पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Tuesday, April 19, 2011

"माइ लार्ड" संबोधन में बदलाव के बाद अब "कोट और गाउन" पर भी सवाल.

बिलासपुर हाईकोर्ट में बार एसोसिएशन के निर्णयानुसार माइ लार्ड संबोधन में बदलाव के बाद न्यायाधीशों व वकीलों की ड्रेस पर भी अब बहस छिड़ गई है। जजों व वकीलों के कोट एवं गाउन को दासता एवं गुलामी का प्रतीक मानकर इन पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। वकीलों का मानना है कि बार एसोसिएशन को इस संबंध में भी पहल करनी चाहिए ताकि ब्रिटिश शासन की प्रतीक इस वेशभूषा में बदलाव आ सके।


विदित रहे कि सप्ताह भर पहले चंडीगढ़ हाईकोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा प्रस्ताव पारित करने के बाद छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने भी रविवार को बैठक में सुनवाई के दौरान जजों को माइ लार्ड की जगह सर या फिर श्रीमान से संबोधित करने का प्रस्ताव पारित किया। हाईकोर्ट में संबोधन में बदलाव का पहला दिन मिलाजुला रहा। किसी ने सर या श्रीमान कहा तो कइयो ने पुराना संबोधन जारी रखा। वैसे अधिकतर वकीलों ने इस प्रस्ताव की प्रशंसा की है जबकि कइयों ने इस दिशा में और अधिक सुधार करने की आवश्यकता पर बल दिया है। सीनियर एडवोकेट कनक तिवारी का कहना है कि जज न्याय देने के लिए नियुक्त किए गए हैं, यह उनकी डयूटी है।

उनका सम्मान ठीक है लेकिन उन्हें अपना भगवान या स्वामी क्यों कहा जाना चाहिए? बार एसोसिएशन का यह बहुत अच्छा निर्णय है। इसका सभी को स्वागत करते हुए अमल में लाना चाहिए। कोट और गाउन भी गुलामी के प्रतीक हैं, वकीलों की यह ड्रेस बदली जानी चाहिए। भारत गर्म देश है, अंग्रेजों ने वकील व जजों के लिए अपने देश की वेशभूषा लादी, जो आज तक चल रही है।

बार एसोसिएशन को इसके लिए भी पहल करनी चाहिए। इधर, हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के सचिव अब्दुल वहाब खान ने बताया कि कोर्ट रूम में जजों के सम्मान में माइलार्ड या फिर लार्डशिप के संबोधन को दासता का प्रतीक मानते हुए ऎसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करने का निर्णय लिया गया है। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष सीके केशरवानी ने बताया कि इस फैसले पर जजों को भी आपत्ति नहीं है। बार एसोसिएशन ने अपने इस फैसले से महाधिवक्ता और रजिस्ट्रार जनरल को भी अवगत करा दिया है।


संविधान में सिर्फ सम्मान की व्यवस्था : भारतीय संविधान में जजों के संबोधन के लिए शब्द तय नहीं किया गया है। संवैधानिक पद होने के नाते सिर्फ यह कहा गया है कि उनके लिए सम्मानजनक तरीके से संबोधित किया जाएगा। हाईकोर्ट के अतिरिक्त महाधिवक्ता किशोर भादुड़ी का कहना है कि अधिवक्ताओं के मन में जजों के लिए सम्मान होना चाहिए। माइ लार्ड सर या श्रीमान कहने से फर्क नहीं पड़ता। देश के दूसरे हाईकोर्ट में भी इस तरह के प्रयास किए गए लेकिन वह सफल नहीं हो पाए।

बार कौंसिल ऑफ इंडिया पारित कर चुका प्रस्ताव

जजों के लिए माइ लार्ड शब्द उपयोग करने पर बार कौंसिल आफ इंडिया चार साल पहले ही आपत्ति कर चुका है। बार कौंसिल ऑफ इंडिया के प्रतिनिधि फैजल रिजवी ने बताया कि कौंसिल ने तो सर शब्द से संबोधित करने पर भी आपत्ति करते हुए कहा था कि माइ लार्ड व सर दोनों ही शब्द अंग्रेजों द्वारा दी जाने वाली उपाधि हैं, इसलिए जजों को योर आनर या फिर आनरेबल जज (सम्मानीय न्यायाधीश) संबोधित किया जाए। कौंसिल ने 2007 में यह प्रस्ताव पारित कर सभी राज्यों को भेजा था।

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