राजस्थान उच्च न्यायालय ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि विचाराधीन आपराधिक मुकदमा सरकारी नौकरी पाने में बाधक नहीं है। न्यायमूर्ती ए के रस्तौगी ने महेश कुमार वर्मा की याचिका पर यह फैसला दिया। न्यायालय ने याचिकाकर्ता को लैब टैक्नीशियन के पद पर कार्यग्रहण कराने के निर्देश दिए।
मामले के अनुसार याचिकाकर्ता के विरद्ध वर्ष १९९७ में मुकदमा दर्ज हुआ था तथा ९ दिसंबर १९९७ को उसे अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सीकर ने बरी कर दिया था। फिर वर्ष २००६ में उसके खिलाफ एक अन्य मामला दर्ज हुआ और आरोप पत्र न्यायालय में पेश हो गया।
इसमें राजीनामा होने के बाद प्रकरण अदालत में विचाराधीन रहते उसे अतिरिक्त निदेशक (प्रशासन) चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ने चयनित होने के बावजूद उसे लैब टैक्नीशियन के पद पर कार्यग्रहण कराने से मना कर दिया, तत्पश्चात मामला उच्च न्यायालय पहुंचा और न्यायालय को बताया कि उसे विभाग को अपने विरूद्ध आपराधिक मुकदमा विचाराधीन रहने की जानकारी दे दी थी।
इस पर न्यायालय ने स्वास्थ्य विभाग से जवाब तलब करते हुये याचिकाकर्ता को तुरंत कार्यग्रहण कराने के निर्देश दिये।
मामले के अनुसार याचिकाकर्ता के विरद्ध वर्ष १९९७ में मुकदमा दर्ज हुआ था तथा ९ दिसंबर १९९७ को उसे अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सीकर ने बरी कर दिया था। फिर वर्ष २००६ में उसके खिलाफ एक अन्य मामला दर्ज हुआ और आरोप पत्र न्यायालय में पेश हो गया।
इसमें राजीनामा होने के बाद प्रकरण अदालत में विचाराधीन रहते उसे अतिरिक्त निदेशक (प्रशासन) चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ने चयनित होने के बावजूद उसे लैब टैक्नीशियन के पद पर कार्यग्रहण कराने से मना कर दिया, तत्पश्चात मामला उच्च न्यायालय पहुंचा और न्यायालय को बताया कि उसे विभाग को अपने विरूद्ध आपराधिक मुकदमा विचाराधीन रहने की जानकारी दे दी थी।
इस पर न्यायालय ने स्वास्थ्य विभाग से जवाब तलब करते हुये याचिकाकर्ता को तुरंत कार्यग्रहण कराने के निर्देश दिये।
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