सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बाहर के वकीलों के उत्तर प्रदेश की अदालतों में पै्रक्टिस पर रोक लगाने के मामले में सुनवाई से इनकार कर दिया। उत्तर प्रदेश बार काउंसिल ने गत 18 अप्रैल को प्रस्ताव पारित कर सभी जिला जजों व उच्च न्यायालय से अनुरोध किया था कि अन्य प्रदेशों की बार काउंसिल में पंजीकृत वकीलों को राज्य की अदालतों में प्रैक्टिस की अनुमति न दी जाए।
इसी रोक प्रस्ताव के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में रिट याचिका दाखिल हुई थी। मंगलवार को न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी व न्यायमूर्ति सीके प्रसाद की पीठ ने दिल्ली के वकील संजय त्यागी की इस याचिका पर विचार करने से इन्कार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पहले यह मामला हाईकोर्ट के सामने रखा जाना चाहिए। इससे पहले त्यागी की पैरवी कर रहे वकील डीके गर्ग ने यूपी बार काउंसिल के प्रस्ताव को निरस्त करने की प्रार्थना की थी। उन्होंने कहा कि इस प्रस्ताव के बाद ही गत 15 मई को गाजियाबाद की जिला अदालत ने दिल्ली में पंजीकृत वकील संजय त्यागी को बहस करने से रोक दिया था। उन्होंने उस आदेश को भी निरस्त करने की मांग की। उन्होंने कहा कि प्रैक्टिस पर रोक लगाने से उन्हें संविधान में प्राप्त रोजगार के अधिकार का हनन होता है। उनकी दलीलों पर कोर्ट ने कहा कि मामला तो ठीक है। लेकिन इसे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट या इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के सामने रखा जाना चाहिए।
याचिका में यह भी मांग की गई थी कि केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह एडवोकेट एक्ट की धारा 30 को अधिसूचित करे जिसके मुताबिक किसी भी बार काउंसिल में पंजीकृत वकील को देश की किसी भी अदालत में वकालत करने का अधिकार है। यह प्रावधान आजतक लागू नहीं हुआ है क्योंकि केंद्र सरकार ने इस बावत अधिसूचना ही जारी नहीं की है। याचिकाकर्ता का कहना था कि वर्ष 1988 में एक मामले में सुप्रीमकोर्ट ने केंद्र सरकार से इस पर विचार करने को कहा था लेकिन फिर भी सरकार ने कोई निर्णय नहीं लिया। याचिकाकर्ता का कहना था कि राज्य बार काउंसिल को रोक लगाने का प्रस्ताव पारित करने का अधिकार नहीं है।
इसी रोक प्रस्ताव के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में रिट याचिका दाखिल हुई थी। मंगलवार को न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी व न्यायमूर्ति सीके प्रसाद की पीठ ने दिल्ली के वकील संजय त्यागी की इस याचिका पर विचार करने से इन्कार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पहले यह मामला हाईकोर्ट के सामने रखा जाना चाहिए। इससे पहले त्यागी की पैरवी कर रहे वकील डीके गर्ग ने यूपी बार काउंसिल के प्रस्ताव को निरस्त करने की प्रार्थना की थी। उन्होंने कहा कि इस प्रस्ताव के बाद ही गत 15 मई को गाजियाबाद की जिला अदालत ने दिल्ली में पंजीकृत वकील संजय त्यागी को बहस करने से रोक दिया था। उन्होंने उस आदेश को भी निरस्त करने की मांग की। उन्होंने कहा कि प्रैक्टिस पर रोक लगाने से उन्हें संविधान में प्राप्त रोजगार के अधिकार का हनन होता है। उनकी दलीलों पर कोर्ट ने कहा कि मामला तो ठीक है। लेकिन इसे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट या इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के सामने रखा जाना चाहिए।
याचिका में यह भी मांग की गई थी कि केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह एडवोकेट एक्ट की धारा 30 को अधिसूचित करे जिसके मुताबिक किसी भी बार काउंसिल में पंजीकृत वकील को देश की किसी भी अदालत में वकालत करने का अधिकार है। यह प्रावधान आजतक लागू नहीं हुआ है क्योंकि केंद्र सरकार ने इस बावत अधिसूचना ही जारी नहीं की है। याचिकाकर्ता का कहना था कि वर्ष 1988 में एक मामले में सुप्रीमकोर्ट ने केंद्र सरकार से इस पर विचार करने को कहा था लेकिन फिर भी सरकार ने कोई निर्णय नहीं लिया। याचिकाकर्ता का कहना था कि राज्य बार काउंसिल को रोक लगाने का प्रस्ताव पारित करने का अधिकार नहीं है।
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