मुस्लिम कानून के तहत मां की मौत या उसके तलाक के बाद अवयस्क लड़की के देखभाल का हक उसकी महिला रिश्तेदारों को मिलता है। भले ही पिता बच्ची की देखभाल करने में सक्षम हों, लेकिन यह अधिकार उन्हें नहीं दिया जा सकता।पिता यदि अपनी पुत्री की गार्जियनशिप (संरक्षण का अधिकार) चाहते हों तो उन्हें गार्जियन एंड वार्डस एक्ट 1890 की धारा 7, 9 व 17 के तहत दावा करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया। शीर्ष कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि मुस्लिम लड़कियों की देखभाल का अंतरिम अधिकार उसकी महिला रिश्तेदारों का है। इनमें उसकी दादी, नानी, चाची, मामी, सगी बहनें, पिता की दादी, बहन की पुत्री शामिल हैं।
शीर्ष कोर्ट ने अपने आदेश में कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। यह मामला अतहर हुसैन नामक व्यक्ति का है, जिसने अपनी 13-वर्षीय पुत्री आतिया की कस्टडी का दावा किया था। आतिया की मां की 2007 में हड्डियों के कैंसर से मौत हो गई थी। यह मामला फैमिली कोर्ट से होते हुए शीर्ष कोर्ट तक पहुंचा था।
शीर्ष कोर्ट ने अपने आदेश में कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। यह मामला अतहर हुसैन नामक व्यक्ति का है, जिसने अपनी 13-वर्षीय पुत्री आतिया की कस्टडी का दावा किया था। आतिया की मां की 2007 में हड्डियों के कैंसर से मौत हो गई थी। यह मामला फैमिली कोर्ट से होते हुए शीर्ष कोर्ट तक पहुंचा था।
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