इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि संस्कृत न्यायालय की भाषा नहीं है। संस्कृत में न तो याचिका ड्राफ्ट की जा सकती है और न ही इस भाषा में बहस की अनुमति ही दी जा सकती है। संस्कृत भाषा में कोई आदेश या डिक्री को भी नहीं पारित किया जा सकता है। इसी के साथ न्यायालय ने संस्कृत भाषा में दाखिल याचिका को बिना गुणदोष पर ध्यान दिये खारिज कर दिया।
यह आदेश न्यायमूर्ति सभाजीत यादव ने वीरेन्द्र शाह सोध की याचिका पर दिया है। यह याचिका आज से 24 साल पहले हिन्दी प्रति के साथ संस्कृत भाषा में भी दाखिल की गयी थी। 2 जुलाई 86 को हाईकोर्ट ने याचिका सुनवाई के लिए मंजूर कर ली थी और विपक्षियों को नोटिस जारी किया था। यह आदेश न्यायमूर्ति वीएल यादव ने पारित किया था। याची का कहना था कि न्यायमूर्ति वीएल यादव ने संस्कृत में निर्णय दिया था इसलिए उसने संस्कृत में याचिका दाखिल की है।
न्यायालय ने कहा है कि न्यायिक कार्यवाही में अंग्रेजी के अलावा हिन्दी भाषा को शामिल करने की व्यवस्था है। हाईकोर्ट किसी वादकारी व अधिवक्ता को हिन्दी में बहस करने से नहीं रोक सकता। कोई ऐसा कानून नहीं है जो संस्कृत भाषा में याचिका दाखिल करने की अनुमति देता हो। हिन्दी भाषा में हलफनामे या अर्जियां या याचिका दाखिल की जा सकती हैं किंतु संस्कृत में ऐसा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
यह आदेश न्यायमूर्ति सभाजीत यादव ने वीरेन्द्र शाह सोध की याचिका पर दिया है। यह याचिका आज से 24 साल पहले हिन्दी प्रति के साथ संस्कृत भाषा में भी दाखिल की गयी थी। 2 जुलाई 86 को हाईकोर्ट ने याचिका सुनवाई के लिए मंजूर कर ली थी और विपक्षियों को नोटिस जारी किया था। यह आदेश न्यायमूर्ति वीएल यादव ने पारित किया था। याची का कहना था कि न्यायमूर्ति वीएल यादव ने संस्कृत में निर्णय दिया था इसलिए उसने संस्कृत में याचिका दाखिल की है।
न्यायालय ने कहा है कि न्यायिक कार्यवाही में अंग्रेजी के अलावा हिन्दी भाषा को शामिल करने की व्यवस्था है। हाईकोर्ट किसी वादकारी व अधिवक्ता को हिन्दी में बहस करने से नहीं रोक सकता। कोई ऐसा कानून नहीं है जो संस्कृत भाषा में याचिका दाखिल करने की अनुमति देता हो। हिन्दी भाषा में हलफनामे या अर्जियां या याचिका दाखिल की जा सकती हैं किंतु संस्कृत में ऐसा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
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