उच्चतम न्यायालय ने अपने एक अहम फ़ैसले में व्यवस्था दी है कि किसी भी मामले में तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर ही अग्रिम जमानत के आवेदन पर निर्णय लिया जाना चाहिए क्योंकि इससे व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सवाल जुड़ा है जिसे हल्के में नहीं लिया जा सकता. न्यायमूर्ति तरुण चटर्जी और न्यायमूर्ति सुरिंदर सिंह निज्जर की खंडपीठ ने धोखाधड़ी से जुडे एक मामले में अग्रिम जमानत मंजूर करते हुए यह व्यवस्था दी. खंडपीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार नहीं कर बहुत बड़ी कानूनी भूल की है. उच्च न्यायालय को तथ्यों और परिस्थितियों की जांच में अपने विवेक के इस्तेमाल की जरत थी. यदि उसे उपयुक्त जान पड़ता तो वह जमानत मंजूर करता. खंडपीठ ने कहा कि यह स्पष्ट व्यवस्था है कि जबतक आवेदनकर्ता गिरफ्तार नहीं किया जाता, तब तक कभी भी उसे अग्रिम जमानत मंजूर की जा सकती है. उल्लेखनीय है कि आवेदनकर्ता रबीना सक्सेना ने अग्रिम जमानत के लिए तीन बार राजस्थान उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन तीनों बार उसे नामंजूर कर दिया गया. श्री सक्सेना के अनुसार संबंधित विवाद दीवानी प्रकृति का है और शिकायतकर्ता अवकाश प्राप्त पुलिस अधिकारी के बेटे ने दीवानी मामले वापस लेने के वास्ते उस पर दवाब बनाने के लिए उसके खिलाफ़ झूठे मामले दर्ज किए हैं.
Tuesday, December 29, 2009
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