पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Thursday, December 31, 2009

पदोन्नति का आधार समायोजन की तारीख - उच्चतम न्यायालय


उच्चतम न्यायालय ने एक फैसला देते हुए कहा है कि विभिन्न प्रदेशों से केंद्रीय जांच ब्यूरो में प्रतिनियुक्ति पर आए अधिकारी वरिष्ठता का दावा ब्यूरो में अपने समायोजन की तिथि से कर सकते हैं न कि अपनी प्रतिनियुक्ति की तिथि से।
न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू और न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा की खंड पीठ ने यह फैसला दिल्ली उच्च न्यायालय के एक फैसले को पलटते हुए दिया है। उच्च न्यायालय ने सीबीआई के पुलिस उपाधीक्षक डीपी सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि उनकी पदोन्नति उनकी प्रतिनियुक्ति की तारीख 24 नवंबर, 1977 के आधार पर की जानी चाहिए, न कि उनके समायोजन की तारीख 29 जून, 1987 के आधार पर।
नियमानुसार विभिन्न प्रदेशों के पुलिस अधिकारी निश्चित अवधि के लिए सीबीआई में प्रतिनियुक्ति पर जाते हैं, जिसके बाद वापस अपने विभाग की ओर जा सकते हैं। नियमानुसार अधिकारी आपसी सहमति से सीबीआई में समायोजित भी हो सकते हैं।
अदालत द्वारा सिंह के पक्ष में फैसला दिए जाने के बाद सीबीआई ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।

पत्नी उठाए पति से "झगड़े" का खर्च-सुप्रीम कोर्ट


सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के मामले एक अनूठा फैसला देते हुए बीवी को बेरोजगार पति का कानूनी खर्च उठाने का निर्देश दिया है। आम तौर पर सीआरपीसी की धारा 125 के तहत तलाक के मुकदमे के दौरान पति का कर्तव्य माना जाता है कि वह पत्नी या उसके माता-पिता को मुकदमे के दौरान या तलाक के बाद गुजारा भत्ता दे।

न्यायाधीश दलवीर भंडारी की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह आदेश मद्रास निवासी संतोष के. स्वामी और बेंगलूरू में रह रही उनकी पत्नी इनेश मिरांडा के तलाक के मामले में यह आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कानून के शब्दों के बजाए उसकी भावनाओं को अहमियत देते हुए मिरांडा को निर्देश दिया कि वह मुकदमा लड़ने के लिए पति को 10 हजार रूपए दे।

यह है मामला

मिरांडा ने स्वामी पर घरेलू हिंसा का आरोप लगाते हुए बेंगलूरू की अदालत में तलाक की अर्जी दी थी। इसके बाद स्वामी ने मिरांडा के खुद संबंध तोड़ लेने का हवाला देते हुए चेन्न्ई की परिवार अदालत से दखल देने की अपील की थी। चेन्नई कोर्ट ने मिरांडा को हाजिर होने के निर्देश दिए। मिरांडा इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चली गई। मिरांडा का आरोप है कि स्वामी की तलाक की अर्जी के जवाब में उन्हें परेशान करने के लिए जानबूझकर चेन्नई में मामला दायर किया।

‘इंटरव्यू में मिले नंबर गोपनीय नही-सूचना आयोग


सूचना आयोग ने निर्देश दिए हैं कि साक्षात्कार में प्राप्तांक गोपनीय नहीं हैं। आयोग ने दिल्ली हाईकोर्ट के निर्णय की पालना में कहा कि जब परीक्षा समाप्त हो गई, अभ्यर्थियों को सफल घोषित कर दिया गया तो अभ्यर्थियों के प्राप्तांक सार्वजनिक अभिलेख हो जाते हैं और उनका खुलासा सूचना के अधिकार कानून के तहत किया जाना संभव है।

आयोग ने राजस्थान लोक सेवा आयोग को आदेश दिया कि वह प्रार्थी को प्राध्यापक पद, स्कूल शिक्षा इतिहास के साक्षात्कार के प्राप्तांक व चयनित अभ्यर्थियों के नाम व पते की सूचना आदेश प्राप्ति के 15 दिनों में बताए। आयोग ने आदेश नागौर निवासी सुभाष देवल की अपील को स्वीकार करते हुए दिया। मामले में प्रार्थी ने लोक सेवा आयोग से प्राध्यापक पद के साक्षात्कार में अभ्यर्थियों को दिए प्राप्तांक नाम व पता सहित उपलब्ध कराने का आवेदन किया, लेकिन आयोग ने उन्हें सूचना मुहैया नहीं कराई और कहा कि साक्षात्कार के प्राप्तांक गोपनीय होने से नहीं दिए। इसे सूचना आयोग में चुनौती दी गई।

Tuesday, December 29, 2009

प्रमोशन व वरिष्ठता के लिए अधिकरण में जाएं : राजस्थान हाई कोर्ट


राजस्थान हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि राजकीय कर्मचारी अपने प्रमोशन, वरिष्ठता, स्थायीकरण, पेंशन व अन्य सेवा के मामलों में सीधे हाई कोर्ट नहीं आएं बल्कि राजस्थान सिविल सेवा अपीलीय अधिकरण में अपील दायर करें। न्यायाधीश अजय रस्तोगी ने यह आदेश जयपुर निवासी कानसिंह की याचिका को खारिज करते हुए दिया।
न्यायाधीश ने आदेश में कहा कि राजस्थान सिविल सेवा अपीलीय अधिकरण अधिनियम 1976 के तहत राज्य कर्मचारियों के सेवा संबंधी मामलों के निपटारे के लिए अधीकरण गठित किया गया है। इसलिए राज्य के कर्मचारियों को सेवा संबंधी मामलों के निपटारे के लिए हाई कोर्ट में आने से पहले अपीलीय अधिकरण में अपील दायर की जानी चाहिए। याचिका में सार्वजनिक निर्माण विभाग की वरिष्ठता के आधार पर सहायक अभियंता से अधिशासी अभियंता के पद पर की गई विभागीय पदोन्नति को चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा कि पदोन्नति की प्रक्रिया सही नहीं है अप्रार्थी जीतेन्द्र कुमार को गलत पदोन्नति दी गई है, क्योंकि 21 पदों पर पदोन्नति होनी थी और उसमें तीन पदों पर एससी वर्ग के अभ्यर्थियों को पदोन्नति दी जानी थी। लेकिन विभाग ने दो पदों पर ही एससी वर्ग के अभ्यर्थियों को पदोन्नति दी है। यदि जीतेन्द्र कुमार को पदोन्नति नहीं दी जाती तो वह तीसरी जगह पर पदोन्नत होता। लेकिन न्यायाधीश ने याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता को स्वतंत्रता दी कि वह राहत के लिए अपीलीय अधिकरण में जाए।

चीफ जस्टिस बिना फन सांप समान : हाईकोर्ट जज


न्यायमूर्ति दिनाकरन पर उपजे विवाद के बाद भारत के प्रधान न्यायाधीश के नैतिक प्राधिकार की क्षमता पर सवाल उठाते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश ने कहा कि शीर्षस्थ न्यायाधीश बिना फन के सांप जैसे हैं, जो सिर्फ फुफकार सकते हैं, लेकिन काट नहीं सकते।
कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश डी वी शैलेंद्र कुमार ने शीर्ष न्यायपालिका को एक बार फिर आड़े हाथों लेते हुए दागी न्यायाधीशों के खिलाफ कदम उठाने के उसके ‘नैतिक प्राधिकार' की क्षमता पर सवाल उठाये हैं।
उन्होंने मौजूदा प्रणाली के तहत ऊपरी अदालतों के न्यायाधीशों पर चलायी जाने वाली महाभियोग कार्यवाही की प्रभाव क्षमता पर भी संदेह प्रकट किया है। न्यायमूर्ति कुमार ने कर्नाटक स्टेट एडवोकेट्स कॉन्फ्रेंस की स्मारिका में ‘न्यायिक जवाबदेही' पर लिखे अपने लेख में कहा है कि न्यायिक जवाबदेही एक मुहावरा है जो सुनने में असंगत लगता है और इसके विरोधाभासी अर्थ हो सकते हैं। न्यायमूर्ति कुमार का यह लेख उनके ब्लॉग पर भी उपलब्ध है।
जमीन कब्जा करने के आरोपों का सामना कर रहे कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पी डी दिनाकरन की ओर संकते करते हुए उन्होंने लिखा है कि न्यायिक अधिकारियों और यहां तक कि ऊपरी अदालतों के जजों के कामकाज के अनुचित और अनियमित तौर तरीकों को देखते हुए इस मुहावरे की अहमियत बढ़ गयी है। न्यायमूर्ति कुमार ने न्यायमूर्ति दिनाकरन के पीठ के कामकाज से दूर होने के बावजूद प्रशासनिक कार्यों में भाग लेने की आलोचना की है। दिनाकरन मुद्दे पर चल रहे घटनाक्रम के संदर्भ में भारत के प्रधान न्यायाधीश के नैतिक प्राधिकार पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि यह धारणा गलत है कि न्यायपालिका के प्रमुख के तौर पर भारत के प्रधान न्यायाधीश इस नैतिक अधिकार का अनियमित आचरण करने वाले न्यायाधीश को दुरुस्त करने में प्रयोग कर सकते हैं।
न्यायमूर्ति कुमार ने लिखा है कि भारत के प्रधान न्यायाधीश की महज नैतिक जिम्मेदारी का कोई महत्व नहीं है जब तक कि उसका कोई बाध्यकारी प्रावधान न हो जिसका संविधान में कोई प्रावधान नहीं है। उन्होंने लिखा है कि जहां तक ऐसे मामलों का सवाल है भारत के प्रधान न्यायाधीश की स्थिति बिना दांत वाले सांप के समान है। वह फुफकार तो सकते हैं लेकिन काट नहीं सकते। यह जल्द ही सबके सामने जाहिर हो जाएगा और तब इस सांप से कोई नहीं डरेगा। चाहे वह कितना ही डरावना क्यों न दिखे और वह कितनी ही जोर से क्यों न फुफकारे। दुर्भाग्य से यही सच है।

सिर पर कुल्हाड़ी मारने से सेप्टिसीमिया होने के कारण हुई मौत दुर्घटना न कि प्राकृतिक।


राज्य उपभोक्ता आयोग,जयपुर ने बीमा अवधि के दौरान बीमित के सिर पर कुल्हाड़ी मारने से सेप्टिसीमिया होने के कारण हुई मौत को दुर्घटना माना है। आयोग ने कहा कि इस स्थिति में मृत्यु को दुर्घटना माना जाएगा न कि प्राकृतिक। आयोग ने पाली निवासी वर्षा बेन की अपील पर एलआईसी को निर्देश दिए कि दुर्घटना बीमा राशि 3 लाख रुपए 9 प्रतिशत ब्याज सहित दे।

आयोग अध्यक्ष न्यायाधीश सुनील गर्ग, सदस्य विमला सेठिया ने आदेश में कहा कि बीमित की मृत्यु घटना के 180 दिन से ज्यादा अवधि के बाद हुई। आयोग ने ये आदेश जिला उपभोक्ता मंच पाली के 26 मई, 05 के उस आदेश को निरस्त करके दिया, जिसमें परिवाद को यह कहकर खारिज किया था कि उनके पति की मृत्यु दुर्घटना से नहीं हुई थी।

सुरेश बी.पटेल ने 28 मार्च,99 को 3 लाख की दुर्घटना पॉलिसी ली थी। 12 जनवरी,01 को किसी ने सिर में कुल्हाड़ी मारी, जिससे वह अचेत हो गया और उसे सेप्टिसीमिया हो गया। बीमा कंपनी ने प्राकृतिक मौत बता क्लेम खारिज कर दिया था।

रुचिका को बाहर करने वाले स्कूल के खिलाफ जनहित याचिका ।


चंडीगढ़ के जिस स्कूल में रुचिका पढ़ती थी, उसके खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की जाएगी। सेक्रेड हर्ट नामक इस स्कूल में रुचिका नर्सरी से ही पढ़ रही थी। लेकिन छेड़छाड़ कांड के बाद उसे बिना कुछ बताए ही निकाल दिया गया था। स्कूल प्रशासन ने यह कदम पूर्व डीजीपी एसपीएस राठौर के दबाव के कारण उठाया था। हालांकि बाद में स्कूल की तरफ से यह सफाई दी गई थी कि रुचिका की फीस जमा नहीं हुई थी। लेकिन रुचिका के परिवार वालों ने इस तर्क को मानने से इंकार कर दिया था।
भाई पर 11 मामले दर्ज होना पिता के खिलाफ थाने में डकैती की शिकायत और फिर स्कूल से निकाला जाना रुचिका को शर्मसार करने के लिए काफी रहा। इन्हीं परिस्थितियों में रुचिका ने आत्महत्या की। परिस्थितियों को यहां से भांप सकते हैं कि रुचिका के आत्महत्या करने के समय उसका भाई आशु पुलिस हिरासत में था। उसे अपनी बहन के अंतिम संस्कार में शामिल भी नहीं होने दिया गया। संस्कार के समय उसे बेसुध हालत में गली में फेंक दिया गया। पिता के खिलाफ भी पंचकूला के सेक्टर -पांच पुलिस थाने में डकैती की शिकायत दी गई। पुलिस ने डीडीआर तो की लेकिन एसएचओ ने इसे एफआईआर में तबदील नहीं किया। इन सभी घटनाओं का जिक्र करते हुए स्वयं सेवी संस्था वल्र्ड हयूमन राइट्स प्रोटेक्शन काउंसिल के चेयरमैन वकील रंजन लखनपाल पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में मंगलवार को जनहित याचिका दायर कर रहे हैं। रुचिका ने 29 दिसंबर 1993 को खुदकुशी की थी। याचिका में हरियाणा सरकार के गृह विभाग, डीजीपी, एसपीएस राठौर, सीबीआई व सेक्रेड हार्ट स्कूल के प्रिंसीपल को प्रतिवादी बनाया गया है। याचिका में घटना के पहले दिन से फैसला आने तक के समय पर निष्पक्ष जांच कराने की मांग की गई है।

याचिका में रुचिका के चंडीगढ़ सेक्टर-26 स्थित सेक्रेड हार्ट स्कूल को भी प्रतिवादी बनाया है। याचिका में कहा गया कि रुचिका कक्षा में सारा दिन रोती रहती थी। रुचिका को सहारा देने अथवा काउंसलिंग करने की जगह उसे स्कूल से ही निकाल दिया गया। आरोप है कि ऐसा रुचिका से छेड़छाड़ के दोषी पूर्व डीजीपी एसपीएस राठौर की बेटी को राहत पहुंचाने के लिए किया गया। राठौर की बेटी भी उसी स्कूल में पढ़ती थी। याचिका में कहा गया कि स्कूल का यह रवैया असहनीय है। ऐसे में स्कूल प्रबंधन के खिलाफ भी उचित कार्रवाई की जाए।

याचिका में सीबीआई की भूमिका पर भी सवाल उठाते हुए कहा गया कि सीबीआई की तरफ से राठौर पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) लगाए जाने की कोशिश नहीं की गई। उल्टे इस मामले में आईपीसी का धारा 305 (नाबालिग को आत्महत्या के लिए उकसाने) लगाई जानी चाहिए। इस धारा के तहत 10 वर्ष के कारावास से लेकर आजीवन कारावास तक का प्रावधान है। याचिका में इस मामले का उदाहरण देते हुए मांग की गई कि जहां आरोपी समाज में किसी प्रभावशाली पद पर है, उन मामलों की सुनवाई पर दिशा निर्देश दिए जाएं। हाईकोर्ट में इस समय अवकाशकालीन बेंच कार्यरत है। उम्मीद की जा रही है कि हाईकोर्ट के नियमित कामकाज के पहले दिन छह जनवरी को इस मामले पर सुनवाई होगी।


शिक्षा सचिव रामनिवास ने मधु प्रकाश की शिकायत पर रुचिका मामले में सेक्रेड हार्ट स्कूल सेक्टर 26 के खिलाफ जांच के आदेश दे दिए हैं। जांच का जिम्मा एसडीएम (साउथ) प्रेरणा पुरी को सौंपा गया है। शिकायत के अनुसार रुचिका ने 25 अगस्त 1990 तक क्लास अटेंड की, लेकिन स्कूल फीस को जमा न कराने के कारण उसे स्कूल से निकाल दिया गया। अब जांच में यह सामने लाया जाएगा कि रुचिका ने फीस जमा करवाई थी या नहीं? क्या स्कूल प्रशासन ने रुचिका को कोई नोटिस भेजा था या फाइन किया था?

अग्रिम जमानत मंजूरी में तथ्यों पर विचार जरुरी


उच्चतम न्यायालय ने अपने एक अहम फ़ैसले में व्यवस्था दी है कि किसी भी मामले में तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर ही अग्रिम जमानत के आवेदन पर निर्णय लिया जाना चाहिए क्योंकि इससे व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सवाल जुड़ा है जिसे हल्के में नहीं लिया जा सकता. न्यायमूर्ति तरुण चटर्जी और न्यायमूर्ति सुरिंदर सिंह निज्जर की खंडपीठ ने धोखाधड़ी से जुडे एक मामले में अग्रिम जमानत मंजूर करते हुए यह व्यवस्था दी. खंडपीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार नहीं कर बहुत बड़ी कानूनी भूल की है. उच्च न्यायालय को तथ्यों और परिस्थितियों की जांच में अपने विवेक के इस्तेमाल की जरत थी. यदि उसे उपयुक्त जान पड़ता तो वह जमानत मंजूर करता. खंडपीठ ने कहा कि यह स्पष्ट व्यवस्था है कि जबतक आवेदनकर्ता गिरफ्तार नहीं किया जाता, तब तक कभी भी उसे अग्रिम जमानत मंजूर की जा सकती है. उल्लेखनीय है कि आवेदनकर्ता रबीना सक्सेना ने अग्रिम जमानत के लिए तीन बार राजस्थान उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन तीनों बार उसे नामंजूर कर दिया गया. श्री सक्सेना के अनुसार संबंधित विवाद दीवानी प्रकृति का है और शिकायतकर्ता अवकाश प्राप्त पुलिस अधिकारी के बेटे ने दीवानी मामले वापस लेने के वास्ते उस पर दवाब बनाने के लिए उसके खिलाफ़ झूठे मामले दर्ज किए हैं.

Wednesday, December 23, 2009

चार्जशीट के आधार पर अग्रिम जमानत से इनकार नहीं-सुप्रीम कोर्ट


सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केवल पुलिस के आरोपपत्र में किसी व्यक्ति को आरोपित किए जाने के आधार पर अदालत उसे अग्रिम जमानत देने से इनकार नहीं कर सकती। न्यायाधीश तरूण चटर्जी और न्यायाधीश सुरिंदर सिंह की खण्डपीठ ने जयपुर के रविन्द्र सक्सेना के मामले में यह फैसला सुनाया।

सक्सेना पर प्रोपर्टी डीलर करण सिंह ने आरोप लगाया था कि वर्ष 2007 में अनुबन्ध पर हस्ताक्षर करने के बाद भी उन्हें फ्लैट नहीं बेचा गया था। सिंह ने सक्सेना के पिता और मां के खिलाफ भी धोखाधड़ी का आरोप लगाया था। जयपुर की एक अदालत ने एक बार व राजस्थान हाईकोर्ट ने दो बार सक्सेना की जमानत याचिका को खारिज कर दिया था।

राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत नहीं दिए जाने पर खण्डपीठ ने कहा कि हमारे विचार से हाईकोर्ट ने कानून के अनुसार बड़ी गलती की है। न्यायालय ने मामले की परिस्थितियों को नहीं समझा। हाईकोर्ट को परिस्थितियों और तथ्यों की जांच कर विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए था। सुप्रीम कोर्ट ने अंतत: सक्सेना को 15 दिसम्बर को जमानत दे दी। जमानत सन्बन्धी फैसला शनिवार शाम जारी किया गया था। खंडपीठ ने फैसला अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 438 के तहत सुनाया।

मनमोहन की नियुक्ति वैधता याचिका खारिज,याची पर 10 हजार रूपये हर्जाना।


इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने मनमोहन सिंह की प्रधानमंत्री पद पर नियुक्ति की वैधता को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका याची को 10 हजार रूपये हर्जाना अदा करने के आदेश देने के साथ खारिज कर दी। न्यायमूर्ति एस.पी. मेहरोत्रा एवं न्यायमूर्ति अनिल कुमार की खण्डपीठ ने यह निर्णय अवकाश प्राप्त मेजर एस.एन. त्रिपाठी की जनहित याचिका पर पारित किया। पूर्व में खण्डपीठ ने फैसला सुरक्षित कर लिया था जिसे न्यायमूर्ति अनिल कुमार ने सुनाया। याची का कहना था कि मनमोहन सिंह ने जब प्रधानमंत्री के रूप में पदभार ग्रहण किया वह समय कानूनी प्रावधानो के खिलाफ था। क्योकि संसद भंग होने और गठित होने के बीच अंतर था।
उधरकेन्द्र सरकार की ओर से अधिवक्ता आर.पी. शुक्ल ने याचिका का कड़ा विरोध करते हुए कहा था कि यह याचिका महज सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए दायर की गयी है।

वसुंधरा सहित 14 के खिलाफ मुकदमा दर्ज होगा


दीनदयाल ट्रस्ट की मूल फाइल देवस्थान विभाग से गायब होने के मामले में जयपुर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, भाजपा के वरिष्ठ नेता ललित किशोर चतुर्वेदी,भंवर लाल शर्मा और देवस्थान विभाग के दो अधिकारियों सहित चौदह लोगों के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 156 में मुकदमा दर्ज करने को लेकर जयपुर के माणक चौक थाना पुलिस को निर्देश दिए है।

मजिस्ट्रेट ने यह आदेश श्रीकृष्ण कुक्कड़ की इस्तगासा की सुनवाई पर दिए। इस्तगासा में फाइल गायब कराने की आशंका जताते हुए आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने की बात कही गई थी। इस पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह निर्णय दिया। अब पुलिस संबंधितों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की कार्रवाई करेगी। पिछले दिसंबर में नई सरकार के सत्ता में आने के बाद फरवरी में पता चला कि देवस्थान विभाग के सहायक आयुक्त कार्यालय प्रथम से दीनदयाल उपाध्याय चेरिटेबल ट्रस्ट के पंजीयन की मूल गायब है। खोजबीन में पता चला कि सरकार बदलने से पहले से ही देवस्थान विभाग के मूवमेंट रजिस्टर में इस फाइल की चाल ही दर्ज नहीं है। इस बात की जानकारी सामने आने के बाद देवस्थान विभाग के मंत्री बृजकिशोर शर्मा ने अधिकारियों को पत्र लिखकर दोषियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने के निर्देश दिए।

लेकिन मामले की प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई गई। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की अध्यक्षता वाले दीनदयाल उपाध्याय ट्रस्ट को भाजपा सरकार ने जयपुर के सी-स्कीम इलाके में राजमहल होटल के निकट करोड़ों की जमीन कौड़ियों में आवंटित कर दी थी।

Saturday, December 19, 2009

दलित होने के कारण निशाना बनाया-कांग्रेस सांसद


कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पीडी दिनकरन के खिलाफ महाभियोग चलाने की कवायद को कांग्रेस के दो सांसदों ने राज्यसभा में नया मोड़ देने की कोशिश की। कांग्रेस के प्रवीण राष्ट्रपाल और जेडी सलीम ने शुक्रवार को शून्यकाल में यह मामला उठाते हुए कहा कि दिनकरन को दलित होने की वजह से निशाना बनाया जा रहा है। 
पीठासीन अधिकारी पीजे कुरियन ने इस मामले को उठाने की अनुमति नहीं दी, लेकिन सदस्य आरोप लगाने से बाज नहीं आए। उल्लेखनीय है कि राज्यसभा के सभापति ने 75 सदस्यों के हस्ताक्षर से युक्त महाभियोग याचिका को विचारार्थ स्वीकार किया है। याचिका पर भाजपा, सपा और वामदलों के सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं। लेकिन कांग्रेस ने इस मसले पर अपना कोई रुख तय नहीं किया है।


कॉलेजियम के प्रमुख देश के चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन ने शुक्रवार को बताया कि जस्टिस दिनकरन पर जमीन पर कब्जा करने के आरोपों को लेकर राज्यसभा में शुरू की गई महाभियोग की कार्यवाही को देखते हुए कॉलेजियम ने अपनी सिफारिश को निलंबित रखने का फैसला किया है। समझा जाता है कि कॉलेजियम ने गुरुवार शाम को हुई अपनी बैठक में यह फैसला किया।

मीडिया से रूबरू सही ट्रेंड नहीं : दिल्ली हाईकोर्ट


दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि सुनवाई के बाद वकीलों द्वारा मीडिया से रूबरू होना सही ट्रेंड नहीं है। न्यायालय ने कहा कि आमतौर पर वकील खुद ही मीडिया को अपडेट करते हैं। चीफ जस्टिस अजीत प्रकाश शाह और न्यायमूर्ति एस मुरलीधर की खंडपीठ ने बार कौंसिल ऑफ इंडिया को इस मामले में कोई निर्णय लेने के लिए कहा है। खंडपीठ ने कहा कि लंबित मामले की सुनवाई के बाद वकील अदालत परिसर से बाहर जाकर मीडिया को सारी बातें बताते हैं, जो परेशानी वाली बात है।
उधर सॉलीसीटर जनरल ने कहा कि लोगों तक खबर पहुंचाना मीडिया का काम है। लेकिन उन्होंने इस याचिका की प्रशंसा करते हुए कहा कि इस मसले में सरकार, प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया और याचिकाकर्ता को आपस में बैठकर विचार करना चाहिए। न्यायालय एक गैर सरकारी संस्था द्वारा दाखिल याचिका पर दिया है। संस्था ने याचिका में गत वर्ष 19 सितंबर को हुए बटला हाउस एनकाउंटर मामले से संबंधित कथित आरोपियों के इकबालिया बयान को मीडिया तक पहुंचाने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करने की गुहार की गई थी।
याचिकाकर्ता संगठन की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण का कहना है कि पुलिस अधिकारी द्वारा संवाददाता सम्मेलन आयोजित करना और प्रेस रिलीज जारी करने पर भी यह सिद्धांत लागू होता है। उन्होंने कहा कि यह तय करना अदालत का काम है कि कोई व्यक्ति निर्दोष है या गुनहगार। किसी व्यक्ति के दोषी होने या न होने संबंधी बयान अदालत को छोड़़कर मीडिया के समक्ष देना गलत है। पुलिस अधिकारियों को इसके लिए दोषी ठहराया जाना चाहिए। इससे पहले हाईकोर्ट ने कहा था कि गंभीर मामलों की रिपोर्टिंग करते वक्त मीडिया को अपनी हद तय करनी चाहिए।

Friday, December 18, 2009

आसाराम को सुप्रीम कोर्ट में भी राहत नहीं।


गुजरात के आध्यात्मिक गुरु आसाराम बापू को कोई राहत  देने से सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इनकार कर दिया। आसाराम बापू ने हत्या की कोशिश के एक मामले में अपनी गिरफ्तारी से राज्य पुलिस को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी।

आसाराम बापू के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी कि जब तक विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई नहीं होती, पुलिस को उनके मुवक्किल को गिरफ्तार करने से रोका जाए। लेकिन जस्टिस अल्तमस कबीर और दीपक वर्मा की बेंच ने उनकी यह दलील ठुकरा दी। गुजरात पुलिस द्वारा 6 दिसंबर को अपने खिलाफ दर्ज हत्या की कोशिश के मामले को चुनौती देते हुए आसाराम बापू ने विशेष अनुमति याचिका दाखिल की है। बेंच ने इस पर सुनवाई के लिए 4 जनवरी की तारीख मुकर्रर करते हुए कहा कि हम ऐसा कोई आदेश नहीं देंगे।

दिनाकरन के खिलाफ महाभियोग याचिका मंजूर, इस्तीफा नहीं देंगे दिनाकरन,


राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी ने गुरुवार को कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पी.डी. दिनाकरन के खिलाफ महाभियोग चलाने के लिए 75 सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित याचिका स्वीकार कर ली। दिनाकरन पर भूमि घोटाले का आरोप है। हालांकि यह महाभियोग प्रस्ताव पारित हो पाएगा, इसमें संदेह है।
उपराष्ट्रपति कार्यालय के एक अधिकारी ने बताया कि सभापति ने दिनाकरन को हटाने संबंधी 75 सांसदों के हस्ताक्षर वाली याचिका स्वीकार कर ली है। मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में यह याचिका सोमवार को अंसारी को सौंपी गई थी।
 दिनाकरन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का भविष्य हालांकि अनिश्चित है क्योंकि इस याचिका पर कांग्रेस के किसी भी सदस्य ने हस्ताक्षर नहीं किए हैं। 
 किसी भी कार्यरत न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का यह तीसरा मामला है। पिछले साल प्रधान न्यायाधीश के. जी. बालाकृष्णन की सिफारिश पर राज्यसभा ने वित्तीय अनियमितता के मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन के खिलाफ तीन सदस्यीय समिति गठित की थी।
इससे पहले वर्ष 1993 में न्यायाधीश वी. रामास्वामी के खिलाफ महाभियोग लाया गया था लेकिन यह सफल नहीं रहा था। उस मामले में तीन सदस्यीय समिति ने जांच की थी और न्यायाधीश को भ्रष्टाचार का दोषी पाया था लेकिन जब प्रस्ताव को मतदान के लिए लोकसभा में पेश किया गया तो कांग्रेस ने इसमें हिस्सा नहीं लिया और यह प्रस्ताव पारित नहीं हो सका था।
दिनाकरन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की स्थिति तब पैदा हुई है, जब सर्वोच्च न्यायालय के पांच वरिष्ठ न्यायाधीशों की समिति और केंद्र सरकार ने दिनाकरन को सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नत न करने का फैसला किया है।
महाभियोग का प्रस्ताव लाने के लिए राज्यसभा के कम से कम 50 या फिर लोकसभा के 100 सांसदों के हस्ताक्षर की जरूरत होती है। हस्ताक्षरों की जांच के बाद संबंधित याचिका राज्यसभा के सभापति अथवा लोकसभा अध्यक्ष को सौंप दी जाती है।
हस्ताक्षरित याचिका पाने के बाद राज्यसभा के सभापति तीन सदस्यीय समिति गठित करते हैं, जिसमें एक सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश, एक उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और एक न्यायविद् शामिल होता है। यह समिति आरोपों की जांच करती है और अपनी रिपोर्ट सदन को सौंप देती है।
यदि यह समिति दिनाकरन को दोषी पाती है और उन्हें पद से हटाने की सिफारिश करती है तो मामले को संसद में मतदान के लिए पेश किया जाएगा। वहां दोनों सदनों में यह प्रस्ताव दो तिहाई बहुमत से पारित होने पर ही दिनाकरन के पद से हटने का रास्ता साफ हो पाएगा।

उधर पी. डी. दिनाकरन ने इस्तीफा देने की संभावना खारिज करते हुए राज्यसभा में अपने खिलाफ पेश महाभियोग प्रस्ताव को दुर्भाग्यपूर्ण बताया.

न्यायमूर्ति दिनाकरन ने तमिलनाडु में जमीन हड़पने के अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों को ‘‘निराधार और गलत’’ बताया. उन्होंने कहा कि वह साबित कर सकते हैं कि उनके परिवार के पास सीमा से ज्यादा जमीन नहीं है. कर्नाटक के मुख्य न्यायाधीश से जब पूछा गया कि अपने खिलाफ पेश महाभियोग प्रस्ताव और वकीलों के विरोध प्रदर्शन के परिदृश्य में क्या वह हट जाएंगे तो उनका जवाब था, ‘‘हटने का सवाल कहां उठता है.’’

राज्यसभा में अपने खिलाफ पेश महाभियोग प्रस्ताव पर उन्होंने कहा कि यह अपने आप में कोई साध्य नहीं है और उसके आधार पर कुछ भी निर्धारित नहीं किया जा सकता. न्यायमूर्ति दिनाकरन ने कहा, ‘‘मैं बस यही कह सकता हूं कि यह एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है. दुर्भाग्यपूर्ण मेरे दृष्टिकोण से नहीं, दुर्भाग्यपूर्ण रिकॉर्ड पर उपलब्ध समूचे यथार्थ को और समूचे तथ्य पर विचार नहीं करने के लिए.’’

बलात्कार पीडिता की दया मृत्यु याचिका मंजूर


मुंबई के एक अस्पताल में 36 साल से अपंग पड़ी महिला के लिए मौत की इजाजत मांगने वाली याचिका को बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया। चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन और जस्टिस एके गांगुली ने कहा कि वह भारतीय कानून के तहत किसी को भी मरने की इजाजत नहीं दे सकते। इस पूरी घटना पर केंद्र और महाराष्ट्र सरकार से जवाब भी तलब किया गया है।
मालूम हो कि 1973 में अरुणा के साथ मुंबई के केईएम अस्पताल में एक सफाई कर्मचारी ने दुष्कर्म किया था। सोहनलाल नाम के इस शख्स ने अरुणा का गला एक चेन से बांध दिया और उसके साथ बलात्कार किया। यह हादसा अरुणा के लिए इतना खौफनाक रहा कि वह उसके बाद अपंग हो गयी। 36 साल बाद भी जब उसकी हालत में कोई सुधार नहीं आया, तब उसने अपनी दोस्त के जरिए यह याचिका कोर्ट में डलवायी।
अरुणा के वकील ने दलील दी है कि आम लोगों की तरह अरुणा को अच्छी जिंदगी जीने का हक है, लेकिन जिस तरह की जिंदगी उसे गुजारनी पड़ रही है, वह उसके लिए मौत से कम भी नहीं।

दीनदयाल ट्रस्ट की जांच पर रोक।


राजस्थान हाईकोर्ट ने दीनदयाल ट्रस्ट प्रकरण मे आपराधिक जांच पर रोक लगा दी है। न्यायाधीश के एस राठौड की एकलपीठ ने यह आदेश विधायक अशोक परनामी की और से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए ।
याचिका मे कहा गया था कि प्रस्तुत पूरी तरह से राजनिति से प्रेरित है। प्रकरण मे जमीन को हस्तान्तरण नही किया गया है इसलिए धोखाधडी नहीं हुई हैं। याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने आपराधिक जांच पर रोक लगा दी । गोरतलब है कि शहर की निचली अदालत के आदेश पर गत 12 जनवरी को दीनदयाल ट्रस्ट प्रकरण मे एफआईआर दर्ज हुई थी। इसके बाद पुलिस ने जांच आंरभ की थी।

चारा घोटाला मामला: 18 आरोपियों को सजा


करो़डों रूपये के चारा घोटाला मामले में केन्द्रयी जांच ब्यूरों (सीबीआई) रांची की विशेष अदालत ने 18 आरोपियों को दो से छह साल की सजा सुनाई। अदालत ने रांची कोषागार से फर्जी तरीके से 8.60 करो़ड रूपये निकालने के लिए आरोपियों पर 26 लाख रूपये का जुर्माना भी किया।
सीबीआई की अदालत के विशेष न्यायाधीश एस.के.दुबे ने गुरूवार को 48 आरोपियों को दोषी करार दिया था। इनमें से आठ को उसी दिन से तीन वर्ष की सजा सुनाई गई थी। अन्य दोषियों को बुधवार को सजा सुनाई जाएगी। इस मामले में कुल 58 आरोपी थे जिनमे से चार की सुनवाई के दौरान मौत हो चुकी है।
चारा घोटाले का खुलासा वर्ष 1996 में बिहार में हुआ था। बिहार से वर्ष 2000 में झारखंड राज्य के गठन के बाद 61 मामलों को झारखंड स्थानांतरित कर दिया गया था। सीबीआई की विशेष अदालत अब तक 32 मामलों में फैसला सुना चुकी हैं।

ज़रदारी को माफ़ी देने वाला अध्यादेश रद्द


पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी को माफ़ी देने वाले अध्यादेश को रद्द कर दिया है. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस इफ़्तिख़ार मोहम्मद चौधरी की अगुवाई वाली 17 जजों की बेंच ने माफ़ी वाले अध्यादेश को अवैध और असंवैधानिक करार दिया. सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले का असर ज़रदारी समेत आठ हज़ार से ज़्यादा नेताओं और अफ़सरों पर पड़ेगा. इस आदेश के बाद कई वरिष्ठ नेताओं के ख़िलाफ़ मुकदमे पहले की तरह चलने लगेंगे. इससे पहले अक्टूबर 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने एनआरओ नामके इस अध्यादेश के ज़रिए कई नेताओं को राहत दी थी. अध्यादेश के चलते ज़रदारी समेत अन्य लोगों के ख़िलाफ़ मुकदमें बिना सुनवाई के बंद हो गए थे. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि मुक़दमे 2007 वाली स्थिति से ही बहाल होंगे. हालांकि आसिफ़ अली ज़रदारी पर इस फ़ैसले का तब तक कोई असर नहीं पड़ेगा, जब तक वह राष्ट्रपति पद पर बने हुए हैं.

हिंदू मैरिज एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती


हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13बी की वैधानिकता को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। इस धारा के मुताबिक पत्नी को तलाक का मामला पेश करने के लिए पति की सहमति लेना आवश्यक है।

चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन की अगुवाई वाली बेंच ने पूर्व केंद्रीय मंत्री सुशील कुमार शिंदे की बेटी स्मृति शिंदे की याचिका पर नोटिस जारी किया है। कोर्ट में पेश स्मृति के वकील हरीश साल्वे ने कहा कि तलाक मांगने के महिला के अधिकार को पति की सहमति पर निर्भर करना संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत महिला को मिले मौलिक अधिकारों का हनन है। स्मृति ने इससे पहले आपसी सहमति से तलाक का आवेदन किया था, लेकिन सुनवाई के दौरान उनके पति ने अपनी अनुमति वापस ले ली थी। इस आधार पर निचली कोर्ट ने स्मृति को तलाक देने से इनकार कर दिया था। बांबे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले को बहाल रखा।

याचिका में कहा गया है कि शादी के बाद अपने पति के साथ मानसिक और भावनात्मक रूप से तालमेल नहीं बिठा पा रही किसी महिला को कानून उसी विवाह बंधन में बंधे रहने के लिए बाध्य नहीं कर सकता।

Tuesday, December 15, 2009

कोर्ट ने कहा उम्रकैद,,जीवन भर के लिए होती है ।


उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि हत्या के मामलों में उम्र कैद की सजा पाए दोषी लोग न्यूनतम 14 साल कैद में गुजारने के बाद विशेष संवैधानिक प्रावधानों को छोड़कर रिहाई के किसी अधिकार का दावा नहीं कर सकते। शीर्ष अदालत ने आगे कहा कि उम्र कैद के मामले में दोषी को न्यूनतम 14 साल कारावास गुजारना चाहिए।

न्यायमूर्ति अल्तमास कबीर और न्यायमूर्ति साइरिएक जोसफ ने छत्तीसगढ़ सरकार को यह निर्देश देने के दौरान यह टिप्पणी कि वह उम्र कैद की सजा काट रहे एक दोषी रामराज के कम से कम 20 साल कारावास को सुनिश्चित कराए।

गोडसे के मामले में निर्णय के बाद आए विभिन्न फैसलों में बार-बार कहा गया कि उम्र कैद के मायने दोषी के प्राकृतिक जीवनकाल तक कारावास में रहने से हैं। हालांकि, माफी मिलने के चलते कारावास की वास्तविक अवधि कम हो सकती है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि लेकिन संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति को मिले अधिकारों के संभावित अपवाद और अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल को प्रदत्त अधिकार के तहत माफी मिलने पर भी उम्र कैद की सजा कम कर 14 वर्ष तक हो सकती है। शीर्ष अदालत ने रामराज की अपील खारिज कर दी, जिसने दावा किया था कि वह उसे मिली माफी के तहत अवधि की गणना के बाद 14 साल बाद रिहाई का हकदार है।



अमित यादव आत्महत्या प्रकरण ३ आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट


अमित यादव आत्महत्या प्रकरण में  आज न्यायालय ने सी.आई.डी. (सी.बी.) को तीनों पुलिसकर्मियों की गिरफ्तारी के वारन्ट जारी कर दिये। यादव आत्महत्या प्रकरण में भीलवाड़ा के साथ ही समूचे प्रदेश की पुलिस अपने ही महकमे के इंसपेक्टर, थानेदार व कांस्टेबल को गिरफ्तार नहीं कर पाई है। इसके विरोध में भीलवाड़ा में पिछले २५ दिनों से अदालती कामकाज ठप्प है वहीं अधिवक्ता धरने पर बैठे है।
इस बीच  सी.आई.डी.सी.बी. के आवेदन पर भीलवाड़ा के न्यायिक मजिस्ट्रेट ने आज तीनों पुलिसकर्मियों के  गिरफ्तारी वारन्ट जारी कर दिये।
उधर, अधिवक्ता संघर्ष समिति के संयोजक अरूण व्यास ने बताया कि मंगलवार को अधिवक्ता मौन जुलूस निकालकर कलेक्टर को ज्ञापन देंगे।

नकली दूध-मावा बनाने वाले दो लोगों को उम्रकैद।


एडीजे कोर्ट संख्या 21 बुलंदशहर  न्यायालय ने यूरिया मिलाकर दूध और मावा बनाने वाले दो लोगों को आजीवन कारावास व 50-50 हजार का अर्थदंड दिया है।

अपर जिला शासकीय अधिवक्ता प्रताप सिंह अंबा के अनुसार एसओ गुलावठी आदिल रसीद ने 20 फरवरी 2008 को रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि रात्रि गश्त के दौरान उन्होंने सूचना पर ओमी कुम्हार के घेर में छापा मारकर मौके से ओमप्रकाश व किशोर कुमार को पकड़ लिया था। इनके पास से भारी मात्रा व यूरिया और नकली दूध-मावा बनाने में प्रयुक्त किया जा रहा कच्चा माल बरामद हुआ था। चार कुंतल नकली दूध और मावा भी बरामद हुआ। पुलिस ने दोनों आरोपियों के विरुद्ध आईपीसी की धारा 272 व 273 के अभियोग दर्ज किया।  एडीजे कोर्ट संख्या 21 महेश नौटियाल ने सुनवाई में आरोपों को सही पाया। न्यायाधीश ने ओमी उर्फ ओमप्रकाश और किशोर कुमार को कठोर आजीवन कारावास और पचास-पचास हजार रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई है।

नकली दूध-मावा बनाने के आरोपियों को सजा तत्कालीन एसओ आदिल रसीद द्वारा की गई कार्रवाई के कारण ही संभव हो सकी। आदिल रसीद ने अभियोग को खाद्य अपमिश्रण की धाराओं में दर्ज करने की बजाय आईपीसी की धाराओं में दर्ज किया था। यदि मामला खाद्य अपमिश्रण की धाराओं में दर्ज किया गया होता तो आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया जाता। इसके साथ ही उनको नमूनों का कोड बताया जाता। इसके अलावा खाद्य अपमिश्रण मामले में अभियोग की पैरवी शासकीय अधिवक्ता के स्थान पर खाद्य निरीक्षक करते। ऐसे में सजा मिलने की संभावना काफी कम हो जाती हैं।

Monday, December 14, 2009

आरटीआई ऐक्ट के दायरे से बाहर हैं निर्वाचित प्रतिनिधि


केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने एक अहम फैसले में कहा है कि सांसद, विधायक और स्थानीय निकायों के सदस्यों सहित निर्वाचित प्रतिनिधि निजी तौर पर सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई) के दायरे से बाहर हैं।
आयोग ने हालांकि यह साफ कर दिया कि निर्वाचित प्रतिनिधियों की गतिविधियों से जुड़ी सूचनाएं उन निकायों जैसे संसद, राज्य विधानसभा या स्थानीय निकायों से प्राप्त की जा सकती है जिसके वे सदस्य हैं।

इससे संबंधित कई याचिकाओं की संयुक्त सुनवाई करते हुए मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला और शैलेश गांधी की खंडपीठ ने कहा कि हमें यह निष्कर्ष निकालना होगा कि सांसद, विधायक, पार्षद और पंचायतों के सदस्यों को अपने आप में पब्लिक अथॉरिटी नहीं माना जा सकता। इसके बावजूद जिन संगठनों और समितियों के प्रति वे संविधान के तहत अपने दायित्वों का निर्वहन करते हैं, वास्तव में उन्हें पब्लिक अथॉरिटी के रूप में परिभाषित किया गया है। आवेदकों ने राहुल गांधी और सोनिया गांधी सहित कई निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा किए गए कार्यों के बारे में जानकारी मांगी थी।

पैसेवालों के पैतरों से नाराज हुआ हाईकोर्ट


दिल्ली हाईकोर्ट ने पैसेवालों द्वारा निचली अदालत का दरवाजा खटखटाए बिना सीधे उच्च न्यायालय में चले आने की आदत को दीवानी मामलों के बढ़ते बोझ का प्रमुख कारण बताया है।

न्यायाधीश एस. एन. धींगरा ने आईटी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट द्वारा दायर किए गए कॉपीराइट उल्लंघन के चार दीवानी मुकदमों पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। जस्टिस धींगरा ने ओरिजनल ज्यूरिस्डिक्शन बेंगलूरु, चंडीगढ़, हैदराबाद और मुंबई में होने के बावजूद महज प्रतिवादियों को परेशान करने के लिए दिल्ली में मुकदमा दायर करने पर माइक्रोसॉफ्ट को आठ लाख रुपए अदालत में जमा करने को कहा। अदालत की जांच में माइक्रोसॉफ्ट के आरोप गलत पाए जाने पर प्रतिवादियों को दो-दो लाख रुपए दे दिए जाएंगे।

जस्टिस धींगरा ने बढ़ते दीवानी मामलों पर चिंता जताते हुए कहा ‘पैसे वाले पक्षकारों को अपनी पसंद की अदालत चुनने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए।’

केंद्र ने रामसेतु मुद्दे पर मांगा डेढ़ साल का वक्त


केंद्र सरकार ने सेतुसमुद्रम परियोजना को पूरा करने के सिलसिले में रामसेतु को हटाने के स्थान पर वैकल्पिक मार्ग ढूढ़ने के लिए उच्चतम न्यायालय से 18 महीने का समय मांगा है।

न्यायालय में दर्ज नए हलफनामा में केंद्र सरकार ने कहा कि रामसेतु को नष्ट होने से बचाने के लिए वैकल्पिक मार्ग अपनाया जाए या नहीं, इस पर कोई भी अंतिम फैसला लेने से पहले इसका पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव के आकलन के वास्ते और वैज्ञानिक अध्ययन के लिए और समय चाहिए। न्यायालय इस मामले पर सोमवार को सुनवाई करेगा।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सेतुसमुद्रम के लिए कुछ अन्य मार्गों को अपनाने की संभावना पर विचार करने के लिए पहले ही पर्यावरणविद् डॉ. आरके पचौरी की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति गठित कर दी है।

दरअसल दुनियाभर के हिंदुओं की मान्यता है कि 35 किलोमीटर इस रामसेतु का निर्माण भगवान राम ने राक्षसराज रावण के कब्जे से पत्नी सीता को छुड़ाने के वास्ते श्रीलंका पहुंचने के लिए किया था। इस पुल को एडम्स ब्रिज के नाम से भी जाना जाता है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री और जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल करके इस आधार पर सेतुसमुद्रम परियोजना को रद्द करने की मांग की है कि इस संबंध में कोई भी वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया गया और तमिलनाडु के सत्तारूढ़ दल द्रविड़ मुनेत्र कषगम के कुछ मंत्रियों का इसमें वाणिज्यिक स्वार्थ निहित है।

उच्चतम न्यायालय ने इस याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और वह प्रधानमंत्री द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति के रिपोर्ट का इंतजार कर रहा है। उसने पहले ही सरकार को चल रही इस परियोजना के दौरान रामसेतु को नुकसान के खिलाफ चेताया है।

वकील को खुदकुशी के लिए मजबूर करने के आरोपी पुलिसकर्मियों के गिरफ्तारी वारंट पर फैसला आज


वकील अमित यादव को खुदकुशी के लिए मजबूर करने के आरोपी पुलिसकर्मियों के गिरफ्तारी वारंट सोमवार को जारी हो सकते हैं। कोर्ट ने सीआईडी सीबी के आठ दिसंबर को पेश प्रार्थना-पत्र पर फैसले की तारीख 14 दिसंबर नियत की थी।

जानकारी के अनुसार, यादव को खुदकुशी के लिए मजबूर करने के मामले में फरार चल रहे सीआई ओमप्रकाश वर्मा, थानेदार किशनसिंह नरूका व सिपाही मोतीलाल चौधरी के गिरफ्तारी वारंट प्राप्त करने के लिए आठ दिसंबर को अदालत में प्रार्थना-पत्र पेश किया था, लेकिन कोर्ट से वारंट जारी नहीं हो पाए थे। अदालत ने सीआईडी सीबी को 14 दिसंबर को केस से संबंधित पत्रावली पेश करने के आदेश दिए थे। सोमवार को पत्रावली पेश करने के बाद कोर्ट प्रार्थना-पत्र पर फैसला देगी।

Saturday, December 12, 2009

दिनकरन के खिलाफ महाभियोग 14 को


भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पी डी दिनकरन के खिलाफ महाभियोग लाने के लिए राज्यसभा के 66 सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित ज्ञापन को आगामी सोमवार को उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को सौंपा जाएगा।
उच्चतम न्यायालय या किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग लाने के लिए संबंधित ज्ञापन पर राज्यसभा के कम से कम 50 या लोकसभा के कम से कम १क्क् सांसदों के हस्ताक्षर होना अनिवार्य है। न्यायमूर्ति दिनकरन के खिलाफ महाभियोग लाने के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 50 और वाम दलों के कुछ सांसदों ने संबंधित ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।
राज्यसभा ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्न सेन के खिलाफ महाभियोग लाने की पहल पहले से ही शुरू कर रखी है। न्यायमूर्ति सेन पर वकालत के पेशे से जुडे होने के दौरान गैरकानूनी तरीके से धन अर्जित करने का आरोप है।
भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे जस्टिस दिनकरन के मामले को लेकर देश के जानेमाने न्यायविदों ने जजों की नियुक्ती की प्रक्रिया पर ही सवाल खड़ा कर दिया है। जस्टिस दिनकरन की सर्वोच्च न्यायलय में नियुक्ती फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश जस्टिस पी डी दिनकरन की सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति न हो इस मुहिम में अब देश के जाने माने न्याविद भी जुट गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायधीश जे एस वर्मा और लोक सभा के पूर्व स्पीकर सोमनाथ चटर्जी समेत कई न्यायविदों ने मुहिम तेज कर दी है। दिल्ली में एक सेमीनार में जमा हुए न्यायविदों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की कोलिजयम को जस्टिस दिनकरन का नाम सर्वोच्च न्यायलय में नियुक्ती के लिए नहीं भेजना चाहिए था क्योंकि उन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप थे। और अब जबकि जस्टिस दिनकरन पर ज़मीन घोटाले के आरोपों की चर्चा आम हो चुकी है तो सुप्रीम कोर्ट कोलिजयम को उनका नाम वापस ले लेना चाहिए।
उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के जी बालाकृष्णन ने इस वर्ष अगस्त में न्यायमूर्ति सेन के खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश प्रधानमंत्नी मनमोहन सिंह से की थी।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश बी सुदर्शन रेड्डी के नेतृत्व वाली समिति पहले से ही न्यायमूर्ति सेन के खिलाफ जांच कार्य कर रही है। न्यायमूर्ति सेन ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति से इनकार कर दिया था।

न्याय मिलने में देरी के खिलाफ लोग विदोह कर देंगे : मुख्य न्यायाधीश


भारत के प्रधान न्यायाधीश के जी बालाकृष्णन ने शनिवार को चेताया कि लंबित मामलों के निपटारे में अत्यधिक देरी के कारण लोग विद्रोह करने को मजबूर होंगे और इससे न्यायिक प्रणाली ध्वस्त हो जाएगी।

प्रधान न्यायाधीश ने निचली अदालतों की संख्या को दोगुना करके 35000 हजार करने की पुरजोर वकालत की। बालाकृष्णन ने एक सम्मेलन में कहा कि हम इतने अधिक समय तक लंबित मामलों को बनाए रखना वहन नहीं कर सकते। लोग विद्रोह कर देंगे तो व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि हालांकि लोगों का न्यायपालिका में विश्वास है और लोगों को लगता है कि उन्हें आज या कल या इससे आगे न्याय मिलेगा लेकिन वह कितना इंतजार कर सकते हैं। न्यायमूर्ति बालाकृष्णन ने कहा कि इतनी अधिक देरी किसी भी स्थिति में नहीं होनी चाहिए। इसमें कमी लाई जानी चाहिए।

प्रधान न्यायाधीश ने इसके लिए अदालतों की कम संख्या और न्यायाधीशों के रिक्त पदों को इसके लिए जिम्मेदार बताया। उन्होंने कहा कि देश में अदालतों की संख्या पर्याप्त नहीं है और निचली अदालतों में जहां न्यायाधीशों के 16000 पद है, वहीं 2000 पद रिक्त हैं। उन्होंने कहा कि देश में निचली अदालतों की संख्या लगभग 16000 हजार है और इसे बढ़ाकर 35,000 किया जाना चाहिए।

जांच में सहयोग नहीं करने पर मेडिकल कालेज की मान्यता निरस्त करने की हाईकोर्ट की धमकी।


राजस्थान हाईकोर्ट ने आरपीएमटी परीक्षा-- 09 में फर्जी परीक्षार्थियों के मामले में चल रही पुलिस जांच में महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज के सहयोग नहीं करने पर नाराजगी जताई है। अदालत ने सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह कॉलेज प्रशासन को 15 दिन का नोटिस दे। इसके बावजूद भी यदि कॉलेज सहयोग नहीं करे तो उसकी मान्यता निरस्त करदें। न्यायाधीश गोपाल कृष्ण व्यास ने यह निर्देश याचिकाकर्ता झाबरमल जाट की याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई करते हुए दिया।
मामले की सुनवाई के दौरान अनुसंधान टीम डीएसपी रामसिंह ने कोर्ट को बताया कि मामले में जांच के लिए और समय चाहिए। न्यायाधीश ने पूछा कि ऐसा क्यों, तो उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज प्रशासन जांच में सहयोग नहीं कर रहा है। इस पर न्यायाधीश ने कहा किऐसे कॉलेज जो कि शिक्षा में स्तरहीनता को दुरुस्त करने की कार्रवाई में सहयोग नहीं कर रहे हैं उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है। न्यायाधीश ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह कॉलेज प्रशासन को 15 दिन का नोटिस जारी कर कार्रवाई में सहयोग नहंी करने का कारण पूछें, यदि वे इसके बाद भी सहयोग नहंी करें तो कॉलेज की मान्यता रद्द करदें।

पंचायतों में आरक्षण 50 प्रतिशत से ज्यादा न हो-राजस्थान हाईकोर्ट


राजस्थान हाईकोर्ट ने पंचायत चुनाव के लिए समानान्तर (क्षितिज) आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी तय करते हुए राज्य सरकार, झुंझुनूं कलक्टर व जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी से चार सप्ताह में जवाब-तलब किया है। साथ ही, कहा कि पंचायत चुनावों के लिए आरक्षण प्रक्रिया भले ही जारी रहे, लेकिन उसे अदालत की मंजूरी बिना अंतिम रूप नहीं दिया जाए।  न्यायाधीश आर.सी. गांधी व महेश भगवती की खण्डपीठ ने झुंझुनूं जिले के सीताराम शर्मा की याचिका पर यह अंतरिम आदेश दिया। प्रार्थीपक्ष की ओर से न्यायालय को बताया गया कि सरकार ने पंचायत राज कानून में संशोधन कर महिला आरक्षण 33 से बढ़ाकर 50 फीसदी कर दिया है और 21 से 35 वर्ष तक के युवाओं को भी सीट आरक्षित की हैं। झुंझुनूं जिला परिषद व कुछ पंचायत समितियों का हवाला देकर बताया कि इस बढ़ोतरी से कुल आरक्षण 77.14 फीसदी से अधिक हो गया है।

याचिका में यह भी कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी तय कर चुका है। आरक्षण में इस बढ़ोतरी का कोई तार्किक कारण भी नहीं बताया गया है। इस आरक्षण के बाद अधिकारी- कर्मचारी जनता पर हावी हो जाएंगे।
आरक्षण बढ़ोतरी के लिए संशोधन को असंवैधानिक करार दिया जाए। पंचायतों में जाति, लिंग व आयु के आधार पर कुल आरक्षण 50 फीसदी से अधिक करने व महिलाओं को श्रेणीवार 50 फीसदी आरक्षण पर पाबंदी लगाई जाए, याचिका पर निर्णय होने तक पंचायत चुनाव में नए पंचायत राज कानून पर अमल नहीं किया जाए।
शहरी निकाय आरक्षण के मामले से सम्बंघित 17 सितम्बर 09 का अंतरिम आदेश इस मामले में भी लागू किया जाए। राज्य सरकार की ओर से मुख्य सचिव, पंचायत राज सचिव, झुंझुनूं कलक्टर व झुंझुनूं जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी चार सप्ताह में जवाब दें।


तेलंगाना मामले में वकील आपस में उलझे


आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के परिसर में शुक्रवार को उस समय तनाव की स्थिति पैदा हो गई जब पृथक तेलंगाना राज्य के गठन के मसले पर वकीलों के दो समूह उलझ गए। न्यायालय मे विवाद उस समय ख़डा हुआ जब वकीलों के दोनों समूहों में बहसबाजी तेज हो गई। एक समूह तेलंगाना के गठन के प्रस्ताव का विरोध कर रहा था और इसी समूह की झडप तेलंगाना समर्थक वकीलों से हुई।
आंध्र उच्च न्यायालय का परिसर "जय तेलंगाना" और "जय आंध्र" के नारों से गुंज उठा। इसके बाद दोनों समूहों में मारपीट शुरू हो गई। इस झ़डप में कुछ वकीलों को चोटे आई। पुलिस ने दखल देते हुए स्थिति पर काबू पाया। न्यायालय के मुख्य द्वार को बंद कर दिया गया ताकि कोई बाहरी दाखिल न हो सके। गौरतलब है कि तेलंगाना राज्य के गठन के समर्थन में चल 11 दिनों के विरोध प्रदर्शन में इस क्षेत्र के वकीलों ने भी भाग लिया था।

मंजूनाथ के हत्यारे को अब फांसी नहीं उम्रकैद की सजा


इलाहाबाद हाई कोर्ट ने चार साल पहले मारे गए इंडियन आयल कॉर्पोरेशन के अधिकारी मंजूनाथ की हत्या के लिए दोषी पाए गए मोनू मित्तल की फांसी की सज़ा को आजीवन कारावास में बदल दिया है और दो अन्य लोगों को रिहा करने के आदेश दिए हैं. कर्नाटक निवासी मंजूनाथ शणमुघम इंडियन आयल कॉर्पोरेशन के सेल्स मैनेजर थे. अब से चार साल पहले उत्तर प्रदेश के लखीमपुरखीरी में उनकी हत्या हो गई थी.

मंजूनाथ आईआईएम लखनऊ के छात्र रहे थे. आईआईएम के छात्रों और मीडिया ने मंजूनाथ की हत्या के मामले को तब काफी उछाला था और कहा गया था कि उनकी ईमानदारी के कारण उनकी जान गई थी. मंजुनाथ ने लखीमपुर खीरी में एक पेट्रोल पम्प पर मिलावटी तेल बेचे जाने का पर्दाफाश किया था.इस पेट्रोल पम्प के मालिक का नाम पवन कुमार मित्तल उर्फ़ मोनू मित्तल था. मंजूनाथ की हत्या 19 नवम्बर 2005 को गोली मारकर तब कर दी गयी थी जब वो मिलावटी पेट्रोल का नमूना लेने पेट्रोल पंप पहुंचे थे. सुप्रीम कोर्ट के सामने ऐसे उदाहरण पहले से मौजूद हैं कि जिन्हें उम्रक़ैद की सज़ा मिली हो और अगर उसकी तामील न हुई हो और काफी वक़्त गुज़र गया हो तो उसे उम्र क़ैद की सज़ा में बदल दिया जाता है क्यूंकि तबतक दोषी व्यक्ति काफी मानसिक प्रताड़ना भुगत चुका होता है.

मंजूनाथ की हत्या के अभियुक्तों ने मंजुनाथ के शव को कार के पीछे की सीट पर रखा और अपने दो सहयोगियों से कहा कि वो इसे सीतापुर की नहर में ठिकाने लगा दें लेकिन इससे पहले कि वो ऐसा कर पाएं, उनके दुर्भाग्य से उधर से पुलिस की गाड़ी गुज़री जो उस वक़्त तड़के गश्त लगा रही थी. उसे देखकर अभियुक्तों के हाव भाव बदल गए और वो भागने की फ़िराक में लग गए जिसके बाद पुलिस की गाड़ी ने उनका पीछाकर उन्हें शव के साथ रंगे हाथों पकड़ लिया.

इस मामले में अभियुक्तों के ख़िलाफ़ 15 फ़रवरी, 2009 को चार्जशीट दायर किया गया  अदालत ने तब अपने फैसले में मोनू मित्तल को फांसी की सज़ा सुनाई थी जबकि उनके दूसरे सहयोगियों को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी.

नियमानुसार फांसी की सज़ा की पुष्टि हाईकोर्ट द्वारा होती है. हाईकोर्ट ने अब मुख्य अभियुक्त मोनू मित्तल की फांसी की सज़ा को उम्रक़ैद में बदल दिया है. पीड़ित परिवार और मंजूनाथ ट्रस्ट के वकील आईबी सिंह का कहना है कि अदालत के फ़ैसले में यह बदलाव सुप्रीम कोर्ट के ऐसे दूसरे मामलों में फैसलों के अनुकूल है.

आई बी सिंह ने कहा कि " सुप्रीम कोर्ट के सामने ऐसे उदाहरण पहले से मौजूद हैं कि जिन्हें उम्र क़ैद की सज़ा मिली हो और अगर उसकी तामील न हुई हो और काफी वक़्त गुज़र गया हो तो उसे उम्रक़ैद की सज़ा में बदल दिया जाता है क्यूंकि तब तक दोषी व्यक्ति काफी मानसिक प्रताड़ना भुगत चुका होता है."

अदालत ने इस मामले में दो और अभियुक्तों को बरी कर दिया है. मंजुनाथ के परिवारवालों का कहना है कि वो इस फ़ैसले से संतुष्ट हैं.

Thursday, December 10, 2009

आसाराम बापू की प्राथमिकी रद्द करने की याचिका खारिज


गुजरात उच्च न्यायालय ने आध्यात्मिक गुरु आसाराम बापू की उस याचिका को आज खारिज कर दिया जिसमें उन पर हत्या के प्रयास के आरोप में दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की गई थी !
न्यायाधीश अकील कुरैशी ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि गोलीबारी की घटना हुई थी जिसका मुकदमा बनता है और न्यायालय पुलिस को इसकी जांच से रोक नहीं सकता !
पुलिस ने आसाराम बापू के आश्रम के पूर्व सचिव राजू चांडक की शिकायत पर आसाराम बापू और दो अन्य लोगों के खिलाफ धारा 307. 120 बी. 154 और उपधारा 25.1. के तहत मामला दर्ज किया था1 चांडक को पांच दिसम्बर की रात साबरमती इलाके में गोली मारी गई थी1 उन्होंने अगले दिन आध्यात्मिक गुरु के खिलाफ मामला दर्ज कराया था !
चांडक ने आश्रम के दो छात्रों दीपक और अभिषेक की मौत के मामले में आसाराम बापू के खिलाफ बयान दिया था !  इन दोनों छात्रों के शव उनके लापता होने के एक दिन बाद आश्रम के नजदीक साबरमती नदी में मिले थे !  इसके बाद आश्रम में कथित तांत्रिक गतिविधियों की खबरें सामने आईं जिसके बाद लोगों ने विरोध प्रदर्शन किए !
आसाराम बापू के वकील बी एम गुप्ता ने प्राथमिकी रद्द करने की मांग करते हुए कहा कि चांडक की ईमानदारी संदेहजनक है क्योंकि उनसे आश्रम की सम्पत्ति हड़पने की कोशिश की थी ! उन्होंने कहा कि चांडक की हत्या की साजिश रचने में आसाराम बापू की संलिप्तता के कोई सबूत नहीं हैं !
सरकारी वकील ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि चांडक की हत्या की साजिश रची गई थी और पुलिस को इसकी जांच करने से नहीं रोका जाना चाहिए ! उन्होंने कहा कि चांडक ने आश्रम में छात्रों की मौत के मामले की जांच कर रहे डी के त्रिवेदी आयोग के समक्ष आसाराम बापू और आश्रम के अन्य अधिकारियों के खिलाफ गवाही दी थी1 इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए चांडक पर हमले की साजिश की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता और इसलिए प्राथमिकी रद्द करने की याचिका को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए !

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा वेश्यावृत्ति रोक नहीं सकते तो उसे मंजूरी क्यों नहीं देते?


वेश्यावृत्ति रोक नहीं सकते तो उसे कानूनी मंजूरी क्यों नहीं देते? सुप्रीम कोर्ट ने ये अहम सवाल केंद्र सरकार से पूछा है। सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि तमाम बंदिशों के बाद भी वेश्यावृत्ति पर रोक नहीं लग पा रही। चाइल्ड ट्रैफिकिंग से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान अदालत का ये नजरिया सामने आया। हालांकि सुप्रीमकोर्ट की इस टिप्पणी पर दो अलग-अलग राय है। कुछ लोगों की राय में वैधानिक मान्यता इसका समाधान नहीं है।

अदालत ने कहा कि आप इसे दुनिया का सबसे पुराना पेशा मानते हैं। इसलिए अगर कानून के जरिए इसे रोकना संभव नहीं तो इसे कानूनी मंजूरी ही दे दो। इस तरह कम से कम इस धंधे पर निगरानी तो रखी जा सकेगी। सेक्स वर्कर्स को पुनर्वास और चिकित्सकीय सुविधा देना आसान होगा। अदालत की इस टिप्पणी पर सॉलिसीटर जनरल ने भरोस दिलाया कि इस पर गौर किया जाएगा।

अदालत में ये बहस बचपन बचाओ आंदोलन की याचिका पर चल रही थी। सुनवाई के दौरान चाइल्ड सेक्स वर्कर्स का जिक्र आया और बहस इस दिशा में मुड़ गई। हालांकि एक बड़ा तबका इस धंधे को कानूनी मंजूरी दिए जाने के खिलाफ है।

आपराधिक छवि वालों को पुलिस में नौकरी नहीं: सुप्रीम कोर्ट


सुप्रीम कोर्ट ने अपराधिक मामलों में लिप्त पाए जाने वाले व्यक्तियों को राजस्थान पुलिस विभाग में कांस्टेबल सहित किसी भी पद पर नियुक्ति के लिए अयोग्य करार दिया है और इस संबंध में राजस्थान सरकार द्वारा 1995 में जारी किए गए परिपत्र को वैध माना है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को यह महत्वपूर्ण फैसला राजस्थान राज्य बनाम मोहम्मद सलीम सिविल अपील मामले पर दिया। उल्लेखनीय है कि राजस्थान सरकार ने 24 अप्रेल, 1995 को एक परिपत्र जारी कर उपद्रव और अन्य आपराधिक मामलों में भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं में लिप्त व्यक्तियों को पुलिस विभाग में नियुक्ति के लिए अयोग्य करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को उपर्युक्त मामले में अंतिम सुनवाई कर भारतीय दंड संहिता की धारा 323, 324, 325, 326, 302, 307 के अंतर्गत आपराधिक मामलों में लिप्त व्यक्तियों को पुलिस विभाग में कांस्टेबल सहित किसी भी पद पर नियुक्ति के लिए अयोग्य ठहराने संबंधी राजस्थान सरकार के परिपत्र को वैध माना। इस मामले में राजस्थान सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता डॉ. मनीष सिंघवी ने पैरवी की।

Monday, December 7, 2009

कॉजलिस्ट पर सीजे का ही नियंत्रण रहेगा-राजस्थान उच्च न्यायालय


राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जगदीश भल्ला व न्यायाधीश प्रकाश टाटिया की खण्डपीठ ने निर्धारित किया है कि उच्च न्यायालय में मुकदमों की सुनवाई के लिए बनने वाली कॉजलिस्ट पर मुख्य न्यायाधीश का ही नियंत्रण रहेगा। न्यायालय में मुकदमों को लिस्ट में लगाने सम्बंधी आदेश अन्य न्यायाधीश पारित नहीं कर सकता।

इसके साथ ही खण्डपीठ ने राजस्थान हाईकोर्ट मुख्यपीठ बचाओ संघर्ष समिति व दोनों हाईकोर्ट बार एसोसिएशनों की ओर से दायर विशेष अपीलों को स्वीकार करते हुए इस सम्बंध में एकलपीठ द्वारा 17 अगस्त 09 को पारित आदेश को अपास्त कर दिया। उच्च न्यायालय की एकलपीठ ने हर माह के अंतिम कार्य दिवस पर मुख्यपीठ में होने वाली हडताल के दिन मुख्यपीठ में मुकदमों की कॉजलिस्ट आम दिनों की तरह नहीं बनाए जाने को लेकर उच्च न्यायालय प्रशासन से जवाब तलब किया था। एकलपीठ के आदेश के विरूद्ध बार एसोसिएशनों की ओर से अलग-अलग विशेष अपीलें दायर की गई थी।