दिल्ली उच्च न्यायालय ने ब्लूलाइन बसों को हटाने के राष्ट्रीय राजधानी की सरकार के फैसले पर सोमवार को रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा कि ब्लूलाइन संचालकों की रोजी रोटी से ज्यादा महत्वपूर्ण लोगों की जिंदगी है।
न्यायमूर्ति संजीव किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने बस संचालकों की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि ब्लूलाइन बसों पर रोक लगाने से उनकी रोजी रोटी छिन जाएगी। पीठ ने कहा कि उन लोगों के परिजनों की रोजी रोटी का क्या होगा जिन्होंने ब्लूलाइन बसों की वजह से अपनी जिंदगी खो दी।
अदालत ने दिल्ली सरकार द्वारा 27 अक्टूबर को राजधानी से ब्लूलाइन बसों के संचालन पर पूरी तरह से रोक लगाने संबंधी अधिसूचना पर स्थगनादेश देने से इंकार कर दिया। अदालत ने हालांकि संचालकों की फरियाद भी सुनने पर सहमति जताई और सरकार से जवाब दाखिल करने के लिए कहा। इस मामले पर अगली सुनवाई के लिए अगले वर्ष 10 जनवरी की तारीख मुकर्रर की गई है।
अदालत ने ब्लूलाइन बसों के संगठन की ओर से दाखिल याचिका पर यह आदेश दिया। इस याचिका में ब्लूलाइन बसों को बंद करने के दिल्ली सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी। उपराज्यपाल तेजेंद्र खन्ना से स्वीकृति मिलने के बाद सरकार ने इन बसों को हटाने के लिए 27 अक्टूबर को अधिसूचना जारी की थी।
दिल्ली सरकार ने राजधानी में ब्लूलाइन बसें पूरी तरह से प्रतिबंधित करने के लिए 14 दिसंबर की तारीख तय की है।
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