पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Saturday, April 18, 2009

न्यायाधीश भी दिखाएँ न्यायिक संयम

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि न्यायाधीशों को संयम दिखाना चाहिए और जब तक किसी मामले में फैसले सुनाने के लिए जरूरी न हो प्रतिकूल टिप्पणी करने से उन्हें बचना चाहिए।
अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश प्रकाशसिंह तेजी के खिलाफ की गई दिल्ली उच्च न्यायालय की एक टिप्पणी को कार्यवाही से हटाते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि न्याय के व्यवस्थित प्रशासन के लिए न्यायिक संयम और अनुशासन उतना ही जरूरी है जितना यह सेना में प्रभावी होता है।
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति केजी बालकृष्ण और न्यायमूर्ति पी. सताशिवम की पीठ ने कहा कि न्यायाधीशों का यह कर्तव्य है कि वे न्यायपालिक की स्वतंत्रता बचाए रखने के लिए संयम और विनम्रता बनाए रखें।
पीठ ने कहा कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में यह गुणवत्ता न्यायाधीशों के सम्मान को लेकर उतनी ही जरूरी है जितनी आवश्यक यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने छह जुलाई 2006 को एक फैसला सुनाते हुए दिल्ली के अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी दी थी।

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