पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Friday, July 30, 2010

ऑल इंडिया बार परीक्षा को चुनौती

राजस्थान हाईकोर्ट ने ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन के मामले में केंद्र सरकार के विधि सचिव और बार काउंसिल ऑफ इंडिया व बार काउंसिल ऑफ राजस्थान के अध्यक्ष को नोटिस जारी कर दो सप्ताह में जवाब मांगा है। यह आदेश न्यायाधीश गोविंद माथुर ने बुधवार को अंकुर माथुर की याचिका पर दिए।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता एमसी भूत, आनंद पुरोहित व नुपुर भाटी ने कहा कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने 12 जून 2010 को अधिसूचना जारी कर वर्ष 2009/10 में या इसके बाद उत्तीर्ण होने वाले विधि स्नातकों के वकालात करने के लिए ऑल इंडिया बार एग्जाम देना जरूरी कर दिया था। इस अधिसूचना के तहत राष्ट्रीय स्तर पर यह परीक्षा 5 दिसंबर 2010 को आयोजित किया जाना तय किया गया। परीक्षा के एक माह बाद इसका परिणाम आएगा व इस परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाले अभ्यर्थियों को वकालात करने की अनुमति दी जाएगी।

याचिका में इसे चुनौती देते हुए कहा गया कि विधि स्नातक डिग्री परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद विद्यार्थियों को वकालात के पेशे में आने के लिए करीब आठ माह इंतजार करना पड़ेगा और बार काउंसिल ऑफ इंडिया को इस प्रकार के नियम बनाने का कोई अधिकार नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 1999 में वी. सुधीर बनाम बार काउंसिल ऑफ इंडिया के मामले में कहा गया है कि अधिवक्ता अधिनियम की धारा 24 की शर्तों पर कोई भी नियम रोक नहीं लगा सकता।

ऐसे नियम बनाने से पहले अधिवक्ता अधिनियम में संशोधन करना आवश्यक है। याचिका में यह भी कहा गया कि अधिवक्ता अधिनियम के तहत अधिवक्ताओं को तीन श्रेणियों में विभाजित नहीं किया जा सकता। नए प्रावधानों के बाद वरिष्ठ अधिवक्ता, सामान्य अधिवक्ता व ट्रेनी अधिवक्ता की श्रेणियां बन जाएंगी जो अधिवक्ता अधिनियम के विरुद्ध है।

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