प्रशासनिक सेवा परीक्षा उत्तीर्ण करने के तीन साल बाद दृष्टि बाधित व्यक्ति रविप्रकाश गुप्ता के प्रतिष्ठित भारतीय प्रशासनिक पद पर नियुक्ति की सभी बाधाएं समाप्त करते हुए उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को केन्द्र को निर्देश दिया कि उसे आठ हफ्ते के भीतर नियुक्त किया जाए।
न्यायमूर्ति अल्तमश कबीर और न्यायमूर्ति सी जोसेफ की पीठ ने केन्द्र को यह भी निर्देश दिया कि वह गुप्ता को मुकदमे के खर्च के रूप में 20 हजार रुपये का भुगतान करे। शीर्ष न्यायालय में गुप्ता ने अपने मामले की स्वयं सफल पैरवी की।
शीर्ष न्यायालय ने यह निर्देश दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को उचित ठहराते हुए दिया। उच्च न्यायालय ने कहा था कि सरकार का दायित्व बनता है कि वह निशक्तता कानून के तहत 1996 से निशक्त लोगों के लिए खाली पड़े सात पदों पर भर्तियां करे।
पीठ ने केन्द्र की इस दलील को खारिज कर दिया कि पदों की पहचान होने के बाद ही उन्हें भरा जा सकता है। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि इस प्रकार की दलील को स्वीकार करना उस तरह की स्थिति को स्वीकार करने के समान होगा जिसमें नौकरशाही की निष्क्रियता के कारण निशक्तता कानून 1995 की धारा 33 के प्रावधानों को अनिश्चित काल के लिए टाला जा सकता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 25 फरवरी 2009 को भी इसी तरह का निर्देश देते हुए सरकार से गुप्ता को नियुक्त करने को कहा था। सरकार पर 25 हजार रूपये का जुर्माना लगाया गया था। इस फैसले को केन्द्र ने शीर्ष न्यायालय में चुनौती दी। गुप्ता ने 2006 में प्रशासनिक सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की थी। लेकिन कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने उसे नियुक्ति देने से इंकार कर दिया। विभाग ने कहा कि निशक्त व्यक्तियों के लिए केवल एक पद है जिसमें अन्य शारीरिक निशक्तता के लोग भी शामिल होते हैं।
न्यायमूर्ति अल्तमश कबीर और न्यायमूर्ति सी जोसेफ की पीठ ने केन्द्र को यह भी निर्देश दिया कि वह गुप्ता को मुकदमे के खर्च के रूप में 20 हजार रुपये का भुगतान करे। शीर्ष न्यायालय में गुप्ता ने अपने मामले की स्वयं सफल पैरवी की।
शीर्ष न्यायालय ने यह निर्देश दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को उचित ठहराते हुए दिया। उच्च न्यायालय ने कहा था कि सरकार का दायित्व बनता है कि वह निशक्तता कानून के तहत 1996 से निशक्त लोगों के लिए खाली पड़े सात पदों पर भर्तियां करे।
पीठ ने केन्द्र की इस दलील को खारिज कर दिया कि पदों की पहचान होने के बाद ही उन्हें भरा जा सकता है। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि इस प्रकार की दलील को स्वीकार करना उस तरह की स्थिति को स्वीकार करने के समान होगा जिसमें नौकरशाही की निष्क्रियता के कारण निशक्तता कानून 1995 की धारा 33 के प्रावधानों को अनिश्चित काल के लिए टाला जा सकता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 25 फरवरी 2009 को भी इसी तरह का निर्देश देते हुए सरकार से गुप्ता को नियुक्त करने को कहा था। सरकार पर 25 हजार रूपये का जुर्माना लगाया गया था। इस फैसले को केन्द्र ने शीर्ष न्यायालय में चुनौती दी। गुप्ता ने 2006 में प्रशासनिक सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की थी। लेकिन कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने उसे नियुक्ति देने से इंकार कर दिया। विभाग ने कहा कि निशक्त व्यक्तियों के लिए केवल एक पद है जिसमें अन्य शारीरिक निशक्तता के लोग भी शामिल होते हैं।
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