सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के मामले एक अनूठा फैसला देते हुए बीवी को बेरोजगार पति का कानूनी खर्च उठाने का निर्देश दिया है। आम तौर पर सीआरपीसी की धारा 125 के तहत तलाक के मुकदमे के दौरान पति का कर्तव्य माना जाता है कि वह पत्नी या उसके माता-पिता को मुकदमे के दौरान या तलाक के बाद गुजारा भत्ता दे।
न्यायाधीश दलवीर भंडारी की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह आदेश मद्रास निवासी संतोष के. स्वामी और बेंगलूरू में रह रही उनकी पत्नी इनेश मिरांडा के तलाक के मामले में यह आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कानून के शब्दों के बजाए उसकी भावनाओं को अहमियत देते हुए मिरांडा को निर्देश दिया कि वह मुकदमा लड़ने के लिए पति को 10 हजार रूपए दे।
यह है मामला
मिरांडा ने स्वामी पर घरेलू हिंसा का आरोप लगाते हुए बेंगलूरू की अदालत में तलाक की अर्जी दी थी। इसके बाद स्वामी ने मिरांडा के खुद संबंध तोड़ लेने का हवाला देते हुए चेन्न्ई की परिवार अदालत से दखल देने की अपील की थी। चेन्नई कोर्ट ने मिरांडा को हाजिर होने के निर्देश दिए। मिरांडा इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चली गई। मिरांडा का आरोप है कि स्वामी की तलाक की अर्जी के जवाब में उन्हें परेशान करने के लिए जानबूझकर चेन्नई में मामला दायर किया।
न्यायाधीश दलवीर भंडारी की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह आदेश मद्रास निवासी संतोष के. स्वामी और बेंगलूरू में रह रही उनकी पत्नी इनेश मिरांडा के तलाक के मामले में यह आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कानून के शब्दों के बजाए उसकी भावनाओं को अहमियत देते हुए मिरांडा को निर्देश दिया कि वह मुकदमा लड़ने के लिए पति को 10 हजार रूपए दे।
यह है मामला
मिरांडा ने स्वामी पर घरेलू हिंसा का आरोप लगाते हुए बेंगलूरू की अदालत में तलाक की अर्जी दी थी। इसके बाद स्वामी ने मिरांडा के खुद संबंध तोड़ लेने का हवाला देते हुए चेन्न्ई की परिवार अदालत से दखल देने की अपील की थी। चेन्नई कोर्ट ने मिरांडा को हाजिर होने के निर्देश दिए। मिरांडा इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चली गई। मिरांडा का आरोप है कि स्वामी की तलाक की अर्जी के जवाब में उन्हें परेशान करने के लिए जानबूझकर चेन्नई में मामला दायर किया।
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