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Sunday, September 6, 2009

पूर्ण पीठ का आरजेएस में महिला आरक्षण बढ़ाने के साथ अन्य महत्वपूर्ण फैसले।

राजस्थान उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ की शनिवार को यहां आयोजित बैठक में राज्य न्यायिक सेवा में महिला आरक्षण में दस फीसदी बढ़ोतरी को मंजूरी दे दी है। अब महिलाओं को तीस फीसदी आरक्षण मिलेगा। इसके अलावा विधवा व परित्यक्ताओं की भर्ती आयु सीमा में पांच वर्ष की बढ़ोतरी की गई है। साथ ही हाईकोर्ट में न्यायिक कार्र्यो में आधे घंटे का इजाफा भी किया गया। बैठक में प्रदेश में सायंकालीन अदालतों की स्थापना के मुद्दे पर विचार नहीं किया गया। राज्य के मुख्य न्यायाधीश जगदीश भल्ला की अध्यक्षता में हुई बैठक में न्यायिक सेवा में अधिकारियों की कमी को पूरा करने का फैसला लिया गया। प्रतिवर्ष ३१ मार्च तक की रिक्तियां अगले वर्ष भरी जाएंगी। अब न्यायिक सेवा के रिक्त पदों को भरने के लिए हर वर्ष भर्ती निकाली जाएगी। गौरतलब है कि राज्य सरकार ने राज्य न्यायिक सेवा के ड्राफ्ट नियम संशोधन के लिए उच्च न्यायालय को भेजे थे। इस पर न्यायाधीश मुनिश्वर नाथ भण्डारी व न्यायाधीश रस्तोगी की कमेटी का गठन किया गया था। आज हुई पूर्ण बैठक में कमेटी की सिफारिशों पर निर्णय किया गया।

उच्चतम न्यायालय में मलिक मंजूर सुल्तान बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के मामले में प्रतिवर्ष रिक्तयां निकालने के सम्बन्ध में निर्णय किया था। इसे ध्यान में रखते हुए राज्य न्यायिक सेवा भर्ती के सम्बन्ध में यह निर्णय लिया गया है। पूर्ण पीठ की बैठक में वर्ष 2010 के कलैण्डर को भी मंजूरी दे दी गई है।

बैठक में उच्च न्यायालय में न्यायिक कार्यो का समय प्रात: साढ़े दस बजे के स्थान पर सवा दस बजे से शुरू करने का निर्णय लिया गयौ। इसके अलावा लंच ब्रेक एक घंटे की जगह अब ४५ मिनिट होगा। लंच समय एक बजे से पौने दो बजे तक रहेगा। इससे न्यायिक कार्र्यो के समय में आधे घंटे का इजाफा होगा।

भ्रष्टाचार का स्थायी समाधान करेंगे

देश के प्रधान न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन ने न्यायिक सेवा भर्ती प्रक्रिया में बढ़ रहे भ्रष्टाचार पर चिंता जताते हुए कहा कि इससे छात्र हतोत्साहित न हों। इस समस्या के स्थायी समाधान के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि प्रतिभावान छात्रों का न्यायिक सेवाओं की तरफ आकर्षण बढ़ सके। जोधपुर के राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय में शनिवार को तीसरे दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने यह बात कही।

उन्होंने कहा कि यह भी चिंता का विषय है कि न्यायिक सेवा में आने वालों की संख्या उतनी नहीं है जितनी होनी चाहिए। इसे बढ़ाने की आवश्यकता है। बालाकृष्णन ने कहा है कि नवोदित विधि छात्रों से न्यायिक व कानूनी शिक्षा क्षेत्र को अपना कॅरिअर बनाकर जन कल्याण का दायित्व निभाना चाहिए। अपने परिवार की भौतिक सुख-सुविधाओं के लिए वे वाणिज्य लॉ फर्म में काम करें।

साथ ही ऐसे विधिवेताओं को कानूनी शिक्षा व न्यायिक कार्य में भी भागीदारी बढ़ानी चाहिए। अधीनस्थ न्यायालयों में बढ़ती मुकदमों की संख्या पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि वर्तमान में हमारे देश में सांस्कृतिक व आर्थिक क्षेत्र में भारी बदलाव आ रहा है। इसकी वजह से समाज के विभिन्न वर्र्गो में तनाव की स्थिति उत्पन्न हो रही है।

ऐसी स्थिति में न्यायालयों में लगातार मुकदमों की संख्या बढ़ रही है। ऐसे मुकदमों का फैसला सिर्फ न्यायाधीशों की योग्यता पर ही नहीं वरन कानूनविदों की योग्यता पर भी निर्भर करता है। आज हमें ऐसे योग्य वकीलों की आवश्यकता है, जो जमीन से जुड़ कर न्यायिक क्षेत्र में अपना योगदान दे सकें। प्रधान न्यायाधीश ने नवोदित विधि छात्रों से न्यायिक सेवाओं से जुड़ने का आह्वान किया।

विधि शिक्षा में महिला विद्यार्थियों की बढ़ोतरी पर खुशी जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि इससे भविष्य में महिला विधिवेताओं व न्यायाधीशों की कमी तो दूर होगी साथ ही विधिक प्रणाली में जेंडर गेप कम होगा। मुख्य न्यायाधीश ने दीक्षांत समारोह में डिग्री लेने वाले विद्यार्थियों को बधाई देते हुए कहा कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में शिक्षित समाज का विशेष दायित्व है कि वह समाज के पिछड़े वर्ग के उत्थान व भलाई के लिए विशेष योगदान दे।
विश्वविद्यालयी शिक्षा का सही मूल्यांकन समाज का उत्थान करने की योग्यता से होता है। यह वास्तविकता विधि शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों पर भी लागू होती है। विधि की शिक्षा प्राप्त करने वालों से उम्मीद की जाती है कि वे आपसी सौहाद्र्र व सहनशीलता से लम्बित मुकदमों को निपटाने में सक्रिय सहयोग दें।
इससे पहले समारोह में देश के प्रधान न्यायाधीश का स्वागत राज्य के मुख्य न्यायाधीश जगदीश भल्ला, एनएलयू के कुलपति एनएन माथुर एवं एनएलयू की जनरल कांउसिल व एक्जीक्यूटिव काउंसिल, एकेडमिक काउंसिल व रजिस्ट्रार रतन लाहोटी ने किया।
समारोह में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश दलबीर भण्डारी, सेवानिवृत न्यायाधीश एके माथुर व राज्य के पूर्व मुख्य न्यायाधीश यादराम मीणा व मघराज कल्ला उपस्थित थे। राजस्थान उच्च न्यायालय की मुख्यपीठ व जयपुर बैंच के न्यायाधीश भी मौजूद थे।

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