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Thursday, September 30, 2010

रामलला नहीं हटेंगें, विवादित भूमि को तीन हिस्से में बांटा जाएगा- उत्तरप्रदेश हाई कोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बाबरी मस्जिद रामजन्मभूमि पर फैसला देते हुए सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा खारिज कर दिया है। राम चबूतरा और सीता रसोई दोनों निर्मोही अखाड़ा को दे दिया गया। कोर्ट ने यह भी कहा कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी।
तीनों जजों ने अपने फैसले में कहा कि विवादित भूमि को तीन हिस्से में बांटा जाएगा। उसका एक हिस्सा (जहां राम लला की प्रतिमा विराजमान है हिंदुओं को मंदिर के लिए) दिया जाएगा। दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को दिया जाएगा और तीसरा हिस्सा मस्जिद के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाएगा।
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच की जस्टिस डी. वी. शर्मा, जस्टिस एस. यू. खान और जस्टिस सुधीर अग्रवाल की बेंच ने इस मामले में अपना फैसला कोर्ट नंबर 21 में दोपहर 3.30 बजे से सुनाना शुरू कर दिया। मीडियाकर्मियों को अदालत जाने की अनुमति नहीं दी गई थी। बाद में डीसी ऑफिस में बनाए गए मीडिया सेंटर में मीडियाकर्मियों को तीनों जजों के फैसलों की सिनॉप्सिस दी गई। यह फैसला बेंच ने बहुमत से दिया। दो जज - जस्टिस एस.यू. खान और जस्टिस सुधीर अग्रवाल - ने कहा कि जमीन को तीन हिस्सों में बांटा जाए। जस्टिस डी.वी. शर्मा की राय थी कि विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटने की जरूरत नहीं है। वह पूरी जमीन हिंदुओं को देने के पक्ष में थे।
निर्णय सार लिंक
गौरतलब है कि हाईकोर्ट को 24 सितंबर को ही फैसला सुना देना था, लेकिन पूर्व नौकरशाह रमेश चंद्र त्रिपाठी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 23 सितंबर को निर्णय एक हफ्ते के लिए टाल दिया था। याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने त्रिपाठी की अर्जी खारिज कर दी। उसके बाद हाई कोर्ट के फैसले सुनाने का रास्ता साफ हुआ।. अर्से पुराने मुद्दे का दोनों समुदायों के बीच बातचीत से कोई हल नहीं निकल सका। पूर्व प्रधानमंत्रियों- पी. वी. नरसिम्हा राव, विश्वनाथ प्रताप सिंह और चंद्रशेखर ने भी इस मुद्दे के बातचीत से निपटारे की कोशिश की थी, लेकिन कामयाबी नहीं मिली।
हालांकि, उस जमीन पर विवाद तो मध्ययुग से चला आ रहा है लेकिन इसने कानूनी शक्ल वर्ष 1950 में ली। देश में गणतंत्र लागू होने से एक हफ्ते पहले 18 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद ने विवादित स्थल पर रखी गईं मूर्तियों की पूजा का अधिकार देने की मांग करते हुए मुकदमा दायर किया था।
तब से चली आ रही इस कानूनी लड़ाई में बाद में हिन्दुओं और मुसलमानों के प्रतिनिधि के तौर पर अनेक पक्षकार शामिल हुए। अदालत ने इस मुकदमे की सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों के सैकड़ों गवाहों का बयान लिया। अदालत में पेश हुए गवाहों में से 58 हिन्दू पक्ष के, जबकि 36 मुस्लिम पक्ष के हैं और उनके बयान 13 हजार पन्नों में दर्ज हुए।
हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए वर्ष 2003 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ( एएसआई ) से विवादित स्थल के आसपास खुदाई करने के लिए कहा था। इसका मकसद यह पता लगाना था कि मस्जिद बनाए जाने से पहले उस जगह कोई मंदिर था या नहीं। हिंदुओं और मुसलमानों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में हुई खुदाई मार्च में शुरू होकर अगस्त तक चली।
इस विवाद की शुरुआत सदियों पहले सन् 1528 में मुगल शासक बाबर के उस स्थल पर एक मस्जिद बनवाने के साथ हुई थी। हिंदू समुदाय का दावा है कि वह स्थान भगवान राम का जन्मस्थल है और पूर्व में वहां मंदिर था। विवाद को सुलझाने के लिए तत्कालीन ब्रितानी सरकार ने वर्ष 1859 में दोनों समुदायों के पूजा स्थलों के बीच बाड़ लगा दी थी। इमारत के अंदर के हिस्से को मुसलमानों और बाहरी भाग को हिन्दुओं के इस्तेमाल के लिए निर्धारित किया गया था। यह व्यवस्था वर्ष 1949 में मस्जिद के अंदर भगवान राम की मूर्ति रखे जाने तक चलती रही।
उसके बाद प्रशासन ने उस परिसर को विवादित स्थल घोषित करके उसके दरवाजे पर ताला लगवा दिया था। उसके 37 साल बाद एक याचिका पर वर्ष 1986 में फैजाबाद के तत्कालीन जिला जज ने वह ताला खुलवा दिया था
समय गुजरने के साथ इस मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया। वर्ष 1990 में वरिष्ठ बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ मंदिर से अयोध्या के लिए एक रथयात्रा निकाली, मगर उन्हें तब बिहार में ही गिरफ्तार कर लिया गया था। केंद्र में उस वक्त विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार थी और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में जनता दल की सरकार थी। 31 अक्टूबर 1990 को बड़ी संख्या में राम मंदिर समर्थक आंदोलनकारी अयोध्या में आ जुटे और पहली बार इस मुद्दे को लेकर तनाव, संघर्ष और हिंसा की घटनाएं हुईं।
सिलसिला आगे बढ़ा और 6 दिसम्बर 1992 को कार सेवा करने के लिए जुटी लाखों लोगों की उन्मादी भीड़ ने वीएचपी, शिव सेना और बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में बाबरी मस्जिद को ढहा दिया। प्रतिक्रिया में प्रदेश और देश के कई भागों में हिंसा हुई, जिसमें लगभग दो हजार लोगों की जान गई। उस समय उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार थी और केंद्र में पी. वी. नरसिम्हा राव की अगुवाई वाली कांग्रेस की सरकार थी। हालांकि, इस बार अदालत का फैसला आने के समय वर्ष 1990 व 1992 की तरह कोई आंदोलन नहीं चल रहा था, बावजूद इसके सुरक्षा को लेकर सरकार की सख्त व्यवस्था के पीछे कहीं न कहीं उन मौकों पर पैदा हुई कठिन परिस्थितियों की याद से उपजी आशंका थी।
अयोध्या के विवादित स्थल पर स्वामित्व संबंधी पहला मुकदमा वर्ष 1950 में गोपाल सिंह विशारद की तरफ से दाखिल किया गया , जिसमें उन्होंने वहां रामलला की पूजा जारी रखने की अनुमति मांगी थी। दूसरा मुकदमा इसी साल 1950 में ही परमहंस रामचंद्र दास की तरफ से दाखिल किया गया , जिसे बाद में उन्होंने वापस ले लिया। तीसरा मुकदमा 1959 में निर्मोही अखाड़े की तरफ से दाखिल किया गया, जिसमें विवादित स्थल को निर्मोही अखाड़े को सौंप देने की मांग की गई थी। चौथा मुकदमा 1961 में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल बोर्ड की तरफ से दाखिल हुआ और पांचवां मुकदमा भगवान श्रीरामलला विराजमान की तरफ से वर्ष 1989 में दाखिल किया गया। वर्ष 1989 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन महाधिवक्ता की अर्जी पर चारों मुकदमे इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में स्थानांतरित कर दिए गए थे।
अयोध्या विवाद: 1528 से लेकर 2010 तक
अयोध्या में विवादित भूमि का मुद्दा शताब्दियों से एक भावनात्मक मुद्दा बना हुआ है और इसे लेकर विभिन्न हिन्दू एवं मुस्लिम संगठनों ने तमाम कानूनी वाद दायर कर रखे हैं। अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद को लेकर इतिहास एवं घटनाक्रम इस प्रकार है :-

1528: मुगल बादशाह बाबर ने उस भूमि पर एक मस्जिद बनवाई, जिसके बारे हिन्दुओं का दावा है कि वह भगवान राम की जन्मभूमि है और वहां पहले एक मंदिर था।

1853: विवादित भूमि पर सांप्रदायिक हिंसा संबंधी घटनाओं का दस्तावेजों में दर्ज पहला प्रमाण।

1859: ब्रिटिश अधिकारियों ने एक बाड़ बनाकर पूजास्थलों को अलग अलग किया। अंदरूनी हिस्सा मुस्लिमों को दिया गया और बाहरी हिस्सा हिन्दुओं को।

1885: महंत रघुवीर दास ने एक याचिका दायर कर राम चबूतरे पर छतरी बनवाने की अनुमति मांगी, लेकिन एक साल बाद फैजाबाद की जिला अदालत ने अनुरोध खारिज कर दिया।

1949: मस्जिद के भीतर भगवान राम की प्रतिमाओं का प्राकट्य। मुस्लिमों का दावा कि हिन्दुओं ने प्रतिमाएं भीतर रखवाई। मुस्लिमों का विरोध। दोनों पक्षों ने दीवानी याचिकाएं दायर की। सरकार ने परिसर को विवादित क्षेत्र घोषित किया और द्वार बंद कर दिए।

18 जनवरी 1950: मालिकाना हक के बारे में पहला वाद गोपाल सिंह विशारद ने दायर किया। उन्होंने मांग की कि जन्मभूमि में स्थापित प्रतिमाओं की पूजा का अधिकार दिया जाए। अदालत ने प्रतिमाओं को हटाने पर रोक लगाई और पूजा जारी रखने की अनुमति दी।

24 अपैल 1950: यूप राज्य ने लगाई रोक। रोक के खिलाफ अपील।

1950: रामचंद्र परमहंस ने एक अन्य वाद दायर किया, लेकिन बाद में वापस ले लिया।

1959: निर्मोही अखाड़ा भी विवाद में शामिल हो गया तथा तीसरा वाद दायर किया। उसने विवादित भूमि पर स्वामित्व का दावा करते हुए कहा कि अदालत द्वारा नियुक्त रिसीवर हटाया जाए। उसने खुद को उस स्थल का संरक्षक बताया जहां माना जाता है कि भगवान राम का जन्म हुआ था।

18 दिसंबर 1961: यूपी सुन्नी सेन्ट्रल बोर्ड आफ वक्फ भी विवाद में शामिल हुआ। उसने मस्जिद और आसपास की भूमि पर अपने स्वामित्व का दावा किया।

1986: जिला जज ने हरिशंकर दुबे की याचिका पर मस्जिद के फाटक खोलने और की अनुमति प्रदान की। मुस्लिमों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की।

1989: वीएचपी के उपाध्यक्ष देवकी नंदन अग्रवाल ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में एक ताजा याचिका दायर करते हुए मालिकाना हक और स्वामित्व भगवान राम के नाम पर घोषित करने का अनुरोध किया।

23 अक्तूबर 1989 : फैजाबाद में विचाराधीन सभी चारों वादों को इलाहाबाद हाई कोर्ट की स्पेशल बेंच में स्थानांतरित किया गया।

1989 : वीएचपी ने विवादित मस्जिद के समीप की भूमि पर राममंदिर का शिलान्यास किया।

1990: वीएचपी के कार्यकर्ताओं ने मस्जिद को आंशिक तौर पर क्षतिग्रस्त किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने बातचीत के जरिए विवाद का हल निकालने का प्रयास किया।

6 दिसंबर 1992 : विवादित मस्जिद को वीएचपी, शिवसेना और बीजेपी के समर्थन में हिन्दू स्वयंसेवकों ने ढहाया। इसके चलते देश भर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, जिनमें 2000 से अधिक लोगों की जान गई।

16 दिसंबर 1992: विवादित ढांचे को ढहाये जाने की जांच के लिए जस्टिस लिब्रहान आयोग का गठन। 6 माह के भीतर जांच खत्म करने को कहा गया।

जुलाई 1996 : इलाहाबाद हाई कोर्च ने सभी दीवानी वादों पर एकसाथ सुनवाई करवाने को कहा।

2002: हाई कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से खुदाई कर यह पता लगाने को कहा कि क्या विवादित भूमि के नीचे कोई मंदिर था।

अपैल 2002: हाई कोर्च के 3 न्यायाधीशों ने सुनवाई शुरू की।

जनवरी 2003 : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अदालत के आदेश पर खुदाई शुरू की ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या वहां भगवान राम का मंदिर था।

अगस्त 2003 : सर्वेक्षण में कहा गया कि मस्जिद के नीचे मंदिर होने के प्रमाण। मुस्लिमों ने निष्कर्षों से मतभेद जताया।

जुलाई 2005: संदिग्ध इस्लामी आतंकवादी ने विवादित स्थल पर हमला किया। सुरक्षा बलों ने 5 आतंकियों को मारा।

जून 2009 : लिब्रहान आयोग ने अपनी जांच शुरू करने के 17 साल बाद अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस बीच आयोग का कार्यकाल 48 बार बढ़ाया गया।

26 जुलाई 2010: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने वादों पर अपना फैसला सुरक्षित रखा। फैसला सुनाने की तारीख 24 सितंबर तय की।

Wednesday, September 29, 2010

कॉमनवेल्थ भ्रष्टाचार पर आँख मुंदना मुश्किल : सर्वोच्च न्यायालय


सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में वित्तीय अनियमितताओं पर वह अपनी आखें बंद नहीं रख सकता। पहला मौका है जब सर्वोच्च न्यायालय ने कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन में बदइंतजामी पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. न्यायाधिश सिंघवी ने कहा कि "अब यह जगजाहिर है कि कॉमनवेल्थ में क्या हो रहा है. जब हर ओर बदइंतजामी है, तो आखिर 70 हजार करोड़ रूपए कहां खर्च किए गए? 15 अक्टूबर तक कॉमनवेल्थ को सार्वजनिक उद्देश्य बताकर लोगों को ठगा जा रहा है और उसके बाद सब निजी हो जाएगा.

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी एवं अशोक कुमार गांगुली की खंडपीठ ने कहा कि 'इस देश में कार्य पूरा कराए बगैर भुगतान कर दिया जाता है' और इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। न्यायाधिश सिंघवी ने यह भी कहा कि कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है. जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम के पास निर्माणाधीन फुटओवर पूल के हिस्से का ढ़हना और स्टेडियम की फॉल्स सीलिंग गिरना भ्रष्टाचार का ही नतीजा है.

संसद मार्ग पर अवैध रूप से बनाई जा रही एक इमारत के मामले में सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने कॉमनवेल्थ
खेलों की तैयारियों की कड़ी निंदा की.

अदालत ने कहा कि नई दिल्ली नगर पालिका परिषद ने भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण की आपत्तियों के बावजूद 30 फुट ऊंची पालिका केंद्र का निर्माण कराया। इन दोनों इमारतों के बनने से ऐतिहासिक जंतर मंतर छिप गया है, जिसे 1724 में जयपुर के महाराजा जय सिंह द्वितीय ने बनवाया था। नई दिल्ली नगर पालिका परिषद की खिंचाई करते हुए अदालत ने कहा कि इसका शासी निकाय 'दिमागी और कानूनी' दोनों तौर पर खोखला है और इतिहास के प्रति संवेदनहीन है। 

अयोध्या विवाद: पाँच मुकदमें, 60 साल, हजारों पेज का निर्णय। कोर्ट में केस से जुड़े लोगों को ही मिलेगी एंट्री।

अयोध्या विवाद में गुरुवार को आ रहे फैसले के मद्देनजर पूरे उत्तर प्रदेश में सुरक्षा के जबर्दस्त बंदोबस्त करके प्रशासन ने यह साफ संदेश दे दिया है कि अमन में खलल डालने की किसी भी कोशिश को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और ऐसा करने वालों से सख्ती से निपटा जाएगा। प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने कानून-व्यवस्था से जुड़े सभी अधिकारियों से पूरी तरह चौकस रहने को कहा है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच की जस्टिस डी. वी. शर्मा, जस्टिस एस. यू. खान और जस्टिस सुधीर अग्रवाल की बेंच इस मामले में अपना फैसला कोर्ट नंबर 21 में दोपहर बाद साढ़े तीन बजे सुनाएगी। अदालत परिसर छावनी में तब्दील हो चुका है और उसे वर्जित क्षेत्र घोषित कर दिया गया है।

लखनऊ के डीएम अनिल कुमार सागर ने कहा कि मामले से सीधे तौर पर जुड़े लोग ही कोर्ट नंबर 21 में प्रवेश कर सकेंगे और फैसला सुनाए जाने से पहले उन्हें कक्ष से बाहर निकलने की इजाजत नहीं होगी। डीआईजी राजीव कृष्ण ने कहा कि फैसला सुनाए जाने के बाद किसी तरह का विजय जुलूस या गम के प्रदर्शन के आयोजन पर पाबंदी होगी। किसी भी कोशिश से सख्ती से निपटा जाएगा। लखनऊ में 1500 संदिग्ध लोगों को हिरासत में लिया गया है। शहर में सुरक्षा के लिए अर्द्धसैनिक बलों के करीब दो हजार जवान तैनात किए गए हैं।

कृष्ण ने कहा कि हाई कोर्ट कैंपस को छोड़कर शहर के अन्य हिस्सों में लोगों की आवाजाही पर कोई रोक नहीं होगी। उन्होंने कहा कि सभी स्कूल, कॉलेज और ऑफिस खुले रहेंगे।

पाँच मुकदमें, 60 साल, हजारों पेज का निर्णय!

उधर देश भर की निगाहें इलाहाबाद हाईकोर्ट लखनऊ बेंच के कमरा नम्बर 21 पर हैं, जहाँ अयोध्या विवाद से सम्बधित चार मुकदमों का फैसला 30 सितम्बर को आने वाला है। इस विवाद से सम्बंधित एक मुकदमा पहले वापस लिया जा चुका है। आने वाला अदालती फैसला एक या अधिक हो सकता है तथा इसे आठ हजार से दस हजार पृष्ठों के होने की संभावना है।

1992 तक जहाँ बाबरी मस्जिद बनी हुई थी, उस जमीन के मालिकाना हक से सम्बन्धित इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के तीन जजों की एक विशेष अदालत पाँच मुकदमों की सुनवाई पूरी होने के बाद उस पर अपना फैसला 30 सितम्बर को तीसरे पहर 3.30 बजे सुनाएगी।

इन चार मुकदमों की सुनवाई के बाद फैसला आने में लगभग 60 वर्ष लगे। अयोध्या मामले की सुनवाई करने उच्च न्यायालय की विशेष पीठ पिछले 21 साल में 13 बार बदल चुकी है और 1989 से अब तक कुल 18 उच्च न्यायालय के न्यायाधीश इस मामले की सुनवाई कर चुके हैं।

इन मुकदमों में लगभग कुल 92 इश्यू बने। इन सम्पूर्ण मुकदमें मे कुल 82 गवाहों का परीक्षण हुआ। हिन्दू पक्ष के 54 गवाहों ने कुल 7128 पृष्ठों में गवाहियाँ दी तथा मुस्लिम पक्ष के 28 गवाहों ने 3343 पृष्ठों में अपनी गवाहियाँ दीं। एएसआई रिपोर्ट आने के बाद हिन्दू पक्ष के चार गवाहों ने 1209 पृष्ठों में तथा मुस्लिम पक्ष के 8 गवाहों ने 2311 पृष्ठों में अपनी गवाहियाँ दीं थीं।

14 न्यायिक अफसरों के तबादले

राजस्थान हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल टीएच सम्मा ने मंगलवार को 14 न्यायिक अधिकारियों के तबादले कर दिए।

इनमें तीन जिला जज भी शामिल हैं। रजिस्ट्रार जनरल के अनुसार एचएस सक्सेना को जिला जज बीकानेर, एसपी बुंदेल को जिला जज बालोतरा और बीएम गुप्ता को जिला जज धौलपुर और जेपी शर्मा (द्वितीय) को जोधपुर सीबीआई कोर्ट में विशेष जज के पद पर लगाया गया है।

इसी तरह आरके माहेश्वरी को एडीजे (संख्या एक) बूंदी, आरडी रोहिला को एडीजे (फास्ट ट्रैक-6) जयपुर सिटी, सीपी श्रीमाली को एडीजे (फास्ट ट्रैक) बहरोड़, ओमी पुरोहित को एडीजे (फास्ट ट्रैक) छबड़ा, लक्ष्मणसिंह को एडीजे (फास्ट ट्रैक-2) पाली, जगदीश जानी को एसीजेएम सीबीआई कोर्ट जोधपुर, शक्तिसिंह शेखावत को सीजे (जेडी) जेएम ब्यावर, बालकिशन गोयल सीजे (जेडी) जेएम वेर, बीना गुप्ता सीजे (जेडी) जेएम लक्ष्मणगढ़ अलवर और हेमंतसिंह बघेला सीजे (जेडी) जेएम कोटा नोर्थ के पद पर लगाया गया है।

सदी के सबसे बड़े रेपिस्ट पर मुकदमा शुरू

जर्मनी में एक व्यक्ति ने फिल्म 'साइलेंस आफ द लैंब्स' में दिखाई गई एक ट्रिक के जरिए एक हजार से ज्यादा महिलाओं का शारिरिक शोषण करने की बात मानी है।

46 वर्षीय जार्ज पी नाम के इस व्यक्ति ने पिछले 22 साल के दौरान एक हजार से ज्यादा महिलाओं के साथ जबर्दस्‍ती की। उसे मीडिया में 'सदी का सबसे बड़ा रेपिस्‍ट' कहा जा रहा है। जर्मनी में अब उसके खिलाफ मामले की सुनवाई शुरू हो गई है।

जार्ज हॉलीवुड की फिल्म साइलेंस ऑफ द लैंब्स में दिखाई गई एक ट्रिक का इस्तेमाल कर महिलाओं को खुद पर रहम खाने के लिए मजबूर करता। फिल्म में दिखाया गया है कि कातिल अपनी बांह के टूटे होने का नाटक करता और मौका देखते ही अपने शिकार पर हमला कर देता। ठीक उसी तरह जार्ज भी चोट लगे होने का नाटक करता और महिलाओं के दरवाजे खटखटाता और टॉयलेट इस्तेमाल करने का आग्रह करता। उसने जर्मनी, बेल्जियम, हालैंड और लक्जमबर्ग में 20 रेप करने और करीब 1000 सेक्स अपराध करना स्वीकार किया है।

जार्ज ने स्वीकार किया है कि उसके मन में चालाक महिलाओं के खिलाफ नफरत थी। डसलडॉर्फ के कोर्ट को जार्ज ने बताया कि वो किसी भी तरह महिलाओं से बदला लेना चाहता था। कोर्ट में सुनवाई के दौरान सामने आया कि जार्ज पढ़ने-लिखने में बेहद कमजोर था। वो सेक्स अपराध कर अपने आप को साबित करना चाहता था। जार्ज ने कहा कि वो मेधावी महिलाओं से बदला लेने की फिराक में लगा रहता था।

जार्ज को इस साल मार्च में गिरफ्तार किया गया था। अपनी गिरफ्तारी के वक्त जार्ज ने कहा था कि महिलाओं का रेप करने पर उसे भी दुख होता था लेकिन वो खुद को रोक नहीं पाता था। जार्ज ने पुलिस को बताया था कि अपनी सेक्स इच्छाओं पर काबू पाने के लिए वह वेश्याओं के पास भी जाता था लेकिन इससे भी कुछ फायदा नहीं हुआ।

Sunday, September 26, 2010

डिलिवरी के वक्त पेट में छोड़ी सूई

महिला डिलिवरी के लिए अस्पताल में भर्ती हुई। डिलिवरी के वक्त उसके पेट में डॉक्टरों ने कथित तौर पर सूई छोड़ दी।
इस कारण महिला अब मां नहीं बन सकती। महिला ने यह आरोप लगाते हुए डॉक्टरों के खिलाफ केस दर्ज कराने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है। महिला का आरोप है कि पुलिस ने जब कोई कार्रवाई नहीं की, तब उसने अदालत से गुहार लगाई है। चीफ मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट विनोद यादव की अदालत ने इस मामले की सुनवाई के लिए 30 सितंबर की तारीख तय की है।

सदर बाजार इलाके में रहने वाली महिला के वकील एच.एस. अरोड़ा ने सीएमएम की अदालत में अर्जी दाखिल कर कहा है कि महिला की डिलिवरी होनी थी। इस कारण वह सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट इलाके में स्थित एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती हुई। 15 सितंबर, 2009 को महिला ने बच्ची को जन्म दिया। इस दौरान अस्पताल के डॉक्टरों ने महिला को जब टांके लगाए तो उन्होंने महिला के गर्भाशय में टांका लगाने वाली सूई लापरवाही से छोड़ दी।

इसके बाद महिला को लगातार दर्द हो रहा था और साथ ही उसे ब्लीडिंग भी हो रही थी। लेकिन जब महिला ने इसकी शिकायत डॉक्टरों से की तो डॉक्टरों ने लापरवाही दिखाई और कहा कि सब ठीक हो जाएगा। महिला को इतनी ब्लीडिंग हुई कि उसकी बेड शीट खून से भर गई। महिला का जब दर्द नहीं रुका, तब आखिर में महिला ने दूसरे अस्पताल में जाकर एक्स-रे कराया। एक्स-रे से मालूम हुआ कि उसके गर्भाशय में सूई फंसी हुई है। फिर महिला का ऑपरेशन किया गया और सूई निकाली गई। इस सूई के कारण महिला का गर्भाशय बुरी तरह से डैमेज हुआ और उसे तरह-तरह की परेशानियों से जूझना पड़ा। महिला को इन्फेक्शन हो गया और साथ ही जब उसने दूसरे अस्पताल में अपना इलाज कराया तो वहां अल्ट्रासाउंड के बाद यह बातें सामने आई कि महिला अब मां नहीं बन सकती।

महिला ने अपनी याचिका में कहा कि डॉक्टरों की लापरवाही से यह सब हुआ, साथ ही उसकी जिंदगी खतरे में पड़ी। इस बाबत देशबंधु गुप्ता रोड थाने में 28 अप्रैल, 2010 को शिकायत की गई और डॉक्टरों के खिलाफ केस दर्ज करने की गुहार लगाई गई। लेकिन जब कोई एक्शन नहीं हुआ, तब महिला ने सीएमएम विनोद यादव की अदालत में सीआरपीसी की धारा-156 (3) के तहत अर्जी दाखिल कर गुहार लगाई है कि पुलिस को निर्देश दिया जाए कि आरोपियों के खिलाफ धारा-338 (जीवन को खतरे में डालने के लिए जख्म देने) के तहत केस दर्ज किया जाए। इस मामले की अगली सुनवाई 30 सितंबर को होगी।

पाकिस्तानी राष्ट्रपति को मिला अभयदान

पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति ने कहा कि पद की गरिमा के कारण राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों को फिर से शुरू नहीं किया जा सकता।

महान्यायवादी न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अनवर-उल-हक ने जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों को फिर से शुरू किए जाने संबंधी सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी को शुक्रवार को एक पत्र भेजा। इस बीच कानून मंत्रालय ने महान्यायवादी के पत्र की व्याख्या के साथ प्रधानमंत्री को यह कहते हुए एक पत्र भेजा है कि जरदारी के खिलाफ मामलों को फिर से इसलिए नहीं शुरू किया जा सकता, क्योंकि राष्ट्रपति कार्याकाल में उन्हें अभयदान प्राप्त है।

खबर है कि प्रधानमंत्री ने कानून मंत्रालय से सहमति जताई है और 27 सितम्बर को अगली सुनवाई के दौरान इस पक्ष को सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत किया जाएगा। सूचना मंत्री कमर जमान कैरा ने कहा, "राष्ट्रपति को अभयदान प्राप्त है और हमें इस मामले में कोई भ्रम नहीं है। हम किसी भी संस्थान के साथ कोई गतिरोध नहीं चाहते और जब तक हमें संसद में बहुमत प्राप्त रहेगा, हम सत्ता में बने रहेंगे।" ज्ञात हो कि पाकिस्तानी संविधान की धारा 248 के तहत राष्ट्रपति को अभयदान प्राप्त है।

सांध्य न्यायालय संचालन पर सहमत नहीं हुए अधिवक्ता.

न्यायिक अधिकारियों के सामने लम्बी होती मुकदमों की फेहरिस्त कम करने के लिए उत्तरप्रदेश उच्च न्यायालय ने जिला स्तर पर एक सांध्य न्यायालय संचालित करने की व्यवस्था दी थी। इस सम्बंध में उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार दिनेश गुप्ता की ओर से जनपद न्यायाधीश को पत्र भेजा गया था। यह कहा गया था कि जिला न्यायाधीश अधिवक्ताओं से इस मसौदे पर सहमति लेकर सांध्य न्यायालय का संचालन शुरू कर सकते हैं। इस न्यायालय पर पारिवारिक विवाद से सम्बंधित मामलों के अलावा गुजारा भत्ता व 156(3) में आने वाली शिकायतों के निस्तारण की व्यवस्था सुझायी गयी थी।
इसी मुद्दे पर जिला अधिवक्ता संघ के प्रशासनिक भवन में आम सभा की बैठक आयोजित की गयी।अध्यक्षता बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय कुमार कालिया ने की। जबकि बैठक का संचालन महामंत्री वीरेन्द्र विक्रम सिंह ने किया। आम सभा के सामने सांध्य न्यायालय का मसौदा रखा गया। जिसे अधिवक्ताओं ने स्वीकार नहीं किया। इस सम्बंध में जिला अधिवक्ता संघ ने अपने सुझाव के साथ कार्रवाई की जानकारी जनपद न्यायाधीश को भेजने का निर्णय लिया है। बैठक में बार-बेंच के मध्य सामंजस्य बनाये रखने पर जोर दिया गया। वरिष्ठ उपाध्यक्ष द्वारिका प्रसाद तिवारी, सभाजीत मिश्र, विष्णुशंकर त्रिपाठी, दिलीप पाठक,उमाशंकर मिश्र, पूर्व अध्यक्ष रामछबीले शुक्ल, गया प्रसाद मिश्र, एस.एन. कनौजिया, अनुराधा सिंह, कर्मवीर सिंह, प्रमोद आजाद मौजूद रहे।

हेडमास्टर लड़कियों से छेड़छाड़ करता था, कोर्ट ने फटकारा

अपने ही स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों से अशोभनीय व्यवहार करने वाले हेडमास्टर की अपील हाईकोर्ट ने खारिज कर दी है। हिसार के एक स्कूल में हेडमास्टर रवि कुमार ने शिक्षा विभाग के उस फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी, जिसमें उनके पांच इंक्रीमेंट रोकने के लिए कहा गया था।

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस रणजीत सिंह ने इस पर सुनवाई करते हुए अपने फैसले में कहा कि बच्चियों के साथ अशोभनीय व्यवहार करने वाले टीचर्स को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। इन्हें स्कूलों में कोई जगह नहीं मिलनी चाहिए। फैसले में यह भी कहा गया है कि यदि हेडमास्टर ऐसा करेगा तो दूसरे टीचर्स से क्या उम्मीद की जा सकती है?

ऐसे मामले बर्दाश्त करने लायक नहीं है और इन्हें सख्ती से निपटाए जाने की जरूरत है। स्कूल महज पढ़ाई के लिए नहीं होते बल्कि बच्चे यहां से भले-बुरे की सीख भी लेते हैं। एक शिक्षक जो स्कूल का हेडमास्टर है, उस पर ये जिम्मेदारियां और भी कड़ाई से लागू होती हैं। उससे पिता के समान जिम्मेदारियों को निभाने की उम्मीद की जाती है।

इस केस में एसडीएम के निर्देश पर 40 स्कूली बच्चियों के बयान दर्ज किए गए थे। लड़कियों के आरोपों में यह भी था कि हेडमास्टर लड़कियों के विरोध और आपत्ति के बावजूद उनसे छेड़छाड़ करते रहे हैं। यही नहीं बच्चियों को उसने विरोध करने पर उनके नाम स्कूल से काटने की धमकी भी दी थी।

शिकायत और जांच के बाद विभाग ने दंड देते हुए हेडमास्टर के मांच इंक्रीमेंट रोकने का फैसला लिया था। इसी के खिलाफ हेडमास्टर हाईकोर्ट पहुंचे थे जहां से उसकी सजा को बरकरार रखते हुए कड़ी फटकार लगाई गई। । अदालत का मानना है कि विभाग ने तो उनके साथ फिर भी नरमी बरती है उन्हें किसी तरह की राहत नहीं दी जा सकती।

सदन में अयोग्य ठहराए गए अमर सिंह न्यायालय पहुंचे

समाजवादी पार्टी से निष्कासित राज्यसभा सांसद अमर सिंह ने सदन से अयोग्य ठहराये जाने के मामले में उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।

श्री सिंह ने अपनी याचिका में कहा है कि पार्टी से निष्कासित किये जाने के बाद उन्हें निर्दलीय सदस्य का दर्जा प्राप्त हो चुका है और पार्टी का व्हिप मानने के लिए वह बाध्य नहीं हैं।

उनकी दलील है कि संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत कोई सांसद या विधायक जब अपनी मर्जी से पार्टी छोडता है तो उसे अयोग्य ठहराये जाने का प्रावधान है। लेकिन जब किसी सांसद या विधायक को पार्टी से निकाला जाता है तो उसे अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता।

उनकी इस याचिका की सुनवाई संभवतः अगले सप्ताह होगी।

अयोध्या अध्याय: सीजे की अध्यक्षता में नई बेंच

अयोध्या मामले में दाखिल विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यीय बेंच गठित की है। ऐसा सुप्रीम कोर्ट में पिछली सुनवाई के दौरान दो जजों की बेंच में दोनों जजों के विचार अलग अलग होने के कारण किया गया है। चीफ जस्टिस एस.एच. कपाड़िया की अध्यक्षता वाली यह बेंच मंगलवार सुबह 10:30 बजे सुनवाई करेगी।

बताया जाता है कि इस बेंच में जस्टिस आफताब आलम तथा के.एस. राधाकृष्णन भी शामिल रहेंगे। अटॉर्नी जनरल जी. ई. वाहनवटी से सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद रहने तथा जरूरी सहयोग देने को कहा गया है। बेंच सबसे पहले रमेश चंद्र त्रिपाठी की एसएलपी पर सुनवाई करेगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच अयोध्या मामले में 24 सितंबर को फैसला सुनाने वाली थी।

लेकिन शीर्ष कोर्ट ने त्रिपाठी की याचिका आने के बाद फैसला सुनाने पर 28 तारीख तक अंतरिम रोक लगाई थी। इस याचिका में आग्रह किया था कि अयोध्या विवाद का कोर्ट के बाहर समझौता करके हल निकालने के लिए फैसला टाल दिया जाए।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड: लखनऊ में आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि वह त्रिपाठी की याचिका के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा सकता है। बोर्ड की वर्किग कमेटी के सदस्य कासिम रसूल इलियास ने बताया, ‘पहले भी इस विवाद को सौहार्द से हल करने की कोशिशें हुई हैं। लेकिन उनका कोई नतीजा नहीं निकला। ऐसे में बोर्ड जरूरी होने पर सुप्रीम कोर्ट में त्रिपाठी की याचिका के खिलाफ आवेदन लगा सकता है।’

सुनवाई का महत्व:

मंगलवार को शीर्ष कोर्ट में होने वाली सुनवाई विशेष महत्व रखती है। इससे यह तय हो जाएगा कि हाईकोर्ट अपना फैसला कब सुना सकता है। इस सिलसिले में यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि लखनऊ बेंच के तीन जजों में से एक जस्टिस धर्मवीर शर्मा 1 अक्टूबर को रिटायर होने वाले हैं।

हैरत में आडवाणी :

सोमनाथ (गुजरात).भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अयोध्या विवाद में हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की अंतरिम रोक पर आश्चर्य जताया है। उन्होंने उम्मीद जताई कि शीर्ष कोर्ट अगले हफ्ते फैसला सुनाने के लिए हाईकोर्ट को हरी झंडी दे देगी। आडवाणी ने आम लोगों और भाजपा कार्यकर्ताओं से शांति रखने तथा कोर्ट के फैसले का आदर करने की अपील की। इस मौके पर भाजपा से निष्कासित उमा भारती भी उनके साथ नजर आईं। आडवाणी ने 1990 में यहीं से अयोध्या के लिए विवादित रथ यात्रा शुरू की थी।

जज जो करेंगे सुनवाई

चीफ जस्टिस एसएच कपाड़िया : राजस्व और जमीन से संबंधित विवादों के विशेषज्ञ। फौजदारी व सिविल मामलों का खास अनुभव। हिंदू व बौद्ध दर्शन, अर्थशास्त्र आदि में विशेष रुचि।

जस्टिस आफताब आलम : श्रमिकों, सर्विस और संविधान से जुड़े मामलों का अच्छा अनुभव। कानून के अतिरिक्त क्लासिकल उर्दू व फारसी शायरी तथा सूफी मत में खास रुचि।

जस्टिस केएस राधाकृष्णन : कई सामाजिक और शैक्षणिक संगठनों के लिए वकालत का अच्छा अनुभव। कानून की तमाम शाखाओं में कई यादगार निर्णयों के लिए विख्यात।

Friday, September 24, 2010

बाल न्याय कानून लागू किया जाए: सर्वोच्च न्यायालय

सर्वोच्च न्यायालय ने बाल न्याय (बच्चों की देखभाल एवं सुरक्षा) कानून को लागू न करने लिए शुक्रवार को केंद्र सरकार की आलोचना की। संसद ने इस कानून को एक दशक पहले ही पारित कर दिया है।

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर.वी. रवींद्रन और न्यायमूर्ति एच.एल. गोखले की पीठ ने कहा कि इस कानून को लागू कराने के लिए केंद्र को राज्य सरकारों के साथ सहयोग करने का निर्देश दिए जाने के बावजूद उसने इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की है।

मालों का फेर विवाह नहीं : सर्वोच्च न्यायालय

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश मार्कण्डेय कात्जू और न्यायमूर्ति टी.एस. ठाकुर की खंडपीठ ने कहा कि विवाह विधिपूर्वक संपादित की जाने वाली प्रथा है और हिंदू  विवाह अधिनियम 1955 के तहत अकेले में ऐसा आयोजन करने से विवाह की पवित्रता पर सवाल उठेगा।

अदालत ने यह व्यवस्था याचिकाकर्ता के.पी. थिमप्पा गौड़ा द्वारा कर्नाटक  उच्च न्यायालय की अभिशंसा को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान दी, जिसमें एक महिला से बार-बार यौन संबंध बनाने और उसके गर्भवती हो जाने पर विवाह का झूठा आश्वासन दिए जाने का जिक्र है।

राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन एक माह टालने संबंधी याचिका दायर

सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन को कम से कम एक महीने टालने और अरबों रुपए की हेराफेरी की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच कराने के निर्देश देने संबंधी एक जनहित याचिका पर सोमवार को सुनवाई करेगा।

पेशे से वकील अजय कुमार अग्रवाल की ओर से दायर यह याचिका मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडिया की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।

याचिकाकर्ता ने देश की प्रतिष्ठा दांव पर लगे होने का हवाला देते हुए राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन कम से कम एक माह के लिए टालने तथा इसकी आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाडी को तत्काल हटाने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की है।

अग्रवाल ने खेलगांव में स्वच्छता की बदतर स्थिति के मद्देनजर कलमाडी के खिलाफ आपराधिक लापरवाही का मामला दर्ज करने की भी मांग की है।

याचिकाकर्ता ने कलमाडी के खिलाफ अनियमितता और भ्रष्टाचार के मामले की सीबीआई जांच के निर्देश देने की मांग भी की है। उन्होंने कलमाडी द्वारा खेलों के आयोजन के नाम पर अधिग्रहित भूमि के दुरुपयोग किए जाने की भी आरोप लगाया है।

Wednesday, September 22, 2010

कोलकाता उच्च न्यायालय में हड़ताल, न्यायाधीशों को बरामदों में बैठना पडा

कलकत्ता उच्च न्यायालय में आज न्यायाधीशों को बरामदों में बैठना पडा. कर्मचारियों की अनिश्चितकालीन हड़ताल के कारण आज न्यायाधीशों के कक्षों के दरवाजे भी नहीं खुल सके.

कर्मचारी वेतनवृद्धि की मांग को लेकर हड़ताल कर रहे हैं. कर्मचारियों की हड़ताल जारी रहने तक मुकदमों की सुनवाई नहीं हो सकेगी. उच्च न्यायालय के एक अधिकारी ने बताया कि कर्मचारियों ने अलग-अलग यूनियनों के साथ हड़ताल की अपील की हुई है, जिसके चलते कोई अदालतों और न्यायाधीशों के कक्षों के ताले खोलने वाला भी नहीं था. कर्मचारी वेतन आयोग की अनुशंसाओं के हिसाब से वेतन की मांग कर रहे हैं.

कलकत्ता उच्च न्यायालय की एक समिति ने कर्मचारियों के वेतन में इजाफ़े की अनुशंसा की थी, लेकिन यह अनुशंसा पश्चिम बंगाल सरकार के पास लंबित पड़ी है.

अयोध्या विवाद के मद्देनजर बड़े स्तर पर एसएमएस और एमएमएस पर प्रतिबंध, शांति बनाये रखने की अपील ।

सरकार ने टेलीकॉम नेटवर्क पर बड़े स्तर पर एसएमएस और एमएमएस पर 72 घंटे का प्रतिबंध तत्काल प्रभाव से लागू किया।

अयोध्या विवाद का इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ द्वारा परसों फैसला सुनाए जाने के मद्देनजर संवेदनशील क्षेत्रों में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने और विभिन्न हिन्दू एवं मुस्लिम संगठनों की शांति की अपील के बीच केन्द्र और राज्य सरकारों ने किसी भी स्थिति से निपटने के लिए कमर कस ली है। केन्द्र ने बुधवार को अयोध्या मामले के पक्षों और आम जनता से अपील की कि वे अदालत के फैसले पर जल्दबाजी में कोई निष्कर्ष न निकालें। गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि जल्दबाजी में किसी ऐसे निष्कर्ष पर पहुंचना अनुचित होगा कि कोई एक पक्ष ‘‘जीत गया’’ है या दूसरा पक्ष ‘‘हार गया’’ है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह संभव है कि तीन न्यायाधीशों की विशेष खंडपीठ द्वारा एक या अधिक निर्णय सुनाये जाएं। इन निर्णयों को सावधानीपूर्वक पढ़ना होगा तथा कोई निष्कर्ष निकालने से पूर्व प्रत्येक मुद्दे पर माननीय न्यायाधीशों के निर्णयों का विश्लेषण बारीकी से करना होगा।’’ इस बीच उच्चतम न्यायालय में न्यायमूर्ति अल्तमश कबीर और न्यायमूर्ति एके पटनायक की खंडपीठ ने सेवानिवृत्त नौकरशाह रमेश चंद्र त्रिपाठी की ओर से मामले पर उच्च न्यायालय का फैसला टालने के बारे में दायर याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। शीर्ष कृष्ण कोई तारीख नहीं बताई कि कब उस पर सुनवाई की जा सकती है, लेकिन उसने अदालत की रजिस्ट्री को सामान्य प्रक्रिया के तहत इसे किसी और खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।

उधर, उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में अगले आदेश तक शांति मार्च, रैली या ऐसे किसी भी सार्वजनिक आयोजन पर रोक लगा दी है जिसमें बडीं संख्या में लोग एकत्र हों। शांति मार्च के लिए पहले दी गयी सभी अनुमतियां रद्द कर दी गयी है।

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्य के लोगों से अयोध्या विवाद में मालिकाना हक विषय पर अदालती फैसले के बाद शांति बनाये रखने की अपील की। उन्होंने कहा ‘‘अयोध्या मामले में लग्बे समय से जारी कानूनी लड़ाई के बाद इस मामले में फैसला आने के बारे में लोगों में काफी उत्सुकता होगी लेकिन क्षणिक जोश से किसी का भला नहीं होगा।’’ बालीवुड के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन ने जनता से शांति और भाईचारा बनाये रखने की अपील करते हुए अपने ब्लॉग में कहा, ‘‘अयोध्या, बाबरी मस्जिद मसले पर 24 सितंबर को न्यायालय का निर्णय आने वाला है और इस दौरान काफी लोगों ने हमसे शांति और सौहार्द बनाये रखने के लिये अपील जारी करने का आग्रह किया।’’ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राज्य में किये जा रहे सुरक्षा इंतजामों की तैयारियों पर नजर रखेंगे तथा किसी सार्वजनिक समारोह अथवा बैठक आदि में भाग नहीं लेंगे। मुख्यमंत्री निवास के सूत्रों ने बताया कि चौहान ने राज्य के मुख्य सचिव एवं पुलिस महानिदेशक से जिलों की स्थिति और सुरक्षा को लेकर उठाए गए कदमों पर चर्चा की है। मध्यप्रदेश के गृह मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने बताया कि प्रदेश में हर थाना स्तर पर तैयारी की जा रही है कि परसों आने वाले फैसले के बाद शांति बनी रहे और कोई भी हालात को बिगाडने का प्रयास न कर सके। कर्नाटक सरकार ने राज्य के सभी शिक्षण संस्थानों में ऐहतियाती कदम के तौर पर 24 तथा 25 सितंबर को अवकाश की घोषणा कर दी है। मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने कहा कि सरकार ने किसी भी अवांछित घटना को रोकने के लिए एहतियाती कदम उठाए हैं।

उत्तराखंड सरकार ने उत्तर प्रदेश से सटे जिलों को सतर्क कर दिया है। राज्य के पुलिस महानिदेशक ज्योति स्वरूप पांडेय ने बताया कि उधमसिंहनगर, हरिद्वार, हल्द्वानी तथा देहरादून में पुलिस और सुरक्षाकर्मियों को सतर्क कर दिया गया है। इन जिलों में जरूरत पडने पर अतिरिक्त पुलिस बल को तैनात करने की व्यवस्था की गयी है। उत्तर प्रदेश के कई सामाजिक संगठनों तथा प्रबुद्ध लोगों ने आधुनिक तकनीक का सहारा लेते हुए ‘एसएमएस’ के जरिये देश में शांति व्यवस्था बनाये रखने की आम जनता से अपील की है।

तृणमूल कांग्रेस ने कहा कि अयोध्या में मालिकाना हक संबंधी मुकदमे के फैसले का सभी को सम्मान करते हुए उसे स्वीकार करना चाहिए। पार्टी नेता सुदीप बंदोपाध्याय ने कहा ‘‘सभी को, चाहे किसी भी धर्म या जाति के हों, फैसले को स्वीकार करना चाहिए।’’ उत्तर प्रदेश के बरेली और पीलीभीत जिलों तथा उत्तराखंड से सटी नेपाल सीमा को सील कर दिया गया है।

इस बीच इंदौर में पुलिस ने एक नवगठित दक्षिणपंथी संगठन के संयोजक को रासुका के तहत गिरफ्तार किया है। यह संगठन मध्यप्रदेश में विवादास्पद पोस्टर चिपकाकर कथित तौर पर 10,000 ‘हिंदू योद्धाओं’ की भर्ती में जुटा था। शहर में सात दिन की निषेधाज्ञा भी लागू की गई है। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग और केरल में अन्य मुस्लिम संगठनों ने समाज के सभी तबकों से अनुरोध किया है कि अयोध्या मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 24 सितंबर के फैसले के बाद शांति और सद्भावना बनाए रखें।

आध्यात्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर ने हिन्दु और मुस्लिम समुदाय से शांति और सौहार्द्र बनाए रखने की अपील की। उन्होंने कहा ‘‘24 सितंबर को अदालती फैसले के आलोक में लोगों को शांति एवं व्यवस्था बनाए रखनी चाहिए। उन्हें किसी भी तरह से साम्प्रदायिक घृणा फैलाने के प्रयासों से बचना चाहिए।’’

एडीजे भर्ती रद्द, नए सिरे से होगी परीक्षा। परीक्षा रद्द होने पर विजय जूलुस निकाला गया

राजस्थान उच्च न्यायालय  प्रशासन द्वारा वकील व न्यायिक अधिकारी वर्ग से एडीजे की भर्ती के लिए विवादित परीक्षा नए सिरे से होगी। वकीलों के 26 दिन से भर्ती रद्द करने की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन की मंगलवार को आखिर जीत हो गई। मंगलवार देर रात मुख्य न्यायाधीश जगदीश भल्ला के जयपुर स्थित आवास पर न्यायाधीशों की पूर्णपीठ की आपात बैठक में यह फैसला किया गया। जोधपुर मुख्य पीठ के न्यायाधीश बैठक में नहीं थे लेकिन उनकी सहमति ले ली गई।

हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार प्रशासन दीपक माहेश्वरी ने रात करीब 12 बजे यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि पूर्ण पीठ के इस निर्णय के बारे में रात को ही जोधपुर में वकीलों की संघर्ष समिति के मुख्य संयोजक मिलाप चन्द भूत को लिखित जानकारी दे दी। 
न्यायाधीशों की बैठक में एडीजे भर्ती मामले में जांच के लिए गठित तीन न्यायाधीशों की समिति की रिपोर्ट पर चर्चा की गई। रिपोर्ट में कहा गया बताया कि सुप्रीम कोर्ट के 2006 के एक मामले में दिए निर्णय के अनुसार साक्षात्कार में छंटनी के लिए विकल्प नहीं होने के कारण न्यायाधीशों की समिति भर्ती रद्द की जाए। वकील 36 के बजाय 12 पदों पर भर्ती करने, उत्तरपुस्तिकाओं की पुन: जांच कराने सहित अन्य प्रस्तावों पर राजी नहीं हैं।

हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार प्रशासन दीपक माहेश्वरी ने न्यायाधीशों की बैठक में हुए निर्णय के बाद जोधपुर में वकीलों की संघर्ष समिति के मुख्य संयोजक भूत को लिखे पत्र की जानकारी देते हुए कहा कि जोधपुर में वकीलों की संघर्ष समिति के मुख्य संयोजक भूत व संयोजक आनन्द पुरोहित ने पत्र लिखकर भर्ती में उनकी ओर से भ्रष्टाचार के आरोप लगाने से इनकार किया और बहिष्कार वापस लेने की जानकारी दी, इस पर हाईकोर्ट ने भूत को एडीजे भर्ती रद्द करने की लिखित सूचना भिजवा दी है।

इससे पूर्व मंगलवार सुबह जोधपुर में हाईकोर्ट न्यायाधीशों की तीन सदस्यीय समिति की वकीलों की संघर्ष समिति से लम्बी बातचीत हुई, दिन में दोनों पक्ष टेलीफोन पर चर्चा करते रहे। बातचीत के लिए हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय समिति में शामिल जयपुर पीठ के दोनों न्यायाधीश जोधपुर गए थे। न्यायाधीशों की इस समिति ने जोधपुर में भूत व पुरोहित सहित अन्य सदस्यों से आंदोलन खत्म करने के उपायों पर चर्चा की।

परीक्षा रद्द होने पर विजय जूलुस निकाला गया

राजस्थान उच्च न्यायालय प्रशासन द्वारा एडीजे परीक्षा २०१० रद्द करने पर आज ऑल राजस्थान एडवोकेट्स संघर्ष समिति के अध्यक्ष श्री नरेश कुमार शर्मा के नेत्त्व में चल रहे आन्दोलन को प्रातः ११.०० बजे दी बार एसोसियेशन जयपुर की साधारण सभा की मिटींग में सर्वसम्मति से निर्णयानुसार समाप्त किया गया। ऑल राजस्थान एडवोकेट्स संघर्ष समिति के महासचिव श्री अनूप पारीक ने बताया कि आज दिनांक २२.०९.२०१० को अधिवक्ताओं द्वारा विजय जुलूस निकाला गया तथा भ्रष्टाचार के विरूद्ध अधिवक्ताओं के आन्दोलन में राजस्थान की सम्पूर्ण जनता, व्यापारिक संगठनों, राजनैतिक संगठनों, सामाजिक संगठनों, मिडियाकर्मी व पुलिस प्रशासन एवं प्रदेश के ७०हजार वकीलों का सहयोग मिला और एडीजे परीक्षा २०१० निरस्त की गई। इसलिये प्रदेश की समस्त संगठनों एवं जनता का आभार व्यक्त किया। दिनांक २३.०९.२०१० से अधिवक्ताओं द्वारा न्यायिक कार्य प्रारंभ किया जायेगा। ऑल राजस्थान एडवोकेट्स संघर्ष समिति के महासचिव श्री अनूप पारीक ने बताया कि २२ सितम्बर को हर वर्ष भ्रष्टाचार मिटाओं दिवस के रूप में पूरे प्रदेश में हर्षोल्लास से मनाया जायेगा साथ ही पूरे प्रदेश की जनता को आव्हान किया कि किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार अथवा जनता के जनहित मामलों में सदैव वकील समुदाय एवं दी बार एसोसियेशन जयपुर सहयोग करेगी।

Wednesday, September 15, 2010

दिल्ली में रिक्शों को कम करने से उच्चतम न्यायालय का इंकार

राष्ट्रीय राजधानी के रिक्शा चालकों के लिए एक खुशखबरी है। उच्चतम न्यायालय ने शहर की सड़कों पर चलने वाले रिक्शों की संख्या को सीमित करने से इंकार कर दिया है। शीर्ष अदालत ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसले पर रोक लगाने से इंकार कर दिया जिसमें कहा गया था कि शहर की सड़कों पर रिक्शों की संख्या को सीमित करने की जरूरत नहीं है।

इसमें कहा गया कि रिक्शे की संख्या को सीमित करने को तब लागू किया जा सकता है जब अन्य तरह के वाहनों के लिए भी नीति बने। न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी और न्यायमूर्ति ए के गांगुली की पीठ ने कहा कि क्या आपके पास दिल्ली में अन्य वाहनों को सीमित करने के लिए नीति है। अगर आपने अन्य तरह के वाहनों को सीमित किया है तभी हम आपको रिक्शों की संख्या को सीमित करने की अनुमति देंगे।

पीठ ने दिल्ली नगर निगम की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उच्च न्यायालय के 10 फरवरी के आदेश को चुनौती दी गई थी। उच्च न्यायालय ने 10 फरवरी के अपने आदेश में कहा था कि आजीविका चलाने के रिक्शा चालकों के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता।

शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ के उस आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है जिसके तहत शहर की सड़कों पर 99 हजार से अधिक रिक्शों को चलने की अनुमति नहीं देने के एमसीडी के फैसले को निरस्त कर दिया गया था।

राज्य अनधिकृत पूजास्थलों की जानकारी फौरन दें-उच्चतम न्यायालय

उच्चतम न्यायालय ने आगाह किया कि जो राज्य सरकारें सार्वजनिक स्थानों पर अनधिकृत धार्मिक ढांचों का विस्तृत ब्योरा उपलब्ध कराने के उसके निर्देश पर अमल नहीं करेंगी, उनके मुख्य सचिवों को व्यक्तिगत रूप से तलब किया जाएगा।

न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की खंडपीठ ने उन राज्य सरकारों को दो सप्ताह का और समय दिया, जिन्होंने अब तक न्यायालय के निर्देशों पर अमल नहीं किया। न्यायालय ने कहा कि ये राज्य सरकारें अनधिकृत ढांचों की जानकारी इस अवधि में उपलब्ध करा दें अन्यथा अब और अधिक समय नहीं दिया जाएगा और अंततः संबंधित राज्य सरकारों के मुख्य सचिवों को व्यक्तिगत रूप से अदालत में तलब किया जाएगा।

न्यायालय ने राज्य सरकारों के रवैये पर उस वक्त नाराजगी जताई जब उसे यह अवगत कराया गया कि यह मामला सुनवाई-दर-सुनवाई आगे बढ़ता गया, लेकिन कुछ राज्य सरकारों एवं केंद्र शासित प्रदेशों ने इस बारे में गंभीर उदासीनता बरतते हुए अभी तक हलफनामे दायर नहीं किए हैं।

न्यायालय ने गत वर्ष सितंबर में सभी राज्य सरकारों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वे सार्वजनिक स्थानों, सड़कों, नुक्कड़ों एवं उद्यानों में मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरुद्वारा या अन्य धार्मिक ढांचों के निर्माण की अनुमति न दे।

न्यायालय ने राज्य सरकारों को इस बारे में एक विस्तृत नीति तैयार करने, सार्वजनिक स्थानों पर अनधिकृत रूप से निर्मित धार्मिक ढांचों की पहचान करने तथा उन्हें हटाने या स्थानांतरित करने के संदर्भ में योजना बनाने का निर्देश दिया था।

खंडपीठ ने अरुणाचल प्रदेश की उस वक्त प्रशंसा की जब उसके वकील ने यह अवगत कराया कि वहां एक भी अनधिकृत ढांचा नहीं है। इस सूची में सिक्किम, मिजोरम और नगालैंड को भी शामिल किया गया है।

तमिलनाडु में सर्वाधिक 77 हजार 453 अनधिकृत ढांचे हैं, जबकि राजस्थान 58 हजार 253 तथा मध्य प्रदेश 51 हजार 624 अनधिकृत ढांचों के साथ दूसरे एवं तीसरे स्थान पर हैं। दिल्ली में 52 अनधिकृत ढांचें हैं।

परिहार राजस्थान राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग के अध्यक्ष पद पर नियुक्त

राज्य सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग राजस्थान जयपुर के अध्यक्ष पद पर राजस्थान उच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायाधिपति श्री अशोक परिहार को नियुक्त किया है। यह नियुक्ति पाँच वर्ष या 67 वर्ष की आयु पूर्ण करने तक, जो भी पहले हो के लिए की गयी है। अधिसूचना के अनुसार राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग राजस्थान जयपुर के अध्यक्ष पद पर कार्यरत न्यायाधिपति श्री सुनील कुमार गर्ग का कार्यकाल 19 सितम्बर 2010 को पूर्ण होने के फलस्वरूप राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति के परामर्श से राज्य सरकार द्वारा ’’राज्य आयोग’’ उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग राजस्थान, जयपुर के अध्यक्ष पद पर न्यायाधिपति श्री अशोक परिहार की नियुक्ति की गयी है।

Monday, September 13, 2010

वकीलों के विरोध को देखते हुए छुट्टी के दिन ही शपथ दिला दी

एडीजे भर्ती को लेकर हड़ताल कर रहे वकीलों को रविवार शाम झटका लगा। वकीलों के विरोध को देखते हुए राजस्थान हाईकोर्ट प्रशासन ने एक दिन पहले ही न्यायाधीश अरुण मिश्रा को शपथ दिला दी।

वकीलों ने इससे पहले चेतावनी दी थी कि वे राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जगदीश भल्ला को जस्टिस एके मिश्रा को शपथ नहीं दिलाने देंगे। इसको लेकर प्रशासन खासा चिंतित था। रविवार को दिनभर टकराव टालने की कवायद चलती रही, लेकिन वकीलों की तैयारी को देखकर हाईकोर्ट प्रशासन ने गुपचुप ही जस्टिस मिश्रा को शपथ दिला दी। मुख्य न्यायाधीश जगदीश भल्ला के खिलाफ लामबंद हुए वकीलों के आंदोलन को देखते हुए दोपहर में अधिकारियों ने उच्च न्यायालय परिसर में स्थिति का जायजा लिया और वहां सुरक्षा इंतजाम करने शुरू कर दिए।

इसके अन्तर्गत हाईकोर्ट परिसर में बैरीकेडिंग लगाने के साथ अन्य सुरक्षा इंतजाम किए गए। दूसरी ओर हाईकोर्ट प्रशासन ने वकीलों के विरोध को टालने के लिए तय कार्यक्रम से एक दिन पहले रविवार को छुट्टी के दिन ही न्यायाधीश मिश्रा को शपथ दिला दी। शाम छह बजे से ही मुख्य न्यायाधीश भल्ला, न्यायाधीश मिश्रा, हाईकोर्ट के अन्य न्यायाधीशों एवं रजिस्ट्रार जनरल के वाहनों ने एक-एक कर हाईकोर्ट के पिछवाड़े स्थित केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) के रास्ते से मुख्य भवन में प्रवेश किया।

वहां गुपचुप तरीके से न्यायाधीश मिश्रा को शपथ दिलाने के बाद वे वापस लौट गए। इसकी जानकारी मिलने पर आंदोलनकारी वकील भड़क गए और हाईकोर्ट परिसर में एकत्र हो गए। संघर्ष समिति के पदाधिकारियों व अन्य अधिवक्ताओं की पुलिस महानिरीक्षक के साथ बैठक हुई। इसमें अधिकारियों ने शांति व्यवस्था बनाए रखने की अपील की। समिति के पदाधिकारियों ने कानून व शांति व्यवस्था बनाए रखने का भरोसा दिलाया। सोमवार को सुबह साढ़े दस बजे कचहरी परिसर में धरना-स्थल पर संघर्ष समिति की बैठक होगी। इसमें आगामी रूपरेखा तय की जाएगी।

एडीजे सीधी भर्ती परीक्षा-2010 को लेकर उपजे बवाल से राज्य में पिछले एक पखवाड़े से न्याय व्यवस्था एकदम ठप पड़ी है। इतने लंबे समय तक न्यायिक व्यवस्था प्रभावित होने का संभवतया यह प्रदेश का पहला मामला है। भास्कर ने जाना आखिरकार वकीलों की नाराजगी की वजह क्या है? हालांकि, वकीलों की हड़ताल के चलते हाईकोर्ट प्रशासन ने इंटरव्यू अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिए, लेकिन वकील परीक्षा रद्द करने की मांग पर अड़े हैं। वकील कहते हैं कि असफल अभ्यर्थियों की मार्कशीट वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं कराई गई, जबकि अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की मार्कशीट परिणाम आते ही वेबसाइट पर डाल दी जाती हैं।

वहीं, 36 पदों के साक्षात्कार के लिए उससे तीन गुना यानी 108 अभ्यर्थियों को बुलाया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। केवल 37 अभ्यर्थियों को इंटरव्यू का बुलावा भेजा। अधिवक्ताओं का आरोप है कि नियमानुसार एससी/एसटी/ओबीसी कोटे के अभ्यर्थियों को भी इंटरव्यू के लिए चयनित किया जाना चाहिए था, लेकिन ओबीसी के दो अभ्यर्थियों को छोड़कर एससी/एसटी कोटे से किसी अभ्यर्थी को नहीं बुलाया गया। परीक्षा में चयन का आधार लॉ का पेपर होना चाहिए था न कि लैंग्वेज का पेपर। परीक्षकों के नाम भी गोपानीय रखने के बजाय उजागर कर दिए गए।

एक लाख से ज्यादा मुकदमों की सुनवाई टली

प्रदेश में वकीलों की हड़ताल से अब तक करीब एक लाख से ज्यादा मुकदमों की सुनवाई टाली जा चुकी है। मुकदमों के अंबार से पहले से अटी अदालतों पर हड़ताल की वजह से और बोझ बढ़ गया है। जमानत याचिकाएं पेश नहीं होने से राज्य की जेलों में बंदियों की संख्या बढ़ गई है। स्टांप वैंडर्स व टाइपिस्टों को भी हड़ताल में शामिल करने से संपत्तियों की रजिस्ट्री का काम भी प्रभावित हुआ है।

लिहाजा करोड़ों के सौदे अटक गए हैं। राज्य की 2क्0 से ज्यादा बार एसोसिएशन में से अधिकांश के वकील 1 सितंबर से बेमियादी हड़ताल पर है। एडीजे भर्ती परीक्षा 2010 को रद्द करने की मांग कर रहे वकीलों से दो दौर की वार्ता बेनतीजा खत्म हो गई है। राजस्थान हाईकोर्ट की मुख्यपीठ जोधपुर व जयपुर बैंच व इन शहरों की अधीनस्थ अदालतों में रोजाना करीब दस हजार मुकदमें सुनवाई के लिए लगते हैं। बीते बारह दिन से आंदोलन जारी है। इस अवधि में एक लाख से ज्यादा मुकदमों की सुनवाई टल गई हैं।

आज मिलेंगे राज्यपाल से

राजस्थान हाईकोर्ट संघर्ष समिति जयपुर ने भी इस गुपचुप शपथ ग्रहण समारोह का विरोध किया है। जयपुर जिला बार के अध्यक्ष महेश शर्मा ने बताया कि रविवार को अधिवक्ता ब्रह्मानन्द सांधू, करणपालसिंह, विजय पूनिया, पूनमचंद भंडारी सहित अन्य अधिवक्ताओं का एक दल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मिला। संघर्ष समिति के पदाधिकारी सोमवार सायं 5 बजे राज्यपाल से मुलाकात करंगे।

इंसाफ को तरसते लोग अटके करोड़ों के सौदे

वकीलों, स्टांप वैंडर्स व टाइपिस्टों की हड़ताल से संपत्तियों की खरीद फरोख्त प्रभावित हुई है। न स्टांप उपलब्ध हो रहे हैं न रजिस्ट्री हो पा रही है। चेक अनादरण के एक माह में विपक्षी को नोटिस देना होता है, इसके 15 दिन में भुगतान नहीं होने पर एक माह की अवधि में मुकदमा पेश करना होता है। चेक के कई मामलों में मुकदमा पेश करने की समय सीमा समाप्त हो रही है।

कैसे लगे अवैध निर्माण पर रोक

अवैध निर्माण व दूसरों की संपत्ति पर अवैध कब्जा करने से रोकने के लिए पक्षकारों को सिविल न्यायालय की शरण लेनी होती है। इस संबंध में वकील वाद तैयार कर कोर्ट में पेश करते हैं। हड़ताल के चलते कोर्ट से स्टे लाना आम आदमी के बस में नहीं रहा।

शपथ पत्र भी अटके

शैक्षणिक प्रवेश हो या परीक्षा, विवाह के पंजीयन से लेकर पासपोर्ट व वीजा तक प्रत्येक कार्य में स्टांप व शपथ पत्र की जरूरत होती है। हड़ताल की वजह से शपथ पत्र नहीं बन पा रहे हैं। आर्य समाज में विवाह करने के लिए भी शपथ पत्र की जरूरत होती है। इसके अभाव में कई शादियां भी अटक चुकी हैं।

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने 20 हाईकोर्ट जजों के तबादले की सिफारिश की।

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस (सीजेआई) एसएच कपाड़िया ने विभिन्न हाईकोर्ट के 20 जजों के तबादले की सिफारिश की है। समझा जाता है सीजेआई ने यह कदम जनहित में उठाया है। इतनी बड़ी तादाद में दूसरी बार जजों के तबादले होने जा रहे हैं। इससे पहले, देश के पूर्व सीजेआई एमएन वेंकटचलैया ने 1993 में हाईकोर्ट के 50 जजों के तबादले की सिफारिश की थी। सीजेआई कपाड़िया ने जजों के तबादलों की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी है।

इनमें इलाहाबाद, पंजाब व हरियाणा तथा राजस्थान हाईकोर्ट के तीन-तीन जज शामिल हैं। इसके अतिरिक्त दिल्ली, आंध्रप्रदेश तथा मद्रास हाईकोर्ट में से प्रत्येक के दो-दो जजों का तबादला प्रस्तावित है। बाकी पांच जज ओडीशा तथा असम हाईकोर्ट के हैं।

जस्टिस कपाड़िया ने सीजेआई के रूप में शपथ लेने से पहले कहा था कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार सहन नहीं किया जाएगा। उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि संबंधित हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को लिखे गए पत्र में सीजेआई ने तबादलों की सिफारिश करने की कोई खास वजह नहीं बताई है। लेकिन उन्होंने संकेत दिया है कि ये तबादले जनहित में किए जा रहे हैं। तबादलों के संदर्भ में सीजेआई ने जजों को भी पत्र लिखा था। इसमें जजों से कहा गया था कि वे प्राथमिकता के अनुसार उन जगहों का नाम सुझाएं, जहां वे तबादला कराना चाहेंगे। फिलहाल तबादलों पर अमल की कोई समय-सीमा तय नहीं की गई है।

सामाजिक व आर्थिक आधार सजा कम करने का आधार नहीं हो सकता

बोम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी भी व्यक्ति का गरीब होना कम सजा का आधार नहीं हो सकता। बोम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने बलात्कार के मामले में यह टिप्पणी की है। न्यायाधीश एपी भांगले ने बलात्कार के मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि भारतीय दंड संहित की धारा 376 के तहत बलात्कार के मामले में कम से कम सात साल की सजा का प्रावधान है। विशेष कारणों में ही सजा कम हो सकती है लेकिन सामाजिक व आर्थिक आधार सजा कम करने का आधार नहीं हो सकता।

यह है मामला
भंडारा जिले के वर्थी गांव में सतीनाथ राउत ने 22 साल की महिला के साथ दुष्कर्म किया गया था। जिस वक्त राउत महिला के घर में घुसा उस समय महिला महिला की तीन साल की बच्ची घर में थी। राउत ने चाकू की नोक पर महिला के साथ दुष्कर्म किया। फरवरी 2007 में भंडारा के सत्र न्यायालय ने सात साल की कैद की सजा सुनाई थी। सत्र न्यायालय के फैसले के खिलाफ राउत हाईकोर्ट में चला गया। हाईकोर्ट में उसने दलील की थी कि उसका बड़ा परिवार है। पांच बच्चे और बीमार मां है। इसलिए उसकी सजा कम की जाए।

Friday, September 10, 2010

वार्ता विफल होने के बाद हाईकोर्ट परिसर बना छावनी

एडीजे भर्ती परीक्षा में धांधली के मुद्दे पर वकीलों की गुरुवार को न्यायाधीश अजय रस्तोगी के साथ वार्ता विफल होने के बाद शुक्रवार को हाईकोर्ट परिसर में सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए, जिससे परिसर छावनी में तब्दील हो गया।
पुलिस अधीक्षक (दक्षिण) जोस मोहन ने बताया कि परिसर में सुरक्षा व्यवस्था की कमान तीन डीएसपी व दस थानाधिकारियों सहित 300 से अधिक पुलिसकर्मियों को सौंपी गई। इसमें एसटीएफ की एक कंपनी भी शामिल है। पुलिसकर्मियों व एसटीएफ के जवानों को परिसर में चप्पे-चप्पे पर साजो सामान के साथ तैनात किया व बिना पासधारी को प्रवेश नहीं दिया गया।
वहीं दूसरी ओर वकीलों का आंदोलन जारी रहा और हाई कोर्ट सहित अधीनस्थ अदालतों में वकीलों ने न्यायिक कार्य का बहिष्कार किया। आगामी रणनीति बनाने के लिए वकीलों ने सेशन कोर्ट में आपात बैठक बुलाई। गौरतलब है कि हाई कोर्ट प्रशासन से वकीलों की दूसरे दौर की वार्ता गुरुवार को विफल होने के बाद वकीलों ने आंदोलन को तेज करने की चेतावनी दी थी, जिसके तहत ही हाईकोर्ट परिसर में सुरक्षा के इंतजाम किए गए।

इससे पूर्व कांग्रेस सांसद महेश जोशी व भाजपा प्रदेशाध्यक्ष अरूण चतुर्वेदी ने धरना स्थल पर पहुंचकर सहयोग का भरोसा दिलाया। ऑल राजस्थान एडवोकेट्स संघर्ष समिति अध्यक्ष नरेश शर्मा के नेतृत्व में न्यायाधीश रस्तोगी से मिले वकील प्रतिनिधिमंडल ने वार्ता के जरिए उन्हें छकाने के प्रयास करने का आरोप लगाते हुए आरपार की लडाई का एलान किया। उनका आरोप था कि इस भर्ती के बारे में सूचना का अधिकार कानून के तहत जानकारी नहीं दी जा रही है। बार कौंसिल सदस्य सज्जन राज सुराणा ने कहा कि परीक्षा के लिए तीन प्रश्नपत्र के बजाए एक ही प्रश्नपत्र तैयार करवाया गया, ऎसे में प्रश्नपत्र लीक होने के कारण परीक्षा रद्द की जाए।

दिल्ली तक सहयोग का भरोसा

उधर सांसद महेश जोशी ने कहा कि जरूरत पडी तो वे इस आंदोलन में दिल्ली तक सहयोग के लिए तैयार हैं, जबकि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अरूण चतुर्वेदी ने धरना स्थल पर कहा कि वकील होने के नाते वे आंदोलन से अलग नहीं हैं। पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता कैलाश नाथ भट्ट ने भी आंदोलनकारियों को संबोधित किया। जयपुर जिला अदालत परिसर में भी क्रमिक अनशन जारी रहा। जोधपुर में भी संघर्ष समिति ने सोमवार से आमरण अनशन, प्रदर्शन, व्यापारिक बंद सहित अन्य तरीकों से आंदोलन को तेज करने की चेतावनी दी है।

कामकाम प्रभावित

हाईकोर्ट सहित प्रदेशभर में अदालतों में वकीलों के कार्य बहिष्कार के कारण कामकाज बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। हाईकोर्ट में भी जमानत, छात्रों के प्रवेश या परीक्षा से सम्बन्घित ऎसे मामलों में ही निर्णय हो रहे, जिनमें पक्षकार अपनी पैरवी खुद करने को तैयार हों। जटिल या कानूनी पेचीदगी वाले मामलों में पक्षकारों के आग्रह पर समय दिया जा रहा है। बहिष्कार से राजस्व मण्डल सहित राजस्व अधीनस्थ अदालतों में लम्बित प्रकरणों में बढ़ोतरी हो रही है। मण्डल में पहले ही 53 हजार से अधिक मामले लम्बित हैं।

 पक्षकार परेशान

पक्षकारों को शुक्रवार को भी परेशानी का सामना करना पड़ा। सेशन कोर्ट, डिस्ट्रिक्ट कोर्ट व कलेक्ट्रेट में स्टाम्प वेंडरों के नहीं बैठने के कारण पक्षकारों को स्टाम्प पेपर, पाई पेपर, कोर्ट फीस टिकट, रेवेन्यू टिकट, नकल के फार्म, वकालत नामे व अन्य अदालती स्टेशनरी मुहैया नहीं हो सकी। कोर्ट फीस टिकट नहीं मिलने के कारण जहां पक्षकार आदेशों की नकल नहीं ले सके, वहीं अदालतों में नए दावे व याचिकाएं भी पेश नहीं कर सके। फोटो स्टेट संचालकों व टाईपिस्टों के अदालतों में नहीं बैठने के कारण पक्षकारों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ा। गौरतलब है कि वकील पिछले पन्द्रह दिनों से आंदोलन कर रहे हैं और भर्ती परीक्षा को रद्द करने की मांग कर रहे हैं।

वोडाफोन को देना पड सकता है 12000 करोड का टैक्स

बंबई उच्च न्यायालय ने आयकर विभाग के साथ वोडाफोन की लड़ाई में आज ब्रिटिश दूरसंचार दिग्गज के खिलाफ फैसला दे दिया। अदालत ने हचीसन एस्सार के साथ सौदे पर पूंजीगत लाभ कर की विभाग की मांग के खिलाफ वोडाफोन की याचिका खारिज कर दी।
इस फैसले के साथ ही एक नई नजीर बन गई और आयकर विभाग का यह दावा भी पुख्ता हो गया कि उसे कर वसूलने का पूरा अधिकार है। कुछ महीने पहले ही आयकर विभाग ने वोडाफोन के पास नोटिस भेजा था। इस नोटिस में कंपनी से 12,000 करोड़ रुपये बतौर कर मांगे गए थे। इस रकम में ब्याज और जुर्माना भी शामिल होने की बात कही जा रही है। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने न्यायमूर्ति देवधर के साथ मामले की सुनवाई की। उन्होंने विभाग को ताकीद किया है कि अगले 8 हफ्तों तक वोडाफोन को किसी तरह का नोटिस नहीं भेजा जाए।

वोडफोन ने हच एस्सार में 67 फीसदी हिस्सेदारी 2007 में खरीदी थी। इस खरीद के लिए उसने 1,120 करोड़ डॉलर की रकम चुकाई थी और इसके साथ ही भारतीय कंपनी पर उसका नियंत्रण भी हो गया था। आयकर विभाग के मुताबिक खरीदी गई कंपनी भारतीय है, इसलिए वोडाफोन को पूंजीगत लाभ कर चुकाना होगा।

वोडाफोन की दलील है कि दो विदेशी कंपनियों के बीच सौदा हुआ है, जिस पर भारत में कर नहीं देना होगा। हचीसन की होल्डिंग कंपनी सीजीपी ने हॉलैंड की कंपनी वोडाफोन इंटरनैशनल होल्डिंग्स को हिस्सेदारी बेची थी। लेकिन अदालत ने अपने फैसले में कहा, 'इस सौदे की वजह से हच एस्सार की बागडोर एक हाथ से दूसरे हाथ में पहुंच गई और भारत में इससे आमदनी होती है। इस सौदे के साथ ही याचिकाकर्ता भारतीय कानून के दायरे में आ गई।
इधर वोडाफोन ने कहा है कि वह उच्चतम न्यायालय में जाने के लिए सलाह मशविरा कर रही है। कर विशेषज्ञों के मुताबिक इस फैसले की वजह से विदेशी कंपनियों के साथ आगे होने वाले विलय-अधिग्रहण सौदों पर असर नहीं पडऩा चाहिए।

दो सप्ताह में स्वतंत्रता सेनानी को पेंशन दो अन्यथा केन्द्रीय गृह सचिव व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश हो-राजस्थान उच्च न्यायालय

राजस्थान उच्च न्यायालय ने बुधवार को स्वतंत्रता सेनानी को अदालती आदेश के बावजूद पेंशन नहीं दिए जाने के मामले में केन्द्र सरकार को निर्देश दिए हैं कि दो सप्ताह में याचिकाकर्ता को पेंशन का भुगतान किया जाए अन्यथा केन्द्रीय गृह सचिव व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश हो। 
न्यायाधीश महेशचन्द्र शर्मा की एकलपीठ ने यह आदेश टी.एन. धर की अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए। मामले में तथ्यों के अनुसार याचिकाकर्ता ने वर्ष 2002 में स्वतंत्रता सेनानी पेंशन सम्मान योजना के लिए आवेदन किया था किन्तु उसे पेंशन नहीं दी गई। उसने याचिका दायर की। अदालत ने 2008 में इस मामले में दिए गए स्थगन आदेश को अपास्तर कर दिया था किन्तु उसके बावजूद याचिकाकर्ता को पेंशन नही दी गई।

Thursday, September 9, 2010

'गांधी नंबर वन' साबुन की बिक्री पर रोक

गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स (जीसीपीएल) को बंबई उच्च न्यायालय से एक शिकायत पर कुछ राहत मिली है और अदालत ने एक कंपनी के 'गांधी नंबर वन' साबुन की बिक्री से रोक दी है। गोदरेज ने कहा था कि यह नाम उसके 'गोदरेज नंबर वन' ब्रैंड से मिलता-जुलता है।

उच्च न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश की 'गांधी सोप एंड डिटरर्जेंट' को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए पूछा है क्यों न गोदरेज को इस मामले में राहत दी जाए। गोदरेज के पक्ष में अंतरिम राहत देते हुए अदालत ने गांधी सोप्स पर 13 सितंबर तक इस उत्पाद के विपणन एवं बिक्री पर रोक लगा दी है।

जज एस.सी. धर्माधिकारी ने कहा कि शुरुआती तौर पर जो जानकारी मेरी संज्ञान में लाई गई है उसके अनुसार गांधी सोप्स ने वैसा ही उत्पाद पेश किया है, जिसकी रंग स्कीम गोदरेज से मिलती-जुलती है। इस उत्पाद के रैपर देखने के बाद अदालत ने कहा कि इस साबुन की कलर स्कीम और फ्रैगरेंस भी लगभग समान ही है।

शीर्ष न्यायालय का फ़ैसला यमुना एक्सप्रेसवे के पक्ष में

उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार को भारी राहत प्रदान करते हुए उच्चतम न्यायालय ने करोडों रूपये की यमुना एक्सप्रेस वे परियोजना के लिए बुधवार मार्ग प्रशस्त कर दिया.

शीर्ष न्यायालय ने गेट्रर नोएडा को आगरा से जोडने वाली इस परियोजना के लिए 1604 हेक्टेयर निजी भूमि के अधिग्रहण के फ़ैसले को सही ठहराया है.       

न्यायमूर्ति वी एस सिरपुरकर और न्यायमूर्ति सी जोसेफ़ की पीठ ने इस मामले में असंतुष्ट भूमि मालिकों द्वारा दायर की गयी विभिन्न याचिकाओं को खारिज कर दिया. याचिकाओं में आरोप लगाया गया था कि एक निजी कंपनी जे पी इन्फ्राटेक लि को फ़ायदा पहुंचाने के लिए पक्षपातपूर्ण तरीके से शक्तियों का इस्तेमाल किया गया और उसमें कोई जनहित शामिल नहीं था.       

शीर्ष न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के इस निष्कर्ष से सहमति जतायी कि इस परियोजना से लाखों लोगों को फ़ायदा मिलेगा. यह बात उन कुछ चंद असंतुष्ट व्यक्ितयों से ज्यादा महत्वपूर्ण है जिनकी दुकानें, व्यावसायिक प्रतिष्ठान या मकान परियोजना को साकार रूप देने के लिए ध्वस्त किये जायेंगे.      

न्यायमूर्ति सिरपुरकर ने पीठ की ओर से फ़ैसला लिखते हुए कहा कि एक्सप्रेस वे बेहद लोक महत्व का कार्य है. राज्य ही नहीं आम जनता को भी एक्सप्रेस वे के निर्माण से लाभ मिलेगा. तेजी से आवाजाही करने वाले यातायात के लिए परिपथ बनाने से यात्रा एवं वस्तुओं के परिवहन का समय कम होग

शाइनी ने नहीं किया दुष्कर्म-नौकरानी

बॉलीवुड अभिनेता शाइनी आहूजा के खिलाफ बलात्कार के सनसनीखेज मामले में एक नया मो़ड आ गया है। उनकी नौकरानी इन आरोपों से मुकर गई है कि अभिनेता शाइनी ने पिछले साल मुंबई स्थित अपने घर में उसके साथ बलात्कार किया था।
उसने कहा कि उसके साथ इस तरह की घटना कभी नहीं हुई। बीस वर्षीय यह युवती तीन सितंबर को अदालत में पेश हुई और कहा कि शाइनी ने उसके साथ कभी बलात्कार नहीं किया। उसने शाइनी के खिलाफ शिकायत उस महिला के कहने पर दर्ज कराई थी, जिसने उसे शाइनी के घर नौकरानी का काम दिलाया था।
हालांकि शाइनी की बीस साला नौकरानी ने उन्हें क्लिन चिट दे दी है, लेकिन उनके खिलाफ मामले में अभी सुनवाई जारी रहेगी।  इस मामले की अगली सुनवाई अब 15 सितंबर को होगी।

शाइनी पर 14 जून, 2009 को अंधेरी वेस्ट स्थित उनके घर में उनकी घरेलू नौकरानी के साथ दुष्कर्म करने का आरोप लगा था।

उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया थाऔर बंबई उच्च न्यायालय से 50,000 रुपये की जमानत राशि पर जमानत मिलने से पहले उन्हें पुलिस व न्यायिक हिरासत में विभिन्न जेलों में 110 दिन बिताने पड़े थे।

संयोग से जांच और पूछताछ के दौरान शाइनी ने स्वीकार किया था कि उन्होंने नौकरानी की सहमति से उसके साथ यौन संबंध बनाए थे। उन्होंने कथित तौर पर नौकरानी से दुष्कर्म की बात भी स्वीकार की थी। शाइनी और प्रताड़ित महिला की चिकित्सा जांच और डीएनए जांच से दुष्कर्म की पुष्टि हुई थी।
इस घटना पर देशभर में व्यापक हंगामा होने के बाद राष्ट्रीय महिला आयोग और मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने इसमें हस्तक्षेप कर प्रताड़ित महिला को जल्द न्याय दिलवाने के लिए मामले को त्वरित अदालत में ले जाने का निर्देश दिया था।

Tuesday, September 7, 2010

वकीलों की वाहन रैली से जोधपुर में यातायात व्यवस्थाई चरमराई

एडीजे सीधी भर्ती परीक्षा में कथित धांधली के आरोपों को लेकर पिछले सात दिन से हड़ताल पर उतरे वकीलों ने मंगलवार को जोधपुर   में वाहन रैली निकाली। वकीलों के इस विरोध प्रदर्शन के चलते शहर के कई इलाकों में यातायात जाम हो गया और वाहन चालकों को अपने गतंव्य स्थलों तक पहुंचने में खासी मशक्कत करनी पड़ी। यातायात पुलिस के प्रयास भी कम पड़ गए।

राजस्थान हाईकोर्ट अधिवक्ता संघर्ष समिति के आह्वान पर मंगलवार को शहर में वाहन रैली निकालने का निर्णय किया गया था। इसी कड़ी में मंगलवार दोपहर तीन-चार सौ की संख्या में वकील दुपहिया वाहनों पर सवार होकर हाईकोर्ट से निकले। रैली हाईकोर्ट रोड, नई सड़क, सोजती गेट, जालोरी गेट, पांचवीं रोड चौराहा, बाम्बे मोटर्स सर्किल, चौपासनी रोड एवं आखलिया चौराहे तक पहुंची। बाद में यह रैली इसी मार्ग से हाईकोर्ट आ गई। करीब दो घंटे की इस वाहन रैली से यातायात व्यवस्था बुरी तरह से चरमरा गई।

गरीबों को मुफ्त नहीं पढ़ाया, तो निजी स्कूल होंगे बंद - कपिल सिब्बल

मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने दो टूक शब्दों में कहा कि सरकार देश भर के निजी स्कूलों में समग्र शिक्षा के तहत 25 फीसदी गरीब बच्चों के दाखिले को लेकर सख्त और इस नियम का पालन नहीं करने वाले स्कूलों को बंद कर दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि समग्र शिक्षा के तहत निजी स्कूलों में 25 फीसदी गरीब बच्चों का नामांकन अनिवार्य है और सरकार इससे एक इंच भी पीछे नहीं हटेगी। यहां सोमवार को आईआईएससी में सर विट्ठल एन चंदावरकर मेमोरियल व्याख्यान के बाद संवाददाताओं से बातचीत करते हुए सिब्बल ने कहा कि तमाम विवादों के बावजूद केंद्र सरकार शिक्षा का अधिकार कानून को पूरी तरह लागू करेगी। उन्होंने कहा कि जब भी बदलाव की बात होती है कई सवाल उठते हैं इसमें कोई नई बात नहीं है।

शिक्षा के अधिकार अधिनियम के कुछ प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका आज संविधान पीठ को भेज दिया गया है। अब इस पर सर्वोच्च न्यायालय जो भी अपना निर्णय देगा वह स्वीकार्य होगा। यह पूछे जाने पर कि आईसीएससी ने आरटीई मेें शामिल होने से इनकार कर दिया है? सिब्बल ने कहा कि किसी के कुछ कहने का मतलब यह नहीं होता है कि अदालत उसे उसी रूप में स्वीकार कर लेगी। हर विधेयक पर राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिक्रियाएं होती हैं। कोई बदलाव चाहता है तो कोई विरोध भी करता है। यह प्रक्रिया है और इससे अधिनियम से जुड़ी खामियां सामने आती हैं जिससे उसे लागू करने से पहले दूर करने में मदद भी मिलती है। मामला अब अदालत जो फैसला करेगी उसे सभी को मानना होगा।

शिक्षा वित्त निगम की होगी स्थापना- सिब्बल ने कहा कि देश में बुनियादी ढांचों के विकास को अधिक प्राथमिकता दी जाती है और अगर उच्च पथ निर्माण की बात आती है तो निवेशकों को सस्ती दर पर उधार मिल जाता है। लेकिन हमारा मानना है कि शिक्षा बुनियादी ढांचों के विकास से ज्यादा जरूरी है। इसके लिए सरकार शिक्षा वित्त निगम (एजूकेशन फायनांस कॉरपोरेशन) के गठन के बारे में विचार कर रही है।

इसके तहत दो अवधारणाएं हैं, जिन पर चर्चाएं चल रही हैं। पहला छात्रों को पढ़ाई के लिए ऋण सुविधा प्रदान करना जिसमें ऋण की गारंटी केंद्र सरकार देगी। दूसरा शिक्षा के क्षेत्र में निवेश करने वालों को विशेष छूट के तहत ऋण प्रदान करना। इसमें निवेशकों को ऋण चुकाने के लिए 20-25 वर्षो की समय-सीमा दी जाएगी। लेकिन निगम की स्थापना के लिए बजटीय सहयोग की जरूरत है। जब नीति निर्धारण हो जाएगा तब वित्त मंत्री से इसके लिए सहायता मांगी जाएगी। फिलहाल इसके लिए योजना आयोग के साथ बातचीत चल रही है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों को अधिक स्वायत्तता देने की जरूरत है और इसकी जिम्मेदारी राज्य सरकार की अधिक है।

आरटीआई कार्यकर्ता अमित जेठवा हत्याकांड में भाजपा सांसद का भतीजा गिरफ्तार


आरटीआई कार्यकर्ता अमित जेठवा की हत्या के सिलसिले में पुलिस ने भाजपा सांसद दीनू सोलंकी के भतीजे शिवा सोलंकी को राजकोट हवाई अड्डे के पास से गिरफ्तार किया गया है। दीनू सोलंकी जूनागढ से भाजपा सांसद हैं।

उल्लेखनीय है कि आरटीआई कार्यकर्ता अमित जेठवा ने गिर के जंगलों में हो रहे अवैध खनन के खिलाफ उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की थी। इसके कुछ समय बाद ही 20 जुलाई को मोटरसाइकिल सवार बदमाशों ने गुजरात उच्च न्यायालय के नजदीक जेठवा की गोली मारकर हत्या कर दी थी।

सूत्रों के मुताबिक इस हत्याकांड में गिरफ्तार आरोपियों ने पूछताछ के दौरान शिवा सोलंकी का नाम लिया था। अमित की हत्या के बाद ही उनके पिता भीकाभाई जेठवा ने जूनागढ़ से सांसद दीनू सोलंकी पर अपने बेटे की हत्या का आरोप लगाया था।

करें कोई, भरे कोई

एक आपराधिक मामले में न्यायालय ने किसी और आरोपी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया, लेकिन विवेचक सब इंस्पेक्टर ने किसी और को कोर्ट में पेश कर दिया। इस मामले का खुलासा तब हुआ, जब जेल जा चुके बेगुनाह युवक के परिवार ने अदालत में शिकायत की।

इस मामले में एडीजे श्री केसरवानी ने सोमवार को चरगवां थाने के एसआई कमलेश चौरिया को जमकर फटकार लगाई और उसे 5 हजार का क्षतिपूर्ति देने के निर्देश दिये।

चरगवां थाना क्षेत्र में घटित एक आपराधिक मामले में पुलिस ने पूरी छानबीन करने के बाद एडीजे श्री केसरवानी की अदालत में चालान पेश किया। न्यायालयीन प्रक्रिया के दौरान ही कोर्ट ने इस मामले में आरोपी देवेन्द्र पिता समरजीत के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया।

वारंट थामकर आरोपी के खोजबीन में निकले सब इंस्पेक्टर कमलेश चौरिया ने 27 अगस्त 09 को देवेन्द्र की जगह चरगवां में ही रहने वाले एक अन्य युवक रवि सिंह को गिरफ्तार किया और न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। यहां से रवि सिंह को जेल भेज दिया गया था।

परिजनों ने लगाई अर्जी

गिरफ्तारी के पश्चात अपने बेटे के अपराध के विषय में खोज करने के बाद जब परिजनों को वास्तविकता का पता चला तो उन्होंने न्यायालय के समक्ष अर्जी लगाई। जैसे ही आवेदन आया तो कोर्ट ने उसे गंभीरता से लिया और फिर मामले का खुलासा होने में देर न लगी।

बाद में कोर्ट ने जब सब इंस्पेक्टर से जवाब मांगा तो सफाई में वो ज्यादा कुछ बोल नहीं पाये। दूध का दूध और पानी का पानी होने पर न्यायालय ने एसआई को निर्देशित किया कि वे इसके लिये 5 हजार की क्षतिपूर्ति अदा करें।

Monday, September 6, 2010

पति भिखारी हो या साधु, देना होगा गुजारा भत्ता

पत्नी की जिम्मेदारी उठाना पति का नैतिक कर्तव्य है। पति चाहे भिखारी, साधु या दिवालिया उसे अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देना होगा। यह टिप्पणी करते हुए रोहिणी स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने एक व्यक्ति की पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा है कि न्यूनतम वेतन मजदूरी के आधार पर पति को अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देना होगा। ध्यान रहे कि हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक आदेश में कहा था कि बेरोजगार पति को गुजारा भत्ता देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। रोहिणी स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संजीव अग्रवाल की अदालत में पुनर्विचार अर्जी दाखिल कर आशुतोष कुमार ने मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के आदेश को न्याय के खिलाफ बताते हुए खारिज करने का अनुरोध किया था। अदालत में दाखिल अर्जी में याचिकाकर्ता ने कहा था कि वह 3200 रुपये मासिक कमाता है, जबकि मेट्रो पोलिटन मजिस्ट्रेट ने उसे गुजारा भत्ता 4500 रुपये की न्यूनतम मजदूरी के आधार पर देने का आदेश दिया है, ऐसे में यदि वह आदेशानुसार पत्नी को दो हजार रुपये का गुजारा भत्ता दे देता है, तो वह अपना व बीमार मां का जीवन निर्वाहन कैसे करेगा, जबकि याचिकाकर्ता की पत्नी ने अदालत से कहा कि पति की जिम्मेदारी है कि वह उसकी जरूरतों को पूरा करे। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने कहा कि मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के आदेश में कोई कमी नहीं है। सत्र न्यायालय ने मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के आदेश को सही ठहराया।

वकीलों को बार काउंसिल और अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति का समर्थन

प्रदेश में एडीजे की सीधी भर्ती परीक्षा में कथित धांधली के विरोध में आंदोलनकर रहे वकीलों के समर्थन में रविवार बार काउंसिल ऑफ राजस्थान भी उतर गई। जोधपुर में हुई बैठक में निर्णय किया गया कि काउंसिल का प्रतिनिधि मंडल जल्द ही राज्यपाल एवं भारत के प्रधान न्यायाधीश से मिलकर पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराने की मांग करेगा। इस बीच, रविवार को अदालत परिसर में वकीलों का धरना जारी रहा। राजस्थान हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन के महासचिव करणसिंह राजपुरोहित ने बताया कि वकीलों का प्रतिनिधि मंडल रविवार को महासचिव अनूप शर्मा की अगुवाई में जोधपुर पहुंचा। काउंसिल के अध्यक्ष संदीप मेहता के कक्ष में साधारण सभा की बैठक हुई।

इसमें तय हुआ कि जिन मांगों को लेकर प्रदेश के अधिवक्ता आंदोलन कर रहे हैं उसको बार काउंसिल का समर्थन है। भर्ती परीक्षा की संपूर्ण प्रक्रिया की जांच कराने की मांग की जाएगी। काउंसिल सदस्य रणजीत जोशी ने काउंसिल सदस्यों को प्रदेश के समस्त अधिवक्ताओं की भावनाओं के अनुरूप कार्य करने का मामला उठाया। एडवोकेट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष मिलापचंद भूत एवं लॉयर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष आनंद पुरोहित की ओर से गठित संघर्ष समिति को आंदोलन की आगामी रणनीति तय करने का जिम्मा दिया गया है।

समझौता नहीं होने की स्थिति में वकीलों का आंदोलन सोमवार को भी जारी रहेगा। गौरतलब है कि भर्ती प्रक्रिया को रद्द करवाने की मांग नहीं माने जाने तक वकीलों ने न्यायिक कार्यो के बहिष्कार की घोषणा कर रखी है। हालांकि, वकीलों के आंदोलन को देखते हुए हाईकोर्ट प्रशासन ने सोमवार से होने वाले इंटरव्यू अनिश्चित काल तक पहले ही स्थगित कर दिए थे। बार काउंसिल ऑफ राजस्थान के सचिव राजेन्द्र पाल ने बताया कि बार काउंसिल की साधारण सभा ने एक अन्य प्रस्ताव में निर्णय किया कि राजस्थान हाईकोर्ट को एक पत्र लिखकर बीते दस साल में हुई नियुक्तियों के बारे में जानकारी मांगी जाएगी। साथ ही, यह मांग की जाएगी कि वकील कोटे से नई नियुक्तियां की जाएं।

उधर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति ने राज्य के मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजकर न्यायिक सेवा परीक्षा निरस्त कर राजस्थान के प्रतियोगियों के साथ न्याय करने की मांग की है। समिति का आरोप है कि राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश पद हेतु आयोजित परीक्षा में राजस्थान न्यायिक सेवा नियम का उल्लंघन किए जाने से राज्य के प्रतियोगियों के साथ घोर अन्याय हुआ है। ज्ञापन में लिखा गया है कि राजस्थान न्यायिक सेवा 2010, नियम 33, उपनियम 4 के अन्तर्गत स्पष्ट उल्लेख है कि देवनागरी लिपि में लिखित हिन्दी का एवं राजस्थानी बोलियों और राजस्थान की सामाजिक रूढिय़ों का पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए। वर्तमान न्यायिक सेवा परीक्षा में इस प्रावधान का उल्लंघन किए जाने से राजस्थान के प्रतियोगियों की अपने ही प्रांत में उपेक्षा हुई है और बेरोजगारों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। समिति ने उक्त परीक्षा को निरस्त कर प्रावधान के अनुसार ही परीक्षा आयोजित करवाने की मांग की है। समिति का मानना है कि प्रावधान का उल्लंघन होने से बड़ी तादाद में राजस्थान की भाषा-संस्कृति से अनभिज्ञ लोग इस सेवा में स्थान पा जाते हैं जिनकी सेवा राजस्थानियों के लिए कारगर साबित नहीं हो सकती। साथ ही समिति ने मांग की है कि राजस्थान न्यायिक सेवा परीक्षाओं में राजस्थान की भाषा, संस्कृति, बोलियों और सामाजिक रूढिय़ों से सम्बन्धित 100 अंक का अनिवार्य प्रश्न पत्र शुरू किया जाए जिससे राजस्थान के प्रतियोगियों को जनतंत्रीय न्याय मिल सके एवं प्रदेश में प्रदेश की संस्कृतिविद् प्रतिभाओं को अन्याय एवं उपेक्षा से बचाया जा सके।


Saturday, September 4, 2010

गुजारे भत्ते की राशि तय करने का आधार नहीं पारिवारिक संपत्ति-दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी व्यक्ति की निजी आय उसकी परित्यक्ता पत्नी के गुजारे-भत्ते का निर्णय करने के लिए आधार होना चाहिए न कि उसकी पारिवारिक संपत्ति। जस्टिस एसएन ढींगरा ने एक पारिवारिक अदालत द्वारा दिए गए निर्णय को दरकिनार करते हुए यह व्यवस्था दी है।पारिवारिक अदालत ने एक व्यक्ति को अपनी परित्यक्ता पत्नी को गुजारे-भत्ते के लिए 45,000 रुपए प्रति माह देने का आदेश दिया था, जबकि उस व्यक्ति की निजी आय 41,000 रुपए प्रति माह है। जस्टिस ढींगरा ने सत्र न्यायालय के फैसले को अनुचित करार देते हुए कहा कि किसी व्यक्ति के आत्मनिर्भर और बारोजगार होने के बाद उस व्यक्ति की निजी आय ही उस पर निर्भर रहने वाली उसकी पत्नी या उसके बच्चों के लिए गुजारे भत्ते की राशि तय करने के लिए आधार होना चाहिए।

हाईकोर्ट ने कहा कि उस व्यक्ति की मौजूदा संपत्ति उसके पिता, माता और भाभी के नाम है, जिसे उसकी पत्नी की संपत्ति के तौर पर विचारित नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि उसके भाई या अभिभावकों के नाम की संपत्ति को गुजारा-भत्ता तय करने का आधार नहीं बनाया जा सकता है। किसी व्यक्ति के स्तर का आंकलन उसके भाई या पिता के स्तर के आधार पर नहीं हो सकता है। जस्टिस ढींगरा ने उसके गुजारे-भत्ते की राशि को 45,000 रुपए से घटाकर 20,000 रुपए कर दिया है।

हाईकोर्ट एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसने सत्र न्यायालय के फैसले को इस आधार पर चुनौती दी थी कि उसकी परित्यक्ता पत्नी के लिए गुजारे-भत्ते की राशि तय करने में उसके परिवार के स्तर और संपत्ति को आधार नहीं बनाया जा सकता है।

सत्र न्यायालय ने पत्नी द्वारा घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत दाखिल सुरक्षा और गुजारे-भत्ते की अर्जी को स्वीकार कर लिया था और मैट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा तय रखरखाव की राशि को बढ़ाकर 10,000 रुपए से 30,000 रुपए कर दिया था और घर के किराए की राशि को ५क्क्क् रुपए से बढ़ाकर 15,000 रुपए कर दिया था।

वकीलों का जयपुर कूच, परीक्षा रद्द होने तक आंदोलन

एडीजे भर्ती परीक्षा में गड़बड़ी की शिकायत को लेकर आंदोलित वकील परीक्षा रद्द नहीं होने तक अदालतों में न्यायिक कार्यो का बहिष्कार जारी रखेंगे। इस बीच हाईकोर्ट प्रशासन ने न्यायिक अधिकारी वर्ग से एडीजे भर्ती के लिए साक्षात्कार भी स्थगित कर दिए हैं। राजधानी में शुक्रवार को जुटे प्रदेश भर के वकीलों ने महापंचायत में जन संगठनों, व्यापारिक संगठनों को भी अपने साथ जोड़कर आंदोलन तेज करने का निर्णय किया।  उधर, जोधपुर से भी वकीलों का एक प्रतिनिधि मंडल जयपुर पहुंचा है।

कमेटी स्वीकार नहीं

एडीजे भर्ती परीक्षा को लेकर गठित संघर्ष समिति व दी बार एसोसिएशन जयपुर के अध्यक्ष नरेश कुमार शर्मा की अध्यक्षता में आयोजित महापंचायत में वकीलों ने आरोप लगाया कि मुख्य न्यायाधीश ने भर्ती परीक्षा में धांधली पर पर्दा डालने के लिए तीन न्यायाधीशों की कमेटी बनाई है। वकीलों को इस कमेटी से न तो न्याय की उम्मीद है और न ही कमेटी स्वीकार है।

महापंचायत में तय किया गया कि वकीलों की एक कमेटी ही भर्ती परीक्षा में हुई धांधली मामले की जांच करेगी और दोषियों के विरूद्ध प्राथमिकी दर्ज कराएगी। सुबह ग्यारह से शाम पांच बजे तक चली महापंचायत को बार कौंसिल सदस्यों, विभिन्न जिलों व तहसीलों की बार एसोसिएशनों के अध्यक्ष व महासचिव ने संबोधित किया। इस बीच हाईकोर्ट की जयपुर पीठ में धरनास्थल पर सभा में वकीलों ने उन न्यायाधीशों का बाहर तबादला करने की मांग की, जिनके बच्चे प्रदेश में वकालत करते हैं।

अनशन व महापड़ाव

आंदोलन तेज करने के लिए शनिवार को जयपुर समेत प्रदेश भर में एडीजे भर्ती परीक्षा रद्द करवाने व हाईकोर्ट प्रशासन को सद्बुद्धि के लिए यज्ञ होंगे व मानव श्रृंखला बनाई जाएंगी। जयपुर में जिला कलक्ट्रेट सर्किल स्थित कैण्डल पार्क में सद्बुद्धि यज्ञ होगा। सोमवार से वकील क्रमिक अनशन पर बैठेंगे, इसी दिन जयपुर से रवाना वकील जोधपुर हाईकोर्ट परिसर में महापड़ाव डालेंगे। महापंचायत में गिरफ्तारी देने, भूख हड़ताल शुरू करने, मशाल जुलूस निकालने आदि फैसले किए गए।

नियमों में है राजस्थानी संस्कृति का पेपर

पूर्व सांसद ओंकार सिंह लखावत ने एडीजे भर्ती परीक्षा में राजस्थानी बोलियों व संस्कृति ज्ञान के परीक्षण का प्रश्न पत्र शामिल नहीं करने को गंभीर अनियमितता बताते हुए इस परीक्षा परिणाम को निरस्त करने की मांग की है। राजस्थान न्यायिक सेवा नियम-2010 के नियम 33(4) के तहत परीक्षार्थी को हिन्दी व राजस्थानी बोलियों और सामाजिक रूढियों का पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए। इसे परीक्षा में शामिल नहीं करके राजस्थानवासियों के मौलिक
अधिकार पर हमला किया है।

धर्म की ना के बाद अदालत ने की हां

मुस्लिम लड़के व जट सिख लड़की के प्रेम विवाह को गुरुद्वारे व मस्जिद से इनकार के बाद पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट से राहत मिली है। दोनों ने हाईकोर्ट की शरण लेते हुए कहा कि वे शादी के लिए गुरुद्वारे गए थे लेकिन अलग अलग धर्म होने के कारण शादी करवाने से इनकार कर दिया गया, यही हाल मस्जिद में जाने पर हुआ।

ऐसे में दोनों ने विवाह के रस्मो रिवाजों को दरकिनार कर खुद ही एक दूसरे को माला पहना पति पत्नी मान लिया। हाईकोर्ट की जस्टिस दया चौधरी ने दोनों की सुरक्षा के लिए हाथ बढ़ाते हुए मोगा के एसएसपी को कानून के मुताबिक जरूरी कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं।

जिला मोगा निवासी कुलवंत कौर व जगरूप अली की तरफ से दाखिल याचिका में कहा गया कि उनकी जान माल की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। परिवार की इच्छा के खिलाफ प्रेम विवाह करने पर उन्हें झूठे पुलिस केस में फंसाया जा सकता है। याचिका में कहा गया कि दोनों ने 22 जून 2010 को घर छोड़ा था और इसके बाद से दोनों एक दूसरे के साथ पति पत्नी की तरह रह रहे हैं। दोनों ही परिवारों को यह शादी व रिश्ता स्वीकार नहीं है।

ऐसे में आशंका है कि उन्हें किसी झूठे केस में फंसाया जा सकता है और उनकी जान व माल को नुकसान पहुंचाया जा सकता है। याचिका पर प्राथमिक सुनवाई के बाद जस्टिस दया चौधरी ने मोगा के एसएसपी को कानून के मुताबिक

Thursday, September 2, 2010

अमेठी को नया जिला बनाने को सर्वोच्च न्यायालय की मंजूरी

सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की एक जुलाई की अधिसूचना पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ के स्थगन आदेश को खारिज कर दिया। राज्य सरकार ने छत्रपति शाहूजी महाराज नामक एक नए जिले के गठन की अधिसूचना जारी की थी।

मायावती सरकार ने सुल्तानपुर और रायबरेली जिलों में फैले अमेठी संसदीय क्षेत्र के हिस्सों को लेकर राज्य के 71वें जिले केगठन का फैसला किया था।

उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज करते हुए न्यायाधीश आर.वी. रविंद्रन और एच.एल.गोखले की खण्डपीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश को 'न्यायिक अनौचित्य' का कार्य बताया।

सर्वोच्च न्यायालय ने उल्लेख किया कि उच्च न्यायालय की एक अन्य खण्डपीठ ने 11 अगस्त को मामले की सुनवाई की थी और छत्रपति शाहूजी महाराज नगर जिले के गठन की राज्य सरकार की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया था।

बहुजन समाज पार्टी के कार्यकर्ता सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले को राज्य सरकार की कानूनी विजय के तौर पर देख रहे हैं।

बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश मिश्र ने लखनऊ में कहा, "मुख्यमंत्री की यह एक बहुत बड़ी जीत है, जिनका इरादा केवल स्थानीय जनता को मांग को देखकर अमेठी का दर्जा बढ़ाने का था।"

उन्होंने कहा, "हम अमेठी को वह देने जा रहे हैं जो गांधी परिवार दशकों में देने में विफल रहा।"