दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज एक अहम फैसला सुनाते हुए भारतीय हॉकी फेडरेशन को भंग करने के केन्द्र सरकार के आदेश को खारिज कर दिया है। साथ ही केन्द्र सरकार और भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन पर इस मामले में दस हजार का जुर्माना भी लगाया है। अदालत का यह निर्णय उस वक्त आया है जब एक स्टिंग ऑपरेशन में संघ के सचिव के जाथिकुमारन को एक खिलाड़ी चयन के लिए रिश्वत लेते हुए दिखाया गया है।
हॉकी संघ के अध्यक्ष केपीएस गिल की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश एस मुरीदिहार ने यह फैसला सुनाया। अदालत ने केन्द्र को हॉकी फेेडरेशन को भंग करने का आदेश को गलत करार दिया और केन्द्र को हॉकी फेडरेशन को बहाल करने को कहा। साथ ही खेल मंत्रालय और भारतीय ओलम्पिक एसोशिएसन पर 10 हजार रूपए जुर्माना भी लगाया गया।
गौरतलब है कि केन्द्र सरकार ने 2008 में बीजिंग ओलम्पिक के तुरंत बाद हॉकी संघ को भंग करने के आदेश दिए थे। भारतीय हॉकी टीम के बीजिंग ओलम्पिक क्वालिफाई नहीं कर पाने और खिलाडियों द्वारा भी संघ पर लगातार पक्षपात करने के आरोपों के बाद सरकार ने यह कदम उठाया था। सरकार ने इसके स्थान पर ए के मट्टू की अध्यक्षता में हॉकी इंडिया का गठन किया था।
हॉकी संघ के अध्यक्ष केपीएस गिल की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश एस मुरीदिहार ने यह फैसला सुनाया। अदालत ने केन्द्र को हॉकी फेेडरेशन को भंग करने का आदेश को गलत करार दिया और केन्द्र को हॉकी फेडरेशन को बहाल करने को कहा। साथ ही खेल मंत्रालय और भारतीय ओलम्पिक एसोशिएसन पर 10 हजार रूपए जुर्माना भी लगाया गया।
गौरतलब है कि केन्द्र सरकार ने 2008 में बीजिंग ओलम्पिक के तुरंत बाद हॉकी संघ को भंग करने के आदेश दिए थे। भारतीय हॉकी टीम के बीजिंग ओलम्पिक क्वालिफाई नहीं कर पाने और खिलाडियों द्वारा भी संघ पर लगातार पक्षपात करने के आरोपों के बाद सरकार ने यह कदम उठाया था। सरकार ने इसके स्थान पर ए के मट्टू की अध्यक्षता में हॉकी इंडिया का गठन किया था।
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