पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Tuesday, January 19, 2010

सिखों को हिंदुओं से अलग करने संबंधी याचिका खारिज।


सुप्रीम कोर्ट ने सिख समुदाय में पैदा होने वाले व्यक्ति को हिंदू विवाह कानून के तहत जन्म प्रमाण पत्र जारी करने से संबंधित जनहित याचिका पर कोई आदेश जारी करने से इन्कार कर दिया है। याचिका में कहा गया था कि इसकी वजह से दुनिया भर के आप्रवासन अधिकारियों को यह बताना कठिन हो जाता है कि यह समुदाय हिंदुओं से अलग है। याचिका में अदालत से सिख समुदाय को हिंदू विवाह अधिनियम के दायरे से बाहर करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 25 में संशोधन के निर्देश देने का आग्रह किया गया था।

मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष सोमवार को वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा, विदेश में विशेषकर आप्रवासन अधिकारियों को यह समझा पाना बहुत कठिन हो जाता है कि सिख समुदाय को जन्म प्रमाण पत्र तो हिंदू विवाह कानून के तहत दिए जाते हैं लेकिन धार्मिक दृष्टि से यह समुदाय हिंदुओं से अलग है। रोहतगी जोगिंदर सिंह सेठी नामक सिख द्वारा दायर जनहित याचिका की पैरवी कर रहे थे।

सुप्रीम कोर्ट पीठ ने कहा कि हालांकि वह इस याचिका में उठाए गए मुद्दे से सहमत है। लेकिन इस पर विचार नहीं किया जा सकता क्योंकि यह सरकार के अधिकार क्षेत्र का मामला है। पीठ ने कहा, हम जानते हैं कि लोगों को समझाना बहुत कठिन है लेकिन हम कोई निर्देश जारी नहीं कर सकते।

उल्लेखनीय है कि न्यायाधीश एम.एन. वेंकटचलैया की अध्यक्षता वाले आयोग ने बौद्ध, जैन और सिख धर्मावलंबियों को हिंदू विवाह कानून से अलग करने की संस्तुति की थी। इस याचिका के जरिए इन वेंकटचलैया आयोग की सिफारिशें लागू करने के लिए सरकार को निर्देश देने की भी मांग की गई थी।

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