पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Thursday, May 27, 2010

प्रमिल माथुर राजस्व मण्डल के सदस्य

सदस्यों की कमी झेल रहे राजस्व मण्डल को सरकार ने थोडी राहत दी है। राज्य सरकार ने सोमवार को आदेश जारी कर राजस्थान उच्च न्यायिक सेवा के 1992 बैच के अधिकारी प्रमिल माथुर को राजस्व मण्डल में न्यायिक कोटे से सदस्य नियुक्ति किया है। वे मंगलवार को पद भार ग्रहण कर सकते हैं।

माथुर अलवर में एडीजे के पद पर नियुक्त थे। उनकी नियुक्ति के बाद मण्डल की सदस्य संख्या बढकर सात हो गई है। गौरतलब है कि राजस्व मण्डल प्रशासन ने हाल ही मण्डल में न्यायिक कोटे से सदस्य रहे पवन एन.चन्द्र को पदोन्नति देकर अजमेर जिला एवं सेशन न्यायालय में न्यायाधीश श्रम न्यायालय एवं औद्योगिक अधिकरण के पद पर लगाया है। मण्डल में न्यायिक कोटे का एक पद पहले ही रिक्त चल रहा था। पवन एन.चन्द्र के स्थानान्तरण के बाद दोनों पद रिक्त हो गए थे।

सिर्फ घोषणाएं
राजस्व मण्डल में 52 हजार से अधिक मामले लम्बित हैं। वहीं सदस्यों के 8 पद लम्बे समय से रिक्त चल रहे हैं। हाल ही राज्य सरकार ने मण्डल की सदस्य संख्या 15 से बढा कर 20 करने की घोषणा की है। जबकि पहले से ही सदस्यों के पद खाली चल रहे हैं।

अवैध संतान पुश्तैनी जायदाद की वारिस नहीं, केवल माता पिता की सम्पत्ति पर हक- सुप्रीम कोर्ट

मद्रास उच्च न्यायालय के एक फैसले को पलटते हुए उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि शादी के बिना साथ रहने वाले जोड़ों से उत्पन्न होने वाली संतान पुश्तैनी जायदाद की वारिस नहीं हो सकती और माता-पिता द्वारा बनाई गई संपत्ति पर ही उसका अधिकार होगा।

न्यायालय ने अपने एक आदेश में कहा कि अवैध विवाह के जरिए पैदा होने वाली संतान पुश्तैनी जायदाद की वारिस होने का दावा नहीं कर सकती। वह केवल अपने माता-पिता द्वारा अर्जित संपत्ति में अपने हिस्से का दावा कर सकती है।

न्यायमूर्ति बीएस चौहान और न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की पीठ द्वारा दिए गए आदेश में मद्रास उच्च न्यायालय के उस फैसले को रदद कर दिया गया, जिसमें कहा गया था कि लिव इन संबंधों से पैदा होने वाले बच्चों भी पुश्तैनी जायदाद में हिस्से के हकदार हैं।

एक मामले में यह विवाद पैदा हो गया था कि रेंगाम्मल और मुथु रेडिडयर के बीच लिव इन संबंधों के दौरान जो बच्चों पैदा हुए हैं, क्या वह मुथु की मौत के बाद उसकी जायदाद के हकदार होंगे।

न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि वर्तमान मामले में प्रतिवादी ने कहीं भी यह कुबूल नहीं किया कि विवादित भूमि मुथु रेडिडयर की अपनी खरीदी हुई संपत्ति है।

न्यायालय ने कहा कि दस्तावेजों से यह पता चला कि मुथु रेडिडयर ने अपने संयुक्त परिवार की संपत्ति का बंटवारा नहीं किया था और 1974 में उसकी बेऔलाद बिना वसीयत किए मौत हो गई, इसलिए लिव इन संबंधों के दौरान पैदा हुए दो बच्चों का पुश्तैनी जायदाद का वारिस होने का सवाल ही पैदा नहीं होता।

फांसी देनी है तो दे दो, पर जल्दीः अफजल गुरु

संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है कि उसे जल्द से जल्द फांसी सजा दी जाये. उसका कहना है कि दया याचिका में हो रही देरी वह परेशान हो चुका है. उसने गुहार की है उसे जल्द से जल्द फांसी दे दी जाये.इसे अफजल का नया पैंतरा कहा जा सकता है. उसका कहना है कि : मर्सी पिटिशन पर फ़ैसला नहीं हो पाने से मैं निराश और हताश हं. चाहता हं कि जो कुछ हो जल्द हो. अगर सरकार की इच्छा है तो वह मुङो फ़ांसी पर लटका ही दे.  उसका यह भी कहना है कि अगर ऐसा न हो सके तो उसे उसे कश्मीर के किसी जेल में शिफ्ट कर दिया जाये. उसने तर्क दिया है कि दिल्ली की जेल में रहने के कारण उसके परिवारवाले उससे साल में एक या दो बार ही मिल पाते हैं. मिलने आने पर उनका अच्छा खासा पैसा भी खर्च हो जाता है. कम से कम कश्मीर की जेल में रहेगा, तो परिवारवालों से तो बराबर मिल पायेगा.

84 रुपये के बोनस के लिए 25 साल चला केस

एक महिला को अपने मालिक से 84 रुपये बोनस पाने के लिए 25 साल तक संघर्ष करना पड़ा। 1984 में पद्मावती को उसके मालिक सुपर बाजार को-ऑपरेटिव स्टोर ने बताया कि उसे 84 रुपये बोनस देने का जो वादा किया गया था, वह अब नहीं मिलेगा। उसके अलावा 66 अन्य लोगों से कहा गया कि उन्हें यह बोनस अब नहीं मिलेगा।

पद्मावती बताती हैं कि मैंने 1983-84 के दौरान पीस रेट आधार पर सुपर बाजार में बतौर पैकर काम किया था। सुपर बाजार मैनेजमेंट ने उस टाइम का बोनस देने की घोषणा की थी। लेकिन जब हम लोगों ने उसकी मांग की तो हमें देने से मना कर दिया गया। पद्मावती की उम्र अब 50 साल हो चुकी है। उन्होंने बताया कि हम 67 कर्मचारियों ने मिलकर अपने वकील अशोक अग्रवाल के जरिए सुपर बाजार पर मुकदमा कर दिया।

हालांकि 1984 में इस केस की सुनवाई शुरू हुई लेकिन अदालत को इसे निपटाने में 15 साल लगे। इस बीच दिसंबर 1999 में तीस हजारी स्थित लेबर कोर्ट ने सभी कर्मचारियों के पक्ष में अपना फैसला सुनाया और सुपर बाजार मैनेजमेंट को तीन महीने में बोनस राशि का भुगतान करने को कहा। लेकिन उनकी परेशानी का यहीं अंत नहीं हुआ। सुपर बाजार मैनेजमेंट ने इस फैसले के खिलाफ सन् 2000 में दिल्ली हाई कोर्ट में अपील कर दी और फैसले के खिलाफ स्टे प्राप्त कर लिया।

आखिरकार इसी महीने 25 साल बाद सुपर बाजार मैनेजमेंट हाई कोर्ट के सामने इस बात के लिए राजी हो गया कि वह सभी कर्मचारियों को बकाया बोनस का भुगतान ब्याज सहित करने को राजी है। कोर्ट ने अब सभी कर्मचारियों को निर्देश दिया है कि वे कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के दफ्तर में अपने दस्तावेजों के साथ उपस्थित हों, वहां उन्हें पैसे का भुगतान किया जाएगा। हालांकि अदालत ने इस बात पर चिंता भी जताई कि पिछले 10 साल से इन लोगों को भुगतान नहीं हो सका।

हालांकि पद्मावती को ब्याज के साथ कुल 2000 रुपये मिलेंगे लेकिन वह इससे संतुष्ट नहीं है। वह कहती है कि मुझे नहीं मालूम कि हमें अपना पैसा पाने के लिए इतना लंबा इंतजार करना पड़ेगा। मैंने तो उम्मीद ही छोड़ दी थी। हालांकि मुझे 84 रुपये से ज्यादा मिलेंगे लेकिन इसके लिए मुझे 25 साल तक संघर्ष करना पड़ा। इस मुद्दे पर वकील अशोक अग्रवाल का कहना है कि इस केस में लंबा टाइम जरूर लगा लेकिन आखिरकार फैसला कर्मचारियों के ही पक्ष में आया। इसलिए अदालत का आदेश महत्वपूर्ण है।

दीक्षित के खिलाफ चालान पेश करने पर रोक

राजस्थान हाईकोर्ट ने आसीए सचिव संजय दीक्षित के खिलाफ सीबीआई द्वारा चालान पेश करने पर रोक लगा दी। न्यायधीश महेश भगवती की एकलपीठ ने यह आदेश दीक्षित की ओर से दायर उस याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए जिसमें दीक्षित ने सीबीआई द्वारा एफआर्रआर दर्ज करने को चुनौती दी थी।
गौरतलब है कि आईएएस दीक्षित द्वारा 07 में रणजीत सिंह के पासपोर्ट के लिए चरित्र सत्यापन किया था। इस पर हाईकोर्ट ने प्रकरण की जांच सीबीआई से कराने के आदेश दिए थे। सीबीआई ने दीक्षित के ठिकानों पर छापा मारकर उनके खिलाफ पासपोर्ट अधिनियम की धारा 12 (2) और भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 467, 468, 471, और 120 बी के तहत मुकदमा दर्ज किया था।
दीक्षित ने अदालत में याचिका दायर कर सीबीआई को इस आधार पर चुनौती दी सीबीआई ने पासपोर्ट एक्ट के अलावा भारतीय दंड संहिता में मुकद्दमा दर्ज किया है। जो विधि विरूद्ध है। इसके अलावा यह उनके क्षेत्राधिकार से बाहर है। सुनवाई के दौरान प्रहलाद गुर्जर की ओर सके पक्षकार बनने की याचिका दायर की गई। लेकिन वह बाद में वापस कर ली गई।
मामले की सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने सीबीआई को चालान पेश करने पर रोक लगा दी।

हाईकोर्ट से राहत नहीं, अभी जेल में रहेंगे राठौड

हरियाणा के पूर्व पुलिस महानिदेशक एसपीएस राठौड़ को जेल में एक रात बिताने के बाद बुधवार को तत्काल राहत नहीं मिल सकी, क्योंकि पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने रुचिका छेड़छाड़ मामले में उसकी जमानत याचिका को शुक्रवार तक टाल दिया।

अदालत के स्थगन के चलते 68 वर्षीय राठौड़ को कम से कम दो रातें और बुड़ैल जेल में बितानी होंगी जहां उसे मंगलवार शाम भेजा गया था। राठौड़ ने उच्च न्यायालय में अपनी वकील पत्नी आभा राठौड़ के माध्यम से एक पुनरीक्षा याचिका दायर करते हुए चिकित्सा आधार पर जमानत मांगी थी।

गौरतलब है कि इससे एक दिन पहले सत्र न्यायालय ने इस मामले में दोषी ठहराने संबंधी उसकी अपील को खारिज कर दिया था और जेल की सजा की अवधि को छह माह से बढ़ाकर 18 माह कर दिया था। न्यायमूर्ति गुरदेव सिंह ने जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए इस मामले को 28 मई तक स्थगित कर दिया और साथ ही सीबीआई को एक नोटिस जारी किया।

आभा राठौड़ ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि अपीली अदालत ने मीडिया के दबाव के तहत आदेश पारित किया था। जब दोपहर में न्यायमूर्ति सिंह की अदालत में सुनवाई के लिए याचिका पेश की गई, आभा राठौड़ ने कहा कि अदालत इस मामले की सुनवाई गुरुवार को करे, लेकिन न्यायाधीश ने इसे शुक्रवार के लिए टाल दिया।

आभा ने कहा कि पूर्व पुलिस प्रमुख को गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हैं। लेकिन न्यायाधीश ने इसके लिए वकील को एक अलग आवेदन दायर करने को कहा। राठौड़ की जमानत याचिका का भविष्य उच्च न्यायालय द्वारा इस मामले पर जल्दी सुनवाई करने के फैसले पर निर्भर करता है। अदालत 29 मई को एक माह के लिए ग्रीष्मकालीन अवकाश के लिए बंद हो जाएगी।

सत्र न्यायालय ने 14 वर्षीय किशोरी रुचिका गिरहोत्रा से 1990 में छेड़छाड़ के मामले में राठौड़ की सजा को छह माह से बढ़ाकर 18 माह करते हुए पूर्व पुलिस अधिकारी को मंगलवार को जेल भेज दिया था। अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश गुरबीर सिंह ने मंगलवार को 103 पृष्ठ के अपने फैसले में यह भी कहा, ‘‘इस मामले के प्रत्येक गवाह को एक न एक आरोप का सामना करना पड़ा और गवाहों को सुनियोजित तरीके से कानूनी उलझनों में उलझाने के प्रयास किए गए.’’ न्यायाधीश ने 68 वर्षीय राठौड़ की छह माह सश्रम कारावास की सजा को चुनौती देने संबंधी अपील खारिज करते हुए कहा कि कानूनी लड़ाई दो असमान पक्षों के बीच थी.

राठौड़ को 14 वर्षीय उभरती टेनिस खिलाड़ी रुचिका गिरहोत्रा का यौन उत्पीड़न करने का दोषी ठहराया गया था और छह माह की सजा सुनाई गई थी. राठौड़ ने इस फैसले को चुनौती दी थी जिसके बाद अदालत ने उसकी सजा बढ़ा कर 18 माह कर दी.

न्यायाधीश ने कहा ‘‘हालांकि दोषी, भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के तहत अपराध के लिए निर्दिष्ट अधिकतम सजा पाने का हकदार हैं, लेकिन उसकी उम्र, स्वास्थ्य संबंधी पृष्ठभूमि, उसकी अविवाहित एवं दिल की बीमारी से ग्रस्त बेटी, उसका बेहतर सर्विस रिकार्ड तथा मामले की सुनवाई के दौरान 200 से अधिक तारीखों पर अदालत में उपस्थिति को देखते हुए मेरी राय है कि सजा का उद्देश्य तब पूरा होगा, जब दोषी को डेढ़ साल के सश्रम कारावास की सजा दी जाए. अन्यथा लोगों का न्याय प्रणाली पर से विश्वास उठ जाएगा.’’

Monday, May 24, 2010

आरोपी विवादित चैक की हस्तलेख विशेषज्ञ से करा सकता है जांच - राजस्थान उच्च न्यायालय

राजस्थान उच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में माना है कि यदि आरोपी विवादित चैक की लिखावट की जांच किसी हस्तलेख विशेषज्ञ से कराना चाहता है तो उसे मना नहीं किया जा सकता है।
 न्यायमूर्ती आर एस चौहान ने देवेन्द्र कुमार के मामले में आज यह आदेश दिया। इस मामले में प्रार्थी देवेन्द्र कुमार ने अभियुक्त महावीर प्रसाद पर चैक अनादरण का आरोप लगाते हुये अदालत में एक परिवाद दायर किया था तब अभियुक्त ने न्यायालय में हाजिर होकर कहा कि जिस चैक को अनादरित किया गया है वह तो बहुत पहले ही चोरी हो गया था और इसकी सूचना बैंक में दी गई थी साथ ही उस चैक पर हस्ताक्षर के अलावा उसने कुछ भी नहीं लिखा था। इसलिये इस चैक पर मौजूदा लिखावट की जांच हस्तलेख विशेषज्ञ से कराई जानी चाहिए।
 लेकिन न्यायालय ने उसकी प्रार्थना को खारिज कर दिया। इस पर उसने सेशन में अपील पेश की लेकिन यह भी रद्द हो गई तत्पश्चात उच्च न्यायालय में याचिका पेश की गई। यहां दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायालय ने निर्धारित किया कि अभियुक्त के पास अभियोजन पक्ष के आरोप झुठलाने का पूरा अधिकार होता है और यदि मजिस्ट्रेट किसी दस्तावेज की जांच कराने की अनुमति नहीं देता है तो वह अभियुक्त के इस अधिकार का हनन करता है। न्यायालय ने निचले न्यायालय के आदेशों को रद्द करते हुये विवादित चैक को हस्तलेख विशेषज्ञ के पास भेजे जाने तथा उसकी रिपोर्ट के आधार पर आगे सुनवाई करने के निर्देश दिये।

हिट ऐंड रन के दौरान नशे में थे सलमान

मुंबई के बांद्रा इलाके में साल 2002 में अपनी कार एक बेकरी से भिड़ा देने के आरोपी ऐक्टर सलमान खान घटना के वक्त शराब के  नशे में थे। मुंबई की एक अदालत में गवाही के दौरान एक केमिकल ऐनलिस्ट ने यह बात कही। इस केमिकल ऐनलिस्ट ने सलमान के ब्लड सैंपल को टेस्ट किया था।

28 सितंबर 2002 को तड़के बेकरी से सलमान की लैंड क्रूजर पर टकरा जाने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। इस घटना में एक शख्स की मौत हो गई थी और चार अन्य घायल हो गए थे, जो बेकरी के बाहर फुटपाथ पर सो रहे थे।

जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि सलमान के ब्लड सैंपल में 62 मिलीग्राम अल्कोहल पाया गया जो स्वीकार्य स्तर से अधिक था। केमिकल ऐनलिस्ट डी. के. भालशंकर घटना के बाद पुलिस को दिए अपने बयान पर शुक्रवार को अदालत में भी कायम रहे। भालशंकर से सलमान के वकील दीपेश मेहता 15 जुलाई को जिरह करेंगे।

सेना पर एक लाख रु. का जुर्माना

सैन्य अधिकरण की क्षेत्रीय पीठ जयपुर ने पूर्व हवलदार को निशक्तता पेंशन नहीं देने पर सेना पर 1 लाख का जुर्माना किया है। साथ ही सेवामुक्ति की तारीख 19 नवंबर 04 से निशक्तता पेंशन और बकाया पेंशन राशि 6 प्रतिशत ब्याज सहित देने के आदेश दिए हैं। अधिकरण ने ये आदेश हवलदार मोहरसिंह की याचिका पर दिए।

अधिकरण ने कहा कि जुर्माना राशि मोहरसिंह को दी जाए और इसकी वसूली अपील मेडिकल बोर्ड के सदस्य एयर कमाडोर डीपी जोशी, लेफ्टिनेंट कर्नल शोभनादास और कर्नल एसपी सिंह के वेतन से की जाए। साथ ही अधिकरण ने रक्षा मंत्रालय को तीनों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश भी दिए।

मोहरसिंह के वकील एस.बी.सिंह ने बताया कि फरवरी 02 में अरुणाचल में एक अभियान में मोहरसिंह दुर्घटनाग्रस्त हो गए थे। इलाज के बाद 19 नवंबर 04 को उसे सेवा मुक्त कर दिया। सिंह ने प्रिंसीपल कंट्रोलर ऑफ डिफंेस अकाउंट्स (पेंशन) के यहां निशक्तता पेंशन का क्लेम किया। कंट्रोलर ने इसे संवैधानिक मामला मान 20 जुलाई 05 को क्लेम निरस्त कर दिया था।

Friday, May 21, 2010

अल्पसंख्यकों को शैक्षिक संस्थाएं स्थापित करने का अधिकारः सुप्रीम कोर्ट

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अल्पसंख्यकों को शैक्षिक संस्थाएं स्थापित करने का मौलिक अधिकार है और सरकार उसमें कोई बेजा रोक-टोक नहीं कर सकती।

उच्चतम न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता एक धार्मिक अल्पसंख्यक है। संविधान का अनुच्छेद 30 एक धार्मिक अल्पसंख्यक की हैसियत से उसे अपनी पसंद की शैक्षिक संस्था स्थापित करने और उसका प्रबंधन करने का स्पष्ट अधिकार देता है।

अनुच्छेद 30 के अनुसार, चाहे वह धर्म या भाषा पर आधारित हों तमाम अल्पसंख्यकों को देश में शैक्षिक संथाओं की स्थापना और प्रबंधन का अधिकार होगा। यह अनुच्छेद इसका भी प्रावधान करता है कि इस तरह के संस्थान अगर सरकार से कोष पाते हैं तब भी राज्य उनके साथ भेदभाव नहीं करेगा।
उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला कन्नोर डिस्ट्रिक्ट मुस्लिम एडयूकेशन ऐसोसिएशन की ओर से दायर अपील के पक्ष में किया। याचिका में केरल उच्च न्यायालय के इस फैसले को चुनौती दी गई थी कि ऐसोसिएशन को अपने प्रबंधन वाले सर सैयद कालेज में कोई हायर सेकंडरी कोर्स चलाने का कोई वैधानिक अधिकार नहीं है।

कालेज ने हायर सेकंडरी कोर्स चलाने की इजाजत चाही थी लेकिन सरकार ने यह कहते हुए उसकी अनुमति नहीं दी कि तत्कालीन नियमावली में उसका प्रावधान नहीं था। केरल उच्च न्यायालय ने केरल शिक्षा नियमावली की व्याख्या करते हुए कहा कि अल्पसंख्यक संस्थाओं को कोर्स चलाने का वैधानिक अधिकार नहीं है। इसके बाद ऐसोसिएशन ने उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की।

उच्चतम न्यायालय ने अपील को सही करार देते हुए कहा कि राज्य को याचिकाकर्ता की संस्था में अगले शैक्षिक सत्र से हायर सेकंडरी कोर्स का आबंटन करने का निर्देश दिया। उसने इसके साथ ही यह भी कहा कि संस्था को शिक्षकों की नियुक्ति के वैधानिक प्रक्रियाओं पर अवश्य ही अमल करना चाहिए।

फ्रांस में बुर्का पहनने वालों को 150 यूरो का जुर्माना

फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी ने कहा कि बुर्का पर प्रस्तावित प्रतिबंध से मुस्लिमों को आहत नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि फ्रांसीसी कैबिनेट ने सार्वजनिक स्थलों पर बुर्का पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानूनी मसौदे को मंजूरी दे दी है। सरकोजी ने बुधवार को कैबिनेट बैठक में कहा, ""यह एक ऎसा फैसला है, जिसे कोई हल्के में नहीं ले।"" फ्रांस में यह कानून लागू हो जाने के बाद किसी को भी कप़डे की सहायता से चेहरा ढकने की इजाजत नहीं होगी। कानून का उल्लंघन करने वालों पर 150 यूरो का जुर्माना या फिर उसे फ्रांसीसी नागरिकता का पाठ पढ़ने के लिए भेज दिया जाएगा। सरकोजी ने कहा, ""किसी को भी आहत या कलंकित होना नहीं चाहिए।
मैंने खास तौर पर मुस्लिम निवासियों के लिए कहा है कि उन्हें यहां आदर महसूस करना चाहिए।"" ब्रिटिश समाचार पत्र "द टेलीग्राफ" ने सरकोजी के हवाले से कहा, ""मानवीय गरिमा के विचार से जु़डे हम एक पुराने राष्ट्र हैं, जहां विशेषतौर पर महिलाओं को विशेष सम्मान दिया जाता है। हम एक साथ रहने के एक विशेष विचार से भी जु़डे हैं। बुर्का, जो चेहरे को पूरी तरह से ढक देता है वह इन मूल्यों के खिलाफ है। बुर्का पहनना हमारे लिए बहुत रूढि़वादी है, इसलिए इसे हटाना जरूरी है। "" फ्रांस में बुर्का को लेकर तनाव का माहौल सबसे पहले उस वक्त बना जब एक वकील ने दुकान में झग़डे के दौरान मुस्लिम महिला का बुर्का उतार दिया था।

हॉकी फेडरेशन की बहाली का आदेश

दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज एक अहम फैसला सुनाते हुए भारतीय हॉकी फेडरेशन को भंग करने के केन्द्र सरकार के आदेश को खारिज कर दिया है। साथ ही केन्द्र सरकार और भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन पर इस मामले में दस हजार का जुर्माना भी लगाया है। अदालत का यह निर्णय उस वक्त आया है जब एक स्टिंग ऑपरेशन में संघ के सचिव के जाथिकुमारन को एक खिलाड़ी चयन के लिए रिश्वत लेते हुए दिखाया गया है।

हॉकी संघ के अध्यक्ष केपीएस गिल की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश एस मुरीदिहार ने यह फैसला सुनाया। अदालत ने केन्द्र को हॉकी फेेडरेशन को भंग करने का आदेश को गलत करार दिया और केन्द्र को हॉकी फेडरेशन को बहाल करने को कहा। साथ ही खेल मंत्रालय और भारतीय ओलम्पिक एसोशिएसन पर 10 हजार रूपए जुर्माना भी लगाया गया।

गौरतलब है कि केन्द्र सरकार ने 2008 में बीजिंग ओलम्पिक के तुरंत बाद हॉकी संघ को भंग करने के आदेश दिए थे। भारतीय हॉकी टीम के बीजिंग ओलम्पिक क्वालिफाई नहीं कर पाने और खिलाडियों द्वारा भी संघ पर लगातार पक्षपात करने के आरोपों के बाद सरकार ने यह कदम उठाया था। सरकार ने इसके स्थान पर ए के मट्टू की अध्यक्षता में हॉकी इंडिया का गठन किया था।

महिला आरक्षण असंवैधानिक

राजस्थान हाई कोर्ट ने पंचायतीराज चुनावों में युवाओं को 20 फीसदी व महिलाओं को आनुपातिक जनसंख्या के आधार पर 50 फीसदी आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया है। मुख्य न्यायाधीश जगदीश भल्ला व न्यायाधीश एमएन भंडारी की खंडपीठ ने झुंझुनूं निवासी सीताराम शर्मा की याचिका पर सुनवाई के बाद आदेश में कहा कि चूंकि यही मुद्दा हाई कोर्ट में पूर्व में मोहम्मद कलीम की ओर से दायर याचिका में उठाया गया था, इसलिए उस मामले में दिया गया इसी तरह का आदेश इसमें भी पढ़ा जाए।

यह आदेश पूर्व के मामलों में लागू नहीं होगा तथा भविष्य में प्रभावी रहेगा। याचिका में राजस्थान पंचायतीराज अधिनियम की धारा 15 (5)(6) व 16 (5) में किए गए उस संशोधन को चुनौती दी थी, जिसके तहत महिला आरक्षण को 33 से बढ़ाकर 50 प्रतिशत और धारा 19 ए जोड़कर 21 से 35 साल के युवाओं के लिए अलग से 20 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया।

याची ने कहा कि पंचायती राज अधिनियम में पहले से ही महिलाओं को 33 प्रतिशत व अन्य आरक्षित वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान है। यदि महिला आरक्षण को बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया जाता है एवं प्रत्येक 5 सीट में से एक सीट 21 से 35 साल के युवाओं के लिए आरक्षित रखी जाती है तो यह एससी/एसटी व ओबीसी को दिए आरक्षण के साथ 75 से 80 प्रतिशत तक पहुंच जाता है। ऐसी स्थिति में सामान्य वर्ग के लिए 20 प्रतिशत सीटें ही बचती हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने भी इंदिरा साहनी के प्रकरण में व्यवस्था दी है कि किसी भी स्थिति में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती। हाई कोर्ट ने अपने पहले के आदेश में कहा था कि राज्य सरकार ने महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण लै¨गक अनुपातके आधार पर नहीं दिया है। यदि सरकार इसका आधार लैंगिक अनुपात मानती है तो यह आरक्षण चलने योग्य माना जा सकता है।

यदि पुरुषों व महिलाओं का जनसंख्या अनुपात 55 एवं 45 प्रतिशत है तो ऐसी स्थिति में महिलाओं को पचास प्रतिशत आरक्षण दिया जाना अवैधानिक होगा। जिस तरह एससी व एसटी वर्ग को आरक्षण दिया जाता है, उसी तरह महिलाओं को भी आरक्षण का लाभ दिया जाना चाहिए था, लेकिन राज्य सरकार ने ऐसी प्रक्रिया नहीं अपनाई।

ऐसी स्थिति में ये प्रावधान न केवल रद्द करने योग्य है बल्कि असंवैधानिक भी है। साथ ही कुछ सीटों पर 21 से 35 साल के युवाओं को दिया आरक्षण भी संविधान के प्रावधानों के विपरीत है, इससे अन्य युवाओं को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता, इसलिए यह भी रद्द किए जाने योग्य है।

इस निर्णय से पहले हाई कोर्ट ने स्थानीय चुनावों में युवा व महिलाओं के आरक्षण के संबंध में ऐसा ही निर्णय दिया था। उस मामले में राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर दी है। अब पंचायत राज चुनावों में युवा व महिला आरक्षण के संबंध में दिए अदालत के निर्णय का कोई अधिक फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि पंचायत के चुनाव हो गए हैं। हालांकि इस आदेश के बाद अब महिलाओं को उनकी जनसंख्या के अनुसार ही आरक्षण मिलेगा।

Wednesday, May 19, 2010

तड़के अखबार पढ़ना बंद करें : सर्वोच्च न्यायालय

सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को सुझाव दिया कि किसी को भी सुबह तड़के अखबार पढ़ने से बचना चाहिए।

न्यायमूर्ति जी.एस.सिंघवी और न्यायमूर्ति सी.के.प्रसाद की अवकाशकालीन खण्डपीठ ने कहा, ''यदि आप अपने पूरे दिन को तरोताजा रखना चाहते हैं तो सुबह तड़के कम से कम दो घंटे तक अखबार न पढ़ें।''

सर्वोच्च न्यायालय ने यह सुझाव तब दिया, जब उत्तर प्रदेश सरकार की ओर जारी मामलों के लिए पेश होते हुए अधिवक्ता रत्नाकर दास ने अदालत का ध्यान एक अखबार की उस रिपोर्ट की ओर खींचा, जिसमें लिखा गया था कि कानून एवं न्याय मंत्री एम.वीरप्पा मोइली ने नक्सलवाद में बढ़ोतरी के लिए न्यायिक सक्रियता को जिम्मदार ठहराना चाहा है।

'अस्वाभाविक न्यायिक सक्रियता' को नक्सली गतिविधियों में बढ़ोतरी का मुख्य कारण बताते हुए मोइली ने कहा था, ''यदि अदालतें संयम बरती होतीं और जगलों की जमीनी हकीकत को ध्यान में रखीं होतीं तो आज स्थितियां पूरी तरह भिन्न होतीं।''

रिपोर्ट के अनुसार मोइली ने कहा है, ''मेरी चिंता यह है कि जब न्यायाधीश लोग जनहित याचिकाएं स्वीकार करें और फैसले दें, तो उन्हें उसमें यथार्थवादी होना चाहिए और बहसों पर विश्वास करने के बदले जमीनी हकीकतों को देखना-समझना चाहिए।''

मोइली के बयान पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए न्यायमूर्ति सिंघवी ने कहा, ''हमने अखबार पढ़ना बंद कर दिया है।'' इस पर दास ने कहा कि वह कानून मंत्री के बयान से खफा हैं और इसे अदालत के समक्ष उठाने से वह अपने आपको नहीं रोक सकते।

इस पर न्यायमूर्ति सिंघवी ने कहा, ''बेकार की बातों का हमारे ऊपर कोई असर नहीं होता।''

''मृत्यु पूर्व बयान पर सावधानी बरतें अदालतें'' - सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निचली अदालतों को मृत्यु पूर्व बयानों पर विचार करते हुए बहुत सावधानी बरतनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मृतक ने बगैर किसी दबाव के पूरे होश में स्वेच्छा से सही बयान दिया है।
अदालत ने विवाह के एक सप्ताह के भीतर ही दहेज की खातिर नवविवाहिता को जलाकर मारने की लोमहर्षक घटना में जेठ की सजा बरकरार रखते हुए मृत्यु पूर्व बयान के बारे में अदालतों को सचेत किया है।
न्यायमूर्ति वीएस सिरपुर्कर और मुकुन्दकम शर्मा की खंडपीठ ने देवरानी को जलाकार मारने के अपराध में जेठ पूरन चंद की सजा बरकरार रखते हुए उसकी अपील खारिज कर दी। इस मामले में नवविवाहिता संतोष की हत्या के अपराध में दोषी ठहराए गए पति गुरदयाल ने फैसले के खिलाफ अपील दायर नहीं की थी।
इस मामले में संतोष का विवाह आठ दिसंबर 1997 को हुआ था लेकिन एक सप्ताह के भीतर ही उसे दहेज की खातिर प्रताडि़त किया जाने लगा था। अंतत: 15 दिसंबर 1997 को ससुराल में उसके ऊपर मिट्टी का तेल छिड़कर आग लगा दी गई थी। नवविवाहिता ने मृत्यु से पूर्व चंडीगढ़ के अस्पताल में पूर्व न्यायिक मजिस्ट्रेट को अपना बयान दिया था। जेठ पूरन चंद ने अपनी अपील में मृत्यु पूर्व बयान को ही मुख्य आधार बनाया था।
न्यायाधीशों ने पूरन चंद की अपील खारिज करते हुए कहा कि निचली अदालतों को मृत्यु पूर्व दिए गए बयान पर बहुत बारीकी से विचार करना चाहिए क्योंकि ऐसा बयान देने वाला तो जिरह के लिए उपलबध होता नहीं है जो अभियुक्त के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन जाती है। न्यायाधीशों ने कहा कि कई मामलों में तो अपने पति के शांतिपूर्ण और सुखमय जीवन गुजारने की आस ससुराल के उन सदस्यों के नाम घसीट लेती है जिन्हें वह असुविधाजनक महसूस करती हैं।
कई बार रिश्तेदार भी जांच एजेंसी को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। ऐसी स्थिति में जांच एजेंसी द्वारा दर्ज मृत्यु पूर्व बयान की बहुत बारीकी से जांच की जानी चाहिए और अदालत को घटना के आसपास की परिस्थितियों को भी ध्यान रखना चाहिए।

आसान नहीं होगा राजस्थान उच्च न्यायालय में अब जनहित याचिका पेश करना

राजस्थान उच्च न्यायालय में अब जनहित याचिका पेश करने के लिए याचिकाकर्ता को मोबाइल नंबर तथा अन्य पते देने होंगे।
उच्च न्यायालय ने जो वाद सूची जारी की है उस पर वकीलों की सूचनार्थ जनहित याचिकाओं को लेकर जो दिशा निर्देश छापे गये है उनके अनुसार अब जनहित याचिकाकर्ता को अपना ई मेल एड्रेस, मोबाइल नंबर, फैक्स नंबर तथा जिसके विरूद्ध जनहित याचिका है उसका मोबाइल नंबर, ई मेल एड्रेस व फैक्स नंबर देना होगा।
जनहित याचिका निश्चित प्रारूप पर पेश करनी होगी जिसमें आदेश अधिसूचना, परिपत्र तथा सरकार के निर्णय की संख्या देनी होगी।
याचिकाकर्ता को अपना सामाजिक स्तर, पेशा आदि के बारे में सम्पूर्ण सूचना देनी होगी। याची को यह भी घोषणा करनी पड़ेगी कि प्रस्तुत जनहित याचिका में उसका निजी हित नहीं है यदि है तो क्या निजी हित है।
इसमें यह भी लिखना होगा कि पेश की गई याचिका दायर करने में आया खर्चा वकील की फीस और इस वास्ते किसने वित्तीय सुविधा उपलब्ध करवाई है, साथ ही पैन कार्ड देना होगा । याचिका पेश करने से पहले की गई जांच पड़ताल से न्यायालय को अवगत कराना होगा और समान विषय को लेकर पहले से कोई जनहित याचिका विचाराधीन हो तो न्यायालय के ध्यान में लाना जरूरी होगा। यह भी याचिका में बताना होगा यदि याचिका में लगने वाली संभावित खर्चे के लिये न्यायालय द्वारा मांगी जाने वाली धरोहर राशि देने को वह तैयार है।
याचिका में अंकित तथ्यों का स्रोत स्पष्ट करना होगा और यदि कोई अभ्यावेदन प्रार्थना पत्र दिया है तो उसमें क्या हुआ यह बताना होगा। यदि याचिका देरी से पेश हुई है तो कारण बताना होगा। यदि विपक्ष ने कैवियट पेश कर रखा है तो उसे न्यायालय के संज्ञान में लाना होगा, यह भी स्पष्ट करना होगा कि क्या विपक्षी को याचिका की प्रति दे दी गई है। वर्तमान में पानी, बिजली, स्कूल, शिक्षा, चिकित्सा, सड़क, आम रास्ता, अतिक्रमण, अवैध निर्माण इत्यादि विषयों को लेकर सैकड़ों जनहित याचिकाएं विचाराधीन है।

पिता को मौत की नींद सुला, रात भर देखा टीवी

आस्ट्रेलिया में एक किशोर ने पहले तो अपने पिता की कथित तौर पर गोली मारकर हत्या कर दी और फिर पूरी रात टेलीविजन देखता रहा।

यह मामला फिलहाल अदालत में है। इस किशोर का नाम सार्वजनिक नहीं किया गया है। उसके खिलाफ न्यू साउथ वेल्स के सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा चलाया जा रहा है। उस पर आरोप है कि उसने मुडगी के निकट अपने घर में पिता की हत्या की। अदालत में सोमवार को तथ्यों से जु़डा एक बयान दिया गया। यह बयान सुनवाई के दौरान न्यायधीश पीटर जानसन को सौंपा गया। यह घटना इसी साल 23 अप्रैल की है। बयान में कहा गया है, ""उस दिन (23 अप्रैल) रात लगभग 10.30 बजे इस किशोर ने इस घटना को अंजाम दिया। उसका कहना है कि बंदूक में गोलियां भरने के बाद उसने पिता द्वारा उसे शारीरिक रूप से दी गई प्रत़ाडना को याद किया और फिर अपने पिता के कमरे में पहुंचा।"" बयान के मुताबिक, ""उसने अपने पिता के कमरे की बत्तियां बंद कीं और अपनी आंख बंद करके गोली चला दी। इसके बाद वह अपने बिस्तर पर आ गया और पूरी रात टीवी देखता रहा।"" 

'कुल पिता की तरह पेश न आएं खापें' - पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने खाप पंचायतों को कड़ा संदेश देते हुए कहा कि खाप पंचायतें अपने आप को कुल पिता की तरह प्रस्तुत न करें। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने सगोत्र विवाह पर रोक लगाने और हिंदू विवाह अधिनियम में संशोधन संबंधी याचिका को खारिज कर दिया।
कोर्ट ने साथ ही खापों को दो टूक कहा कि वे हिंदू विवाह अधिनियम में संशोधन की मांग पर सरकार के पास जाएं। साथ ही कोर्ट ने नसीहत दी कि ऐसे नियम खापें सिर्फ अपने परिवार पर लागू करें, समाज पर यह नियम न थोंपे।
सोनीपत निवासी कपूर जाखड़ व अन्य तीन लोगों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर हरियाणा की परंपरा व प्रथा को बचाने के लिए एक गोत्र में विवाह करने पर रोक लगाने की मांग की थी। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मुकुल मुद्गल की अध्यक्षता वाली खंडपीठ इस मामले में सुनवाई कर रही थी। सोमवार को सुनवाई के दौरान खंडपीठ के सदस्य जज जसबीर सिंह ने खाप पंचायतों को कहा कि इन पंचायतों को अपने काम से मतलब रखना चाहिए।
मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट का नजरिया था कि भारत एक स्वतंत्र देश है और उन लोगों के साथ कुछ गलत करने की छूट नहीं दी जा सकती जो कानून के दायरे में विवाह करते हैं। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि कहा कि खाप पंचायत के सदस्य तालिबानी आदेश जारी कर प्रेमी जोड़ों को तंग कर रहे हैं। वे एक तरह से कानून तोडऩे वाले असामाजिक तत्व हैं। कोर्ट ने कहा कि ऐसे लोगों को पकड़ कर जेल में बंद करने की जरूरत है तभी इनकी गैरकानूनी गतिविधियों पर रोक लग सकेगी और समाज में शांति हो पाएगी। चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि तुम इस बात की फिक्र क्यों कर रहे हो कि प्रेमी जोड़े परंपराओं की अपेक्षा कानून के अनुसार विवाह कर रहे हैं?
चीफ जस्टिस ने कहा कि साथ ही कह कि आप यह परंपरा अपने बच्चों पर थोपना, लेकिन इसे समाज पर थोपने का कोई अधिकार नही हैं। खंडपीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि क्या उनके पास ऐसा कोई सबूत है जिससे यह पता लगता हो कि गोत्र में विवाह पर रोक कोई परंपरा या सामाजिक प्रथा है। खंडपीठ के इस जवाब पर याचिकाकर्ता के वकील ने वेदों का हवाला दिया। इस पर खंडपीठ ने कहा कि वह वेदों का सम्मान करते हैं लेकिन कोर्ट संविधान के प्रति जवाबदेह है न कि वेदों के। खंडपीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह ऐसे सबूत या पुस्तक पेश करें जिससे साबित होता है कि गोत्र विवाह पर रोक एक प्रथा है और इसकी कोई ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है।
खंडपीठ ने एक ही गोत्र में विवाह पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा कि न्यायपालिका इस तरह का कोई कानून बनाने के लिए निर्देश नहीं दे सकती। इसके लिए आप कार्यपालिका से आग्रह करें। इस मामले में खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के एक निर्देश का हवाला देते हुए कहा कि कोर्ट किसी भी अधिसूचित कानून पर निर्देश जारी नहीं कर सकती। खंडपीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि वह इस बाबत सरकार को अपनी प्रस्तुति दे। याचिका में याचिककर्ता ने कोर्ट से आग्रह किया था कि एक नया कानून बनाया जाए या वर्तमान हिंदू विवाह अधिनियम में संशोधन हो ताकि एक गोत्र में विवाह पर रोक लगाई जा सके। अपनी मांग के पक्ष में याचिकाकर्ता ने चिकित्सा विज्ञान का भी हवाला दिया और कहा कि हरियाणा का जाट समुदाय इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहा है।

Thursday, May 13, 2010

हाईकोर्ट में सीओ तलब: निर्धारित समय बाद भी संगीत बजने का मामला

राजस्थान हाईकोर्ट ने अदालती आदेश के बाद भी दस बजे बाद शहर के एक वैवाहिक स्थल पर तेज आवाज में संगीत बजने पर आदर्श नगर के पुलिस वृत्ताधिकारी को आगामी 26 मई को व्यक्तिगत रूप से तलब किया है।

मुख्य न्यायाधीश जगदीश भल्ला और न्यायाधीश मनीष भंडारी की खंडपीठ ने यह आदेश बुधवार को प्रमोद नारायण माथुर की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए। उल्लेखनीय है कि पूर्व में खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए शहर के सार्वजनिक स्थानों पर रात दस बजे बाद तेज आवाज में संगीत बजाने पर रोक लगा दी थी। खंडपीठ ने इसके लिए संबंधित थानाधिकारियों और वृत्ताधिकारियों को पाबंद किया था लेकिन इस आदेश के बाद भी गत दिनों शहर के तिलक नगर क्षेत्र में एक वैवाहिक स्थल पर दस बजे बाद तेज आवाज में संगीत बजाया गया। इस खंडपीठ ने नाराजगी जताते हुए आदर्श नगर क्षेत्र के वृत्ताधिकारी को आगामी 26 मई को हाईकोर्ट में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के आदेश दिए हैं।

दण्ड़ प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) के अंतर्गत एफआईआर दर्ज करने की अनिवार्यता पर रोक



सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा दण्ड़ प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) के अंतर्गत प्राप्त होने वाले प्रार्थना पत्रों पर अनिवार्य रूप से प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज करने के आदेश पर रोक लगाते हुए सम्बन्घित पक्षों को नोटिस जारी किए हैं।

राजस्थान सरकार की एक विशेष अनुमति याचिका पर मंगलवार को राजस्थान सरकार बनाम बाबूलाल एवं अन्य मामले में न्यायाधीश ए कबीर और न्यायाधीश एचएल गोखले की खण्डपीठ ने सुनवाई की। राजस्थान सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता डॉं. मनीष सिंघवी ने पैरवी की। राजस्थान हाईकोर्ट ने 27 मार्च 2009 को आदेश दिया था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 156 (3) के अंतर्गत यदि कोई प्रार्थना पत्र प्राप्त होता है तो मजिस्टे्रट को उस पर एफआईआर दर्ज कराने और मामले की जांच करने का आदेश अनिवार्य रूप से देना होगा।

इस आदेश के विरूद्घ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अनुमति याचिका दर्ज की। राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि न्यायाधीश को इस प्रकार की किसी बाध्यता के बजाए अपने विवेक से मामले को देखना चाहिए और अपने विवेकाधिकार का उपयोग करने के बाद ही एफआईआर दर्ज करने के संबंध में कोई आदेश देना चाहिए, क्योंकि कई बार एफआईआर दर्ज करवाने के पीछे अनेक झूठी शिकायतें और बदनियति पाई जाती है। ऎसी स्थिति में न्यायाधीशों को अपने स्व-विवेक का उपयोग करते हुए आदेश पारित करने चाहिए।

Wednesday, May 12, 2010

साड़ी पहनने पर जोर दिए जाने पर नहीं टूट सकती शादी - बांबे हाई कोर्ट

बांबे हाई कोर्ट ने कहा है कि ससुराल में साड़ी पहनने पर जोर दिए जाने को हिंदू विवाह कानून के तहत 'क्रूरता' करार नहीं दिया जा सकता। जस्टिस ए.पी. देशपांडे और रेखा सुंदरबल्दोता की पीठ ने एक महिला होम्योपैथिक डाक्टर की याचिका ठुकराते हुए कहा कि पंजाबी पोशाक (सलवार-कुर्ता) के मुकाबले साड़ी पहनना थोड़ा दिक्कत भरा तो हो सकता है लेकिन सिर्फ इस वजह से कोई शादी नहीं तोड़ी जा सकती।
अल्का (याचिकाकर्ता) और आनंद (दोनों काल्पनिक नाम) की जून 2003 को शादी हुई थी। शादी के कुछ दिन बाद ही अल्का की अपने पति और ससुराल वालों से खटपट शुरू हो गई। वह पिता के घर वापस चली गई और पति, सास व दो ननदों के खिलाफ दहेज उत्पीडऩ का मुकदमा ठोंकने के अलावा उसने फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी भी दे दी। अपनी अर्जी में अल्का ने कहा कि पति के दूसरी औरत से नाजायज संबंध के अलावा उसके प्रति 'क्रूरता' बरतने के ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनकी वजह से उसे यह कदम उठाना पड़ा। इनमें से एक उदाहरण था कि ससुराल वाले उसे साड़ी पहनने के लिए मजबूर करते हैं।
फैमिली कोर्ट से तलाक की अर्जी खारिज होने के बाद उसने हाई कोर्ट में अपील की। हाई कोर्ट ने पिछले हफ्ते फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि ससुराल वालों का साड़ी पहनने पर जोर देना क्रूरता नहीं माना जा सकता। लिहाजा सिर्फ इस वजह से कोई शादी खत्म नहीं की जा सकती। अदालत ने अल्का की उस कहानी को भी झूठा करार दिया, जिसमें उसने एक ननद पर अपने साथ मारपीट करने का आरोप लगाया था। अदालत के फैसले में जिक्र है कि उसकी ननद विकलांग है और वह अपने पैरों पर खड़ी भी नहीं हो सकती, लिहाजा यह कहानी झूठ है। अदालत ने कहा कि दहेज की मांग और पति के दूसरी औरत से संबंध होने के आरोप के समर्थन में भी कोई सुबूत नहीं हैं।

निठारी हत्याकांड, सुरेंद्र कोली को फ़ांसी

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की एक अदालत ने नोयडा के बहुचर्चित निठारी हत्याकांड के एक मामले में मुख्य अभियुक्त सुरेंद्र कोली को आरती नाम की एक बच्ची के अपहरण, बलात्कार और हत्या के जुर्म में आज फ़ांसी की सजा सुनायी. सीबीआइ की गाजियाबाद अदालत के न्यायाधीश एके सिंह ने यह फ़ैसला सुनाया. अदालत ने सुरेंद्र कोली को सात वर्षीय आरती की हत्या के मामले में सुबूत नष्ट करने के अपराध में पांच साल, उसके साथ दुष्कर्म करने के जुर्म में सात साल और हत्या के दोष में मौत की सजा सुनायी. कोली पर तीन हजार रूपए का जुरमाना भी किया गया है. 

न्यायालय ने कोली को गत चार मई को दोषी करार दिया था. पांच मई को उसे सजा सुनाने की तारीख तय की थी, लेकिन वकीलों की हड़ताल के कारण कोली को तब सजा सुनायी नहीं जा सकी थी.उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर जिले के मुख्यालय नोयडा में साल 2006 में वीभत्स निठारी हत्याकांड से देशभर में शोक और नफ़रत की लहर फ़ैल गयी थी. इन मामलों की सुनवायी पड़ोसी जिले गाजियाबाद में हो रही थी.

फैसले के बाद 38 वर्षीय कोली ने इसे 'अंधा कानून' बताते हुए कहा कि वह इस फैसले के खिलाफ अपील करेगा। उसने यह भी कहा, "मुझे फंसाया गया है।" निठारी में हुई हत्याओं से जुड़े दूसरे मामले में भी कोली को फांसी की सजा सुनाई गई है। इससे पहले उसे रिंपा हलधर की हत्या के मामले में फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है।

सीबीआई के विशेष न्यायाधीश ए. के. सिंह ने अभियोजन पक्ष की उस दलील को स्वीकार कर लिया जिसमें कहा गया था कि आरती की हत्या एक जघन्यतम (रेयरेस्ट ऑफ रेयर) अपराध की श्रेणी में आता है। इसके बाद न्यायाधीश ने कोली को फांसी की सजा सुनाई।

कोली को आरती की हत्या, उसके साथ बलात्कार का प्रयास, अपहरण और सबूतों के साथ छेड़छाड़ के मामले में चार मई को न्यायाधीश ए. के. सिंह ने दोषी ठहराया था। आरती 25 सितंबर 2006 को गायब हो गई थी। सुनवाई के दौरान बुधवार को सीबीआई के वकील सुरेश बत्रा ने कहा, "यह एक जघन्यतम अपराध है जिसमें अभियुक्त ने एक सात साल की बच्ची का अपहरण किया, उसका गला दबाया, उसके साथ बलात्कार का प्रयास किया और उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए।"

उन्होंने कहा, "कोली ने उसके शरीर के टुकड़ों को प्लास्टिक की थैलियों में रखा और अपराध में इस्तेमाल की गई सामग्री के साथ उसे फेंक दिया।" अभियोजन पक्ष के एक अन्य वकील जे. पी. शर्मा ने विभिन्न हत्याकांडों में सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि कोली का अपराध जघन्यतम अपराधों की श्रेणी में आता है। इसलिए वह मृत्युदंड का पात्र है।

बचाव पक्ष के वकील आदेश शर्मा ने अदालत से उदारता की अपील की। उन्होंने कहा कि कोली की मां विधवा है और वह अपने परिवार में अकेला कमाने वाला सदस्य था। उसके परिवार में दो बच्चे भी हैं। मृत्युदंड के अलावा कोली को अन्य अपराधों के लिए अलग सजा दी गई। अपहरण के लिए उसे 1,000 रुपये के जुर्माने के साथ आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।

कोली को बलात्कार के प्रयास के लिए 1,000 रुपये के जुर्माने के साथ सात साल के कारावास की सजा सुनाई गई।  सबूतों के साथ छेड़छाड़ के अपराध में भी उसे 1,000 रुपये का जुर्माना और सात साल के कारावास की सजा दी गई। कोली को पांच मई को सजा सुनाई जानी थी लेकिन उस दिन अदालती सुनवाई 12 मई तक के लिए स्थगित कर दी गई थी।

आरती सितम्बर 2006 को अपने घर से लापता हो गई थी। वह निठारी गांव के उन 19 बच्चों और महिलाओं में से थी जिनके शरीर के अंग एक नाले से पाए गए थे।

मुस्लिम व्यक्ति से शादी के लिए महिला का धर्म-परिवर्तन जरूरी - इलाहाबाद उच्च न्यायालय

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी मुस्लिम व्यक्ति की दूसरे धर्म की महिला से शादी को अमान्य और इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ माना जाएगा अगर शादी से पहले महिला ने धर्म परिवर्तन नहीं किया है।

न्यायाधीश विनोद प्रसाद तथा राजेश चंद्रा की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि एक मुस्लिम व्यक्ति की दूसरे धर्म की महिला से शादी अमान्य मानी जाएगी और पवित्र कुरान के खिलाफ होगी यदि वह उसका निकाह से पूर्व धर्मांतरण कराने में विफल रहता है।

खंडपीठ ने कहा कि एक मुस्लिम व्यक्ति का पुन: विवाह अवैध माना जायेगा, यदि वह अपनी पहली पत्नी को तलाक दिए बिना छोड़ देता है और उससे पैदा हुए बच्चों का न्यायोचित तरीके से भरण़ पोषण करने में विफल रहता है।

अदालत ने सोमवार को इलाहाबाद निवासी दिलबर हबीब सिद्दीकी की रिट याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश दिया। उसने पिछले वर्ष 29 दिसंबर को खुशबू नाम की हिंदू लड़की से शादी की थी।

सिद्दीकी ने खुशबू की मां सुनीता जायसवाल द्वारा उसके खिलाफ दायर की गयी प्राथमिकी को रद्द कराने के लिए अदालत में याचिका दाखिल की थी। सुनीता जायसवाल ने आरोप लगाया था कि उसकी नाबालिग बेटी का अपहरण किया गया और सिद्दीकी से शादी करने को मजबूर किया गया।

प्राथमिकी में खुद पर लगाए गए आरोपों को खारिज करते हुए सिद्दीकी ने अदालत में खुशबू का हाई स्कूल प्रमाणपत्र पेश किया ताकि यह साबित किया जा सके कि शादी के समय वह बालिग थी।

अदालत ने कहा कि इस्लाम के तहत एक से अधिक पत्नी रखना जायज है लेकिन अदालत ने इस तथ्य का कड़ाई से संज्ञान लिया कि खुशबू से निकाह करने से पूर्व सिददीकी ने उसे यह नहीं बताया था कि वह पहले से ही शादीशुदा है और तीन बच्चों का पिता है।

मामले की सुनवाई के दौरान उसकी पहली पत्नी अदालत के समक्ष हाजिर हुई और आरोप लगाया कि सिददीकी ने उसे तथा उसके तीन बच्चों को छोड़ दिया था जिससे उन्हें भिखारियों की तरह रहना पड़ रहा था।

कपाड़िया बने भारत के मुख्य न्यायाधीश

भारत के सर्वोच्च न्यायालय के सबसे सीनियर जज एसएच कपाड़िया ने बुधवार को भारत के 38वें मुख्य न्यायाधीश का पद ग्रहण कर लिया है. उन्हें राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने शपथ दिलाई. शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनके कैबिनेट सहयोगियों के अलावा रिटायर होने वाले मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन भी शामिल थे.

जस्टिस कपाड़िया 29 सितंबर 2012 तक इस पद पर बने रहेंगे.

एसएच कपाड़िया उस पांच-सदस्यीय संवैधानिक पीठ का हिस्सा थे जिसने एक ऐतिहासिक निर्णय में कहा था कि संविधान के नवें शेड्यूल का न्यायिक पुनरावलोकन किया जा सकता है. समाचार एजेंसियों के अनुसार जस्टिस कपाड़िया को करों से संबंधित क़ानूनों की गहरी जानकारी है और इस बात की तारीफ़ उनके सहयोगी जज और वकील दोनों ही करते हैं. सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट के मुताबिक जस्टिस कपाड़िया ने 1974 में वकील के तौर पर न्यायापालिका में अपने करियर की शुरुआत की.

उन्हें आठ अक्तूबर 1991 को बॉम्बे हाई कोर्ट का एडिशनल जज नियुक्त किया गया. वर्ष 1993 में वे इसी उच्च न्यायालय के स्थाई जज बने. जस्टिस कपाड़िया अगस्त 2003 में उत्तरांचल हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस बने और उसी साल दिसंबर में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया.

जीवन वृत्त 

जस्टिस एसएच कपाड़िया

जन्म: 29 सितंबर 1947

करियर: 10 सितंबर 1974 में वकील के तौर पर मुंबई में शुरुआत

8 अक्तूबर 1991 को बॉम्बे हाई कोर्ट के जज नियुक्त

23 मार्च 1993 को बॉम्बे हाई कोर्ट के स्थाई जज नियुक्त

5 अगस्त 2003 में उत्तरांचल हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने

18 दिसंबर 2003 में सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त

12 मई 2010 को भारत के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त

Friday, May 7, 2010

राजस्थान न्यायिक अघिकरियों के चयन के मामले में आरपीएससी की याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की


सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के न्यायिक अघिकरियों के चयन के मामले में राजस्थान लोक सेवा आयोग की विशेष अनुमति याचिकाओं को खारिज करते हुए वैधानिक सवाल को अनिर्णत रखा है। वैधानिक सवाल है कि न्यायिक अघिकरियों के चयन में आयोग द्वारा लगाया गया स्केलिंग फार्मूला क्या वैध है अथवा अवैध है? राजस्थान हाई कोर्ट ने फैसले में कहा था कि चयन में आयोग स्केलिंग फार्मूला नहीं लगा सकता।

यह विवाद 2005 के चयन से चला आ रहा है। न्यायालय ने 2008 के अभ्यर्थियों की समादेश याचिकाओं को खारिज करते हुए वापस लेने की अनुमति प्रदान कर दी और कोई आदेश पारित करने से इनकार कर दिया।

मुख्य न्यायाधीश के जी बालाकृष्णनन , न्यायाधीश जे एम पांचाल और न्यायाधीश बी एस चौहान की खण्डपीठ ने राजस्थान लोक सेवा आयोग की ओर से वरिष्ठ अघिवक्ता पी पी राव व अन्य तथा राज्य सरकार की ओर से स्थाई अघिवक्ता मिलिंद कुमार को सुनने के बाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली आयोग की कई विशेष अनुमति याचिकाओं को खरिज करते हुए कहा कि चयन में स्के लिंग फार्मूला की वैधानिकता का सवाल खुला रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने 2008 के चयन के मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

स्वतंत्रता सेनानी की याचिका पर 13 साल बाद फैसला

राजस्थान हाईकोर्ट ने स्वतंत्रता सेनानी के पुत्र को चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पद पर तीन माह के भीतर 29 मार्च, 1997 से समस्त परिलाभों समेत नियुक्ति देने के केन्द्र व राज्य सरकार को आदेश दिए हैं।

न्यायाधीश मोहम्मद रफीक की एकलपीठ ने यह आदेश स्वतंत्रता सेनानी करौली जिले के परसादी राम की वर्ष 1997 में दायर याचिका को मंजूर करते हुए दिए। स्वतंत्रता सेनानी परसादी राम ने भारतीय नौसेना में 19 मार्च, 1930 से 31 अक्टूबर, 1945 तक सेवाएं दी तथा देश की आजादी की लडाई लडी थी। परसादी राम ने राजस्थान स्वतंत्रता सेनानी सहायता नियम 1959 के तहत अपने परिजन को सरकारी सेवा देने की गुहार करते हुए याचिका दायर की। प्रार्थी का 1998 में देहांत हो गया तो उनका पुत्र पक्षकार बन गया। अदालत ने 22 मार्च 2010 को प्रार्थी ओमप्रकाश की याचिका को मंजूर करते हुए उसकी नियुक्ति चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पद पर करने के 13 वर्ष बाद आदेश दिया है।

कार में सेक्स, सजा माफ

दुबई में कार में सेक्स करने के आरोप में निचली कोर्ट से सजा पाए एक नवदंपत्ति ने अपील फतेह हासिल कर ली है। पाकिस्तान के इस नवविवाहित जो़डे को सार्वजनिक स्थान पर अश्लीलता फैलाने के आरोप में एक महाने की कैद और वापस पाकिस्तान भेजने की सजा सुनाई गई थी। 
दुबई की अपीलीय अदालत ने फैसले को इस आधार पर पलट दिया कि पुलिस अधिकारी ने कार के अंदर झांककर निजता के अधिकार का उल्लंघन किया है। दुबई में विदेशियों के शिष्टाचार के सख्त कानून को तो़डने की क़डी में यह सबसे नया मामला है। पुलिस ने 28 साल के इस पाकिस्तानी युकवकौर 24 वर्षीय उनकी पत्नी को मई 2009 में गिरफ्तार किया था। पुलिस ने उन पर आरोप लगाया था कि वे जुमैरा बीच रेसीडेंस की कार पार्किग में ख़डी ग़ाडी में शारीरिक संबंध बना रहे थे। अदालत में सुनवाई के दौरान पता चला कि पुलिस अधिकारी ने दो बार उस कार में झांकने की कोशिश की और बाद में जब कार की खि़डकी पर दस्तक दी तो एक निर्वस्त्र युवक ने खि़डकी खोली। 
दंपत्ति के वकील माजिद अल कब्बन ने अदालत में जिरह करते हुए कहा कि यह उनके मुवक्किल के मानवाधिकारों और निजता के अधिकारों का हनन है। उन्होंन दलील दी कि उनके मुवक्किल की कार निजी स्थान पर ख़डी थी और दंपत्ति ने जो भी किया वह काले शीशे के पीछे किया। यह दुबई के शालीनता कानून का उल्लंघन नहीं है। फैसला आने के बाद कब्बन ने कहा, हम इस फैसले से खुश और थो़डे हैरान हैं, क्योंकि अक्सर इस तरह के मामले किसी और दिशा में मु़ड जाते हैं।

फ़ांसी चढ़ेगा कसाब

आख़िरकार मुंबई को न्याय मिला. 26-11 हमले की सुनवाई कर रहे स्पेशल कोर्ट के जज एमएल तहलियानी ने गुरुवार को आतंकी अजमल कसाब को सजा-ए-मौत की सजा सुनायी. कसाब यहां आर्थर रोड स्थित जेल में बंद है. इसी जेल में बनी विशेष अदालत ने कसाब को गत सोमवार को 83 मामलों में दोषी करार दिया था.एक मात्र जिंदा बचा आतंकी सीमा पार से समुद्री रास्ते आये 10 आतंकवादियों के साथ मुंबई में तीन दिन तक हमला करनेवाले इन आतंकवादियों में से कसाब एकमात्र जिंदा बचा था. इस मामले से जुड़े दो भारतीय सह आरोपी फ़हीम अंसारी और सबाउद्दीन अहमद को अदालत ने साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया था. इस हमले में नौ आतंकवादी सुरक्षा बलों के हाथों मारे गये थे.

क्या कहा जज तहलियानी ने

कसाब के सुधरने की कोई संभावना नहीं है. वह अपनी मरजी से आतंकी बना था. उस पर रहम नहीं किया जा सकता. उसेजिंदा रखना समाज के लिए खतरनाक है.यह देश की जीत है. इससे पीड़ितों के परिवारों को खुशी मिलेगी. मैं इस फ़ैसले से खुश हं. पीड़ितों के परिवारों को न्याय दिलाने की मेरी कोशिश सफ़ल हई है. उज्ज्वल निकम, सरकारी वकीलमैंने कसाब पूछा- क्या वह कुछ कहना चाहता है? एक बार फ़िर उसने सिर हिला कुछ कहने की इच्छा से इनकार किया. 


पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमिर कसाब के पास फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देने का विकल्प है। आपराधिक प्रक्रिया संहित की धारा 366 (एक) के अनुसार जेल अधिकारियों द्वारा सजा के पालन से पहले बंबई उच्च न्यायालय को उस पर मुहर लगानी होगी।

दोषी व्यक्ति भी सुनवाई अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दे सकता है जो उसकी पुष्टि कर सकती है उसे कम कर सकती है अथवा सभी आरोपों से बरी कर सकती है। इसके अलावा संविधान का अनुच्छेद 134 और आपराधिक प्रक्रिया संहिता उच्च न्यायालय के सजा पर पुष्टि के बाद दोषी को उच्चतम न्यायालय में अपील करने का अधिकार देता है ताकि न्यायालय निर्णय करे कि क्या मामला विचार लायक है अथवा नहीं।

इन सब विकल्पों के अतिरिक्त कोई दोषी इस आधार पर विशेष अनुमति याचिका न्यायालय में दायर कर सकता है कि मामले के कई ठोस कानूनी सवाल हैं जिन्हें उसे तय करना है। संवैधानिक प्रावधान के तहत लेकिन यह न्यायालय का विवेकाधिकार है कि वह विशेष अनुमति याचिका को स्वीकार करे अथवा नहीं।

दोनों अपीली अदालतों में की गई अपील उसके समक्ष उठाए गए कानूनी सवाल के निर्धारण तक सीमित होगी। उच्चतम न्यायालय के बाद भी दोषी राष्ट्रपति से गुहार लगा सकता है जो अपने अधिकार के तहत दोषी को माफी तक दे सकता है।

Wednesday, May 5, 2010

राजस्थान में न्यायधीशों के ग्रीष्मावकाश समाप्त

राजस्थान हाई कोर्ट ने ने इस बार प्रदेश में अधीनस्थ अदालतों के न्यायधीशों को गर्मियों में मिलने वाले अवकाश समाप्त कर दिया है। हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार (प्रशासन) के अनुसार वर्ष 2010 में किसी भी न्यायिक अधिकारी को ग्रीष्मावकाश लेने की अनुमित नहीं दी जाएगी।

एक सरकारी विज्ञçप्त में बताया गया है कि उक्त अवधि में संबंधित जिला एवं सत्र न्यायाधीश अपने न्याय क्षेत्र के उन न्यायालयों का,े जो केवल दीवानी कार्य कर रहे हैं, उन्हें सुनवाई एवं निस्तारण के लिए फौजदारी कार्य स्थानांतरित करेंगे। रजिस्ट्रार (प्रशासन) ने बताया कि 10 जुलाई, 2010 तक समस्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश यह सूचना भिजवाएंगे कि उक्त अविध के दौरान कुल कितने प्रकरणों का आदान-प्रदान किया और कितने मामलों का निस्तारण गया।

45 फीसदी अंक वाले छात्र भी दे सकेंगे बीएड परीक्षा - इलाहाबाद हाई कोर्ट

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने मंगलवार को बीएड परीक्षा देने वाले छात्रों को बड़ी राहत दी है। हाई कोर्ट ने कहा है कि स्नातक में 45 फीसदी अंक वाले छात्र भी बीएड का एग्जाम दे सकते हैं।

उल्लेखनीय है कि इससे पहले राज्य सरकार ने पचास प्रतिशत से कम अंक पाने वालों को बीएड की प्रवेश परीक्षा में शामिल नहीं करने आदेश दिया था। जिसके बाद यूपी बीएड प्रवेशार्थी संघर्ष समिति ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। बीएड का एग्जाम 5 मई को होगा। अदालत के इस आदेश से लगभग डेढ लाख छात्रों को राहत मिली है जबकि राज्य सरकार को तगड़ा झटका लगा है।

न्यायमूर्ति एस.एन शुक्ला ने यूपी बीएड प्रवेशार्थी संघर्ष समिति की याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार और लखनऊ विश्वविद्यालय को छह सप्ताह में जवाब देने का आदेश दिया। बीएड की प्रवेश परीक्षा में सात लाख छात्र हिस्सा लेंगे जिनमें डेढ लाख छात्रों के अंक पचास प्रतिशत से कम हैं। राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों और कालेजों में बीएड की एक लाख सीट है।

चेक बाउंस हुआ तो 20 फीसदी तक ज्यादा जुर्माना

चेक बाउंस के मामलों में समझौते में देरी के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी से चेक की रकम का कुछ हिस्सा वसूलने के निर्देश दिए हैं। जानकारों का कहना है कि यह फैसला इसलिए लिया गया है ताकि इस तरह के मामले जल्द से जल्द कोर्ट के बाहर निपट जाएं। आमतौर पर लोग वर्र्षो तक मुकदमेबाजी के बाद निपटारे की राह पकड़ते हैं। देश की विभिन्न अदालतों में चैक बाउंस के ३८ लाख से ज्यादा मामले लंबित हैं।

शीर्ष कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, आरोपी पहली या दूसरी सुनवाई में समझौते के लिए आवेदन करता है तो उससे किसी तरह की राशि नहीं ली जाएगी। इसके बाद समझौते की गुहार लगाने पर उसे चेक की रकम का 10 फीसदी धन जमा कराया जाएगा। वह सेशन या हाई कोर्ट में अर्जी देता है तो उसे रकम का 15 फीसदी व सुप्रीम कोर्ट में आवेदन पर 20 फीसदी धन जमा करना होगा।

शीर्ष कोर्ट ने यह भी कहा है कि हाई कोर्ट को उन लोगों से भारी पेनाल्टी वसूलनी चाहिए जो लेनदेन के एक मामले में कई मुकदमे दर्ज कराते हैं।

Monday, May 3, 2010

चुस्त जींस में आखिर कैसे हुआ बलात्कारः आस्ट्रेलियाई अदालत

सिडनी की एक अदालत ने एक अजीबोगरीब फैसला सुनाते हुए एक महिला के साथ बलात्कार के आरोपी को यह कहते हुए आरोपमुक्त कर दिया कि चुस्त जींस पहनने वाली महिला के साथ उसकी मर्जी के खिलाफ शारीरिक संबंध नहीं बनाया जा सकता।

अदालत ने एक 24 वर्षीय महिला के साथ बलात्कार के आरोपी निकोलस एग्वीनो गोंजालेज को मुक्त करते हुए सरकारी पक्ष के वकील से सवाल किया कि क्या शरीर से चिपकी चिपकी जींस पहनी महिला के साथ बलात्कार किया जा सकता है? क्या ऐसा नहीं है कि महिला की जींस तभी उतारी जा सकती है, जब इस तरह की घटना में उसकी मर्जी शामिल हो?

इस मामले की सुनवाई में शामिल छह पुरुषों और छह महिला न्यायाधीशों की खंडपीठ को बताया गया था कि गोंजालेज ने महिला के साथ बलात्कार करने से पहले चुस्त जींस और उसके अंत:वस्त्रों को उतारा था।

समाचार पत्र 'सिडनी मार्निग हेराल्ड' के मुताबिक नौ सेना में खानसामे का काम करने वाले गोंजालेज ने कहा था कि उसने महिला की मर्जी से उसके साथ शारीरिक संबंध बनाया था।

खंडपीठ ने पूरी बहस सुनने के बाद कहा, ''हमें संदेह है कि बिना किसी सामंजस्य के किसी महिला के शरीर से उसकी बिल्कुल कसी हुई जींत उतारी जा सकती है।''

साथ ही खंडपीठ ने इस मामले में ज्यादा से ज्यादा जानकारी के लिए संबंधित अधिकारियों को एक खत भी लिखा। उस खत में लिखा गया कि यह पता लगाने का प्रयास किया जाए कि 'निकोलस ने वाकई किस तरह से महिला की जींस को उसके शरीर से अलग किया था।'

महिला ने अपने बयान में कहा था कि गोंजालेज ने उसके साथ जबरदस्ती की थी। उससे पहले उसने उसके साथ शराब पी थी। शराब पीने के बाद दोनों अपने-अपने कमरों में चले गए थे लेकिन गोजालेज ने उसके कमरे में आकर अचानक उस पर हमला कर दिया था।

दीवानी अदालतों को बताई 'हद'

ऋण वसूली के लिए बैंकों द्वारा सिक्योरिटाइजेशन एक्ट के अन्तर्गत ऋणी की सम्पत्ति कब्जे में लेने की कार्यवाही के मामले में अधीनस्थ दीवानी न्यायालय को मुकदमे की सुनने का अधिकार नहीं है। ऎसे प्रकरण केवल ऋण वसूली अधिकरण ही सुन सकता है।
उच्च न्यायालय ने इस महत्वपूर्ण व्यवस्था के साथ जोधपुर के सिविल यायाधीश (क.खं.) संख्या-2 की ओर से पारित एक आदेश के खिलाफ दाखिल की गई निगरानी याचिका मंजूर कर ली। याचिकाकर्ता क्वालिटी कंडयूट प्राइवेट लिमिटेड की ओर से अधिवक्ता विनय श्रीवास्तव ने निगरानी पेश कर बताया कि याचिकाकर्ता कम्पनी ने सेण्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया से ऋण लिया था, लेकिन इसका चुकारा नहीं कर पाने से बैंक ने सिक्योरिटाइजेशन एक्ट के अन्तर्गत उसकी सम्पत्ति कब्जे में लेने कार्यवाही शुरू कर दी।
बैंक ने ऋणी कम्पनी व उसकी सम्पत्ति के कब्जाधारी-किराएदारों को नोटिस जारी कर शांतिपूर्वक कब्जा सौंपने का आग्रह किया। इसके विरूद्ध किराएदारों ने उन्हें बलपूर्वक बेदखल नहीं करने व कब्जे की सुरक्षा के लिए दीवानी वाद दायर कर दिया।
इस पर ऋणी कम्पनी ने किराएदारों के दावे को विधिक रूप से अनुचित बताते हुए इसे खारिज करने की अर्जी पेश की, लेकिन निचली अदालत ने यह अर्जी नामंजूर कर किराएदारों के दावे निषेधाज्ञा आदेश की सुनवाई के लिए नियत कर दिए। कम्पनी की ओर से निगरानी याचिका में भी किराएदारों के दावे चलने योग्य नहीं होने की बात दोहराई गई।
इस पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश गोविन्द माथुर ने सिक्योरिटाइजेशन एक्ट के तहत की जाने वाली कार्यवाही के लिए केवल ऋण वसूली अधिकरण का ही श्रवणाधिकार माना तथा ऋणी कम्पनी की निगरानी याचिका मंजूर करते हुए किराएदारों के दावे खारिज कर दिए। न्यायालय ने कब्जाधारी किराएदारों को अधिकरण में जाने की छूट दी है।

नोटेरी पब्लिक का नियमित निरीक्षण करने के आदेश

राजस्थान हाईकोर्ट की खंडपीठ जयपुर ने नोटेरी पब्लिक पर लगाम कसने के लिए जिला न्यायाधीशों को नियमित जांच एवं रिकार्ड दुरस्त करने के आदेश दिए हैं।

मुख्य न्यायाधीश जगदीश चन्द्र भल्ला एवं न्यायाधीश मनीष भंडारी की खंडपीठ ने यह आदेश शुक्रवार को जागो जनता सोसायटी की जनहित याचिका पर दिए हैं। खंडपीठ ने माना कि नोटेरी पब्लिक अनियमितताएं करते हैं, रिकार्ड दुरस्त नहीं करते। इनका नियमित निरीक्षण किया जाना जरूरी है।

गौरतलब है कि याचिकाकर्ता के वकील पूनमचंद भंडारी ने इस जनहित याचिका में नोटेरी पब्लिक की कार्य शैली को चुनौती देते हुए कहा था कि निरीक्षण के अभाव में ये निरंकुश हो गए हैं। कई नोटेरी पब्लिक रिकार्ड का संधारण नहीं करते। भंडारी की दलील थी कि इनका नियमित निरीक्षण किया जाना चाहिए तथा गलती पर लाइसेंस निरस्त करने की कार्यवाही की जानी चाहिए।

सम्मान प्राप्त करना भ्रष्टाचार नहीं- बंबई उच्च न्यायालय

एक दिलचस्प फैसले में बंबई उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि कोई सम्मान प्राप्त करना भ्रष्टाचार नहीं है। सोलापुर के मढ़ा निवासी सुभाष गवसाने ने एक याचिका दायर कर राज्य सहकारी विभाग के कुछ अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत मामला दर्ज करने की मांग की थी।

याचिकाकर्ता की दलील थी कि वर्ष 2008 में इन अधिकारियों ने सहकारी समिति द्वारा प्रदत्त सम्मान प्राप्त किए जबकि एक अधिकारी के खिलाफ महाराष्ट्र सहकारी समिति अधिनियम के तहत आधिकारिक जांच लंबित है। याचिकाकर्ता ने पहले मामला दर्ज करने के लिए स्थानीय पुलिस से संपर्क किया जिसने इंकार कर दिया। तब उसने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की।

बहरहाल, न्यायमूर्ति डी बी भोसले और आर वी मोरे की खंडपीठ ने पिछले सप्ताह एक आदेश देते हुए याचिकाकर्ता की दलील खारिज कर दी। उच्च न्यायालय ने कहा कि सम्मान सचमुच दिया गया, या नहीं, इस बारे में विवाद है। अदालत ने कहा कि अगर यह मान भी लिया जाए कि अधिकारियों ने सम्मान स्वीकार किए तो हमारी राय में, इसमें भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होते।

अदालत के अनुसार, याचिकाकर्ता ने इन अधिकारियों के खिलाफ पक्षपात संबंधी कोई आरोप भी नहीं लगाए हैं। याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि अधिकारियों के आचरण के चलते उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई हो सकती है।

जानकारी बढ़ाएं न्यायाधीश, वकील; अनैतिक आचरण पर टिप्पणियां करते वक्त अपनी गिरेबां में भी झाकें : न्यायमूर्ति कपाड़िया

 देश के प्रधान न्यायाधीश बनने जा रहे न्यायमूर्ति एस.एच.कपाड़िया ने रविवार को कहा कि मौजूदा वैश्विक माहौल में बने रहने और मंदी की मार झेल चुकी अर्थव्यवस्था में स्थायित्व के लिए न्यायाधीशों और वकीलों के लिए वाणिज्यिक कानूनों को जानना अनिवार्य है।

कानूनी शिक्षा के क्षेत्र में दूसरी पीढ़ी के सुधारों पर दो दिवसीय सम्मेलन के समापन भाषण में कपाड़िया ने कहा, ''मैं कड़ाई से कह रहा हूं कि ऐसी धारणा बन गई है कि भारतीय न्यायाधीशों और वकीलों के पास व्यापार और व्यापारिक कानूनों की कोई जानकारी नहीं है।''

उन्होंने कहा कि मंदी की मार झेल चुकी अर्थव्यवस्था के स्थायित्व के लिए आर्थिक और लेखाकर्म से जुड़े कानूनों के बारे में जानना पूर्व अपेक्षित है। कपाड़िया ने अपनी जानकारी के बारे में कहा, ''एक एकांतवासी के रूप में रहता हूं और एक घोड़े की तरह काम करता हूं।'' अपने संबोधन में नामित प्रधान न्यायाधीश ने न्यायिक सक्रियता, कानूनी सुधार में वरिष्ठ वकीलों की भूमिका और कानूनी शिक्षा की प्रकृति के बारे चर्चा की।

उन्होंने कहा कि जानकारी की कमी के कारण कुछ कानूनी कामकाज जैसे एक समझौते को तैयार करना, भी विदेश कानूनी कंपनियों के माध्यम से कराए जा रहे हैं।

इस संदर्भ में न्यायमूर्ति कपाड़िया ने कहा कि उत्पादन बंटवारा समझौते की व्याख्या एक कठिन क्षेत्र है और ''इस क्षेत्र में हम स्तरीय नहीं हैं।'' न्यायिक सक्रियता को पूरी तरह से खारिज करते हुए न्यायमूर्ति कपाड़िया ने कहा कि न्यायिक सक्रियता और न्यायिक निरोध अदालत के कामकाज की आपस में जुड़ी दो प्रमुख पहलुएं हैं।

उन्होंने कहा, ''यदि न्यायिक सक्रियता एक बिंदु से आगे बढ़ती है तो तब यह न्यायिक निरोध के सिध्दांत के खिलाफ होगा।'' न्यायमूर्ति कपाड़िया ने न्यायिक सुधार व कानूनी शिक्षा से जुड़े सुधार के लिए विचार-विमर्श हो रही देरी के लिए वरिष्ठ वकीलों की आलोचना की।

उन्होंने कहा, ''मैं नहीं समझता कि वरिष्ठ वकीलों के बीच क्या दिक्कत है। क्या वे आधे घंटे का समय नहीं निकाल सकते, क्या वे इतना व्यस्त हैं।''

सरोश होमी कपाड़िया ने न्यायपालिका को अपनी हद में रहने की नसीहत दी है। साथ ही, जजों को सलाह दी है कि वे नेताओं के अनैतिक आचरण पर टिप्पणियां करते वक्त अपनी गिरेबां में भी झाकें और नैतिकता का उपदेश देने से पहले खुद उस पर अमल करना सीखें। कपाड़िया ने न्यायपालिका को अत्यधिक सक्रियता के प्रति भी आगाह किया है।

रविवार को यहां एक सेमिनार में कपाड़िया ने कहा, 'जब हम नैतिकता की बात करते हैं तो जज आम तौर पर नेताओं, प्राध्यापकों और छात्रों आदि की नैतिकता की बात करते हैं। पर मैं कहूंगा कि जजों को न केवल वैधानिक नैतिकता, बल्कि वैचारिक नैतिकता का भी खयाल रखना चाहिए।' जस्टिस कपाड़िया ने यह टिप्पणी ऐसे समय की है, जब न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के कई मामले चर्चा में हैं। कलकत्ता हाई कोर्ट के जज सौमित्र सेन और कर्नाटक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पी.डी. दिनकरन के खिलाफ संसद में महाभियोग की प्रक्रिया जारी है।

बतौर मुख्य न्यायाधीश अपनी नियुक्ति की घोषणा के बाद पहली बार किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में बोलते हुए कपाड़िया ने एक ब्रिटिश जज की किताब से कुछ उद्धरण भी दिए। उन्होंने कहा कि एक सीमा के बाद न्यायिक सक्रियता को कानून का राज कायम करने के खिलाफ माना जाता है।