारण फंसे दिनाकरन-बूटा


आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के आरोपों का सामना कर रहे कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पीडी दिनकरन के बचाव में राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग आगे आया है। आयोग का कहना है कि एक दलित को आगे बढ़ने से रोकने के लिए उसके खिलाफ विरोध अभियान छेड़ा गया है। दिनकरन को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने की सिफारिश का न्यायिक हलकों में जबर्दस्त विरोध हुआ है।

अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष बूटा सिंह ने कहा है कि भ्रष्टाचार का आरोप झेल रहे कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पी डी दिनाकरन को दलित होने की वजह से निशाना बनाया गया है। इतना ही नहीं, बूटा ने यह भी कहा कि दिनाकरन के खिलाफ मिथ्याअपवाद अभियान का नेतृत्व करने वाले पूर्व केन्द्रीय विधि मंत्री शांति भूषण स्वयं जातिवादी हैं। हालांकि भूषण ने इस मामले में आरोपों का खण्डन करते हुए कहा है कि उन्हें दिनाकरन की जाति से कुछ लेना देना नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि दिनाकरन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच होनी चाहिए।सिंह ने न्यायापलिका में अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के लिए आरक्षण की भी मांग की।
बूटा सिंह की अध्यक्षता वाले आयोग ने गुरुवार को केंद्र पर आरोप लगाया कि वह दिनकरन और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) केजी बालाकृष्णन के खिलाफ चलाए गए अभियान पर चुप्पी साधे हुए है। साथ ही चेताया कि अगर यह अभियान बंद नहीं हुआ तो आयोग खुद कोई उपयुक्त कदम उठाएगा।

विवाद में मजदूरों को जरूर सुनें कोर्ट - सुप्रीम कोर्ट


सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मजदूरों से जुड़े विवाद के मामले में फैसला सुनाने से पहले श्रमिक या मजदूर संगठन का पक्ष जरूर सुना जाना चाहिए, नहीं तो यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन होगा।
जस्टिस मार्कण्डेय काटजू और जस्टिस अशोक कुमार गांगुली की बेंच ने कहा कि श्रम कानूनों का मकसद श्रमिकों को सुविधा प्रदान करना है, इसलिए सामान्य तौर पर श्रम कानून के तहत सभी मामलों में श्रमिकों या कम से कम उनका प्रतिनिधित्व करने वालों या मजदूर संगठनों को एक पक्ष बनाया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने त्रावणकोर स्थित कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई) अदालत को कुछ मजदूरों का पक्ष सुनने का निर्देश दिया। इन मजदूरों को फर्टिलाइजर केमिकल त्रावणकोर लिमिटेड ने मेडिकल इन्शुअरंस सुविधा देने से तब तक इनकार कर दिया था, जब तक कि इस योजना के तहत मजदूर की योग्यता तय की जा सके।

इससे पहले ईएसआई अदालत ने इस विवाद पर कोई फैसला जारी नहीं किया था और केरल हाई कोर्ट ने कंपनी से मजदूरों को ईएसआई सुविधा मुहैया कराने का निर्देश दिया था। ये मजदूर गोदाम में सामान ढोने का काम करते थे। हालांकि मामले की सुनवाई के दौरान न तो ईएसआई कोर्ट और न ही केरल हाई कोर्ट ने पीड़ित श्रमिकों की गवाही नहीं ली।
सम्पूर्ण निर्णय

दुष्कर्म का दोषी दो साल तक करेगा अस्पताल में सफाई।


नाबालिग छात्रा से दुष्कर्म करने के एक मामले में सीजेएम संदीप सिंह की अदालत ने शुक्रवार को आरोपी किशोर को दोषी करार देते हुए उसे दो साल तक सिविल अस्पताल में सफाई करने की सजा सुनाई है। सफीदों के आदर्श नगर कालोनी की सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली एक छात्रा ने 9 अगस्त 2005 को पुलिस को शिकायत दर्ज कराई थी।

पीड़िता ने शिकायत में बताया था कि वह देर शाम को पास में रह रहे उसके मामा सुरेश के घर सोने के लिए जा रही थी। इस दौरान आरोपी अजीत उनके गेट पर खड़ा था, उसने उसका हाथ पकड़ लिया और मुंह बंद कर अपने घर में ले गया। कमरे में जाते ही अजीत ने कमरे की कुंडी लगा ली और तेज आवाज में डैक को चला दिया। इसके बाद आरोपी ने उसके साथ दुष्कर्म किया।

पुलिस ने इस पर कार्रवाई करते हुए आरोपी किशोर के खिलाफ दुष्कर्म का मामला दर्ज कर कार्रवाई की। बाद में आरोपी को जेल भेज दिया गया। करीब चार साल तक अदालत में चले रहे मामले की सुनवाई करते हुए सीजेएम संदीप सिंह की अदालत ने शुक्रवार को किशोर अजीत को दोषी करार देते हुए उसे दो साल तक सफीदों के सिविल अस्पताल के एमरजेंसी वार्ड में प्रतिदिन दो घंटे तक सफाई करने की सजा सुनाई है। दोषी किशोर सफाई का कार्य सिविल अस्पताल के सीएमओ के निरीक्षण में किया करेगा।

दिल्ली में लंबित हैं चेक बाउंस के पांच लाख मामले।


दिल्ली उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि दिल्ली से बाहर के बाउंस चेक के मामलों की अब यहां कोई सुनवाई नहीं होगी। मुख्य न्यायाधीश अजीत प्रकाश साह और न्यायमूर्ति मनमोहन की खंडपीठ ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि हम क्षेत्रधिकार से बाहर के बाउंस चेक की शिकायतों को लौटाने का निर्देश देते हैं। अदालतों में ऐसी शिकायतों की भरमार हैं।

 जिन पर विचार नहीं किया जा सकता। ऐसी शिकायतों से निचली अदालतों का कामकाज प्रभावित होता है। न्यायाधीश अपने क्षेत्राधिकार के दूसरे मामले निपटा नहीं पाते हैं क्योंकि उनका सारा समय चेक बाउंस मामलों की सुनवाई में चला जाता है जो उनके क्षेत्राधिकार से बाहर के होते हैं।दिल्ली उच्च न्यायालय विधिक सेवा प्राधिकरण ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर मांग की है कि दिल्ली के बाहर के सभी चेक बाउंस शिकायतों को लौटा दिया जाना चाहिए। प्राधिकरण की वकील ज्योति सिंह की दलील थी कि विभिन्न संस्थान बैंक तथा अन्य शिकायतकर्ता अपनी सुविधा के लिए यहां की अदालतों में ऐसी शिकायतों को लेकर पहुंच जाते हैं। उन्होंने कहा कि क्षेत्राधिकार पर बिना विचार किए मामला दायर कर दिया जाता है। इस पर भी ध्यान नहीं दिया जाता है कि आरोपी केरल जैसे दूर दराज के राज्य में रह रहा है।

इन मामलों के निस्तारण में बहुत अधिक समय लगता है क्योंकि या तो आरोपी के विरुद्ध नोटिस नहीं जारी किया जाता या फिर आरोपी यह सोचकर पेश नहीं होता है कि जितने रुपए का मामला नहीं है उससे कहीं अधिक उसे पेशी के लिए दिल्ली जाने में खर्च हो जाएगा। उच्च न्यायालय ने प्राधिकरण की वकील से हामी भरते हुए बाहर के चेक बाउंस मामलों की यहां सुनवाई नहीं होने की व्यवस्था दी।

Friday, September 25, 2009

परीक्षा संबंधी मामलों पर निर्णय कंज्यूमर कोर्ट में नहीं लिया जा सकता-सुप्रीम कोर्ट


सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा है कि एजुकेशन बोर्ड से मुआवजा संबंधी मामलों पर निर्णय कंज्यूमर कोर्ट में नहीं लिया जा सकता. कोर्ट ने यह फ़ैसला हजारीबाग के छात्र राजेश कुमार से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान 11 सितंबर को सुनाया है.वर्ष 1998 में राजेश ने बिहार विद्यालय परीक्षा समिति की परीक्षा दी थी. इसमें राजेश व एक दूसरे छात्र को एक ही रोल नंबर (496) आवंटित कर दिया गया था. बाद में राजेश को मार्कशीट नहीं मिली और बोर्ड कार्यालय, पटना के चक्कर लगाते-लगाते उसका एक वर्ष बर्बाद हो गया. इसके बाद यह मामला उपभोक्ता फोरम, हजारीबाग में दर्ज कराया गया, जो सुप्रीम कोर्ट तक गया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि न तो बोर्ड सेवा देनेवाला (सर्विस प्रोवाइडर) संस्थान है और न ही विद्यार्थी इसका उपभोक्ता, इसलिए अंक पत्र (मार्कशीट) खो जाने या इसमें किसी त्रुटि के लिए विद्यार्थी या अभिभावक उपभोक्ता फोरम का सहारा नहीं ले सकते.सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले को और स्पष्ट करते हुए कहा है कि कोई विद्यार्थी बोर्ड की सेवा किराये पर (हायर) नहीं लेता. वह सार्वजनिक रूप से बोर्ड की परीक्षा में शामिल होने के एवज में परीक्षा फीस अदा करता है.

न्यायिक सेवा के 23 अधिकारियों के तबादले।


राजस्थान उच्च न्यायालय प्रशासन ने मंगलवार को अलग-अलग आदेश जारी उच्च न्यायिक सेवा सहित अधीनस्थ न्यायिक सेवा के 23 अधिकारियों के तबादले किए हैं। इसके साथ ही परक्राम्य लिखित अधिनियम (एनआई एक्ट) के तहत खोली गई 14 नई अदालतों व जोधपुर में हाल ही स्थापित मोटर वाहन दुर्घटना अधिनियम (एमवी एक्ट) सम्बन्धी न्यायालय में भी न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति कर दी गई है।

आदेश के मुताबिक उच्च न्यायिक सेवा के अधिकारी प्रशांत कुमार अग्र्रवाल को जिला न्यायाधीश अजमेर, मणिशंकर व्यास को बीकानेर एवं महेन्द्र कुमार माहेश्वरी को जिला न्यायाधीश दौसा के पद पर नियुक्त किया गया है। प्रदीप जैन को साम्प्रदायिक दंगा मामलात न्यायालय टोंक में विशिष्ट न्यायाधीश बनाया गया है। अजमेर के जिला एवं सत्र न्यायाधीश अतुल कुमार जैन को फिलहाल पदस्थापन की प्रतीक्षा में रखा गया है। वहीं, मणिशंकर व्यास को बीकानेर के मौजूदा न्यायाधीश घीसालाल चौधरी की 30 सितम्बर को सेवानिवृति के बाद पदभार ग्रहण करने के निर्देश दिए गए हैं।

इसी तरह सिविल न्यायाधीश (वरिष्ठ खण्ड) स्तर के अधिकारी अनिल कौशिक को अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट संख्या-4 जयपुर शहर, जगमोहन अग्रवाल-द्वितीय को अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (एसपीई केसेज) जयपुर जिला एवं धर्मेन्द्र शर्मा को अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट सांभर के पद पर लगाया गया है।

सिविल न्यायाधीश (कनिष्ठ खण्ड) स्तर के अधिकारी पल्लव शर्मा को विशिष्ट न्यायिक मजिस्ट्रेट (एनआई केसेज) कोटा, अरूण गोदारा को बीकानेर, प्रेमप्रकाश को एनआई केसेज न्यायालय संख्या-1 जयपुर शहर, ओमप्रकाश नायक को न्यायालय संख्या-2, सुनील कुमार गुप्ता को न्यायालय संख्या-3, विनोद कुमार शर्मा को न्यायालय संख्या-4 तथा सुकेश कुमार जैन को न्यायालय संख्या-5 जयपुर शहर में विशिष्ट न्यायिक मजिस्ट्रेट लगाया गया है।

विजय प्रकाश सोनी को एनआई केसेज न्यायालय संख्या-1 व सावित्री आनन्द निर्भीक को न्यायालय संख्या-2 उदयपुर, सुरेन्द्र चौधरी को भीलवाडा, अमर वर्मा को अजमेर, मदनगोपाल आर्य को गंगानगर तथा कमल लोहिया को एनआई केसेज न्यायालय संख्या-1 व सोनाली पी. शर्मा को न्यायालय संख्या-2 जोधपुर में इसी पद पर लगाया गया है। प्रशांत शर्मा को मोटर वाहन दुर्घटना मामलात न्यायालय जोधपुर में विशिष्ट न्यायिक मजिस्ट्रेट तथा धर्मराज मीणा को सांगानेर में मुख्य न्यायाधीश (कनिष्ठ खण्ड) एवं न्यायिक मजिस्ट्रेट के पद पर नियुक्त किया गया है।

पांच संभाग के अधिक्ता जयपुर-जोधपुर के अधिवक्ताओं के विरूद्ध लामबंन्द।


हाईकोर्ट बैंच स्थापना की राह में रोड़े अटका रहे जयपुर व जोधपुर संभाग के अधिवक्ताओं के विरूद्ध शेष 5 संभाग के अधिवक्ता लामबन्द होने लगे है। शेष पांचों संभाग के अधिवक्ता अब एकजुट होकर राज्य व केंद्र सरकार के विरूद्ध न्याय के विकेंद्रीकरण के लिए लड़ाई लड़ेंगे। इसके लिए अधिवक्ताओं की राज्यस्तरीय कमेटी का गठन किया गया है।
बुधवार को अजमेर बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित बैठक में उदयपुर, कोटा, बीकानेर, भरतपुर संभाग के वकील प्रतिनिधियों की बैठक में यह निर्णय हुआ। इस बैठक में पांचों संभाग के बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने भाग लिया। अजमेर बार कार्यालय में हुई इस बैठक में राज्य के सभी अधिवक्ताओं से एकजुट होकर न्याय के विकेंद्रीकरण के लिए लड़ाई लडऩे का आह्वान किया गया।
सूत्रों के अनुसार अजमेर बार कार्यालय में आयोजित इस बैठक में अधिवक्ता प्रतिनिधियों ने जयपुर व जोधपुर संभाग के वकीलों द्वारा हाईकोर्ट को एक जगह रखने की मांग पर पूर्व में किए गए विरोध पर निंदा प्रस्ताव लिया गया। साथ ही राज्यस्तरीय हाईकोर्ट बैंच संघर्ष समिति का गठन भी किया गया जिसमें उदयपुर बार एसोसिएशन के अध्यक्ष त्रिभुवननाथ पुरोहित, रमेश नंदवाना, जयकृष्ण दवे, अजमेर बार अध्यक्ष देवकीनंदन शर्मा, कोटा बार अध्यक्ष ब्रह्मानंद शर्मा, बीकानेर बार अध्यक्ष आर.के. दास गुप्ता तथा बी.के. पुरोहित को सदस्य बनाया गया है। वर्तमान में इस राज्य स्तरीय संघर्ष समिति का अध्यक्ष किसी को भी नहीं बनाया गया है।
करीब दो घंटे तक चली इस बैठक में अधिवक्ताओं ने राज्य सरकार के एक जगह ही हाईकोर्ट बैंच रखने के निर्णय का कड़ा विरोध किया। साथ ही निर्णय लिया गया कि यदि अधिवक्ता अलग-अलग न्याय के विकेंद्रीकरण के लिए लड़ेंगे तो हाईकोर्ट बैंच का प्रत्येक संभाग में स्थापित होना संभव नहीं है। इसके लिए पांचों संभाग के अधिवक्ता प्रतिनिधियों को दिल्ली जाना होगा। तब कहीं जाकर केंद्र सरकार पर प्रभाव पड़ेगा।
अधिवक्ताओं की इस कमेटी ने निर्णय लिया कि केंद्र पर दबाव बनाने के लिए राज्य के शेष पांचों संभागों के अधिवक्ता प्रतिनिधि स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ मिलकर दिल्ली में धरना देंगे। साथ ही पांचों संभाग के सांसदों, विधायकों तथा मंत्रियों पर समर्थन के लिए दबाव बनाएंगे। इसके लिए कोटा में आयोजित होने वाली बैठक में रणनीति बनाई जाएगी।

पहले गलत फैसला, अब एक करोड़ का हर्जाना।


पंजाब उच्च न्यायालय ने हत्या के एक फर्जी मामले में सजा पाए नछत्तर सिंह और चार अन्य सहअभियुक्तों को बरी करते हुए पंजाब सरकार को उन्हें एक करोड़ रुपये का हर्जाना देने का आदेश दिया है।
पंजाब पुलिस की असंवेदनशीलता और मिलीभगत ने भी नछत्तर सिंह और अन्य के खिलाफ एक व्यक्ति की हत्या के साक्ष्य गढ़ने में मदद की। इससे सभी आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा मिली। इन लोगों को पांच वर्ष जेल में भी बिताने पड़े।
उल्लेखनीय है कि इस मामले में जिस व्यक्ति की हत्या करने का आरोप था वह पिछले वर्ष दिसम्बर में फिर से प्रकट हो गया।
पंजाब के कस्बे बरनाला के समीप के एक गांव के रहने वाले नछत्तर सिंह के साथ उसके पुत्र सिरा सिंह, अमरजीत सिंह, निक्का सिंह और सुरजीत सिंह को जगसीर सिंह की वर्ष 1996 में कथित हत्या के मामले में निचली अदालत ने वर्ष 2001 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
बुधवार को दिए गए अपने फैसले में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने इन सभी को बरी करते हुए पंजाब सरकार को उन्हें कुल एक करोड़ रुपये का हर्जाना देने का निर्देश दिया।
न्यायालय के इस फैसले से संतुष्ट नछत्तर सिंह और अन्य ने कहा कि वह उन्हें फंसाने वालों के खिलाफ नया मामला नहीं दायर करेंगे।
बचाव पक्ष के वकील विनोद गिरी ने गुरुवार को बताया, "हम नया मामला दायर नहीं करने जा रहे हैं। न्यायालय ने पुलिस को एक नई जांच आरंभ करने और नछत्तर सिंह के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने वालों तथा उनसे मिलीभगत वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया है। इस मामले में जांच अधिकारी ने शिकायतकर्ताओं से मिलकर काम किया है।"

बेमतलब की चुनावी याचिका पर सुनवाई नहीं:सुप्रीम कोर्ट


उच्चतम न्यायालय ने यह व्यवस्था दी है कि किसी उम्मीदवार के चयन को चुनौती देने वाली बेमतलब की याचिका को शुरूआती दौर में ही खारिज किया जा सकता है नहीं तो यह चुने गए प्रतिनिधि के मतदाताओं के प्रति कर्तव्यपालन में बाधा उत्पन्न करेगा।
उच्चतम न्यायालय ने हालांकि यह भी कहा कि उम्मीदवार अगर कानून का उल्लंघन करते हैं तो स्वच्छता बनाये रखने के लिए वह चुनावी विवाद में हस्तक्षेप करेगा। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 87 और दंड संहिता के आदेश चार नियम 16 और आदेश सात नियम 11 की व्याख्या करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालतों को शुरूआती दौर में ही बिना किसी सुनवाई के ऐसी याचिकाओं को खारिज करने की शक्ति है। न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी के जैन और न्यायमूर्ति एच एल दत्तू की पीठ ने राकांपा के हारे उम्मीदवार रामसुख की याचिका को खारिज करते हुए यह व्यवस्था दी है। रामसुख ने 2007 के विधानसभा चुनावों में उत्तराखंड से कांग्रेस उम्मीदवार दिनेश अग्रवाल के चयन को चुनौती देते हुए यह याचिका दायर की थी।

विजेन्दर को कोर्ट का पंच,करोड़ों रुपये के कॉन्ट्रैक्ट पर रोक।


 दिल्ली हाई कोर्ट ने ओलिंपिक मेडल विजेता विजेंद्र सिंह पर पब्लिक रिलेशंस कंपनी परसेप्ट लि. के साथ किसी प्रकार के कॉन्ट्रैक्ट से रोक लगा दी है। चर्चित हस्तियों के विज्ञापन और पब्लिसिटी वैगरह का मैनेजमेंट देखने वाली कंपनी इंफिनिटी ऑप्टिमल सल्यूशंस की अपील पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एस. एल. भयाना की सिंगल बेंच ने विजेंद्र को अगले आदेश तक परसेप्ट या किसी भी अन्य इवेंट मैनेजमेंट कंपनी से समझौता नहीं करने को कहा है।

अपनी याचिका में आईओएस ने कहा है कि उसने विजेंद्र के साथ 2015 तक का समझौता किया था, इसलिए वह किसी अन्य कंपनी के साथ इस तरह का समझौता नहीं कर सकते। आईओएस ने विजेंद्र सिंह के साथ सितंबर 2005 में 10 साल के लिए समझौता किया था। हाल ही में मुक्केबाज ने परसेप्ट के साथ करोड़ों रुपये का कॉन्ट्रैक्ट कर लिया था, जिसे आईओएस ने अदालत में चुनौती दी थी।

Thursday, September 24, 2009

एक सुकुन देने वाला समाचार।

एक एडवोकेट की मौत हो गई। अब अन्य एडवोकेट तो यही सोचेगें कि उसके क्लाइंट हमारे पास आ जाएं। यह तब तो और भी अधिक होता है जब मरने वाले वकील के यहाँ कोई ऐसा उत्तराधिकारी नहीं होता जो उसका काम संभाल सके। किन्तू श्रीगंगानगर टैक्स बार संघ अब ऐसा नहीं होने देगा। इसी सप्ताह संघ के मेंबर वकील हनुमान जैन का निधन हो गया। इनके पिता जी भी नहीं है। बेटा वकालत कर रहा है। इस स्थिति में श्री जैन के क्लाइंट इधर उधर हो जाने स्वाभाविक हैं। इस से श्री जैन का पूरा काम समाप्त हो जाने की आशंका थी। टैक्स बार संघ ने बहुत ही दूरदर्शिता पूर्ण निर्णय किया। अब कोई दूसरा वकील वह फाइल नहीं लेगा जो हनुमान जैन के पास थी। संघ श्री जैन के बेटे का कर सलाहाकार के रूप में पंजीयन करवाएगा। संघ की ओर से चार वकील उसके मार्गदर्शन,काम सिखाने,समझाने और क्लाइंट को संतुष्ट करने के लिए हर समय तैयार रहेंगें। जिस से कि कोई क्लाइंट किसी अन्य वकील के पास जाने की न सोचे या उसे दूसरे के पास जाने की जरुरत ना पड़े। इसके बावजूद अगर कोई क्लाइंट अपनी फाइल श्री जैन से लेकर अन्य को देना चाहे,आयकर,बिक्रीकर की रिटर्न भरवाना चाहे तो वकील ऐसा कर देंगे किन्तू उसकी फीस श्री जैन के उत्तराधिकारी उसके बेटे को दी जायेगी। टैक्स बार श्री हनुमान जैन को तो वापिस नहीं ला सकता लेकिन उसने इतना जरुर किया जिस से उनके परिवार को ये ना लगे कि वे इस दुःख की घड़ी में अकेले रह गए। वकील समुदाय उनके साथ खड़ा है। वर्तमान में एक दूसरे को काटने,काम छीनने,नीचा दिखाने की हौड़ लगी है तब कुछ अच्छा होता है, अच्छा करने के प्रयास होते हैं तो उनको सलाम करने को जी चाहता है। नारदमुनि तो टैक्स बार के अध्यक्ष ओ पी कालड़ा,सचिव हितेश मित्तल,संयुक्त सचिव संजय गोयल सहित सभी पदाधिकारियों को बार बार सलाम करता है। उम्मीद है कि उनकी सोच दूर तक जायेगी। देश के दूसरे संघ भी इनसे प्रेरणा लेंगे।
मूल स्रोतः रंगकर्मी 

बेमतलब की चुनावी याचिका पर सुनवाई नहीं:सुप्रीम कोर्ट



उच्चतम न्यायालय ने यह व्यवस्था दी है कि किसी उम्मीदवार के चयन को चुनौती देने वाली बेमतलब की याचिका को शुरूआती दौर में ही खारिज किया जा सकता है नहीं तो यह चुने गए प्रतिनिधि के मतदाताओं के प्रति कत्र्तव्यपालन में बाधा उत्पन्न करेगा।
उच्चतम न्यायालय ने हालांकि यह भी कहा कि उम्मीदवार अगर कानून का उल्लंघन करते हैं तो स्वच्छता बनाये रखने के लिए वह चुनावी विवाद में हस्तक्षेप करेगा।
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 87 और दंड संहिता के आदेश चार नियम 16 और आदेश सात नियम 11 की व्याख्या करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालतों को शुरूआती दौर में ही बिना किसी सुनवाई के ऐसी याचिकाओं को खारिज करने की शक्ति है। न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी के जैन और न्यायमूर्ति एच एल दत्तू की पीठ ने राकांपा के हारे उम्मीदवार रामसुख की याचिका को खारिज करते हुए यह व्यवस्था दी है। रामसुख ने 2007 के विधानसभा चुनावों में उत्तराखंड से कांग्रेस उम्मीदवार दिनेश अग्रवाल के चयन को चुनौती देते हुए यह याचिका दायर की थी।


बच्चों की कस्टडी व तलाक के मामले खत्म करने की योजना।


बच्चों की कस्टडी व तलाक के मामलों में अब दंपती को वर्षो तक भटकना नहीं पड़ेगा। सरकार वैवाहिक मुकदमे जल्दी निपटाने के लिए पारिवारिक न्यायालयों की संख्या बढ़ाने पर विचार कर रही है। कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने बताया कि इन मुकदमों में एक वर्ष में फैसला करने की अनिवार्यता भी लागू की जा सकती है।

इसके लिए संबंधित कानून में संशोधन करना पड़ेगा। मोइली ने कहा कि मुकदमा लड़ रहे दंपती को जल्द से जल्द इससे निजात दिलाना जरूरी है ताकि वे एक नई शुरुआत कर सकें। तलाक के मामलों को वर्षो तक लटकाने की कोई जरूरत नहीं है। यही बात बच्चों की कस्टडी के मामलों पर भी लागू होती है। इन्हें भी तय समय सीमा में ही निपटाया जाना चाहिए ताकि बच्चों के भविष्य को लेकर अनिश्चितता खत्म की जा सके।

मोइली ने कहा कि सबसे पहले शादी बचाने के प्रयास जरूरी हैं। इसके लिए पति-पत्नी में मध्यस्थता कराने वाले प्रकोष्ठ की संख्या बढ़ाने की योजना है। ये प्रकोष्ठ दंपती की काउंसिलिंग करके उन्हें साथ रहने के लिए प्रेरित करेंगे। सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता प्रिया हिंगूरानी ने कहा कि काम के लिए स्टाफ का अनुभवी होना जरूरी है।

देश में खुलेंगे पांच हजार नये कोर्ट


विधि मंत्री वीरप्पा मोइली ने देश में 5000 नये कोर्ट खोलने का प्रस्ताव रखा है, जो दिन में तीन शिफ्ट में कार्य करेंगे. कानून व्यवस्था को सुधारने के लिए मोइली ने मुकदमेबाजी की सीमा को 15 साल से घटा कर एक साल करने की भी बात कही है. देश में जहां मुकदमा सालोंसाल चलने के हजारों उदाहरण मौजूद हैं, वहां विधि मंत्री की ये बातें काफ़ी महत्व रखती हैं. मोइली के अनुसार इस मुकदमेबाजी की सीमा को अगले तीन साल में लागू कर दिया जायेगा.विधि मंत्रालय मिशन डॉक्यूमेंट के नाम से एक रोडमैप तैयार कर रहा है, जिसकी मदद से कानूनी प्रक्रिया में बदलाव लाने के विस्तृत प्लान तैयार किये जायेंगे.

Wednesday, September 23, 2009

विधानसभा जनलेखा समिति को हाईकोर्ट ने किया तलब


विधानसभा की जनलेखा समिति को राजस्थान हाईकोर्ट ने 7 अक्टूबर को कोर्ट में तलब किया है। इसके लिए हाईकोर्ट की ओर से जनलेखा समिति के अध्यक्ष को नोटिस भी भेजा गया है। जनलेखा समिति ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और इसे विशेषाधिकार का मामला मानते हुए विधानसभा अध्यक्ष को भेजने का फैसला किया है। हाईकोर्ट ने यह नोटिस उदयपुर की एक फर्म हेमा कंस्ट्रक्शंस की याचिका पर 2 सितंबर, 09 को जारी किया था। विधानसभा सचिवालय को यह नोटिस मंगलवार को ही मिला है। इसमें समिति को 7 अक्टूबर को हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ में व्यक्तिश: अथवा वकील के माध्यम से उपस्थित होने के लिए कहा गया है।

महालेखा नियंत्रक की वर्ष 1999-2000 की ऑडिट रिपोर्ट के आधार पर जनलेखा समिति ने सिंचाई विभाग के अधीन माही बजाज सागर परियोजना में काम कर रहे ठेकेदार हेमा कंसट्रक्शंस कंपनी को 21.36 लाख रु. का अधिक भुगतान होने के कारण वसूली की सिफारिश की थी। ऑडिट पैरा के अनुसार ठेकेदार कंपनी को विस्फोट से प्राप्त पत्थरों को भी तोड़ना था, जो उसने नहीं तोड़े। इस पर जनलेखा समिति ने भी ठेकेदार फर्म से इस राशि की वसूली और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई करने की सिफारिश की थी। ठेकेदार फर्म ने हाईकोर्ट में सरकार के वसूली आदेश और जनलेखा समिति की सिफारिश को निरस्त करने की मांग की है।  ठेकेदार फर्म ने याचिका में सिंचाई विभाग के प्रमुख सचिव, माही बजाज सागर परियोजना के मुख्य अभियंता, अधिशासी अभियंता, महालेखा नियंत्रक और विधानसभा की जनलेखा समिति को पक्षकार बनाया है।

याचिका के आधार पर हाईकोर्ट ने जनलेखा समिति को नोटिस दिया है। हालांकि यह नोटिस अध्यक्ष के जरिये दिया गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे तो यह स्पष्ट है कि पूरी समिति को ही तलब किया गया है। समिति में 15 सदस्य होते हैं।  इस मामले में भी अजब संयोग हैं। पहला यह कि याचिका करने वाली ठेकेदार फर्म उदयपुर की है और जनलेखा समिति के चेयरमैन गुलाबचंद कटारिया भी उदयपुर से ही आते हैं। दूसरी यह कि वर्ष 2002-—2003 की जनलेखा समिति (जिसकी सिफारिश को चुनौती दी गई है) के अध्यक्ष कटारिया थे। अब मौजूदा जनलेखा समिति के अध्यक्ष भी कटारिया ही हैं।

जनलेखा समिति के चेयरमैन गुलाबचंद कटारिया ने बताया कि हाईकोर्ट ने जनलेखा समिति को यह नोटिस क्यों दिया है, यह समझ से बाहर है। विधानसभा अपने आप में सुप्रीम है। सदन अथवा विधानसभा की कमेटियों की बैठक और कार्यवाही कोर्ट की अधिकार सीमा से बाहर हैं। विधानसभा समिति की कोर्ट के प्रति कोई जवाबदेही नहीं है। नोटिस मिला है अब पूरे मामले की जानकारी लेंगे और तथ्यों से विधानसभा अध्यक्ष को अवगत कराएंगे। यदि विशेषाधिकार हनन का मामला बना तो विशेषाधिकार हनन की कार्यवाही करने के लिए भी आग्रह करेंगे। विधानसभा अध्यक्ष दीपेन्द्रसिंह शेखावत ने कहा है कि किसी भी स्थिति में वे विधानसभा की गरिमा नहीं गिरने देंगे। इस मामले में वे सचिवालय से तथ्यात्मक जानकारी ले रहे हैं। तथ्यात्मक जानकारी मिलने के बाद वे इस संबंध में यथासंभव आवश्यक कार्यवाही करेंगे।

छात्रा के साथ समलैगिक संबंघ बनाने पर टीचर को जेल


लंदन साउथवॉर्क क्राउन कोर्ट ने ब्रिटेन में पब्लिक स्कूल की एक टीचर को अपनी 15 साल की स्टूडेट के साथ समलैगिंक संबंघ बनाने पर 15 महीने के लिए जेल भेज दिया गया है। लेकिन अदालत ने उन्हें जेल से बाहर आने के बाद अफेयर जारी रखने की अनुमति दे दी।
ब्रिटिश अखबार सन के अनुसार म्यूजिक टीचर हेलन गॉडर्ड क्लास के बाद कॉफी पीने के दौरान अक्सर उस स्टूडेट से बात करती थी। इस दौरान पांच महीने पहले दोनों के संबंघ सेक्सुअल हो गए। दोनों ने टीचर के घर में एक रात और पैरिस में वीकंड साथ-साथ बिताया। लडकी के घरवालों को जब इस बारे में पता चला तो उन्होंने इसे विश्वासघात करार दिया। पुलिस ने जब टीचर के घर पर छापा मारा तो वहां से कई सेक्स टॉय मिले। लंदन साउथवॉर्क क्राउन कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई। टीचर ने माना कि फरवरी से जुलाई के दौरान उन्होंने 6 बार अपनी स्टूडेट के साथ शारीरिक संबंघ बनाए थे।
जज एंथनी पिट्स ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यह बहुत ही मुश्किल केस है। सबूतों से साफ है कि टीचर के कर्ई महीने से स्टूडेट के साथ शारीरिक संबंघ थे। उन्होंने कहा कि हालांकि स्टूडेट ने अपने बयान में कहा कि यह दोनों की सहमति से था और शुरूआत उसी ने कहा थी लेकिन 16 साल की कम उम्र के शख्स से सहमति से किया गया सेक्स भी कानून के खिलाफ है।

स्वास्थ्य सेवाएं हासिल करना देश के नागरिकों का मूलभूत अधिकार -दिल्ली हाईकोर्ट


दिल्ली हाईकोर्ट ने अपोलो अस्पताल प्रशासन व दिल्ली सरकार को आड़े हाथों लेते हुए आदेश दिया है कि अपोलो में गरीब लोगों का मुफ्त इलाज किया जाए। हाई कोर्ट ने इससे पहले भी दिल्ली सरकार को आदेश दिया था कि वह अपोलो को गरीबों का मुफ्त इलाज करने के लिए बाध्य करे। लेकिन सरकार व अपोलो दोनों ने ही कोर्ट के आदेशों की अनदेखी की। इससे नाराज अदालत ने अपोलो व दिल्ली सरकार पर दो लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया है।

अपोलो को अस्पताल बनाने के लिए बेहद सस्ती दरों पर सरकारी जमीन दी गई थी। जमीन लेते समय अपोलो प्रशासन ने वादा किया था कि एक निश्चित संख्या में गरीब मरीजों का अस्पताल में मुफ्त इलाज होगा। हालांकि बाद में अस्पताल अपने इस वादे से मुकर गया। कोर्ट के चीफ जस्टिस अजित प्रकाश शाह व जस्टिस मनमोहन की खंडपीठ ने यह अहम फैसला देते हुए अपोलो अस्पताल को आदेश दिया कि वह ओपीडी में 40 प्रतिशत आरक्षण गरीब मरीजों को दे।

साथ ही अस्पताल में कुल 33 प्रतिशत बेड निम्न आयवर्ग के लोगों के लिए आरक्षित रखे। 12 वर्षो से चले आ रहे इस मुकदमे की सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि स्वास्थ्य सेवाएं हासिल करना देश के नागरिकों का मूलभूत अधिकार है व इससे किसी भी व्यक्तिको वंचित नहीं रखा जाना चाहिए।

इससे पहले 18 अगस्त को कोर्ट ने अपोलो अस्पताल से गरीबों के इलाज पर आने वाले खर्च की जानकारी मांगी थी। अदालत ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया है कि वह सभी सरकारी अस्पतालों में एक व्यवस्था कायम करे जिसके तहत सरकारी अस्पतालों में आने वाले कुछ मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों में भेजा जाए। साथ ही मेडिकल सुपरिंटेंडेंट स्तर के एक डॉक्टर को बतौर नोडल अधिकारी नियुक्त करने को भी कहा गया है। यह अधिकारी प्राइवेट अस्पतालों में मरीजों को भेजे जाने संबंधी प्रकिया व प्राइवेट अस्पतालों में इन रोगियों के इलाज पर नजर रखेगा।

Tuesday, September 22, 2009

सीएम को संवैधानिक नियमों में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं - सुप्रीम कोर्ट


सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मुख्यमंत्रियों या मंत्रियों को संवैधानिक नियमों को नजरअंदाज कर किसी व्यक्ति को राहत देने का कोई अधिकार नहीं है। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि अगर कोई संवैधानिक प्रावधान लागू है तो मुख्यमंत्रियों और अन्य अधिकारियों को उसका अनुसरण करना होगा, वे नियमों का उल्लंघन कर कोई आदेश जारी नहीं कर सकते।

कर्नाटक के कुछ भूस्वामियों की अपील पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति बी.एन. अग्रवाल और जी.एस. सिंघवी की पीठ ने कहा, 'मुख्यमंत्री को किसी संवैधानिक प्रावधान में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। वह फाइल में ऐसी टिप्पणी और भूमि आवंटन का निर्देश कैसे दे सकते हैं।' यह अपील पर्वतम्मा और 43 दावेदारों ने दायर की है। इसमें उन्होंने अक्टूबर 1979 को उन्हें किए गए आवंटन रद करने के फैसले को चुनौती दी है। अक्टूबर 1979 में प्रखंड विकास अधिकारी [बीडीओ] ने 79 बेघर और भूमिहीन किसानों को जमीन आवंटन पत्र जारी किए थे।

इस भूमि आवंटन के संबंध में आरोप लगाए गए थे कि कुछ लोगों ने धोखाधड़ी से जमीन हासिल की है क्योंकि बीडीओ ने 22 दिसंबर 1979 को आवंटन पत्र पर हस्ताक्षर किए जबकि सरकार ने बीडीओ को हस्ताक्षर के लिए अधिकृत करने का पत्र 28 दिसंबर 1979 को जारी किया था।

3 साल का लड़का है ब्रिटेन का सबसे छोटा अपराधी


ब्रिटेन के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है. एक 3 साल का लड़का देश का सबसे छोटा कथित अपराधी बना है. उस पर आरोप है कि वह दंगा फसाद में लिप्त है. द टाइम्स की खबर के अनुसार इस लड़के को स्कॉटलैंड की पुलिस ने कुछ पड़ोसियों की शिकायत के बाद पकड़ा. पड़ोसियों ने शिकायत की थी कि वह लड़का तथा उसके साथी उनके घर की चीज वस्तुओं को नुकसान पहुँचाते हैं.

पुलिस ने कुल 10 लड़कों को पकड़ा है जो 5 साल से कम उम्र के हैं लेकिन पुलिस इन लड़कों के खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं कर सकती क्योंकि इनकी उम्र काफी कम है. स्कॉटलैंड में कस्टडी में लेने के लिए कम से कम उम्र 6 साल की चाहिए होती है [यह यूरोप के किसी भी देश के कानून में वर्णित सबसे कम उम्र है]. इंग्लैंड में कम से कम 10 साल की उम्र चाहिए.

पुलिस परेशान है क्योंकि ये लड़के दंगे फसाद करने में उस्ताद हैं और इन्हें कस्टडी में भी नहीं लिया जा सकता.

हरियाणा में 20 साल पुराने नंबर बंद होंगे।


अपने नए वाहनों पर बहुत पुराने नंबर रखने के शौकीन लोगों के लिए बुरी खबर है। हरियाणा सरकार ने न्यू मोटर व्हीकल एक्ट 1988 के तहत नंबरों की पुरानी सीरीज पर लगी रोक को सख्ती से लागू करने का मन बनाया है। इस एक्ट के तहत एक जुलाई 1989 को या उसके बाद पंजीकृत वाहनों पर पुरानी सीरीज के नंबर आवंटित नहीं किए जा सकते।

इन पर 12 जून 1989 को जारी नई सीरीज के नंबर ही आवंटित किए जाएंगे। इस कानून के बनने के बाद भी आज तक पुरानी सीरीज के नंबरों का प्रयोग नए वाहनों पर किया जा रहा है। यहां तक कि प्रदेश में कई जिला उपायुक्त, पुलिस अधीक्षक व कई अन्य अधिकारी भी पुरानी सीरीज के नंबर ही अपनी गाड़ी पर लगाए हुए हैं। सरकार ने 30 अक्टूबर तक पुरानी सीरीज के नंबरों का प्रशासन के पास समर्पण करके नए नंबर लेने के आदेश जारी कर दिए हैं। इसके बाद भी अगर किसी नए वाहन पर पुरानी सीरीज के नंबर लगे मिलेंगे तो उन्हें बिना नंबर की गाड़ी मानकर चालान किया जाएगा।

भारत सरकार ने 12 जून 1989 को मोटर व्हीकल एक्ट 1939 खत्म करते हुए मोटर व्हीकल एक्ट 1988 लागू किया था। इस एक्ट के तहत वाहनों के पंजीकरण के लिए नई सीरीज जारी की गई। तब फैसला लिया गया कि एक जुलाई 1989 या उसके बाद पंजीकृत हुए वाहनों पर पुरानी सीरीज का नंबर अलॉट नहीं किया जाएगा।
इसके बावजूद लोगों ने पुरानी सीरीज के नंबर प्रयोग करना बंद नहीं किया। पुराने वाहनों के नंबर लोगों ने अपने नए वाहनों पर स्थानांतरित करा लिए। पुरानी सीरीज के अंदर एचएनएक्स-आठ, एचआरएक्स-22, एचआरएस-24, एचआरपी-26, एचवाईटी-33 आदि नंबरों की सीरीज आती है। ऐसे नंबर आज भी बहुत से वाहनों पर देखने को मिलते हैं। प्रदेश के काफी सरकारी अधिकारियों को पुरानी सीरीज के नंबर से लगाव है। उनके वाहनों पर आज भी पुरानी सीरीज के नंबर लिखे रहते हैं। ये बात प्रदेश के स्टेट ट्रांसपोर्ट कंट्रोलर के संज्ञान में भी है। स्टेट ट्रांसपोर्ट कंट्रोलर धनपत सिंह ने सभी अधिकारियों को पुरानी सीरीज के नंबरों का मोह छोड़ने के लिए कह भी दिया है। हिसार में उपायुक्त पद के सेवा में दी गई सरकारी गाड़ी का नंबर भी पुरानी सीरीज का है। उपायुक्त की गाड़ी का नंबर एचआरएच-7 है। स्टेट ट्रांसपोर्ट कंट्रोलर के आदेश के बाद उपायुक्त की गाड़ी का नंबर भी बदलेगा।
एक जुलाई 1989 के बाद पंजीकृत किसी भी वाहन पर पुरानी सीरीज का नंबर है, तो वाहन के मालिक को वह नंबर बंद करना होगा। उसे उस नंबर का प्रशासन के पास समर्पण करके नई सीरीज का नंबर आबंटित कराना होगा। इसके लिए प्रदेश सरकार ने 30 अक्टूबर तक का समय दिया है। उसके बाद पुरानी सीरीज के नंबर वाले वाहनों के चालान काटे जाएंगे। अगर कोई वाहन मोटर व्हीकल एक्ट 1988 लागू होने से पहले पंजीकृत है, तो उस पर ये नियम लागू नहीं होगा।

पुलिस वालों के घरों में सबसे ज्यादा बिजली चोरी।


दिल्ली में बिजली चोरी न केवल आम कॉलोनियों बल्कि वीआईपी कॉलोनियों और पुलिस कॉलोनियों में भी बड़े पैमाने पर होती है। हालांकि बिजली चोरों को पकड़ने के लिए बिजली कंपनी बीएसईएस वीआईपी कॉलोनियों में भी छापे मारती है, बावजूद इसके बिजली चोरी बदस्तूर जारी है। ध्यान देने वाली बात यह है कि कानून व्यवस्था लागू करने का जिम्मा जिन लोगों के पास है, उन्हीं के घरों में धड़ल्ले से बिजली चोरी होती है।

बिजली कंपनी बीएसईएस के 490 इलाकों में बड़े पैमाने पर बिजली की चोरी होती है। इनमें न सिर्फ पूर्वी दिल्ली का सीलमपुर, कोंडली व सीमापुरी, पश्चिमी दिल्ली का मुंडका, नजफगढ़ शामिल हैं, बल्कि दक्षिण दिल्ली की वीआईपी कॉलोनियों और अनेक पुलिस कॉलोनियों में भी बड़े पैमाने पर बिजली चोरी होती है। कंपनी के प्रवक्ता का कहना है कि नियमानुसार सभी कॉलोनियों में बिजली चोरी की रोकथाम के लिए एंफोर्समेंट टीम छापा मारती है।

इसके बावजूद इन इलाकों में भी लोग बिजली चोरी करते हैं। हालांकि अब तक कहा जाता था कि बिजली की सर्वाधिक चोरी पूर्वी दिल्ली में होती हैं। लेकिन आंकड़ों से ज्ञात होता है कि सर्वाधिक बिजली चोरी उत्तर-पश्चिमी दिल्ली में होती है। पश्चिमी दिल्ली के झुलझुली गांव में तो 85 फीसदी तक बिजली चोरी की जानकारी मिली है। इसके अलावा झरौंदा गांव में 70 फीसदी, खेरा डाबर में 70 फीसदी और मुंडका गांव में 55 फीसदी तक बिजली चोरी होती है।

नेहरू प्लेस, निजामुद्दीन, सरिता विहार जैसे पॉश इलाकों में भी 40 से 60 फीसदी तक बिजली की चोरी होती है। इनके अलावा दक्षिणी दिल्ली स्थित पुलिस कॉलोनी में 30 फीसदी, द्वारका के सैनिक नगर में 35 फीसदी, जनकपुरी क्षेत्र के मायापुरी पुलिस स्टेशन में 31 फीसदी, राजौरी गार्डन में 50 फीसदी और शकरपुर स्थित पुलिस क्वार्टर में 45 फीसदी तक बिजली चोरी की जाती है। ज्ञात हो कि बीएसईएस कंपनी द्वारा राजधानी के दो-तिहाई हिस्से में बिजली की आपूर्ति की जाती है और इनमें से 450 कॉलोनियों में बड़े पैमाने पर बिजली चोरी की जाती है। आंकड़ों में सबसे ज्यादा बिजली चोरी नजफगढ़ क्षेत्र में होती है। यहां के 46 इलाकों में बड़े पैमाने पर बिजली चोरी की जा रही है।

Monday, September 21, 2009

आरसीए अध्यक्ष को गद्दी से उतारा।


राजस्थान क्रिकेट संघ (आरसीए) के अध्यक्ष संजय दीक्षित को पूर्व अध्यक्ष ललित मोदी के समर्थन वाले विरोधी खेमे ने आज यहां एक नाटकीय घटनाक्रम में अविश्वास प्रस्ताव पारित कर उनके पद से हटा दिया।
 मोदी के इस वर्ष के शुरू में हुए आरसीए अध्यक्ष पद के चुनाव में दीक्षित के हाथों शिकस्त झेलने के बाद से ही संगठन के दोनों गुटों में जबर्दस्त खींचतान चल रही थी। विरोधी खेमे में किशोर रूंगटा, पूर्व सचिव सुभाष जोशी, अशोक ओहरी और पूर्व उपाध्यक्ष विमल सोनी शामिल हैं।
 पूर्व सचिव जोशी ने इस घटना का विवरण देते हुए बताया कि संगठन की वार्षिक आम बैठक में श्रीगंगानगर जिला क्रिकेट संघ के अध्यक्ष महमूद अब्दी ने दीक्षित के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जिसे २० सदस्यीय सदन ने स्वीकार कर लिया।  उन्होंने कहा, चूंकि बहुमत का दीक्षित में विश्वास नहीं रह गया था इसलिए उन्हें अध्यक्ष पद से हटा दिया गया, अब उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश आर एस लाहौटी की निगरानी में अध्यक्ष पद के लिए ताजा चुनाव होगा। जोशी ने बताया कि दीक्षित को पद से हटाने के साथ ही उनके द्वारा २९ मार्च को अपना प्रभार संभालने के बाद से लिए गए सभी फैसले रद्द कर दिए गए हैं जिनमें विभिन्न समितियों का गठन और विमल राय सोनी तथा शमशेर ङ्क्षसह का निलंबन भी शामिल है। दीक्षित ने एक दिन पहले ही सोनी और शमशेर को संगठन के खिलाफ बयानबाजी का आरोप लगाते हुए निलंबित कर दिया था।
 जोशी ने बताया कि उपाध्यक्ष राजेन्द्र राठौड़ २४ सितंबर को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड  की वार्षिक  आम बैठक में आरसीए का प्रतिनिधित्व करेंगे जबकि गिरिराज सांड्या सचिव का कामकाज देखेंगे।
 अध्यक्ष पद से हटाए जाने के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए दीक्षित ने कहा कि यह पूरी तरह असंवैधानिक है और उन्हें हटाने के लिए जिला संघों को पैसे का लालच भी दिया गया।

एक बेटी के होते दूसरी बेटी अडॉप्ट कर सकेंगे।


एक बेटी के होते हुए दूसरी बेटी अडॉप्ट करना चाह रहे हिंदुओं की राह में अब हिंदू पर्सनल लॉ नहीं आएगा। इस कानून में अभी तक समान जेंडर में अडॉप्शन की मनाही थी। यानी जिसका पहले से बेटा है उसे बेटा अडॉप्ट करने की इजाजत नहीं थी। पर इस सप्ताह बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में इस व्यवस्था को गलत ठहराया।
जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि अदालतों को चाहिए कि वे पर्सनल लॉ और सेक्युलर कानून के बीच सामंजस्य बैठाएं। उन्होंने कहा कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट-2000 हिंदू अडॉप्शन एंड मेंटिनेंस एक्ट (हामा) पर भी लागू होता है। हामा अडॉप्शन पर पाबंदियां लगाता है, जबकि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट-2000 एक सेक्युलर लॉ है जो छोड़ दिए गए बच्चों का अडॉप्शन के जरिए रिहैबिलिटेशन की इजाजत देता है।

हाई कोर्ट के फैसले से मुंबई बेस्ड एक एक्टर कपल को भी राहत मिलेगी। यह कपल खुद को गोद ली हुई एक बच्ची के लीगल पैरंट्स घोषित करने की मांग कर रहा है। उन्होंने बच्ची को चार साल पहले जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत गोद लिया था। इस कपल की दो साल की बेटी भी है। 2005 में जब उन्होंने एक साल की बेघर बच्ची को अपनाया तो अदालत ने भी उन्हें इसकी इजाजत दी थी।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस कपल के मामले को काफी गंभीरता से लिया क्योंकि यह एक ऐसा मसला था जो लोगों को अडॉप्शन के लिए आगे आने से रोकता था। उन्होंने अडॉप्शन कानूनों और संविधान पर गौर किया और यह फैसला दिया कि अडॉप्शन जीने के अधिकार से जुड़ा है। सबसे बड़ी बात कि यह छोटे बच्चों की आजादी और प्रतिष्ठा का सवाल है। वैसे भी नागरिक समाज में स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा सबसे जरूरी चीजें हैं।

क्या कहता है हिंदू अडॉप्शन एक्ट
54 साल पुराना यह कानून एक बेटे वाले पैरंट्स को दूसरा बेटा या एक बेटी के माता-पिता को दूसरी बेटी अडॉप्ट करने से रोकता है। खासकर बेटी के अडॉप्शन को इसमें बेटे की तुलना में ज्यादा सख्त बनाया गया है। अडॉप्शन चाह रहे पैरंट्स का हिंदू बेटा या पोता नहीं होना चाहिए। यहां तक कि पोते का बेटा भी नहीं होना चाहिए। बॉम्बे हाई कोर्ट पहला ऐसा कोर्ट है जिसने दो विवादित कानूनी प्रावधानों की व्याख्या की है।

अनुष्का शंकर का 'ब्लैकमेलर' न्यायिक हिरासत में।



मशहूर सितार वादक पंडित रविशंकर की बेटी अनुष्का को ब्लैकमेल करने के आरोप में मुंबई के एक व्यवसायी को गिरफ़्तार किया गया है। जुनैद ख़ान के पास अनुष्का की कथित रूप से तस्वीरें थीं जिसके ज़रिए वह उन्हें 'ब्लैकमेल' कर रहा था।
29 साल के जुनैद ख़ान ठाणे का रहने वाला है और उसने अनुष्का शंकर के ईमेल एकाउंट को कथित रूप से हैक करने के बाद उनकी तस्वीरों को हासिल कर लिया था। पुलिस के मुताबिक़ जुनैद अनुष्का को धमकी दे रहा था कि अगर उसे पैसे नहीं दिए गए तो वह उन तस्वीरों को सार्वजनिक कर देगा।

पुलिस का दावा है कि जुनैद अनुष्का से एक लाख डॉलर की मांग कर रहा था। अनुष्का शंकर के प्रवक्ता का कहना है कि मामले की जांच जारी है इसलिए अनुष्का इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहती हैं।

माना जाता है कि जुनैद ख़ान अनुष्का को काफ़ी समय से जानता था और कॉन्सर्ट (संगीत समारोहों) में भी उनका पीछा कर रहा था। पुलिस का कहना है कि जुनैद ने अनुष्का को धमकी भरे ईमेल और मोबाइल पर एसएमएस भेजने शुरू कर दिए थे और वह उनसे पैसे की मांग कर रहा था।

पहली बार ईमेल और एसएमएस दुबई से भेजा गया था। पंडित रविशंकर ने अपनी रिपोर्ट में लिखवाया था कि अनुष्का ने दिल्ली में अपना लैपटॉप ठीक होने के लिए दिया था और उन्हें शक़ है कि उसी दौरान अनुष्का की तस्वीरें चुराई गईं।

पुलिस ने अनुष्का को धमकी दिए जाने के 'सबूत' इंटरनेट प्रोटोकोल एड्रेस और जीपीआरएस कनेक्शन की जांच करने के बाद इकठ्ठे किए हैं. पुलिस का कहना है कि जुनैद को मुंबई में गिरफ़्तार किया गया।

पंडित रविशंकर ने अगस्त महीने में एक रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि 28 साल की उनकी बेटी अनुष्का शंकर को कोई व्यक्ति ब्लैकमेल कर रहा है। जुनैद को गिरफ़्तार करने के बाद कोर्ट में उसकी पेशी हुई और अब उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेजा गया है।

क्षमा याचिकाओं पर अविलंब फैसला करे सरकारः सुप्रीम कोर्ट


सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि फांसी की सजा पाए लोगों की दया याचिका पर बहुत ज्यादा देरी किए बिना फैसला करना सरकार का कर्त्तव्य है। कोर्ट ने कहा कि दया याचिकाओं पर कदम आगे बढ़ाने में सरकार की नाकामी उन लोगों प्रति नाइंसाफी जैसी है, जिनकी फांसी की सजा उम्रकैद में तब्दील हो सकती है। अपनी पुरानी व्यवस्थाओं का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर फांसी की सजा पर अमल या दया याचिकाओं के निपटारे में सरकार की ओर से काफी देरी हो तो कैदी को अपनी फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कराने का अधिकार है, नहीं तो यह अनुच्छेद 21 (स्वतंत्रता के अधिकार) का उल्लंघन होगा।

मध्य प्रदेश के मनसा जिले में पत्नी और पांच बच्चों की हत्या के दोषी पाए गए जगदीश नामक शख्स की मौत की सजा को बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह बात कही। सुप्रीम कोर्ट ने 1971 में विवियन रॉड्रिक बनाम पश्चिम बंगाल के केस में कहा था, हमें ऐसा लगता है कि केस के निपटारे में बेहद देरी के कारण अपीलकर्ता खुद उम्रकैद की कमतर सजा पाने लायक हो जाएगा। ताजा मामले में कोर्ट ने कहा कि पहले दी गई यह व्यवस्था आज राष्ट्रपति के पास पेंडिंग 26 दया याचिकाओं को देखते हुए बेहद प्रासंगिक हो गई है। इनमें कुछ मामलों में तो अदालतों ने एक दशक से ज्यादा समय पहले फांसी की सजा सुना रखी है।

जस्टिस एच. एस. बेदी और जे. एम. पांचाल की बेंच ने फैसले में कहा,' हम संबंधित सरकारों को इन वैधानिक व संवैधानिक प्रावधानों के प्रति उनकी जिम्मेदारियां याद दिलाना चाहते हैं।'

Saturday, September 19, 2009

माया सरकार को फिर फटकार।


इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने करोडों रूपए के बहुचर्चित ताज कॉरीडोर घोटाला मामले में दायर जनहित याचिकाओं पर शुक्रवार को उप्र. की मुख्यमंत्री मायावती और कैबिनेट मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी को नोटिस जारी कर दिया। न्यायाघीश प्रदीपकांत एवं न्यायाघीश सबीहुलहसनैन की बेंच ने यह आदेश अनुपमा सिंह, कमलेश वर्मा व अन्य की जनहित याचिकाओं पर पारित किया। इन याचिकाओं में सीबीआई अदालत के पांच जून 2007 के उस आदेश को चुनौती दी गई है जिसके तहत मुख्यमंत्री मायावती एवं कैबिनेट मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी के खिलाफ ताज कॉरीडोर मामले में कार्रवाई समाप्त कर दी गई थी। गौरतलब है कि इस मामले में तीन जून 2007 को राज्यपाल टीवी राजेश्वर ने मायावती एवं सिद्दीकी के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति देने से इनकार कर दिया था। मामले में याचिकाकर्ताओं के अघिवक्ता सीबी पांडे ने बताया कि याचियों का कहना था कि पांच जून 2007 को सीबीआई की विशेषअदालत का आदेश कानून की मंशा के खिलाफ है।

जस्टिस पी. डी. दीनाकरन मुद्दे पर नहीं हुआ फैसला


कर्नाटक हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस पी. डी. दीनाकरन के प्रमोशन की सिफारिश संबंधी मसले पर शुक्रवार को हुई सुप्रीम कोर्ट के सिलेक्शन पैनल (कोलेजियम) की बैठक बेनतीजा रही। बेतहाशा संपत्ति रखने के आरोपों से घिरे दीनाकरन के प्रमोशन की सिफारिश की समीक्षा करने की मांग की गई थी पर कोलेजियम इस बारे में किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाया।

चीफ जस्टिस के. जी. बालाकृष्णन के ऑफिस से उनके निवास के बाहर इंतजार कर रहे पत्रकारों के लिए भेजी गई मौखिक सूचना में कहा गया कि इस मसले पर कोई फैसला नहीं किया गया है। चीफ जस्टिस के अधिकारी ने बताया कि मुझे मीडिया को यह बताने को कहा गया है कि कोलेजियम की बैठक में दीनाकरन मुद्दे पर कोई फैसला नहीं किया गया।

इससे पहले बालाकृष्णन की अध्यक्षता में हुई बैठक 35 से 40 मिनट तक चली थी। चीफ जस्टिस और सिलेक्शन पैनल के चार अन्य सदस्यों जस्टिस बी. एन. अग्रवाल, एस. एच. कपाडि़या, तरुण चटर्जी और अल्तमस कबीर ने दीनाकरन से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की। दीनाकरन के खिलाफ बार के सीनियर सदस्यों ने कानून के तहत अनुमति से ज्यादा संपत्ति रखने का आरोप लगाया है। बार असोसिएशन दीनाकरन को सुप्रीम कोर्ट में जज बनाए जाने संबंधी चयन मंडल की सिफारिश का विरोध कर रहा है।

उधर, दीनाकरन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच दो जाने माने न्यायविदों पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण और संविधान विशेषज्ञ अनिल दीवान ने इस मसले पर कर्नाटक के लोकायुक्त से जांच कराने का सुझाव दिया है। इन दोनों ने शुक्रवार को कानून मंत्री एम. वीरप्पा मोइली से मुलाकात कर इस मसले पर अपना मत दिया था। एक अन्य विकल्प यह रखा गया कि चूंकि दीनाकरन सुप्रीम कोर्ट के जजों मार्कंडेय काटजू और ए. के. गांगुली के तहत काम कर चुके हैं इसलिए कोलेजियम उनकी राय जरूर ले।
स्रोत

Friday, September 18, 2009

जस्टिस दिनकरन से खंडपीठ की अध्यक्षता न करने का अनुरोध

कर्नाटक बार एसोसिएशन (केबीए) ने गुरुवार को अपनी एक विशेष बैठक में प्रस्ताव पारित करके यह मांग रखी कि उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति पी डी दिनकर तब तक अदालती कार्रवाई में भाग न लें जब तक वह आय से अधिक संपत्ति जमा करने के आरोपों से बरी नहीं हो जाते।

केबीए की बैठक में यह भी मांग रखी गई कि सभी न्यायाधीश अपनी संपत्ति की घोषणा करें। बैठक में यह भी कहा गया कि बार के सदस्यों को यदि न्यायमूर्ति दिनकर के खिलाफ कोई लिखित शिकायत हो तो उसे मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास भेजा जाएगा।

वरिष्ठ वकीलों ने न्यायमूर्ति दिनकर के खिलाफ भ्रष्टाचार और आय से अधिक संपत्ति जमा करने के आरोप होने के बावजूद उन्हें उच्चतम न्यायालय में पदोन्नति देने पर रोष जताया। इस बैठक में कर्नाटक महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष प्रमिला नेसार्गी ने न्यायमूर्ति दिनकर के इस्तीफा की मांग की जबकि बार के अन्य सदस्यों ने उनकी अदालत का तब तक बहिष्कार करने का सुझाव दिया जब तक वह अपने ऊपर लगे आरोपों से बरी नहीं हो जाते।

राजस्थान में ग्राम न्यायालय खोलने की तैयारी

राज्य में गांवों में रहने वाले लोगों को घर के निकट ही न्याय की सुविधा दिलाने के लिए राज्य में 248 ग्राम न्यायालय खोलने की तैयारी की जा रही है। इससे युवाओं के लिए जहां प्रदेश में 2500 से 3000 प्रत्यक्ष नौकरियों का रास्ता खुलेगा, वहीं, कानून की डिग्री वाले 10 हजार से ज्यादा युवाओं के लिए ये कोर्ट उपयोगी साबित होंगे। हर पंचायत स्तर पर खोले जाने वाले इन न्यायालयों में से पहले चरण में हरेक जिले में एक एक के हिसाब से 33 न्यायालय खोले जा सकते हैं। यह संख्या 50 तक भी जा सकती है। ये न्यायालय खोलने में केंद्र आर्थिक सहयोग करेगा, लेकिन इसकी मात्रा कम होने के कारण राज्य सरकार अभी असमंजस की स्थिति में हैं। हाईकोर्ट प्रशासन की ओर से इस संबंध में राज्य सरकार को भेजे गए प्रस्ताव और खर्च का परीक्षण कर लिया गया है। इस मामले में अंतिम निर्णय मुख्यमंत्री के स्तर पर होना हैं। राज्य में अभी 237 पंचायत समितियां है और 9 पंचायत समितियां नई बनी हैं। एक या दो स्थानों पर एक से अधिक ग्राम न्यायालय हो सकते हैं।
गांव के लोगों को छोटे मोटे मामलों के लिए शहर या बड़े कस्बे में स्थित कोर्ट में आना पड़ता है। इनसे मुक्ति दिलाने और अनावश्यक खर्चो से बचाने तथा अन्य न्यायालयों में लम्बित प्रकरणों में कमी के लिए ऐसे न्यायालय की अवधारणा को प्रोत्साहित किया गया है। जिन पंचायत मुख्यालय पर पहले से कोई कोर्ट है, फिर भी ऐसे नए न्यायालय खोले जाएंगे।
 
ग्राम न्यायालयों का स्तर प्रथम श्रेणी मुंसिफ मजिस्ट्रेट के समकक्ष होगा। इनमें कम सजा वाली धाराओं से जुड़े और छोटे मोटे दीवानी और फौजदारी मामलों की सुनवाई की जा सकेगी। गंभीर मामले पूर्ववत पहले से कार्यरत कोर्टो में चलेंगे।
इन न्यायालयों की स्थापना में करीब एक सौ करोड़ रुपए का खर्च आ सकता है। एक न्यायालय की स्थापना पर अनावर्तक खर्च करीब 20.80 लाख रुपए का हो सकता है, इसमें से 18 लाख रुपए केंद्र सरकार वहन करेगी। यह खर्च एक बार होगा। इसी प्रकार आवर्तक खर्च प्रतिवर्ष 17 लाख रुपए होगा। इसमें से केंद्र 3 लाख रुपए प्रतिवर्ष वहन करेगी और वो भी तीन साल तक, इसके बाद राज्य सरकार को ही भुगतना होगा। ग्राम न्यायालयों में लगाए जाने वाले मजिस्ट्रेटों और अन्य स्टाफ के लिए नई भर्ती होगी। इनमें आरजेएस पद के लिए आरपीएससी के माध्यम से भर्ती की जा सकती है।
 

हाई कोर्ट ने आरपीएमटी में फर्जी परीक्षार्थियों के शामिल होने के मामले की जांच आईजी को सौंपी


राजस्थान हाई कोर्ट ने आरपीएमटी-2009 में फर्जी परीक्षार्थियों के शामिल होने के मामले को गंभीरता से लेते हुए इसकी जांच पुलिस महानिरीक्षक (कार्मिक) पी.के.सिंह को सौंपी है। हाई कोर्ट ने उन्हें निर्देश दिया कि वे परीक्षा में हुए फर्जीवाड़े में शामिल रैकेट की गहनता से जांच के लिए विशेष जांच टीम गठित करें, जिसमें राज्य फोंरेंसिक लेबोरेट्री का एक हस्तलिखित विशेषज्ञ भी शामिल हो।
यह आदेश न्यायाधीश आर.एस.राठौड़ ने सीकर निवासी झाबरमल जाट की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। न्यायाधीश ने जांच कमेटी को निर्देश दिया कि वह उन लोगों का भी पता लगाए, जिन्होंने विश्वविद्यालय स्तर पर परीक्षाओं के आयोजन कराने में सहयोग दिया। न्यायाधीश ने कहा कि ये लोग भी इस रैकेट को सहयोग देने के लिए जिम्मेदार हैं। हाई कोर्ट ने टीम को निर्देश दिया कि वह 29 सितंबर को अपनी रिपोर्ट पेश करे।
याचिकाकर्ता की वकील अनुराधा सोनी ने बताया कि पिछली सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने स्वीकार किया था कि आरपीएमटी परीक्षा में फर्जी तरीके से प्रवेश हुआ है। जांच के लिए गठित कमेटी के सामने कुछ फर्जी परीक्षार्थियों के मामले आए हैं। इनमें से पांच विद्यार्थियों के अंगूठे के निशान लेकर उसे राज्य के स्टेट क्राइम ब्यूरो को भेजा गया है। तीन विद्यार्थियों के खिलाफ विश्वविद्यालय ने अशोक नगर थाने में मुकदमा भी दर्ज कराया था। उन्होंने कहा कि परीक्षा में बड़े पैमाने पर फर्जी परीक्षार्थियों बैठे थे। इसलिए मामले की गंभीरता से जांच कराई जाए।

राजस्थान महिला आरक्षण पर रोक

राजस्थान उच्च न्यायालय ने राजस्थान नगर पालिका विधेयक एवं अधिनियम 2009 में पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों में महिलाओं के आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका में आदेश दिया कि सरकार आरक्षण की प्रक्रिया को तो जारी रख सकती है लेकिन अदालत की अनुमति के बिना इसे अंतिम रप नही दे सकती !
मुख्य न्यायाधीश जगदीश भल्ला एवं न्यायमूर्ति मनीष भंडारी की खंडपीठ ने यह आदेश आज प्रार्थी मोहम्मद कलीम तथा अन्य की याचिका की सुनवाई के बाद दिए !
याचिकाकर्ता ने राजस्थान नगर पालिका विधेयक एवं अधिनियम 2009 के सैक्शन.6. एवं .7. जिसके तहत पंचायतों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत पद आरक्षित कर दिए है याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 15 के खिलाफ है1 याचिका में कहा गया कि नगर पालिका अधिनियम 1959 की धारा 9 में आरक्षण चार वर्गो में बांटा गया है जिसमें अनुसूचित जाति ,जनजाति, अन्य पिछडा वर्ग एवं महिला शामिल है अब सरकार के इस नये संशोधित विधेयक से आरक्षण का आंकडा 75 प्रतिशत से अधिक हो जाएगा, जबकि उच्चतम न्यायालय के निर्णयानुसार आरक्षण पचास प्रतिशत से अधिक नही होना चाहिये1मामले को सुनवाई के बाद न्यायालय ने मुख्य सचिव, स्वायत शासन सचिव , सीकर के जिला कलेक्टर , नगर परिषद सीकर के अध्यक्ष से जवाब तलब किया है !

उद्योगपति राहुल बजाज पर देशद्रोह का केस

दिल्ली  की एक कोर्ट में उद्योगपति और राज्यसभा सांसद राहुल बजाज के खिलाफ देशद्रोह का एक मामला दायर किया गया है। उन पर आरोप है कि बजाज समूह के बीमा कारोबार की पार्टनर कम्पनी बजाज आलियांज ने अपनी वेबसाइट पर जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान और अरूणाचल को चीन का हिस्सा दिखाया था। दिल्ली प्रदेश नेशनल पैंथर्स पार्टी के सदस्य संजय सचदेव और अन्य ने मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट गीतांजलि गोयल की कोर्ट में अर्जी पेश कर राहुल बजाज पर देशद्रोह का मुकदमा चलाए जाने की मांग की है। बजाज के बीमा बिजनस पार्टनर अलायंज के पोर्टल पर यह नक्शा दिखाया गया था। दूसरी ओर राहुल बजाज का कहना है कि उसे मामले से उनका कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि यह नक्शा आलियांज की वेबसाइट पर ता। एक महीने पहले जब इस गलती की ओर इशारा किया गया तो कंपनी ने अपनी भूल सुधार ली थी। मजिस्ट्रेट ने इस मामले की सुनवाई की तारीख 24 सितंबर तय की है।

पहली ही सुनवाई में फैसला?

भारत में अक्सर न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति की शिकायत की जाती हैं लेकिन एक न्यायालय ने पहली ही सुनवाई में मुलजिम को सजा देकर त्वरित न्याय देने का रिकार्ड कायम कर दिया है। 
बुधवार को न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम, ऊना अबीरा वासू की अदालत ने चोरी की कोशिश के आरोप में पकडे़ गए अभियुक्त को सुनवाई के पहले ही दिन सजा सुना दी। अदालत ने गवाहों के बयान और जांच अधिकारी की गवाही के बाद अभियुक्त सत्य नारायण पुत्र ईश्वर चंद निवासी उन्नावा, तहसील पुंडरी जिला कैथल, हरियाणा को चार महीने की सजा सुनाई। 
अदालत ने उस पर दो हजार रुपये का जुर्माना भी ठोंका। जुर्माना अदा न करने पर दोषी को एक माह के अतिरिक्त कारावास की सजा सुनाई गई। जिला उपन्यायवादी डीके चौधरी ने बताया, अभियुक्त के खिलाफ स्थानीय विकास नगर मोहल्ले के वार्ड-4 निवासी अरविंद कुमार ने चोरी की कोशिश करने की शिकायत दर्ज कराई थी। पुलिस ने अभियुक्त को मौके पर ही पकड़ लिया था।
अरविंद के मुताबिक वह 21 मई 2009 को घर के नजदीक ही एक प्लाट में अपने बेटे का जन्मदिन मना रहे थे। करीब रात एक बजे उन्हें किसी काम से घर आना पड़ा। आकर देखा तो सत्य नारायण घर में घुसकर चोरी का प्रयास कर रहा था। इस मामले में अदालत ने पहली ही सुनवाई में सत्य नारायण को सजा देकर जिले में त्वरित न्याय देने का रिकार्ड कायम कर दिया है।

राज्यपालों के कार्यकाल पर सुनवाई,सवाल सामान्य असर दूरगामी।

सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने बुधवार को इस विवादास्पद मुद्दे की सुनवाई शुरू कर दी, जिसमें यह सवाल उठाया गया है कि क्या केंद्र में सत्ता परिवर्तन के साथ राज्यपालों को उनका कार्यकाल पूरा होने से पहले हटाना उचित है। चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच ने सुनवाई शुरू करने से पहले कहा, ‘यह सवाल साधारण है, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। इसका कई अन्य संवैधानिक पदों पर असर पड़ता है।’

निरंकुशता नहीं : बहस की शुरुआत करते हुए पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी ने कहा कि राज्यपालों को हटाने के मामले में केंद्र सरकार निरंकुशता नहीं बरत सकती। उन्होंने बेंच से कहा कि राज्यपालों को उनका कार्यकाल पूरा करने देने की संरक्षित व्यवस्था होनी चाहिए।

कार्यकाल पूरा करने दें : सोराबजी ने कहा कि इस मामले में केंद्र अपनी मर्जी से कदम नहीं उठा सकता। उसे राज्यपालों को अपना पांच वर्षीय कार्यकाल पूरा करने का मौका देना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि वे यह बात मामले के गुण-दोषों के आधार पर नहीं, बल्कि राज्यपाल पद के संवैधानिक पक्ष को स्पष्ट करने के लिए कह रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट में यह मुद्दा 2004 से लंबित है, जब तत्कालीन भाजपा सांसद बीपी सिंघल ने उत्तरप्रदेश, गुजरात, हरियाणा और उड़ीसा के राज्यपालों को हटाए जाने को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी। उस समय की यूपीए सरकार ने इन राज्यपालों को हटाया था। इसमें कहा गया था कि केंद्र की सलाह पर राष्ट्रपति राज्यपाल को संविधान के मुताबिक उनका कार्यकाल पूरा होने से पहले हटा नहीं सकते।  सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने बुधवार को उस सवाल पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें यह पूछा गया था कि साल के शुरुआती संसद सत्र को क्या उसका पहला सत्र माना जाए। आरपीआई (आठवले धड़ा) के नेता रामदास आठवले ने इस संबंध में याचिका दायर की थी। इसमें उन्होंने पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें उन्होंने जनवरी 2004 के संसद सत्र को शीतकालीन सत्र का ही हिस्सा माना था, जबकि शीतकालीन सत्र 23 दिसंबर 2003 को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया था। आठवले का कहना है कि एक बार स्थगित हो जाने के बाद नए साल में संसद सत्र को निरंतर नहीं माना जा सकता। चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय बेंच ने बुधवार को इस मसले पर आधे घंटे से कुछ अधिक समय की बहस के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया।

Wednesday, September 16, 2009

राजीव हत्याकांड:नलिनी की याचिका पर सरकार को नोटिस

मद्रास उच्च न्यायालय ने राजीव गांधी हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रही नलिनी की एक याचिका पर तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी किया है। नलिनी ने याचिका में समय पूर्व रिहाई की मांग की थी।
न्यायमूर्ति पी. ज्योतिमणि ने नोटिस जारी किया, जिस पर दो सप्ताह में जवाब आना चाहिए।
नलिनी ने अपनी याचिका में कहा था कि सीआरपीसी की धारा 433 (ए) के तहत समय पूर्व रिहाई के लिए उसे 14 साल की कैद पूरी करने की जरूरत है। वह वेल्लूर जेल में 18 साल से अधिक समय कैद में काट चुकी है। उसने दलील दी कि 18 जून 2005 के बाद से वह समय पूर्व रिहाई की हकदार है।
नलिनी ने कहा कि वर्ष 2007 में समय पूर्व रिहाई के लिए जारी नामों की सूची में उसका नाम नहीं था।, जिसके बाद उसने राज्य सरकार से उसके नाम पर विचार करने का अनुरोध किया। हालांकि इसे खारिज कर दिया गया। तब उसने उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की। उच्च न्यायालय ने 24 सितंबर 2008 को अपने आदेश में सरकार को उसके अनुरोध पर पुन: विचार करने को कहा।
नलिनी ने कहा कि उस आदेश को एक साल हो चुका है और सरकार ने अभी तक नया सलाहकार बोर्ड गठित नहीं किया है और उसकी समय पूर्व रिहाई की याचिका पर कोई फैसला नहीं किया है। नलिनी और तीन अन्य को पहले मौत की सजा सुनायी गयी थी।
उसने दलील दी कि राज्यपाल ने उसकी क्षमादान की एक याचिका को स्वीकार कर लिया था। 24 अप्रैल 2000 को राज्य सरकार ने एक आदेश जारी कर उसकी मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया।
उसने मांग की है कि सरकार को कानून के मुताबिक एक सलाहकार बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया जाए और उसकी समय पूर्व रिहाई के लिए फैसला लिया जाए।