पश्चिम बंगाल को सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी है। सार्वजनिक स्थानों पर पूजा स्थलों के अवैध निर्माण के मामले में राज्य सरकार ने अदालत में अगर तीन सप्ताह में हलफनामा दाखिल नहीं किया तो राज्य के मुख्य सचिव को अदालत में पेश होना पड़ेगा।
न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी की अध्यक्षता वाली पीठ ने मंगलवार को ये निर्देश जारी किए। पश्चिम बंगाल इकलौता राज्य है, जिसने अब तक इस सिलसिले में उठाए जा रहे कदमों को लेकर वस्तुस्थिति रिपोर्ट अदालत में पेश नहीं की है। अदालत ने 16 फरवरी को सभी राज्यों को इस संबंध में रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए थे।
इसमें राज्यों को बताना था कि उन्होंने अब तक सार्वजनिक स्थलों पर बने पूजा स्थलों को ढहाने या दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए क्या कदम उठाए हैं। साथ ही नए निर्माण रोकने के लिए क्या-कुछ किया।
अदालत के निर्देश के बाद सभी राज्यों ने हलफनामा दाखिल कर दिया लेकिन पश्चिम बंगाल ने ऐसा नहीं किया। राज्य सरकार की वकील ने इस सिलसिले में दलील दी कि पुराने निर्माण को ढहाने या रखने के संबंध में राज्य सरकार ने अब तक नीति तय नहीं की है। अत: हलफनामा दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय और दिया जाए। अदालत ने राज्य सरकार को मांगा हुआ समय तो दे दिया लेकिन साथ में चेतावनी भी दी कि अगर इस अवधि में हलफनामा नहीं दाखिल हुआ तो मुख्य सचिव को अदालत में पेश होना होगा। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 28 अप्रैल की तारीख तय की है।
इस मामले में अदालत की मदद कर रहे महाधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि सार्वजनिक स्थानों पर पूजा स्थलों के नए निर्माण पर रोकने के कोर्ट के आदेश पर राज्यों ने कड़ाई से अमल किया है। लेकिन पुराने पूजा स्थलों को हटाने की नीति तैयार करने के मसले पर सभी राज्यों के हलफनामें अभी नहीं मिले हैं। सभी के हलफनामे मिलने के बाद वे उसका समग्र चार्ट तैयार करेंगे। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 7 दिसंबर 2009 को अपने अंतरिम आदेश में कहा था कि किसी भी सार्वजनिक स्थल पर पूजा स्थलों निर्माण अवैध माना जाएगा। अदालत ने सार्वजनिक स्थलों पर मौजूद इस तरह के सभी निर्माणों को ढहाने या उन्हें कहीं और ले जाने का भी निर्देश दिया था।
न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी की अध्यक्षता वाली पीठ ने मंगलवार को ये निर्देश जारी किए। पश्चिम बंगाल इकलौता राज्य है, जिसने अब तक इस सिलसिले में उठाए जा रहे कदमों को लेकर वस्तुस्थिति रिपोर्ट अदालत में पेश नहीं की है। अदालत ने 16 फरवरी को सभी राज्यों को इस संबंध में रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए थे।
इसमें राज्यों को बताना था कि उन्होंने अब तक सार्वजनिक स्थलों पर बने पूजा स्थलों को ढहाने या दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए क्या कदम उठाए हैं। साथ ही नए निर्माण रोकने के लिए क्या-कुछ किया।
अदालत के निर्देश के बाद सभी राज्यों ने हलफनामा दाखिल कर दिया लेकिन पश्चिम बंगाल ने ऐसा नहीं किया। राज्य सरकार की वकील ने इस सिलसिले में दलील दी कि पुराने निर्माण को ढहाने या रखने के संबंध में राज्य सरकार ने अब तक नीति तय नहीं की है। अत: हलफनामा दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय और दिया जाए। अदालत ने राज्य सरकार को मांगा हुआ समय तो दे दिया लेकिन साथ में चेतावनी भी दी कि अगर इस अवधि में हलफनामा नहीं दाखिल हुआ तो मुख्य सचिव को अदालत में पेश होना होगा। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 28 अप्रैल की तारीख तय की है।
इस मामले में अदालत की मदद कर रहे महाधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि सार्वजनिक स्थानों पर पूजा स्थलों के नए निर्माण पर रोकने के कोर्ट के आदेश पर राज्यों ने कड़ाई से अमल किया है। लेकिन पुराने पूजा स्थलों को हटाने की नीति तैयार करने के मसले पर सभी राज्यों के हलफनामें अभी नहीं मिले हैं। सभी के हलफनामे मिलने के बाद वे उसका समग्र चार्ट तैयार करेंगे। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 7 दिसंबर 2009 को अपने अंतरिम आदेश में कहा था कि किसी भी सार्वजनिक स्थल पर पूजा स्थलों निर्माण अवैध माना जाएगा। अदालत ने सार्वजनिक स्थलों पर मौजूद इस तरह के सभी निर्माणों को ढहाने या उन्हें कहीं और ले जाने का भी निर्देश दिया था।
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