पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Sunday, April 12, 2009

मृत्युशैया पर बयान दर्ज करवाने के लिए मजिस्ट्रेट का होना अनिवार्य नहीं

उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि मृत्यु शैया पर दिये गये बयान को अदालतें स्वीकार कर सकती हैं भले ही उस बयान को न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज न किया गया हो। सर्वोच्य न्यायालय ने लक्ष्मण बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में पूर्व में दिये फैसले का उदाहरण देते हुए कहा, ''ऐसा कोई नियम नहीं है कि मृत्यु शैया पर दिया गया बयान सिर्फ मजिस्ट्रेट द्वारा ही दर्ज किया गया हो और यदि ऐसा बयान मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया गया है तो इस प्रकार के बयान के लिए कोई विनिदर्ष्टि संवैधानिक प्रारूप नहीं है।'' न्यायमूर्ति अरिजित पसायत और अशोक कुमार गांगुली की एक पीठ ने कहा कि मृत्यु शैया पर दिया गया बयान मौखिक, लिखित या शब्दों और संकेतों द्वारा दिया जा सकता है। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि जब मृत्यु शैया पर बयान दिये जाने की स्थिति में न तो शपथ की जरूरत है और न ही मजिस्ट्रेट की मौजूदगी की। पीठ ने यह आदेश राजस्थान उच्च न्यायालय के उस फैसले को खारिज करते हुए दिया जिसमें पत्नी पन्नी देवी की 11 दिसंबर 1995 को हत्या करने वाले चंपा लाल को बरी कर दिया गया था।
जोधपुर की सत्र अदालत ने चंपा लाल को दोषी ठहराते हुए उम्र कैद की सजा सुनायी थी लेकिन अपील करने पर उच्च न्यायालय ने उसे इस आधार पर बरी कर दिया था कि मृत्यु शैया पर पन्नी देवी का बयान थाना प्रभारी ने दर्ज किया था। न्यायालय ने दोषी को आत्मसमर्पण करने और यदि सजा बाकी हो तो उसे भुगतने का आदेश दिया है।
पन्नी देवी ने मृत्यु शैया पर दिये बयान में कहा था कि लाल ने उसके चरित्र पर लांछन लगाते हुए उसे आग लगा दी थी। उच्च न्यायालय का कहना था चूंकि बयान को मजिस्ट्रेट की अनुपस्थिति में दिया गया था इसलिए आरोपी को दोषी ठहराने के लिए इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

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