राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य में पिछली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के समय कथित भ्रष्टाचार की जांच के लिए गठित माथुर आयोग को अवैध ठहरा दिया तथा भ्रष्टाचार की समस्त जांच लोकायुक्त को भेजने के निर्देश दिए। न्यायाधीश आर. सी. गांधी एवं महेश भगवती की खण्डपीठ ने काशी पुरोहित तथा अन्य की जनहित याचिका पर यह फैसला दिया।
अधिवक्ता अभिनव शर्मा ने आयोग के गठन को संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ बताते हुए इस आयोग को रद्द करने की प्रार्थना की थी। अधिवक्ता का तर्क था कि राज्य सरकार ने राजनीतिक विद्वेषता के चलते इस आयोग का गठन किया है जबकि सरकार के पास पिछली भाजपा सरकार द्वारा भ्रष्टाचार करने के कोई ठोस एवं पुख्ता प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
इस पर न्यायालय ने यह कहते हुए जांच लोकायुक्त को सौंप दी कि राजनीतिक विद्वेष को चलने दिया और आयोग बनते रहे तो राज्य में अस्थिरता आ जाएगी। इसका प्रशासनिक स्तर पर भी दुष्प्रभाव पडेगा। ऎसे में इस आयोग को जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है, वह भी तब जबकि सरकार के पास प्रारंभिक तौर पर भ्रष्टाचार के कोई सबूत नहीं है। सरकार कोई जांच कराना चाहती है तो किसी निष्पक्ष एजेंसी से कराए जो दोषी अधिकारियों को सजा दिला सके।
अधिवक्ता अभिनव शर्मा ने आयोग के गठन को संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ बताते हुए इस आयोग को रद्द करने की प्रार्थना की थी। अधिवक्ता का तर्क था कि राज्य सरकार ने राजनीतिक विद्वेषता के चलते इस आयोग का गठन किया है जबकि सरकार के पास पिछली भाजपा सरकार द्वारा भ्रष्टाचार करने के कोई ठोस एवं पुख्ता प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
इस पर न्यायालय ने यह कहते हुए जांच लोकायुक्त को सौंप दी कि राजनीतिक विद्वेष को चलने दिया और आयोग बनते रहे तो राज्य में अस्थिरता आ जाएगी। इसका प्रशासनिक स्तर पर भी दुष्प्रभाव पडेगा। ऎसे में इस आयोग को जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है, वह भी तब जबकि सरकार के पास प्रारंभिक तौर पर भ्रष्टाचार के कोई सबूत नहीं है। सरकार कोई जांच कराना चाहती है तो किसी निष्पक्ष एजेंसी से कराए जो दोषी अधिकारियों को सजा दिला सके।
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