पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Monday, June 15, 2009

दुर्घटना की स्थिति में दोहरा बीमा लाभ नहीं

सर्वोच्च न्यायालय ने नैशनल इंश्योरेंस कंपनी बनाम हमीदा खातून मामले में कहा है कि कोई भी व्यक्ति मोटर व्हीकल्स ऐक्ट और इम्पलॉयज स्टेट इंश्योरेंस (ईएसआई) ऐक्ट दोनों के तहत लाभ हासिल नहीं कर सकता। इस मामले में वाहन के ड्राइवर की उस वक्त मौत हो गई जब बीएसएफ के ट्रक ने उसे टक्कर मार दी थी। उसकी विधवा ने मोटर एक्सीडेंट क्लेम्स ट्रिब्यूनल से मुआवजे की मांग की। ट्रिब्यूनल ने इसे 1.20 लाख रुपये दिए जाने का फैसला सुनाया। बीमा कंपनी इस फैसले के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चली गई। लेकिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ट्रिब्यूनल के फैसले से अपनी सहमति जतायी। ईएसआई एक्ट की धारा 53 के तहत बीमा कंपनी सर्वोच्च न्यायालय में इस फैसले के खिलाफ अपील की। इस धारा के मुताबिक ईएसआई बीमित व्यक्ति या उसके आश्रित नियोक्ता या किसी अन्य व्यक्ति से इस तरह का मुआवजा पाने के अधिकारी नहीं हैं।

विकलांगता आय क्षमता के बराबर नहीं है

सामान्य बीमा कंपनियों द्वारा की गई अपीलों पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि कार्य के दौरान किसी दुर्घटना से हुई विकलांगता की प्रतिशतता श्रमिक की अर्जन क्षमता के नुकसान के समानुपातिक नहीं होगी। कार्य के दौरान दुर्घटना की वजह से आई विकलांगता के मामले वर्कमेन कम्पनसेशन ऐक्ट और मोटर व्हीकल्स एक्ट के तहत विकलांगता के नुकसान के हिसाब से निपटाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, एक मामले में विकलांगता आंशिक है। वर्कमेन ऐक्ट के तहत कमिश्नर ने इसे 20 से 25 फीसदी आंका जबकि उच्च न्यायालय विकलांगता के कारण हुए आय क्षमता के नुकसान को 60 फीसदी तय किया। सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले को यह कहते हुए दरकिनार कर दिया कि उच्च न्यायालय के लिए यह निष्कर्ष निकालने का कोई आधार नहीं है कि विकलांगता की तुलना में आय क्षमता अधिक थी। इसी तरह के मामले 'ऑरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी बनाम मोहम्मद नासिर' में मोटर एक्सीडेंट क्लेम्स ट्रिब्यूनल ने एक ट्रक दुर्घटना के बाद ड्राइवर की विकलांगता को 15 फीसदी आंका था, लेकिन उच्च न्यायालय ने आय नुकसान को बढ़ा कर 100 फीसदी कर दिया।

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