पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Tuesday, April 19, 2011

संपत्ति का खुलासा नहीं कर सकता: बालाकृष्णन

पूर्व प्रधान न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन ने संपत्ति से संबंधित सूचनाओं के गलत उपयोग बताते हुए आयकर अधिकारियों से कहा कि वह अपनी संपत्ति का खुलासा नहीं कर सकते। सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ता पी बालाचंद्रन की ओर से आयरकर विभाग से बालाकृष्णन की संपत्ति की सूचना मांगने पर आयकर अधिकारियों ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने हलफाना दाखिल किया है कि वह अपनी सम्पत्ति को सार्वजनिक नहीं कर सकते और इससे संबंधित सभी आवश्यक जानकारी उच्चातम न्यायालय की वेबसाइट पर है। पूर्व न्यायाधीश बालाकृष्णन से उनका पैन नंबर और बैंक खाते का ब्यौरा मांगा गया था। उन्होंने हलफनामे में कहा इन सूचनाओं को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता क्योंकि इनका दुरूपयोग हो सकता है और खाते से पैसा निकाला जा सकता है।

संवैधानिक अधिकार है संपत्ति का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि संपत्ति का अधिकार संवैधानिक अधिकार है और सरकार मनमाने तरीके से किसी व्यक्ति को उसकी भूमि से वंचित नहीं कर सकती।

न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी और न्यायमूर्ति ए के गांगुली की पीठ ने अपने एक फैसले में कहा कि जरूरत के नाम पर निजी संस्थानों के लिए भूमि अधिग्रहण करने में सरकार के काम को अदालतों को 'संदेह' की नजर से देखना चाहिए।

पीठ की ओर से फैसला लिखते हुए न्यायमूर्ति सिंघवी ने कहा, ''अदालतों को सतही नजरिया नहीं अपनाना चाहिए, जैसा कि मौजूदा मामले में हुआ। सामाजिक और आर्थिक न्याय के संवैधानिक लक्ष्यों को ध्यान में रखकर मामले में फैसला करना चाहिए। संपत्ति का अधिकार यद्यपि मौलिक अधिकार नहीं है लेकिन यह अब भी महत्वपूर्ण संवैधानिक अधिकार है और संविधान के अचुच्छेद 300 ए के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से कानून के प्राधिकार के अलावा किसी भी तरह से वंचित नहीं किया जा सकता।' उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले में ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण द्वारा व्यापारिक प्रतिष्ठानों के लिए किसानों की 205 एकड़ भूमि के अधिग्रहण को रद करते हुए शीर्ष न्यायालय ने यह फैसला सुनाया। जमीन के मालिकों राधेश्याम और अन्य अदालत में याचिका दायर कर मार्च 2008 में किए अधिग्रहण को चुनौती दी थी।

"माइ लार्ड" संबोधन में बदलाव के बाद अब "कोट और गाउन" पर भी सवाल.

बिलासपुर हाईकोर्ट में बार एसोसिएशन के निर्णयानुसार माइ लार्ड संबोधन में बदलाव के बाद न्यायाधीशों व वकीलों की ड्रेस पर भी अब बहस छिड़ गई है। जजों व वकीलों के कोट एवं गाउन को दासता एवं गुलामी का प्रतीक मानकर इन पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। वकीलों का मानना है कि बार एसोसिएशन को इस संबंध में भी पहल करनी चाहिए ताकि ब्रिटिश शासन की प्रतीक इस वेशभूषा में बदलाव आ सके।


विदित रहे कि सप्ताह भर पहले चंडीगढ़ हाईकोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा प्रस्ताव पारित करने के बाद छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने भी रविवार को बैठक में सुनवाई के दौरान जजों को माइ लार्ड की जगह सर या फिर श्रीमान से संबोधित करने का प्रस्ताव पारित किया। हाईकोर्ट में संबोधन में बदलाव का पहला दिन मिलाजुला रहा। किसी ने सर या श्रीमान कहा तो कइयो ने पुराना संबोधन जारी रखा। वैसे अधिकतर वकीलों ने इस प्रस्ताव की प्रशंसा की है जबकि कइयों ने इस दिशा में और अधिक सुधार करने की आवश्यकता पर बल दिया है। सीनियर एडवोकेट कनक तिवारी का कहना है कि जज न्याय देने के लिए नियुक्त किए गए हैं, यह उनकी डयूटी है।

उनका सम्मान ठीक है लेकिन उन्हें अपना भगवान या स्वामी क्यों कहा जाना चाहिए? बार एसोसिएशन का यह बहुत अच्छा निर्णय है। इसका सभी को स्वागत करते हुए अमल में लाना चाहिए। कोट और गाउन भी गुलामी के प्रतीक हैं, वकीलों की यह ड्रेस बदली जानी चाहिए। भारत गर्म देश है, अंग्रेजों ने वकील व जजों के लिए अपने देश की वेशभूषा लादी, जो आज तक चल रही है।

बार एसोसिएशन को इसके लिए भी पहल करनी चाहिए। इधर, हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के सचिव अब्दुल वहाब खान ने बताया कि कोर्ट रूम में जजों के सम्मान में माइलार्ड या फिर लार्डशिप के संबोधन को दासता का प्रतीक मानते हुए ऎसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करने का निर्णय लिया गया है। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष सीके केशरवानी ने बताया कि इस फैसले पर जजों को भी आपत्ति नहीं है। बार एसोसिएशन ने अपने इस फैसले से महाधिवक्ता और रजिस्ट्रार जनरल को भी अवगत करा दिया है।


संविधान में सिर्फ सम्मान की व्यवस्था : भारतीय संविधान में जजों के संबोधन के लिए शब्द तय नहीं किया गया है। संवैधानिक पद होने के नाते सिर्फ यह कहा गया है कि उनके लिए सम्मानजनक तरीके से संबोधित किया जाएगा। हाईकोर्ट के अतिरिक्त महाधिवक्ता किशोर भादुड़ी का कहना है कि अधिवक्ताओं के मन में जजों के लिए सम्मान होना चाहिए। माइ लार्ड सर या श्रीमान कहने से फर्क नहीं पड़ता। देश के दूसरे हाईकोर्ट में भी इस तरह के प्रयास किए गए लेकिन वह सफल नहीं हो पाए।

बार कौंसिल ऑफ इंडिया पारित कर चुका प्रस्ताव

जजों के लिए माइ लार्ड शब्द उपयोग करने पर बार कौंसिल आफ इंडिया चार साल पहले ही आपत्ति कर चुका है। बार कौंसिल ऑफ इंडिया के प्रतिनिधि फैजल रिजवी ने बताया कि कौंसिल ने तो सर शब्द से संबोधित करने पर भी आपत्ति करते हुए कहा था कि माइ लार्ड व सर दोनों ही शब्द अंग्रेजों द्वारा दी जाने वाली उपाधि हैं, इसलिए जजों को योर आनर या फिर आनरेबल जज (सम्मानीय न्यायाधीश) संबोधित किया जाए। कौंसिल ने 2007 में यह प्रस्ताव पारित कर सभी राज्यों को भेजा था।

अफसरों के लिए ऑक्सीजन बना ‘गूगल अर्थ’

डबुआ एयरफोर्स मामले में हाईकोर्ट की कार्रवाई से बचने के लिए नगर निगम ने ‘गूगल अर्थ’ का हाथ थामा है, जो ऐसे माहौल में निगम को ऑक्सीजन देने की भूमिका अदा कर रहा है। दरअसल, अगली तारीख पर कोर्ट में एक्शन टेकन रिपोर्ट पेश करने के लिए निगम अफसरों ने गूगल अर्थ को सर्च करना शुरू कर दिया है। इसमें एयरफोर्स स्टेशन के आसपास बने मकानों की रिपोर्ट तैयार की जा रही है।


गौरतलब है कि एक जनहित याचिका की सुनवाई पर एयफोर्स स्टेशन के सौ मीटर अधिसूचित क्षेत्र में अवैध रूप से बने मकानों को लेकर हाईकोर्ट ने नगर निगम को कार्रवाई के आदेश दिए हैं। अप्रैल के आखिरी सप्ताह में इस मामले की अगली सुनवाई होगी। इसमें निगम को एक्शन टेकन रिपोर्ट पेश करनी है। कोर्ट के इस फैसले के बाद वहां के लोग घर उजड़ने को लेकर सहमे हुए हैं। पिछले दिनों निगम मुख्यालय में तोड़फोड़ कर नाराजगी जाहिर कर चुके हैं।


लोगों के गुस्से को देख निगम अफसर मौके पर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। इसके लिए गठित टीमों ने भी मौके पर जाकर कार्रवाई करने से मना कर दिया। संवेदनशील घोषित करते हुए भारी पुलिस बल की मांग उपायुक्त से की चुकी है। दूसरी तरफ कोर्ट ने एक्शन टेकन रिपोर्ट मांगी है। ऐसे में निगम अफसरों ने अब गूगल अर्थ पर शहर का नक्शा सर्च करना शुरू कर दिया। इसमें अफसर कुल यूनिटों की रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं। कंप्यूटर एक्सपर्ट का सहयोग इसमें लिया जा रहा है। स्टेशन के सौ मीटर दायरे में कितने मकान हैं, कितनी गलियां हैं, मकानों के अलावा दूसरी इमारतें कितनी हैं आदि का डाटा एकत्रित किया जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक आनलाइन संपूर्ण जानकारी जुटाने के लिए निगम गूगल अर्थ से बातचीत कर सकता है, जिसमें डाटा डाउनलोड करने की पहले अनुमति लेनी होगी।


नगर निगमायुक्त डॉ. डी सुरेश का कहना है कि रिपोर्ट तैयार करने के लिए एक कमेटी गठित की जाएगी। जरूरत पड़ी तो सर्वे के लिए उसको मौके पर भेजा जा सकता है। कोर्ट में शपथपत्र फिर दिया जाएगा, जिसमें पहले शपथ पत्र में छूटी जानकारियों को दिया जा रहा है। इसमें ताजा स्थिति से कोर्ट को अवगत करवाया जाएगा।

बार कौंसिल चुनाव में आरक्षण को लेकर याचिका

बार कौंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के चुनाव में पिछड़े वर्ग के वकीलों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की मांग को लेकर सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई। इस मामले पर सुनवाई 20 अप्रैल को होगी।

बार कौंसिल के सदस्य पद पर चुनाव लड़ रहे हरदोई के अधिवक्ता मोतीलाल यादव द्वारा सोमवार को दाखिल इस याचिका में कहा गया कि आरक्षण के नियमों के तहत बार कौंसिल ऑफ यूपी के इन चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग के अधिवक्ताओं के लिए सात सीटें आरक्षित करनी चाहिए। आज तक कौंसिल द्वारा चुनावों में कभी आरक्षण नहीं दिया। ओबीसी के साथ एससी-एसटी कोटे में भी आरक्षण देने की मांग याचिका में की गई है। याचिका में यह भी तर्क रखा गया कि आज तक महिला अधिवक्ताओं को भी आरक्षण नहीं दिया गया। आरक्षण देने के मामले में कभी भी विधि मंत्रालय, बार कौंसिल ऑफ इंडिया और बार कौंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश द्वारा विचार नहीं किया गया। याचिका में केंद्र सरकार के विधि मंत्रालय, राज्य के प्रिसिंपल सेक्रेटरी विधि सिविल सेक्रेटिएट लखनऊ, चेयरमैन बार कौंसिल ऑफ इंडिया, चेयरमैन स्टेट बार कौंसिल आफ उत्तर प्रदेश को पक्षकार बनाया गया है। याचिका को उच्च न्यायालय में स्वीकार कर लिया गया है। इस मामले की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट में जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस रणविजय की खंडपीठ 20 अप्रैल को करेगी।

मंगल, गुरू को लग सकेंगे नए मुकदमे

जयपुर,  हाईकोर्ट में मंगलवार और गुरूवार को पुराने मुकदमों की ही सुनवाई की विशेष व्यवस्था को अस्थायी तौर पर वापस ले लिया गया है। साथ ही, तय किया कि अब हाईकोर्ट में सभी अदालतों के लिए कॉजलिस्ट भी लम्बी बनाई जाएगी।

सूत्रों ने बताया कि व्यवस्था सम्बन्धी यह बदलाव अमल में आ गया है। इसके अलावा कुछ न्यायाधीशों के निर्देशों पर उनकी अदालतों में सीमित मुकदमे ही लग रहे थे, अब कॉज लिस्ट में लगने वाले मुकदमों की संख्या भी बढ़ जाएगी।

इससे हाईकोर्ट प्रशासन के पेशी सेक्शन की ओर से तारीख पड़ने के बावजूद उस तारीख को अदालत में मुकदमा नहीं लगने की शिकायत दूर हो सकेगी।

Monday, January 17, 2011

अपराध न्याय प्रणाली नहीं कर रही उचित ढंग से काम : उच्चतम न्यायालय

बलात्कार और अपहरण के एक आरोपी को बरी करने में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के ‘‘लापरवाही भरे दृष्टिकोण’’ से नाराज उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि देश में अपराध न्याय प्रणाली उचित ढंग से ‘‘काम नहीं कर रही’’.

शीर्ष अदालत ने समस्या से निपटने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने की सिफ़ारिश की. न्यायमूर्ति आफ़ताब आलम और न्यायमूर्ति आरएम लोढा की पीठ ने कहा, ‘‘हम यह देखने को विवश हैं कि हमारे देश में अपराध न्याय प्रणाली वैसा काम नहीं कर रही जैसा इसे करना चाहिए .’’

पीठ ने सलाह दी कि राज्य के खिलाफ़ अपराध, भ्रष्टाचार, दहेज संबंधी मौत, घरेलू हिंसा, यौन शोषण, वित्तीय धोखाधडी और साइबर अपराध के मामलों में त्वरित गति से मुकदमा चलना चाहिए और एक निर्धारित समय में, अच्छा होगा कि, तीन साल के भीतर फ़ैसला हो जाना चाहिए.

उच्च न्यायालय द्वारा ‘‘एक गंभीर अपराध में दोषी साबित अपराधी’’ को ‘‘दिमाग लगाए बिना’’ बरी किए जाने से नाराज शीर्ष अदालत की पीठ ने देश की न्याय प्रणाली में मौजूद खामियों का जिक्र किया और सिफ़ारिश की कि बुराई से निपटने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए.

धोखाधड़ी में फंसे आरएएस अधिकारी

चित्तौड़गढ़ की कोतवाली पुलिस ने न्यायालय के आदेश पर राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अधिकारी व चित्तौड़गढ़ के तत्कालीन अतिरिक्त कलक्टर बी.एस. गर्ग के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया है। गर्ग पर अनुसूचित जाति का फर्जी प्रमाण तैयार कर नौकरी पाने का आरोप है। गर्ग वर्तमान में उदयपुर में खनिज विभाग में अतिरिक्त निदेशक प्रशासन के पद पर कार्यरत हैं।

चित्तौड़गढ़ निवासी गंगाधर पुत्र मांगीलाल सोलंकी ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष इस्तगासा दायर कर बताया कि सेंती निवासी भैरूशंकर पुत्र कन्हैयालाल गर्ग जन्म से सवर्ण जाति के होकर उच्च शिक्षा के बाद राजकीय सेवा में आए। इनके माता-पिता भी सवर्ण जाति के हैं।

गर्ग ने तहसीलदार माण्डलगढ़ से 24 अप्रेल 1982 को अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र प्राप्त किया। इसमें प्रमाण पत्र जारी होने का क्रमांक अंकित नहीं है। गलत एवं मिथ्या सूचना देकर प्रमाण पत्र प्राप्त किया गया है। इस्तगासे में बताया गया है कि गर्ग व गुरू ब्राह्मण अनुसूचित जाति की परिभाषा में नहीं आते। गर्ग ने राजस्थान लोक सेवा आयोग में अनुसूचित जाति का सदस्य बता नाजायज लाभ उठाने के उद्देश्य से अपराध किया है। इस्तगासे में कहा गया है कि पूर्व में भी इस संबंध में उच्चाधिकारियों को शिकायत की गई, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई।

24 जून 2010 को भी आईजी रेंज उदयपुर व अन्य अधिकारियों को शिकायत की गई थी। पुलिस ने न्यायालय के आदेश पर धारा 420, 467, 468, 471, 34-197 के अन्तर्गत मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।

पहले भी की थी शिकायत- गर्ग
आरएएस अधिकारी बी.एस. गर्ग का कहना है कि शिकायतकर्ता ने वर्ष 2007 में भी ऎसी ही शिकायत की थी, जो बाद में झूठी पाए जाने पर फाइल कर दी गई। हमारी जाति राजस्थान अनुसूचित जाति की सूची में दर्ज है। उच्च न्यायालय ने भी इसे अनुसूचित जाति माना है।

बेटिकट यात्रा मामले में महिला मजिस्ट्रेट की बर्खास्तगी बरकरार

उच्चतम न्यायालय ने ट्रेन में तीन बार बेटिकट यात्रा करने वाली महिला मजिस्ट्रेट की बर्खास्तगी को बरकरार रखते हुए कहा है कि न्यायाधीशों से त्रुटिहीन ईमानदारी बनाये रखने की अपेक्षा की जाती है ताकि वे समाज के लिये आदर्श पेश कर सकें.

न्यायमूर्ति मुकुंदकम शर्मा और न्यायमूर्ति ए. आर दवे की पीठ ने अपने फ़ैसले में कहा कि न्यायाधीशों को ईमानदारी का उच्चतम स्तर बनाये रखना चाहिये क्योंकि जनता के मन में उनके प्रति विश्वास की भावना होती है और वे किसी भी तरह से कानून से उपर नहीं होते. पीठ ने कहा कि यह मामला एक ऐसे न्यायिक अधिकारी का है जिन्हें उचित और गरिमापूर्ण व्यवहार करने की जरूरत थी. न्यायिक अधिकारी को त्रुटिहीन व्यवहार के जरिये अपनी जिम्मेदारियों का निवर्हन करना चाहिये.

पीठ ने अरुंधति अशोक वलवलकर की अपील खारिज करते हुए कहा कि इस मौजूदा मामले में उन्होंने महिला मजिस्ट्रेट ने न सिर्फ़ तीन बार बिना टिकट रेल के डिब्बे में यात्रा की, बल्कि उन्हें रोकने वाले टिकट कलेक्टर के खिलाफ़ शिकायत की और रेल अधिकारियों के साथ र्दुव्‍यवहार किया. पीठ ने कहा कि इन परिस्थितियों में हम यह नहीं पाते कि उन्हें दी गयी अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा को उनके खिलाफ़ लगे आरोपों के मद्देनजर अनुचति कहा जा सकता है. वलवलकर को बंबई उच्च न्यायालय में बतौर न्यायिक मजिस्ट्रेट उनकी सेवा से ‘अनिवार्य सेवानिवृत्ति’ दे दी गयी थी.

जांच में यह खुलासा हुआ था कि उन्होंने तीन बार उपनगरीय ट्रेन में बेटिकट यात्रा की और जब रेलवे कर्मियों ने उनसे टिकट खरीदने को कहा तो महिला मजिस्ट्रेट ने कर्मियों को धमकाया. महिला मजिस्ट्रेट के खिलाफ़ यह आरोप था कि उन्होंने 21 फ़रवरी 1997, 13 मई 1997 और पांच दिसम्बर 1997 को बेटिकट यात्रा की. उन्होंने रेलवे प्लेटफ़ॉर्म पर असहज स्थिति उत्पन्न कर अपने आधिकारिक परिचय पत्र का दुरुपयोग किया और अपना न्यायिक ओहदा बताते हुए कर्मियों को धमकाया.

वलवलकर को 27 सितंबर 2007 को बतौर न्यायिक अधिकारी उनके अनुचित व्यवहार के चलते सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था. इसके बाद महिला मजिस्ट्रेट ने शीर्ष अदालत में अपील दायर कर दलील दी कि उन्हें दी गयी सजा उनके द्वारा किये गये अपराध की तुलना में अनुचति है.

बर्खास्तगी को बरकरार रखते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जिस देश में कानून का शासन चलता है, वहां न्यायिक अधिकारियों सहित कोई भी कानून से उपर नहीं है. असल में न्यायिक अधिकारियों के तौर पर उन्हें अपने हर व्यवहार में सतत गरिमापूर्ण प्रदर्शन करने की जरूरत होती है.

चेक बाउंस होने के मामले में व्यक्तिगत रूप से पेश होने की जरूरत : न्यायालय


उच्चतम न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय के एक फैसले को खारिज करते हुए व्यवस्था दी है कि चेक बाउंस होने के मामले में किसी व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश जारी करने की मजिस्ट्रेट की शक्ति को नकारा नहीं जा सकता.

केरल उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि इस तरह के मामलों में व्यक्तिगत पेशी की आवश्यकता नहीं है.

उच्चतम न्यायालय ने इस पर कहा कि उच्च न्यायालय का फैसला निचली अदालतों के न्यायाधीशों के कामकाज में हस्तक्षेप करने के बराबर है जिन्हें यह निर्णय करने का अधिकार है कि व्यक्तिगत पेशी की जरूरत है या नहीं.

न्यायमूर्ति डीके जैन और न्यायमूर्ति एके गांगुली की पीठ ने कहा ‘हम यह कहने में कोई झिझक महसूस नहीं करते कि उच्च न्यायालय ने इस तरह के निर्देश जारी कर अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण किया है.’ शीर्ष अदालत ने यह फैसला एक शिकायतकर्ता की अपील पर दिया जिसने चेक बाउंस मामले के एक आरोपी को व्यक्तिगत पेशी से छूट दिए जाने के केरल उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी.

शीला और बुखारी के खिलाफ अवमानना याचिका

मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और जामा मस्जिद के शाही ईमाम सैयद अहमद बुखारी के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने की मांग की गई है। यह मांग दिल्ली के एक रेजीडेन्ट्स एसोसियेशिन ने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर करके की है।


एसोसियेशन के मुताबिक, एक अवैध मस्जिद को गिराने के बाद डीडीए ने दोबारा उस पर कब्जा कर लिया था। दोनों नेताओं ने लोगों को इस सरकारी जमीन से गुजरने और वहां नमाज अदा करने के लिए भड़काया।


जंगपुरा रेजीडेन्ट्स वेल्फेयर एसोसियेशन ने वकील आर के सैनी के माध्यम से अपने आवेदन में शीला दीक्षित और बुखारी के अलावा मटिया महल क्षेत्र के विधायक शोएब इकबाल और ओखला के विधायक आसिफ मोहम्मद खान के खिलाफ भी स्वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना कार्यवाही करने की मांग की।


एसोसियेशन ने आरोप लगाया कि अदालत के आदेशों का जानबूझकर उल्लंघन करने के लिए स्वत: संज्ञान लेते हुए आपराधिक कार्यवाही शुरू की जानी चाहिए।

यूपीएससी को वर्ष 2010 की प्रारंभिक परीक्षा के अंक घोषित करने के आदेश


दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक याचिका के आधार पर केंद्रीय संघ लोक सेवा आयोग यूपीएससी को वर्ष 2010 की प्रारंभिक परीक्षा में उत्तीर्ण सभी अभ्यर्थियों के अंकों की घोषणा करने का आदेश दिया है.

यह आदेश उस याचिका पर आया है जिसमें यूपीएससी को हर विषय के लिए सामान्य, अन्य पिछडा वर्ग, अनुसूचित जाति, जनजाति जैसी विभिन्न श्रेणियों के अभ्यर्थियों के लिए कट आफ़ अंक घोषित करने तथा संबद्ध दस्तावेजों की प्रतियां उपलब्ध कराने की मांग की गई थी.

याचिकाकर्ताओं ने वर्ष 2010 की लोक सेवा प्रारंभिक परीक्षा के सभी उत्तीर्ण अभ्यर्थियों के रोल नंबर तथा उनको मिले अंकों का खुलासा करने की मांग भी की थी. उच्च न्यायालय ने बहरहाल, आयोग को उन याचिकाकर्ताओं के परिणामों का खुलासा न करने के लिए कहा है जो वर्ष 2010 की प्रारंभिक परीक्षा में अनुत्तीर्ण रहे थे.


न्यायमूर्ति एस मुरलीधर ने अपने हालिया आदेश में कहा ‘‘अगर उत्तीर्ण अभ्यर्थियों के पूरे अंक उनके रोल नंबर के साथ बताए जाते हैं तो यूपीएससी या उत्तीर्ण अभ्यर्थी के साथ कोई पक्षपात नहीं होगा, बल्कि ऐसा करना जनहित में होगा.’’


अदालत ने यूपीएससी के वकील की यह दलील खारिज कर दी कि आयोग सूचनाओं का खुलासा नहीं करेगा क्योंकि अभ्यर्थियों ने अपना आवेदन केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी सीपीआईओ को देने के बजाय सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत दाखिल किया है.

Friday, January 14, 2011

खातेदारों का नाम बताए सरकार: उच्चतम न्यायालय

उच्चतम न्यायालय ने विदेशी बैंकों में जमा काले धन के मामले में केन्द्र के रवैये से नाराजगी जताते हुए उसे 19 जनवरी तक खातेदारों के नामों का खुलासा करने का आज निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति बी एस सुदर्शन रेड्डी तथा न्यायमूर्ति एस एस निज्जर की खंडपीठ ने जाने माने कानूनविद राम जेठ मलानी एवं अन्य की याचिकाओं की सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार से पूछा कि विदेशी बैंकों में कालाधन जमा कराने वाले लोगों के नामों का खुलासा करने में उसे क्या आपत्ति है।

केन्द्र सरकार की दलीलों से असंतुष्ट खंडपीठ ने कहा कि यह मामला अत्यंत गंभीर है और इस पर सरकार का रवैया ठीक नहीं है। खंडपीठ ने केन्द्र को निर्देश दिया कि वह इस मामले की सुनवाई की अगली तिथि 19 जनवरी तक खातेदारों के नामों का खुलासा करे।

उल्लेखनीय है कि जर्मन सरकार ने भारत सरकार को एक सूची सौंपी है, जिसमें उन लोगों के नाम हैं जिन्होंने वहां के बैंकों में कालाधन जमा कराये हैं।

अपने बच्चों को कैसे मार सकता है भारत- सुप्रीम कोर्ट

माओवादी नेता आजाद और स्वतंत्र पत्रकार हेमचंद पांडे के एनकाउंटर पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाएं हैं. सर्वोच्च अदालत ने सरकार से कहा है कि हमारा गणत्रंत अपने बच्चों को नहीं मार सकता. सरकार से मांगा संतोषजनक जवाब.  सुप्रीम कोर्ट ने माओवादी नेता राजकुमार उर्फ आजाद और हेमचंद्र पांडे को मारने पर अफसोस जताया. इन दोनों को बीते साल पुलिस ने आंध्र प्रदेश के जंगलों में एक मुठभेड़ में मार गिराने का दावा किया. मुठभेड़ के खिलाफ स्वामी अग्निवेश और पांडे के परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. शुक्रवार को याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस अफताब आलम और आरएम लोढ़ा ने मुठभेड़ और सरकार की मंशा पर मायूसी जाहिर की. बेंच ने कहा, ''हमारा गणतंत्र इस ढंग से व्यवहार नहीं कर सकता कि वह अपने ही बच्चों को मार दे.''

मामले पर नाराजगी और गंभीरता जताते हुए अदालत ने सरकार से सफाई मांगी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ''हमें उम्मीद हैं कि इस बारे में जवाब दिया जाएगा. इसका ठोस और संतोषजक जवाब होगा. सरकार को कई सवालों का जवाब देना होगा.'' यह कहते हुए कोर्ट ने केंद्र सरकार और आंध्र प्रदेश पुलिस को नोटिस जारी किया है. दोनों से छह हफ्ते के भीतर जवाब मांगा गया है.

आजाद माओवादियों के प्रवक्ता थे. उन्हें उत्तराखंड के पिथौरागढ़ शहर के पत्रकार हेमचंद्र पांडे के साथ एक जुलाई 2010 को मुठभेड़ में मारने का दावा किया गया. स्वामी अग्निवेश का आरोप है कि आजाद और पांडे को फर्जी मुठभेड़ में मारा गया. याचिकाकर्ताओं के मुताबिक आजाद केंद्र सरकार के प्रतिनिधि मंडल से बातचीत करने की आगे आ रहे थे, लेकिन इसी दौरान झांसे से पुलिस ने उन्हें और उनका इंटरव्यू लेने गए पांडे को गिरफ्तार कर लिया और फिर जंगलों में ले जाकर मार डाला.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी कहा गया है कि दोनों को बेहद करीब से गोली मारी गई. शरीर पर बने गोलियों निशानों से भी पुलिस के मुठभेड़ के दावे पर सवाल उठ रहे हैं. इसी को आधार बनाकर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र और आंध्र पुलिस के खिलाफ याचिका दायर की गई है. याचिका में कहा गया है कि फर्जी मुठभेड़ के जरिए हत्या की गई और नागरिक अधिकारों का हनन किया गया.

कपाडिया को 'भ्रष्ट' बताने वाले वकील प्रशांत भूषण पर अवमानना की कार्यवाही

सुप्रीम कोर्ट  चीफ जस्टिस के खिलाफ कथित तौर पर आरोप लगाने के मामले को लेकर वकील प्रशांत भूषण के जवाब से सुप्रीम कोर्ट संतुष्ट नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने भूषण के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू कर दी। इस मामले में पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण से कहा था कि अवमानना की कार्यवाही खत्म कर देंगे, बशर्ते की प्रशांत भूषण इस मामले में माफी मांगे। लेकिन प्रशांत भूषण ने कहा कि वह इस मामले में माफी नहीं मांगेगे इसके बाद अदालत ने कार्यवाही को आगे बढ़ाया।
प्रशांत भूषण ने कहा कि उन्हें इस मामले में और कोई स्पष्टीकरण देने की जरूरत महसूस नहीं होती, क्योंकि चीफ जस्टिस के बारे में उनकी टिप्पणी को कुछ लोगों ने गलत समझ लिया था। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि इस मामले की सुनवाई शुरू करने का फैसला किया है। इस पर प्रशांत भूषण की ओर से पेश जाने-माने वकील राम जेठमलानी ने कहा कि यदि इस सुनवाई को जारी रखा गया तो यह भानुमति के पिटारे को खोलेगी। उन्होंने कहा कि पिछले दो साल से लोग जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में क्या हो रहा है, लेकिन कोई बोलने की साहस नहीं कर सकता।
कोर्ट ने कहा कि अगर आप पिटारा खोलना चाहते हैं तो खोलें। हम कार्यवाही आगे बढ़ाएंगे। प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही इसलिए शुरू हुई है कि उन्होंने एक मैगजीन में दिए इंटरव्यू में कथित तौर पर चीफ जस्टिस और अन्य जजों पर आरोप लगाते हुए टिप्पणी की थी।

Saturday, January 8, 2011

एसडीएम समेत चार अधिकारियों पर हर्जाना

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एसडीएम सदर समेत चार अधिकारियों पर हर्जाना लगाने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने यह आदेश राजस्व अभिलेख में गलत प्रविष्टि पर दिया है। आदेश में इलाहाबाद के एसडीएम सदर पर बीस हजार, तहसीलदार सदर पर पंद्रह, नायब तहसीलदार पर दस हजार तथा लेखपाल पर पांच हजार रुपये का हर्जाना लगाया है। यह आदेश भी दिया कि अगली सुनवाई की तिथि पर हर्जाना राशि बैंक ड्राफ्ट के जरिए न्यायालय के समक्ष जमा करें। यह आदेश न्यायमूर्ति विक्रमनाथ ने बक्शी उपरहार के जगदीश प्रसाद की याचिका पर दिया। 

ज्ञातव्य है कि 1400 फसली तक याची की जमीन का रकबा .262 हेक्टेयर था। किंतु इसके बाद यह रकबा घटकर .63 हेक्टेयर हो गया। याची ने राजस्व अभिलेख दुरुस्त करने की अर्जी दी, जिसे खारिज कर दिया गया। इसी पर यह याचिका हाईकोर्ट में दाखिल की। न्यायालय ने पत्रावली तलब की, जिसमें स्पष्ट हुआ कि अधिकारियों की लापरवाही से गलती हुई है। अधिकारियों ने इस त्रुटि के लिए क्षमा मांगी। इसी पर न्यायालय ने यह आदेश जारी किया।

किसी को धर्मस्थल बनाना है तो वह निजी जमीन पर ही बनाएं : हाईकोर्ट

मप्र हाईकोर्ट ने शुक्रवार को सरकारी भूमि पर धर्मस्थल बनाने के मामले पर कड़ी टिप्पणी की है। हाईकोर्ट की जस्टिस केके लाहोटी और जस्टिस अजीत सिंह की युगलपीठ ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा -किसी को धर्मस्थल बनाना है तो वह निजी जमीन पर ही बनाएं।

सरकारी भूमि पर किसी को भी धर्मस्थल बनाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। शहर के सतीश कुमार वर्मा ने यह जनहित याचिका दायर करके शहर की प्रमुख सड़कों के किनारे स्थित अवैध रूप से बने धर्मस्थलों को चुनौती दी थी। इस पर हाईकोर्ट के निर्देश के बाद शहर से चार सौ से अधिक ऐसे धर्मस्थल हटाए जा चुके हैं।

खंडपीठ ने साईं मंदिर और दुर्गा मंदिर के संबंध में तहसीलदार को उचित निर्णय लेने के लिए कहा। पिछली सुनवाई में हाईकोर्ट ने सिविल लाइंस स्थित साईं मंदिर और दुर्गा मंदिर को हटाने पर सशर्त रोक लगा दी थी।

सुनवाई के दौरान ओमती तहसीलदार रश्मि चतुर्वेदी ने बताया कि उन्हें अभी तक दोनों मंदिरों के प्रबंधन की ओर से कोई भी आवेदन नहीं मिला।

इस पर युगलपीठ ने दोनों मंदिरों के प्रबंधनों से कहा कि वे एक सप्ताह में अपने-अपने आवेदन प्रस्तुत करें, जिनका निराकरण दो सप्ताह में किया जाए।

निचली अदालतों को मिले डीएनए जांच के आदेश के अधिकार-उच्चतम न्यायालय

उच्चतम न्यायालय ने आज केंद्र सरकार से कहा कि वह मजिस्ट्रेटी अदालतों को अज्ञात शवों की डीएनए जांच :डीएनए प्रोफाइलिंग कराने के आदेश देने का अधिकार देने की संभावनाएं तलाशे। गौरतलब है कि डीएनए जांच से यह पता करने में सहूलियत होती है कि अज्ञात शव जिस व्यक्ति का है उसके परिजन कौन हैं। 

मुख्य न्यायाधीश एस एच कपाड़िया की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह कोई निर्देश नहीं दे सकती लेकिन केंद्र सरकार से कहेगी कि इस बाबत राज्य सरकारों को सकुर्लर जारी करे। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पी पी मल्होत्रा को इस बारे में चार हफ्ते के अंदर सूचित करने का निर्देश देते हुए पीठ ने कहा आप इस बाबत एक हलफनामा दायर करें कि इस संबंध में राज्य सरकारों को सकुर्लर जारी किया जा सकता है कि नहीं जिसमें मजिस्ट्रेटों को अज्ञात शवों की डीएनए जांच कराने के आदेश देने के अधिकार प्रदान करने के बारे में लिखा गया हो।

न्यायालय ने 2009 में दायर की गयी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान सरकार को यह सुझाव दिया। याचिका में मांग की गयी थी कि न्यायालय सरकार को निर्देश दे कि अज्ञात शवों की डीएनए जांच को आवश्यक बनाया जाए ।

बालाकृष्णन पद छोड़ें : बार एसोसिएशन

कोझीकोड बार एसोसिएशन ने शुक्रवार को यहां एक संकल्प पारित कर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष और भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश के.जी. बालकृष्णन को अपने पद से हटने और भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करने के लिए कहा।

एसोसिएशन के दो सदस्यों को छोड़ 100 से अधिक सदस्यों ने संकल्प का समर्थन किया। यह पहला मौका है जब बार एसोसिएशन ने एक पूर्व प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ संकल्प पारित किया है। एसोसिएशन ने यह कदम बालाकृष्णन के रिश्तेदारों की अकूत संपत्ति उजागर होने के बाद उठाया।

बालाकृष्णन के दामाद और युवा कांग्रेस के कार्यकर्ता पी.वी. श्रीनिजीन और उनके अन्य रिश्तेदारों द्वारा अकूत सम्पत्ति बनाने पर पूर्व प्रधान न्यायाधीश का इस्तीफा मांगने वाले सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश वी.आर. कृष्णा अय्यर पहले व्यक्ति थे।

ज्ञात हो कि बालाकृष्णन के भाई के.जी. भास्करन जो केरल में विशेष सरकारी वकील हैं, वह भी जांच के दायरे में आ गए हैं। वह गत सोमवार से छुट्टी पर चले गए। एडवोकेट जनरल कार्यालय ने शुक्रवार को बताया कि उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर अपना इस्तीफा भेज दिया।

केरल सरकार ने श्रीनिजीन द्वारा ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति जमा करने के मामले की जांच का आदेश दिया है। इस सप्ताह की शुरुआत में श्रीनिजिन ने युवा कांग्रेस को छोड़ दिया था।

त्रिशूर सतर्कता न्यायालय ने बुधवार को श्रीनिजिन और भास्करन के खिलाफ वित्तीय अनियमितताओं के आरोप वाली याचिका को मंजूरी दी। न्यायालय इस मामले में 18 जनवरी को सुनवाई करेगा।

Sunday, January 2, 2011

आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों का हनन- उच्चतम न्यायालय

उच्चतम न्यायालय ने स्वीकार किया है कि 1976 में आपातकाल के समर्थन में दिये गये इसके फ़ैसले से देश में बडी संख्या में लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ.

न्यायमूर्ति आफ़ताब आलम और अशोक कुमार गांगुली की पीठ ने एक फ़ैसले में कहा कि आपातकाल के दौरान एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला मामले (1976) में पांच सदस्यों वाली संविधान पीठ द्वारा मौलिक अधिकारों को निलंबित रखने का बहुमत से लिया गया फ़ैसला एक ‘‘भूल’’ थी.

अदालत ने एक व्यक्ित द्वारा एक ही परिवार के चार सदस्यों की हत्या के मामले में सुनवाई के दौरान यह बात कही. अदालत ने इस व्यक्ित की मौत की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया. पहले उच्चतम न्यायालय ने ही उसके मौत की सजा को बरकरार रखा था.

न्यायमूर्ति गांगुली ने कहा, ‘‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि एडीएम जबलपुर मामले में इस अदालत के बहुमत के फ़ैसले से देश में बडी संख्या में लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ.’’

न्यायाधीशों ने पांच मई 2009 के अपनी अदालत के फ़ैसले को ही दरकिनार कर दिया जिसमें इसने रामदेव चौहान उर्फ़ राजनाथ चौहान की मौत की सजा को बरकरार रखा था . चौहान ने आठ मार्च 1992 को भाबनी चरण दास और उनके परिवार के तीन लोगों की हत्या कर दी थी.

न्यायमूर्ति गांगुली ने फ़ैसले में लिखा, ‘‘इस अदालत द्वारा मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाले फ़ैसले भले ही विरल हों लेकिन ऐसा नहीं कहा जा सकता कि ऐसी स्थिति कभी नहीं आई.’’