सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश मार्कण्डेय कात्जू और न्यायमूर्ति टी.एस. ठाकुर की खंडपीठ ने कहा कि विवाह विधिपूर्वक संपादित की जाने वाली प्रथा है और हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत अकेले में ऐसा आयोजन करने से विवाह की पवित्रता पर सवाल उठेगा।
अदालत ने यह व्यवस्था याचिकाकर्ता के.पी. थिमप्पा गौड़ा द्वारा कर्नाटक उच्च न्यायालय की अभिशंसा को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान दी, जिसमें एक महिला से बार-बार यौन संबंध बनाने और उसके गर्भवती हो जाने पर विवाह का झूठा आश्वासन दिए जाने का जिक्र है।
अदालत ने यह व्यवस्था याचिकाकर्ता के.पी. थिमप्पा गौड़ा द्वारा कर्नाटक उच्च न्यायालय की अभिशंसा को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान दी, जिसमें एक महिला से बार-बार यौन संबंध बनाने और उसके गर्भवती हो जाने पर विवाह का झूठा आश्वासन दिए जाने का जिक्र है।
0 टिप्पणियाँ:
Post a Comment