पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Tuesday, September 8, 2009

सुप्रीमकोर्ट अदालत के समाचारों की रिर्पोटिंग के तरीके से खुश नहीं।

मीडिया द्वारा अदालती कार्यवाही की रिपोर्टिंग को लेकर अप्रसन्नता जाहिर करते हुए सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने सोमवार को कहा कि मीडिया द्वारा की गई रिपोर्टिंग अक्सर संदर्भ से बाहर होती है, जो न्यायाधीशों के लिए अपने बचाव का कोई अवसर नहीं छोड़ती।
न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू ने कहा कि एक न्यायाधीश किसी रिपोर्ट के बारे में कुछ कह नहीं सकते अथवा स्पष्टीकरण नहीं दे सकते। हमें उन्हें वैसा ही पचाना पड़ता है। यह हमारी संस्कृति नहीं है कि प्रेस के पास जाएं और कहें..। उन्होंने कहा कि यह हमारी संस्कृति है कि मैं प्रेस के पास नहीं जा सकता। पीठ में न्यायमूर्ति ए.के. गांगुली भी थे। विश्वविद्यालयों में छात्र संघ चुनावों के संबंध में याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान पीठ की अप्रसन्नता सामने आई। पीठ ने चिंता जताई कि पत्रकार उन चीजों की रिपोर्टिंग कर रहे हैं, जो फैसले का हिस्सा नहीं है। जो चीजें फैसले का हिस्सा नहीं है, उनकी रिपोर्टिंग नहीं होनी चाहिए। ए काफी संवेदनशील मुद्दे हैं।

न्यायमूर्ति गांगुली ने कहा कि पत्रकारों की भी यही जिम्मेदारी है। उन्हें अदालती कार्यवाही की पवित्रता को बनाए रखना होगा।

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