पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Monday, August 30, 2010

गलती चाहे यात्री की हो, रेलवे को भरना होगा हर्जाना

सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि यदि कोई रेल यात्री अपनी गलती या लापरवाही से भी ट्रेन से गिरकर मरता है तो रेलवे का यह दायित्व है कि वह उसके परिजनों को मुआवजा दे।

न्यायमूर्ति आफताब आलम और आरएम लोढ़ा ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के इस आदेश को दरकिनार कर दिया कि रेलवे उस स्थिति में मुआवजा देने को बाध्य नहीं है यदि कोई यात्री अपनी गलती से रेल से गिरकर मर जाए।

पीठ ने कहा कि हमारा विचार है कि उच्च न्यायालय का यह मानना त्रुटिपूर्ण है कि अपनी गलती से रेल से गिरकर जान गंवाने वाले यात्रियों के परिजनों को कानून की धारा 124 ए के तहत किसी तरह का मुआवजा हासिल करने का हक नहीं है।

पीठ ने कहा कि पहले रेलवे की बात करें तो उसका यह कहना पूरी तरह अनुमान पर आधारित है कि एम हफीज रेल के खुले दरवाजे के सामने लापरवाही से खड़े थे। इस बात को स्वीकार किया जा चुका है कि जिस समय वह ट्रेन से गिरे उस घटना का कोई चश्मदीद गवाह नहीं है इसलिए रेलवे की बात को साबित करने के लिए कोई सुबूत नहीं है।

न्यायमूर्ति आलम द्वारा लिखे गए आदेश में कहा गया कि अगर यह मान भी लें कि मरहूम अपनी लापरवाही से ट्रेन से गिरा, तब भी उसके परिजनों को कानून की धारा 124 ए के तहत मुआवजा मिलने पर कोई हरफ नहीं आता। न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ हफीज की पत्नी जमीला और उसके आश्रितों की तरफ से दाखिल की गई अपील को सही ठहराते हुए यह फैसला सुनाया।

रेलवे पंचाट ने हफीज के परिवार को दो लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया था, लेकिन उच्च न्यायालय ने यह कहकर रेलवे को मुआवजे की जवाबदेही से बचा लिया था कि हफीज की मौत उसकी अपनी लापरवाही से ट्रेन से गिरने के कारण हुई।

Sunday, August 29, 2010

दोबारा नियुक्ति का अर्थ कर्मचारी पर लगा कदाचार का आरोप प्रमाणित नहीं हुआ-गुजरात उच्च न्यायालय

गुजरात उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि किसी सरकारी कर्मचारी की पुनर्नियुक्ति बिना शर्त होनी चाहिए तथा 'सभी उद्देश्यों के लिए' सेवा जारी माना जाना चाहिए। साथ ही इसका प्रभाव उसकी वरिष्ठता एवं पेंशन पर नहीं पड़ना चाहिए।

न्यायालय की खंडपीठ ने व्यवस्था दी कि किसी कर्मचारी की दोबारा नियुक्ति का अर्थ है कि उस पर लगा कदाचार का आरोप प्रमाणित नहीं हुआ तथा कर्मचारी की पुनर्नियुक्ति सामान्य तौर पर की गई।

मामले के अनुसार सूरत नगर निगम का कर्मचारी योगिन कुमार शुक्ला को विभागीय कार्यवाही के बाद 21 दिसंबर, 2002 को आदेश जारी कर सेवा से हटा दिया गया था।

शुक्ला ने स्थायी समिति में मामले को चुनौती दी, जिसने फैसला दिया कि उसकी पुनर्नियुक्ति बकाया वेतन के बिना की जानी चाहिए। लेकिन पेंशन एवं वरिष्ठता के उद्देश्य से उसकी सेवा जारी मानी जानी चाहिए। 

इस फैसले से असंतुष्ट शुक्ला ने राज्य के उच्च न्यायालय की शरण ली। एकल न्यायाधीश की पीठ ने मामला विलंब से आने के कारण उसकी याचिका खारिज कर दी थी।

उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के आदेश पर हालांकि कहा कि संविधान की धारा 226 के तहत याचिका तीन वर्षों के भीतर दायर की गई है, इसलिए इसे विलंब से आया मामला नहीं कहा जा सकता।

न्यायाधीश ए.एल. दवे एवं न्यायाधीश एस.आर. बह्मभट्ट की खंडपीठ ने कहा, ''एक बार जब कर्मचारी की दोबारा नियुक्ति का निर्णय ले लिया गया तो इसका अर्थ है कि उस पर लगा कदाचार का आरोप प्रमाणित नहीं हुआ तथा कर्मचारी की पुनर्नियुक्ति सामान्य तौर पर की गई।''

जोधपुर में जुटेंगे वकीलों के नेता

राजस्व न्यायालयों को प्रशासनिक कार्यो से मुक्त करवाने तथा इनमें पीठासीन अधिकारी राजस्थान न्यायिक सेवा से नियुक्त करने के मुद्दे को लेकर राज्य की विभिन्न बार एसोसिएशन के पदाधिकारी रविवार को जोधपुर में विचार विमर्श करेंगे। राजस्थान उच्च न्यायालय परिसर स्थित एसोसिएशन भवन में सुबह 11 बजे होने वाली बैठक में राज्य के विभिन्न जिलों से अधिवक्ता संगठनों के पदाधिकारी भाग लेंगे।

राजस्थान हाईकोर्ट एडवोकेट एसोसिएशन की मेजबानी में हो रही बैठक में इस मुद्दे पर विचार विमर्श के बाद प्रस्ताव पारित कर राज्य सरकार को भेजा जाएगा। एसोसिएशन के महासचिव करणसिंह राजपुरोहित ने बताया कि बैठक में हुए फैसले को क्रियान्वित करवाने की रूपरेखा भी तैयार की जाएगी।

सिख दंगों की जाँच दिखावटी-सीबीआई

सीबीआई ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि दिल्ली पुलिस के दंगा रोधी विशेष प्रकोष्ठ ने 1984 के सिख विरोधी दंगा मामलों में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद सज्जन कुमार को वस्तुत: बचाने की खातिर दिखावटी जाँच और अभियोग चलाया। कुमार इस मामले में प्रमुख आरोपी हैं।

शीर्ष अदालत के समक्ष दायर हलफनामे में एजेंसी ने न्यायालय द्वारा 13 अगस्त को लगाई गई रोक को हटाने को कहा और दलील दी कि इसने कांग्रेस नेता के खिलाफ अभियोजन को गंभीर रूप से पक्षपातपूर्ण बनाया है।

न्यायमूर्ति पी. सदाशिवम और न्यायमूर्ति बीएस चौहान की पीठ ने हलफनामे को ऑन रिकॉर्ड लेते हुए एजेंसी की अर्जी पर अंतिम सुनवाई की तारीख सात सितंबर को निर्धारित की। इस याचिका में सीबीआई ने दिल्ली छावनी थाने के तहत हुए दंगों के मामले में कुमार के खिलाफ अभियोग चलाने की माँग की है। इस दंगे में 60 लोग मारे गए थे।

दंगा पीड़ितों में से एक के वकील दुष्यंत दवे ने अदालत से इस आधार पर स्थगनादेश को हटाने की माँग की कि इससे हजारों लोगों की भावनाएँ जुड़ी हुई हैं। इस पर पीठ ने कहा कि मिस्टर दवे कोई भी असंवेदनशील नहीं है।

Thursday, August 26, 2010

प्रोन्नति परीक्षा के दौरान नकल करते हुए पकड़े गये आंध्र प्रदेश के 5 न्यायाधीश निलंबित

आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों को न्यायपालिका की तौहीनी करने के आरोप में बुधवार को निलंबित कर दिया गया। पांचों न्यायाधीशों को वारंगल जिले के आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज में एलएलएम की परीक्षा के दौरान नकल करते हुए मंगलवार को रंगे हाथों पकड़ लिया गया। उच्च न्यायालय ने न्यायाधीशों की इस हरकत को गंभीरता से लिया।

ककाटिया विश्वविद्यालय के दूरवर्ती शिक्षा केंद्र द्वारा आयोजित की गई परीक्षा के दौरान निरीक्षकों के एक दस्ते ने न्यायाधीशों को पकड़ लिया। ये न्यायाधीश प्रोन्नति के लिए परीक्षा दे रहे थे।

उच्च न्यायालय ने ककाटिया विश्वविद्यालय को भी आदेश दिया है कि वह न्यायाधीशों के खिलाफ कार्रवाई करे और घटना पर एक विस्तृत रिपोर्ट अदालत को सौंपे।

निलंबित किए गए न्यायाधीशों में रंगा रेड्डी के वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश के.अजीत सिम्हाराव, अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (द्वितीय) विजयानंद, बापातला के वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश श्रीनिवास चारी, अनंतपुर के वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश एम.किश्तप्पा और वारंगल के कनिष्ठ सिविल न्यायाधीश हनुमंत राव शामिल हैं।

अदालत ने राज्य सरकार को भी निर्देश दिया कि वह सभी न्यायाधीशों के खिलाफ कार्रवाई करे, क्योंकि इन्होंने कानून के पेशे को बदनाम किया है।

बिना सबूत पति को नहीं ठहराएं नपुंसक -गुजरात उच्च न्यायालय

गुजरात उच्च न्यायालय ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि नपुंसकता के आधार तलाक लेने के लिए यह आवश्यक है कि इसे सिद्घ करने के लिए खास मेडिकल सबूत हों। न्यायाधीश जयंत पटेल और न्यायाधीश अभिलाष् कुमारी की खण्डपीठ ने उन आधारों को खारिज कर दिया जिनके आधार पर पारिवारिक अदालत ने फैसला दिया था।

भूकंप से प्रभावित पति और पत्नी से जुड़े एक मामले में पारिवारिक अदालत ने नपुंसकता और क्रूरता के आधार पर तालाक मंजूर किया था। न्यायालय ने इस फैसले को अस्वीकार कर दिया, लेकिन उसने त्याग देने और क्रूरता के आधार पर इसी अदालत के तलाक के आदेश को सही ठहराया।

राजस्थान में सिर्फ 361 बांग्लादेशी?

 राजस्थान में आखिर कितने अवैध बांग्लादेशी हैं? आपराधिक घटनाओं व राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में जब-तब अवैध बांग्लादेशियों का जिक्र होता है और लम्बे समय से इस समस्या पर चिन्ता व चर्चा होती रही है लेकिन प्रदेश में रह रहे अवैध बांग्लादेशियों की संख्या सुनेंगे तो आप चकरा जाएंगे। जी हां, विधानसभा सवाल पर सरकार का दिया जवाब सही मानें तो प्रदेश में मात्र 361 बांग्लादेशी ही अवैध रूप से रह रहे हैं। यह बात और है कि शहर की चौखटियों या कुछ कच्ची बस्तियों में इतने बांग्लादेशी आसानी से मिल जाएंगे।

वहीं पूर्व भाजपा सरकार ने अकेले जयपुर में ही इनकी संख्या पचास हजार बताई थी। भाजपा विधायक ओम बिड़ला के प्रश्न के जवाब में सरकार ने कहा है कि प्रदेश में 361 बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं। इनमें से 125 को चिह्नित किया जा चुका है जबकि 236 बांग्लादेशी अभी संदिग्ध की श्रेणी में ही हैं। जवाब के अनुसार चिह्नित व संदिग्ध 340 बांग्लादेशी राजधानी जयपुर में हैं जबकि अजमेर में 12, उदयपुर में चार, डूंगरपुर, जोधपुर शहर, बीकानेर में एक-एक, श्रीगंगानगर में दो बांग्लादेशी रह रहे हैं।

प्लेसमेंट एजेंसी के माध्यम से नियुक्ति अवैध घोषित

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में सर्व शिक्षा अभियान के तहत संचालित कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय में प्रतिवर्ष प्लेसमेंट एजेंसी द्वारा नियुक्ति प्रक्रिया को अवैध करार देते हुए राज्य सरकार को योजना के संचालन तक प्रार्थीगणों को सेवा में रखने के आदेश जारी किए हैं।

यह आदेश न्यायाधीश डॉ. विनीत कोठारी ने प्रार्थी कुलदीप कौर व 19 अन्य की याचिका पर सुनवाई के तहत दिए हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता आरएस सलूजा ने कहा कि सरकार द्वारा हर साल किसी नई प्लेसमेंट एजेंसी के माध्यम से नियुक्ति करना रॅपसार अधिनियम 1999 के विरुद्ध है। याचिका में यह भी कहा गया कि छह वर्ष से 14 वर्ष तक की बालिकाओं को शिक्षित करना सरकार का संवैधानिक दायित्व है। यह एजेंसी सरकारी नियंत्रण में नहीं है तथा प्रतिभागी अभ्यर्थियों को छोड़ कर नियुक्तियां कर देती है, जिससे शिक्षण कार्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।

लिपिकीय त्रुटि से किसी और को मिली जमानत

लिपिकीय त्रुटि से याचिका में गलत नाम का उल्लेख करने से फरार आरोपी को जमानत मिल गई। जेल में बंद मुख्य आरोपी की पत्नी ने जब विधिक सहायता प्रकोष्ठ के माध्यम से जमानत याचिका दायर की तो यह मामला सामने आया। जस्टिस धीरेंद्र मिश्रा ने मामले में वकील को नोटिस जारी कर जवाब-तलब किया है।

बलात्कार के एक मामले में कोरबा निवासी नरेंद्र गुप्ता आरोपी था। उसने बिलासपुर हाईकोर्ट में वकील शैलेंद्र दुबे के माध्यम से जमानत याचिका दायर की थी। याचिका तैयार करने के दौरान लिपिकीय त्रुटि से नरेंद्र गुप्ता की जगह सह आरोपी सोनू कुमार उर्फ मुन्ना का नाम याचिकाकर्ता के तौर पर दर्ज हो गया।

उसे जेल में बंद बताया गया था, जबकि वह फरार था। कोर्ट ने याचिका में उल्लेखित तथ्यों के आधार पर लगभग चार महीने पहले सोनू की जमानत याचिका स्वीकार कर ली। इसी बीच जेल में बंद आरोपी नरेंद्र गुप्ता की पत्नी अर्चना गुप्ता ने लीगल एड के माध्यम से जमानत याचिका दायर की तो यह मामला सामने आया। इस पर बुधवार को सुनवाई के बाद कोर्ट ने वकील को नोटिस जारी कर जवाब देने को कहा है।

Monday, August 23, 2010

क्रूरता की कुछ घटनाएं भी तलाक का पर्याप्त आधार - दिल्ली हाइकोर्ट

दिल्ली हाइकोर्ट ने 21 साल से अपने पति से अलग रह रही एक महिला को तलाक की अनुमति देते हए कहा  जीवनसाथी द्वारा क्रूरता की कुछ घटनाएं भी तलाक का पर्याप्त आधार हो सकती है.

अदालत ने कहा  तलाक पाने की खातिर मानसिक या शारीरिक क्रूरता को साबित करने के लिए उत्पीड़न की हर घटना का उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है. अदालत ने कहा  कभी-कभार जीवनसाथी द्वारा की गयी क्रूरता को साबित करने के लिए दो या तीन घटनाएं पर्याप्त होती हैं. कई बार मानसिक क्रूरता शारीरिक क्रूरता से ज्यादा कठोर होती है.

न्यायमूर्ति अरुणा सुरेश ने कहा  पक्ष के लिए आवश्यक नहीं है कि वह जीवनसाथी के आचरण को क्रूरता की श्रेणी में लाने के लिए हर घटना बतायें.

उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फ़ैसले को पलट दिया जिसमें, महिला की याचिका में अपने पति पर लगाये गये आरोपों को सामान्य प्रकृति का बताते हए तलाक की अनुमति नहीं दी गयी थी.महिला ने अलग रह रहे पति से तलाक की मांग करते हए कहा था कि उसने साथ रहने के दौरान कई बार उसे शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना दी. इस जोड़े ने वर्ष 1974 में शादी रचायी थी.

महिला दिसंबर 1989 तक अपने पति के साथ रह रही थी. यह महिला इस उम्मीद में अपने पति के साथ रही कि शायद उसके व्यवहार में सुधार आ जाएं.

महिलाओं को परदे के लिए मजबूर न करें: बांग्लादेश हाई कोर्ट

बांग्लादेश में हाई कोर्ट ने वहां की सरकार से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि शैक्षिक संस्थानों और कार्यस्थलों पर महिलाओं को चेहरे पर परदा डालने के लिए विवश नहीं किया जाए और न ही उन्हें सांस्कृतिक या खेल गतिविधियों में भाग लेने से रोका जाए।

न्यायमूर्ति एएमएच शम्सुद्दीन चौधरी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अखबारी खबरों को आधार बनाकर महमूद शौफीक और केएचकेएम हफीजुल आलम की ओर से दायर जनिहत याचिका पर सुनवाई के दौरान रविवार को यह अंतिरम आदेश जारी किया।

न्यायालय ने साथ ही पूछा कि शैक्षिक संस्थानों और कार्यस्थलों पर महिलाओं को चेहरे पर परदा डालने के अनिवार्य प्रावधानों तथा ऐसा नहीं करने पर उन्हें सांस्कृतिक या खेल गतिविधियों में भाग लेने से रोकने को क्यों न अवैध करार दिया जाए। न्यायालय ने साथ ही नटोर रानी भवानी राजकीय महिला महाविद्यालय के प्रधानाचार्य को 26 अगस्त तक व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर इस संदर्भ में अपनी स्थिति स्पष्ट करने को कहा है।

बंग्‍ला अखबार 'कालेर कांता' में छपी खबर में कहा गया था कि उक्त प्रधानाचार्य ने कालेज आने वाली सभी छात्राओं के लिए परदा अनिवार्य कर दिया था। इसके बाद दायर याचिका पर न्यायालय ने यह फैसला किया

Sunday, August 22, 2010

न्यायपालिका में कम खर्च के लिए सरकार की आलोचना

उच्चतम न्यायालय के एक न्यायाधीश ने शनिवार को न्याय प्रणाली में कम खर्च की योजना और राष्ट्रमंडल खेलों में करीब 40 हजार करोड़ रुपये के खर्च की आलोचना की।

न्यायमूर्ति एके गांगुली ने एक सेमिनार में कहा कि नौवीं योजना में सरकार ने न्यायिक प्रणाली के लिए सिर्फ 385 करोड़ रुपये आवंटित किए जो खर्च योजना का सिर्फ 0.071 फीसदी था। दसवीं योजना में स्थिति में आंशिक रूप से सुधार आया जब सरकार ने 700 करोड़ या खर्च योजना का 0.078 फीसदी खर्च किया।

इंडियन चैंबर ऑफ कामर्स द्वारा आयोजित सेमिनार को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि 120 करोड़ की आबादी वाले देश के उच्च न्यायालय में 600 न्यायाधीश हैं।

गांगुली ने कहा कि अगर आप समग्र विकास चाहते हैं तो न्यायिक संरचना में अवश्य सुधार किया जाना चाहिए। वंचित तबके को न्यायाधीशों की जरूरत होती है। एक बहुराष्ट्रीय कंपनी अपना केस लड़ सकती है लेकिन अगर किसी व्यक्ति को नौकरी से निकाल दिया गया है, तो उसका क्या परंपरागत अदालत प्रणाली में विलंब एवं काफी खर्च होता है। इसलिए हमें वैकल्पिक विवाद समाधान प्रणाली विकसित करने की जरूरत है।

कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पिंकी सी घोष ने कहा कि देश की आठ हजार अदालतों में दो करोड़ 40 लाख मामले लंबित हैं। न्यायाधीशों की वर्तमान संख्या और वर्तमान लंबित मामलों के समाधान में ही 300 से ज्यादा वर्ष लग जाएंगे।

राजस्थान स्टॉम्स रूल्स, 1955 का नियम 59 (बी) संवैधानिक- सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा दिए गये एक आदेश को पलटते हुए राजस्थान स्टॉम्स रूल्स, 1955 के नियम 59 (बी) को संवैधानिक रूप से वैध ठहराया है और अपने फैसले में कहा है कि जिला स्तरीय समिति द्वारा किसी सम्पति के मूल्यांकन के सम्बंध में निर्धारित की गई दरों के अनुरूप पंजीयन अधिकारी द्वारा की जाने वाली कार्यवाही उचित है।
उच्चतम न्यायालय में न्यायाधिपति श्री मार्केण्डय काटजू और श्री टी.एस ठाकुर की खण्डपीठ ने राजस्थान सरकार द्वारा दायर की गई एक सिविल याचिका पर यह निर्णय दिया। राजस्थान सरकार की ओर से इस मामले की पैरवी अतिरिक्त महाधिवक्ता डॉ. मनीष सिंघवी ने की।
उल्लेखनीय है कि राजस्थान हाई कोर्ट ने 27 फरवरी 2002 को अपने एक फैसले में राजस्थान स्टॉम्स रूल्स, 1955 के नियम 59 (बी) को असंवैधानिक बताते हुए पंजीयन अधिकारी द्वारा जिला स्तरीय समिति की अनुशंसा पर सम्पति का मूल्यांकन करने की कार्यवाही को अनुचित बताया था। राजस्थान उच्च न्यायालय के इस निर्णय के विरूद्घ राजस्थान सरकार द्वारा अपील दायर की गई थी जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के पक्ष में निर्णय सुनाया और कहा कि पंजीयन अधिकारी को जिला स्तरीय समिति की अनुशंसा के अनुरूप निर्धारित दर पर ही कार्यवाही करनी चाहिए।

चीफ जस्टिस एसएच कपाडिय़ा ने राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्यपीठ भवन में ज्यूडिशियल एकादमी की वेबसाइट का लोकार्पण किया

भारत के चीफ जस्टिस एसएच कपाडिय़ा ने रविवार सुबह यहां राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्यपीठ भवन में ज्यूडिशियल एकादमी की वेबसाइट एवं जनरल का लोकार्पण किया। इस अवसर पर राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जगदीश भल्ला सहित न्यायिक अधिकारी मौजूद रहे।

इसके बाद कपाडिय़ा ने कॉन्फ्रेंस हाल में अधीनस्थ अदालतों के न्यायाधीशों से न्यायिक मुद्दों पर गंभीर मंत्रणा की। दोपहर डेढ़ बजे वे सर्किट हाउस चले गए। शाम करीब पांच बजे उनका ओसियां जाने का कार्यक्रम है। उधर, चीफ जस्टिस की जोधपुर यात्रा को देखते हाईकोर्ट परिसर में सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए गए थे। सर्किट हाउस एवं अदालत में परिसर में किसी बाहरी व्यक्ति आने पर पूरी तरह से प्रतिबंध रहा।

न्यायमूर्ति भगवती प्रसाद रविवार को झारखंड के सातवें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ग्रहण करेंगे.

न्यायमूर्ति भगवती प्रसाद रविवार को झारखंड के सातवें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ग्रहण करेंगे. राजभवन के प्रवक्ता ने बताया कि गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति भगवती प्रसाद कल राजभवन में बिरसा मंडप में आयोजित एक समारोह में दिन में बारह बजे अपने पद की शपथ लेंगे. उन्हें झारखंड के राज्यपाल एम ओ एच फारूक पद एंव गोपनीयता की शपथ दिलायेंगे . प्रसाद झारखंड उच्च न्यायालय के सातवें मुख्य न्यायाधीश होंगे. इसके पहले न्यायमूर्ति प्यानसुधा मिश्रा राज्य की मुख्य न्यायाधीश थी जिन्हें पदोन्नत कर तीन माह पूर्व सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त कर दिया गया था.

न्यायमूर्ति मिश्रा की नियुक्ति सर्वोच्च न्यायालय में होने के बाद झारखंड में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश का कार्य एम वाई इकबाल देख रहे थे लेकिन उन्हें भी ग्यारह जून 2010 को मद्रास उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया जिसके बाद से यहां कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में वरिष्ठतम न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुशील हरकौली कार्य कर रहे थे.

न्यायमूर्ति भगवती प्रसाद का जन्म 13 मई 1949 को राजस्थान के हनुमानगढ जिले में हुआ था. उन्होंने कानून की पढाई करने के बाद 1972 में उन्होंने राजस्थान बार कांउसिंल में अपना पंजीकरण कराया और चौबीस वर्ष तक प्रैक्टिस किया. इस दौरान प्रसाद ने जोधपुर में कानून के शिक्षक के रूप में भी कार्य किया और राजस्थान बार काउंसिल के अनेक पदों को भी सुशोभित किया.

प्रसाद को छह अप्रैल 1996 को राजस्थान उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाया गया और फिर सात फरवरी 2008 को उन्हें गुजरात उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया.

हाल में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में वरिष्ठतम पांच न्यायाधीशों के पैनेल ने न्यायमूर्ति प्रसाद को झारखंड का मुख्य न्यायाधीध बनाये जाने की अनुशंसा की जिसका प्रस्ताव विधि एंव न्याय मंत्रालय की ओर से प्राप्त होने पर राजभवन ने इस पर पिछले माह ही अपनी हरी झंडी दिखा दी थी.

न्यायमूर्ति प्रसाद ने राजस्थान एंव गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के तौर पर कानून के सभी क्षेत्रों से जुडे मामलों में अनेक महत्वपूर्ण फैसले सुनाये है.

Friday, August 20, 2010

एडीजे भर्ती में धांधली का आरोप : वकीलों ने हाई कोर्ट में मचाया हंगामा

वकीलों ने एडीजे भर्ती 2010 में धांधली का आरोप लगाते हुए शुक्रवार को राजस्थान हाई कोर्ट परिसर जयपुर में जम कर हंगामा किया और नारेबाजी की। वकीलों का आरोप है कि एडीजे की भर्ती में 36 पदों के लिए केवल 37 अभ्यर्थी ही योग्य पाए गए, जबकि परीक्षा करीब 5000 अभ्यर्थियों ने दी थी। जिन 37 अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के योग्य पाया गया है, उनमें से 25 अभ्यर्थी राज्य के बाहर के हैं।

अधिवक्ता ब्रह्मानंद सांदू ने वकीलों को संबोधित करते हुए कहा कि पूरी संभावना है कि भर्ती में धांधली हुई है और प्रदेश के वकील इस धांधली को बर्दाश्त नहीं करेंगे। वकील समुदाय ने सुप्रीम कोर्ट व विधि मंत्रालय भारत सरकार से गुहार की है कि एडीजे भर्ती की जांच किसी न्यायिक आयोग या सीबीआई से करवाई जाए।

अब दूसरे शहर में भी आवासन मंडल का मकान ले सकेगें- राजस्थान उच्च न्यायालय

आवासन मंडल से प्रदेश में कहीं भी एक मकान लेने के बाद दूसरे शहर में मकान लेने पर लगी रोक हट गई है। साथ ही, सेवानिवृत्त या सेवानिवृत्ति के करीब वाले कर्मचारियों को चार फीसदी मकान देने के 18 साल पुराने आदेश पर भी अमल शुरू कर दिया है।
न्यायाधीश मनीष् भण्डारी ने इस मामले से सम्बन्घित संसदीय कार्य विभाग में संयुक्त विधि परामर्शी के रूप में कार्यरत राजेन्द्र प्रसाद केडिया की याचिका को निस्तारित कर दिया है, आवासन मंडल के केडिया को 2009-10 की चार फीसदी कोटे वाली श्रेणी में शामिल करने के बाद यह कार्यवाही की।

हाईकोर्ट ने 16 मार्च को आवासन मंडल से प्रदेश में कहीं भी एक मकान लेने पर उसे दूसरा मकान आवंटन करने पर रोक लगा दी थी, याचिका निस्तारित होने से यह रोक भी हट गई है। न्यायालय ने कहा कि प्रार्थी को तीन माह में चार फीसदी कोटे के तहत मकान देने की कार्यवाही की जाए। उधर, रोक के बाद आवासन मण्डल ने कब्जे से लेकर आवंटन और नई योजनाओं में आवेदन के लिए शपथ पत्र लेना शुरू कर दिया था।

पहले हिजाब हटाएं, तब बोलें: ऑस्ट्रेलियाई कोर्ट

ऑस्ट्रेलिया की एक अदालत ने ताजा व्यवस्था में एक मुस्लिम महिला गवाह से धोखाधड़ी के एक मामले की निष्पक्ष सुनवाई के लिए हिजाब ओढ़े बगैर अदालत में हाजिर होने को कहा है।

मीडिया की खबरों के मुताबिक न्यायाधीश शॉना डीन ने गुरूवार को कहा कि गवाह को साक्ष्य देते वक्त अपना हिजाब हटाना होगा।

बहरहाल, डीन ने कहा है कि उनके इस निर्णय को कानूनी मिसाल के तौर पर नहीं लिया जा सकता, क्योंकि परिस्थितियों को देखते हुए यह एक व्यवस्था मात्र है।

उन्होंने कहा कि निष्पक्ष सुनवाई के लिए गवाह से हिजाब नहीं पहनने को कहा गया है।

गौरतलब है कि इस्लामी शिक्षण संस्था की 36 वर्षीय इस शिक्षिका को कॉलेज के निदेशक अनवर सैयद के खिलाफ धोखाधड़ी के एक मामले में गवाही देनी है।

अमेठी को जिला बनाने पर अदालती रोक

कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी को जिला बनाने के उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले पर इलाहाबाद उच्चा न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने रोक लगा दी है। न्यायामूर्ति प्रदीपकांत और न्यायामूर्ति आर.आर.अवस्थी की खंडपीठ ने बुधवार को यह फैसला मनोज कुमार रस्तोगी नाम के एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर दिया।
रस्तोगी ने दो अगस्त को याचिका दायर कर अदालत से अमेठी को जिला बनाने पर रोक लगाने की अपील की थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि राज्य सरकार द्वारा जनगणना की प्रक्रिया चलने के दौरान नए जिले का गठन करना नियमों के खिलाफ है। साथ ही अमेठी में जिले के गठन के लिए आधारभूत ढांचा और बुनियादी सुविधाए नहीं हैं। अदालत ने इस पर गत 12 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
याचिकाकर्ता के वकील सैयद अली रेहान ने संवाददाताओं को बताया कि अदालत ने 31 मार्च 2011 को पूरी होने वाली जनगणना की प्रक्रिया से पहले नए जिले के गठन को नियमों के विरूद्ध मानते हुए राज्य सरकार के फैसले पर रोक लगाई। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने गत जुलाई में अमेठी का नाम बदलकर दलित महापुरूष के नाम पर छत्रपति शाहूजी महाराज नगर नामक जिला बनाया था।

गांजा बेचते शिक्षक गिरफ्तार

गांजा बेचने के आरोप में शिक्षक को राजगढ (मध्य प्रदेश) जिले के जीरापुर के प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी रितुराज सिंह चौहान ने आज न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया। 
पुलिस सूत्रों ने अनुसार जिले के लक्ष्मणपुरा के शासकीय प्राथमिक विद्यालय के संविदा शिक्षक श्याम सिंह पवार कल विद्यालय में हस्ताक्षर करने के बाद गायब हो गए। यह शिक्षक छात्रों को पढाने के बजाय जीरापुर स्थित अपने निवास पर गांजा बेच रहे थे। इस की सूचना मिलने पर पुलिस ने गांजा बेचते हुए श्याम सिंह को रंगे हाथों दबोच लिया। आरोपी के पास पुलिस ने 28 ग्राम गांजा बरामद कर उसके खिलाफ मादक पदार्थ अधिनियम के तहत प्रकरण दर्ज कर लिया है। उसके पास से पुलिस ने सात हजार रूपए भी बरामद किये है। वह यह काम सालो से कर रहा था। 
अरोपी शिक्षक को पुलिस ने न्यायालय में पेश किया, जहां उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया है।

प्रत्येक उच्च न्यायालय में होगी विशेष वाणिज्यिक पीठ

देश के सभी उच्च न्यायालयों में विशेष वाणिज्यिक पीठों की स्थापना की जाएगी। कानून मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने आज लोकसभा में बताया कि सरकार इन विशेष पीठों की स्थापना के प्रस्ताव पर विचार कर रही है। उन्होंने एसएच थिरूमावलवन के सवाल के लिखित जवाब में बताया कि उच्च न्यायालय वाणिज्यिक डिवीजन विधेयक 2009 को लोकसभा पारित कर चुकी है। इसे मंजूरी के लिए राज्यसभा के पास भेजा गया था और उच्च सदन ने इसे प्रवर समिति को भेज दिया था। 
मोइली ने बताया कि प्रवर समिति ने भी इस विधेयक के बारे में 29 जुलाई 2010 को राज्यसभा में अपनी रपट पेश कर दी है।

Wednesday, August 18, 2010

दिल्ली की अदालतों में 5,000 वैवाहिक मामले लंबित

दिल्ली की विभिन्न अदालतों में 1995 से 5,000 से भी ज्यादा वैवाहिक मामले लंबित हैं। दिल्ली उच्चा न्यायालय में दायर की गई एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह खुलासा हुआ है। न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायाधीश मनमोहन ने केंद्र व दिल्ली सरकारों को जनहित याचिका पर एक नोटिस जारी कर हिंदू विवाह अधिनियम के तहत दर्ज किए गए इन मामलों को शीघ्र निपटाने के आदेश दिए हैं। याचिका में कहा गया है कि सरकार वैवाहिक जीवन में कलह, तलाक और अन्य संबंधी मामलों के निपटारे के लिए विशेष अदालतें गठित करने में असफल रही है जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न जिला अदालतों में ब़डी संख्या में इस तरह के मामले लंबित हैं। दिल्ली में कुल आठ जिला अदालतें हैं जो कानून के तहत मामलों पर सुनवाई करती हैं और 1995 से इन अदालतों में 4,687 मामले लंबित हैं। याचिकाकर्ता का कहना है कि अकेले दिल्ली उच्चा न्यायालय में ही ऎसे 369 मामले लंबित हैं। याचिकाकर्ता ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत इस मामले में जानकारी इकट्ठी की थी। इस साल मई तक उच्चा न्यायालय में 846 नए मामले दायर हुए हैं, इनमें से 609 में निपटारा कर दिया गया है। उच्चा न्यायालय द्वारा 11 अगस्त को स्वीकृत की गई याचिका में कहा गया था कि इन मामलों की सुनवाई में हो रही देरी की वजह यह है कि अदालतों में अन्य प्रकार के मामलों की संख्या भी बहुत ज्यादा है। याचिका में यह भी कहा गया है कि अदालत आपसी सहमति से तलाक लेने वाले व्यक्तियों को छह महीने का समय देती है, जिस दौरान वे रिश्तेदारों व मित्रों से अपने इस फैसले पर विचार-विमर्श कर अपनी राय बदल भी सकते हैं लेकिन इस समय के खत्म हो जाने के बाद भी अंतिम निर्णय के लिए अदालत उन्हें लंबी तारीखें देती है। 

अस्थाई कर्मचारी को भी पेंशन पाने का अधिकार -राजस्थान हाईकोर्ट

 राजस्थान हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि अस्थाई कर्मचारी भी पेंशन लाभ पाने के हकदार हैं। न्यायाधीश अजय रस्तोगी ने यह आदेश देते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह तीन माह में याची को पेंशन लाभ प्रदान करे। 
याचिका में आर एस आर 1995 के नियम आर.10 के सब नियम (2) की वैधानिकता को चुनौती दी गई थी। इसमें 33 वर्ष 6 माह की सेवा पूरी होने पर पेंशन का प्रावधान था। याची का कहना था राज्य सरकार नियम की आड़ में अस्थाई कर्मचारियों को पेंशन लाभ से वंचित रख रही है, जबकि सरकारी और अर्द्धसरकारी संस्थान उनके वेतन से भविष्यनिधि की राशि काटते हैं। मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने विवादास्पद नियम को संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 16 के विरूद्ध मानते हुए खारिज कर दिया।

Tuesday, August 17, 2010

उच्चतम न्यायालय में 55 हजार मामले लंबित हैं!

सरकार ने आज कहा कि उच्चतम न्यायालय में लंबित मामलों की संख्या 55 हजार 791 है। विधि एवं न्यायमंत्री डॉ. एम. वीरप्पा मोइली ने राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय में वर्ष 2005 के अंत तक लंबित मामलों की संख्या 34 हजार 481 थी जो वर्ष 2009 में बढ़कर 55 हजार 791 हो गई।

उन्होंने कहा कि मामलों के जल्द निपटान के लिए न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि की गई है और तकनीकी उन्नयन किया गया है। एक अन्य प्रश्न के उत्तर में श्री मोइली ने कहा कि सरकार उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु 62 से बढ़ाकर 65 वर्ष करने की दिशा में कदम उठा रही है।

लम्बे समय का "लिव इन" चलता-फिरता सम्बंध नहीं

उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि लम्बे समय तक "लिव इन रिलेशन" में जीवन व्यतीत करने को चलता-फिरता सम्बंध करार नहीं दिया जा सकता।

न्यायाधीश पी. सदाशिवम एवं न्यायाधीश बीएस चौहान की खण्डपीठ ने सम्पत्ति विवाद से जुड़े एक मुकदमे का निपटारा करते हुए यह व्यवस्था दी। यह मामला चंद्रदेव सिंह नामक व्यक्ति की परिसम्पत्ति से जुड़ा था। चंद्रदेव की पहली पत्नी मर गई थी और उसने शकुंतला नामक दूसरी महिला के साथ अंतिम सांस तक जीवन बसर किया।

पहली पत्नी से उत्पन्न पुत्र मदन मोहन सिंह ने शकुंतला से जन्मे बच्चों को सम्पत्ति में यह कहते हुए हिस्सा देने से इनकार किया था कि उसकी कथित सौतेली मां ने औपचारिक रूप से उसके पिता से शादी नहीं की थी। हालांकि सभी अधीनस्थ अदालतों ने शकुंतला से उत्पन्न संतानों के पक्ष में फैसला सुनाया था, लेकिन मदन मोहन एवं अन्य ने इस सिलसिले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी।

फर्नांडीस के भाई की अर्जी पर आदेश देने से इंकार

दिल्ली उच्च न्यायालय ने अल्जाइमर रोग से पीड़ित पूर्व केंद्रीय मंत्री जार्ज फर्नांडीस के भाइयों की एक अर्जी पर कोई आदेश देने से आज इंकार कर दिया, ताकि एम्स के एक विशेषज्ञ की निगरानी में उनका इलाज हो सके।

न्यायमूर्ति वीके शाली ने कहा कि अदालत सभी चीजों की निगरानी नहीं कर सकती। यह ऐसी बीमारी है कि हर पल, हर घंटे और हर दिन रोगी की हालत बिगड़ती जा रही है। च्चिर्ड और माइकल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता केएन बालगोपाल ने दलील दी कि उनके मुवक्किल [पूर्व केंद्रीय मंत्री के भाई] उन्हें [फर्नांडीस को] मुहैया कराई गई चिकित्सा के बारे में फिर से आश्वस्त होना चाहते हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि इस साल जनवरी तक जार्ज फर्नांडीस एम्स में इलाज करा रहे थे और वह चलने फिरने में सक्षम थे, लेकिन फिलहाल वह एक निजी अस्पताल में इलाज करा रहे हैं।

न्यायमूर्ति शाली ने कहा कि ऐसे में जब दूसरा पक्ष आपकी अर्जी का विरोध कर रहा है, मैं किसी अन्य चिकित्सक के तहत उनके इलाज का निर्देश नहीं दे सकता। फर्नांडीस के भाइयों की अर्जी का विरोध करते हुए उनकी पत्नी लैला कबीर के वकील अमन लेखी ने दलील दी कि यह समाजवादी नेता फिलहाल अपनी पत्नी के साथ दक्षिण दिल्ली स्थित आवास में रह रहे हैं और साकेत स्थित मैक्स अस्पताल से चिकित्सा सुविधा ले रहे हैं।

फरार पप्पू यादव गुड़गांव में पकड़ा गया

तीन माह से फरार चल रहे राजद के पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव को सोमवार को सीबीआई ने गुड़गाँव के एक निजी अस्पताल से गिरफ्तार कर गुड़गाँव अदालत में पेश किया गया, जहाँ से उसे पटना की अदालत में पेश करने के लिए ट्रांजिट रिमांड मिल गई।

एक विधायक की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे यादव को पटना उच्च न्यायालय ने 18 फरवरी 2009 को जमानत पर रिहा किया गया था, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने इस पर नाराजगी जताते हुए उसे आत्मसमर्पण करने के आदेश दिए थे।

सीबीआई के एक प्रवक्ता ने बताया कि यादव को कल रात गिरफ्तार किया गया और इसमें गुड़गाँव पुलिस ने सक्रिय तौर पर सहयोग किया। चार बार लोकसभा सांसद रहे यादव को माकपा सांसद अजीत सरकार की हत्या के 12 साल पुराने मामले में दो अन्य आरोपियों राजन तिवारी और अनिल कुमार यादव के साथ उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। (भाषा)

जिला न्यायाधीश के पद पर सीधी भर्ती का परिणाम घोषित

राजस्थान उच्च न्यायालय ने जिला न्यायाधीश के पद के लिए आयोजित सीधी भर्ती के लिखित परीक्षा का परिणाम सोमवार को घोषित कर दिया है। उत्तीण अभ्यर्थी साक्षात्कार के लिए चयनित किए गए हैं।

53, 281, 363, 467, 559, 626, 722, 771, 818, 1242, 1897,1928, 2114, 2388, 2567, 2702, 2750, 2760, 2868, 2938, 3218, 3224, 3250, 3430, 3711, 3753, 3772, 3902, 4045, 4058, 4169, 4194, 4233, 4248, 4295, 4346

इसे अलावा उच्च न्यायालय में दायर याचिका के चलते रोल नं. 5001 से 5102 के अभ्यर्थियों का परिणाम उच्चन्यायालय में सीलबंद लिफाफे में पेश किया जाएगा। इसी तरह से जिला न्यायाधीश पद पर पदोन्नति के लिए आयोजित परीक्षा के लिखित के परिणाम में 7002, 7006, 7007, 7017, 7023, 7025, 7029, 7037, 7075, 7077, 7092, 7118, 7126, 7136 अभ्यर्थियों को उत्तीर्ण घोषित कर साक्षात्कार के लिए चयन किया है।

Sunday, August 15, 2010

दहेज कानून में संशोधन पर विचार करे: सुप्रीम कोर्ट

उच्चतम न्यायालय ने विधि आयोग और केंद्र को दहेज विरोधी कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए इसमें उपयुक्त संशोधन करने को कहा है। न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन की खंडपीठ ने घरेलू झगडे को लेकर दहेज संबंधी एक झूठे मामले का कल निपटारा करते हुए विधि आयोग और सरकार को संबंधित कानून के दुरुपयोग पर रोक लगाने के लिए आवश्यक संशोधन करने की सलाह दी है। 
खंडपीठ ने उच्चतम न्यायालय रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह भारतीय दंड संहिता .आईपीसी. की धारा 498.ए. के तहत दर्ज एक झूठे मुकदमे से संबंधित उसके आदेश की प्रति विधि मंत्रालय एवं विधि आयोग को भेज दे. ताकि इस दिशा में वे ठोस कदम उठा सकें। न्यायालय ने कहा कि हाल के वर्षों में ऐसी घटनाओं में व्यापक बढोतरी दर्ज की गई है। दहेज संबंधी ऐसे मुकदमों में बचाव पक्ष को भले ही बरी कर दिया जाए. लेकिन उन्हें जिन मानसिक परेशानियों से गुजरना होता है. उसकी कल्पना नहीं की जा सकती।

दिल्ली हाईकोर्ट ने ठोका तिवारी पर 75 हजार रूपये का जुर्माना

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नारायण दत्त तिवारी की उस याचिका को शुक्रवार को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ दायर एक मामले में बदलाव करने की मांग की थी। ज्ञात हो कि रोहित शेखर नामक एक व्यक्ति ने तिवारी को अपना असली पिता बताया है और अपने अधिकार के लिए उसने अदालत में याचिका दायर की है। न्यायमूर्ति एस.रविंद्र भट्ट ने तिवारी की याचिका को खारिज करने के साथ ही उन पर 75,000 रूपये का जुर्माना भी कर दिया। तिवारी ने अपनी याचिका के जरिए रोहित शेखर द्वारा दायर नई याचिका में अतिरिक्त तथ्यों को शामिल किए जाने पर आपत्ति खडी की थी। उन्होंने कहा था कि रोहित को इस मामले में संशोधन के लिए अदालत से अनुमति लेनी चाहिए थी। रोहित ने मामले में नए तथ्यों को जो़डते हुए कहा है कि उसने तिवारी से 2005 में एक हवाईअड्डे पर मिलने की कोशिश की थी।
सर्वोच्चा न्यायालय ने तिवारी द्वारा उच्चा न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर याचिका को 10 मई को खारिज कर दिया था। उच्चा न्यायालय ने तिवारी के खिलाफ मामले को जारी रखने का आदेश दिया था। रोहित का दावा है कि वह मां उज्वला शर्मा और तिवारी की संतान है। लेकिन तिवारी ने इससे इंकार किया है। इसके पहले तिवारी ने रोहित की याचिका पर डीएनए परीक्षण कराने से इंकार कर दिया था, साथ ही उन्होंने इस बात से भी इंकार कर दिया था कि उसकी मां से उनका कोई शारीरिक रिश्ता भी था।

राजस्थान में नौ न्यायिक अधिकारियों के तबादले

राजस्थान उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल ने एक आदेश जारी कर नौ न्यायिक अधिकारियों के तबादले किए हैं। इनमें मादक प्रदार्थ प्रकरणों की सुनवाई के लिए गठित चार विशिष्ट अदालतों के न्यायिक अधिकारी भी शामिल है।

आदेशानुसार बंशीमोहन चायल को विशिष्ट न्यायाधीश एनडीपीएस केसेज प्रतापगढ़, रामेश्वर व्यास को विशिष्ट न्यायाधीश एनडीपीएस केसेज जयपुर, गोविंद प्रसाद गोयल को विशिष्ट न्यायाधीश एनडीपीएस कोर्ट झालावाड़, द्वारकाप्रसाद शर्मा को विशिष्ट न्यायाधीश एनडीपीएस केसेज जोधपुर, इदुद्दीन को एमएसीटी उदयपुर, राजेन्द्रकुमार पारीक को एमएसीटी बूंदी, भगवान शारदा को एमएसीटी पाली, भगवानसहाय खण्डेलवाल को स्पेशल कोर्ट ऑफ ट्रायल ऑफ केसेज अंडर ईसीएक्ट जयपुर और कमलकुमार बागरी को डेजिग्रेटेज कोर्ट अजमेर लगाया गया है।

घर में रहने पर ही घरेलू हिंसा की गुंजाइश

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई महिला अपने साझा घर को छोड़कर कहीं चली जाती है और अपना घर अलग बसा लेती है, तो पुराने घर से उसका डोमेस्टिक रिलेशन खत्म हो जाता है। ऐसे में वह महिला डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट के तहत उस घर में दोबारा रहने का अधिकार नहीं मांग सकती। अमेरिका में रहने वाली एक लड़की की याचिका खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी की।

जस्टिस शिवनारायण ढींगरा ने कहा कि कोई भी आदमी अगर अपने संयुक्त घर को कुछ समय के लिए छोड़कर जाता है और फिर लौट आता है, तब तो उसे डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट के तहत उस घर में रहने का अधिकार है। लेकिन मौजूदा मामले में लड़की ने अपने संयुक्त घर को छोड़ दिया था और अमेरिका में जाकर रहने लगी और वहीं पर बस गई। ऐसे में दिल्ली स्थित उसके पिता के घर में रहने वाले उसके भाई और अन्य परिवार वालों से उसका डोमेस्टिक रिलेशन नहीं रह गया। इस तरह वह डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट का सहारा लेकर उस घर में दोबारा रहने का हक नहीं मांग सकती।

अदालत ने कहा कि लड़की कविता (बदला हुआ नाम) अमेरिका में रहती है, पढ़ी लिखी है और ऐसे में उसकी अर्जी स्वीकार करने लायक नहीं है। अगर उसे अपने पैरंट्स के घर पर दावा पेश करना है, तो इसके लिए वह सिविल सूट फाइल कर सकती है, जैसा कि वह कर भी चुकी है। लेकिन यह मामला डोमेस्टिक वॉयलेंस का नहीं बनता।

दरअसल, कविता ने अपनी अर्जी में यह दावा किया था कि 15 जुलाई 2008 को जब वह अमेरिका से लौटी, तो उसके भाई और भाभी ने डिफेंस कॉलोनी स्थित उसके पैरंट्स के घर में उसे घुसने नहीं दिया। तब उसने मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट की अदालत में डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट की धारा 12 के तहत अर्जी लगाई थी। मैजिस्ट्रेट ने यह कहते हुए अर्जी खारिज कर दी थी कि यह मामला प्रॉपर्टी डिस्प्यूट का लगता है। मैजिस्ट्रेट के फैसले को अडिशनल जिला जज ने भी सही ठहराया था, जिसके बाद कविता ने निचली अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी।

हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान कविता के भाई की ओर से दलील दी गई कि मेरे पिता ने मरने से पहले अपनी वसीयत में डिफेंस कॉलोनी स्थित अपनी प्रॉपटीर् अपने पोते यानी मेरे बेटे के नाम कर दी थी। ऐसे में कविता का उस घर पर कोई हक नहीं रह जाता है। और वैसे भी कविता हम लोगों के साथ नहीं रहती है, ऐसे में डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट के तहत उनका दावा सही नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट की धारा 12 के तहत जो प्रावधान है, उसके मुताबिक कोई भी महिला अगर अपने जॉइंट घर को छोड़कर किसी रिश्तेदार के घर कुछ समय के लिए जाती है और लौट आती है, अगर तब उसे उस घर में प्रवेश नहीं करने दिया जाता, तो डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट का सहारा लिया जा सकता है। लेकिन इस मामले में लड़की अपना साझा घर छोड़कर अमेरिका में सेटल हो गई और इस तरह उसका डोमेस्टिक रिलेशन खत्म हो गया। अगर डोमेस्टिक रिलेशन ही नहीं रहा, तो डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट के तहत उसकी अर्जी स्वीकार्य नहीं हो सकती। यह कहते हुए अदालत ने लड़की की अपील ठुकरा दी।

सज्जन को सुप्रीम कोर्ट से राहत, सुनवाई पर रोक

सुप्रीमकोर्ट ने शुक्रवार को वर्ष 1984 के सिख विरोधी दंगों के संबंध में हत्या और दूसरे आरोपों का सामना कर रहे कांग्रेस नेता सज्जन कुमार के खिलाफ सुनवाई पर रोक लगा दी।

न्यायमूर्ति पी सदाशिवम और न्यायमूर्ति बी एस चौहान की खंडपीठ ने सज्जन की अपने अभियोजन को चुनौती देने वाली याचिका पर कार्रवाई करते हुए सीबीआई को नोटिस भी जारी किया। इसके पहले 19 जुलाई को हाईकोर्ट ने सज्जन के खिलाफ विभिन्न आरोपों को रद्द करने से मना करते हुए कहा था कि अभियोजन में देरी एक तरह से सज्जन को लाभ पहुंचाएगी।

पूर्व सांसद सज्जन पर दो मामलों में अभियोजन चल रहा है। उन पर आरोप है कि उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख समुदाय के खिलाफ भीड़ को उकसाया।

इसके पहले हाईकोर्ट ने सुनवाई अदालत को आदेश देते हुए कहा था कि वह दंगों के मामले में सज्जन के खिलाफ शीघ्रता से सुनवाई करे। सुनवाई अदालत में इस वर्ष मई में आरोपियों के खिलाफ धारा 302 [हत्या], धारा 395 [डकैती], धारा 427 और धारा 153ए [दो समुदायों के बीच वैमनस्य बढ़ाने] के तहत आरोप निर्धारित किए थे, जिससे सज्जन और पांच अन्य के खिलाफ मुकदमा चलाने का रास्ता साफ हो गया था।

सीबीआई ने सज्जन पर आरोप लगाया था कि उन्होंने एक समुदाय विशेष के खिलाफ लोगों को उकसाया, जिसके बाद दिल्ली कैंट में पांच लोगों की हत्या हो गई। सज्जन के अलावा इस मामले में बलवान खोखर, कृष्ण खोखर, महेंद्र यादव, कैप्टन भागमल और गिरधारी लाल आरोपी हैं।

सीबीआई ने 13 जनवरी को सज्जन और अन्य आरोपियों के खिलाफ दो आरोपपत्र दाखिल किए थे।

राजस्थान यूनिवर्सिटी छात्र चुनाव प्रक्रिया पर अंतरिम रोक

राजस्थान हाई कोर्ट ने राजस्थान यूनिवर्सिटी के छात्र संघ चुनावों की प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगा दी है। न्यायाधीश महेश चन्द्र शर्मा ने यह अंतरिम आदेश गुरुवार को राजस्थान यूनिवर्सिटी की एनएसयूआई यूनिट के अध्यक्ष सुमित भगासरा की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया।
न्यायाधीश ने आदेश में कहा कि मामले की आगामी सुनवाई 17 अगस्त तक चुनाव प्रक्रिया नहीं की जाए। गौरतलब है कि 10 अगस्त को हाईकोर्ट ने मामले में सुनवाई करते हुए राजस्थान यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार व स्टूडेंट वेलफेयर के डीन को कारण बताओ नोटिस जारी किए थे। मामले की सुनवाई के दौरान याची ने कहा कि छात्र संघ चुनावों की प्रक्रिया 16 तारीख से शुरू हो रही है और उन्हें आशंका है कि यूनिवर्सिटी छात्र संघ चुनाव के संविधान की धारा 20 सी प्रावधान की आड़ में उनके नामांकन पत्र को निरस्त कर सकती है। लिहाजा यूनिवर्सिटी प्रशासन को निर्देश दिया जाए कि उनके नामांकन पत्र को निरस्त न करें और उसे चुनाव लडऩे की अनुमति दी जाए। मामले की सुनवाई के दौरान यूनिवर्सिटी का जवाब नहीं आया, जिस कारण सुनवाई पूरी नहीं हो सकी। इस पर न्यायाधीश ने आगामी सुनवाई 17 अगस्त तक के लिए चुनाव प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगा दी।
गौरतलब है कि याची ने छात्र संघ चुनाव के संविधान की धारा 20 सी के तहत चुनाव की अयोग्यता को चुनौती दी। इस धारा के तहत प्रावधान है कि यदि कोई विद्यार्थी पिछले साल अनुपस्थित रहा हो अथवा फेल हुआ हो, तो वह चुनाव लडऩे के लिए अयोग्य हो जाएगा। याची ने याचिका में कहा कि उसने एलएलबी के प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया था और उसकी परीक्षा जून महीने में हुई थी। उसने परीक्षा से दो माह पहले ही खराब स्वास्थ्य के कारण यूनिवर्सिटी के समक्ष परीक्षा देने में असमर्थता जाहिर करते हुए परीक्षा फार्म को निरस्त करने की प्रार्थना की। उसका प्रार्थना पत्र यूनिवर्सिटी ने मंजूर कर लिया। लेकिन उसे न तो परमिशन लैटर ही जारी हुआ और न ही रोल नंबर ही दिया। उसने याचिका में कहा कि इस स्थिति में उसे यूनिवर्सिटी फेल घोषित नहीं कर सकती और न ही अनुपस्थित ही दिखा सकती है। लेकिन उसे आशंका है कि उसे चुनाव लडऩे से अयोग्य घोषित किया जा सकता है। इसलिए उसे चुनाव लडऩे की अनुमति दी जाए।

Thursday, August 12, 2010

निचली अदालतें रद्द कर सकती हैं रेडकार्नर नोटिस-दिल्ली उच्च न्यायालय

दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि किसी मामले में आरोपी व्यक्ति के खिलाफ़ जांच एजेन्सियों या इंटरपोल द्वारा जारी लुक आउट सर्कुलर या रेड कार्नर नोटिस को मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट रद्द कर सकता है.     

न्यायमूर्ति शिव नारायण धींगरा ने एक फ़ैसले में कहा कि संबन्धित व्यक्ित के आवेदन पर लुक आउट नोटिस को जारी करने वाले अधिकारी इसे वापस ले सकते हैं या जिस अदालत में आरोपी के खिलाफ़ मामला लंबित है या संबन्धित थाना क्षेत्र में पडने वाली अदालत इसे वापस ले सकती है.     

एक मजिस्ट्रेट द्वारा इस मामले में उच्च न्यायालय की राय मांगने पर पीठ ने यह निर्णय दिया. मजिस्ट्रेट ने जानना चाहा था कि क्या निचली अदालत को लुक आउट सर्कुलर या रेड कार्नर नोटिस वापस लेने का अधिकार है.     

मजिस्ट्रेट ने भारतीय मूल के एक कनाडियाई नागरिक के उसके खिलाफ़ जारी लुक आउट सर्कुलर और रेड कार्नर नोटिस वापस लेने के आवेदन पर यह राय मांगी थी. उसके खिलाफ़ एक वैवाहिक विवाद को लेकर लुक आउट सर्कुलर और रेड कार्नर नोटिस जारी किया गया था.

कलयुगी गुरु को न्‍यायालय ने सुनाई 18 साल की सजा


गुरु के पावन रिश्ते को कलंकित करने वाले एक शिक्षक को न्यायालय ने बुधवार को कठोर कारावास से दंडित किया। न्यायालय ने आरोपी शिक्षक को अलग-अलग धाराओं में 18 वर्ष की सजा सुनाई है। हालांकि, विधि विधान के अनुसार उसे अधिकतम दस वर्ष का कठोर कारावास भुगतना होगा। नाबालिग दलित बच्ची के साथ दुष्कर्म करने के प्रयास का यह मामला राजस्‍थान के श्रीगंगानगर जिले के घमूड़वाली थानांतर्गत फकीरांवाली गांव का है, जो तीन वर्ष पूर्व खासा चर्चित रहा था। आज आरोपी शिक्षक व शिक्षण संस्थान के मालिक इंद्राज भादू पुत्र रामलाल जाट को कड़ी सजा सुनाए जाने के बाद पीडि़ता के परिजनों ने राहत महसूस की।

मामले के अनुसार इंद्राज भादू गांव फकीरांवाली में देव शिक्षा उच्च प्राथमिक विद्यालय का संचालन करता था। इसी दौरान उसने 26 नवंबर 2007 के दिन महज आठ वर्षीय मासूम बच्ची को अपनी हवस का शिकार बनाने की कोशिश की। लेकिन, बच्ची के चीखने-चिल्लाने के बाद वह अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाया। इसके बाद 28 नवंबर को पुलिस ने आरोपी के विरुद्ध दलित पीडि़त परिवार की ओर से आईपीसी सेक्शन 354, 376/511 सहित एससी/एसटी की विभिन्न धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया। यही नहीं, पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए निष्पक्ष रूप से न्यायालय ने चालान पेश किया। यही वजह रही कि विशिष्ट न्यायालय एससी/एसटी अत्याचार निवारण के न्यायाधीश ने आरोपी को कड़ी सजा सुनाई।

विशिष्ट लोक अभियोजक ललित गौड़ ने बताया कि आरोपी के विरुद्ध न्यायालय ने आईपीसी सेक्शन 354 के तहत एक वर्ष की सजा व 500 रुपए जुर्माना, आईपीसी सेक्शन 376/511 के तहत दस वर्ष का कठोर कारावास व पांच हजार रुपए जुर्माना, एससी/एसटी के सेक्शन 3 (1) के तहत दो वर्ष कठोर कारावास व एक हजार रुपए जुर्माना और 3 (2) के तहत पांच वर्ष का कठोर कारावास एवं पांच हजार रुपए जुर्माना की सजा सुनाई। सभी धाराओं के तहत दी गई सजाएं एक साथ चलेंगी।

वैध है नाबालिगों के बीच शादी : कोर्ट

दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज एक अहम फ़ैसले में कहा है कि नाबालिगों के बीच शादी वैध है और यह तभी रद्द की जा सकती है जब दोनों में से कोई एक पक्ष इसके खिलाफ़ याचिका दायर करे.

उच्च न्यायालय ने कहा कि सेक्शन पांच की धारा (तीन), जो दूल्हे के लिए न्यूनतम उम्र 21 और दुल्हन के लिए न्यूनतम उम्र 18 तय करती है, के खिलाफ़ जाकर हुई शादी अवैधानिक शादी की श्रेणी में नहीं आती और न ही यह अवैधानिक करार देने योग्य शादियों की श्रेणी में आती है.

नतीजतन, निष्कासन की प्रक्रिया से यह शादी मान्य होगी. न्यायमूर्ति बीडी अहमद और वीके जैन की एक पीठ ने कहा कि यहां तक कि बाल विवाह रोकथाम कानून के तहत भी नाबालिगों की संलिप्तता को अमान्य घोषित नहीं किया गया है और कानून तो बस इतना कहता है कि शादी तभी निरस्त की जा सकती है जब पति या पत्नी में से कोई भी इसके खिलाफ़ याचिका दायर करे.

अनिवार्य नहीं होगा नार्को टेस्ट-चिदंबरम

गृह मंत्री पी.चिदंबरम ने कहा कि सुबूत हासिल करने के मकसद से किसी आरोपी पर नार्को विश्लेषण जाँच को अनिवार्य कर देने का सरकार कोई इरादा नहीं है और इस संबंध में उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का पालन किया जाएगा।

चिदंबरम ने राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान ईश्वर सिंह के सवाल के जवाब में बताया कि पाँच मई 2010 को उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिए थे कि किसी भी आरोपी पर नार्को विश्लेषण, ब्रैन मैपिंग या पोलीग्राफ जाँच उसकी रजामंदी के बगैर नहीं कराई जा सकती।

न्यायालय ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के दिशा-निर्देशों पर ही ये जाँच कराने को कहा है। आयोग के दिशा-निर्देश भी यही कहते हैं कि इस तरह की जाँच से पहले उस प्रक्रिया से गुजरने वाले व्यक्ति की रजामंदी लेना जरूरी है। अगर आरोपी सहमति नहीं दे तो उस पर तीनों में से कोई भी जाँच नहीं होगी।

उन्होंने वाईपी त्रिवेदी के पूरक सवाल पर कहा कि इस आलोक में हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हमारा आपराधिक मामलों में किसी भी आरोपी पर नार्को विश्लेषण जाँच को अनिवार्य कर देने का कोई इरादा नहीं है।

चिदंबरम ने कहा कि मेरा व्यक्तिगत मत यह है कि नार्को विश्लेषण जाँच नहीं होनी चाहिए। उन्होंने अवतार सिंह करीमपुरी के पूरक सवाल के जवाब में कहा कि उच्चतम न्यायालय ने इन जाँचों पर रोक नहीं लगाई है। सिर्फ यही कहा है कि जाँच करने से पहले आरोपी की रजामंदी लेना जरूरी है।

गृह मंत्री ने कहा कि मेरा निजी नजरिया यह है कि पोलीग्राफ जाँच का इस्तेमाल हो सकता है लेकिन नार्को विश्लेषण और ब्रैन मैपिंग नहीं की जानी चाहिए।

आम आदमी अब 24 घंटे फहरा सकता है तिरंगा

छत्तीसगढ उच्च न्यायालय के एक महत्वपूर्ण फैसले के बाद आदर, प्रतिष्ठा और सम्मान के साथ आम आदमी अपने घर अथवा संस्थान में 24 घंटे राष्ट्रीय ध्वज, तिरंगा, फहरा सकेगा।


न्यायमूर्ती धीरेन्द्र मिश्रा की एकलपीठ ने रायगढ के तमनार स्थित नवीन जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड के सुरक्षा अधिकारी बी धर्माराव
की एक याचिका पर सोमवार को फैसला सुनाते हुए 24 घंटे राष्ट्रीय ध्वज फहराने के आम आदमी के अधिकार को उचित माना है। हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि आम आदमी रात को भी राष्ट्रीय ध्वज फहरा सकता है। शर्त इतनी है कि यह कार्य ध्वज के अपमान की दृष्टि से न किया गया हो। जस्टिस धीरेंद्र मिश्रा की सिंगल बेंच ने कहा है कि किसी व्यक्ति को इस आधार पर दंडित नहीं किया जा सकता कि उसने शाम या रात को राष्ट्रीय ध्वज नहीं उतारा, जब तक यह सिद्ध न कर दिया जाए कि ध्वज का अनादर किया गया था।


रायगढ़ जिले में तमनार स्थित नवीन जिंदल की कंपनी जिन्दल पावर लिमिटेड (जेपीएल) में रात को तिरंगा नही उतारने के बहुचर्चित मामले में हाईकोर्ट ने यह महत्वपूर्ण फैसला दिया है। कोर्ट ने प्रकरण की सुनवाई के बाद कहा कि रात को तिरंगा नहीं उतारा जाना ‘प्रिवेंशन ऑफ इंसल्ट टू नेशनल ऑनर एक्ट 1971’ का किसी भी प्रकार से उल्लंघन नहीं है।


याचिका पर 9 अगस्त को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी कहा कि एक आम आदमी को सिर्फ इसीलिए दंडित नहीं किया जा सकता कि उसने शाम के समय तिरंगे झंडे को नीचे नहीं उतारा, अगर उसने तिरंगे के प्रति अनादर प्रदर्शित न किया हो।


इस ऐतिहासिक फैसले द्वारा हाईकोर्ट ने आम आदमी को रात को भी तिरंगा फहराने का अधिकार दे दिया है। हाईकोर्ट ने इस संबंध में प्रतिवादियों द्वारा जिंदल प्रबंधन तथा उसके अधिकारियों के विरुद्ध दर्ज एफआईआर और चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रट के 4 मार्च 2008 के आदेश को भी खारिज कर दिया। उल्लेखनीय है कि कंपनी के संचालक नवीन जिंदल की एक याचिका पर पूर्व में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि देश के प्रत्येक नागरिक को आदर, प्रतिष्ठा एवं सम्मान के साथ राष्ट्रीय ध्वज फहराने का अधिकार है और यह प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है। इस ऐतिहासिक फैसले के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ध्वज संहिता में संशोधन किया।


यह था मामला


रायगढ़ निवासी संतोष मिश्रा ने 18 अक्टूबर 2006 को पुलिस थाना तमनार में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि नवीन जिंदल की कंपनी जिंदल पावर लिमिटेड के परिसर में प्रशासनिक भवन के पास शाम को सूर्यास्त के बाद राष्ट्रीय ध्वज फहरा रहा था जबकि उस समय अंधेरा हो चुका था। रिपोर्ट में इसे राष्ट्रीय ध्वज का अपमान, प्रिवेंशन ऑफ इंसल्ट टू नेशनल ऑनर एक्ट -1971 तथा ध्वज संहिता 2002 का उल्लंघन बताया गया था।


पुलिस थाना तमनार ने जिंदल पावर लिमिटेड प्रबंधन के विरुद्ध उसी दिन इस मामले में अपराध दर्ज किया। पुलिस ने बाद में मामले की जांच करने पर यह पाया कि इस पर कोई अपराध नहीं बनता। इसी दौरान एक गैर-सरकारी संगठन के प्रतिनिधि ने 5 जनवरी को एक परिवाद सीजेएम अदालत में पेश करते हुए जेपीएल प्रबंधन तथा उसके तत्कालीन कार्यकारी निदेशक डीपी सरावगी के खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ इंसल्ट टू नेशनल ऑनर एक्ट -1971 की धारा-2 तथा सहपठित धारा 153 (क), 294 (क), 268 भारतीय दण्ड संहिता के अंतर्गत अपराध दर्ज किए जाने की मांग की थी। अदालत ने इस परिवाद पत्र को स्वीकार करते हुए पुलिस डायरी मंगाई।


सीजेएम कोर्ट ने माना था दोषी


मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी रायगढ़ ने 4 मार्च 2008 को अपने एक विस्तृत आदेश में कहा कि ऐसा कोई कानून नहीं है, जिसके अंतर्गत निजी संस्थान को सूर्यास्त के बाद झण्डा लहराने की अनुमति हो, इसलिए रात को झण्डा न उतारना कानून का उल्लंघन है। उन्होंने पुलिस अधीक्षक रायगढ़ को धारा 156 (3) दण्ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत किसी सक्षम पुलिस अधिकारी से मामले की जांच करने का आदेश दिया।


हाईकोर्ट ने कार्रवाई पर लगाई थी रोक


जिंदल पावर लिमिटेड ने इस आदेश के विरुद्ध वकील सतीशचंद्र दत्त एवं सतीश वर्मा के माध्यम से जुलाई 2008 को याचिका प्रस्तुत की। इस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 3 जुलाई 2008 को निचली अदालत में चल रहे प्रकरण पर रोक लगा दी थी।

अजमेर दरगाह खादिमों और दरगाह दीवान के बीच चल रहे प्रकरण में आपत्तियों का निपटारा

अजमेर दरगाह पर चढावे के हक को लेकर खादिमों और दरगाह दीवान के बीच चल रहे मामले की मंगलवार को जिला एवं सत्र न्यायालय ने सुनवाई की। न्यायाधीश प्रशांत कुमार अग्रवाल ने प्रकरण में खादिमों व दोनों अंजुमन की ओर से लगभग 18 वष् पूर्व दायर की गई आपत्तियों का निपटारा करते हुए दोनों अंजुमन को प्रकरण में पक्षकार की हैसियत से हटा दिया है। वहीं न्यायाधीश ने दरगाह दीवान जैनुअल आबेदीन को इजराय की कार्रवाई आगे चलाने का हकदार माना है।

न्यायाधीश ने आदेश में लिखा है कि मूल डिक्री किसी व्यक्ति विशेष के पक्ष में पारित हुई हो ऎसा प्रतीत नहीं होता है। यह एक गंभीर मसला है। प्रारंभिक स्तर पर यह तय नहीं किया जा सकता कि दरगाह दीवान जैनुअल आबेदीन की डिक्रीदार की हैसियत है अथवा नहीं।

साक्ष्य लेने के बाद ही यह तय होगा। न्यायाधीश ने अंजुमन सैयद जादगान व अंजुमन शेख जादगान की ओर से उनको पक्षकार बनाने पर दायर की गई आपत्ति मंजूर करते हुए दोनों अंजुमन को इजराय की सुनवाई में पक्षकार की हैसियत से हटाने के आदेश दिए हैं।

इसके अतिरिक्त न्यायाधीश ने तीन और आपत्तियों का भी निपटारा कर दिया है। खादिमों को प्रकरण की मियाद पर भी आपत्ति थी। अदालत का मानना है कि यह विवाद 5 अक्टूबर 2002 में अदालत का मानना है कि यह विवाद 5 अक्टूबर 2002 को निपटाया जा चुका है। इसके बाद हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट भी इस संबंध में आदेश दे चुके हैं। इसलिए यह आपत्ति सुनवाई योग्य नहीं है।

अदालत ने उन दो आपत्तियों को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि डिक्रीदार ने यह कहीं स्पष्ट नहीं किया है कि डिक्री के खिलाफ अपील की गई है अथवा नहीं। इजराय में रही कुछ खामियों को लेकर दायर की गई आपत्ति भी अदालत ने यह कहते हुए खारिज कर दी कि इनसे यह नहीं माना जा सकता कि इजराय खारिज कर दी जाए।

पूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ भगोड़ा घोषित

पाकिस्तान की सिंध हाईकोर्ट ने पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को कोर्ट में पेश नहीं होने के कारण मंगलवार को भगोड़ा घोषित कर दिया। इससे मुशर्रफ की पाकिस्तान की राजनीति में लौटने की योजना को झटका लगा है।

चीफ जस्टिस सरमाद जलाल उसमानी के नेतृत्व वाली डिवीजन बेंच ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए मुशर्रफ को भगोड़ा घोषित किया। अवामी हिमाकत तहरीक के मौलवी इकबाल हैदर ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर मुशर्रफ पर संविधान के साथ छेड़छाड़ करने और राजद्रोह के आरोप में कार्रवाई करने की मांग की थी।

हैदर ने मुशर्रफ के सहयोगियों के खिलाफ भी इन्हीं आरोपों के तहत कार्रवाई करने की मांग की थी। इन सहयोगियों में वकील शरीफुद्दीन परीजादा और पूर्व अटार्नी जनरल मलिक अब्दुल कय्यूम शामिल हैं। याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने मुशर्रफ को कई बार नोटिस भेजे। लेकिन वे कोर्ट में पेश नहीं हुए।

मुशर्रफ के खिलाफ इसके अलावा और भी कई मामले पाकिस्तान में लंबित हैं। संयुक्त राष्ट्र जांच आयोग की रिपोर्ट में उनकी सरकार को दिसंबर 2007 में पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या के लिए जिम्मेदार भी ठहराया गया था।

मुशर्रफ अप्रैल 2009 में देश छोड़कर चले गए थे। इससे नौ महीने पहले उन्हें राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया गया था। हालांकि मुशर्रफ पाकिस्तान की राजनीति में लौटना चाहते हैं। लंदन में रह रहे मुशर्रफ का दावा है कि वे निर्वासन में नहीं हैं और जल्द पाकिस्तान लौटेंगे।

Tuesday, August 10, 2010

हाईकोर्ट बाबू बना मजिस्ट्रेट

कल तक हाईकोर्ट का बाबू कहलाने वाला व्यक्ति अब मजिस्ट्रेट की कुर्सी पर बैठेगा। कड़ी मेहनत और बुलंद इरादों से यह सपना साकार किया अशोक सैन ने। राजस्थान हाईकोर्ट में कार्यरत स्टांप रिपोर्टर एंड कोर्ट फीस एग्जामिनर अशोक सैन पहले ही प्रयास में राजस्थान ज्यूडिशीयल सर्विस (आरजेएस) में सामान्य वर्ग में 56वीं तथा अन्य पिछड़ा वर्ग में चौथी रैंक हासिल की है।

जयपुर शहर के खातीपुरा में जसवंत नगर में रहने वाले अशोक सैन ने 1995 में कोर्ट में छोटे बाबू की नौकरी से शुरुआत की थी। उस दौरान मजिस्ट्रेट को फैसला सुनाते देख उसकी भी इच्छा होती थी, कि वह ऐसे ही फैसला सुनाए। इस सपने को साकार करने के लिए नौकरी के दौरान 2006 में कानून की पढ़ाई (एलएलबी) की। 2007 में पहली बार आरजेएस का फॉर्म भरा और पिछले सप्ताह आए रिजल्ट से खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

अशोक सैन ने बताया कि इसी साल जनवरी में विभागीय परीक्षा में राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर बैंच में स्टांप रिपोर्टर एंड कोर्ट फीस एग्जामिनर पद पर पदोन्नति हुई थी। सफलता के पीछे जगदीशसिंह राजपुरोहित और मातापिता का आशीर्वाद तथा पत्नी नीरू सैन व दोस्तों का सहयोग रहा।

17 साल में कोर्ट तक नहीं पहुंची एफआईआर

पुलिस क्या चीज होती है, यह कोई रामलाल से पूछे। एक-दो नहीं, 17 बरस से वह न्याय के लिए भटक रहा है। पुलिस है कि उसकी राह में चीन की दीवार बनी खड़ी है। दलित समुदाय के रामलाल का केस आज तक सत्र न्यायालय को इसलिए सुपुर्द नहीं हो सका क्योंकि पुलिस एफआईआर की मूल प्रति ही दाखिल नहीं कर रही है। जमानत कराकर खुलेआम घूम रहे आरोपियों को वह जब-जब देखता है, तब-तब उसका भरोसा भारतीय कानून और न्याय व्यवस्था से उठ जाता है। बात जून 1993 की है जब ननकू, चेतराम, जय सिंह और प्रताप ने रामलाल को आम तोड़ने के विवाद में पीट दिया। उसने एससी एक्ट सहित अन्य धाराओं के तहत थाना क्योलडिया में मारपीट की रिपोर्ट दर्ज कराई। उसे पुलिस पर तो नहीं, न्यायालय पर भरोसा था।
पुलिस ने आरोपियों को पकड़ा लेकिन सभी जमानत कराकर बाहर आ गए। पुलिस ने केस दाखिल करते-करते साल भर लगा दिया। केस दाखिल हुआ तो रामलाल की उम्मीदें भी जाग उठीं। वह बडे़ उत्साह के साथ तय तारीख पर मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित हुआ लेकिन पुलिस ने तो यहां अपना खेल कर दिया। पत्रावली में एक ऐसी खामी छोड़ दी, जिसके बिना उसका केस शुरू ही नहीं होना था। भ्रष्ट पुलिस तंत्र ने 17 साल से एफआईआर की मूल कॉपी पत्रावली में लगाने के लिए उपलब्ध नहीं कराई है। हालांकि मजिस्ट्रेट ने इस बारे में दर्जनों पत्र थाने से लेकर पुलिस के हर अफसर तक भेजे हैं।
असल एफआईआर की कॉपी दाखिल न कर पाने के कारण पिछले 17 वर्षो से दलित उत्पीड़न के चार आरोपी तारीख पर तारीख ले रहे हैं। उनका मुकदमा सुनवाई के लिए विशेष सत्र न्यायालय नहीं भेजा जा सका। पुलिस की कारगुजारियों का परिणाम है कि रामलाल का मुकदमा आज भी प्रथम अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के न्यायालय पीलीभीत में ही लंबित है। फिर से एक सितंबर की तिथि मूल एफआईआर उपलब्ध कराने के लिए तय की गई है। रामलाल को नहीं लगता कि पुलिस उसे न्याय दिलाने की राह इतनी आसानी से आसान करने वाली है।

लिव-इन में कैसी बेवफाई : हाई कोर्ट

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हुए अगर एक पक्ष रिश्ते से बाहर आ जाए तो दूसरा बेवफाई की शिकायत नहीं कर सकता। हाई कोर्ट ने कहा कि ये रिश्ते कैजुअल होते हैं और किसी डोर से बंधे नहीं होते और न ही इन रिलेशन में रहने वालों के बीच कोई कानूनी बंधन होता है। महिला ने याचिकाकर्ता के खिलाफ छेड़छाड़ और धमकी का आरोप लगाया था। याचिकाकर्ता ने एफआईआर कैंसल करने की गुहार लगाई थी। जस्टिस शिव नारायण ढींगड़ा ने उक्त टिप्पणी करते हुए एफआईआर कैंसल कर दी।

हाई कोर्ट ने कहा कि जो लोग लिव इन रिलेशन में रहना पसंद करते हैं वे अनैतिकता और व्यभिचार की शिकायत नहीं कर सकते क्योंकि किसी विवाहित पुरुष और अविवाहित महिला या विवाहित महिला एवं गैर शादीशुदा शख्स के बीच भी इस तरह के रिश्तों का पता चला है। अदालत ने लंदन के एक वकील द्वारा दाखिल एक याचिका पर यह फैसला सुनाया। याचिकाकर्ता के खिलाफ महिला ने क्रिमिनल कंप्लेंट की थी महिला उक्त शख्स के साथ लिव-इन में रह रही थी। याचिकाकर्ता ने महिला से शादी से इनकार किया था क्योंकि उनके पैरंट्स इस रिश्ते के खिलाफ थे। अदालत ने कहा कि साथ रहने का कॉन्ट्रैक्ट होता है जिसमें प्रत्येक दिन रिन्यूअल होता है और कोई भी एक पक्ष बिना दूसरे पक्ष की सहमति से इसे तोड़ सकता है।

इस मामले में याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल कर उसके खिलाफ दर्ज केस रद्द करने की गुहार लगाई थी। याचिकाकर्ता के खिलाफ महिला ने 18 अक्टूबर, 2007 को आईजीआई एयरपोर्ट पर छेड़छाड़ और धमकी का केस दर्ज कराया था। आरोप था कि महिला और पुरुष दोनों लिव-इन रिलेशन में रह रहे थे। ये 5 साल साथ रहे। इस दौरान दोनों एक दूसरे पर निर्भर थे और पुरुष ने शादी का वादा किया और नहीं निभाया। वह लंदन जा रहा था इसी दौरान जब महिला उसे रोकने के लिए पहुंची तो उसके साथ बदतमीजी की और धमकी दी। इस मामले में की गई शिकायत पर आरोपी के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया।

याचिकाकर्ता का कहना था कि महिला ने गलत आरोप लगाए हैं। इस मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट के जस्टिस शिव नारायण ढींगड़ा ने कहा कि पुलिस ने प्रभाव में केस दर्ज कर लिया। पूरे मामले से लगता है कि उसकी मंशा सही नहीं है। वह पढ़ी - लिखी है और उसे इस बात की जानकारी की थी पुरुष शादीशुदा है और उसके बच्चे भी हैं बावजूद इसके वह लिव इन में रही। अदालत ने कहा कि इस तरह के रिलेशन दोनों पक्ष एक दूसरे की सहमति से इन्जॉय के लिए बनाते हैं। अदालत ने कहा कि इस मामले में मेडिकल रिपोर्ट और अन्य साक्ष्यों से साफ है कि एफआईआर नहीं बनती लिहाजा एफआईआर कैंसल की जाती है।

Sunday, August 8, 2010

अवैध बांग्लादेशियों को खदेड़ने की प्रक्रिया मजाक -गौहाटी उच्च न्यायालय

अवैध बांग्लादेशियों को खदेड़ने की पूरी प्रक्रिया एक प्रहसन है। गौहाटी उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी की है। असम में खदेड़े गए बांग्लादेशियों के वापस प्रवेश करने को गंभीर मानते हुए उच्च न्यायालय ने टिप्पणी की है कि विदेशी न्यायाधिकरण की स्थापना का मकसद ही पूरा नहीं हो रहा है। न्यायाधीश बी के शर्मा की खण्डपीठ ने खदेड़े गए बांग्लादेशी नागरिक मोहमद अताउर रहमान की रिट याचिका पर सुनवाई के बाद कहा कि विदेशी न्यायाधिकरण समेत पूरी मशीनरी ही मजाक बन गई है और इससे असली उद्देश्य पूरा नहीं हो रहा है।

विदेशी नागरिकों की शिनाख्त और खदेड़ने के लिए स्थापित किए गए विदेशी न्यायाधिकरणों पर करोड़ों रूपए खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन इनका कोई लाभ नहीं हो रहा है। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि 20 नवम्बर 2008 को करीमगंज जिले के भारत-बांग्लादेश सीमा के घने जंगलों में पुलिस ने मुझे छोड़ दिया था। मुझे 14 नवम्बर को पकड़ा गया था, जिस तरह बांग्लादेशियों को खदेड़ने की पूरी प्रक्रिया अपनाई जाती है उस पर अदालत ने आश्चर्य व्यक्त किया है। इस मामले पर 19 मई 2010 को दिए गए आदेश के बाद राज्य व केन्द्र सरकार ने जो जवाब दिया है उस पर अदालत ने असंतोष जताया है।

अदालत ने अब आदेश दिया है कि दोनों 26 अगस्त को या इससे पहले अपने रूख पर हलफनाम पेश करे। अदालत ने कहा है कि अवैध बांग्लादेशियों की घुसपैठ को लेकर केन्द्र्र और राज्य असहाय है तो उसे हलफनामे में यह बात भी कहनी चाहिए। मालूम हो कि बांग्लादेश इन घुसपैठियों को वापस नहीं लेता है और असम पुलिस इन्हें पकड़कर सीमा के जंगलों में धकेल अपने कार्य की इतिश्री मान लेती है। खदेड़ा गया व्यक्ति वापस असम पहुंच जाता है।

कंज्यूमर कोर्ट में ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराने की सुविधा पर विचार

उपभोक्ताओं को जल्द इंसाफ दिलाने के लिए सरकार कंज्यूमर कोर्ट में ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराने की सुविधा पर विचार कर रही है। कृषि व उपभोक्ता मामलों के राज्यमंत्री केवी थॉमस ने यह जानकारी राज्यसभा में एक लिखित जवाब में दी। उन्होंने बताया कि इसके लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में बदलाव करने की योजना है।

फिलहाल उपभोक्ता अदालतों में सबसे ज्यादा लंबित मामले उत्तरप्रदेश के हैं। इसके बाद महाराष्ट्र, राजस्थान और गुजरात का नंबर है। देशभर में उपभोक्ताओं की शिकायतों के 3.68 लाख मामले विचाराधीन हैं। इनके जल्द निपटारे के लिए कुछ राज्य आयोगों, जिला फोरम ने लोक अदालत का आयोजन भी किया था।

राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने भी लोक अदालतों का गठन किया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले साल दो ई-कोर्ट की स्थापना की थी। इन अदालतों में कागजी फाइलों की जगह जानकारियों को एलसीडी स्क्रीन पर देखा जाता है। दस्तावेजों को टचस्क्रीन हैंडबुक में सुरक्षित रखने का इंतजाम किया गया है।

प्राथमिकी किसी घटना की एन्साइक्लोपीडिया नहीं हो सकती -सर्वोच्च न्यायालय

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्राथमिकी (एफआईआर) कोई एन्साइक्लोपीडिया नहीं होती है, जोकि उसमें किसी घटना का बारीक से बारीक विवरण शामिल हो। इसके साथ ही यह भी जरूरी नहीं कि उसमें वे सभी सबूत मौजूद हों, जिसे अभियोजन सुनवाई के दौरान पेश करे।
न्यायमूर्ति हरजीत सिंह बेदी और न्यायमूर्ति जे.एम.पांचाल की खण्डपीठ ने इलाहाबाद उच्चा न्यायालय द्वारा उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद जिले के एक गांव में छह लोगों की हत्या के आरोप में मौत की सजा पाए तीन आरोपियों को बरी किए जाने के फैसले को पलटते हुए कहा, ""यह कोई जरूरी नहीं कि एफआईआर उन तथ्यों व स्थितियों की एन्साइक्लोपीडिया हो जिस पर अभियोजन निर्भर रहे।"" अदालत ने अपना यह फैसला मंगलवार को दिया था, लेकिन वह शनिवार को उपलब्ध हो पाया। अदालत ने अपने फैसले में कहा, ""एफआईआर दर्ज कराने का मूल उद्देश्य आपराधिक कानून को सक्रिय कर देना भर है, न कि उसमें सभी बारीक विवरण को शमिल करना।"" फैसले में न्यायमूर्ति पांचाल ने कहा, ""जीवन की क़डी वास्तविकता यह है कि जो व्यक्ति दुखद घटना में अपने रिश्तेदारों व नातेदारों को खो बैठा है, वह गहरे सदमे से पीç़डत होगा, ऎसे में कानून उससे इस बात की उम्मीद नहीं करेगा कि वह अपने एफआईआर में या अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के तहत अपने बयान में बारीक से बारीक जानकारी शामिल करे।"" सर्वोच्चा न्यायालय ने इस बात के लिए उच्चा न्यायालय की निंदा की कि उसने सबूतों के आगे किसी मृत व्यक्ति द्वारा मौत से पहले दिए गए मौखिक बयानों पर ध्यान नहीं दिया।
मौखिक बयानों पर अविश्वास करने के पीछे उच्च न्यायालय द्वारा यह कारण बताया गया कि यह बयान गवाह झब्बूलाल द्वारा न तो उसके एफआईआर में दर्ज किया था और न धारा 161 के तहत रिकॉर्ड किए गए उसके बयान में ही।

Saturday, August 7, 2010

पूर्व सांसद पप्पू यादव की तत्काल गिरफ्तारी के आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार पुलिस और सीबीआई को निर्देश दिए हैं कि विवादास्पद और बाहुबली नेता राजेश रंजन उर्फ को तत्काल गिरप्तार कर चार सप्ताह में रिपोर्ट दें। यादव को 14 जून 1998 को सीपीएम नेता अजीत सरकार की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई जा चुकी है। पटना हाईकोर्ट ने 18 फरवरी, 2009 को पप्पू यादव को जमानत दी थी।

सीबीआई ने एक साल बाद (26 मार्च, 2010) हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। 3 मई को इसी याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जमानत रद्द करते हुए हाईकोर्ट के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट की अवमानना बताया था। सुप्रीम कोर्ट पहले ही एक आदेश में कह चुका है कि देश की किसी भी अदालत में यादव को जमानत संबंधी सुनवाई नहीं हो सकती।

इसके बावजूद यादव की गिरफ्तारी नहीं होने पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सख्त एतराज जताया। जस्टिस मार्कंडेय काटजू और एके पटनायक ने आश्चर्य व्यक्त किया कि कोर्ट 3 मई को यादव की जमानत याचिका खारिज कर चुका है, फिर भी बिहार पुलिस ने गिरफ्तारी के लिए कुछ नहीं किया और न ही उसने समर्पण किया। यादव ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा जमानत खारिज करने के मामले में पुनरीक्षण याचिका लगाई थी। शुक्रवार को कोर्ट ने इसे भी खारिज कर दिया।

सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़: अमित शाह को झटका, दो दिन की सीबीआई रिमांड पर

सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ में गिरफ्तार गुजरात के पूर्व गृह राज्‍य मंत्री अमित शाह को गुजरात हाईकोर्ट ने दो दिनों के सीबीआई रिमांड पर भेजने का हुक्‍म दिया है।

अदालत ने यह आदेश जांच एजेंसी के अनुरोध पर किया। इससे पहले सीबीआई की विशेष अदालत ने जांच एजेंसी की शाह को रिमांड पर लेने की अर्जी नामंजूर कर दी थी। इसके बाद सीबीआई ने विशेष अदालत के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी।
शाह शनिवार से दो दिन के सीबीआई रिमांड पर रहेंगे। सीबीआई ने पहले शाह का सात दिन का रिमांड चाहा था लेकिन सोहराबुद्दीन मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रही विशेष अदालत ने इसे नामंजूर कर दिया। इस फैसले के खिलाफ सीबीआई ने हाईकोर्ट में अपील की। हाईकोर्ट में सुनवाई के बाद जस्टिस अकील कुरैशी ने सीबीआई को शाह का दो दिन का रिमांड दे दिया है।

हालांकि हाईकोर्ट ने शाह के वकील की इस मांग को मंजूर कर लिया कि पूछताछ की वीडियो रिकार्डिंग होना चाहिए। सीबीआई की तरफ से वकील केटीएस तुलसी अदालत में हाजिर हुए जबकि शाह के लिए राम जेठमलानी ने दलील दीं।

सीबीआई ने शाह को सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले में गिरफ्तार किया है। उन पर हत्या और अपहरण का आरोप है।

अब गुड़गांव में घरेलू हिंसा की सुनवाई फैमिली कोर्ट की बजाय इलाका मजिस्ट्रेट करेंगे।

घरेलू हिंसा के मामलों की सुनवाई अब फैमिली कोर्ट की बजाय इलाका मजिस्ट्रेट की अदालत में होगी। इसके लिए फैमिली कोर्ट में लंबित ऐसे मामलों की सभी फाइलें संबंधित इलाका मजिस्ट्रेट को भेजी जा रही हैं। गुड़गांव में सात इलाका मजिस्ट्रेट नियुक्त हैं, जिनमें एक एडिशनल चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट और एक चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट शामिल हैं।

घरेलू हिंसा के सभी मामलों की सुनवाई अब संबंधित थानों के इलाका मजिस्ट्रेट के समक्ष होगी। इन मामलों में घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12, 125, हिंदू विवाह अधिनियम, अव्यस्क एवं उत्तराधिकारी अधिनियम के तहत आने वाले घरेलू हिंसा एवं विवाद के मामले शामिल होंगे। मदन सिंह चौहान एडवोकेट ने बताया कि पिछले डेढ़ साल से इन मामलों की सुनवाई फैमिली कोर्ट में होती थी लेकिन डेढ़ पहले गुड़गांव में फैमिली कोर्ट नहीं होने के कारण इन मामलों की सुनवाई इलाका मजिस्ट्रेट ही करते थे। अब दोबारा से इन मामलों की सुनवाई इलाका मजिस्ट्रेट करेंगे।

सात इलाका मजिस्ट्रेट करेंगे मामलों की सुनवाई

सदर थाना, डीएलएफ, डीएलएफ फेज-1और सिविल लाइन के मामलों की सुनवाई एडिशनल चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट आरके यादव करेंगे। चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट डीएन भारद्वाज शहर थाना, पालम विहार, मानेसर और डीएलएफ फेज-2 के मामलों की सुनवाई करेंगे। इसके अलावा सेक्टर-5 थाना, उद्योग विहार, सुशांत लोक और सेक्टर-40 थाना के मामलों की सुनवाई नरिन्द्र कौर जेएमआईसी करेंगे। फरुखनगर थाना, राजेन्द्र पार्क, सेक्टर-56 और सोहना थाना के मामलों की सुनवाई राजेश गुप्ता ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी करेंगे।

पटौदी थाना, बादशाहपुर, खेड़की के तहत आने वाले घरेलू हिंसा के मामलों की सुनवाई नरेंद्र सिंह ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी करेंगे। स्टेट विजिलेंस ब्यूरो, जीआरपी और सेक्टर-18 थाना के मामलों की सुनवाई अर्चना यादव ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी और भौंडसी, बिलासपुर और सेक्टर-10 थाना के मामलों की सुनवाई अशोक कुमार ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी करेंगे।