पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Sunday, January 31, 2010

हल्दीराम के मालिक को उम्रकैद की सजा

हल्दीराम भुजियावाला के मालिक प्रभु शंकर अग्रवाल और 4 अन्य लोगों को यहां की एक फास्ट ट्रैक अदालत ने एक चाय स्टॉल मालिक की हत्या की साजिश रचने और इसकी कोशिश करने के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई। अग्रवाल द्वारा निर्माणाधीन फूड प्लाजा के रास्ते में प्रमोद शर्मा की टी स्टॉल आ रही थी और दुकान नहीं हटाने के बाद उसकी हत्या की कोशिश की गई।

बैंकशैल अदालत के जज तपन सेन ने प्रभु शंकर अग्रवाल के अलावा हिस्ट्रीशीटरों- गोपाल तिवारी, अरुण खंडेलवाल, मनोज शर्मा और राजू सोनकर को धारा-307/34 (हत्या की कोशिश/ अपराध का एकसमान इरादा) के तहत 10 साल के सश्रम कारावास की सजा के अलावा धारा-120बी (आपराधिक साजिश रचने) के तहत यह सजा सुनाई। तिवारी को आर्म्स ऐक्ट के तहत कसूरवार पाया गया और एक धारा में उसे सात साल की एवं एक अन्य धारा में तीन साल की कैद की सजा सुनाई गई। जज ने अपने फैसले में कहा कि सभी सजाएं साथ-साथ चलेंगी।

मिठाई-नमकीन एवं अन्य फूड प्रॉडक्ट्स बेचने वाली करोड़ों रुपये की चेन हल्दीराम के मालिक अग्रवाल यहां बड़ा बाजार इलाके में चाय दुकान के मालिक सत्यनारायण शर्मा को दुकान हटाने के लिए नहीं मना सके। इसके बाद उनके किराए के गुंडों ने सत्यनारायण की दुकान पर धावा बोला, लेकिन वह वहां नहीं मिले। इसके बाद 30 मार्च, 2005 को इन गुंडों ने उसके भतीजे प्रमोद शर्मा को गोली मार दी, जिसमें वह गंभीर तौर पर जख्मी हो गए।

इससे पहले अग्रवाल ने जज के सामने दया याचिका की थी और कहा था कि मेरे हजारों कर्मचारी और उनके परिवार मुझ पर आश्रित हैं और मेरे जेल में रहने से कारोबार प्रभावित होगा। चार अन्य दोषियों ने भी सजा में छूट की मांग की।

दागी न्यायाधीशों को पदोन्नति नहीं देगी सरकार : मोइली

मोइली ने कहा कि न्यायाधीशों की जवाबदेही सुनिश्चित करने और विधानसभाओं तथा संसद में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण उपलब्ध कराने के लिए सरकार एक विधेयक पेश करने की तैयारी में है। मोइली ने कहा, "न्यायाधीशों की जवाबदेही के विधेयक से हम दागी न्यायाधीशों की पदोन्नति न हो यह सुनिश्चित करेंगे। यहां तक कि संदेह की एक हल्की सी सुई भी उनकी पदोन्नति को रोक देगी।"

कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पी.डी.दिनाकरन पर भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद उठे विवाद के बीच मोइली ने यह टिप्पणी की। दिनाकरन को सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश बनने का प्रस्ताव था।

सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश के कार्यालय के सूचना के अधिकार (आरटीआई) के दायरे में होने के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में मोइली ने कहा कि न्यायपालिका को पारदर्शी होना चाहिए। किसी को भी अपनी लक्ष्मण रेखा नहीं लांघनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि प्रधान न्यायाधीश के कार्यालय पर आरटीआई केवल वहीं तक लागू होना चाहिए जहां तक अन्य देशों में लागू है। सरकार अन्य देशों की स्थिति का अध्ययन कर रही है।

हत्यारिन मां को आजीवन कारावास बरकरार

सुप्रीम कोर्ट ने चार वर्ष के पुत्र की हत्या की दोषी छत्तीसगढ़ की एक आदिवासी महिला की आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी है। न्यायाधीश पी. सदाशिवम और एच. एल. दत्तू की खंडपीठ ने सतनी बाई की छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज करते हुए कल कहा कि मातृत्व भगवान का मानव को दिया हुआ सबसे बड़ा उपहार है। मां और उसकी संतान के बीच का संबंध सर्वाधिक पवित्र होता है।

खंडपीठ ने 17 पृष्ठ के अपने फैसले में कहा है कि कोई भी मां अपनी संतान के शरीर पर एक खरोंच तक नहीं देखना चाहती। न्यायमूर्ति दत्तू ने जाने-माने अमरीकी लेखक डब्ल्यू इरविंग के कथनों का उल्लेख करते हुए लिखा कि एक पिता अपनी संतान से मुंह फेर सकता है, भाई बहन दुश्मन हो सकते हैं, पति और पत्नी एक दूसरे को त्याग सकता है, लेकिन कोई मां अपनी संतान से मुंह नहीं फेर सकती, चाहे संतान भली हो या बुरी हो।

खंडपीठ ने लिखा है कि इस मामले में याचिकाकर्ता को अपने बेटे की लाश के पास खून से लथपथ कुल्हाड़ी लिए पाया गया। सतनी बाई ने अविभाजित मध्यप्रदेश के सीतापुर इलाके में अपने चार वर्षीय बेटे कन्नी लाल की 18 अगस्त 1996 को हत्या कर दी थी। इस मामले में निचली अदालत ने सतनी बाई को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, जिसे बाद में छत्तीसगढ उच्च न्यायालय ने सही ठहराया था। सतनी ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

अश्लील वेबसाइटों पर लगाम बेहद जरूरीः प्रधान न्यायाधीश

देश के प्रधान न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन ने रविवार को कहा कि अश्लील सामग्री और घृणास्पद वक्तव्यों को फैलाने वाली वेबसाइटों पर प्रतिबंध की तत्काल आवश्यकता है और एक साइबर कानून लागू किए जाने पर जोर दिया।

सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ''सरकार उन वेबसाइटों पर प्रतिबंध लगा सकती है, जो केवल अश्लील सामग्री और घृणास्पद वक्तव्यों को प्रसारित करती हैं। बहरहाल, सभी वेबसाइटों पर एक समान प्रतिबंध लगाना ठीक नहीं होगा। गलत काम करने वालों की जिम्मेदारी तय करने के लिए नेटवर्क सेवा प्रदाताओं, वेबसाइट संचालकों और व्यक्तिगत उपयोगकर्ताओं के बीच भेद करना भी महत्वपूर्ण होगा।''

'साइबर कानून प्रवर्तन कार्यक्रम और राष्ट्रीय परामर्श बैठक' के अवसर पर बालाकृष्णन ने कहा, ''ऑनलाइन माध्यम से किए जाने वाले वाणिज्यिक लेन-देन में वित्तीय धोखाधड़ी और बेईमानी की मात्रा में भी वृद्धि हुई है।''

इस अवसर पर अपने भाषण में केंद्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने कहा कि प्रौद्योगिकी के उपयोग के कई गुना बढ़ने के कारण साइबर कानून का प्रवर्तन आवश्यक है। केवल साइबर कानून के कड़ाई से लागू होने से ही सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग के उपयोग में सुधार हो सकता है।

दया याचिका की जानकारी देने वाला आरटीआई आवेदन खारिज।

गृहमंत्रालय ने संसद पर हमले के मामले में सजायाफ्ता अफजल गुरु की दया याचिका की स्थिति और उस पर अब तक हुई फाइल नोटिंग के खुलासे से यह कहते हुए इनकार कर दिया है कि इससे देश की संप्रभुता और अखंडता को खतरा है। मंत्रालय ने याचिका पर फाइल नोटिंग की मांग वाले आरटीआई आवेदन को सुरक्षा चिंताओं का हवाला देकर खारिज कर दिया है। मंत्रालय ने कहा कि याचिका पर अभी जांच होनी है क्योंकि इस मामले में दिल्ली सरकार की टिप्पणियों का अब भी इंतजार है। 

नियमों के अनुसार दया याचिका पर निर्णय करने से पहले जिस राज्य में अपराध हुआ है, वहां की सरकार की टिप्पणियां मांगी जाती हैं। अंतिम निर्णय के लिए राष्ट्रपति सचिवालय को रिपोर्ट करने से पहले इस पर दिल्ली सरकार के साथ विचार-विमर्श जारी है और मामला मंत्रालय में विचाराधीन है। इसलिए सुरक्षा चिंताओं को देखते हुए आरटीआई की धारा आठ (एक) (ए) के तहत फाइल नोटिंग का आवेदन खारिज किया जाता है। अधिनियम की उक्त धारा के अनुसार ऐसे आवेदनों पर जानकारी नहीं दी जा सकती जिससे देश की संप्रभुता एवं अखंडता या इसकी सुरक्षा, रणनीति, वैज्ञानिक या आर्थिक हित प्रभावित होते हों। वकील विवेक गर्ग के आरटीआई आवेदन के जवाब में गृह मंत्रालय ने सिर्फ इतना बताया कि उसकी पत्नी तब्बसुम द्वारा दया याचिका दायर की है।

थैला लेकर बाजार जाने में क्या हर्ज है?-सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने प्लास्टिक की थैलियों के इस्तेमाल पर लगे प्रतिबंध में ढील देने की संभावना से शुक्रवार को इनकार किया। दिल्ली सरकार ने प्लास्टिक की थैलियों का इस्तेमाल प्रतिबंधित कर रखा है। मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन, न्यायमूर्ति वीएस सुरपुरकर एवं न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की एक पीठ ने कहा, 'इसके खतरों पर नजर डालें। प्लास्टिक की थैलियां देश में तबाही फैला रही हैं।' पीठ के अनुसार, प्लास्टिक की थैलियों पर लगे प्रतिबंध से उन पुराने दिनों की ओर लौटने में मदद मिलेगी, जब लोग कपड़े, जूट और कागज के बने थैलों को लेकर बाजार जाया करते थे।

न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा कि अगर प्रतिबंध जारी रखा जाता है तो पुरानी आदतें वापस लौटेंगी। लोग अपने हाथ में थैले लेकर बाजार जाएंगे। मैं खुद थैला लेकर बाजार जाता हूं। इसमें हर्ज ही क्या है। पीठ की यह टिप्पणी उस याचिका पर आई, जिसमें प्लास्टिग बैग निर्माताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता केके वेणुगोपाल ने आरोप लगाया है कि प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबंध लगाने वाली अधिसूचना बिना उचित प्रक्रिया अपनाए हुए जारी की गई।

दिल्ली सरकार ने 7 जनवरी, 2009 को अधिसूचना जारी कर प्लास्टिक थैलियों के इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर दिया। प्लास्टिक थैली निर्माताओं का कहना है कि यह अधिसूचना दिल्ली हाई कोर्ट के 7 अगस्त, 2008 के फैसले के खिलाफ है। कोर्ट ने केवल प्लास्टिक थैलियों की मोटाई की 20 माइक्रोंस से बढ़ाकर 40 करने का निर्देश दिया था। अदालत के निर्देश में इन थैलियों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने की चर्चा भी नहीं की गई थी। निर्माताओं की ओर से कहा गया कि प्लास्टिक थैलियों के इस्तेमाल पर पूर्ण प्रतिबंध को खत्म करना चाहिए। सब्जी की दुकानों और होटलों में इनके इस्तेमाल की इजाजत दी जानी चाहिए।

अदालत ने हिंदी में सुनवाई की मांग खारिज की

दिल्ली उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल (प्रशासन) ने वकीलों के एसोसिएशन की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष अशोक अग्रवाल को भेजे ज्ञापन पत्र में कहा, "उच्च न्यायालय में हिंदी को लेकर विचार किया जा रहा है लेकिन उसे स्वीकार नहीं किया गया है। "

अग्रवाल ने पत्र के बारे में रविवार को कहा, "हम इसके खिलाफ आवाज बुलंद करेंगे। यह हमारे आंदोलन की शुरुआत है। हमें वकीलों से भारी समर्थन मिल रहा है और हम इस आंदोलन को आगे बढाएंगे।"

अग्रवाल ने कहा, "वकील जब हिंदी में दलीलें पेश करते हैं तो न्यायाधीश उस पर तवज्जो नहीं देते। अंग्रेजी प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गयी है।" उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 348 अदालत में मुकदमों की सुनवाई में अंग्रेजी के साथ ही क्षेत्रीय भाषा में भी करने की सुविधा मुहैया कराता है।

उन्होंने कहा, "राजस्थान, इलाहाबाद और मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालयों में हिंदी का प्रयोग किया जा रहा है लेकिन राष्ट्रीय राजधानी में इसका प्रयोग नहीं किया जा रहा।"

Friday, January 29, 2010

कड़कड़डूमा अदालत में देश का पहला ई-कोर्ट

कड़कड़डूमा कोर्ट में देश का पहला ई-कोर्ट शुरू होने जा रहा है। इसमें रोज होने वाली कार्यवाही की विडियो रिकार्डिग कोर्ट की वेबसाइट पर उपलब्ध होगी। इससे लोग घर बैठे कंप्यूटर पर मुकदमों की कार्यवाही देख-सुन सकेंगे। फरवरी के प्रथम सप्ताह से शुरू होने वाले ई-कोर्ट की बृहस्पतिवार को फाइनल टेस्टिंग की गई।

कड़कड़डूमा कोर्ट में 4 फरवरी से देश के पहले ई-कोर्ट शुरू करने की तैयारी कोर्ट प्रशासन ने पूरी कर ली है। इसमें कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संजय गर्ग सुनवाई करेंगे। उनकी अदालत में विचाराधीन सभी अपराधिक मामलों की सुनवाई इस ई-कोर्ट में होगी। इस अदालत में विचाराधीन 52 मुकदमों की फाइलों को स्कैन करके ई-कोर्ट के कंप्यूटर में डाल दिया गया है।

कोर्ट प्रशासन के अनुसार, ई-कोर्ट में सभी अपराधिक मामलों की सुनवाई अत्याधुनिक तकनीक विडियो फॉरमेट एमपी-4 के रूप में कंप्यूटर में दर्ज की जाएगी। इसमें होने वाले मुकदमों का कागजी रिकॉर्ड नहीं तैयार होगा। सभी फैसलों की विडियो रिकार्डिग क्लिप रोज इंटरनेट वेबसाइट पर डाली जाएगी। शुरुआती दौर में इसे केवल जजों को देखने के लिए ही उपलब्ध कराया जाएगा। बाद में लोग इसे घर बैठे कंप्यूटर पर देख सकेंगे।

न्यायालय के निर्णयाधीन एसटी से चुनाव लड़ सकते हैं नायक-राजस्थान हाई कोर्ट

राजस्थान हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह पंचायत चुनावों में नायक जाति की याचिकाकर्ता प्रत्याशियों को एसटी (अनुसूचित जनजाति) वर्ग से चुनाव लड़ने की अनुमति दें। कोर्ट ने समाज कल्याण विभाग के निदेशक, टोंक जिला कलेक्टर, अजमेर जिला कलेक्टर,देवली के तहसीलदार व केकड़ी के तहसीलदार सहित अन्य को कारण बताओ नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।न्यायाधीश आर.एस.चौहान ने यह अंतरिम आदेश देवली तहसील निवासी विमला देवी नायक व केकड़ी तहसील निवासी बाली की याचिकाओं पर दिया। आदेश में कहा कि यदि याचिकाकर्ता प्रत्याशी चुनाव में विजयी होती हैं तो उनका चुनाव, मामले के निर्णय के अधीन रहेगा।

बाली ने याचिका में कहा कि 29 नवंबर 1979 की अधिसूचना के तहत एसटी वर्ग में आती है। उसने कुशावटा ग्राम पंचायत से एसटी वर्ग से सरपंच पद का चुनाव लड़ने के लिए केकड़ी तहसीलदार के यहां एसटी वर्ग का प्रमाण पत्र जारी करने के संबंध में आवेदन किया। लेकिन पटवारी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार नायक जाति, एससी (अनुसूचित जाति) वर्ग में आती है।

पटवारी की रिपोर्ट पर तहसीलदार ने उसके आवेदन को निरस्त कर दिया और उसे एससी वर्ग का प्रमाण पत्र जारी किया। इसी तरह विमला देवी ने भी देवली तहसील की राजमहल ग्राम पंचायत से चुनाव लड़ने के लिए देवली के तहसीलदार के यहां एसटी वर्ग के प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया।

लेकिन तहसीलदार ने उसके आवेदन को निरस्त कर दिया। तहसीलदार द्वारा आवेदन को निरस्त करने की इस कार्रवाई को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। याचिकाओं में गुहार की गई कि उन्हें एसटी वर्ग का प्रमाण पत्र जारी करवाकर इस वर्ग से चुनाव लड़ने की अनुमति दी जाए। न्यायाधीश ने याचिकाओं पर सुनवाई कर राज्य सरकार से जवाब तलब करते हुए निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता प्रत्याशियों को एसटी वर्ग से लड़ने की अनुमति दें।

Thursday, January 28, 2010

हल्दीराम भुजियावाला का मालिक हत्या के प्रयास में दोषी


हल्दीराम भुजियावाला की प्रतिष्ठित खाद्य पदार्थ श्रृंखला के मालिक प्रभुशंकर अग्रवाल और चार हिस्ट्रीशीटरों को षडयंत्र और हत्या के प्रयास के लिए अदालत ने दोषी ठहराया है। सजा की घोषणा 29 जनवरी को होगी। कोलकाता के बड़ा बाजार में हल्दीराम की दुकान के सामने स्थित चाय की दुकान के मालिक ने इन सभी के खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज कराया था।

गौरतलब है कि प्रभुशंकर अग्रवाल बड़ा बाजार में एक फूड प्लाजा का निर्माण करवाना चाहते थे। लेकिन उस भूखंड के ठीक सामने सत्यनारायण शर्मा की चाय की दुकान थी। वह अपनी दुकान को हटाने को राजी नहीं हुआ। 30 मार्च, 2005 को हिस्ट्रीशीटर गोपाल तिवारी ने घर में घुसकर सत्यनारायण के भतीजे प्रमोद शर्मा को करीब से गोली मार दी। संयोगवश वह बच गया। गोली उसके पैर में लगी थी। प्रमोद की शिकायत पर पुलिस ने प्रभुशंकर अग्रवाल को गिरफ्तार किया था। पूछताछ के दौरान वारदात में हिस्ट्रीशीटर गोपाल तिवारी, राजा सोनकर, मनोज ठाकुर और अरुण खंडेलवाल शामिल पाए गए। बाद में अग्रवाल को जमानत पर रिहा कर दिया गया था। जस्टिस तपन सेन की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने बुधवार को मामले की सुनवाई के दौरान पांचों को दोषी पाया।

25 वर्षों से पदभार के लिए भटक रही शिक्षिका को मिला न्याय


विभागीय अधिकारियों के आदेश की प्रतीक्षा में एक शिक्षिका पिछले 25 वर्ष से पदभार ग्रहण करने के लिए भटकते रहने के बाद हाईकोर्ट में याचिका दायर कर न्याय की गुहार लगाई है जिस पर हाईकोर्ट ने शिक्षिका को 6 सप्ताह के भीतर नियुक्ति देने का आदेश दिया है।

दुर्ग निवासी श्रीमती शुभ लक्ष्मी नायडू की शासकीय प्राथमिक शाला जोरा जिला रायपुर में सहायक शिक्षक के पद पर 30 सितम्बर 1982 को नियुक्ति हुई थी। शिक्षिका श्रीमती नायडू बीमार हो जाने पर 4 जुलाई 83 से 25 जुलाई 1985 तक मेडिकल में रही। स्वास्थ्य ठीक होने के बाद उसने मेडिकल सर्टिफिकेट के साथ जिला शिक्षा अधिकारी से भेंटकर डयूटी ज्वाइन करने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया जिस पर जिला शिक्षा अधिकारी 26 जुलाई 1985 को खण्ड शिक्षा अधिकारी को पत्र लिख शिक्षिका श्रीमती नायडू को पदभार ग्रहण कराने आदेश दिया मगर खण्ड शिक्षा अधिकारी ने जिला शिक्षा अधिकारी को इसके लिए सक्षम बताते हुए कह दिया कि आप स्वयं ज्वाइन करा दें, परेशान शिक्षिका ने तमाम माध्यमों से प्रयास करने के बाद भी असफल रहने पर हाईकोर्ट में याचिका दायर की। जिस पर शासन को नोटिस जारी किया गया। शासन ने जवाब के लिए वक्त मांगा। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने शासन पर दो हजार रूपए का जुर्माना करते हुए दो सप्ताह के भीतर जवाब पेश करने का निर्देश दिया मगर शासन ने न तो जवाब प्रस्तुत किया और न ही जुर्माना अदा किया। शासन के इस रवैए पर जस्टिस सतीष अगि्होत्री ने याचिका की अंतिम सुनवाई करते हुए फैसले में राज्य शासन को निर्देश दिया है कि शिक्षिका को 6 सप्ताह के भीतर नियुक्ति दिया जाए एवं 3 सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता को जुर्माने की राशि का भुगतान किया जाए।

Sunday, January 24, 2010

सुप्रीम कोर्ट को सूचना के अधिकार के दायरे में लाने वाले फैसले को चुनौती


सुप्रीम कोर्ट के सभी 26 जजों ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ अपील दायर करने पर सहमति जताई है, जिसमें देश की शीर्षस्थ अदालत को भी सूचना का अधिकार (आरटीआई) एक्ट के दायरे में बताया गया है। सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने हाईकोर्ट के 88 पेज के फैसले के खिलाफ शनिवार को अपील दायर की। शीर्ष कोर्ट की ओर से दायर इस अपील के विवरण की प्रतीक्षा है।जानकारी सूत्रों ने बताया कि दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एपी शाह, जस्टिस एस मुरलीधर और जस्टिस विक्रमजीत सिंह की बेंच के बहुचर्चित फैसले को चुनौती देने के मसले पर सुप्रीम कोर्ट के सभी जज एकमत हैं।

सूत्रों ने बताया कि प्रधान न्यायाधीश के जी बालकृष्णन ने शीर्ष अदालत के अन्य न्यायाधीशों के साथ भी सलाह-मशविरा किया और जो आधार उसने बनाए हैं, वे उच्च न्यायालय में लिए गए आधारों के समान ही हैं. उसमें उसने कहा था कि सीजेआई के पास जो सूचना है, उसका खुलासा करने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित होगी.

अटार्नी जनरल उच्चतम न्यायालय रजिस्ट्री की तरफ से दलील देंगे. इस मामले के जल्द ही सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किए जाने की उम्मीद है. सूत्रों ने बताया कि शीर्ष अदालत उच्च न्यायालय के निर्देश पर रोक लगाने की मांग करेगी और वह इसे वृहत पीठ या संविधान पीठ को सौंपने की दलील देगी. सूत्रों ने कहा कि अपील काफी विचार-विमर्श के बाद दायर की गई क्योंकि शुरूआत में शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों में इस बात पर मतभेद था कि अपील की जाए अथवा नहीं.

एक ऐतिहासिक फैसले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने गत 12 जनवरी को कहा था कि प्रधान न्यायाधीश का कार्यालय आरटीआई अधिनियम के दायरे में आता है. उसने उच्चतम न्यायालय की अपील को खारिज करते हुए कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता न्यायाधीश का निजी विशेषाधिकार नहीं है, बल्कि उसे एक जिम्मेदारी दी गई है.

उच्च न्यायालय के फैसले को प्रधान न्यायाधीश के जी बालकृष्णन के लिए करारा झटका माना जा रहा है जो लगातार कहते रहे हैं कि उनका कार्यालय आरटीआई अधिनियम के दायरे में नहीं आता है. सूत्रों ने बताया कि शीर्ष अदालत उच्च न्यायालय के निर्देश पर रोक लगाने की मांग करेगी और वह इसे वृहत पीठ या संविधान पीठ को सौंपने की दलील देगी.

Saturday, January 23, 2010

वोटर लिस्ट में फोटो के आड़े न आए मजहब

सुप्रीमकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि सचित्र मतदाता सूची तैयार करने का विरोध करने के लिए धार्मिक भावनाओं का दोहन नहीं जाना चाहिए।

प्रधान न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन और न्यायाधीश दीपक वर्मा ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि आप यह नहीं कह सकते कि मैं अब भी बुर्कानशीं हूं। याचिका में मुस्लिम महिला की तस्वीर छापने को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि यह उनकी धार्मिक मान्यता के खिलाफ है।

मद्रास हाईकोर्ट ने सात सितम्बर वर्ष 2006 में एम अजमल खान की याचिका को मदुरै सेंट्रल उप चुनाव से कुछ दिन पहले खारिज कर दिया था और व्यवस्था दी थी कि पर्दा की प्रथा इस्लाम का हिस्सा नहीं है। इस याचिका की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस के. जी. बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि धार्मिक आस्थाएं संवैधानिक नियमों से ऊपर नहीं हो सकती हैं। वोटिंग संवैधानिक अधिकार है और अगर आप वोट देना चाहते हैं तो फोटो जरूरी है। अगर मुस्लिम महिला चुनाव लड़े तो क्या वह फोटो नहीं खिंचवाएगी? तब आप यह नहीं कह सकते कि मैं अब भी बुर्का ओढ़े हूं। मद्रास हाई कोर्ट ने एम. अजमल खान की याचिका को 7 सितंबर 2006 को यह कहते हुए खारिज किया था कि पर्दा इस्लाम धर्म का हिस्सा नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस मामले में सुनवाई को दो हफ्ते के लिए टालते हुए कहा कि फोटो आईडी कार्ड चुनावी प्रक्रिया के लिए जरूरी है। धार्मिक भावनाओं को वैधानिक नियमों के आड़े नहीं आना चाहिए। अगर आप वोट डालना चाहते हैं तो फोटोग्राफ जरूरी है।

मद्रास हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया था। याची ने अपनी याचिका में संविधान की धारा 25 के तहत धार्मिक मामलों में आजादी के अधिकार का जिक्र करते हुए कहा था कि वोटर लिस्ट में बुर्कानशीं महिला का फोटो हमारी धार्मिक भावनाओं में हस्तक्षेप है। हम फोटो आईडी कार्ड जारी करने के लिए आयोग के अधिकार पर सवाल नहीं उठा रहे हैं। हम सिर्फ वोटर लिस्ट में ऐसी महिलाओं के फोटोग्राफ छापने और उसे लोगों व राजनीतिक दलों में बांटने के खिलाफ हैं। हम चाहते हैं कि ये वोटर लिस्ट सिर्फ उन्हीं अधिकारियों तक सीमित रहे जो वेरिफिकेशन के अधिकारी हैं। अगर इन्हें यों ही सार्वजनिक कर दिया गया तो इन तस्वीरों के बेजा इस्तेमाल की आशंका है। याची ने कुरान का जिक्र करते हुए कहा कि उसमें भी कहा गया है कि मुस्लिम महिलाओं को पर्दा करना चाहिए।

भविष्य में सुप्रीम कोर्ट की 4 क्षेत्रीय पीठें संभव।


न्यायिक व्यवस्था पर बढ़ रहे लम्बित मामलों के बोझ को कम करने के लिए देश में एक नहीं, बल्कि चार सुप्रीम कोर्ट खोले जा सकते हैं। नई दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता और चेन्नई में इनकी स्थापना पर विचार शुरू हो चुका है। केन्द्र सरकार लॉ कमीशन की उस सिफारिश को गम्भीरता से लेने पर विचार कर रही है जिसमें चारों महानगरों में सुप्रीम कोर्ट स्थापित किए जाने की मांग की गई है।

सूत्रों के मुताबिक, लॉ कमीशन ने अपनी 229वीं रिपोर्ट में चारों मेट्रो शहरों में सुप्रीम कोर्ट बनाए जाने की सिफारिश की है। इसके साथ ही राजधानी में संवैधानिक मामले निपटाने के लिए एक फेडरल कोर्ट स्थापित किए जाने की भी बात कही गई है। मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्णन ने भी इस सिफारिश पर अपनी सहमति दे दी है।

...ताकि दिल्ली पर बोझ हो कम

चारों मेट्रों में सुप्रीम कोर्ट बनाने का यह विचार संविधान के अनुच्छेद 130 से लिया गया है। इसमें कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट दिल्ली या ऎसी ही किसी जगह पर बनाए जा सकते हैं और मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद नियुक्त किए जा सकते हैं।

कानून मंत्री वीरप्पा मोइली को दी गई रिपोर्ट में आयोग ने कहा है कि संवैधानिक मामलों के लिए एक कॉन्स्टीटयूशन बेंच को दिल्ली में स्थापित किया जाए, जबकि इसके अलावा उत्तरी भारत के लिए दिल्ली में, दक्षिणी क्षेत्र में चेन्नई या हैदराबाद में, पूर्वी भारत के लिए कोलकाता में और पश्चिमी क्षेत्र के लिए मुंबई में सुप्रीम कोर्ट स्थापित किए जाएं। जिससे सम्बन्धित क्षेत्र के हाईकोर्ट के फैसलों व आदेशों पर दिल्ली आने के बजाए उसी क्षेत्र में सुनवाई हो सके।

कब हुआ गठन?

सुप्रीम कोर्ट देश की उच्चतम न्यायिक व्यवस्था है जिसका गठन संविधान के अध्याय चार के अनुभाग पांच के तहत स्थापित किया गया है। संविधान के चार आधार स्तम्भों में यह प्रमुख है।

अभी कितने मामले?

देश भर की अदालतों में अभी भी 3.5 करोड़ से ज्यादा मामले लम्बित हैं। इनमें से कई 1950 से लम्बित हैं। सुप्रीम कोर्ट में 53000, हाईकोर्टो में 40 लाख और निचली अदालतों में लम्बित मामलों की संख्या 2.7 करोड़ के लगभग है।

हाईकोर्टो की स्थिति

देश में कुल 21 हाईकोर्ट हैं जिनमें इलाहाबाद हाईकोर्ट में सर्वाधिक 12 लाख से ज्यादा मामले आज भी न्याय के इंतजार में हैं।

अधीनस्थ कोर्टो की दशा

अधीनस्थ कोर्टो की हालत सबसे दयनीय हैं। देश के 625 जिलों में बनीं जिला अदालतों और अतिरिक्त अदालतों में मामले बढ़कर पौने तीन करोड़ के करीब पहुंच गए हैं। जजों की कमी से जूझ रहे ये न्यायालय छोटे-छोटे मामलों को भी त्वरित नहीं निपटा पाते।

कदम कितना जरूरी

मामलों के लम्बित होने का एक मात्र कारण अब तक सिर्फ जजों की कमी ही माना जा रहा है। जिला अदालत, हाईकोर्ट से मामला निपटने के बाद सीधे दिल्ली स्थित सुप्रीम कोर्ट पहुंचता है। देश के कोने-कोने से शीर्ष अदालत में मामले लम्बित हैं। यदि चार महानगरों में शीर्ष अदालतें खोलीं जाती हैं तो विवादों की सीमा तय होगी और उचित न्यायालय में उनका आसानी से निपटारा भी हो सकता है। हालांकि, प्रश्न यह उठता है कि अब तक लंम्बित देशभर के मामलों को क्या इन नए शीर्ष न्यायालयों में स्थानान्तरित किया जाएगा या नहीं?

Thursday, January 21, 2010

माथुर आयोग पर उच्चतम न्यायालय जाएगी गेहलोत सरकार


राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे सिंधिया के कार्यकाल में हुई गड़बडिय़ों की जांच के लिए अशोक गेहलोत सरकार द्वारा गठित माथुर आयोग के कामकाज पर रोक लगाने के मामले में सरकार अब उच्चतम न्यायालय जाने की तैयारी में है।
राज्य सरकार के सूत्रों के अनुसार कार्मिक मंत्रालय ने इस बारे में तैयारी पूरी कर ली है। बताया जाता है कि सर्वोच्च न्यायालय जाने के लिए सरकार लोकायुक्त के क्षेत्राधिकार को आधार बनाएगी। राजस्थान में मौजूदा मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक आदि एक्ट में बदलाव के लिए सन्‌ २००७ में यह प्रस्ताव सरकार के पास भेजा गया है। मुख्यमंत्री गेहलोत पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि माथुर आयोग बनाने के पीछे की मंशा सिर्ड्ड आरोपों की सच्चाई को सामने लाने की थी। किसी पूर्व मुख्यमंत्री, मंत्री को परेशान करने की नीयत नहीं थी। यदि ऐसी नीयत होती तो आयोग का गठन इन्क्वायरी एक्ट के तहत किया जाता। आयोग का गठन इसलिए भी किया गया चूंकि मौजूदा सरकार में मंत्री और सचेत अफसर रहें। उन्हें यह आभास रहे कि गलत काम करने पर उनके खिलाफ भी जांच हो सकती है।

Wednesday, January 20, 2010

भ्रष्टाचारी न्यायाधीश को उम्रकैद


चीन के सर्वोच्च न्यायालय के एक पूर्व न्यायाधीश को लोक निधि में गबन और घूस में पाँच लाख अमेरिकी डॉलर से ज्यादा लेने के जुर्म में आज उम्रकैद की सजा सुनाई गई।

एक समय चीन के सुप्रीम पीपुल्स कोर्ट के उपाध्यक्ष रहे हुआंग सुआंगिओउ को लांगफांग इंटरमीडिएट पीपुल्स कोर्ट ने यह सजा सुनाई। भ्रष्टाचार के मामले में जेल जाने वाले वे दूसरे शीर्ष चीनी अधिकारी हैं।

चीन के राष्ट्रपति हू जिंताओं ने कम्युनिस्ट पार्टी की विरासत में सबसे बड़ी चुनौती भ्रष्टाचार को बताया था और इसके बाद बीजिंग ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ी। हुआंग की सजा इसी मुहिम का नतीजा है।

शिन्हुआ एजेंसी ने बताया कि 52 साल के हुआंग को 2005 से 2008 के बीच घूस में पाँच लाख 74 हजार अमेरिकी डॉलर लेने का दोषी पाया गया। उन्हें 1997 में लोक निधि से 12 लाख युआन के गबन का भी दोषी पाया गया। हुआंग 1997 में दक्षिण चीन के झानझियांग शहर के इंटरमीडिएट पीपुल्स कोर्ट के अध्यक्ष थे।

एजेंसी ने अपनी खबर में बताया कि जज ने फैसले में कहा जज ने जुर्म को कुबूला और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। उनकी निजी संपत्ति को जब्त कर लिया गया है और उसके राजनीतिक अधिकारों को जीवनभर के लिए छीन लिया गया है।

आपराधिक मुकदमा सरकारी नौकरी पाने में बाधक नहीं-राजस्थान उच्च न्यायालय


राजस्थान उच्च न्यायालय ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि विचाराधीन आपराधिक मुकदमा सरकारी नौकरी पाने में बाधक नहीं है। न्यायमूर्ती ए के रस्तौगी ने महेश कुमार वर्मा की याचिका पर यह फैसला दिया। न्यायालय ने याचिकाकर्ता को लैब टैक्नीशियन के पद पर कार्यग्रहण कराने के निर्देश दिए।
मामले के अनुसार याचिकाकर्ता के विरद्ध वर्ष १९९७ में मुकदमा दर्ज हुआ था तथा ९ दिसंबर १९९७ को उसे अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सीकर ने बरी कर दिया था। फिर वर्ष २००६ में उसके खिलाफ एक अन्य मामला दर्ज हुआ और आरोप पत्र न्यायालय में पेश हो गया।
इसमें राजीनामा होने के बाद प्रकरण अदालत में विचाराधीन रहते उसे अतिरिक्त निदेशक (प्रशासन) चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ने चयनित होने के बावजूद उसे लैब टैक्नीशियन के पद पर कार्यग्रहण कराने से मना कर दिया, तत्पश्चात मामला उच्च न्यायालय पहुंचा और न्यायालय को बताया कि उसे विभाग को अपने विरूद्ध आपराधिक मुकदमा विचाराधीन रहने की जानकारी दे दी थी।
इस पर न्यायालय ने स्वास्थ्य विभाग से जवाब तलब करते हुये याचिकाकर्ता को तुरंत कार्यग्रहण कराने के निर्देश दिये।

कोर्ट परिसर में अधिवक्ता की पिटाई


उदयपुर पारिवारिक न्यायालय में मंगलवार दोपहर एक अधिवक्ता को उसके सास, ससुर व पत्नी ने पीट दिया।पुलिस सूत्रों ने बताया कि कानोड़ हाल उदयपुर में प्रेक्टिस कर रहे अधिवक्ता प्रमोद जैन की हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत पेशी थी। समझौता वार्ता के बाद अधिवक्ता प्रमोद जैन चेम्बर से बाहर निकल रहा था। इस दौरान उसकी पत्नी सोनू, ससुर गोपाल सोनी व सास दुर्गा सोनी ने कोर्ट परिसर में ही उसे घेर लिया तथा पिटाई शुरू कर दी।
अधिवक्ता की पिटाई कोर्ट परिसर में कौतूहल का विषय बन गई। परिसर में खासी भीड़ एकत्रित हो गई। काफी देर हंगामे के बाद सभी वहां से रवाना हो गये। अधिवक्ता ने अपनी पत्नी व सास-ससुर के खिलाफ मारपीट का प्रकरण दर्ज कराया है।
अधिवक्ता ने बताया कि उसकी जनवरी ०९ में लव मैरिज हुई थी। शादी पश्चात ५ माह साथ गुजारने के बाद उसकी पत्नी पीहर चली गई थी। लव मैरिज के बाद वह भी कानोड़ से उदयपुर आकर रहने लग गया था।

जज पर लगा अश्लील एसएमएस का आरोप


नई दिल्ली की एक निचली अदालत के एक जज पर अपने मोबाइल फोन से एक युवती को अश्लील एसएमएस भेजने का आरोप लगाया गया है। इस मामले में फिलहाल जज ने चुप्पी साध रखी है। उत्तरप्रदेश स्थित बदायूं जिले के न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रमोद गंगवार और उनके एक दोस्त विवेक गुप्ता के खिलाफ बरेली की एक युवती ने महिला थाने में एफआईआर दर्ज कराई है। युवती ने इसमें जिस मोबाइल नंबर का जिक्र किया है, वह जज का है।

जज के बजाय कॉलेज में लेक्चरर गुप्ता ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि इस मामले में अगर उन्हें गिरफ्तार किया गया तो उनकी प्रतिष्ठा और कॅरियर दोनों खतरे में पड़ जाएंगे। हाईकोर्ट ने इस सिलसिले में जज गंगवार तथा गुप्ता दोनों को झटका देते हुए उनके खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर खारिज करने या जमानत देने से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट ने साफ कहा कि गुप्ता ने गंगवार के साथ मिलकर युवती को अश्लील एसएमएस भेजे। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि प्राथमिकी में उसके खिलाफ कोई आरोप तय नहीं होते। कोर्ट ने इसे संज्ञेय अपराध बताते हुए इस मामले में किसी तरह के हस्तक्षेप से इनकार कर दिया।

पहला मामला : विधि विशेषज्ञों के अनुसार, अपने मोबाइल फोन का आपत्तिजनक कॉल्स के लिए दुरुपयोग के मामले में किसी जज का नाम सामने आने का यह पहला मामला है। इससे पहले, अधीनस्थ न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ दुष्कृत्य जैसे आरोप लग चुके हैं, जबकि उच्चतर न्यायालयों के जजों पर सेक्स स्कैम में लिप्त रहने तक के आरोप लगे हैं।

थम्स अप में छिपकली, कंपनी पर हर्जाना


जिला उपभोक्ता फोरम इंदौर ने थम्स अप में छिपकली मिलने पर कंपनी को हर्जाना भुगतान का आदेश दिया। फैसला फोरम की अध्यक्ष सरोज महेंद्र जैन, सदस्य शोभा दुबे व भारती पोरवाल की तीन सदस्यीय पीठ ने सुनाया। वेदप्रकाश त्रिवेदी निवासी गोविंद कॉलोनी ने फोरम में परिवाद लगाकर कहा था कि उसने एमजी रोड स्थित दुकान से 24 मई 07 को थम्प अप ब्रांड के नाम से शीतलपेय खरीदा था। जैसे ही शीतलपेय की बोतल खोली उसमें छिपकलीनुमा जंतु दिखाई दिया। इससे परिवादी व उसका परिवार भयभीत हो गया।



परिवादी ने बोतल के फोटोग्राफ उतरवाए थे जो फोरम में पेश कर कहा कि यदि उसके परिजन उसका उपयोग कर लेते तो खतरनाक हादसा हो सकता था। परिवादी ने इसके लिए हिंदुस्तान कोकोकोला वेबरजेल, पीलूखेड़ी नरसिंहगढ़ (राजगढ़) एवं एव्हर बेस्ट बेकरी सेंटर को पक्षकार बनाकर 10 लाख का हर्जाना मांगा था। .



प्रकरण की सुनवाई में कंपनी की ओर से तर्क दिया गया कि विवादित बॉटल का परीक्षण कराया गया जिस पर बेच नंबर अंकित नहीं है। बॉटल का उपयोग निर्माण से छह माह की अवधि में किया जाना चाहिए था। दुकानदार की ओर से कहा गया कि उसे कंपनी की ओर से जो माल मिलता है उसका विक्रय करता है।
कंपनी ने सेवा में कमी की, दुकानदार ने नहीं



फोरम ने फैसले में लिखा कि लेबोरेटरी की रिपोर्ट पर विश्वास नहीं किया जा सकता। सीलबंद पेय पदार्थ में 10 से 15 मिलीमीटर का इन्सेक्ट पाया गया जो कंपनी द्वारा की गई सेवा में कमी है। इसमें दुकानदार का दोष प्रकट नहीं होता। अत: कंपनी परिवादी को मानसिक संत्रास के रूप में पांच हजार रुपए आठ प्रतिशत ब्याज सहित एवं परिवाद व्यय के एक हजार रुपए का भुगतान करे।

Tuesday, January 19, 2010

नेटवर्किन्ग वेबसाइट पर प्रोफाइल को सबूत माना कोर्ट ने।


एक व्यक्ति को अपनी इंटरनेट प्रोफाइल पर अपनी कंपनियों का उल्लेख करना महंगा पड़ गया। व्यक्ति की पत्नी ने इसी प्रोफाइल का उपयोग गुजारे भत्ते दावे के मुकदमे में सबूत के तौर पर किया। इसके बाद अदालत ने पति को अपनी पत्नी को 15,000 रुपये का गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने पिछले हफ्ते निचली अदालत के एक आदेश को कायम रखते हुए यह आदेश दिया। मुकदमे के मुताबिक पत्नी ने तलाक की अपनी लंबित याचिका के तहत अपने पति से गुजारे भत्ते की मांग की थी। पत्नी ने पारिवारिक अदालत में सबूतों के तौर पर पति की सोशल नेटवर्किनग वेबसाइट की प्रोफाइल पेश की थी, जिनमें उसे चार फर्म्स और कई वाहनों का मालिक बताया गया था।

निचली अदालत ने इस जानकारी को सबूतों के तौर पर स्वीकार करते हुए पति को अपनी पत्नी को 15 हजार रुपये प्रति महीने का गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था। पति के वकील ने इसे हाई कोर्ट उच्च में चुनौती देते हुए कहा था कि प्रोफाइल का उपयोग सबूत के तौर पर नहीं हो सकता। पारिवारिक अदालत के आदेश को निरस्त करने से इनकार करते हुए हाई कोर्ट ने अपील को खारिज कर दिया।

सिखों को हिंदुओं से अलग करने संबंधी याचिका खारिज।


सुप्रीम कोर्ट ने सिख समुदाय में पैदा होने वाले व्यक्ति को हिंदू विवाह कानून के तहत जन्म प्रमाण पत्र जारी करने से संबंधित जनहित याचिका पर कोई आदेश जारी करने से इन्कार कर दिया है। याचिका में कहा गया था कि इसकी वजह से दुनिया भर के आप्रवासन अधिकारियों को यह बताना कठिन हो जाता है कि यह समुदाय हिंदुओं से अलग है। याचिका में अदालत से सिख समुदाय को हिंदू विवाह अधिनियम के दायरे से बाहर करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 25 में संशोधन के निर्देश देने का आग्रह किया गया था।

मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष सोमवार को वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा, विदेश में विशेषकर आप्रवासन अधिकारियों को यह समझा पाना बहुत कठिन हो जाता है कि सिख समुदाय को जन्म प्रमाण पत्र तो हिंदू विवाह कानून के तहत दिए जाते हैं लेकिन धार्मिक दृष्टि से यह समुदाय हिंदुओं से अलग है। रोहतगी जोगिंदर सिंह सेठी नामक सिख द्वारा दायर जनहित याचिका की पैरवी कर रहे थे।

सुप्रीम कोर्ट पीठ ने कहा कि हालांकि वह इस याचिका में उठाए गए मुद्दे से सहमत है। लेकिन इस पर विचार नहीं किया जा सकता क्योंकि यह सरकार के अधिकार क्षेत्र का मामला है। पीठ ने कहा, हम जानते हैं कि लोगों को समझाना बहुत कठिन है लेकिन हम कोई निर्देश जारी नहीं कर सकते।

उल्लेखनीय है कि न्यायाधीश एम.एन. वेंकटचलैया की अध्यक्षता वाले आयोग ने बौद्ध, जैन और सिख धर्मावलंबियों को हिंदू विवाह कानून से अलग करने की संस्तुति की थी। इस याचिका के जरिए इन वेंकटचलैया आयोग की सिफारिशें लागू करने के लिए सरकार को निर्देश देने की भी मांग की गई थी।

Monday, January 18, 2010

भारत में कानून की पहली ई-किताब


भारत में पहली बार कानून की एक किताब डिजिटल फार्म में वायरलेस ई-बुक किंडल में लांच की गई है। किंडल किताब की तरह दिखने वाली छोटी सी डिवाइस है। इस छोटे से उपकरण में 1500 किताबें डाउनलोड कर सहेजी जा सकती हैं और कभी भी, कहीं भी पढ़ी जा सकती हैं।

रविवार को यहां कानून की जिस किताब को डिजिटल फार्म में लांच किया गया, उसका नाम 'द कोड आफ सिविल प्रोसिजर 1908' है। किताब के लेखक अनुपम और मोनिका श्रीवास्तव हैं। किताब का लोकार्पण दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश मदन बी. लोकुर और ए.के. सिकरी ने किया।

भारतीयों पर नस्ली हमले में पहली सजा।


आस्ट्रेलिया की एक अदालत ने शुक्रवार को त्वरित कार्रवाई करते हुए एक भारतीय टैक्सी चालक पर हमला करने वाले आस्ट्रेलियाई नागरिक को तीन महीने कैद की सजा सुनाई। यह फैसला घटना के कुछ ही घंटों के भीतर हो गया।

बैलारट, पश्चिमी विक्टोरिया के पॉल जॉन ब्रोगडन [48] ने रात शराब के नशे में भारतीय टैक्सी चालक सतीश थातिपामुला [24] को गालियां दीं और उस पर हमला किया। उसने भारतीय को जान से मारने की धमकी दी और उसके वाहन को तोड़ दिया।

पुलिस ने आज सुबह ब्रोगडन को गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया जहां घटना के कुछ ही घंटे बाद उसे तीन महीने कैद की सजा सुना दी गई। मारपीट करने वाले ब्रोगडन का मानना था कि भारतीय चालक उसे गलत रास्ते पर ले गया।

मामले के अनुसार, ब्रोगडन ने भारतीय चालक से कहा कि जब तुम मुझे उतारोगे तो मैं तुम्हें मार दूंगा। तेरी मां..मैं तुम्हें मार दूंगा, यू इंडियन बास्टर्ड। उसने सतीश पर हमला भी किया। हालांकि उसे ज्यादा चोट नहीं आई।

ब्रोगडन के वकील फिलिप लिंच ने कहा कि उसके मुवक्किल ने अत्यधिक शराब पी ली थी, इसलिए वह रात की घटना को याद नहीं कर सकता।

सजा सुनाते हुए मजिस्ट्रेट ने कहा, समुदाय को मूल्यवान सेवा दे रहे लोगों के खिलाफ नस्लवाद और हिंसा की घटनाएं बर्दाश्त नहीं की जाएंगी।

अदालत में बयां किए गए घटनाक्रम के अनुसार ब्रोगडन ने एक शराब पार्टी में शामिल होने के बाद गत रात स्थानीय समयानुसार तड़के लगभग दो बजे एक टैक्सी किराए पर ली। पार्टी में उसने कुछ नशीली गोलियां भी खाई।

पुलिस प्रवक्ता ने बताया कि आस्ट्रेलियाई नागरिक जब गालियां देने लगा तो भारतीय चालक ने तड़के लगभग सवा दो बजे एक सर्विस स्टेशन में शरण ली, लेकिन शराबी यात्री ने उसका पीछा किया और उस पर हमला किया।

ब्रोगडन ने भारतीय पर हमला करने के साथ ही सर्विस स्टेशन पर पेट्रोल भर रहे एक अन्य व्यक्ति पर भी हमला किया।

मजिस्ट्रेट ने शराब पीने की लत के बारे में कहा, हमारे समुदाय में शराब हिंसा पैदा कर रही है जो वास्तव में खतरनाक स्थिति है।

इस दौरान अदालत को पता चला कि ब्रोगडन शराब से संबंधित एक मामले में पहले भी दोषी ठहराया जा चुका है।

लिंच ने कहा कि ब्रोगडन डरा हुआ था और उसने अपने को जेल भेजे जाने की मांग की थी। उन्होंने कहा कि उनका मुवक्किल मामले में जल्द निपटारा चाहता था और ऐसा कर मजिस्ट्रेट अत्यंत खुश थे।

इस बीच, ताजा घटना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए आस्ट्रेलिया में फेडरेशन ऑफ इंडियन स्टूडेंट्स के प्रवक्ता गौतम गुप्ता ने कहा कि मैं इस मुद्दे को सरकार द्वारा गंभीरता से लिए जाने और नए घृणा अपराध अधिनियम को पूर्ण प्रभाव के साथ लागू करने की उम्मीद कर रहा हूं।

आस्ट्रेलिया में भारतीयों पर हमले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। हाल ही में 21 वर्षीय छात्र नितिन गर्ग की यहां अज्ञात हमलावरों ने चाकुओं से गोदकर हत्या कर दी थी। न्यू साउथ वेल्स में भी पिछले महीने एक अन्य भारतीय युवक रणजोध सिंह को मार दिया गया था।

आस्ट्रेलिया में वर्ष 2009 में भारतीयों पर लगभग 100 हमले हुए, जबकि 2008 में हमलों की 17 घटनाएं हुई थीं। बुधवार को आग लगाकर एक अ‌र्द्ध निर्मित गुरुद्वारे को भी क्षतिग्रस्त कर दिया गया।

इन हमलों से भारत-आस्ट्रेलिया संबंधों पर असर पड़ रहा है। कैनबरा का कहना है कि सभी हमले नस्लवाद से प्रेरित नहीं हैं।

अब न्यायालय आपके द्वार योजना।


अब आपको न्याय के लिए न्यायालय जाने की कोई आवश्यकता नहीं रहेगी बल्कि आपको न्याय आपके घर के दरवाजे पर ही मिलेगा। लंबित मुकदमों में कमी लाने के लिए संभवतया पहली बार, महाराष्ट्र में मोबाइल कोर्ट शुरू किया जा रहा है। इस योजना से जु़डे अधिकारियों ने बताया कि मोटर दुर्घटना दावों सहित दीवानी व क्षतिपूर्ति संबंधी छोटे मामलों की सुनवाई के लिए यह मोबाइल वैन एक माह तक जिलों में जाकर प्रमुख कस्बों में शिविर लगाकर मुकदमों की सुनवाई करेगी और तुरंत फैसला सुनाएगी। राज्य विधि सेवा प्राधिकरण इस योजना की शुरूआत कर रहा है। प्राधिकरण के संरक्षक एवं कार्यकारी अध्यक्ष, बाम्बे हाईकोर्ट के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश जे एन पटेल यहां मुम्ब्रा में कल इस कार्यक्रम का उद्घाटन करेंगे। ठाणे जिला विधि सहायता सेवाओं के प्रभारी अधिकारी त्रिम्बक कोचेवाड के अनुसार शुरू में प्रत्येक दिन करीब 195 मामलों की सुनवाई होगी।

पिता ऊंची जाति का तो संतान को आरक्षण नहीं-गुजरात हाईकोर्ट


गुजरात हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि ऊंची जाति के पिता और अनुसूचित जनजाति की मां के संबंध से पैदा हुए बच्चे को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।
मुख्य न्यायाधीश एस.जे. मुखोपाध्याय और न्यायाधीश ए.एस. दवे की पीठ ने हाल ही में रमेश नेका नामक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई के बाद यह फैसला दिया। नेका ने हाईकोर्ट की एकल पीठ के फैसले को चुनौती दी थी। एकल पीठ के न्यायाधीश ने यह जानने के बाद कि उसके पिता ऊंची जाति के हैं, उसका जाति प्रमाणपत्र रद्द करने के पंचमहल जिले के अधिकारियों के आदेश को सही ठहराया था।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा, भारत के संविधान के तहत यह पहले से तय है कि कोई भी व्यक्ति जिसे अगड़ी जाति में पैदा होने के कारण जीवन की शुरूआत में लाभ मिला वह गोद लेने से, शादी करने से या धर्म परिवर्तन करने से आरक्षण का लाभ पाने के योग्य नहीं हो जाता। अदालत ने आगे कहा कि अपीलकर्ता नेका अगड़ी जाति के पिता की संतान है। हिंदू नियम के अनुसार, उन्हें इनकी जाति पिता से मिली न कि अनुसूचित जनजाति की इनकी मां से। इस वजह से अपीलकर्ता को उस दौर से नहीं गुजरना पड़ा जिसे अनुसूचित जाति या जनजाति के लोग झेलते हैं।
नेका ने कहा था कि उसका लालन पालन जनजातीय समाज में हुआ क्योंकि आदिवासी लड़की से शादी के बाद उसके पिता को समाज से निकाल दिया गया था। अदालत ने इस तर्क को खारिज कर दिया।

Thursday, January 14, 2010

1984 के दिल्ली दंगे : सज्जन कुमार पर दो मामलों में चार्जशीट

दिल्ली में 1984 के सिख विरोधी दंगों से संबंधित दो मामलों में सीबीआई ने कांग्रेस नेता सज्जन कुमार के खिलाफ यहां मैट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेटन की अदालत में बुधवार को आरोप-पत्र दाखिल किए। ये दो मामले सुल्तानपुरी और दिल्ली कैंट पुलिस थानों में दर्ज थे। गौरतलब है कि ये मामले तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भ़डके दंगों में दोनों इलाकों में सात और पांच लोगों के मारे जाने के संबंध में दर्ज किए गए थे। इसके अलावा मंगोलपुरी पुलिस थाने में दर्ज एक अन्य मामले में मामला बंद करने की रिपोर्ट पेश की। इस मामले में एक व्यक्ति मारा गया था। दोनों आरोप-पत्रों में बाहरी दिल्ली संसदीय क्षेत्र से पूर्व कांग्रेसी सांसद सज्जन कुमार को हत्या तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ए के तहत विभिन्न वर्गो के बीच आपसी दुश्मनी को बढ़ावा देने का आरोपी ठहराया गया है।


सुल्तानपुरी मामले में सज्जन कुमार सहित पांच जबकि दिल्ली कैंट मामले में आठ लोग आरोपी हैं। मुख्य मैट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने आरोप-पत्रों के साथ ही मामला बंद करने संबंधी रिपोर्ट को क़डकडडूमा कोर्ट ने अतिरिक्त मुख्य मैट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत के लिए मार्क कर दिया। इस पर क़डकडडूमा कोर्ट में सोमवार को विचार किया जाएगा। तीनों मामले न्यायाधीश जीटी नानावती आयोग की सिफारिश पर दर्ज किए गए थे, जिसने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भ़डके सिख विरोधी दंगों का कारण बनने वाली घटनाओं की जांच की थी। इन दंगों में सज्जन कुमार की कथित संलिप्तता के लिए नानावती आयोग द्वारा उन्हें दोषी ठहराए जाने के बाद आम जनता के असंतोष के चलते कांग्रेस पार्टी ने उनका नाम पिछले आम चुनाव से वापस ले लिया था। जगदीश टाइटलर इस मामले में एक अन्य प्रमुख कांग्रेसी नेता थे जिनके खिलाफ आयोग ने आपराधिक मामला चलाए जाने की सिफारिश की थी। टाइटलर के खिलाफ मामला बंद करने की सीबीआई की रिपोर्ट क़डकडडूमा की एक विशेष अदालत में लंबित है।

हाईकोर्ट का फैसला चीफ जस्टिस का पद सूचना के अधिकार कानून के दायरे में, सुप्रीम कोर्ट अपील करेगा।


दिल्ली हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि चीफ जस्टिस (सीजेआई) का पद सूचना के अधिकार कानून के दायरे में आता है। कोर्ट ने कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता किसी जज का विशेषाधिकार नहीं, बल्कि उसे सौंपी गई जिम्मेदारी है। 
मुख्य न्यायाधीश ए. पी. शाह और जस्टिस विक्रमजीत सेन व एस. मुरलीधर की तीन सदस्यीय बेंच का 88 पन्नों का यह फैसला चीफ जस्टिस के. जी. बालाकृष्णन के लिए एक निजी धक्के के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने आरटीआई ऐक्ट के तहत जजों से संबंधित संपत्ति के ब्यौरे मांगे जाने का विरोध किया था।
दिल्ली हाई कोर्ट की इस तीन सदस्यीय बेंच ने सुप्रीम कोर्ट की यह दलील खारिज कर दी कि चीफ जस्टिस के पद को आरटीआई ऐक्ट के दायरे में लाने से न्यायिक स्वतंत्रता बाधित होगी। बेंच ने फैसला दिया कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया का दफ्तर आरटीआई के दायरे में आता है। इसका मतलब यह हुआ कि जजों को आरटीआई के तहत संपत्ति का ब्यौरा देना होगा।

गौरतलब है कि 2 अक्तूबर 2009 हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस का दफ्तर आरटीआई के दायरे में आता है और इस तरह जजों की संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाना चाहिए। इसको सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्री ने दिल्ली हाई कोर्ट की स्पेशल बेंच के सामने चुनौती दी थी, जिसे मंगलवार को स्पेशल बेंच ने खारिज कर दिया है।

हाई कोर्ट की स्पेशल बेंच के सामने सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल ने दलील दी थी कि जजों ने संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करने का जो प्रस्ताव दिया था वह बाध्यकारी नहीं है। उसके लिए कानूनी तौर पर उन्हें बाध्य नहीं किया जा सकता। उक्त प्रस्ताव सेल्फ रेग्युलेशन के लिए था। जजों को पब्लिक स्क्रूटनी के अंदर नहीं लाया जा सकता और अगर ऐसा किया जाता है तो इससे न्यायिक व्यवस्था के स्वतंत्रता और उसके कामकाज में दखल होने लगेगा।
उच्चतम न्यायालय ने प्रधान न्यायाधीश के पद को सूचना का अधिकार कानून के दायरे में लाने वाले दिल्ली उच्च न्यायालय के आज के फैसले को चुनौती देने का निर्णय किया है। शीर्ष अदालत से सूचना लेने संबंधी नवंबर २००७ में शुरू हुई कानूनी लड़ाई के और लंबा खिंचने की संभावना है क्योंकि उच्चतम न्यायालय के पंजीयक ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने का निर्णय किया है।

फर्जी विश्र्वविद्यालयों पर केंद्र अंकुश लगाए-उच्चतम न्यायालय


उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह ऐसे शैक्षणिक संस्थाओं पर अंकुश लगाए जो फर्जीवाड़े को बढ़ावा दे रहे हैं। न्यायमूर्ति दलवीर भण्डारी और न्यायमूर्ति एके पटनायक की खण्डपीठ ने स्थानीय अधिवक्तञ विप्लव शर्मा द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि इन फर्जी शिक्षण संस्थाओं के कारण जिन छात्रों का भविष्य खराब होता है उसकी भरपाई तो किसी भी तरह के मुआवजे से नहीं हो सकती है।
सालीसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि डीम्ड विश्र्वविद्यालयों से संबंधित प्रो. पीएम टंडन की अध्यक्षता में गठित स्तरीय समिति की रिपोर्ट और इस पर की गई कार्रवाई का विवरण पेश करने के लिए उन्हें एक सप्ताह का समय और चाहिए। इस विवाद के तूल पकडऩे पर केंद्र सरकार ने गत वर्ष ३१ जुलाई को अदालत को सूचित किया था कि डीम्ड विश्र्वविद्यालयों की बढ़ती संख्या को लेकर उठे विवाद पर एक उच्च स्तरीय समिति विचार कर रही है। रिपोर्ट सरकार को सितंबर से मिल गई थी।
अदालत ने कहा कि यह महसूस किया जा सकता है कि विश्र्वविद्यालयों से सम्बद्ध होने का दावा करके हजारों छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे इन फर्जी कॉलेजों की गतिविधियां कितनी चिंताजनक हैं।

Monday, January 11, 2010

आंध्र के दो टीवी पत्रकार न्यायिक हिरासत में


आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाईएसआर राजशेखर रेड्डी की मौत को षडयंत्र बताने वाली रिपोर्ट प्रसारित करने के मामले में दो वरिष्ठ पत्रकारों को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है. गुरुवार को यह रिपोर्ट दिखाए जाने के बाद तेलुगू टीवी चैनल टीवी-5 के एक्सीक्यूटिव एडीटर ब्रह्मानंद रेड्डी और इनपुट एडीटर पी वेंकटकृष्णा को आंध्र प्रदेश की सीआईडी ने गिरफ़्तार कर लिया था. शनिवार को उन्हें सिकंदराबाद की एक अदालत में पेश किया गया. अदालत ने दोनों वरिष्ठ टीवी पत्रकारों को 22 जनवरी तक न्यायिक हिरासत में रखे जाने का आदेश दिया है. उन्हें चंचलगुडा जेल में रखा जाएगा.

इस बीच सूत्रों के मुताबिक 11 जनवरी को दोनों की ज़मानत याचिका पर सुनवाई होगी. ये मामला तब सुर्खियों में आया था जब वाईएसआर की एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मौत हो गई थी. टीवी-5 चैनल ने इस मामले में गुरुवार को एक रिपोर्ट चलाई थी जिसमें दुर्घटना के पीछे अंबानी बंधुओं की कथित साज़िश बताई गई थी. हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मारे गए थे वाईएसआर अंबानी बंधुओं ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई थी और रिपोर्ट का खंडन किया था. हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मारे गए थे वाईएसआर लेकिन रिपोर्ट के प्रसारित होने के बाद वाईएसआर के समर्थकों में रोष फैल गया. उन्होंने मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी के आंध्र प्रदेश में फैले विभिन्न व्यापारिक प्रतिष्ठानों को अपने गुस्से का निशाना बना डाला था.

सीआईडी की जांच टीम ने चैनल से इस रिपोर्ट के फुटेज का टेप भी ज़ब्त किया जिसमें एक विदेशी वेबसाइट के हवाले से कहा गया था कि वाईएसआर एक बड़े षडयंत्र का शिकार हुए थे. पुलिस ने वैसे इस मामले में तीन तेलुगु टीवी चैनलों के खिलाफ़ लोगों के एक हिस्से में वैमनस्य फैलाने के आरोप में स्यू मोटो मामले दर्ज किए थे. इसमें टीवी-5 के अलावा एनटीवी और साक्षी टीवी भी शामिल हैं. दिलचस्प बात ये है कि इसके मालिक राजशेखर रेड्डी के ही बेटे और कांग्रेस सांसद वाईएस जगमोहन रेड्डी हैं. सीआईडी ने शनिवार शाम साक्षी टीवी के बंजारा हिल्स ऑफ़िस से भी कम्प्यूटर हार्ड डिस्क और कुछ सीडी अपने क़ब्ज़े में कर ली थी.

गरीब मां की मदद को पसीजा इंसाफ की देवी का दिल


आर्थिक तौर पर कमजोर एक महिला की सहायता के लिए हाई कोर्ट ने एमसीडी को निर्देश दिया है कि वह उक्त महिला को अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) के तहत राशन कार्ड जारी करे ताकि महिला वहां से अनाज ले सके। महिला ने इसी महीने एक बच्चे को जन्म दिया है और वह पोषण के अभाव में बच्चे को दूध तक नहीं पिला पा रही है।

अपने अंतरिम आदेश में जस्टिस एस. मुरलीधर ने एमसीडी से कहा है कि वह सुनिश्चित करे कि मां और बच्चे को सही मेडिकल सुविधा मिले और उन्हें इलाज में कोई दिक्कत न हो। साथ ही यह भी निर्देश दिया कि एक एंबुलेंस की व्यवस्था करें ताकि जब भी इलाज के लिए उक्त महिला जी. बी. पंत अस्पताल में जाए तो कोई दिक्कत न हो।

इस बीच मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र के वकील ने कोर्ट को आश्वस्त किया कि वह दिल्ली सरकार के संबंधित विभाग को इस बाबत निर्देश जारी करेंगे कि वह महिला फातिमा को नैशनल मैटरनिटी बेनिफिट स्कीम के तहत 500 रुपये का भुगतान करें। अदालत ने निर्देश दिया कि अगर उक्त महिला को रुपये नहीं मिले तो अगली सुनवाई के दौरान 13 जनवरी को दिल्ली सरकार के हेल्थ सेक्रेटरी और केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के जॉइंट सेक्रेटरी अदालत में पेश हों।

फातिमा ने अपनी मां के जरिये अदालत में अर्जी दाखिल की थी। अर्जी में कहा गया था कि बार-बार अनुरोध करने के बाद भी एमसीडी राशन कार्ड उपलब्ध कराने में फेल रही है। अर्जी में कहा गया कि एमसीडी के जंगपुरा स्थित मैटरनिटी होम में फातिमा ने इसी महीने बच्चे को जन्म दिया उसके बाद फातिमा की मां ने एमसीडी के सामने राशन कार्ड के लिए अप्लाई किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ फिर उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया।

प्री-पीजी परीक्षा वैध : राजस्थान हाईकोर्ट


राजस्थान उच्च न्यायालय ने स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित स्नात्तकोत्तर पूर्व परीझा प्री-पी जी परीक्षा-2010 के प्रावधानों को वैध करार दिया है। न्यायमूर्ति एमएन भंडारी ने डॉ. राजेन्द्र एवं 31 अन्य चिकित्सकों की याचिकाओं को निरस्त करते हुए आज यह आदेश दिया। मामले के अनुसार विश्वविद्यालय ने राजस्थान स्वास्थ्य केन्द्र विश्वविद्यालय की एमबीबीएस परीझा उत्तीर्ण छात्र को ही प्री पी जी परीक्षा में सम्मिलित होने के योग्य माना था।
याचिकाकर्ताओं का कथन था कि वे राजस्थान के मूल निवासी हैं तथा उन्होंने एमबीबीएस परीझा राजस्थान से बाहर के अन्य राज्यों से उत्तीर्ण की है। अत: मूल निवासी होने के नाते वे परीझाओं में बैठने की पात्रता रखते है। उनकों परीक्षा में बैठने का अवसर नहीं दिया जाना संविधान के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है।
राजस्थान विश्वविद्यालय के अधिवक्ता डॉ. वाईसी शर्मा ने तर्क दिया कि देश की शीर्ष अदालत ने डॉ. नेहा शर्मा के मामले में यह निर्णय दिया है कि विश्वविद्यालय राजस्थान से एमबीबीएस परीक्षा उत्तीर्ण विघार्थियों को प्री पीजी परीक्षा में बैठने के नियम बना सकती है। इसके तहत आध्यादेश 379 ई में संशोधन करते हुए विश्वविद्यालय में सिर्फ राजस्थान विश्वविद्यालय राजस्थान स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय से एमबीबीएस परीझा उत्तीर्ण अभ्यार्थियों को ही प्री पीजी परीक्षा में शामिल होने का पात्र माना है। विश्वविद्यालय द्वारा श्रेष्ठ एवं दझ डॉक्टरों को प्री पीजी में प्रवेश लेने के लिए आध्यादेश 379 ई में संशोधन किया गया है। यह संशोधन पूर्णतया वैधानिक है। इनके तर्कों से सहमति जताते हुये न्यायालय ने संशोधन को पूर्णतया वैध करार दे दिया।

Saturday, January 9, 2010

अवयस्क मुस्लिम लड़की की देखभाल का हक पिता को ना होकर महिला रिश्तेदारो को


मुस्लिम कानून के तहत मां की मौत या उसके तलाक के बाद अवयस्क लड़की के देखभाल का हक उसकी महिला रिश्तेदारों को मिलता है। भले ही पिता बच्ची की देखभाल करने में सक्षम हों, लेकिन यह अधिकार उन्हें नहीं दिया जा सकता।पिता यदि अपनी पुत्री की गार्जियनशिप (संरक्षण का अधिकार) चाहते हों तो उन्हें गार्जियन एंड वार्डस एक्ट 1890 की धारा 7, 9 व 17 के तहत दावा करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया। शीर्ष कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि मुस्लिम लड़कियों की देखभाल का अंतरिम अधिकार उसकी महिला रिश्तेदारों का है। इनमें उसकी दादी, नानी, चाची, मामी, सगी बहनें, पिता की दादी, बहन की पुत्री शामिल हैं।

शीर्ष कोर्ट ने अपने आदेश में कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। यह मामला अतहर हुसैन नामक व्यक्ति का है, जिसने अपनी 13-वर्षीय पुत्री आतिया की कस्टडी का दावा किया था। आतिया की मां की 2007 में हड्डियों के कैंसर से मौत हो गई थी। यह मामला फैमिली कोर्ट से होते हुए शीर्ष कोर्ट तक पहुंचा था।

पितृत्व मामले में एनडी तिवारी को अदालत का नोटिस


दिल्ली हाईकोर्ट की खंडपीठ ने शुक्रवार को आंध्र प्रदेश के पूर्व राज्यपाल एनडी तिवारी को नोटिसभेजकर पितृत्व अधिकार संबंधी मामले में जवाब पेश करने को कहा है।
इससे पहले रोहित शेखर नाम के इस युवक का वह याचिका हाईकोर्ट ने एकलपीठ ने खारिज कर दी थी, जिसमें उन्होंने खुद को तिवारी का बेटा होने का दावा किया था।
रोहित शर्मा कांग्रेस की पूर्व कार्यकर्ता अज्ज्वला शर्मा ने याचिका में खुद को तिवारी का पुत्र घोषित करने की मांग की थी। तिवारी के इससे इनकार करने पर उज्ज्वला ने दावा किया था कि वयोवृद्ध राजनीतिज्ञ तिवारी ही उनके पुत्र के पिता हैं और उनकी इच्छा पर ही रोहित को जन्म दिया गया था। इस संबंध में उज्ज्वला ने हाईकोर्ट में लिखित बयान पेश किया था। रोहित ने इसकी पुष्टि के लिए उसका एवं तिवारी का डीएनए टेस्ट कराने की मांग की थी, लेकिन तिवारी इसके लिए तैयार नहीं हुए थे।

राज ठाकरे के खिलाफ भड़काऊ भाषण केस : अब दिल्ली में सुनवाई


उत्तर भारतीयों के बारे में भ़डकाऊ भाषणों को लेकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के प्रमुख राज ठाकरे के खिलाफ बिहार व झारखंड में दर्ज सात मामलों को सुप्रीम कोर्ट ने आज दिल्ली की एक अदालत में स्थानांतरित करने का आदेश दिया। राज के खिलाफ ये मामले जनवरी 2000 के बाद दर्ज किए गए थे।
सुप्रीम कोर्ट में आज इस मामले की सुनवाई के दौरान सभी पक्षों के वकीलों के सहमत हो जाने पर मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन व बीएस चौहान की बेंच ने राज के खिलाफ चल रहे सभी मामलों को दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में स्थानांतरित करने के आदेश दिए। राज के खिलाफ ये मामले विभिन्न लोगों ने दर्ज कराए थे। इन सात मामलों में पांच झारखंड तथा दो बिहार मे दर्ज हुए थे। राज ने इन मामलों की सुनवाई एक जगह करने का आग्रह किया था।

राठौड़ की जमानत याचिका खारिज, कभी भी गिरफ्तारी


पंचकूला की एक स्थानीय अदालत ने रुचिका छेड़छाड़ और उसे आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में दो नई प्राथमिकी दर्ज होने पर हरियाणा के पूर्व पुलिस महानिदेशक एसपीएस राठौड़ की अग्रिम जमानत याचिका नामंजूर कर दी है। इसके साथ ही राठौड़ के जल्द ही गिरफ्तारी की संभावना बढ़ गई है। इससे पहले अदालत ने शुक्रवार सुबहर जमानत याचिका पर सुनवाई दोपहर बाद तक के लिए टाल दी थी।

अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश संजीव जिन्दल ने गुरुवार को 67 वर्षीय राठौड़ की वकील पत्नी आभा तथा रुचिका गिरहोत्रा के पारिवारिक वकील पंकज भारद्वाज, आरोपी एएसआई सेवा सिंह के वकील अजय जैन तथा सरकारी वकील के तर्क सुनने के बाद अग्रिम जमानत याचिका पर फैसला शुक्रवार दोपहर बाद तक के लिए सुरक्षित रख लिया था।

दो नई प्राथमिकी दर्ज होने पर राठौड़ के अतिरिक्त एएसआई सेवा सिंह ने भी अग्रिम जमानत का आग्रह किया है, जिसने रुचिका के भाई आशु से संबंधित ऑटो चोरी के मामले की जांच की थी। ये दोनों नई प्राथमिकी रुचिका के पिता सुभाष चंद्र गिरहोत्रा तथा आशु ने हत्या की कोशिश, अवैध हिरासत में रखने तथा दस्तावेज में हेरफेर करने सहित विभिन्न शिकायतों में दर्ज कराई हैं।

आभा ने 29 दिसंबर को दर्ज दो मामलों में यह कहकर जमानत मांगी है कि पांच जनवरी को भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाने) के तहत दर्ज तीसरी प्राथमिकी का निपटारा उच्चतम न्यायालय में पहले ही हो चुका है।

आरोपों के अनुसार हरियाणा के पूर्व पुलिस महानिदेशक एसपीएस राठौड़ ने 1990 में रुचिका के साथ छेड़छाड़ की थी और फिर उसके घरवालों को परेशान किया, जिससे तंग आकर रुचिका ने आत्महत्या कर ली।

रुचिका के पिता और भाई ने गत 29 दिसंबर को पोस्टमार्टम की प्रक्रिया और आशु को झूठे मामलों में फंसाने के आरोप में राठौड़ और अन्य के खिलाफ दो शिकायतें दर्ज कराईं। शिकायत में कहा गया कि चंडीगढ़ के सेक्टर-6 पुलिस थाना ने मौत के बाद की कार्यवाही पीजीआई चंडीगढ़ में कराई, जो हरियाणा पुलिस के अधिकार क्षेत्र से बाहर है, क्योंकि चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश है।

उल्लेखनीय है कि रुचिका ने 28 दिसंबर 1993 को जब आत्महत्या की कोशिश की तो उसे पीजीआई चंडीगढ़ ले जाया गया था, जहां अगले दिन उसकी मौत हो गई।

न्यायाधीशों के पूल की जरूरत-सुप्रीम कोर्ट


सुप्रीम कोर्ट महसूस करता है कि देश की अधीनस्थ अदालतों में न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों की कमी पूरी करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को एकजुट होकर प्रयास करने होंगे और न्यायपालिका में सम्भावित रिक्त स्थानों को ध्यान में रखते हुए इसके लिए पहले से ही योग्य उम्मीदवारों का एक पूल तैयार करना होगा।
प्रधान न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन और न्यायमूर्ति बीएस चौहान की दो सदस्यीय खंडपीठ ने गुरूवार को न्यायिक व्यवस्था में व्यापक सुधार के लिए जनहित मंच नामक गैर सरकारी संगठन की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह विचार व्यक्त किए। इस याचिका पर अब 12 जनवरी को विचार किया जाएगा।
याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों ने टिप्पणी की कि अदालतों में लंबित मुकदमों के मद्देनजर देश को कम से कम 35 हजार न्यायाधीशों की आवश्यकता होगी और इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों को समेकित प्रयास करने होंगे। केंद्र सरकार इस समस्या से निपटने के लिए 50 फीसदी आर्थिक बोझ वहन करने के लिए तैयार है लेकिन राज्य इससे अधिक मदद चाहते हैं।
जनहित मंच के वकील प्रशांत भूषण ने इस समस्या के समाधान के प्रति सरकार के रवैए की उदासीनता का जिक्र करते हुए कहा कि न्यायपालिका में रिक्त स्थानों पर शीघ्र नियुक्ति की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि देश में अदालतों और न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि के बारे में सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था और विधि आयोग की सिफारिशों के बावजूद स्थिति में सुधार नहीं हुआ है। इस पर न्यायाधीशों ने कहा कि इस समय अधीनस्थ अदालतों में न्यायाधीशों के करीब 16 हजार पद हैं जिनमें से दो हजार से अधिक स्थान रिक्त हैं।
न्यायाधीशों की राय थी कि न्यायपालिका में रिक्त स्थानों का सिलसिला रोकने लिए सरकार को न्यायाधीशों के पद रिक्त होने से पहले ही पर्याप्त संख्या में नई नियुक्तियां करनी होंगी ताकि उन्हें समय रहते प्रशिक्षित करके नई जिम्मेदारी के लिए तैयार किया जा सके।

Thursday, January 7, 2010

इस्लाम की आलोचना हो सकती है, लेकिन दुर्भावनापूर्ण नहीं: कोर्ट


इस्लाम या किसी अन्य धर्म की आलोचना की जा सकती हैं,पर दुर्भावनापूर्ण आलोचना,जिसका मकसद सांप्रदायिक नफरत फैलाना और पूरे समुदाय को शरारतपूर्ण तरीके से प्रस्तुत करता हो,की इजाजत नहीं है। बॉम्बे उच्च न्यायालय ने बुधवार को यह बात कही।कुरानिक छंदों की व्याख्या करने से मना करते हुए कोर्ट ने हालांकि सलाह दी कि छंदे सहसंबद्ध होनी चाहिए और व्याख्या करते वक़्त इसके ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखना चाहिए।
उच्च न्यायलय की एक पूर्ण पीठ ने यह फैसला वकील आर वी भसीन द्वारा लिखी पुस्तक इस्लाम-"ए कांसेप्ट ऑफ़ पोलिटिकल वर्ल्ड इन्वैसन बाय मुस्लिम्स"पर लगे प्रतिबन्ध पर सुनवायी के दौरान कहा साथ ही न्यायलय ने इस पुस्तक पर प्रतिबन्ध बरकरार रखा.

इस पुस्तक पर महाराष्ट्र सरकार ने साल 2007 में प्रतिबन्ध इस आधार पर लगा दिया था की इसमें इस्लाम के बारे अपमानजनक टिप्पणियां की गयी है और मुसलमानों की भावनाओं का अपमान करती है। भसीन ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन मानते हुए कोर्ट में चुनौती दी थी।

आईपीसी के प्रावधान भूलने के लिए हाईकोर्ट ने की निचली अदालत की खिंचाई


बांबे हाईकोर्ट ने अपने फैसले में आईपीसी के प्रावधानों का ध्यान नहीं रखने के लिए निचली अदालत के जज की खिंचाई की है। इस जज ने एक व्यक्ति को हत्या का दोषी ठहराया था, लेकिन उसे हल्की सजा दी थी। हाईकोर्ट ने कहा, ‘लगता है सुविज्ञ जज आईपीसी के सेक्शन 302 के प्रावधान भूल गए या उनकी उपेक्षा कर गए।’ कोर्ट ने कहा कि मुजरिम मोहम्मद अमानत अंसारी ने हत्या नहीं की बल्कि वह गैर इरादतन हत्या का दोषी है।  अंसारी पर एक दिसंबर 1998 को क्रिकेट खेल रहे बच्चों की गेंद को लेकर हुए झगड़े में उदय बागवे नामक बच्चे की हत्या का आरोप था। मुंबई स्थित सेशन कोर्ट ने उसे हत्या का दोषी ठहराते हुए 10 वर्ष की कड़ी कैद की सजा सुनाई। इस फैसले को जब हाईकोर्ट में चुनौती दी गई तो जस्टिस जेएच भाटिया ने कहा, ‘परिस्थितियों को देखते हुए यह मानना असंभव है कि आरोपी का इरादा हत्या का था।’ हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि आईपीसी के सेक्शन 302 के तहत केवल उम्रकैद या मौत की सजा दी जा सकती है।

हाईकोर्ट ने इस मामले में अंसारी को गैर इरादतन हत्या का दोषी मानते हुए उसे 10 वर्ष जेल की सजा बरकरार रखी। कोर्ट ने यह भी कहा कि चूंकि वह इतनी अवधि जेल में काट चुका है अत: उसे छोड़ दिया जाए।

राजस्थान न्यायिक सेवा भर्ती में अब महिलाओं को 30 फीसदी आरक्षण।


राजस्थान न्यायिक सेवा भर्ती में भी अब महिलाओं को अन्य राजकीय सेवाओं की तरह 30 फीसदी आरक्षण और आयु सीमा में छूट का लाभ मिलेगा। करीब सात साल से लम्बित नए न्यायिक सेवा नियमों को केबिनेट ने बुधवार को मंजूरी दे दी। इस निर्णय से अब राजस्थान न्यायिक सेवा व उच्चतर न्यायिक सेवा के एक ही नियम होंगे।

सूत्रों ने बताया कि नए न्यायिक सेवा नियमों में अनुसूचित जाति व जनजाति की खाली सीट तीन साल ही सुरक्षित रह सकेगी और आरक्षण 49 फीसदी से अधिक नहीं होगा। उच्च न्यायालय की वृहद पीठ ने सितम्बर 09 में नए आरजेएस नियमों के लिए अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग अभ्यर्थियों व महिलाओं को अधिकतम आयु सीमा में पांच साल की छूट देने व विधवा, परित्यक्ताओं के लिए अधिकतम आयु सीमा 45 साल करने की हरी झण्डी दे दी थी, जिसे भी केबिनेट ने मंजूरी दे दी।

चालीस साल तक के राज्य सरकार, पंचायत समिति, जिला परिषद या सार्वजनिक उपक्रमों के कर्मचारी आरजेएस के लिए आवेदन कर सकेंगे। जितने साल आरजेएस की भर्ती नहीं होगी, अभ्यर्थियों को अधिकतम आयु सीमा में उतने साल की छूट मिलेगी। आयुसीमा गणना के बारे में भी बदलाव किया गया है। नए आरजेएस नियमों में अधिकारियों की भर्ती व पदोन्नति का कैलेण्डर तय कर दिया है।

पदोन्नति की व्यवस्था भी तय : आरएचजेएस के आधे पद आरजेएस में से पदोन्नति के आधार पर भरे जाएंगे, जिसके लिए अधिकारियों के फैसलों, उनकी एसीआर व डीजे की रिपोर्ट को देखा जाएगा। एक चौथाई पदों पर वकीलों की सीधी भर्ती की जाएगी तथा शेष एक चौथाई पदों के लिए पांच साल अनुभव वाले एसीजेएम की परीक्षा ली जाएगी। सूत्रों से जानकारी यह भी मिली है कि डीजे व एडीजे का कैडर भी अब 150 के बजाय 242 या 243 का होगा।

तलवार दंपति पर नारको की तलवार


सीबीआई की विशेष अदालत ने मंगलवार को आरुषि के माता-पिता का नारको टेस्ट कराने की अनुमति दे दी। अदालत ने कहा कि नारको से पहले तलवार दंपती का चिकित्सीय परीक्षण कराया जाए। डाक्टरों की सलाह के बाद ही टेस्ट कराया जाए।

नोएडा के बहुचर्चित आरुषि-हेमराज हत्याकांड में सीबीआई ने अदालत में डा. राजेश तलवार और उनकी पत्नी डा. नूपुर का नारको टेस्ट के लिए अर्जी दाखिल की थी। इसको लेकर सीबीआई की विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रीति सिंह की अदालत में सोमवार को सुनवाई हुई थी। सीबीआई ने कहा था कि मामले की पुन: जांच हो रही है और नारको किए जाने से निश्चित रूप से नए तथ्य आने की संभावना है। सूत्रों के अनुसार डा. तलवार दंपती की ओर से भी एक अर्जी अदालत में दाखिल की गई थी। जिसमें कहा गया था कि वे नारको के लिए तैयार हैं, लेकिन वे अस्थमा के मरीज हैं। इसलिए नारको से पूर्व उनका मेडिकल कराया जाए। कोर्ट ने मंगलवार तक के लिए फैसला सुरक्षित रख लिया था। मंगलवार को अदालत ने तलवार दंपती का नारको टेस्ट कराने की अनुमति दे दी।

ज्ञात हो कि नोएडा निवासी डा. राजेश तलवार की पुत्री आरुषि की उनके घर पर 15 मई, 2008 की रात्रि में हत्या कर दी गई थी। 17 मई को डा. तलवार के घरेलू नौकर हेमराज का शव भी घर की छत पर मिला था। एसटीएफ व नोएडा पुलिस ने आरुषि के पिता डा. राजेश तलवार को गिरफ्तार किया था। 29 मई को इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी। सीबीआई ने इस मामले में दूसरे नौकर कृष्णा, राजकुमार व विजय मंडल को गिरफ्तार कर लिया था। 12 जुलाई 2008 को सीबीआई द्वारा 90 दिन तक डा. राजेश तलवार के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल नहीं किए जाने पर तकनीकी आधार पर अदालत ने उनको रिहा कर दिया था। बाद में इस प्रकरण की जांच पुन: कराने का निर्णय लिया गया। इसके लिए नई टीम का गठन किया गया।

कोटा के वकीलों की हड़ताल समाप्त


कोटा में राजस्थान हाईकोर्ट की बैंच की स्थापना को लेकर करीब चार माह से चल रही वकीलों की हड़ताल को आज समाप्त करने का निर्णय लिया गया। कोटा अभिभाषक परिषद की नवनिर्वाचित कार्यकारिणी के कल शपथ ग्रहण के बाद आज बुलाई गई साधारण सभा की बैठक में बहुमत से करीब चार माह पुरानी हड़ताल समाप्त करने का निर्णय लिया। इसके स्थान पर प्रत्येक शनिवार को कोटा के अभिभाषक विरोध प्रदर्शन करेंगे।

कोटा अभिभाषक परिषद की साधारण सभा की बैठक में लिए गए इस निर्णय के खिलाफ कुछ वकील उत्तेजित हो गए जिसके कारण कुछ समय के लिए बैठक में हंगामे की स्थिति बन गई लेकिन अन्त में बहुमत से लिए गए साधारण सभा के फैसले को ही मान्य ठहराया गया।

Tuesday, January 5, 2010

रुचिका केस में सिर्फ राठौड़ दोषी नहीं, जस्टिस डिलिवरी सिस्टम भी जिम्मेदार: हाई कोर्ट


पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने रुचिका गिरहोत्रा से छेड़छाड़ मामले में खुद संज्ञान लेते हुए न्याय व्यवस्था पर तीखी टिप्पणियां कीं। कोर्ट ने कहा कि रुचिका केस 'न्याय में देरी, न्याय से वंचित होना' (जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड) का सबसे बड़ा उदाहरण है। कोर्ट का कहना था कि बड़े पुलिस अफसरों, नौकरशाहों और नेताओं के खिलाफ केसों को फास्ट ट्रैक पर लाने का वक्त आ गया है।

कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि रुचिका मामले में देरी के लिए इससे जुड़े सभी पक्षों के अलावा जस्टिस डिलिवरी सिस्टम को भी जिम्मेदारी स्वीकार करनी होगी। हाई कोर्ट ने पंजाब सरकार, हरियाणा सरकार और चंडीगढ़ प्रशासन को नोटिस जारी कर राजनेताओं, नौकरशाहों और पुलिसकर्मियों के खिलाफ पेंडिंग केस की जानकारी कोर्ट में पेश करने का निर्देश दिया है। इसके लिए इन सरकारों को 12 जनवरी तक का समय दिया गया है। अपने आदेश में रविवार को जस्टिस रंजीत सिंह ने दोनों राज्यों और चंडीगढ़ के संबंधित गृह सचिवों से एसपी और इस लेवल से ऊपर के पुलिस अफसरों, आईएएस और पीसीएस अफसरों के खिलाफ पेंडिंग केस के बारे में पूछा है, क्योंकि अदालत न्याय देने में देरी का आरोप अपने ऊपर नहीं लेना चाहती है।

जस्टिस सिंह ने कहा कि मामले में इतनी देर से फैसला आने से बड़ी संख्या में नाराज लोग उन सभी को सजा देने की मांग कर रहे हैं, जिन्होंने इस मामले में कानून का उल्लंघन किया है। उन्होंने यहां तक कहा कि अदालतें खुद को इस आरोप से मुक्त नहीं मान सकतीं कि उनकी वजह से ऊंचे रसूख वाले लोगों ने सिस्टम का फायदा उठाते हुए जांच या ट्रायल में देरी करवाई। उन्होंने कहा कि हमेशा से कुछ ऐसे पुलिस अफसरों, कुछ राजनेताओं और ऊंचे पदों पर बैठे लोगों का नाम सुनने में आता है, जिन्होंने अपने खिलाफ मामले में जांच नहीं होने दी या मुकदमे को नतीजे तक नहीं पहुंचने दिया।

हाईकोर्ट ने माथुर आयोग को अवैध ठहराया


राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य में पिछली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के समय कथित भ्रष्टाचार की जांच के लिए गठित माथुर आयोग को  अवैध ठहरा दिया तथा भ्रष्टाचार की समस्त जांच लोकायुक्त को भेजने के निर्देश दिए। न्यायाधीश आर. सी. गांधी एवं महेश भगवती की खण्डपीठ ने काशी पुरोहित तथा अन्य की जनहित याचिका पर यह फैसला दिया।

अधिवक्ता अभिनव शर्मा ने आयोग के गठन को संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ बताते हुए इस आयोग को रद्द करने की प्रार्थना की थी। अधिवक्ता का तर्क था कि राज्य सरकार ने राजनीतिक विद्वेषता के चलते इस आयोग का गठन किया है जबकि सरकार के पास पिछली भाजपा सरकार द्वारा भ्रष्टाचार करने के कोई ठोस एवं पुख्ता प्रमाण उपलब्ध नहीं है।

इस पर न्यायालय ने यह कहते हुए जांच लोकायुक्त को सौंप दी कि राजनीतिक विद्वेष को चलने दिया और आयोग बनते रहे तो राज्य में अस्थिरता आ जाएगी। इसका प्रशासनिक स्तर पर भी दुष्प्रभाव पडेगा। ऎसे में इस आयोग को जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है, वह भी तब जबकि सरकार के पास प्रारंभिक तौर पर भ्रष्टाचार के कोई सबूत नहीं है। सरकार कोई जांच कराना चाहती है तो किसी निष्पक्ष एजेंसी से कराए जो दोषी अधिकारियों को सजा दिला सके।

यौन अपराधों की सुनवाई अब दो महीने में

रूचिका छेड़छाड़ मामला सामने आने के बाद अपराध प्रक्रिया संहिता में नए संशोधनों के तहत अब बलात्कार समेत तमाम यौन अपराधों की सुनवाई यथासम्भव दो महीने के भीतर पूरी की जाएगी और सभी पक्षों को अदालत के आदेश के खिलाफ अपील का अघिकार होगा।


31 दिसम्बर की मध्यरात्रि से अपराध प्रक्रिया संहिता में प्रभावी संशोधन, शिकायतकर्ताओं के लिए बड़ी राहत साबित होंगे। संशोधनों पर गृह मंत्रालय से जारी बयान में कहा गया है कि पीडितों को अभियोजन में मदद के लिए अब वकील करने की अनुमति होगी। इसमें यह भी कहा गया है कि बलात्कार पीडित का बयान उसके घर में दर्ज किया जाएगा और कोई महिला पुलिस अघिकारी ही पीडित के माता-पिता या अभिभावक या सामाजिक कार्यकर्ता की मौजूदगी में बयान दर्ज करेगी।

संशोधनों के तहत बयानों को ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॅानिक साधनों के जरिए भी दर्ज किया जाएगा। संशोधन में राज्य सरकारों से अपराध से पीडित व्यक्ति या उसके आश्रितों को मुआवजा देने के लिए योजना बनाने के लिए भी कहा गया है।
अपराध प्रक्रिया संहिता में वर्ष 2006 में संशोधन किया गया था लेकिन 31 दिसम्बर वर्ष 2009 से पहले संशोधन अघिनियम प्रभावी नहीं हुआ था। पुलिस अघिकारी द्वारा किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अघिकार और स्थगन मंजूर करने या इससे इनकार करने के अदालत के अघिकार सम्बन्धी तीन प्रावधानों धारा 5, 6 और 21-बी को फिलहाल लागू नहीं किया गया है।

इन प्रावधानों पर कुछ आपत्तियां आईं थीं, इसलिए इन प्रावधानों को विघि आयोग के पास भेज दिया गया। विघि आयोग ने इस पर विचार-विमर्श करके अपनी रिपोर्ट दी थी। इस रिपोर्ट के आधार पर कैबिनेट ने एक संशोधन विधेयक को मंजूरी दी है। संसद के पिछले सत्र में इसे पेश नहीं किया जा सका था। उम्मीद है कि अब बजट सत्र में इसे पेश किया जाएगा।

राजस्थान में 45 ग्राम न्यायालय गठित


राज्य सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर पीसांगन (अजमेर), तिजारा एवं नैनवां (अलवर), बाड़मेर, अटरू (बारां), बासंवाड़ा एवं गढ़ी (बांसवाड़ा), रूपावास एवं कामां (भरतपुर), माण्डल एवं सुवाना (भीलवाड़ा), बीकानेर एवं कोलायत (बीकानेर), तालेड़ा (बूंदी), चित्तौड़गढ़ एवं भदेसर (चित्तौड़गढ़), राजगढ़ (चूरू), दौसा, बसेड़ी (धौलपुर), आसपुर एवं बिच्छीवाड़ा (डूंगरपुर), श्रीगंगानगर एवं अनूपगढ़ (श्रीगंगानगर), हनुमानगढ़, सांभर एवं बस्सी (जयपुर), सांचौर (जालौर), सांकड़ा (जैसलमेर), झालरापाटन (झालावाड़), नवलगढ़ (झुंझुनू), मंडोर एवं ओसियां (जोधपुर), हिण्डौन (करौली), खैराबाद एवं इटावा (कोटा), जायल (मेड़ता), रायपुर (पाली), प्रतापगढ़, रेलमगरा (राजसमन्द), गंगापुर सिटी (सवाई माधोपुर), पिपरली (सीकर), पिण्डवाड़ा (सिरोही), देवली (टोंक), उदयपुर एवं खैरवाड़ा (उदयपुर) में कुल 45 ग्राम न्यायालय गठित किए गए हैं। इनकी बैठक पंचायत समिति मुख्यालय में होगी।

जिला परिषद के किसी भी पंचायत समिति मुख्यालय को उच्च न्यायालय किसी ग्राम न्यायालय के लिए अतिरिक्त बैठक का स्थान अधिसूचित कर सकेगा और तब उस ग्राम न्यायालय को उस पंचायत समिति का भी क्षेत्रीय अधिकार होगा।

इन न्यायालयों के प्रभाव में आने पर जिला एवं सत्र न्यायाधीश राजस्थान उच्च न्यायालय की अनुमति से ग्राम न्यायालय की क्षेत्राधिकारिता के वर्तमान में उनके अधीन अन्य न्यायालयों में लंबित सिविल एवं फौजदारी प्रकरणों का अंतरण ग्राम न्यायालयों में कर सकेंगे।

इन ग्राम न्यायालयों को दाण्डिक एवं दीवानी क्षेत्राधिकार दिया गया है, इन्हीं के समान प्रकरण में या उस हेतुक से उद्भुत होने वाले दाण्डिक या दीवानी प्रकरणों की सुनवाई के अधिकार से संबंधित सिविल न्यायालय (कनिष्ठ खण्ड) को वर्जित किया गया है।

इन ग्राम न्यायालयों में न्यायाधिकारी की नियुक्ति राजस्थान उच्च न्यायालय के परामर्श से राज्य सरकार करेगी। न्यायाधिकारी की नियुक्ति एवं कार्यभार संभालने की तिथि से न्यायालय प्रभाव में आ जाएंगे।

अल्लाह शब्द पर सिर्फ मुस्लिमों का हक नहीं


कुआलालंपुर, मलेशिया की अदालत ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि ईसाई प्रकाशनों को भी ईश्वर के लिए 'अल्लाह' शब्द का इस्तेमाल करने का संवैधानिक अधिकार है। अदालत ने सरकार द्वारा देश के अल्पसंख्यकों के इस शब्द के प्रयोग पर लगाए प्रतिबंध को भी निरस्त कर दिया।

हाई कोर्ट ने यह आदेश गुरुवार को 'कैथोलिक वीकली हेराल्ड' अखबार की ओर से दायर मुकदमे की सुनवाई के बाद दिया। हेराल्ड को गृहमंत्रालय ने अल्लाह शब्द इस्तेमाल नहीं करने की शर्त पर अखबार प्रकाशित करने की अनुमति दी थी। सरकार की दलील थी कि गैर मुसलमानों के अल्लाह शब्द के प्रयोग करने से अशांति फैल सकती है।

सरकारी वकीलों ने कहा, इस फैसले के खिलाफ अपील करने से पहले वे गृह मंत्रालय के साथ विचार-विमर्श करेंगे। अदालत द्वारा अल्लाह शब्द के इस्तेमाल पर सरकारी प्रतिबंध को खत्म करने के बाद हेराल्ड इस शब्द का इस्तेमाल कर सकेगा। जज ने अपने आदेश में कहा है कि संविधान में इस्लाम को देश का धर्म बताया गया है, लेकिन यह गृह मंत्री को इस शब्द का इस्तेमाल प्रतिबंधित करने का अधिकार नहीं देता है। आवेदक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के तहत अल्लाह शब्द का इस्तेमाल कर सकता है। पिछले साल 7 जनवरी को गृह मंत्रालय ने हेराल्ड के प्रकाशन की अनुमति अल्लाह शब्द इस्तेमाल न करने की शर्त पर दी थी। साथ ही मुख्य पृष्ठ पर लिमिटेड शब्द लिखने को कहा था। जिसका अर्थ था यह अखबार सिर्फ ईसाइयों के बीच वितरित होगा।

आत्महत्या की धमकी बन सकती है तलाक का आधार



मुंबई हाईकोर्ट ने आत्महत्या की कोशिश करना या फिर इसके लिए किसी को विवश करना भी एक अपराध के समान माना है।हाईकोर्ट ने  एक पारिवारिक कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई करते हुए यह व्यवस्था दी। फेमली कोर्ट ने इस मामले में महिला के पति  के पक्ष में फैसला सुनाया था। इसमें यह आधार था कि पति अपनी पत्नी से तलाक इसलिए मांगा था कि वह बेहद गुस्सैल हैं उससे लड़ाई करती है और आत्महत्या करने की धमकी भी देती है। गौरतलब है कि पति और पत्नी दोनों पिछले 17 सालों से अलग रहते हैं।

हालांकि पुणे की एक फेमली कोर्ट ने 2002 में ही दोनों को तलाक की इजाजद दे दी थी जिसके आधार पर ही महिला ने हाईकोर्ट में अपील की थी। फेमली कोर्ट में महिला  ने यह माना था कि उसने पति से झगड़ा होने पर दो बार सुसाइड करने की कोशिश की थी।
हाईकोर्ट ने फेमली कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए यह माना कि ऐसी स्थिति में दोनों एक दूसरे के साथ कभी भी नहीं रह सकते हैं ऐसे हालात में दोनों का अलग रहना ही ठीक है। जज एस.ए. बोब्दे और एस.जे.कथावाला ने बताया कि आत्महत्या के लिए धमकी देना या फिर इसके लिए उकसाना एक अपराध है।

रैगिंग मामला : मेडीकल कॉलेज के18 छात्र हिरासत में


मुंबई के केईएम मेडिकल कॉलेज के 18 छात्रों को पुलिस ने रैंगिग के मामलें में हिरासत में ले लिया है, और कल इन छात्रों को कोर्ट में पेश किया जाएगा। गौरतलब है कि कल केईएम मेडिकल कॉलेज के जूनियर छात्रों ने एंटी रैंगिग कमेटी के समक्ष वरिष्ठ छात्रों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। अपनी शिकायत में छात्रों ने कहा था कि कॉलेज के कुछ वरिष्ठ छात्रों ने जूनियर छात्रों की रैंगिग ली है और मानसिक और शारीरिक रुप से छात्रों को प्रताड़ित किया है।

एंटी रैंगिग कमेटी ने बाद में इस पूरे मामलें की जाच पड़ताल करने के बाद मेडिकल कॉलेज के 18 छात्रों को इस मामलें में दोषी पाया है और ये छात्र अब पुलिस की हिरासत में। सूचना के अनुसार इन छात्रों को कल अदालत में पेश किया जाएगा और इस पूरे मामलें की सुनवाई की जाएगी।