सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात पुलिस द्वारा सोहराबुद्दीन शेख, उसकी पत्नी और एक अन्य गवाह की कथित फर्जी मुठभेड़ में हत्या के मुकदमे का सामना कर रहे एक आईपीएस अधिकारी द्वारा पेश जमानत याचिका पर सोमवार को सुनवाई करने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति पी सताशिवम और न्यायमूर्ति एच एल दत्तू की पीठ ने कहा कि एम एन दिनेश की याचिका पर सुनवाई करना उचित नहीं होगा क्योंकि न्यायमूर्ति तरूण चटर्जी और एच एल दत्तू की एक अन्य पीठ ने इस हत्याकांड की सीबीआई-एसआईटी जांच के लिए याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा है।
शीर्ष न्यायालय ने वरिष्ठ अधिवक्ता यू यू ललित की याचिका को भी स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि इस मामले में कम से कम गुजरात सरकार को एक नोटिस ही दे दिया जाए क्योंकि इसके फैसले में कुछ समय और लगेगा।
सरकार की ओर से सहायता के नियुक्त वकील और पीड़ितों के परिजनों की ओर से पेश महाधिवक्ता गोपाल सुब्रह्मण्यम ने इससे पहले गोधरा के बाद हुई हिंसा की जांच के लिए सीबीआई या एसआईटी को मामला सौंपने की मांग की थी जिसके बाद पीठ ने इस संबंध में फैसला सुरक्षित रख लिया।
सोहराबुद्दीन, कौसर बी और उनके मित्र तुलसीराम प्रजापति को गुजरात और आंध्र प्रदेश की पुलिस ने एक संयुक्त अभियान के तहत हैदराबाद से महाराष्ट्र के सांगली जा रही बस से 22 नवंबर 2005 को उतार लिया था।
इस मामले में तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी आरोपी हैं जिनमें गुजरात कैडर के डी जी बंजारा [उप महानिरीक्षक], राजकुमार पांडियान [पुलिस अधीक्षक] और राजस्थान कैडर के दिनेश शामिल हैं।
शुरूआत में गुजरात पुलिस ने दावा किया था कि सोहराबुद्दीन रंगदारी में लिप्त एक अपराधी था और उसके खिलाफ विभिन्न राज्यों में लगभग 54 मामले दर्ज थे। ऐसा दावा किया गया था गुजरात पुलिस और राजस्थान पुलिस के आतंकवाद रोधी दस्ते के साथ मुठभेड़ में वह मारा गया था।
न्यायमूर्ति पी सताशिवम और न्यायमूर्ति एच एल दत्तू की पीठ ने कहा कि एम एन दिनेश की याचिका पर सुनवाई करना उचित नहीं होगा क्योंकि न्यायमूर्ति तरूण चटर्जी और एच एल दत्तू की एक अन्य पीठ ने इस हत्याकांड की सीबीआई-एसआईटी जांच के लिए याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा है।
शीर्ष न्यायालय ने वरिष्ठ अधिवक्ता यू यू ललित की याचिका को भी स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि इस मामले में कम से कम गुजरात सरकार को एक नोटिस ही दे दिया जाए क्योंकि इसके फैसले में कुछ समय और लगेगा।
सरकार की ओर से सहायता के नियुक्त वकील और पीड़ितों के परिजनों की ओर से पेश महाधिवक्ता गोपाल सुब्रह्मण्यम ने इससे पहले गोधरा के बाद हुई हिंसा की जांच के लिए सीबीआई या एसआईटी को मामला सौंपने की मांग की थी जिसके बाद पीठ ने इस संबंध में फैसला सुरक्षित रख लिया।
सोहराबुद्दीन, कौसर बी और उनके मित्र तुलसीराम प्रजापति को गुजरात और आंध्र प्रदेश की पुलिस ने एक संयुक्त अभियान के तहत हैदराबाद से महाराष्ट्र के सांगली जा रही बस से 22 नवंबर 2005 को उतार लिया था।
इस मामले में तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी आरोपी हैं जिनमें गुजरात कैडर के डी जी बंजारा [उप महानिरीक्षक], राजकुमार पांडियान [पुलिस अधीक्षक] और राजस्थान कैडर के दिनेश शामिल हैं।
शुरूआत में गुजरात पुलिस ने दावा किया था कि सोहराबुद्दीन रंगदारी में लिप्त एक अपराधी था और उसके खिलाफ विभिन्न राज्यों में लगभग 54 मामले दर्ज थे। ऐसा दावा किया गया था गुजरात पुलिस और राजस्थान पुलिस के आतंकवाद रोधी दस्ते के साथ मुठभेड़ में वह मारा गया था।
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