पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Friday, July 30, 2010

ऑल इंडिया बार परीक्षा को चुनौती

राजस्थान हाईकोर्ट ने ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन के मामले में केंद्र सरकार के विधि सचिव और बार काउंसिल ऑफ इंडिया व बार काउंसिल ऑफ राजस्थान के अध्यक्ष को नोटिस जारी कर दो सप्ताह में जवाब मांगा है। यह आदेश न्यायाधीश गोविंद माथुर ने बुधवार को अंकुर माथुर की याचिका पर दिए।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता एमसी भूत, आनंद पुरोहित व नुपुर भाटी ने कहा कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने 12 जून 2010 को अधिसूचना जारी कर वर्ष 2009/10 में या इसके बाद उत्तीर्ण होने वाले विधि स्नातकों के वकालात करने के लिए ऑल इंडिया बार एग्जाम देना जरूरी कर दिया था। इस अधिसूचना के तहत राष्ट्रीय स्तर पर यह परीक्षा 5 दिसंबर 2010 को आयोजित किया जाना तय किया गया। परीक्षा के एक माह बाद इसका परिणाम आएगा व इस परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाले अभ्यर्थियों को वकालात करने की अनुमति दी जाएगी।

याचिका में इसे चुनौती देते हुए कहा गया कि विधि स्नातक डिग्री परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद विद्यार्थियों को वकालात के पेशे में आने के लिए करीब आठ माह इंतजार करना पड़ेगा और बार काउंसिल ऑफ इंडिया को इस प्रकार के नियम बनाने का कोई अधिकार नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 1999 में वी. सुधीर बनाम बार काउंसिल ऑफ इंडिया के मामले में कहा गया है कि अधिवक्ता अधिनियम की धारा 24 की शर्तों पर कोई भी नियम रोक नहीं लगा सकता।

ऐसे नियम बनाने से पहले अधिवक्ता अधिनियम में संशोधन करना आवश्यक है। याचिका में यह भी कहा गया कि अधिवक्ता अधिनियम के तहत अधिवक्ताओं को तीन श्रेणियों में विभाजित नहीं किया जा सकता। नए प्रावधानों के बाद वरिष्ठ अधिवक्ता, सामान्य अधिवक्ता व ट्रेनी अधिवक्ता की श्रेणियां बन जाएंगी जो अधिवक्ता अधिनियम के विरुद्ध है।

उच्चतम न्यायालय में 55791 तथा उच्च न्यायालयों में 40,76,837 मामले लंबित

केंद्र सरकार ने कहा है कि पिछले साल के अंत तक उच्चतम न्यायालय में जहां 55791 मामले लंबित हैं वहीं देश के 21 उच्च न्यायालयों में 40,76,837 मामले लंबित थे.

कानून मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने परिमल नथवानी के प्रश्न के लिखित उत्तर में कल राज्यसभा को यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि उच्चतम न्यायालय में 20815 नियमित मामले लंबित थे जबकि प्रवेश संबंधी लंबित मामलों की संख्या 34976 थी.

मोइली ने एक अन्य प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा कि सरकार लंबित मामलों की संख्या कम करने के लिए विभिन्न कदम उठा रही है जिनमें त्वरित अदालतों, कुटुम्ब अदालतों और ग्राम अदालतों की स्थापना शामिल है.

उन्होंने सरकार ने न्याय प्रणाली में सुधार के लिए राज्यों को 5000 करोड़ रुपए प्रदान करने के 13वें वित्त आयोग की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है.

मंत्री ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने अपने 12 जुलाई 2010 के एक आदेश में प्रत्येक सोमवार को बैठने का निश्चय किया है ताकि अधीनस्थ अदालतों की बुनियादी ढांचा संबधी समस्याओं की समीक्षा की जा सके.

शव की बरामदगी के बगैर भी सजा संभव : सुप्रीम कोर्ट

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि मृत व्यक्ति का शव बरामद नहीं होने पर भी हत्या के लिए किसी व्यक्ति को दोषी ठहराया जा सकता है.   

न्यायमूर्ति आरएम लोढा और न्यायमूर्ति एके पटनायक की पीठ ने एक फ़ैसले में कहा कि कभी-कभी अपराध के तथ्यों के सबूत और इसे करने वाले के सबूत के बीच भेद नहीं किया जा सकता.    

पीठ ने कहा कि कॉर्पस डेलिक्टी (शव का सबूत) और अपराध के लिए आरोपित व्यक्ति का गुनाह इस कदर एक-दूसरे से जुडा होता है कि एक को दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता. वही साक्ष्य अक्सर अपराध के तथ्यों और जिस व्यक्ित ने उसे किया उसके व्यक्ितत्व दोनों पर लागू किया जाता है.    

शीर्ष अदालत ने यह फ़ैसला दोषी पृथी की ओर से दायर अपील को खारिज करते हुए सुनाया. उसने हरियाणा में तीन अक्तूबर 1990 को हुई अमी लाल की हत्या के मामले में सत्र अदालत की ओर से सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को चुनौती दी थी. बाद में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने सजा को बरकरार रखा था.

डरा-धमका कर रजामंदी के साथ सेक्स भी रेप: सुप्रीम कोर्ट

देश के सर्वोच्च न्यायालय ने आज एक महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है कि अगर कोई व्यक्ति किसी महिला को धमका कर या उसे मार-पीट कर के उसे सेक्स के लिए रजामंद करे और फिर संबध बनाये तो वो व्यक्ति भी बलात्कारी ही कहलायेगा और उसके द्वारा किया गया कृत्य रेप  की श्रेणी में आयेगा। सर्वोच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि यदि भय के कारण पीड़ित की सहमति रही हो तब भी मुजरिम को दुष्कर्म के लिए दंडित किया जा सकता है।
हरियाणा के कुरुक्षेत्र से संबंधित 17 वर्ष पुराने मामले में पंचायत ने मुजरिम सतपाल सिंह पर 1100 रुपए का जुर्माना लगाते हुए पीड़ित और उसके परिवार पर दबाव बनाया कि वे मुजरिम के विरूद्ध रिपोर्ट न लिखाए।

घटना के चार महीने बाद पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की और सतपाल को गिरफ्तार किया गया। न्यायाधिश पी सतशिवम तथा बीएस चौहान की बेंच ने सतपाल के इस तर्क को नहीं माना कि उसने पीड़ित से रजामंदी ली थी।  बेंच ने कहा कि सजा दिलाने के लिए बल प्रयोग या इसकी धमकी देना पर्याप्त है।

उत्तर प्रदेश भविष्य निधि घोटाले में कार्यवाही पर रोक

उत्तर प्रदेश भविष्य निधि घोटाले में गाजियाबाद स्थित सीबीआई की विशेष अदालत में चल रही कार्यवाही पर उच्चातम न्यायालय ने रोक लगा दी। कोर्ट ने सुनवाई पर अंतरिम रोक का यह आदेश सीबीआई के अनुरोध पर जारी किया। इस घोटाले में छह सेवानिवृत न्यायाधीश भी शामिल है।
न्यायमूर्तियों डी.के.जैन, वी.एस. सिरपुरकर और जी.एस. सिंघवी की पीठ ने कहा गाजियाबाद स्थित विशेष सीबीआई अदालत में चल रही कार्रवाई स्थगित रहेगी। न्यायालय ने यह व्यवस्था अटार्नी जनरल जी.ई. वाहनवती के यह कहने पर दी कि परेशान करने वाले कुछ ऎसे हालात हैं कि इस मामले को उत्तर प्रदेश से बाहर स्थानांतरित करना जरूरी है। उन्होंने मामले की सुनवाई के लिए राष्ट्रीय राजधानी को तरजीह दी। वाहनवती ने कहा कि इस संबंध में एक अपील अदालत में लंबित है।
पीठ ने कहा कि इस संबंध में एक अपील अदालत में लंबित है। पीठ ने कहा कि इस अपील पर विचार किया जाएगा लेकिन उसे आरोपियों की प्रतिक्रिया पर सुनवाई करनी होगी जिनमें जज भी शामिल हैं। न्यायालय ने अटार्नी जनरल से सभी आरोपियों के नाम और पते एक सप्ताह में बताने के लिए कहा ताकि मामले के स्थानांतरण की सीबीआई की अपील पर नोटिस जारी किए जा सकें।
इस बीच सीबीआई ने अदालत में एक नई रिपोर्ट पेश की है जिसमें उसने कहा हैकि घोटाले में कथित तौर पर लिप्त 41 में से 17 जजों के खिलाफ कोई सबूत नहीं है। बताया जाता है कि तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की भविष्य निधि में हुए इस घोटाले में कथित तौर पर 20 करो़ड राशि की हेराफेरी हुई है।

Wednesday, July 21, 2010

भोपाल ट्रस्ट से अहमदी का इस्तीफा मंजूर

सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को "भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल ट्रस्ट" के अध्यक्ष पद से पूर्व प्रधान न्यायाधीश ए.एम. अहमदी का इस्तीफा स्वीकार कर लिया। न्यायालय ने 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी के पीडितों के लिए बनाए गए अस्पताल का प्रभार लेने की केंद्र सरकार की अर्जी मंजूर कर ली। प्रधान न्यायाधीश एस.एच.कपाडिया की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार से ट्रस्ट को समाप्त करने के लिए कदम उठाने को कहा है।
न्यायालय ने अहमदी द्वारा दी गई सेवाओं की भी सराहना की। अटॉर्नी जनरल गुलाम वाहनवती ने अदालत में कहा कि सरकार ने अस्पताल का प्रभार लेने का निर्णय लिया है।
उल्लेखनीय है कि कुछ समय पहले अहमदी ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा था कि उन्हें ट्रस्ट की जवाबदेही से मुक्त किया जाए। ट्रस्ट के अध्यक्ष पद पर उनकी नियुक्ति सर्वोच्च न्यायालय ने 12 वर्ष पहले की थी।

सत्यम के पूर्व प्रबंध निदेशक रामा राज को जमानत मिली

आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने घोटालाग्रस्त आईटी कंपनी सत्यम (अब महिन्द्रा सत्यम) के पूर्व प्रबंध निदेशक रामा राजू, पूर्व मुख्य वित्तीय अधिकारी वाडलामणि श्रीनिवास और अन्य तीन आरोपियों को आज जमानत दे दी।

आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश राजा एलंगो ने सत्यम के संस्थापक बी. रामलिंग राजू के भाई रामा राजू, पूर्व सीएफओ श्रीनिवास और सत्यम के पूर्व कर्मचारियों, जी. रामकृष्ण, वेंकटपति राजू और सी. श्रीसैलम को जमानत दी है।

इस तरह से रामलिंग राजू को छोड़कर सत्यम घोटाले के सभी आरोपियों को विभिन्न अदालतों से जमानत मिल गई।

पिछले महीने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने पीडब्ल्यूसी के पूर्व अंकेक्षक एस. गोपालकृष्णन एवं पूर्व आंतरिक अंकेक्षक प्रभाकर गुप्ता को जमानत दी थी।

फरवरी में उच्चतम न्यायालय ने पीडब्ल्यूसी के एक अन्य अंकेक्षक श्रीनिवास तल्लूरी को जमानत दी, जबकि बीते साल मार्च में एक अदालत ने रामलिंग राजू के भाई बी. सूर्यनारायण राजू को अंतरिम जमानत दी थी।

पिछले साल जनवरी में सत्यम के संस्थापक एवं तत्कालीन चेयरमैन रामलिंग राजू द्वारा आईटी कंपनी में हजारों करोड़ रुपए के घोटाले की स्वीकारोक्ति किए जाने के बाद राजू एवं अन्य नौ लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

साध्वी, अन्य के ख़िलाफ़ फिर मकोका

बाम्बे उच्च न्यायालय ने सोमवार को सितंबर 2008 के मालेगाँव धमाके के मामले में 11 अभियुक्तों पर महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून (मकोका) लगाए जाने को उचित ठहराया है. ग़ौरतलब है कि इनमें साध्वी प्रज्ञा ठाकुर भी शामिल हैं.

पिछले साल 31 जुलाई को एक निचली अदालत ने इन लोगों पर लगाए गए मकोका को हटाने को आदेश दिया था. सरकार ने इस फ़ैसले को बाम्बे उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी जिस पर ये फ़ैसला आया है.

दो साल पहले हुए मालेगाँव धमाके में कम से कम छह लोग मारे गए थे जबकि कई घायल हुए थे. महाराष्ट्र की आतंकवाद निरोधक शाखा (एटीएस) ने इस फ़ैसले का स्वागत किया है.
साध्वी प्रज्ञा के ख़िलाफ़ भी

साध्वी प्रज्ञा के वकील गणेश सोवानी ने इस फ़ैसले पर नाराज़गी जताई और कहा, "एक बार आदेश की कॉपी देख लें, उसके बाद निर्णय लेंगे कि इसके खिलाफ़ उच्चतम न्यायालय जाया जाए या नहीं."
उन्होंने कहा, "दरअसल निचली अदालत ने तीन अभियुक्तों की ज़मानत की अर्ज़ी पिछले साल ख़ारिज कर दी थी. लेकिन उन्होंने अर्ज़ी ख़ारिज करते हुए ये टिप्पणी की थी कि जिस तरह मकोका लगाया गया वो ग़लत था और सभी 11 लोगों को मकोका से बरी कर दिया था."

उधर राज्य सरकार के वकील का कहना था कि जिस तरह मकोका हटाया गया था वो ग़लत था औऱ निचली अदालत के पास ये इख्तियार नहीं था.

गणेंश सोवानी ने माना कि इस आदेश के बाद साध्वी प्रज्ञा, रमेश उपाध्याय, समीर कुलकर्णी, कर्नल पुरोहित और अन्य अभियुक्तों की मुश्किलों में इज़ाफ़ा हो गया है.

मकोका के तहत पुलिस को बहुत व्यापक अधिकार दिए गए हैं.

वरिष्ठ वकील अब्बास काज़मी बताते हैं, "इसके तहत ज़मानत मिलना मुश्किल हो जाता है. चार्जशीट और रिमांड का समय बढ़ जाता है. आम क़ानून के तहत अगर कोई व्यक्ति किसी पुलिस अफ़सर के सामने कोई बयान देता है तो वो न्यायालय में सबूत नहीं माना जाता. लेकिन मकोका के तहत अगर किसी वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के सामने कोई व्यक्ति अपना जुर्म कुबूल करता है तो उसे मान्य करार दिया जाता है."

गुंडा बन गया जज, 3 साल तक करता रहा सुनवाई

ये अपनी तरह का पहला मामला हो सकता है। एक ऐसा शख्स जिस पर गुंडागर्दी के मामले दर्ज थे वो एक-दो दिन तक नहीं, बल्कि तीन साल तक। हालांकि मामला उजागर होने पर उसे हटा दिया गया मगर देश की सर्वोच्च अदालत भी इससे हतप्रभ रह गई। दरअसल कर्नाटक हाईकोर्ट में खाजिया मोहम्मद मुजामिल 1996 में बतौर जज नियुक्त हुआ था। तीन साल तक वह लोगों का इंसाफ करता रहा लेकिन जब पता चला कि उस पर गुंडागर्दी का मामला दर्ज है तो उसे पद से हटा दिया गया। खाजिया इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गया। पहले तो सुप्रीम कोर्ट हतप्रभ रहा, फिर उसने अहम फैसला सुनाया कि देश के सभी हाईकोर्ट अब सभी जजों का गंभीरता से पुलिस वेरिफिकेशन कराएं। जस्टिस बीएस चौहान व जस्टिस स्वतंत्रकुमार की खंडपीठ ने कहा है कि यह चिंता की बात है, लेकिन हाईकोर्ट को निर्देश दिए गए हैं कि वे सुनिश्चित करें कि न्यायिक प्रक्रिया में शामिल हर जज का पुलिस वेरिफिकेशन किया गया हो। गौरतलब है कि पुलिस वेरिफिकेशन अभी भी होता है लेकिन कई बार इस ओर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया जाता। सुप्रीम कोर्ट ने अब कहा है कि सभी हाईकोर्ट अब जजों के पुलिस वेरिफिकेशन को गंभीरता से कराएं।

तय किया सुनवाई का क्षेत्राधिकार

राजस्थान भू राजस्व अधिनियम की धारा 90 (5) बी के तहत जारी आदेश के विरूद्ध अपील की सुनवाई संभागीय आयुक्त के समक्ष हो सकती है, न कि राजस्व अपील अधिकारी के समक्ष।

राजस्व मण्डल सदस्य ताराचन्द सहारण की एकल पीठ ने अपील सुनवाई का क्षेत्राधिकार तय करते हुए राजस्व अपील अधिकारी हनुमानगढ के निर्णय को क्षेत्राधिकार बाहर मानते हुए निरस्त कर दिया। पीठ ने यह आदेश प्रार्थी फतेह मोहम्मद निवासी नौहर, हनुमानगढ की निगरानी याचिका को स्वीकार करते हुए सुनाए। पीठ ने आदेश में कहा कि यदि राज्य सरकार चाहे तो पुन: संभागीय आयुक्त /अतिरिक्त संभागीय आयुक्त (सक्षम न्यायालय) के समक्ष अपील कर सकती है।

मामले के अनुसार उपखण्ड अधिकारी एवं प्राधिकृत अधिकारी नगर पालिका नौहर की ओर से गतवर्ष धारा 90 (5) बी के तहत वादग्रस्त भूमि का अधिग्रहण किया गया। जिसके विरूद्ध राज्य सरकार ने राजस्व अपील अधिकारी के समक्ष अपील प्रस्तुत की। प्रार्थी ने प्रार्थना पत्र दायर कर आपत्ति दर्ज करवाई कि आरएए को मामले की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। आरएए ने प्रार्थी का प्रार्थना पत्र खारिज कर दिया । इसके बाद प्रार्थी ने मण्डल में निगरानी याचिका दायर की।

Friday, July 16, 2010

मोदी की याचिका खारिज

बॉम्बे उच्च न्यायालय ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) की अनुशासन समिति की कार्यवाही पर रोक लगाने संबंधी आईपीएल के निलंबित आयुक्त ललित मोदी की याचिका को आज खारिज कर दिया है।

न्यायालय ने बुधवार को दोनों पार्टियों की दलील सुनने के बाद फैसला गुरुवार तक के लिए टाल दिया था। लेकिन न्यायालय के आज के फैसले के बाद मोदी शुक्रवार को मुंबई में बीसीसीआई की अनुशासन समिति के सामने पेश होंगे।

इससे पहले बीसीसीआई ने 3 जुलाई को विशेष आम बैठक में तीन सदस्यीय अनुशासन समिति का गठन किया था। मोदी ने इसके खिलाफ अदालत में शरण ली और अनुशासन समिति की कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की।

मोदी ने पिछले सप्ताह बीसीसीआई के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया था। अदालत में दाखिल अपनी याचिका में मोदी के वकील ने बीसीसीआई पर पक्षपाती होने का आरोप लगाया और अनुशासन समिति से निष्पक्ष और स्वतंत्र सुनवाई करने की मांग की।

बुधवार को अदालत ने दोनों पार्टियों की तरफ से जोरदार आरोप-प्रत्यारोप की दलीलें सुनी। मोदी के वकील विराग तुलजहापुरकर ने अपनी दलील में कहा कि अनुशासन समिति से निष्पक्ष सुनवाई की संभावना नहीं हैं।

मोदी ने विशेष रूप से बीसीसीआई सचिव एन श्रीनिवासन पर निशाना साधते हुए कहा, श्रीनिवासन खुद एक पक्षपाती हैं और उनको बीसीसीआई के नोटिस के जबाव को निरस्त करने का कोई अधिकार नहीं है।

मोदी ने आईपीएल के अंतरिम आयुक्त चिरायु अमीन, अरुण जेटली और ज्योतिरादित्य सिंधिया की सदस्यता वाली अनुशासन समिति पर भी संदेह जताया है। उनका आरोप है कि अमीन आईपीएल की दो नयी फ्रैंचाइजी टीमों में से एक की बोली में शामिल रहे थे इसलिए उनसे निष्पक्षता की उम्मीद नहीं की जा सकती है।

इससे पहले बीसीसीआई अध्यक्ष शशांक मनोहर ने मोदी के आरोपों के बाद खुद को अनुशासन समिति से अलग कर लिया था और उनकी जगह मध्य प्रदेश क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया को समिति में शामिल किया गया था।

बीसीसीआई ने मोदी को वित्तीय अनियमितताओं के आरोप में गत 25 अप्रैल को निलंबित कर दिया था और उन्हें तीन कारण बताओ नोटिस भी जारी किए गए थे।

सनसनी फैलाने पर मीडिया को फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया को अदालत से जुड़े मामलों को सनसनीखेज तरीके से पेश करने और सुनवाई के दौरान अदालत की टिप्‍पणियों का संदर्भ से हटकर मतलब निकालने पर ज‍मकर फटकार लगाई है। न्‍यायमूर्ति जे एम पांचाल और न्‍यायमूर्ति ए के पटनायक की खंडपीठ ने केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्‍बल के खिलाफ एक अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि मीडिया को देश के प्रति अपनी जिम्‍मेदारियों का अहसास होना चाहिए।

हालांकि अदालत ने बाद में इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि सिब्बल के कथन को संदर्भ से अलग रखकर पेश किया गया। याचिका के अनुसार सिब्बल ने वर्ष 1995 में अदालती कार्यवाही की आलोचना की थी।

अदालत ने कहा कि सिब्बल का बयान न्यायपालिका में मौजूद खामियों को रेखांकित करता है। न्‍यायालय के अनुसार सिब्बल ने कुछ सुधारात्मक उपायों के सुझाव दिए थे। न्यायमूर्ति पंचाल ने अपने निर्णय में कहा, ‘‘न्याय प्रणाली की निष्पक्ष और रचनात्मक आलोचना की सराहना होनी चाहिए।’’

सिब्‍बल के खिलाफ यह याचिका 1995 में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में दायर की गई थी और बाद में इसे सुप्रीम कोर्ट में स्‍थानांतरित कर दिया गया। उस वक्‍त सिब्‍बल सुप्रीम कोर्ट के वरिष्‍ठ वकील थे। सिब्‍बल के बयान को संदर्भ से अलग रखकर पेश करने वाले अखबार ने उस वक्‍त भी हाईकोर्ट के समक्ष माफी मांग ली थी और फिर इसने सुप्रीम कोर्ट के सामने भी अपनी गलती स्‍वीकार कर ली।

सात लोगों के खूनी प्रेमी- प्रेमिका शबनम-सलीम को सजा-ए-मौत

उत्‍तर प्रदेश में ज्‍योतिबा फुलेनगर सत्र न्‍यायालय ने एक ही परिवार के सात सदस्‍यों की हत्‍या करने के आरोप में एक लड़की और उसके प्रेमी को फांसी की सजा सुनाई है।  पुलिस के अनुसार दो साल पहले ज्‍योतिबा फुलेनगर में शबनम ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर अपने माता-पिता और भाइयों समेत सात लोंगो को मौत के घाट उतार दिया था। इस केस की सुनवाई ज्‍योतिबा फुलेनगर के सत्र न्‍यायालय में चल रही थी जहां उन्‍हें गुरुवार को मौत की सजा सुनाई गई।

गौरतलब है कि ज्योतिबा फूलेनगर जिले के हसनपुर इलाके के बावनखेड़ी गांव में संपत्ति हड़पने के लालच में 14 अप्रैल 2008 को शबनम नें अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर अपने पिता, मां, दो भाईयों, भाभी और उसके एक बच्चे तथा एक ममेरी बहन की हत्या कर दी थी।

शबनम ने उस रात परिवार में मौजूद सात लोगों को दूध में नशा मिलाकर पिला दिया और उसके प्रेमी सलीम ने परिवार के सभी लोगों की कुल्हाड़ी से काटकर हत्या कर दी। जालिम शबनम ने एक साल के बच्चे अर्श को भी नहीं छोड़ा और उसका गला दबा दिया।

Friday, July 9, 2010

बीसीसीआई के फैसले को ललित मोदी की चुनौती

ललित मोदी ने खुद को इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के कमिश्नर पद से निलंबित किए जाने से जु़डे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के फैसले को बंबई उच्चा न्यायालय में चुनौती दी है। मोदी के वकील महमूद आबदी ने इस बात की जानकारी दी। आबदी ने कहा, ""हमने मोदी को निलंबित किए जाने के बीसीसीआई के फैसले को चुनौती देते हुए बंबई उच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल की है।"" आबदी ने कहा कि अपनी याचिका में मोदी ने अपने खिलाफ बीसीसीआई की कार्रवाई प्रक्रिया को भी खत्म किए जाने का अनुरोध किया है। मोदी ने न्यायालय से यह भी अनुरोध किया है कि उन्होंने बीसीसीआई को तीन कारण बताओ नोटिसों का जो जवाब दिया है, उस पर नजर रखने के लिए एक ऎसे पैनल का गठन किया जाए, जो सर्वमान्य हो। आबदी ने कहा, ""हमने न्यायालय से मोदी के खिलाफ जारी कार्रवाई प्रक्रिया के साथ-साथ उनके निलंबन के फैसले को भी रद्द करने की मांग की है।""

दृष्टि बाधित व्यक्ति को आईएएस नियुक्त करने का आदेश

प्रशासनिक सेवा परीक्षा उत्तीर्ण करने के तीन साल बाद दृष्टि बाधित व्यक्ति रविप्रकाश गुप्ता के प्रतिष्ठित भारतीय प्रशासनिक पद पर नियुक्ति की सभी बाधाएं समाप्त करते हुए उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को केन्द्र को निर्देश दिया कि उसे आठ हफ्ते के भीतर नियुक्त किया जाए।

न्यायमूर्ति अल्तमश कबीर और न्यायमूर्ति सी जोसेफ की पीठ ने केन्द्र को यह भी निर्देश दिया कि वह गुप्ता को मुकदमे के खर्च के रूप में 20 हजार रुपये का भुगतान करे। शीर्ष न्यायालय में गुप्ता ने अपने मामले की स्वयं सफल पैरवी की।

शीर्ष न्यायालय ने यह निर्देश दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को उचित ठहराते हुए दिया। उच्च न्यायालय ने कहा था कि सरकार का दायित्व बनता है कि वह निशक्तता कानून के तहत 1996 से निशक्त लोगों के लिए खाली पड़े सात पदों पर भर्तियां करे।

पीठ ने केन्द्र की इस दलील को खारिज कर दिया कि पदों की पहचान होने के बाद ही उन्हें भरा जा सकता है। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि इस प्रकार की दलील को स्वीकार करना उस तरह की स्थिति को स्वीकार करने के समान होगा जिसमें नौकरशाही की निष्क्रियता के कारण निशक्तता कानून 1995 की धारा 33 के प्रावधानों को अनिश्चित काल के लिए टाला जा सकता है।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 25 फरवरी 2009 को भी इसी तरह का निर्देश देते हुए सरकार से गुप्ता को नियुक्त करने को कहा था। सरकार पर 25 हजार रूपये का जुर्माना लगाया गया था। इस फैसले को केन्द्र ने शीर्ष न्यायालय में चुनौती दी। गुप्ता ने 2006 में प्रशासनिक सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की थी। लेकिन कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने उसे नियुक्ति देने से इंकार कर दिया। विभाग ने कहा कि निशक्त व्यक्तियों के लिए केवल एक पद है जिसमें अन्य शारीरिक निशक्तता के लोग भी शामिल होते हैं।

अब दोपहिया वाहनों के साथ हेलमेट बेचेंगी कंपनियां

दोपहिया वाहन कंपनियों को अब मोटरसाइकिल एवं स्कूटर के साथ हेलमेट भी बेचना पड़ेगा। उच्चतम न्यायालय ने कंपनियों के लिए हेलमेट बेचना अनिवार्य कर दिया है।

न्यायमूर्ति जी़एस़ सिंघवी और न्यायमूर्ति ए़क़े गांगुली ने सोसाइटी आफ इंडियन आटोमोबाइल मैन्युफैक्चर्स (सियाम) की उस याचिका को बुधवार को खारिज कर दिया जिसके जरिए दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई थी। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दोपहिया वाहन कंपनियों को मूल उपकरण के तौर पर बीएसई प्रमाणित हेलमेट ग्राहक को देने होंगे।

उच्च न्यायालय ने 30 जुलाई, 2009 को डीलरों के लिए नए दोपहिया वाहनों के साथ हेलमेट बेचना अनिवार्य कर दिया था और कहा था कि बिना हेलमेट के अधिकारियों द्वारा वाहन का पंजीकरण नहीं किया जाएगा।

उधर, सियाम ने दलील दी कि उच्च न्यायालय के आदेश से लोग अपनी पसंद का हेलमेट नहीं खरीद सकेंगे। साथ ही इससे वे लोग हेलमेट खरीदने को बाध्य होंगे जिनके पास पहले से हेलमेट है। हालांकि, उच्चतम न्यायालय सियाम की दलील से सहमत नहीं था। न्यायालय ने कहा कि लोगों को और हेलमेट खरीदने दें। जब आप 40000 रुपये का एक दूसरा स्कूटर खरीदते हैं तो आप महज 300 रुपये का एक हेलमेट भी खरीद सकते हैं।

खाप पंचायत के खिलाफ कानून, फैसला टला

खाप पंचायतों पर लगाम लगाने के लिए नए कानून पर आज एक बार फिर फैसला नहीं हो पाया। खाप पंचायत के खिलाफ नए कानून को लेकर कैबिनेट की चली बैठक बेनतीजा रहा और यहां पर किसी भी प्रकार का निर्णय नहीं लिया जा सका।

केन्द्रीय सूचना मंत्री अंबिका सोनी ने कहा कि अब नए कानून पर विचार-विमर्श करने के लिए कानूनविदों से राय ली जाएगी। उन्होंने कहा कि खाप पंचायत के कड़े फैसले के खिलाफ बनाए जाने वाले नए कानून पर मुहर लगाने के पहले राज्यों से भी सलाह-मशविरा किया जाएगा। सोनी ने कहा कि कैबिनेट की मीटिंग में नए कानून पर कोई स्पष्ट राय नहीं बन सकी लेकिन अब इस मामले को मंत्री समूह को सौंप दिया गया है। जो जल्द ही इस पर अपनी रिपोर्ट देगा।

Saturday, July 3, 2010

मुकदमे से संबंधित दस्तावेज अदालती प्रक्रिया के तहत ही दिए जाएं दस्तावेज-केंद्रीय सूचना आयोग

केंद्रीय सूचना आयोग ने कहा है कि अदालत में चल रहे किसी भी मुकदमे से संबंधित दस्तावेज अदालती प्रक्रिया के दिशा-निर्देश के तहत ही दिए जाने चाहिए।

मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला और सूचना आयुक्त एम. एम. अंसारी की पीठ ने एक फैसले में कहा, 'सूचना अधिकार कानून के तहत किसी लंबित मुकदमे से संबंधित सूचना आरोपी को मुहैया कराने की अनुमति देना मुकदमे का पूर्व निर्धारण करना होगा और इससे मुकदमे की प्रगति में बाधा आएगी।' मामला भारतीय कपास निगम की पूर्व कर्मचारी अनिता जे. गुरसहानी और आय से अधिक संपत्ति रखने के आरोपी जगदीश वी. गुरसहानी का है। उनकी अपील बांबे हाई कोर्ट में लंबित है।

सूचना के अधिकार [आरटीआई] के तहत दायर याचिका में दोनों ने निगम के साथ सीबीआई के पत्र व्यवहार के बारे में जानकारी मांगी थी। उनके आवेदन को सीबीआई के मुख्य लोक सूचना अधिकारी ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इससे दोष सिद्धि की प्रक्रिया में बाधा आएगी। आयोग ने कहा कि वे अपराध प्रकिया संहिता [सीआरपीसी] के तहत दस्तावेजों की जानकारी पाने के लिए मुकदमे की सुनवाई कर रही अदालत से संपर्क करने के लिए स्वतंत्र हैं।

धार्मिक आधार पर आरक्षण असंवैधानिक: अदालत

कोलकाता हाईकोर्ट ने शुक्रवार को धार्मिक आधार पर आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया है। हाईकोर्ट ने कोलकाता मेट्रोपोलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी की ओर से धार्मिक आधार पर आरक्षण के तहत आवंटित किए गए फ्लैट्स के फैसले को अवैध करार दिया। न्यायाधीश जे एन पटेल और बी भट्टाचार्य ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। याचिका में धार्मिक आधार पर दिए जाने वाले आरक्षण को चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा गया था कि धार्मिक आधार पर आरक्षण का संविधान में कोई प्रावधान नहीं है।

उल्लेखनीय है कि कोलकाता मेट्रोपोलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी ने 300 फ्लैट को बेचने के संबंध में 10 मार्च को विज्ञापन जारी किया था। ये फ्लैट शहर के दक्षिणी इलाके में स्थित हैं। फ्लैट के आवंटन में धार्मिक अल्पसंख्यकों मुस्लिमों, सिखों, और इसाईयों के लिए 26 फीसदी आरक्षण रखा था। जैसा की याचिकाकर्ता के वकील कौशिक चंदा ने बताया। इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए चंदा ने कहा कि धर्म के आधार पर संविधान में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। अगर धर्म के आधार पर आरक्षण दिया जाता है तो इससे सरकार के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को गहरी चोट लगेगी। केएमडीए की ओर से हाईकोर्ट में पेश हुए वकील सौमित्र बासु ने कहा कि वह हाईकोर्ट के फैसले से बंधे हुए हैं।