सुप्रीम कोर्ट ने विवाह पूर्व यौन संबंध के बारे में अभिनेत्री खुशबू द्वारा व्यक्त की गई राय के बारे में उसके अवलोकन को गलत तरीके से उद्धृत करने और गलत व्याख्या करने के लिए मीडिया और लोगों की आलोचना की।
प्रधान न्यायाधीश केजी बालकृष्णन, न्यायमूर्ति दीपक वर्मा और न्यायमूर्ति बीएस चौहान की पीठ ने कहा कि उसके पास याचिकाओं की बाढ़ आ गई जिसमें उससे अपने आदेश की समीक्षा करने को कहा गया है। जबकि उसने वकील से सवालों के रूप में कुछ टिप्पणियां की थीं।
मामले में बहस के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा था कि विवाह पूर्व यौन संबंध और लिव इन संबंधों पर कोई वैधानिक पाबंदी नहीं है और उसने अपने नजरिये की पुष्टि के लिए कृष्ण और राधा का उदाहरण दिया था।
पीठ ने कहा कि वास्तव में सुनवाई के दौरान पक्षों से जुड़े वकील के समक्ष कुछ सवाल रखे गए ताकि मामले से जुड़े कानूनी मुद्दे को स्पष्ट किया जा सके लेकिन दुर्भाग्य से उन सवालों को न सिर्फ मीडिया बल्कि आम आदमी ने गलत रूप में समझा।
न्यायालय ने कहा कि परिणामस्वरूप हमारे पास याचिकाओं की बाढ़ आ गई जिसमें हमसे अपने आदेश की समीक्षा की गुहार लगाई गई।
यहां इस बात का उल्लेख करना जरूरी है कि हमारी ओर से कोई आदेश पारित नहीं किया गया था और सुनवाई के दौरान हमने वकील के समक्ष कुछ उदाहरण या सवाल रखे थे जिनका उन्हें जवाब देना था।
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा, इसलिए आम आदमी के अतिसक्रिय रुख की आवश्यकता नहीं थी। कुछ ने तो यहां तक कह दिया कि हमें इस तरह के सवाल को रखने से पहले भारतीय पौराणिक कथाओं को जानना चाहिए। इसलिए सुनवाई के दौरान हमने जो कुछ भी कहा उसकी समीक्षा की जानी चाहिए।
प्रधान न्यायाधीश केजी बालकृष्णन, न्यायमूर्ति दीपक वर्मा और न्यायमूर्ति बीएस चौहान की पीठ ने कहा कि उसके पास याचिकाओं की बाढ़ आ गई जिसमें उससे अपने आदेश की समीक्षा करने को कहा गया है। जबकि उसने वकील से सवालों के रूप में कुछ टिप्पणियां की थीं।
मामले में बहस के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा था कि विवाह पूर्व यौन संबंध और लिव इन संबंधों पर कोई वैधानिक पाबंदी नहीं है और उसने अपने नजरिये की पुष्टि के लिए कृष्ण और राधा का उदाहरण दिया था।
पीठ ने कहा कि वास्तव में सुनवाई के दौरान पक्षों से जुड़े वकील के समक्ष कुछ सवाल रखे गए ताकि मामले से जुड़े कानूनी मुद्दे को स्पष्ट किया जा सके लेकिन दुर्भाग्य से उन सवालों को न सिर्फ मीडिया बल्कि आम आदमी ने गलत रूप में समझा।
न्यायालय ने कहा कि परिणामस्वरूप हमारे पास याचिकाओं की बाढ़ आ गई जिसमें हमसे अपने आदेश की समीक्षा की गुहार लगाई गई।
यहां इस बात का उल्लेख करना जरूरी है कि हमारी ओर से कोई आदेश पारित नहीं किया गया था और सुनवाई के दौरान हमने वकील के समक्ष कुछ उदाहरण या सवाल रखे थे जिनका उन्हें जवाब देना था।
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा, इसलिए आम आदमी के अतिसक्रिय रुख की आवश्यकता नहीं थी। कुछ ने तो यहां तक कह दिया कि हमें इस तरह के सवाल को रखने से पहले भारतीय पौराणिक कथाओं को जानना चाहिए। इसलिए सुनवाई के दौरान हमने जो कुछ भी कहा उसकी समीक्षा की जानी चाहिए।
1 टिप्पणियाँ:
विवाह पूर्व का एक उदहारण और विवाह के बाद एक पति एक पत्नी धर्म का निर्वाह करें के कई उदाहरण हैं.... अदालत यहाँ भी उदाहरण दे.
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
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