मुंबई के एक अस्पताल में 36 साल से अपंग पड़ी महिला के लिए मौत की इजाजत मांगने वाली याचिका को बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया। चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन और जस्टिस एके गांगुली ने कहा कि वह भारतीय कानून के तहत किसी को भी मरने की इजाजत नहीं दे सकते। इस पूरी घटना पर केंद्र और महाराष्ट्र सरकार से जवाब भी तलब किया गया है।
मालूम हो कि 1973 में अरुणा के साथ मुंबई के केईएम अस्पताल में एक सफाई कर्मचारी ने दुष्कर्म किया था। सोहनलाल नाम के इस शख्स ने अरुणा का गला एक चेन से बांध दिया और उसके साथ बलात्कार किया। यह हादसा अरुणा के लिए इतना खौफनाक रहा कि वह उसके बाद अपंग हो गयी। 36 साल बाद भी जब उसकी हालत में कोई सुधार नहीं आया, तब उसने अपनी दोस्त के जरिए यह याचिका कोर्ट में डलवायी।
अरुणा के वकील ने दलील दी है कि आम लोगों की तरह अरुणा को अच्छी जिंदगी जीने का हक है, लेकिन जिस तरह की जिंदगी उसे गुजारनी पड़ रही है, वह उसके लिए मौत से कम भी नहीं।
मालूम हो कि 1973 में अरुणा के साथ मुंबई के केईएम अस्पताल में एक सफाई कर्मचारी ने दुष्कर्म किया था। सोहनलाल नाम के इस शख्स ने अरुणा का गला एक चेन से बांध दिया और उसके साथ बलात्कार किया। यह हादसा अरुणा के लिए इतना खौफनाक रहा कि वह उसके बाद अपंग हो गयी। 36 साल बाद भी जब उसकी हालत में कोई सुधार नहीं आया, तब उसने अपनी दोस्त के जरिए यह याचिका कोर्ट में डलवायी।
अरुणा के वकील ने दलील दी है कि आम लोगों की तरह अरुणा को अच्छी जिंदगी जीने का हक है, लेकिन जिस तरह की जिंदगी उसे गुजारनी पड़ रही है, वह उसके लिए मौत से कम भी नहीं।
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