सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को राजस्थान की पूववर्ती सरकार के कार्यकाल के मामलों की जांच के लिए गठित माथुर आयोग के पास विचाराधीन मामले लोकायुक्त को सौंपने के राजस्थान हाईकोर्ट के चार जनवरी के फैसले पर यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए हैं। माथुर आयोग व कांगे्रस से जवाब-तलब भी किया है। मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्णन व न्यायाधीश दीपक वर्मा की खण्डपीठ ने इस मामले की सुनवाई की।
राज्य सरकार की ओर से सालीसिटर जनरल गोपाल सुब्रहमण्यम व अभिषेक गुप्ता ने हाई कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि पूर्व न्यायाधीश एन.एन. माथुर की अध्यक्षता में पूर्ववती सरकार पर लगे आरोपों की तथ्यात्मक जांच करवाने के कमेटी का गठन किया गया था, राज्य सरकार को ऎसा करने का पूरा अघिकार है। संविधान में तीनों अंगों के अलग-अलग दायित्व बताए हैं, इसलिए हाईकोर्ट को इस मामले में दखल का अघिकार ही नहीं था। सरकारी पक्ष ने हाई कोर्ट में याचिका को राजनीति से प्रेरित बताया। साथ ही, कहा कि हाईकोर्ट ने वह निर्णय दिया है, जिसकी जनहित याचिका में मांग ही नहीं की गई थी।
हाईकोर्ट ने सरकार को आयोग बनाने के लिए सक्षम माना और उसके गठन में कोई आपत्ति भी नहीं मानी, इसके बावजूद आयोग से काम छीनकर लोकायुक्त को देने का आदेश कर दिया, जबकि लोकायुक्त यह जांच करने में सक्षम ही नहीं है।
राज्य सरकार की ओर से सालीसिटर जनरल गोपाल सुब्रहमण्यम व अभिषेक गुप्ता ने हाई कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि पूर्व न्यायाधीश एन.एन. माथुर की अध्यक्षता में पूर्ववती सरकार पर लगे आरोपों की तथ्यात्मक जांच करवाने के कमेटी का गठन किया गया था, राज्य सरकार को ऎसा करने का पूरा अघिकार है। संविधान में तीनों अंगों के अलग-अलग दायित्व बताए हैं, इसलिए हाईकोर्ट को इस मामले में दखल का अघिकार ही नहीं था। सरकारी पक्ष ने हाई कोर्ट में याचिका को राजनीति से प्रेरित बताया। साथ ही, कहा कि हाईकोर्ट ने वह निर्णय दिया है, जिसकी जनहित याचिका में मांग ही नहीं की गई थी।
हाईकोर्ट ने सरकार को आयोग बनाने के लिए सक्षम माना और उसके गठन में कोई आपत्ति भी नहीं मानी, इसके बावजूद आयोग से काम छीनकर लोकायुक्त को देने का आदेश कर दिया, जबकि लोकायुक्त यह जांच करने में सक्षम ही नहीं है।
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