एक मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि महंगाई के दौर में पत्नी को गुजर बसर के लिए हर दिन कम से कम सौ रुपए चाहिए होते हैं। ऐसे में हर माह के भरण पोषण के लिए पति द्वारा पत्नी को तीन हजार रुपए अदा करना एकदम उचित है।
इस मत के साथ जस्टिस आरएस गर्ग और जस्टिस केएस चौहान की युगलपीठ ने याचिकाकर्ता पति को कहा है कि वह पत्नी द्वारा दिए गए आवेदन की तारीख से अब तक के भरण-पोषण की राशि 20 अप्रैल तक जमा कराए। साथ ही हर माह की दस तारीख तक वह पत्नी को गुजर-बसर की राशि कोर्ट के जरिए प्रदान करे।
प्रकरण के अनुसार कटनी के उमेश चंद्र का विवाह वर्ष 1991 में नरसिंहपुर में रहने वाली वंदना के साथ हुआ था। विवाह के बाद वंदना ने एक पुत्र और एक पुत्री को जन्म दिया। वर्ष 2001 में हुए विवाद के बाद से उमेश के साथ उसका पुत्र और वंदना अपने मायके में अपनी पुत्री को लेकर रह रही है।
उमेश का कहना है कि उसके काफी प्रयासों के बाद भी वंदना उसके साथ नहीं रह रही, बल्कि मार्च 2009 में सीजेएम की कोर्ट में भरण पोषण के लिए अर्जी दायर की। इस अर्जी पर सीजेएम ने वंदना को हर माह पांच सौ रुपए देने कहा। बाद में जिला न्यायालय ने यह कहते हुए भरण-पोषण देने का आदेश निरस्त कर दिया कि वंदना बिना किसी कारण के अलग रह रही, इसलिए वह इस राशि को पाने की हकदार नहीं है। इसके बाद यह मामला हाईकोर्ट में दायर किया गया।
इस मामले पर हुई सुनवाई के दौरान वंदना की ओर से अधिवक्ता जेए शाह ने युगलपीठ को बताया कि उमेश को हर माह करीब साढ़े 11 हजार रुपए पगार के रूप में मिल रहे हैं, ऐसे में उनकी मुवक्किल को इतनी राशि मिलना ही चाहिए, जिससे वह अपना और अपनी बच्ची का गुजर-बसर कर सके।
उमेश की ओर से दलील दी गई कि उसे हर माह सिर्फ साढ़े 9 हजार रुपए तनख्वाह मिलती है। इतनी कम राशि में उसे अपने पुत्र और वृद्ध माता-पिता की देखभाल करना पड़ती है ऐसे में उमेश को मात्र दो हजार रुपए हर माह वंदना को देने के निर्देश दिए जाएं। दोनों पक्षों को सुनने के बाद युगलपीठ ने महंगाई के दौर को देखते हुए वंदना को हर माह तीन हजार रुपए देने के आदेश उमेश को दिए। मामले का निराकरण करते हुए युगलपीठ ने इसके अलावा चार हजार रुपए की राशि वाद व्यय के रूप में वंदना को देने के आदेश भी उमेश को दिए।
इस मत के साथ जस्टिस आरएस गर्ग और जस्टिस केएस चौहान की युगलपीठ ने याचिकाकर्ता पति को कहा है कि वह पत्नी द्वारा दिए गए आवेदन की तारीख से अब तक के भरण-पोषण की राशि 20 अप्रैल तक जमा कराए। साथ ही हर माह की दस तारीख तक वह पत्नी को गुजर-बसर की राशि कोर्ट के जरिए प्रदान करे।
प्रकरण के अनुसार कटनी के उमेश चंद्र का विवाह वर्ष 1991 में नरसिंहपुर में रहने वाली वंदना के साथ हुआ था। विवाह के बाद वंदना ने एक पुत्र और एक पुत्री को जन्म दिया। वर्ष 2001 में हुए विवाद के बाद से उमेश के साथ उसका पुत्र और वंदना अपने मायके में अपनी पुत्री को लेकर रह रही है।
उमेश का कहना है कि उसके काफी प्रयासों के बाद भी वंदना उसके साथ नहीं रह रही, बल्कि मार्च 2009 में सीजेएम की कोर्ट में भरण पोषण के लिए अर्जी दायर की। इस अर्जी पर सीजेएम ने वंदना को हर माह पांच सौ रुपए देने कहा। बाद में जिला न्यायालय ने यह कहते हुए भरण-पोषण देने का आदेश निरस्त कर दिया कि वंदना बिना किसी कारण के अलग रह रही, इसलिए वह इस राशि को पाने की हकदार नहीं है। इसके बाद यह मामला हाईकोर्ट में दायर किया गया।
इस मामले पर हुई सुनवाई के दौरान वंदना की ओर से अधिवक्ता जेए शाह ने युगलपीठ को बताया कि उमेश को हर माह करीब साढ़े 11 हजार रुपए पगार के रूप में मिल रहे हैं, ऐसे में उनकी मुवक्किल को इतनी राशि मिलना ही चाहिए, जिससे वह अपना और अपनी बच्ची का गुजर-बसर कर सके।
उमेश की ओर से दलील दी गई कि उसे हर माह सिर्फ साढ़े 9 हजार रुपए तनख्वाह मिलती है। इतनी कम राशि में उसे अपने पुत्र और वृद्ध माता-पिता की देखभाल करना पड़ती है ऐसे में उमेश को मात्र दो हजार रुपए हर माह वंदना को देने के निर्देश दिए जाएं। दोनों पक्षों को सुनने के बाद युगलपीठ ने महंगाई के दौर को देखते हुए वंदना को हर माह तीन हजार रुपए देने के आदेश उमेश को दिए। मामले का निराकरण करते हुए युगलपीठ ने इसके अलावा चार हजार रुपए की राशि वाद व्यय के रूप में वंदना को देने के आदेश भी उमेश को दिए।
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