पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Saturday, December 4, 2010

गरीबों को नहीं मिल रहा न्याय : दिल्ली हाईकोर्ट

ना तो कोई आरोपी इस कारण छूटना चाहिए कि न्यायालय के पास अपील पर सुनवाई के लिए समय नहीं है और न ही इसके चलते कोई निर्दोष जेल में रहे। दहेज हत्या के एक मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी की। कहा, आपराधिक न्याय प्रणाली में व्यापक सुधार की जरूरत है, ताकि समानता के संवैधानिक उद्देश्य को सार्थक बनाया जा सके। क्योंकि गरीबों को उच्च न्यायालयों में समय पर न्याय नहीं मिल पाता है और शक्तिशाली लोगों से जुड़े मामले ही चलते रहते हैं।

न्यायमूर्ति एस.एन. धींगरा ने दहेज हत्या व दहेज प्रताड़ना के मामले में एक सब्जी बेचने वाले परिवार से संबंध रखने वाली महिला रानी को बरी कर दिया। इस मामले में महिला के पति व बेटे की अपील पर सुनवाई करने के लिए उच्च न्यायालय के पास समय ही नहीं था, इसलिए बिना अपराध के ही उन्होंने इतने दिन जेल में बिता दिए कि अपील पर फैसला आने से पहले ही उनकी सजा पूरी हो गई थी।

निचली अदालत ने 13 अक्टूबर 2003 को रानी, उसके बेटे व पति को बहू जानकी को दहेज के लिए प्रताडि़त करने व हत्या के मामले में सात-सात साल के कारावास की सजा सुनाई थी। जिसे उन्होंने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।

निचली अदालत की खिंचाई करते हुए कहा कि इस मामले में बिना पर्याप्त सबूतों के ही उनको सजा दे दी गई। न तो बचाव पक्ष ने अपनी भूमिका निभाई, और न पुलिस ने, न ही सरकारी वकील और न जज ने। तकनीकी तरह से मामले में सजा दे दी गई। जजों के पास अधिकार है कि वह गवाहों से सवाल पूछ कर सच्चाई जानने की कोशिश करें, परंतु ऐसा नहीं किया जा रहा है। गवाहों को वकीलों के भरोसे छोड़ दिया जाता है और जज बैठकर निगरानी का काम करते हैं। उनका यह व्यवहार गरीबों के लिए भारी पड़ जाता है, क्योंकि उनके पास अच्छे वकील नहीं होते हैं।

मामले में ऐसा कोई सबूत नहीं मिला जिससे जाहिर हो सके कि आरोपियों ने मृतका को प्रताड़ित किया था। अदालत ने कहा कि भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली पुराने ढर्रे पर चल रही है जिसमें आरोपी को बोलने की अनुमति नहीं दी जाती है। जो कि इस तरह के मामलों में अदालत के सामने सच्चाई लाने से रोक देता है। गरीबी के कारण यह परिवार एक वकील भी नहीं नियुक्त कर पाया जिस कारण न तो गवाहों से जिरह हो पाई और न ही अपील के दौरान उसके पति व बेटे को जमानत मिली। रानी के बेटे का विवाह दिसंबर 2000 में जानकी से हुआ था। एक मार्च 2001 को जानकी ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी।

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