पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Sunday, November 29, 2009

हाईटेक होगा दिल्ली हाईकोर्ट


दिल्ली हाईकोर्ट हाईटेक होने वाला है। 8 दिसंबर को दिल्ली हाईकोर्ट देश का पहला ऐसा कोर्ट बन जाएगा, जहां कागज रहित [पेपरलेस] काम होता दिखेगा। पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर जस्टिस रविंद्र भट्ट की अदालत देश की पहली ई-कोर्ट का रुतबा हासिल करेगी।

तीन चरणों में हाईकोर्ट के जज और वकील समेत बाबू-सहायक भी हाईटेक हो जाएंगे। ई-कोर्ट के साथ ई-फाइलिंग प्रक्रिया भी शुरू हो जाएगी। यहां तक कि आने वाले दिनों में देश-दुनिया में कहीं से भी कोर्ट की कार्यवाही को घर बैठे देख पाना भी मुमकिन हो जाएगा।

गुरुवार को हाईकोर्ट कंप्यूटर कमेटी के अगुवा जस्टिस बदर दुरेज अहमद ने खुलासा किया कि दिसंबर से पेपरलेस ई-कोर्ट की कार्यवाही शुरू होगी। यह पहला चरण होगा, जज के सामने मेज पर बड़े कंप्यूटर मानीटर पर सूचनाओं को टच-स्क्रीन के जरिए देखा सुना जाएगा। केस नंबर या नाम को स्क्रीन पर छूते ही पूरी फाइल खुल जाएगी। ऐसे में कागज की मोटी फाइल के पन्नों को बार-बार पलटने से छुटकारा मिलेगा। कोर्टरूम में बैठे लोगों को बड़े स्क्रीन पर सब दिखेगा। वकील अपने लैपटाप के जरिए केस पर लिखित दलील के साथ बहस कर सकेंगे। हालांकि कंप्यूटर का प्रयोग वकीलों की मर्जी पर निर्भर करेगा।

न्यायमूर्ति अहमद ने बताया कि दूसरे चरण में ई-फाइलिंग प्रक्रिया होगी। कोई भी कहीं से बैठकर ई-मेल के जरिए केस फाइल कर सकेगा। जरूरी यह होगा कि शिकायतकर्ता केस फाइल में दर्ज दस्तावेजों को स्वयं सत्यापित करे या ओथ कमिश्नर के सामने सत्यापित कराए। जस्टिस अहमद ने बताया कि ई-फाइलिंग के लिए शपथपत्र, वकालतनामा और कागजी दस्तावेजों पर स्वयं उपस्थित होकर हस्ताक्षर करने की जरूरत पड़ेगी। कोर्ट फीस या प्रोसेस फीस के लिए आन लाइन भुगतान करना होगा। इसके लिए दिल्ली सरकार को ई-स्टैंप, आन लाइन स्क्रूटनी और सत्यापन का प्रावधान करना होगा, जिससे ई-केस फाइल हो सके। इसमें एक-दो साल लगेगा। तब तक कागजी प्रक्रिया के साथ ई-फाइलिंग में सीडी, डीवीडी या पीडीएफ में फाइलिंग संभव हुआ करेगी।

जस्टिस बदर दुरेज अहमद ने बताया है कि हाईकोर्ट परिसर में विभिन्न जगहों पर दिखने वाला फाइलों का अंबार ठिकाने लगाया जा रहा है। पिछले कुछ समय में केस फाइलों से जुड़े पांच करोड़ 56 लाख पन्नों को कंप्यूटर की मदद से डिजिटलाइज किया जा चुका है। एक लाख पन्ना प्रतिदिन डिजिटल हो रहे हैं। अगले दो वर्षो में लगभग सारे काम कंप्यूटर पर हुआ करेंगे और कागज के रिकार्ड को सहेजने के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा।

नाबालिग की शादी अमान्य करार


पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में 18 वर्ष से कम उम्र की एक लड़की की शादी को ‘अमान्य' करार दिया और लड़के को सुरक्षा देने से इंकार कर उसे ‘भगोड़ा' कहा।
न्यायमूर्ति राकेश कुमार जैन ने शुक्रवार को दिए अपने फैसले में उन लोगों के खिलाफ कानूनन ‘उपयुक्त कार्रवाई' करने को कहा जो ‘इस मामले में बाल विवाह कराने के जिम्मेदार हैं।' अदालत ने विवाह कराने वाले पुरोहित के खिलाफ भी कार्रवाई का आदेश दिया।
पंजाब के पटियाला जिले के पातरां शहर की 16 वर्षीय लड़की और एक बालिग लड़के ने इस वर्ष 21 अक्तूबर को मोहाली के गुरु नानक गुरुद्वारे में शादी की थी। शादी के लिए लड़की के परिजन राजी नहीं थे और यह अंतरजातीय विवाह था।
लड़की के पिता ने 21 अक्तूबर को पातरां पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि उनके पड़ोस का एक लड़का ‘उनकी लड़की को शादी की नीयत से बहला फुसला कर ले गया है। इसमें लड़के की मां जसबीर कौर और पिता लक्खा सिंह की भी मिलीभगत है।' युगल ने शादी के छह दिन बाद पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में याचिका दी और लड़की के अभिभावकों की ओर से कथित तौर पर मिल रही धमकी के कारण सुरक्षा की मांग की।
न्यायमूर्ति जैन ने दोनों की शादी को बाल विवाह निरोधक अधिनियम 2006 के तहत ‘अमान्य' करार दिया।

गैर लाइसेंसी सूदखोर मामला दर्ज नहीं करा सकते : बम्बई हाईकोर्ट


बम्बई उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि गैर लाइसेंसधारी सूदखोर कर्जदार से कर्ज की अदायगी के तौर पर मिला चेक बाउंस होने की स्थिति में फौजदारी अदालत का दरवाजा नहीं खटखटा सकते। बम्बई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ में पिछले सप्ताह न्यायमूर्ति पी आर बोरकार ने कहा बिना लाइसेंस के सूद पर पैसा देने से संबंधी कारोबार करने वाला कोई व्यक्ति कर्ज वसूली के लिए अदालत का दरवाजा नहीं खटखटा सकता ।
अहमदाबाद स्थित अनिल कटारिया ने परकाम्य लिखित अधिनियम :नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट: के तहत चेक बाउंस के मामले में निचली अदालत के निर्णय के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की थी। कटारिया के अनुसार उन्होंने अक्तूबर 2004 में पुरूषोत्तम कावने को चार लाख रूपये का कर्ज दिया था। इसी के भुगतान के लिए कावरे ने मार्च 2005 में उन्हें :कटारिया को: चेक दिया लेकिन यह बाउंस कर गया।
कटारिया ने इस मामले में परकाम्य लिखित अधिनियम के तहत आपराधिक मामला दर्ज कराया लेकिन कावरे के वकील ने दलील दी कि कटारिया बिना लाइसेंस के यह कारोबार कर रहे हैं और दस अन्य लोगों के खिलाफ भी मामला दर्ज करा चुके हैं।

धोखाधडी मामला : महिला सरपंच को जेल


राजस्थान में अलवर जिले के ब्यावरा के न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी कपिल सोनी ने धोखाधडी के आरोप में ग्राम पंचायत परसुलिया की महिला सरपंच को न्यायिक हिरायत में कल जेल भेज दिया। पुलिस के अनुसार ग्राम पंचायत परसुलिया की सरपंच गीताबाई दांगी ने ग्राम के किसानों की ओलावृष्टि से नष्ट हुई फसलों के बदले में शासन से मिलने वाले मुआवजा राशि के 21 हजार रूपए के चार चेक फर्जी व्यक्तियों को दे दिए थे। इस मामलें में शिकायत व्यावरा के तत्कालीन तहसीलदार आर के श्रीवास्तव ने थाने में दर्ज कराई थी।

ग्राम पंचायत परसुलिया की महिला सरपंच को पुलिस ने धोखाधडी के आरोप में गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया था, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भोपाल जेल दिया गया।

बोरवेलों पर ढक्कन लगाकर बच्चों को बचाओः सुप्रीम कोर्ट


हाल के वर्षों में बच्चों के लिए जानलेवा बन चुके बोरवेलों की हालत पर चिंतित उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को केंद्र और राज्य सरकारों से उन पर ढक्कन लगाना सुनिश्चित करने को कहा है।

प्रधान न्यायाधीश के जी बालकृष्णन, न्यायमूर्ति बीएस चौहान और केएस राधाकृष्णन की पीठ ने इन घटनाओं को रोकने के लिए राज्यों द्वारा अब तक उठाए गए कदमों के बारे में भी जवाब दाखिल करने को कहा है। इस सिलसिले में 13 फरवरी को उच्चतम न्यायालय के निर्देशों पर पर्याप्त कार्रवाई नहीं होने के कारण वरीष्ठ अधिवक्ता और न्यायालय मित्र परमजीत सिंह पटवालिया द्वारा अदालत को इसकी जानकारी देने पर पीठ ने आज यह निर्देश जारी किया गया।

न्यायालय ने केंद्र, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और पंजाब जैसे राज्यों से इस बारे में जवाब मांगा है। हाल के बरसों में इन्हीं राज्यों में यूं ही छोड़ दिए बोरवेलों में बच्चों के गिरने की घटनाएं बढ़ी हैं और यहां तक कि बचाव कार्य में सेना तक की मदद लेनी पड़ी। हरियाणा के कुरूक्षेत्र में वर्ष 2006 में ऐसे ही एक बोरवेल में गिरने वाले प्रिंस को बचाने में सेना को दो दिन लग गए थे।

गुजरात हाईकोर्ट में टीवी पर दिखेगी कार्यवाही


गुजरात हाईकोर्ट सूचना क्रांति से कदम मिलाते हुए शीघ्र ही अपनी सभी 33 अदालतों की आंशिक कार्यवाही एलसीडी टीवी पर लाइव करने जा रहा है। मतलब अब अधिवक्ताओं व मुवक्किलों को यह पता लगाने में समय बर्बाद नहीं करना पड़ेगा कि उनका केस किस अदालत में चल रहा है अथवा चलेगा।

उच्च न्यायालय के कंप्यूटर विभाग सूत्रों के अनुसार के यह सब एलसीडी प्रोजेक्ट का हिस्सा है। इसके तहत अदालत परिसर में 32 इंच की एलसीडी लगाईं जानी हैं ताकि इसकी स्क्रीन पर डिस्प्ले होने वाली सूचना सभी आवश्यक लोग पढ़ सकें। एलसीडी के संभावित स्थानों में एडवोकेट-रूम, बार रूम, कैंटीन, लाइब्रेरी, सभी लॉबी एवं लेडीज रूम सहित 60 स्थानों को चिह्नित किया गया है। सूत्रों ने यह भी बताया कि इस प्रोजेक्ट का ट्रायल हो चुका है जो सफल रहा है। सब कुछ योजनानुसार चला तो शीघ्र ही एलसीडी परियोजना साकार हो जाएगी।

विभाग सूत्रों के अनुसार एलसीडी पर विभिन्न अदालतों में बोर्ड पर चल रहे मामले, इनके वकील, बोर्ड पर आने वाले अगले केस का नंबर/ ब्योरा, इनके अधिवक्ता एवं कौन से न्यायाधीश किस मामले पर संज्ञान लेंगे आदि जानकारी बड़े-बड़े और रंगीन टेक्स्ट में प्रदर्शित की जाएगी ताकि आसानी से लोगों का ध्यान आकर्षित हो।

एलसीडी प्रोजेक्ट से उच्च न्यायालय में सेवारत छह हजार एडवोकेट, इनके सहायक स्टाफ के अलावा एक लाख से अधिक वादी-प्रतिवादी तथा इनके गवाह आदि को सहूलियत होगी। इतना ही नहीं बोर्ड पर चल रहे मामले में यदि कोई अधिवक्ता पेश नहीं हो सका है तो उसका नाम लाल रंग मे एलसीडी पर प्रदर्शित किया जाएगा ताकि सूचना पाकर चिह्नित मामले का अधिवक्ता यथाशीघ्र अदालत में पहुंच सके।

बीमे की रकम के लिए कटवाया हाथ


इंश्योरेंस की रकम पाने के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते। ताइवान में एक व्यक्ति ने इंश्योरेंस के 7,30,000 डॉलर हासिल करने के लिए अपना हाथ कटवा लिया। 38 साल के चियांग ची वी ने दो किराए के आदमियों से अपना हाथ कटवाया। इस व्यक्ति को शनिवार को अदालत में पेश किया गया।

38 वर्षीय चियांग ची वी ने आठ नवंबर को पुलिस को बताया था कि ताइपे के चुंघी में दो आदमियों ने उस पर हमला कर उसका बायां हाथ काट दिया था। पुलिस को चियांग द्वारा कही गई बात पर शक था क्योंकि चियांग के बाजू के घाव को देखकर ऐसा नहीं लगता था कि उस पर हमला हुआ है और जिस स्थान पर हमले की बात कही गई थी वहां एक ही जगह पर खून इकट्ठा था।

जांच के बाद पता चला कि चियांग कर्ज में डूबा हुआ था, जिसे चुकाने के लिए वह बीमा पॉलिसियों के तहत एक दर्जन कंपनियों से 2.4 लाख ताइवानी डॉलर की राशि प्राप्त करना चाहता था।  पिछले सप्ताह पुलिस ने दो आदमियों को गिरफ्तार किया था। इन दोनों का दावा था कि चियांग ने उन्हें पैसा देकर यह काम कराया था। चियांग ने कहा था कि पहले वह उसे अचेत कर दें और फिर उसका बायां हाथ काट दें। चियांग ने शुक्रवार को खुद ही पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। उसे शनिवार को अदालत में पेश किया गया।  सुनवाई के दौरान चियांग ने कहा कि उसकी कंपनी कर्ज से डूब रही थी, इसलिए उसने किराए के दो आदमियों से अपना हाथ काटने के लिए कहा, ताकि वह अपनी बीमा पॉलिसियों का पैसा प्राप्त करके कर्ज चुका सके।

Thursday, November 26, 2009

देश के पहले पंचायत केंद्र का दिल्ली में उद्धाटन


सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश के.जी.बालाकृष्णन ने बुधवार को देश के पहले पंचायत केंद्र का दिल्ली में उद्धाटन किया। इस केंद्र के जरिए मामलों को जल्द निपटाने में मदद मिलेगी।
केंद्र का उद्धाटन करने के बाद बालाकृष्णन ने कहा, ''पंचायत केंद्र की स्थापना के साथ ही मुकदमों पर आने वाली लागत बहुत कम हो जाएगी और इससे मामलों को तेजी के साथ निपटाने में मदद मिलेगी।''
पंचायत ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत किसी विवाद पर बाध्यकारी निर्णय के लिए उसे एक या एक से अधिक पंच के यहां सौंपा जाता है।
अनुमान के अनुसार भारत में मध्यस्थता संबंधी 1500 मामले लंबित हैं।

पैसे के लेन-देन में वकील-मुंशी भिड़े, बार एसोसिएशन भी मुंशियों के साथ


पानीपत जिला अदालत परिसर में बुधवार को पैसे के लेनदेन को लेकर वकीलों और मुंशी के बीच जमकर मारपीट हुई। इस मामले के बाद जहां पूरी अदालत के मुंशियों ने लामबंद होकर आंदोलन करने का मन बनाया है, वहीं बार एसोसिएशन के प्रधान और सचिव ने भी मुंशियों का साथ देने की बात कही है। जानकारी के अनुसार बुधवार दोपहर लगभग 12 बजे जिला अदालत में एसडीएम कोर्ट के सामने बैठे मामराज रावल, अनिल रावल का मुंशी ईश्वर शर्मा के साथ झगड़ा हो गया।

अन्य वकीलों तथा मुंशियों के बीच बचाव के बाद मामले को शांत कराया गया। इसके बाद जिला बार मुंशी एसोसिएशन के आह्वान पर सभी मुंशियों ने बार रूम में बैठक की। बैठक में एसोसिएशन के प्रधान रामफल जौंधन ने बताया गया कि ईश्वर शर्मा को मामराज रावल और अनिल रावल से पंद्रह हजार रुपए लेने थे। ये रुपए ईश्वर ने एलएलबी के कोर्स में दाखिले के नाम पर दिए थे।

दाखिला न मिलने के बाद जब ईश्वर ने अपने पैसे मांगे तो उक्त वकीलों ने किस्तों में पैसे देने की हामी भरी थी। बुधवार को उक्त वकीलों ने ईश्वर शर्मा को फोन करके पैसे देने के बहाने से बुलाया तथा उसके साथ मारपीट की। बैठक में उपस्थित सभी मुंशियों ने प्रस्ताव पारित करते हुए मुंशी ईश्वर के साथ हुई मारपीट में कानूनी कार्रवाई करने का फैसला लिया।

भीलवाड़ा में वकील बेमियादी धरने पर


एडवोकेट अमित यादव आत्महत्या प्रकरण में आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर बुधवार को वकील समुदाय ने शांतिपूर्ण आंदोलन जारी रखा। सातवें दिन जिले भर में न्यायिक कार्य का बहिष्कार जारी रहने से अदालतें सूनी रही।

संघर्ष समिति की बैठक के बाद वकीलों ने कलेक्टर को ज्ञापन दिया। सोमवार से पूरे राज्य के न्यायालयों में काम स्थगित रखा जाएगा। गुरुवार को भी कोर्ट के बाहर वकील धरना देंगे। बुधवार को आंदोलन की रूपरेखा तैयार करने के लिए संघर्ष समिति की बैठक संयोजक अरूण व्यास के नेतृत्व में हुई।

लगभग डेढ़ घंटे चली बैठक में सर्वसम्मति से आरोपी पुलिस कर्मियों की गिरफ्तारी नहीं होने तक अनिश्चतकालीन काम का बहिष्कार करने का फैसला किया गया। संयोजक व्यास ने बताया कि सोमवार तक गिरफ्तारी नहीं होने पर राज्यभर की बार एसोसिएशन आंदोलन में सहयोग करेगी। सभी जगह न्यायिक कार्य का बहिष्कार रहेगा। यहां गुरुवार से कोर्ट के बाहर धरना दिया जाएगा। यहां गुरुवार से कोर्ट के बाहर धरना दिया जाएगा।

सोहराबुद्दीन मुठभेड़: कोर्ट का सुनवाई से इनकार


सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात पुलिस द्वारा सोहराबुद्दीन शेख, उसकी पत्नी और एक अन्य गवाह की कथित फर्जी मुठभेड़ में हत्या के मुकदमे का सामना कर रहे एक आईपीएस अधिकारी द्वारा पेश जमानत याचिका पर सोमवार को सुनवाई करने से इनकार कर दिया।

न्यायमूर्ति पी सताशिवम और न्यायमूर्ति एच एल दत्तू की पीठ ने कहा कि एम एन दिनेश की याचिका पर सुनवाई करना उचित नहीं होगा क्योंकि न्यायमूर्ति तरूण चटर्जी और एच एल दत्तू की एक अन्य पीठ ने इस हत्याकांड की सीबीआई-एसआईटी जांच के लिए याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा है।

शीर्ष न्यायालय ने वरिष्ठ अधिवक्ता यू यू ललित की याचिका को भी स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि इस मामले में कम से कम गुजरात सरकार को एक नोटिस ही दे दिया जाए क्योंकि इसके फैसले में कुछ समय और लगेगा।

सरकार की ओर से सहायता के नियुक्त वकील और पीड़ितों के परिजनों की ओर से पेश महाधिवक्ता गोपाल सुब्रह्मण्यम ने इससे पहले गोधरा के बाद हुई हिंसा की जांच के लिए सीबीआई या एसआईटी को मामला सौंपने की मांग की थी जिसके बाद पीठ ने इस संबंध में फैसला सुरक्षित रख लिया।

सोहराबुद्दीन, कौसर बी और उनके मित्र तुलसीराम प्रजापति को गुजरात और आंध्र प्रदेश की पुलिस ने एक संयुक्त अभियान के तहत हैदराबाद से महाराष्ट्र के सांगली जा रही बस से 22 नवंबर 2005 को उतार लिया था।

इस मामले में तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी आरोपी हैं जिनमें गुजरात कैडर के डी जी बंजारा [उप महानिरीक्षक], राजकुमार पांडियान [पुलिस अधीक्षक] और राजस्थान कैडर के दिनेश शामिल हैं।

शुरूआत में गुजरात पुलिस ने दावा किया था कि सोहराबुद्दीन रंगदारी में लिप्त एक अपराधी था और उसके खिलाफ विभिन्न राज्यों में लगभग 54 मामले दर्ज थे। ऐसा दावा किया गया था गुजरात पुलिस और राजस्थान पुलिस के आतंकवाद रोधी दस्ते के साथ मुठभेड़ में वह मारा गया था।

पत्रकारों का भी होना चाहिए प्रैक्टिस लाइसेंस:लिब्रहान


लिब्रहान आयोग ने वकीलों और डाक्टरों की तर्ज पर पत्रकारों को भी लाइसेंस देने की सिफारिश करते हुए कहा है कि प्रेस और मीडिया के खिलाफ शिकायतों से निपटने के लिए एक न्यायाधिकरण या नियामक इकाई का गठन किया जाना चाहिए।
कार्रवाई रपट (एटीआर) में लिब्रहान आयोग की रपट के हवाले से कहा गया कि भारतीय चिकित्सा परिषद या बार काउंसिल आफ इंडिया की तर्ज पर मीडिया के लिए भी ऐसी इकाई के गठन की सख्त आवश्यकता है जो पत्रकारों या अखबारों के खिलाफ किसी शिकायत के बारे में फैसला कर सके।
सरकार ने मीडिया के बारे में लिब्रहान आयोग की सिफारिशों से सहमति जताते हुए कहा कि वह सूचना प्रसारण मंत्रालय और कानून मंत्रालय से कहेगी कि इस तरह के न्यायाधिकरण या नियामक इकाई के गठन की व्यवहारिकता और आवश्यकता के बारे में अध्ययन करे। आयोग ने कहा कि स्वतंत्र समाज में मीडिया के महत्व और श्रेष्ठता से इंकार नहीं किया जा सकता है। हालांकि जबर्दस्त विशेषाधिकार पाये इतिहास के इन रचनाकारों को उन आम आदमियों के प्रति सजग रहना होगा, जिनका उनमें विश्वास है। आयोग ने इस बात पर चिन्ता जाहिर की कि भारतीय प्रेस परिषद को शिकायतों की सुनवाई और दोषी पत्रकारों को दंडित करने का कोई अधिकार नहीं है जो पीत और शरारतपूर्ण पत्रकारिता में लिप्त हैं। लिब्रहान आयोग ने यह सिफारिश भी की है कि देश में मीडिया की निगरानी के लिए एक वैधानिक इकाई का गठन किया जाना चाहिए।
रपट में कहा गया कि इस बात की सख्त आवश्यकता है कि पत्रकारों को वकीलों और चिकित्सकों जैसे पेशेवरों की तर्ज पर लाइसेंस दिये जाएं और पेशेवर गड़बड़ी पाये जाने पर उनके खिलाफ निलंबन सहित अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सके।

छेड़छाड़ करने वाले युवकों की याचिका नामंजूर


जेएनयू कैंपस में लड़कियों के साथ छेड़छाड़ करने के आरोपी चार युवकों की जमानत याचिका अदालत ने नामंजूर  कर दी हैं। पटियाला हाउस स्थित मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट रविन्द्रा सिंह की अदालत ने आरोपी नीतिन कपूर, गगन कुमार, अंकित नंदा और अमित चौहान की जमानत याचिका को खारिज करते हुए कहा कि मामला जांच के प्रथम चरण में है और पीड़ितों के बयान दर्ज होने की प्रक्रिया जारी है।

ऐसे में आरोपियों को जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता। वहीं, अदालत ने चारों आरोपियों को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया है।जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष के वकीलों का कहना था कि छेड़छाड़ का आरोप जमानती अपराध की श्रेणी में आता है। इसलिए उनके मुवक्किलों को जमानत पर रिहा कर दिया जाए। जिसका विरोध करते हुए अभियोजन पक्ष के अधिवक्ता ने कहा कि पुलिस पीड़ित छात्रओं के बयान दर्ज कर रही है। लिहाजा ऐसे में आरोपियों को जमानत पर छोड़े जाने से जांच प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है। उल्लेखनीय है कि युवकों को रविवार को शराब पीकर लड़कियों के साथ जेएनयू कैंपस में छेड़छाड़ करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। इन आरोपियों द्वारा कैंपस में छेड़छाड़ करने पर छात्रों ने विरोध किया। पुलिस ने हंगामा शांत करने के लिए लाठीचार्ज व आंसू गैस के गोले भी छोड़े थे।

Monday, November 23, 2009

नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी जोधपुर रही विजेता


भोपाल नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट यूनिवर्सिटी (एनएलआईयू) में शनिवार से चल रहे14 वें स्टेट्सन इंटरनेशनल एनवायरनमेंटल मूट कोर्ट कॉम्पिटीशन का रविवार को समापन हुआ। नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी जोधपुर ने इस प्रतियोगिता में बाजी मारी।

स्टेट्स यूनिवर्सिटी(फ्लोरिडा) में आयोजित 14 वें इंटरनेशनल एनवायरनमेंटल मूट कोर्ट कॉम्पिटीशन में हिस्सा लेने के लिन नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी जोधपुर और रनरअप टीम अमेटी लॉ स्कूल, नई दिल्ली की टीम फ्लोरिडा जाएगी।

भारत से नार्थ राउंड में ये दोनों टीमें फ्लोरिडा में भारत का प्रतिनिधत्व करेंगी। एनएलआईयू में शनिवार से चल रहे इस मूट कोर्ट के नार्थ राउंड में इन दो टीमों ने अन्य 14 टीमों को हराते हुए बाजी मारी।

फाइनल राउंड में पहुंची इन दोनों टीमों के स्पीकर्स ने जजों के क्रास क्वेश्चन के सही जवाब दिए। संस्थान के सभागार में शाम पांच बजे तक चले फाइनल राउंड को देखने के लिए सभी संस्थानों के प्रतिभागी मौजूद थे।

इस मौके पर मद्रास यूनिवर्सिटी से आए इंटरनेशनल लॉ विषय के प्रोफेसर डेविड एम्ब्रोस ने कहा कि प्रतिभागियों ने अच्छी प्रस्तुति दी लेकिन इंटरनेशनल लॉ में उन्हें और अधिक रिसर्च और गहन अध्ययन करने की जरूरत है।

इस मौके पर भोज विश्वविद्यालय के प्रो.एसके सिंह, डॉ. लूथर रंगरेजी सहित मप्र राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस एनके जैन, छत्तीसगढ़ राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग के पूर्व अध्यक्ष जटिस्ट वीके अग्रवाल सहित संस्थान के निदेशक प्रो.एसएस सिंह उपस्थित थे।

डॉक्टर को भारी पड़ी कोर्ट की अवमानना


पानीपत ज्यूडीशियल मजिस्ट्रेट इन चीफ आरके वाट्स की अदालत में शनिवार को एक सरकारी डाक्टर को अदालत की अवमानना करना भारी पड़ गया। अदालत ने डाक्टर को भारतीय दंड संहिता की धारा 228 के तहत नोटिस थमा दिया। यही नहीं, न्यायाधीश के आदेश के बाद डाक्टर को लगभग 5 घंटे तक पुलिस कस्टडी में भी रखा गया।

जानकारी के अनुसार शनिवार को मेडिकल ऑफिसर आलोक जैन की आरके वाट्स की अदालत में गवाही थी। डा. जैन सुबह लगभग 10 बजे ही अदालत पहुंच गए। अदालत में पहुंचने के बाद डाक्टर ने नायब कोर्ट जोगेंद्र सिंह को सरकारी वकील को बुलाकर लाने के लिए कहा। इसके बाद जैसे ही न्यायाधीश आरके वाट्स ने अपनी कुर्सी संभाली, उसी समय डा. जैन ने उन्हें जल्दी काम निपटा कर फारिग करने को कहा।

इस पर न्यायाधीश ने डा. जैन को बदतमीजी से पेश न आने की चेतावनी दी। इस पर डाक्टर और न्यायाधीश के बीच बहस बढ़ती गई। इसके बाद न्यायाधीश आरके वाट्स ने डाक्टर को भारतीय दंड संहिता की धारा 228 के तहत नोटिस जारी करने तथा पुलिस कस्टडी में लिए जाने के आदेश दे दिए। इस कार्रवाई के तहत डा. आलोक जैन लगभग 2:30 बजे तक अदालत में पुलिस कस्टडी के बीच रहे। डाक्टर द्वारा माफी मांगने के बाद ही न्यायाधीश ने डा. आलोक जैन को जाने दिया।

अदालत मकान मालिक को नहीं दे सकती निर्देश


सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि अदालत मकान मालिक को इस बात का निर्देश नहीं दे सकती है कि उसे अपने मकान के किस हिस्से का वाणिज्यिक और किस हिस्से का रिहायशी उद्देश्य के लिए इस्तेमाल करना चाहिए। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ मकान मालिक उदय शंकर उपाध्याय की अपील को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह बात कही। हालांकि न्यायाधीश मार्कण्डेय काटजू और न्यायाधीश आर एम लोढा की खण्डपीठ ने किराएदार को हिस्सा खाली करने के लिए सालभर की मोहलत दे दी।

कहा कि यह सुविदित है कि दुकानें और अन्य व्यावसायिक गतिविधियां सामान्यत: भूतल पर ही संचालित की जाती हैं ताकि उपभोक्ता आसानी से वहां पहुंच सके लेकिन इसके बावजूद अदालत मकान मालिक को यह निर्देश नहीं दे सकती है कि वह अपनी व्यावसायिक गतिविधियां किस तल पर संचालित करे। यह तय करने का हक पूरी तरह मकान मालिक को है। हालांकि खण्डपीठ ने किरायेदार नवीन माहेश्वरी को विवादित कमरे/तल को खाली करने के लिए सालभर की मोहलत दे दी।

सुप्रीम कोर्ट में 53221 मामले लंबित


देश के उच्चतम न्यायालय में इस समय 53221 और विभिन्न उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों में 31139022 मामले लंबित हैं।

यह जानकारी केन्द्रीय कानून मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने सोमवार को राज्यसभा को दी। उन्होंने बताया कि 30 जून, 2009 को देश के उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों में 31139022 मामले लंबित थे। उन्होंने टीटीवी धिनकरन, जयंती नटराजन और जनार्दन वाघमरे के सवालों के लिखित जवाब में बताया कि उच्चतम न्यायालय में 30 सितंबर 2009 की स्थिति के मुताबिक 53221 मामले लंबित थे।

मोइली ने बताया कि इस समय सरकार देश में न्यायिक सुधारों के लिए एक कार्ययोजना को लागू करने का इरादा कर रही है, जिसका उद्देश्य अन्य बातों के साथ देश में लंबित मामलों को कम करना और त्वरित एवं प्रभावी न्याय उपलब्ध कराना है।

अमित यादव प्रकरण पर गतिरोध खत्म


भीलव़ाडा के सुभाष नगर थाना क्षेत्र में कथित पुलिस प्रत़ाडना से परेशान होकर आत्महत्या करने वाले वकील अमित यादव का शव आज पांचवे दिन पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया। पुलिस सूत्रों के अनुसार भीलव़ाडा जिला अभिभाषण संघ के अध्यक्ष गोपाल अजमेरा और बार कौंसिल के पूर्व अध्यक्ष सुरेश श्रीमाली की राजस्थान के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (अपराध) कन्हैया लाल बैरवा, अजमेर के संभागीय आयुक्त समेत अन्य अधिकारियों के साथ हुई बातचीत के बाद वकील अमित यादव के शव का पोस्टमार्टम करवाने का निर्णय किया गया।
उन्होंने बताया कि पुलिस ने अमित यादव का शव अपने कब्जे में लेकर सरकारी अस्पताल पहुंचा दिया है, जहां मेडिकल बोर्ड द्वारा पोस्टमार्टम के बाद अमित का अंतिम संस्कार होगा। श्रीमाली ने पत्रकारों से बातचीत में वन मंत्री राम लाल की भूमिका पर असंतोष जताया और कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र देने की घोषणा की। गौरतलब है कि भीलव़ाडा के वकील अमित यादव को आत्महत्या के लिए मजबूर करने के आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद ही अमित यादव का पोस्टमार्टम करवाने की मांग पर अडिग थे।

Friday, November 20, 2009

वकील द्वारा खुदकुशी के मामले में चीफ जस्टिस कोर्ट में हंगामा।


राजस्थान उच्च न्यायालय की जयपुर पीठ में शुक्रवार को वकीलों ने मुख्य न्यायाधीश की कोर्ट के बाहर जमकर हंगामा किया। इससे मुख्य न्यायाधीश जगदीश भल्ला को सुनवाई छोड़कर अपने कक्ष में जाना पड़ा। वकीलों ने पुलिस प्रताड़ना से क्षुब्ध भीलवाड़ा के वकील अमित यादव द्वारा खुदकुशी किए जाने के विरोध में शुक्रवार को कार्य बहिष्कार का आह्वान किया था। शुक्रवार सुबह मुख्य न्यायाधीश ने जैसे ही सुनवाई शुरू की कुछ ही देर बाद उच्च न्यायालय के कुछ वकील हंगामा करते हुए वहां जयपुर/जोधपुर/अजमेर। राजस्थान उच्च न्यायालय की जयपुर पीठ में शुक्रवार को वकीलों ने मुख्य न्यायाधीश की कोर्ट के बाहर जमकर हंगामा किया। इससे मुख्य न्यायाधीश जगदीश भल्ला को सुनवाई छोड़कर अपने कक्ष में जाना पड़ा। वकीलों ने पुलिस प्रताड़ना से क्षुब्ध भीलवाड़ा के वकील अमित यादव द्वारा खुदकुशी किए जाने के विरोध में शुक्रवार को कार्य बहिष्कार का आह्वान किया था। शुक्रवार सुबह मुख्य न्यायाधीश ने जैसे ही सुनवाई शुरू की कुछ ही देर बाद उच्च न्यायालय के कुछ वकील हंगामा करते हुए वहां पहंुच गए। वकीलों के उत्तेजित तेवरों को देखते हुए मुख्य न्यायाधीश की कोर्ट में मौजूद एक वकील को बचाते हुए बाहर निकाला गया। उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन ने इस प्रकरण की न्यायिक जांच की मांग की है।

पुलिस प्रताड़ना से क्षुब्ध भीलवाड़ा के वकील अमित यादव द्वारा खुदकुशी किए जाने के विरोध में राजस्थान उच्च न्यायालय की मुख्यपीठ जोधपुर और जयपुर पीठ से जुडे वकीलों ने आज न्यायिक कार्य का बहिष्कार किया। जोधपुर में वकीलों के न्यायिक कार्य के बहिष्कार से अदालतों में कामकाज ठप रहा। अजमेर में वकीलों की सभा में इस प्रकरण की भत्र्सना करते हुए उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से जांच की मांग की गई। पुलिस महानिरीक्षक द्वारा अजमेर के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक समीर कुमार को जांच सौंपे जाने को सरकारी ढोंग करार दिया गया। सभा के बाद वकीलों के समूह ने अतिरिक्त संभागीय आयुक्त को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन दिया। ज्ञापन में दोषी पुलिसकर्मियों की गिरफ्तारी, परिजनों को 15 लाख का मुआवजा, मृतक की पत्नी को सरकारी नौकरी देने तथा न्यायिक जांच के साथ भविष्य में किसी वकील की गिरफ्तारी से पूर्व बार के अध्यक्ष से अनुमति लेने की मांग की गई है। राजस्व बार ने भी ज्ञापन सौंपा।

धरना, बाजार बंद
भीलवाडा में युवा वकील की रहस्यमय स्थिति में हुई मौत से गुस्साए वकीलों ने आज दूसरे दिन भी मृतक का पोस्टमार्टम नहीं होने दिया। घटना के विरोध में शहर के बाजार बंद रहे और वकीलों ने कोटा-भीलवाडा मार्ग जाम कर दिया। जिला बार एसोसिएशन के अधिवक्ता मृतक अमित यादव एडवोकेट के घर के बाहर धरने पर बैठे हैं तथा पुलिस को उसके घर के नजदीक भी नहीं जाने दिया जा रहा। अजमेर रेंज के महानिरीक्षक रामफल सिंह भीलवाड़ा में डेरा डाले हुए हैं लेकिन वकील समुदाय किसी की सुनने को तैयार नहीं है। वरिष्ठ अधिवक्ता रवि डांगी ने बताया कि वकील पुलिस अधीक्षक पी. रामजी और उपाधीक्षक (सदर) रामकुमार कस्बां को भीलवाड़ा से हटाने तथा सीआई ओमप्रकाश वर्मा एवं चार अन्य पुलिस कर्मियों की भारतीय दंड संहिता की धारा 306 में गिरफ्तारी व मृतक परिवार को उचित मुआवजा दिए जाने की मांग कर रहे हैं।

अजमेर के संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा भी आज भीलवाड़ा पहुंचे हैं। वह सम्पूर्ण घटनाक्रम की जानकारी लेकर इस मामले में सरकार तथा मुख्यमंत्री को अवगत कराएंगे। बार एसोसिएशन ने आज अचानक जनता से बाजारों को बंद रखने की अपील की। इस आह्वान के कुछ ही देर बाद सभी बाजार बंद हो गए। वकीलों ने आज भी न्यायालय का कामकाज ठप रखा। न्यायिक अधिकारी भी बार एसोसिएशन के आह्वान पर अदालतों में नहीं बैठे। गए। वकीलों के उत्तेजित तेवरों को देखते हुए मुख्य न्यायाधीश की कोर्ट में मौजूद एक वकील को बचाते हुए बाहर निकाला गया। उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन ने इस प्रकरण की न्यायिक जांच की मांग की है।

राज्य की अदालतों में बहिष्कार
पुलिस प्रताड़ना से क्षुब्ध भीलवाड़ा के वकील अमित यादव द्वारा खुदकुशी किए जाने के विरोध में राजस्थान उच्च न्यायालय की मुख्यपीठ जोधपुर और जयपुर पीठ से जुडे वकीलों ने आज न्यायिक कार्य का बहिष्कार किया। जोधपुर में वकीलों के न्यायिक कार्य के बहिष्कार से अदालतों में कामकाज ठप रहा। अजमेर में वकीलों की सभा में इस प्रकरण की भत्र्सना करते हुए उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से जांच की मांग की गई। पुलिस महानिरीक्षक द्वारा अजमेर के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक समीर कुमार को जांच सौंपे जाने को सरकारी ढोंग करार दिया गया। सभा के बाद वकीलों के समूह ने अतिरिक्त संभागीय आयुक्त को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन दिया। ज्ञापन में दोषी पुलिसकर्मियों की गिरफ्तारी, परिजनों को 15 लाख का मुआवजा, मृतक की पत्नी को सरकारी नौकरी देने तथा न्यायिक जांच के साथ भविष्य में किसी वकील की गिरफ्तारी से पूर्व बार के अध्यक्ष से अनुमति लेने की मांग की गई है। राजस्व बार ने भी ज्ञापन सौंपा।

भीलवाडा में धरना, बाजार बंद
भीलवाडा में युवा वकील की रहस्यमय स्थिति में हुई मौत से गुस्साए वकीलों ने आज दूसरे दिन भी मृतक का पोस्टमार्टम नहीं होने दिया। घटना के विरोध में शहर के बाजार बंद रहे और वकीलों ने कोटा-भीलवाडा मार्ग जाम कर दिया। जिला बार एसोसिएशन के अधिवक्ता मृतक अमित यादव एडवोकेट के घर के बाहर धरने पर बैठे हैं तथा पुलिस को उसके घर के नजदीक भी नहीं जाने दिया जा रहा। अजमेर रेंज के महानिरीक्षक रामफल सिंह भीलवाड़ा में डेरा डाले हुए हैं लेकिन वकील समुदाय किसी की सुनने को तैयार नहीं है। वरिष्ठ अधिवक्ता रवि डांगी ने बताया कि वकील पुलिस अधीक्षक पी. रामजी और उपाधीक्षक (सदर) रामकुमार कस्बां को भीलवाड़ा से हटाने तथा सीआई ओमप्रकाश वर्मा एवं चार अन्य पुलिस कर्मियों की भारतीय दंड संहिता की धारा 306 में गिरफ्तारी व मृतक परिवार को उचित मुआवजा दिए जाने की मांग कर रहे हैं।

अजमेर के संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा भी आज भीलवाड़ा पहुंचे हैं। वह सम्पूर्ण घटनाक्रम की जानकारी लेकर इस मामले में सरकार तथा मुख्यमंत्री को अवगत कराएंगे। बार एसोसिएशन ने आज अचानक जनता से बाजारों को बंद रखने की अपील की। इस आह्वान के कुछ ही देर बाद सभी बाजार बंद हो गए। वकीलों ने आज भी न्यायालय का कामकाज ठप रखा। न्यायिक अधिकारी भी बार एसोसिएशन के आह्वान पर अदालतों में नहीं बैठे।

‘दूसरी पत्नी’ भी अनुकंपा नियुक्ति प्राप्त कर सकती है।।


उच्चतम न्यायालय ने कहा कि किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद यदि उसकी पहली पत्नी को कोई आपत्ति नहीं है तो उसकी दूसरी पत्नी को भी सरकारी नौकरी में अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार है। हिंदू विवाह अधिनियम के तहत एक व्यक्ति एक शादी को निभाते हुए केवल एक ही पत्नी रख सकता है और दूसरी शादी आईपीसी की धारा 494 और हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 17 के तहत अपराध होगी, जिसमें सात साल तक के कड़े कारावास की सजा दी जा सकती है।

न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू और न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा की पीठ ने कर्नाटक सरकार की एक अपील को खारिज करते हुए कहा कि जब दोनों पत्नी राजी हो गई हैं तो आप आपत्ति करने वाले कौन होते हैं। यदि एक पत्नी अनुकंपना नियुक्ति चाहती है और दूसरी मुआवजे संबंधी लाभ चाहती है तो आपको क्या परेशानी है।

पीठ ने राज्य सरकार द्वारा कर्नाटक उच्च न्यायालय के एक निर्देश को चुनौती देते हुए दाखिल की गई याचिका पर आदेश जारी किया। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने सरकार को निर्देश दिया था कि आर्म्ड रिजर्व फोर्स में हैड कांस्टेबल जी. हनुमंत गोड़ा की दूसरी पत्नी लक्ष्मी की नियुक्ति पर विचार किया जाए।

दूसरी पत्नी लक्ष्मी की तरफ से वकील एम. कमरुद्दीन अदालत में आए। शीर्ष न्यायालय ने राज्य सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत एक शादी के दौरान किसी शख्स की दो पत्नियाँ नहीं हो सकतीं, इसलिए तथाकथित दूसरी पत्नी केवल पहली पत्नी के साथ सुलह करके नियुक्ति के अधिकार पर दावा नहीं कर सकती।

लंबित मुकदमों में 65 फीसदी से ज्यादा मामले सरकार के खिलाफ।


अगर आप यह सोच रहे हैं कि राजस्थान हाई कोर्ट में सबसे ज्यादा मामले अपराधियों पर चल रहे हैं, तो खुद को अपडेट कर लें। हाई कोर्ट में दाखिल एक लाख 60 हजार मामलों में से लगभग साठ फीसदी यानी 97 हजार मामले सरकार के खिलाफ हैं। कई मामलों में तो वादी-प्रतिवादी राज्य सरकार ही है। यह हाल सिर्फ राजस्थान में ही नहीं, बल्कि कर्नाटक हाई कोर्ट में तो 65 फीसदी से ज्यादा मामले सरकार के खिलाफ हैं।

हाई कोर्ट में राज्य सरकार से जुड़े सबसे ज्यादा मामले कर विभाग, गृह, वित्त, उद्योग, खान-पेट्रोलियम, वन, पीएचईडी, शिक्षा, पंचायतीराज, परिवहन और राजस्व विभाग सहित 19 विभागों के हैं। राजस्थान हाई कोर्ट में सरकार के खिलाफ सबसे ज्यादा मामले टैक्स से जुड़े हैं। हाई कोर्ट के वरिष्ठ वकील और रिटायर्ड जज अजय कुमार जैन की मानें तो हाई कोर्ट में अधिकांश सरकारी मामले अनुपयुक्त और अपारदर्शी कानून के कारण दायर होते हैं।

सरकार के खिलाफ बढ़ते मामलों को देखते हुए राज्य के महाधिवक्ता ने सबसे ज्यादा केस वाले 19 विभागों की पहचान की है। विभागों के आपसी मामलों में अधिकांश मामले पेंशन नहीं मिलने, गलत ट्रांसफर करने, नियुक्ति में गड़बड़ी वाले होते हैं। राजस्थान हाई कोर्ट में वर्ष 1991 से 2002 के बीच लंबित मामलों में लगभग 30% की वृद्धि हुई है।
वर्ष 1994 मे विधि मंत्रियों और विधि सचिवों की बैठक में इस बात का फैसला किया गया था कि सरकार व सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के बीच के विवाद और एक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम का दूसरे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के साथ होने वाले विवाद को न्यायालय या अधिकरणों में नहीं निपटाया जाएगा। इनका निपटारा दोनों पक्षों के बीच समझौता कराकर किया जाएगा। हकीकत यह है कि सरकार ऐसा नहीं कर पाई।

देश की विभिन्न अदालतों में राज्य सरकार की ओर से दायर याचिकाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी नाराज है। पिछले सप्ताह ही राजस्थान सरकार की एक याचिका पर नाराजगी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को लताड़ लगाई है। कोर्ट का कहना है कि राज्य सरकारें बेमतलब याचिका दायर करने से बाज आएं। ये बात सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आरवी रवींद्रन और जस्टिस जीएस सिंघवी की बैंच ने गुरुवार को नगर विकास न्यास, बीकानेर की याचिका रद्द करते हुए कही।

नाबालिग के विवाह करने पर उसे परीक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता।


16 साल की उम्र में शादी करने वाले एक छात्र को हाईकोर्ट ने पीएससी की मुख्य परीक्षा में शामिल करने के निर्देश दिए हैं। जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस आरके गुप्ता की युगलपीठ ने छात्र की याचिका पर पीएससी के अध्यक्ष और उप नियंत्रक (परीक्षा) को नोटिस जारी करते हुए उसकी परीक्षा के परिणाम को इस मामले पर होने वाले फैसले के अधीन रखा है।

सिंगरौली के बैढ़न थानान्तर्गत ग्राम गुढ़ीताल में रहने वाले रामगोपाल शाह की ओर से दायर इस याचिका में कहा गया है कि 16 साल की उम्र में उसकी शादी 22 मई 1990 को हुई थी। उसने पीएससी की परीक्षा दी, जिसकी प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उसे मुख्य परीक्षा में शामिल होना था।

विगत 26 अक्टूबर को उप नियंत्रक ने एक आदेश जारी करके आवेदक की उम्मीदवारी को इस आधार पर निरस्त कर दिया कि उसने नाबालिग उम्र में शादी की है।

आवेदक का कहना है कि जिस नियम के तहत उसकी उम्मीदवारी को निरस्त किया जा रहा, वह मार्च 2000 में अमल में आया, जबकि उसकी शादी वर्ष 1990 में हुई थी। ऐसे में उक्त प्रावधान को भूतलक्षी प्रभाव से नहीं माना जा सकता।


याचिका पर आज हुई प्रारंभिक सुनवाई के दौरान आवेदक की ओर से अधिवक्ता राजेश दुबे द्वारा अपना पक्ष रखा गया। सुनवाई के बाद युगलपीठ ने अंतरिम राहत देते हुए मामले की अगली सुनवाई 30 नवम्बर को निर्धारित की है।

पुलिस ज्यादती से तंग अधिवक्ता के फांसी मामले में हाईकोर्ट में आज कार्य बहिष्कार


राजस्थान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने भीलवाड़ा में पुलिस प्रताड़ना के कारण वकील के आत्महत्या करने के मामले को लेकर शुक्रवार को कार्य बहिष्कार की घोषणा की है। एसोसिएशन के अनुसार कार्य बहिष्कार के कारण शुक्रवार को उच्च न्यायालय की जयपुर पीठ में वकील अदालतों में पैरवी करने नहीं जाएंगे। गिरफ्तारी की मांग: राजस्थान बार कौंसिल ने भीलवाड़ा के सम्बन्धित पुलिसकर्मी की गिरफ्तारी की मांग की है। कौंसिल ने कार्रवाई के लिए मुख्यमंत्री से भी दखल का आग्रह किया है।

कल भीलवाड़ा के सांगानेरी गेट इलाके में पुलिस ज्यादती से परेशान अधिवक्ता गुरूवार को उसके ही मकान में पंखे पर शव लटका मिला। इससे गुस्साए वकीलों ने सुभाष नगर थानाप्रभारी सहित कुछ पुलिस कर्मियों पर हत्या का आरोप लगाते हुए कोटा रोड जाम कर दिया। आरोपियों की गिरफ्तारी व पुलिस अधीक्षक को हटाने की मांग पर अड़े प्रदर्शनकारी मौके पर पहुंचे प्रशासनिक अधिकारियों के साथ धक्का-मुक्की पर उतर आए। उन्होंने अजमेर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक आर.पी. सिंह और जिला कलक्टर मंजू राजपाल को मृतक के घर से बाहर नहीं निकलने दिया।

इस सम्बन्ध में आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज कर थानाप्रभारी ओमप्रकाश वर्मा, उप निरीक्षक किशनसिंह, सिपाही मोती, भूपेन्द्र सिंह और राजेश को निलम्बित किया गया है। आरोपियों की गिरफ्तारी, मुआवजा तथा मृतक की पत्नी को नौकरी दिलाने की मांग पर वकील अड़े हुए हैं। देर रात तक वकीलों ने शव पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल नहीं ले जाने दिया। उधर, घटना के विरोध में जोधपुर के वकीलों ने शुक्रवार को हड़ताल पर रहने की घोषणा की है। सांगानेरी गेट निवासी वकील अमित यादव (29) का शव सुबह नौ बजे कमरे में पंखे से लटका मिला।

इससे गुस्साए वकीलों ने कोटा मार्ग पर जाम लगा दिया। करीब आठ घण्टे हंगामे के बाद शाम पांच बजे कमरा खोला गया। इसके बाद पोस्टमार्टम कराने से वकीलों ने इनकार कर दिया, जिसके चलते देर रात तक शव घर में ही रखा था।

Tuesday, November 17, 2009

44 डीएसपी की नियुक्तियां रद्द।


छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पीएससी द्वारा वर्ष 2005 की परीक्षा के माध्यम से चयनित 44 डीएसपी की नियुक्ति निरस्त कर दी है। जस्टिस एसके अग्निहोत्री की सिंगल बेंच ने सोमवार को दिए फैसले में कहा कि पीएससी ने परीक्षा गलत नियमों के आधार पर ली है, इसलिए मेरिट लिस्ट के आधार पर नए सिरे से भर्ती प्रकिया की जाए।

पीएससी ने वर्ष 2005 में प्रदेश में डीएसपी नियुक्त करने के लिए परीक्षा ली थी। इसके लिए तय आयुसीमा के नियम को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। इसमें याचिकाकर्ता अहिल्या मिश्रा, संदीप अग्रवाल व अन्य ने वकील प्रतीक शर्मा के माध्यम से याचिका दायर कर कहा कि जून 2005 में राज्य शासन ने पुलिस सेवा राजपत्रित भर्ती नियम में संशोधन किया था।

इसके अनुसार आयु सीमा में संशोधन कर डीएसपी की परीक्षा के लिए न्यूनतम आयु 21 व अधिकतम 28 वर्ष तय की गई। महिलाओं को इसमें 10 वर्ष की छूट दी गई।

यह नियम लागू होने के बाद पीएससी ने परीक्षा ली, लेकिन आयुसीमा संबंधी प्रावधानों का पालन नहीं किया। पीएससी ने पुराने नियम के अनुसार ही परीक्षा ले ली जिसमें आयु सीमा 21 से 25 साल थी और महिलाओं के लिए छूट का भी प्रावधान नहीं था।
इस कारण मेरिट लिस्ट में ऊपर होने के बाद भी याचिकाकर्ताओं को डीएसपी के पद पर नियुक्ति नहीं मिल पाई। याचिकाकर्ताओं ने चयन सूची निरस्त कर मेरिट लिस्ट के आधार पर नए सिरे से नियुक्ति करने की मांग की थी। शासन ने कोर्ट को प्रस्तुत अपने जवाब में कहा था कि उसने पीएससी को नियम की जानकारी दे दी थी, फिर भी उसने गलत नियम के अनुसार परीक्षा ली। पिछली बार सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर दिया था।

Monday, November 16, 2009

"ये चंदा कानून है" के लिए सब टीवी को नोटिस।


सब टीवी पर धारावाहिक "ये चंदा कानून है" में न्यायपालिका के गलत चित्रण और आपत्तिजनक तरीके से प्रदर्शित करने को लेकर मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने शनिवार को चैनल, आइडिया पिक्चर्स तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया हैं। वकील दीपांशु साहू द्वारा दायर याचिका की शनिवार को यहां सुनवाई करते हुए न्यायाधीश आर.एस. गर्ग एवं न्यायाधीश पी.के. जायसवाल की संयुक्त खण्डपीठ ने ये नोटिस जारी किए हैं। याचिकाकर्ता का कहना है कि इस धारावाहिक में अदालत का गलत चित्रण किया गया हैं। उच्चा न्यायालय द्वारा जारी नोटिस में कहा गया है कि क्यों न उनके खिलाफ अदालत की अवमानना का मामला चलाया जाए। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से कहा गया है कि ऎसे धारावाहिको के प्रसारण पर नियंत्रण के लिए उसके पास क्या प्रावधान हैं।

वकील बार काउंसिल के चुनावी कायदों से ही अनजान


कानून के जानकार होने के बावजूद कई वकील अपनी नियामक संस्था बार काउंसिल के चुनावी कायदों से ही अनजान हैं। राजस्थान राज्य की ग्यारहवीं बार काउंसिल के लिए चल रही मतगणना में सामने आ रही वकीलों की खामियां देखकर तो यही लगता है।

प्रदेश के छह सौ से ज्यादा अधिवक्ताओं ने तो 'पहली पसंद' का प्रत्याशी चयन करने में भी गडबडी कर दी है। कइयों ने एक से ज्यादा प्रत्याशियों के नाम के सामने पहली पसंद का अंक (1) लिख दिया, तो कुछ ने किसी को भी पहली प्राथमिकता नहीं दी। कुछ वकीलों ने मतपत्र पर दस्तखत, नाम या कोई टिप्पणी लिख दी। नतीजतन, पूरे राज्य में वकीलों के 679 मत तो फिजूल ही चले गए। यह संख्या हालांकि कुल मतों के अनुपात में खासी कम है, लेकिन इतने वोट हासिल करने वाला प्रत्याशी 110 उम्मीदवारों में 'टॉप-फाइव' की श्रेणी में आ सकता था।

नहीं रखी गोपनीयता
इतना ही नहीं, टोंक जिले के टोडारायसिंह में अधिकांश वकीलों के मत की गोपनीयता ही खत्म हो गई। दरअसल, बार काउंसिल के चुनाव नियमों (सेक्शन 23-24) के मुताबिक मतपत्र पर नाम, हस्ताक्षर या पहचान का कोई चिह्न अंकित नहीं होना चाहिए।

बावजूद इसके यहां 42 में से 35 वकीलों के मतपत्रों पर उनका अधिवक्ता पंजीयन क्रमांक (एनरोलमेंट नम्बर) लिख दिया गया। मतगणना के दौरान जयपुर के उम्मीदवार रामावतार खण्डेलवाल ने लिखित आपत्ति व्यक्त कर इन्हें खारिज करने की मांग भी रखी, लेकिन टोडारायसिंह के पीठासीन अधिकारी से स्पष्टीकरण लेकर इन मतों को वैध मानने की अनुमति दे दी गई है।

काउंसिल चुनाव में एक मतदाता ने पहली प्राथमिकता अंकित करने के बाद मतपत्र पर लिख दिया- 'अन्य सभी अयोग्य हैं।' वहीं एक अधिवक्ता ने किसी भी प्रत्याशी को वोट नहीं देने की टिप्पणी लिखी। मतपत्रों पर ऎसी ही कई टिप्पणियां लिखी पाई गई।

छात्र की कराई निर्वस्त्र परेड, देना होगा एक लाख का मुआवज


अपने सेवा काल के दौरान एक छात्र को निर्वस्त्र कर परेड कराना 65 वर्षीय सेवानिवृत्त शिक्षक पी सी गुप्ता को काफी महंगा पड़ा है। गुप्ता को 12 वर्ष पूर्व की अपनी इस करतूत के लिए अब पीड़ित छात्र को एक लाख रुपये का मुआवजा देना होगा।

दिल्ली की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश प्रतिभा रानी ने गुप्ता को मुआवजा देने का निर्देश दिया। हालांकि अदालत ने इस मामले में जेल की सजा काट रहे सेवानिवृत्त शिक्षक को अच्छे व्यवहार की शर्त पर दो वर्ष की परिवीक्षा अवधि पर रिहा करने का निर्देश दिया। गुप्ता को इस मामले में निचली अदालत 19 मार्च, 2007 को ही सजा सुना चुकी है। गुप्ता को एक वर्ष कैद और ढाई हजार रुपये जुर्माना की सजा सुनाई गई थी। न्यायाधीश रानी ने सेवानिवृत्त शिक्षक गुप्ता की उस अपील को मंजूर कर लिया, जिसमें कैद व जुर्माने की सजा को चुनौती दी गई है।

मामला 25 मई, 1997 का है। गुप्ता दिल्ली के एक राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में शिक्षक थे। उस दिन उन्होंने अपनी कक्षा के एक तेरह वर्षीय छात्र को स्कूल के तालाब में नहाते हुए पकड़ा था। क्लास छोड़कर छात्र द्वारा तालाब में नहाने की घटना से गुप्ता इतने गुस्से में आ गए कि उन्होंने पहले तो छात्र की जमकर पिटाई की। इसके बाद उसे घंटों तक कपड़ा नहीं पहनने दिया। पूरे दिन उक्त छात्र को स्कूल में निर्वस्त्र खड़े रखा था।

जज रानी ने कहा कि अब तो गुप्ता सर्विस में भी नहीं है, इसलिए उनके द्वारा इस तरह के अपराध दोबारा करने की संभावना नहीं है। इस कारण उन्हें परिवीक्षा पर रिहा करने का आदेश दे रही हूं। अदालत का कहना था कि ऐसा कोई कारण नहीं दिख रहा है, जिससे परिवीक्षा अवधि पर गुप्ता की रिहाई रोकी जा सके। हालांकि जज रानी ने गुप्ता की हरकत की कड़े शब्दों में निंदा की। पीड़ित छात्र के वकील ने गुप्ता को परिवीक्षा पर रिहा करने का विरोध किया। लेकिन अदालत ने उनकी दलील नहीं मानी।

Thursday, November 12, 2009

वकीलों ने आईपीएस पुलिस अधिकारी को धुना


सुप्रीम कोर्ट परसिर में वकीलों और उनके मुंशियों ने बुधवार को एक आईपीएस पुलिस अधिकारी की पिटाई कर दी। यह पुलिस अधिकारी महाराष्ट्र का है और दिल्ली में विशेष ट्रेनिंग पर आया हुआ है। लगभग एक घंटे के बवाल के बाद मामला तब शांत हुआ जब डीसीपी ने माफी मांगी।

मामला तब शुरू हुआ जब आईपीएस अधिकारी संजय येलपुले सुप्रीम कोर्ट में प्रवेश के लिए पास बनवाने के वास्ते लाइन में खड़े वकील के एक मुंशी से भिड़ गया। मुंशी लाइन तोड़कर आगे लग रहा था। डीसीपी स्तर के अधिकारी ने मुंशी को लाइन न तोड़ने को कहा लेकिन वह नहीं माना। इस पर उन्होंने उसे डपटा तो वह भी गुस्सा हो गया। इस पर संजय ने कहा कि जानते नहीं हो वह आईपीएस डीसीपी है और उसे उल्टा लटकवा देगा। यह कहकर उन्होंने मंशी के दो झापड़ रसीद कर दिए और पास खड़े सिपाही से कहा कि जरा उसे ‘समझाएं’। इसके बाद वह पास बनवा कर अंदर चले गए। मुंशी ने अन्य मुंशियों को बुलाया और डीसीपी का सुप्रीम कोर्ट के अंदर पीछा किया। डीसीपी किसी तरह जान बचाकर भाग रहा था कि उसी समय एक वकील ने उसे थप्पड़ जड़ दिया।

आखिरकार संजय भाग कर सुप्रीम कोर्ट सुरक्षा कार्यालय में पहुंचा। 50 से ज्यादा मुंशी वहां भी पहुंच गए और नारे लगाने लगे। सुप्रीम कोर्ट मुंशी एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने मांग की मुंशी पर हमला करने के आरोप में डीसीपी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए। पुलिस के समझाने बुझाने पर मुंशी माफनामे पर मान गए। डीसीपी संजय ने उनसे लिखित रूप में बिना शर्त मांगी लेकिन मुंशी नहीं माने और कहा कि वह बाहर आकर सबके सामने माफी मांगें। संजय ने यही किया और तब जाकर मामला शांत हुआ।

दूसरी शादी कर, पहली बीबी से पिटा बूढ़ा प्रोफेसर



अपनी शिष्या से प्रेम-प्रसंग को लेकर बिहार का मटुकनाथ बेशक हाल ही में चर्चा मे आया हो, लेकिन दिल्ली के एक प्रोफेसर साहब तो करीब एक दशक पहले ही इस तरह की प्रेम कहानी को अंजाम दे चुके हैं। प्रोफेसर ने अपनी बेटी की उम्र की लड़की से दूसरी शादी की है। जिसके लिए प्रोफेसर महोदय सरेराह पहली पत्नी से पिटे भी। मगर इसे संयोग ही कहेंगे कि यह मामला उस समय चर्चा में नहीं आ पाया।

9 साल पुराने इस मामले में पटियाला हाउस स्थित मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट वीना रानी की अदालत ने 61 वर्षीय सेवानिवृत प्रोफेसर के खिलाफ पहली पत्नी के जिंदा रहते दूसरा विवाह करने एवं पहली पत्नी के जमा पूंजी का गबन करने एवं आपराधिक साजिश रचने के इल्जाम में आरोप तय कर दिए हैं।

आरोप-पत्र के मुताबिक प्रोफेसर राहुल(बदला हुआ नाम) की शादी उमा (बदला हुआ नाम) के साथ वर्ष 1985 में हुई थी। उमा को 7 जून 2000 को पता चला की प्रोफेसर साहब ने न सिर्फ 18 साल की एक लड़की से दूसरी शादी कर ली है, बल्कि दूसरे विवाह से उन्हें एक बेटा भी है। रिश्तों के बिखरने से हताश पहली पत्नी ने पति की दूसरी शादी और दूसरी शादी से जन्में बच्चे के जन्म से संबंधित साक्ष्य एकत्रित किए। एक मौका ऐसा भी आया जब उमा ने राहुल की जमकर धुनाई भी की। उमा का आरोप है कि दूसरी शादी से एक महीना पहले ही राहुल ने एचडीएफसी बैंक से करीब 8 लाख रुपए होम लोन लिया था। राहुल और उसकी दो बहनों ने मिलकर उसे डेढ़ लाख रुपये ऋण लेने के लिए उमा को मजबूर किया।

पहली पत्नी द्वारा पेश सबूतों को अहम मानते हुए अदालत ने कहा है कि यह साबित होता है कि शिकायतकर्ता को पति की दूसरी शादी के बाद मानसिक व शारीरिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी। अदालत ने राहुल के खिलाफ पहली पत्नी से धन और संपत्ति छीनने के लिए जालसाजी व धोखाधड़ी करने एवं उसकी दो बहनों के खिलाफ आपराधिक साजिश रचने के इल्जाम के तहत आरोप तय किए हैं।

कानून बनाने के हक पर विचार करेगी संविधान पीठ : सुप्रीम कोर्ट


उच्चतम न्यायालय ने आज पांच सदस्यीय संविधान पीठ को इस बात पर विचार करने के लिए कहा कि क्या अदालतें कानून बना सकती हैं तथा ध्यान दिलाया कि ऊची कीमतों और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर आदेश देने के लिए अदालतों के पास विशेषज्ञता नहीं है।
सर्वोच्च न्यायालय ने केरल विश्वविद्यालय से संबद्ध विभिन्न कालेजों के प्रधानाध्यापकों की याचिका के बाद छात्र संघ और उसके चुनाव संबंधित मामलों की सुनवाई करते हुए कहा कि कल, हम संसद को भंग नहीं कर सकते और यह नहीं कह सकते हैं कि हम संसद हैं और कानून बनाना शुरू कर देंगे। न्यायमूर्ति मार्कन्डेय काटजू और न्यायमूर्ति अशोक कुमार गांगुली की पीठ ने यह मुद्दा पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेज दिया कि क्या अदालत कानून बना एवं लागू कर सकती हैं जो विधायिका और कार्यपालिका के विशिष्ट अधिकार क्षेत्र में आता है।
पीठ ने कहा कि आज ऊंची कीमतें और बड़े स्तर पर बेरोजगारी है। यह आवश्यक सामाजिक जरूरतें हैं। लेकिन क्या हम इन सरकार को आदेश दे सकते है लेकिन हमारे पास विशेषज्ञता नहीं है हालांकि हम भी उंची कीमतों के कारण प्रभावित हैं। न्यायाधीशों ने कहा कि न्यायपालिका के लिए विधायिका और कार्यपालिका के कामों को अपने हाथों में लेना ‘अनुचित' और ‘खतरनाक' होगा। उन्होंने कहा कि इन तीनों की अपनी विशिष्ट भूमिका है। पीठ ने आगाह किया कि न्यायाधीशों को नियंत्रण बरतना होगा। अन्यथा इससे भारी प्रतिक्रिया होगी। न्यायाधीशों ने शीर्ष न्यायालय के पूर्व में दिये गये उस आदेश पर आपत्ति जतायी कि जिसके तहत देश के कालेजों और विश्वविद्यालयों में छात्र संघ के चुनाव कराने के लिए दिशानिर्देश तय किये गये थे।
उन्होंने कहा कि हम (अदालतें) विधायिका का कामकाज अपने हाथ में ले रहे हैं.. हां, कुछ अस्पष्ट क्षेत्र हैं.. हमारा मत हैं कि यह लोकतंत्र के लिए अनुचित और खतरनाक है। पीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर संविधान पीठ द्वारा विचार करना जरूरी है क्योंकि इससे गंभीर संविधानिक महत्व के सवाल जुड़े हैं।
संविधान पीठ जिन मुद्दों पर विचार करेगी, वे हैं ..क्या उच्चतम न्यायालय का 22 सितंबर को लिंगदोह समिति की रिपोर्ट का कार्यान्वयन करने के लिए दिया गया अंतरिम आदेश वैध था।
.. दूसरा, क्या यह न्यायिक विधेयक के दायरे में आता है।
.. तीसरा, क्या न्यायपालिका कानून बना सकती है और अगर हां, तो इसकी सीमा कहां तक है।
.. चौथा, क्या न्यायपालिका ऐसे न्यायिक आदेश जारी करने के लिए सामाजिक समस्याओं का हवाला दे सकती है। शीर्ष न्यायालय की पीठ ने सालिसीटर जनरल और इस मामले में न्याय मित्र गोपाल सुब्रह्मण्यम की यह दलील खारिज कर दी कि ऐसे आदेश सामाजिक जरूरतें पूरी करने के लिए दिए जाते हैं। उच्चतम न्यायालय ने लिंगदोह समिति की सिफारिशों के आधार पर 22 सितंबर 2006 को महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में छात्र संघ के चुनाव कराने के संबंध में दिशानिर्देश जारी किए थे।
इन दिशानिर्देशों में, छात्रसंघ चुनाव प्रचार के लिए प्रत्याशियों द्वारा अंधाधुंध व्यय किए जाने पर रोक, आयु सीमा और आपराधिक तत्वों को चुनाव लड़ने से रोकना शामिल था।
पीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर संविधान पीठ को विचार करने की जरूरत है क्योंकि इसमें गंभीर संवैधानिक सवाल शामिल है।

Monday, November 9, 2009

बेझिझक करें भ्रष्ट अफसरों की शिकायत -पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट जज


पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के जज सूर्यकांत का कहना है कि भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी हैं और इसे मिटाने के लिए लोगों को व्यक्तिगत स्वार्थ छोड़ने होंगे। विकासशील देशों में भ्रष्टाचार ज्यादा तेजी से पनप रहा है, इसका सीधा असर विकास पर भी पड़ता है।

इसे रोकने के लिए हर व्यक्ति को जागरूक होना होगा। संवैधानिक अधिकारों की तरह संवैधानिक दायित्व भी इमानदारी से निभाने होंगे। सेक्टर-30 में सीबीआई चंडीगढ़ जोन की ओर से भ्रष्टाचार विषय पर आयोजित परिचर्चा में जस्टिस सूर्यकांत बतौर मुख्य महमान शरीक हुए।

उन्होंने कहा कि अफसर यह ठान लें कि वे किसी के दबाव में काम नहीं करेंगे तो भ्रष्टाचार खुद ब खुद खत्म हो जाएगा। सीबीआई के जोनल हेड महेश अग्रवाल ने कहा कि आम कर्मचारियों की तो शिकायतें मिलती हैं, पर बड़े अफसरों के बारे में बहुत कम लोग सामने आते हैं। लोग भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के लिए बेझिझक आगे आएं। उनकी पहचान गुप्त रखी जाएगी।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने चार जजों को बर्खास्त किया।



छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अलग-अलग जिलों के चार सिविल जजों को राज्य शासन के विधि विभाग ने बर्खास्त कर दिया है। परिवीक्षा अवधि में कार्य संतोषजनक नहीं पाए जाने पर हाईकोर्ट ने शासन से इन जजों की बर्खास्तगी की अनुशंसा की थी। हाईकोर्ट के इंचार्ज रस्ट्रि।र जनरल द्वारा जारी आदेश के अनुसार कोरबा जिले के करतला में सिविल जज वर्ग-2 के पद पर पदस्थ सत्येन्द्र कुमार मिश्रा, बीजापुर जिला दक्षिण बस्तर में पदस्थ सिविल जज वर्ग-2 श्रीमती श्रद्धा आकाश श्रीवास्तव, जिला दुर्ग के नवागढ़ में पदस्थ सिविल जज वर्ग-2 यशपाल सिंह टंडन व जिला दुर्ग में पदस्थ सप्तम व्यवहार न्यायधीश वर्ग-2 कु. द्वारिका तिड़के को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है।

परिवीक्षा अवधि में इनका कार्य संतोषजनक नहीं पाए जाने पर हाईकोर्ट ने राज्य शासन से इनके विरुद्ध कार्रवाई की अनुशंसा की थी। इन सभी का चयन पीएससी द्वारा आयोजित सिविल जज की परीक्षा के माध्यम से हुआ था। प्रदेश में जजों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई मानी जा रही है। कार्रवाई की जानकारी हाईकोर्ट की वेबसाइट में भी प्रदर्शित कर दी गई है।

दिनाकरन के खिलाफ वकीलों ने किया अदालतों का बहिष्कार।


कर्नाटक के लगभग 60,000 वकीलों ने सोमवार को आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने तथा अवैध तरीके से जमीनों पर कब्जा जमाए रखने के कथित आरोपों का सामना कर रहे कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी. डी. दिनाकरन के विरोध में अदालती कार्रवाई का बहिष्कार किया।
एडवोकेट्स एसोसिएशन ऑफ बेंगलुरू' (एएबी) के महासचिव आर. राजन्ना ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, ''निचली अदालतों से लेकर उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों का बहिष्कार करने का कार्यक्रम पूरी तरह सफल रहा। कुछ अदालतों में हालांकि काम हुआ लेकिन 60,000 वकील कार्यवाही से दूर रहे।''
एएबी के बैनर तले सैकड़ों वकीलों के दिनाकरन के कक्ष के बाहर प्रदर्शन किया और नारेबाजी की। दिनाकरन उस वक्त एक मामले की सुनवाई कर रहे थे। इस दौरान गुस्साए वकीलों के एक समूह ने एक पत्रकार की पिटाई भी कर दी।
उल्लेखनीय है कि न्यायमूर्ति दिनाकरन के खिलाफ जमीन पर अवैध कब्जे और आय से अधिक संपत्ति रखने के आरोप लगे हैं। इन गंभीर आरोपों के बावजूद उनके पद पर बने रहने का वकील विरोध कर रहे हैं।
जब वकीलों ने अपना विरोध प्रदर्शन रोकने से इंकार किया तो न्यायमूर्ति दिनाकरन ने एएबी के प्रतिनिधियों को अपने कक्ष के भीतर बुलाया और उनसे कहा कि वे उन्हें उनके संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करने दें।
न्यायमूर्ति दिनाकरन ने कहा, ''मैंने क्या अपराध किया है? आप लोग मेरे खिलाफ प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं? अदालत इस तरह की गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं कर सकती।''
वकीलों ने उनकी बात को अनसुना करते हुए अपना प्रदर्शन जारी रखा। उन्होंने अदालत की कार्यवाही को भी रोक दिया। उल्लेखनीय है कि शनिवार को उच्च न्यायालय ने वकीलों द्वारा न्यायमूर्ति दिनाकरन के बहिष्कार करने पर रोक लगा दी थी।
उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार के मुताबिक वकीलों ने न्यायमूर्ति गोपाल गौड़ा और न्यायमूर्ति नागरत्ना को भी मामलों की सुनवाई नहीं करने दी।
इस बीच कुछ वकीलों ने एक वरिष्ठ टेलीविजन पत्रकार और एक कैमरामैन की इसलिए पिटाई कर दी क्योंकि वह प्रदर्शन की शूटिंग नहीं कर रहा था। उल्लेखनीय है कि अदालत की कार्यवाही को कैमरे में कैद करने की इजाजत नहीं है।

शादी के झांसे में नहीं आएं महिलाएं-दिल्ली हाईकोर्ट


दिल्ली हाईकोर्ट ने महिलाओं को चेताया है कि वे महज शादी के वादे पर किसी से शारीरिक संबंध न बनाएं। कोर्ट ने महिलाओं से कहा कि शुद्धता, शुचिता और गुण को बनाए रखना पूरी तरह उन पर ही निर्भर करता है।

न्यायमूर्ति कैलाश गंभीर की पीठ ने कहा, '..अंतत: ये महिलाएं ही हैं जो अपने शरीर को सुरक्षित रखने के लिए जिम्मेदार हैं। शादी का वादा हकीकत बन भी सकता है और नहीं भी बन सकता है। रिश्ते में शामिल किसी महिला के सम्मान, गरिमा और शील के रक्षा की प्राथमिक जिम्मेदारी अंतत: उसी की बनती है।'

न्यायालय की यह सलाह एक व्यक्ति द्वारा दायर की गई अग्रिम जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान आई है जिस पर अपने पड़ोसी से शादी का झांसा देकर दुष्कर्म का आरोप है। अभियुक्त को जमानत दे देने वाली पीठ ने कहा कि एक महिला को किसी मर्द के आगे महज क्षणिक सुख के लिए समर्पण नहीं करना चाहिए। किसी महिला के सम्मान, गरिमा और शील के रक्षा की प्राथमिक जिम्मेदारी अंतत: उसी की बनती है।

हालांकि, न्यायालय ने सरकारी वकील की उस दलील को खारिज कर दिया कि अभियुक्त को इसलिए जमानत नहीं दी जा सकती क्योंकि उसे शारीरिक संबंध बनाए जाने में पीड़िता की सहमति प्राप्त थी।

जमानत देते वक्त पीठ ने कथित तौर पर लिखे गए उन प्रेम पत्रों को भी ध्यान में रखा, जिसमें पीड़िता ने अभियुक्त से यह इच्छा जाहिर की थी कि वह उसके बच्चे की मां बनना चाहती है।

न्यायालय ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि पीड़िता ने अभियुक्त को शारीरिक संबंध बनाने की अनुमति दी थी क्योंकि उसने वादा किया था कि वह पीड़िता से शादी करेगा। लेकिन न्यायालय ने यह भी कहा कि महज शादी का वादा शारीरिक संबंध बनाए जाने का कारण नहीं होना चाहिए था।
पीठ ने इस बात पर भी गौर किया, जिसमें कहा गया था कि पीड़िता अपने परिजनों की चाय में नींद की गोली मिला देती थी, जिससे वह अभियुक्त के साथ अपने घर में ही शारीरिक संबंध बना सके।  हालांकि, सुनवाई के दौरान न्यायालय ने मर्दों को भी नसीहत दी कि निश्चित तौर पर यह मर्दों का भी नैतिक कर्तव्य है कि वे झूठे वादे करके किसी महिला का शोषण नहीं करें।

Friday, November 6, 2009

जम्मू-कश्मीर में प्री-पेड पर बैन को चुनौती


जम्मू-कश्मीर में केंद्र द्वारा प्री-पेड मोबाइल पर प्रतिबंध लगाने के खिलाफ दायर की गई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में 17 नवंबर को सुनवाई होगी। जम्मू-कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी के अध्यक्ष प्रो. भीम सिंह द्वारा दायर इस याचिका में यह प्रतिबंध हटाने की मांग की गई है।

सिंह के मुताबिक, केंद्र ने यह प्रतिबंध लगाकर संकटग्रस्त राज्य के लोगों के संचार तथा अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार को छीन लिया है। मामले को सूचीबद्ध करते समय सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन, जस्टिस सुदर्शन रेड्डी तथा पी सतशिवम की बेंच ने इस पर फौरन सुनवाई से इनकार कर दिया। बेंच ने कहा कि वह 17 नवंबर को इसकी सुनवाई करेगी।

याचिकाकर्ता ने पूछा है कि यदि राज्य निवासी पोस्ट-पेड कनेक्शंस का इस्तेमाल कर सकते हैं तो प्री-पेड मोबाइल का क्यों नहीं? इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय का कहना है कि प्रत्येक आतंकी के पास एक से ज्यादा प्री-पेड कनेक्शन हैं।याचिकाकर्ता ने कहा है कि यह सरकार तथा प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह संदिग्ध डीलरों द्वारा सिम काडरें की बिक्री रोके। प्री-पेड पर प्रतिबंध लगाना समस्या का हल नहीं है।

Wednesday, November 4, 2009

राजे को राहत, माथुर आयोग पर हाई कोर्ट का स्टे


राजस्थान हाई कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कार्यकाल में किए गए कार्यो की जांच के लिए गठित माथुर आयोग के कामकाज पर अग्रिम आदेश तक रोक लगा दी है। उल्लेखनीय है कि हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एनएन माथुर की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय आयोग का गठन किया गया था जिसे वसुंधरा राजे के कामकाजों की जांच करनी थी।

हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस जगदीश भल्ला ने आज इस मामले की सुनवाई करते हुए सरकार से दो हफ्ते में जवाब मांगा है। एक जनहित याचिका में माथुर आयोग की वैधानिकता को चुनौती दी गई थी जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने जांच आयोग पर अंतरिम रोक लगा दी है।

गौरतलब है कि कांग्रेस ने सत्ता में आते ही इस साल जनवरी में वसुंधरा के वर्ष 2004 से 2008 तक के कार्यकाल में हुए सभी महत्वपूर्ण निर्णयों को भ्रष्टाचार बताते हुए इनकी जांच के लिए माथुर आयोग का गठन किया था।

जस्टिस रवींद्रन अंबानी गैस मामले की सुनवाई से हटे।


मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी के बीच गैस आपूर्ति और कीमत को लेकर विवाद की सुनवाई कर रही तीन सदस्यीय खंडपीठ से सर्वोच्च न्यायालय के एक और न्यायाधीश ने खुद को अलग कर लिया है।न्यायाधीश रविंद्रन की बेटी बेंगलुरू स्थिति एक कंपनी एबीजे पार्टनर्स में काम करती है। एबीजे पार्टनर्स मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज को वैश्विक स्तर पर अधिग्रहण के मामलों में कानूनी सलाह देती है। इस तथ्य के खुलासे के बाद रविंद्रन ने बुधवार को स्वयं को इस मामले से अलग कर लिया।

इससे पूर्व न्यायाधीश मार्कण्डेय काटजू ने इस आधार पर खुद को सुनवाई से अलग किया कि उनकी पत्नी के पास रिलायंस इंडस्ट्रीज के शेयर हैं।

मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज और अनिल अंबानी की रिलायंस नेचुरल के बीच 2.34 डॉलर प्रति यूनिट की दर से 17 वर्षो तक गैस की आपूर्ति के मुद्दे पर विवाद चल रहा है।

धार्मिक स्थल के नाम पर बने अवरोधक हटाएं।


राजस्थान हाइकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में जिला प्रशासन को आदेश दिए हैं कि शहर के सार्वजनिक मार्गो पर यातायात में बाधक बन रहे धार्मिक स्थल हटाए जाएं। हाईकोर्ट ने 48 घंटे में इन अवरोधकों को चिह्न्ति कर उनसे जुड़े लोगों को नोटिस देकर हटाने को कहा है। न्यायाधीश डॉ. विनीत कोठारी ने मंगलवार को यह आदेश दिए। हाईकोर्ट में दिनेश कुमार व शंकर ने बीमा क्लेम संबंधी मामले में अपील प्रस्तुत की थी।

न्यायाधीश कोठारी ने इसकी सुनवाई करते हुए तब स्व प्रेरणा से प्रसंज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का संदर्भ देते हुए गत सात अक्टूबर को सिटी एसपी, जेडीए सचिव व नगर निगम सीईओ के नेतृत्व में तीन सदस्यीय कमेटी गठित कर यातायात में अवरोधक बन रहे धार्मिक स्थलों के संबंध में प्रारंभिक रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए थे।
इस मामले में मंगलवार को रखी सुनवाई के दौरान न्यायाधीश कोठारी ने कमेटी को शुरुआत में पांच ऐसे अवरोधक चिह्न्ति कर उन्हें 48 घंटे के नोटिस पर हटाने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने आदेश में कहा कि नोटिस के बावजूद ऐसे अवरोधक स्वेच्छा से नहीं हटाए जाते हैं तो उसे बलपूर्वक हटाया जाए। न्यायालय ने अपने आदेशों में स्पष्ट किया है कि उसके द्वारा तय समय सीमा को राज्य सरकार की कोई भी अथॉरिटी बढ़ा नहीं सके गी।

ब्लैकबेरी फोन चुराने के आरोप में उद्योगपति गिरफ्तार।


इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर लगे सीसीटीवी कैमरों ने चोरी के एक मामले में एक हाई प्रोफाइल व्यक्ति को पकड़वाने में अहम भूमिका निभाई। इन कैमरों की मदद से सोमवार रात को एयरपोर्ट पर हुई चोरी की एक घटना सुलझ सकी और हाथ आया वो हाई प्रोफाइल शख्स, जिसके बारे में किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि वह चोरी करेगा।

यह शख्स हिन्दुस्तान नेशनल ग्लास एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड कामैनेजिंग डायरेक्टर संजय सोमानी है। वहीं कंपनी के उपमहाप्रबंधक आलोक टपारिया का कहना है कि यह सब एक गलतफहमी के चलते हुआ और संजय सोमानी ने मोबाइल चोरी नहीं की थी।

एयरपोर्ट सूत्रों के मुताबिक संजय सोमानी सोमवार सुबह करीब साढ़े पांच बजे इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट संख्या आईसी-439 से चेन्नई जाने के लिए इंदिरा गांधी इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट के टर्मिनल वन-ए पर पहुंचे थे। चेक-इन कराने के बाद वह सिक्युरिटी होल्ड एरिया में सुरक्षा जांच कराने के लिए पहुंचे। यहां एक्स-रे जांच के लिए संजय सोमानी ने अपना पर्स, मोबाइल व अन्य सामान एक्स-रे मशीन पर रखा।

इसी समय इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट नंबर आईसी-688 से मुंबई जा रहे एनके पुरी ने भी अपना सामान एक्स-रे जांच के लिए रखा। जांच के बाद पुरी को अपना ब्लैकबेरी मोबाइल एक्स-रे ट्रॉली से गायब मिला। उन्होंने इसकी सूचना सुरक्षा ड्यूटी पर तैनात केन्द्रीय ओद्योगिक सुरक्षा बल के अधिकारी को दी। पुरी की शिकायत के बाद हवाई अड्डे पर हड़कंप मच गया।

जांच में जुटे सीआईएसएफ के अधिकारियों ने सीसीटीवी फुटेज देखी तो पाया कि एक नीले रंग की हैंगरी पहने हुए शख्स ने पुरी का मोबाइल उठाया है। वह शख्स इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट संख्या आईसी-429 से चेन्नई के लिए रवाना हुआ है। हुलिए के आधार पर विमान के चालक दल के सदस्यों एवं विमान में सवार अन्य सदस्यों से फोन पर पूछताछ की गई, तो दल के सदस्यों एवं विमान में सफर करने वाले यात्रियों ने सीआईएसएफ के द्वारा बताए गए कपड़ों एवं हुलिए के व्यक्ति की विमान के अंदर मौजूदगी की पुष्टि की। सीट नंबर के आधार पर इस शख्स की पहचान संजय सोमानी के रूप में हुई।

सीआईएसएफ को सूचना मिली कि यही शख्स इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट से शाम को दिल्ली वापस आ रहा है। सूचना के मुताबिक आईजीआई एयरपोर्ट पर घेराबंदी कर ली गई। विमान के लैंड होते ही संजय सोमानी को हिरासत में ले लिया गया। पूछताछ के दौरान पहले संजय सोमानी ने मोबाइल चोरी में हाथ होने से इंकार कर दिया। लेकिन, सीआईएसएफ द्वारा सीसीटीवी की फुटेज दिखाने पर संजय सोमानी ने मोबाइल चोरी की बात कबूल कर ली। संजय सोमानी ने सीआईएसएफ के अधिकारियों को बताया कि उसने मोबाइल को विमान के टॉयलेट में छुपा दिया है।

संजय सोमानी की निशानदेही पर सीआईएसएफ एवं एयरलाइंस के अधिकारियों ने विमान के टायलेट से मोबाइल बरामद कर लिया। इसके बाद संजय सोमानी को पालम पुलिस के हवाले कर दिया गया जहां उनके खिलाफ धारा 380 एवं 422 के तहत मामला दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया गया। मंगलवार सुबह पालम पुलिस ने संजय सोमानी को एडिशनल चीफ मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट राजेश कुमार की अदालत में पेश किया। कोर्ट ने उन्हें तीस हजार रुपए के निजी मुचलके पर जमानत दे दी।

Monday, November 2, 2009

छत्तीसगढ़ के तीन वकील सस्पेंड।


छत्तीसगढ़ स्टेट बार कौंसिल ने व्यावसायिक कदाचरण के आरोप सिद्ध होने पर राज्य के तीन वकीलों को निलंबित कर दिया है। इसमें एक वकील बिलासपुर के भी हैं। स्टेट बार कौंसिल अनुशासन समिति की रविवार को हुई बैठक में वकीलों के व्यावसायिक कदाचरण संबंधी मामले प्रस्तुत किए गए। इसमें समिति के अध्यक्ष पद्म कुमार अग्रवाल, सदस्य कोषराम साहू और सह सदस्य रजनीश निषाद की पीठ ने मामलों की सुनवाई की।

सुनवाई के बाद तीन वकील बिलासपुर के विजयशंकर तिवारी, दुर्ग के वकील नवजीत कुमार रमन और राजनांदगांव के वकील शफीर अहमद को व्यावसायिक कदाचरण का दोषी पाते हुए निलंबित कर दिया गया। इनमें से वकील श्री तिवारी पर अधिवक्ता कल्याण निधि के टिकट के मुद्दे पर वकीलों को गुमराह और भयभीत करने वाले बयान प्रकाशित कराने और बार कौंसिल की छवि धूमिल करने का प्रयास करने का आरोप लगाया गया।

कौंसिल ने इसे प्रथम दृष्टया व्यावसायिक कदाचरण मानते हुए स्वप्रेरणा से संज्ञान लेकर अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 35 के तहत मामले को अनुशासन समिति के समक्ष प्रस्तुत किया। समिति ने मामले की छानबीन के बाद श्री तिवारी को व्यावसायिक कदाचरण का दोषी पाते हुए एक नवंबर से पांच साल की अवधि के लिए निलंबित कर दिया।

दूसरे मामले में राजनांदगांव जिले के डोंगरगांव निवासी वकील शफीर अहमद के खिलाफ एक अन्य वकील सुरेंद्र कुमार दुबे ने शिकायत की थी कि श्री अहमद ने डोंगरगांव तहसील में नोटरी की नियुक्ति के लिए फर्जी अनुभव प्रमाणपत्र और अन्य फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत किए। वकील होते हुए भी उन्होंने अपना लाइसेंस निरस्त कराए बिना वर्ष 2001-02 में नगर पंचायत डोंगरगांव के माध्यम से तालाबों का ठेका ले लिया।

इस मामले की सुनवाई के बाद कदाचरण समिति ने आरोपों को सही पाते हुए वकील श्री अहमद का सात साल के लिए वकील के तौर पर प्रेक्टिस करने पर प्रतिबंध लगा दिया। तीसरा मामला दुर्ग जिले के वकील नवजीत कुमार रमन का है। दुर्ग निवासी भुवनेश्वर लाल वर्मा व अन्य ने वकील के खिलाफ शिकायत की थी कि वे लोक निर्माण विभाग के बेमेतरा संभाग में श्रमिक के तौर पर कार्यरत हैं।

आवेदक और उसके 35 साथियों ने परिवर्तनशील महंगाई भत्ते के दावे के लिए श्रम न्यायालय दुर्ग में वर्ष 2001 में याचिका प्रस्तुत की। इसमें उन्होंने वकील सत्येंद्रनाथ साधू को वकील नियुक्त किया।

वकील नवजीत श्री साधु के सहायक बतौर काम करते थे। उनकी मौत के बाद नवजीत ने खुद को श्री साधु का पुत्र बताया। जिस आधार पर आवेदकों ने उन्हें नए सिरे से अपना वकील नियुक्त किया। इसके बाद से नवजीत कुमार मामले का जल्दी फैसला कराने सहित विभिन्न बहाने से काफी रकम एेंठ ली। इसकी शिकायत बार कौंसिल से की गई। कौंसिल ने सुनवाई के बाद आरोप सही पाने के बाद वकील को तीन साल के लिए प्रेक्टिस करने पर रोक लगाने का आदेश जारी किया।

दिनकरन फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में जज नहीं।


भूमि पर कब्जा करने के आरोपों का सामना कर रहे कर्नाटक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पीडी दिनाकरन की पदोन्नति के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रभावी रोक लगा दी है जबकि पदोन्नति के लिए केंद्र के पास चार अन्य न्यायाधीशों के नाम को हरी झंडी दे दी गई है।

प्रधान न्यायाधीश केजी बालकृष्णन ने अखिल भारतीय केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) ने कहा कि हमने सिर्फ इतना कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति के लिए चार अन्य न्यायाधीशों के नाम पर विचार किया जाए।
    
न्यायमूर्ति बालकृष्णन ने कहा कि पदोन्नति के लिए न्यायमूर्ति दिनाकरन का नाम हटाने पर अभी कोई फैसला नहीं किया गया है। इस समय पदोन्नति के लिए चार अन्य न्यायाधीश के साथ सिर्फ उनके नाम को अलग कर दिया गया है। दिनाकरन के नाम को हटा दिए जाने के संबंध में मीडिया में आई खबरों के बारे में पूछे जाने पर सीजेआई ने पहले सिर्फ इतना कहा, नहीं, नहीं। बाद में उन्होंने कहा कि हमने अब तक कोई फैसला नहीं किया है।

मीडिया से बातचीत के अनिच्छुक दिखे न्यायमूर्ति बालकृष्णन ने कहा कि सरकार से चार अन्य न्यायाधीशों के नाम पर विचार करने को कहे जाने के फैसले का अर्थ है कि दिनाकरन के नाम को फिलहाल इस चरण में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति से अलग कर दिया गया है। सीजेआई की अध्यक्षता वाले पांच न्यायाधीशों वाले कालेजियम ने पहले दिनाकरन, एके पटनायक, टीएस ठाकुर, एसएस निज्जर और केएस राधाकृष्णन के नाम को हरी झंडी दी थी। ये न्यायाधीश क्रमश: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट, पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट, कलकत्ता हाई कोर्ट और गुजरात हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश हैं।
   

जयपुर नगर निगम वार्ड आरक्षण निर्धारण की लॉटरी दुबारा नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट


राजस्थान हाई कोर्ट ने गुरुवार को जयपुर नगर निगम के 7 वार्डो में 14 अक्टूबर के आदेश के जरिए किए गए आरक्षण निर्धारण को वैध करार देते हुए इस संबंध में दायर याचिका को खारिज कर दिया। न्यायाधीश आर एस राठौड़ ने गीता मिश्र एवं वेद प्रकाश शर्मा की याचिका पर यह फैसला सुनाया। फैसले में कहा गया है कि वार्डो में आरक्षण निर्धारण के लिए दुबारा लॉटरी निकालने की जरूरत नहीं है।

हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ आयोग सुप्रीम कोर्ट जाएगा


आरजेएस परीक्षा 2005 में स्कैलिंग व्यवस्था को अवैध ठहराने के राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ राजस्थान लोकसेवा आयोग सुप्रीम कोर्ट जाएगा। आरपीएससी संपूर्ण आयोग की 3 नवंबर को प्रस्तावित बैठक में इस पर आधिकारिक मुहर लगाई जाएगी। आयोग के अध्यक्ष के मुताबिक हाईकोर्ट के फैसले का अध्ययन किया गया है।

आयोग फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगा। तीन नवंबर की बैठक में इस फैसले पर मुहर लगाई जाएगी। आरजेएस भर्ती परीक्षा में स्कैलिंग व्यवस्था वर्ष 2000 से लागू है इसलिए यह कहना गलत है कि 2005 की परीक्षा से स्कैलिंग व्यवस्था लागू की गई है। वैसे भी आयोग ने संघ लोकसेवा आयोग की व्यवस्था का अनुसरण ही किया है। यूपीएससी में पहले से ही न्यायिक सेवा भर्ती परीक्षा में स्कैलिंग व्यवस्था लागू है। आरएएस भर्ती परीक्षा में स्कैलिंग व्यवस्था आरपीएससी 1992 में ही लागू कर चुकी है, जो निरंतर है।