पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Tuesday, June 30, 2009

मूर्तियां लगाने के मामले में मायावती को नोटिस


उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश में सरकार द्वारा राजनेताओं की प्रतिमाओं पर सरकारी धन खर्च किए जाने के मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए मुख्यमंत्री मायावती, राज्य सरकार और अन्य को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब देने का निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और न्यायमूर्ति अशोक कुमार गांगुली की अवकाशकालीन पीठ ने इस बारे में दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए ये नोटिस जारी किए। याचिका में मुख्यमंत्री मायावती, दिवंगत नेता कांशीराम और संविधान निर्माता भीम राव अंबेडकर की प्रतिमाओं पर सरकारी खजाने से 12 सौ करोड़ रुपये खर्च किए जाने के मामले की केन्द्रीय जांच ब्यूरो से जांच कराने की मांग की गई है।

पीठ ने उत्तर प्रदेश में मानव विकास सूचकांक और साक्षरता की दर सबसे कम होने तथा राज्य में पांच करोड़ नब्बे लाख लोगों के गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने तथा शिशु मृत्यु दर अधिक होने जैसे जमीनी आंकड़ों का उल्लेख करते हुए कहा कि इस तरह की परिस्थिति में सार्वजनिक पैसे के इन कामों में उपयोग को उचित नहीं ठहराया जा सकता।

याचिकाकर्ताओं रविकांत और अन्य ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार इस मामले में अब तक 1258 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि मायावती ने इस मामले में अदालती हस्तक्षेप की आशंका के चलते कई अपूर्ण प्रतिमाओं का भी अनावरण कर दिया है।

विधि महाविद्यालयों को मान्यता पर जांच समिति गठित।



उच्चतम न्यायालय ने उचित जांच के बिना ही विधि महाविद्यालयों को मान्यता दिए जाने पर नाराजगी जताते हुए एक समिति गठित की है जो बुनियादी ढांचा के बगैर बढ़ते ऐसे कालेजों की जांच करेगी। न्यायालय ने मौजूदा नियमों का उल्लंघन कर ऐसे कालेजों की स्थापना पर चिंता व्यक्त की और सालिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन अध्यक्ष एम एन कृष्णमणि को चार हफ्तों में इस पर एक रिपोर्ट देने को कहा।
न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और न्यायमूर्ति ए के गांगुली की पीठ ने कहा स्थिति की गंभीरता को देखते हुए हम सालिसिटर जनरल और एससीबीए अध्यक्ष से इस संबंध में एक रिपोर्ट देने का अनुरोध करते हैं। 
पीठ ने कहा कि मान्यता मंजूर करने के पहले उचित जांच की जानी चाहिए। इनमें फैकल्टी बुनियादी ढांचा पुस्तकालय की सुविधा आदि शामिल हैं। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि पर्याप्त फैकल्टी सदस्य नियुक्त किए जाएं और उन्हें छठे वेतन आयोग के अनुरूप न्यूनतम वेतनमान दिए जाएं। पीठ ने कहा कानूनी पेशे का पूरा कामकाज विधि महाविद्यालयों पर निर्भर करता है।

बांग्लादेश में महिला पर 202 कोडे़ बरसाए गए


बांग्लादेश के दक्षिणी-पूर्वी हिस्से में 'समाज विरोधी गतिविधि' में संलिप्तता के आरोप में एक मौलवी की ओर से जारी किए गए फतवे के आधार पर एक विधवा को 202 और एक पुरुष को 101 कोडे़ लगाए गए। फतवा देने वाले मौलवी को गिरफ्तार कर लिया गया है। इस घटना का स्थानीय स्तर पर विरोध हुआ और इसके बाद पुलिस ने कार्रवाई की। पियारा बेगम नाम की 40 वर्षीया विधवा और 25 साल के मामून मियां को शनिवार रात को मिला जिले के खरियार में सैंकड़ों की भीड़ के सामने कोड़े लगाए गए। कोड़ों की चोट से महिला बेहोश हो गई और उसे अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टरों का कहना है कि वह गंभीर रूप से घायल है और इलाज की जरूरत है। 

समाचार पत्र 'डेली स्टार' ने सोमवार को खबर दी कि मियां को 101 कोड़े मारे गए। बांग्लादेश में वर्ष 2001 के उच्च न्यायालय के एक फैसले के मुताबिक फतवे के तहत दी जाने वाली सजाएं गैर कानूनी हैं। पुलिस ने इस सिलसिले में मौलाना मोहम्मद मनीरुल इस्लाम समेत 6 लोगों को गिरफ्तार किया है। पियारा बेगम ने महिला एवं बाल उत्पीड़न निरोधक अधिनियम के तहत देबिदवार थाने में मामला दर्ज कराया है।

12 पुलिसकर्मियों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट


करीबन आठ वर्ष पूर्व एक प्रकरण में राजस्थान उच्च न्यायालय का स्थगन आदेश समाप्त होने के बाद बाली के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने बाली एवं फालना में थानाधिकारी रहे बोराजसिह भाटी समेत 10 पुलिसकर्मियों एवं दो अन्य व्यक्तियों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर उनको न्यायालय में तलब करने के आदेश दिए है।

एडवोकेट प्रवीण भंडारी के अनुसार फालना निवासी लीला पत्नी बाबूलाल कलाल ने गत 23 जून, 2001 को न्यायालय में मामला दर्ज कर आरोप लगाया था कि 23 जून की रात को करीबन 8 बजे पूर्व में फालना के थानाधिकारी रहे बोराजसिंह भाटी, एएसआई सपाराम, पुलिसकर्मी सत्यदेवसिंह, डगलाराम, ओमप्रकाश, राजेश कुमार,बस्तीमल,कल्याणमल व पुखराज सहित दो अन्य व्यक्ति जिसमें राजेंद्रसिंह व जेठूसिंह ने शराब की दुकानपर कार्यरतकर्मिर्यों के साथ लीला देवी के मकान पर आए एवं पत्थरबाजी के साथ छत पर चढ़कर दरवाजे की कुंडी तोड़कर अंदर प्रवेश किया तथा परिवादी लीला एवं बाबूलाल के साथ मारपीट की।

उन्होंने उसके घर से 31000 रुपए तथा बच्चों के स्कूल की फीस एवं नगदी सहित जेवरात लेकर चले गए। इस मामले में न्यायालय ने मुकदमा दर्ज कर आरोपियों को गिरफ्तारी वारंट के जरिए न्यायालय में तलब करने के आदेश दिए थे। इस पर आरोपियों ने उच्च न्यायालय से स्थगन आदेश प्राप्त कर लिया, जिससे निचली अदालत ने आगे कार्रवाई नहीं की। अब उच्च न्यायालय ने स्थगन आदेश समाप्त होने के बाद फिर से आरोपियों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर सभी को न्यायालय में 4 जुलाई को तलब होने के आदेश दिए है।

अब नियमित नियुक्ति तिथि से मिलेगा चयनित वेतनमान।




राजस्थान राज्य सरकार ने उच्चतम न्यायालय के निर्णय के आधार पर कार्मिकों को प्रथम नियुक्ति तिथि की बजाए नियमित नियुक्ति तिथि से चयनित वेतनमान देने के आदेश जारी किए हैं। ये मसला पिछले कई साल से न्यायालय में लंबित था। सुप्रीम कोर्ट ने 8 मई 2009 को एक आदेश जारी कर चयनित वेतनमान देने का रास्ता साफ कर दिया है। राज्य सरकार ने सोमवार को आदेश जारी किए हैं कि नियमित नियुक्ति तिथि से पूर्व का कार्यकाल अनियमित माना जाएगा। कार्मिकों की सेवा अवधि के चयनित वेतनमान की गणना अब नियमित नियुक्ति की तिथि से होगी।
शिक्षा विभाग में पंचायत राज और प्रांरभिक शिक्षा के करीब पन्द्रह हजार से अधिक शिक्षक इससे प्रभावित होंगे। सन 1985-86 से 90 के बीच नियुक्तियां जिला परिषद के अधीन होती थी। इन कर्मचारियों को जिस तिथि से नियमित माना गया है, उसी तिथि से इनको 9-18-27 का चयनित वेतनमान मिल सकता है। राज्य सरकार ने राहत देते हुए ऐसे कर्मचारियों की 30 जून 2009 तक की रिकवरी माफ कर दी है।
उसके बाद का भुगतान नियमानुसार होगा। राज्य सरकार ने ऐसे सभी कार्मिकों के वेतन स्थिरीकरण का काम एक माह में करने के आदेश जारी किए हैं। प्राथमिक शिक्षा निदेशालय के मुख्य लेखाधिकारी सुरेश कुमार वर्मा ने बताया कि अभियान चलाकर ऐसे कार्मिकों का वेतन स्थिरीकरण किया जाएगा। एक जुलाई से अतिरिक्त भुगतान नहीं किया जाएगा और इस दौरान जो अतिरिक्त भुगतान हो गया है, उसकी वसूली नहीं की जाएगी।

Monday, June 29, 2009

झूठी गवाही देने वाले को कारावास ।


न्यायालय में मारपीट के मामले में गवाही देकर मुकर जाने वाले गवाह को दोषी करार देते हुए न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम वर्ग शहर उत्तर उदयपुर की पीठासीन अधिकारी अभिलाषा शर्मा ने तीन वर्ष के कारावास की सजा सुनाई। 
प्रकरण के अनुसार सिविल न्यायाधीश (क.ख.) एवं अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट वल्लभनगर के पीठासीन अधिकारी इदुद्दीन ने खेरोदा निवासी ओमप्रकाश पुत्र रतनलाल मेघवाल के खिलाफ भादसं की धारा 193 के अपराध में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में परिवाद पेश किया। परिवाद में बताया कि सरकार बनाम शंकरलाल प्रकरण संख्या 291/96, भादसं की धारा 427, 323 में गवाह ओमप्रकाश ने 9 सितंबर 1996 में सवा, लक्ष्मीचंद, शंकर, रमेशचंद्र, मांगीलाल द्वारा बदामीबाई के साथ 28 जनवरी, 1996 को मारपीट करने की दफा 202 जाब्ता फौजदारी का हलफनामा बयान इस अदालत में दिया। 25 सितंबर 1998 को ओमप्रकाश ने अदालत ने हलफनामा बयान दिया कि सवा, लक्ष्मीचंद, रमेशचंद्र, मांगीलाल ने खड्डे के विवाद को लेकर बदामीबाई के साथ कोई मारपीट नहीं की। इस प्रकार गवाह पूर्व में हुए बयान से बिलकुल मुकर गया। अदालत द्वारा सवाल पूछने पर गवाह ने जाहिर किया कि 9 सितंबर, 96 को जो उसने बयान लिखाया वह गलत है। अदालत ने झूठी शहादत अदा कर अलादत को गुमराह करने का प्रयास किया। अदालत ने इस मामले में दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद पीठासीन अधिकारी अभिलाषा शर्मा ने दिए अपने फैसले में लिखा कि न्यायालय के समक्ष मिथ्या साक्ष्य दिया जाने का अपराध संदेह से परे प्रामाणित हुआ है। न्यायालय के समक्ष यदि कोई व्यक्ति जो सत्य की घोषणा करने के लिए आबद्ध होते हुए साक्ष्य ऐसा कथन करता है जो मिथ्या हो, तो इस प्रकार का अपराध एक बहुत ही गंभीर अपराध है और इस बात का कोई महत्व नहीं है कि अभियुक्त ने इस प्रकार के मिथ्या कथन धारा 427, 323 भादसं के अपराध में दिए अथवा अन्य किसी अपराध में न्यायालय के समक्ष शपथ पत्र पर सत्य कथन करने के लिए आबद्ध होते हुए भी यदि कोई व्यक्ति जान बूझकर मिथ्या कथन करता है तो यह एक गंभीर अपराध है और ऐसे अपराधों में परिविक्षा का लाभ दियाजाता है तो इस प्रकार के मिथ्या साक्ष्य देने वाले गवाहों के हौंसलों में वृद्धि होगी। ऐसी स्थिति में परिविक्षा का लाभ दिया जाना उचित प्रतीत नहीं होता है। अपराधी ओमप्रकाश को भादसं की धारा 193 में 3 वर्ष के कारावास और एक हजार रूपए के जुर्माने से दंडित किया।

विधि आयोग स्थाई संविधान पीठ के पक्ष में


विधि आयोग ने संवैधानिक मामलों के निपटारे के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक स्थाई संविधान पीठ बनाने की वकालत की है। विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ए आर लक्ष्मणन ने बताया कि शीर्ष कोर्ट में लंबित संवैधानिक मामलों की बढ़ती संख्या की वजह से स्थाई संविधान पीठ की जरूरत बढ़ गई है। लक्ष्मणन ने कहा कि न्यायिक सुधारों के मद्देनजर आयोग की यह राय भी है कि राज्यों के हाईकोर्ट के फैसलों के खिलाफ दायर की जाने वाली सभी अपीलों की सुनवाई के लिए देश के चारों हिस्सों में 'पृथक पीठ' बनाई जानी चाहिए। 

उन्होंने बताया कि 'पृथक पीठ' को सुप्रीम कोर्ट के क्षेत्राधिकार के अतंर्गत पड़ने वाले मामलों की सुनवाई का अधिकार होगा। ऐसे कदमों से मुकदमे में फंसे हुए लोगों को फायदा होगा। लक्ष्मणन ने कहा कि तीन जुलाई को विधि आयोग की होने वाली बैठक में विचार के लिए यह एक अहम मुद्दा होगा। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में खास तौर पर संवैधानिक मुद्दों की सुनवाई के लिए स्थाई संविधान पीठ बनाने का विचार एक अच्छा सुझाव है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में ऐसे करीब 50 मामले लंबित हैं। संवैधानिक मसलों की सुनवाई में लगने वाले लंबे वक्त को ध्यान में रखते हुए लक्ष्मणन ने कहा कि प्रस्तावित संविधान पीठ से मुकदमे में फंसे हुए लोगों को उनके मामलों के जल्द निपटान में मदद मिलेगी। उन्होंने बताया कि यह पीठ केवल संवैधानिक मुद्दे देखेगी जिसमें राष्ट्रपति द्वारा विचारार्थ भेजे गए मामले भी शामिल होंगे। इसमें वो मामले भी हैं जिसमें दो या दो से अधिक राज्य एक पक्ष हों।

Sunday, June 28, 2009

दो तिहाई न्यायिक अधिकारी गायब थे



राजस्थान हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश आरसी गांधी ने शनिवार सुबह जिला व सेशन न्यायालय जयपुर शहर व जिला व सेशन न्यायालय जयपुर का आकस्मिक निरीक्षण किया। इसमें दो तिहाई न्यायिक अधिकारी-कर्मचारी गैर हाजिर थे। रजिस्ट्रार (सतर्कता) अनिल मिश्रा भी कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के साथ थे।

निरीक्षण के लिए दो दल बनाए गए। पहले दल में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश थे, जबकि दूसरे में रजिस्ट्रार (सतर्कता) अनिल मिश्रा थे। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सुबह करीब 7 बजे जिला व सेशन न्यायालय जयपुर पहुंचे। जिला न्यायालय में जिला न्यायाधीश ताराचंद सोनी सहित तीन न्यायिक अधिकारी ही मिले। वहां पर उन्होंने प्रत्येक कोर्ट का निरीक्षण किया। जो अधिकारी चैंबर या डेस्क पर नहीं मिले, उनके नाम उन्होंने एक रजिस्टर में लिखने के निर्देश दिए।

दूसरी ओर रजिस्ट्रार (सतर्कता) अनिल मिश्रा जिला एवं सेशन न्यायालय जयपुर शहर में गए। उन्होंने प्रत्येक कोर्ट का निरीक्षण किया और समय पर नहीं आने वाले अधिकारियों के नाम एक अन्य रजिस्टर में अंकित कराए। यहां पर कुछ अधिकारी व कर्मचारी ही मिले। बाद में कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश भी जिला न्यायालय का निरीक्षण कर सेशन न्यायालय जयपुर शहर पंहुचे।

उन्होंने वहां पर सीजेएम व एडीजे कोर्ट का निरीक्षण किया व रजिस्ट्रार (सतर्कता) को कुछ आवश्यक निर्देश देकर 7.40 बजे वहां से रवाना हो गए। रजिस्ट्रार (सतर्कता) ने कर्मचारी उपस्थिति रजिस्टरों को मुंसिफ कार्यालय में मंगाया और उनका निरीक्षण किया। रजिस्ट्रार (सतर्कता) कोर्ट से 8.15 बजे रवाना हो गए।

निरीक्षण के दौरान अनुपस्थित पाए गए अधिकारियों व कर्मचारियों को हाईकोर्ट प्रशासन की ओर से नोटिस भेजे जा सकते हैं। पहले भी करीब दो साल पहले मुख्य न्यायाधीश एसएन झा ने हाई कोर्ट की जोधपुर मुख्यपीठ का निरीक्षण किया था और गैर हाजिर पाए गए न्यायिक अधिकारियों को समय पर आने के लिए नोटिस जारी किए थे।

कानून में बदलाव की जरूरत:राष्ट्रपति प्रतिभा



अदालतों में मामलों के लंबित पड़े रहने पर चिंता जाहिर करते हुए राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने आज पुराने कानूनों में सुधार तथा न्यायिक संस्थानों को मजबूती प्रदान किए जाने की जरूरत पर बल दिया। 
ठाणे जिले के उत्तान में महाराष्ट्र ज्यूडिशियल एकाडमी का उद्घाटन करते हुए पाटिल ने कहा न्यायपालिका को जिन प्रमुख मुद्दों से दोचार होना पड़ रहा है उनमें से मामलों का लंबे समय से लंबित पड़े रहना है। मामलों को अंजाम तक पहुंचने में अनावश्यक रूप से लंबा समय लगता है और अपने मामलों में फैसलों के बारे में अनिश्चित होने के कारण वादी सामान्य जीवन जीने में सक्षम नहीं हो पाता। 
उन्होंने कहा कि इस मुद्दे का समाधान निकालना होगा। राष्ट्रपति ने कहा इसमें पुराने और अप्रासंगिक कानूनों में सुधार करना तथा न्यायिक पालिका के संस्थागत पहलू को मजबूती प्रदान करना एक उपाय हो सकता है। 
राष्ट्रपति ने कहा न्याय तक पहुंच काफी महंगी हो गयी है,चाहे यह अदालती फीस हो या वकीलों की फीस। इससे न्याय तक समाज के गरीब तबके की पहुंच को लेकर चिंता पैदा हो रही है। 
इस समारोह में भारत के प्रधान न्यायाधीश के जी बालाकृष्णन बंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश स्वतंत्र कुमार राज्यपाल एस सी जमीर तथा मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण भी मौजूद थे। 
अकादमी निचली अदालतों में नियुक्त होने वाले नवनियुक्त जजों को प्रशिक्षण देगी।

धारा 377 खत्म करने के पक्ष में चिदंबरम,मोइली!




केंद्र भारतीय दंड संहिता की उस विवादास्पद धारा को खत्म करने पर विचार कर रहा है जिसमें समलैंगिकता को आपराधिक कृत्य माना गया है। माना जाता है कि चिदंबरम और कानून मंत्री वीरप्पा मोइली धारा 377 को खत्म किए जाने के पक्ष में हैं लेकिन स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद के जवाब की प्रतीक्षा की जा रही है।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को खत्म करने पर आम सहमति बनाने के लिए केंद्र जल्द ही एक बैठक करेगा।
सूत्रों ने कहा कि केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम की अध्यक्षता वाली बैठक में भादंसं की विवादास्पद धारा को खत्म किए जाने पर विचार किया जाएगा जो समान लिंग के लोगों के बीच सेक्स संबंधों को प्रतिबंधित करती है।
चिदंबरम और कानून मंत्री वीरप्पा मोइली के बारे में माना जाता है कि वे धारा 377 को खत्म किए जाने के पक्ष में हैं लेकिन स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद के जवाब की प्रतीक्षा की जा रही है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने गृह और स्वास्थ्य मंत्रियों से मुद्दे पर मतभेदों के समाधान और दिल्ली उच्च न्यायालय को विस्तृत जवाब देने को कहा था जो कानून के तहत गिरफ्तारियों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा है। पूर्व गृहमंत्री शिवराज पाटिल और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अंबुमणि रामदास की अदालत के समक्ष इस मुद्दे पर अलग-अलग राय थी। मामले को गंभीर करार देते हुए उच्च न्यायालय ने मामले को जल्द से जल्द सुलझाने के निर्देश दिए हैं।
समलैंगिक काफी समय से धारा 377 को खत्म किए जाने की मांग करते रहे हैं तो वहीं समाज में उनकी इस मांग का विरोध भी होता रहा है।

Thursday, June 25, 2009

कसाब के वकील की जज के खिलाफ टिप्पणी से जज नाराज।

मुंबई आतंकी हमले की सुनवाई कर रहे विशेष अदालत के जज एम एल तहलियानी बुधवार को बचाव पक्ष के वकील पर भड़क उठे। पाकिस्तानी हमलावर अजमल अमीर इमान उर्फ अजमल कसाब की पैरवी कर रहे अब्बास काजमी ने आरोप लगाया था कि जज तहलियानी अभियोजन पक्ष [प्रासीक्यूशन] की मदद कर रहे हैं। 

इस टिप्पणी से नाराज जज ने कहा कि पक्षपाती होने के बजाय वह सुनवाई से हटना पसंद करेंगे। उन्होंने काजमी से कहा, 'आप काफी गंभीर आरोप लगा रहे हैं। मैं आहत महसूस कर रहा हूं। मैं इस केस में काफी मेहनत कर रहा हूं और देर रात तक बैठता हूं। मैं ऐसे आरोपों को बर्दाश्त नहीं करूंगा।' 

उन्होंने अभियोजन पक्ष के वकील उज्ज्वल निकम से कहा कि अदालत को सौंपी गई फोरेंसिक रिपोर्ट दो हिस्सों में बांट दी जाए। एक रिपोर्ट उनकी हो जिनके शरीर में अजमल द्वारा चलाई गई गोली पाई गई। दूसरे में उन लोगों की रिपोर्ट हो जिनके शरीर में गोली नहीं पाई गई। इसके बाद काजमी ने यह टिप्पणी की। हालांकि बाद में काजमी ने माफी मांग ली और कहा कि उनसे समझने में गलती हुई।

25 दिन में सास की उम्र 10 वर्ष बढ़ी।

अमृतसर में दहेज उत्पीड़न मामले में नामजद एक ऐसी महिला का नाम सामने आया है, जिसकी उम्र सिर्फ 25 दिनों में ही 10 वर्ष बढ़ गई है। इसे चूक कहा जाए या सीनियर सिटीजनशिप का फायदा लेने का प्रयास? यह तो समय ही बताएगा। गोकल नगर, मजीठा रोड निवासी समिता शर्मा पुत्री स्व. प्रेम कुमार की शिकायत पर थाना सदर में 13 जून 2009 को पति, सास-ससुर सहित ससुराल पक्ष के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज है। 
समिता का कहना है कि 6 मार्च 2007 को उसकी शादी खंडवाला छेहर्टा निवासी अमन पुत्र सुरिन्द्र कुमार के साथ हुई थी। शादी के बाद उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाने लगा। अप्रैल, 2008 में वह तीन महीने की गर्भवती थी तो उसे घर से निकाल दिया गया। 19 अक्टूबर 2008 को उसने एक बच्चे को जन्म दिया, किंतु उसकी कुछ ही समय बाद मौत हो गई। इसके बाद उसका पति गलती मानकर समझौता करके साथ ले गया। कुछ दिन बाद नौकरी करने की बात कह दिल्ली ले गया, जहां विवश होकर उसे भी नौकरी करनी पड़ी। इसके बावजूद ससुराल वालों का दहेज की मांग कम नहीं हुई। उसकी शिकायत में आरोपी बनाए गए ननद व ननदोई को स्थानीय एडिशनल सैशन जज एनके गौड़ की अदालत ने 29 जून तक अंतरिम जमानत दे दी। 
अब ससुर सुरिंदर कुमार, सास राज रानी शर्मा और देवर रघुराज ने भी अग्रिम जमानत याचिका दायर की है। जिसमें ससुर ने अपनी उम्र 70 और सास राजरानी ने 65 वर्ष बताई है। बुधवार को जमानत याचिका पर सुनवाई शुरू हुई तो पीड़ित समिता शर्मा की तरफ से सरकारी वकील के साथ साथ एडवोकेट मुख्तार सिंह वेरका भी पेश हो गए। उनका कहना था कि राजरानी ने दिल्ली स्थित एम्स में दांतों का इलाज करवाते समय 3 मई 2009 को अपनी उम्र 55 वर्ष लिखवाई थी, जबकि अग्रिम जमानत याचिका में 65 वर्ष बताई है। उन्होंने आशंका जताई कि यह सीनियर सिटीजनशिप का फायदा लेने का प्रयास हो सकता है। अदालत ने थाना सदर की पुलिस को 29 जून को अदालत में रिकार्ड पेश करने को कहा है।

मानवाधिकार आयोग पर लगा 1,00,000 रुपए का जुर्माना!

दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक आरक्षक के साथ ‘मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन’ के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) को फटकार लगाते हए उस पर 1,00,000 रुपए का जुर्माना लगाया है। राजेंद्र प्रसाद नाम का यह आरक्षक आयोग में कार्यरत था लेकिन 10 वर्ष की सेवाओं के बाद उसे अचानक कार्यमुक्त कर दिया गया। हलांकि प्रसाद आयोग के कर्मचारी के रूप में नियमित होना चाहते थे। प्रसाद की याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने हाल ही में अपना फैसला सुनाया।

न्यायमूर्ति कैलाश गंभीर ने अपने निर्णय में कहा, “याचिकाकर्ता के मानिवाधिकारों का घोर उल्लंघन हुआ है। उसकी 10 वर्षों की सेवा के बाद उसे यह कहकर हटा दिया गया कि उसकी नियुक्ति भर्ती नियमों से हटकर थी”।न्यायालय ने कहा, “आयोग याचिकाकर्ता के मानवाधिकारों की रक्षा करने में नाकाम रहा है और ऐसे में उस पर 1,00,000 रुपए का जुर्माना लगाया जाता है”। न्यायधीश ने कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं कि मानवाधिकार आयोग जैसी संस्था से यह अपेक्षा नहीं जा सकती थी जिसका काम लोगों के मानवाधिकारों का संरक्षण करना है”।उन्होंने कहा कि आयोग अब तक मानवाधिकारों के क्रियान्वयन में अहम प्रभावशाली भूमिका निभाता आया है लेकिन वह खुद से जुड़े एक मामले पर गौर नहीं कर सका।

पाकिस्तान में सरबजीत की याचिका खारिज, भारत का मानवीय रूख अपनाने का आग्रह।

अदालत में वकील के उपस्थित न हो पाने के कारण पाकिस्तानी सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को भारतीय कैदी सरबजीत सिंह की फांसी की सजा पर विचार करने संबंधी दया याचिका खारिज कर दी। लेकिन भारत को उम्मीद है कि पाकिस्तान इस मामले में सहानुभूतिपूर्ण व मानवीय दृष्टिकोण अपनाएगा। सरबजीत पर वर्ष 1990 में लाहौर में चार बम धमाकों को अंजाम देने का आरोप है। इन धमाकों में 14 लोगों की मौत हुई थी। इस घटना के बाद सरबजीत को 1991 में फांसी की सजा सुनाई गई थी। तभी से वह पाकिस्तान के कोट लखपत जेल में बंद है। अदालत का यह फैसला न्यायमूर्ति रजा फैयाज के नेतृत्व वाली सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने सुनाया। फैसला आने के साथ ही भारत में पंजाब स्थित भिकिविंड गांव में सरबजीत के परिवार में मायूसी छा गई। 
इधर, नई दिल्ली में विदेश मंत्री एस.एम.कृष्णा ने स्वीकार किया कि सरबजीत का मामला भारत में लोगों की भावनाओं से जुड़ गया है। विदेश मंत्री ने कहा कि भारत ने सरबजीत सिंह को मृत्युदंड से मुक्त करने के लिए पाकिस्तान से लगातार अपील की है और आगे भी इसे जारी रखेगा। उन्होंने कहा, "हमने पाकिस्तान सरकार से लगातार कहा है कि सरबजीत के मामले में वह सहानुभूतिपूर्ण व मानवीय दृष्टिकोण अपनाए। हमें उम्मीद है कि पाकिस्तान ऐसा कर पाने में सक्षम होगा।"
उधर, सरबजीत के वकील ने कहा कि वह अदालत में इसलिए उपस्थित नहीं हो सका, क्योंकि उसे पंजाब प्रांत में एक कानून अधिकारी के रूप में नियुक्त किया जा चुका है। उसने अपने एक साथी वकील से अदालत में उपस्थित होने के लिए कहा था लेकिन वह उपस्थित नहीं हो सका। इधर भिकिविंड में सरबजीत की पत्नी ने आरोप लगाया है कि पाकिस्तानी वकील ने लाखों रुपये की मांग की थी। लेकिन सरबजीत का परिवार इतनी कीमत अदा करने में समर्थ नहीं हो पाया।

पुलिस नहीं बना सकती हेलमेट का चालान।

हेलमेट मामले को लेकर उदयपुर न्यायालय में चल रहे प्रकरण में बुधवार को एक सब इंस्पेक्टर (यातायात) द्वारा दिए गए बयान से एकबारगी यह साफ हो गया है कि पुलिस को हेलमेट के सम्बन्ध में चालान बनाने का कोई अधिकार नहीं है।
एडवोकेट सुन्दरलाल माण्डावत ने बताया कि हेलमेट को लेकर न्यायालय में चल रहे हेमेन्द्र बनाम राज्य सरकार प्रकरण में बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान यातायात पुलिस के सब इंस्पेक्टर रमेश कविया ने अपने बयान में यह स्वीकार किया कि इस्तगासा बनाना, चालान बनाना व कम्पाउडिंग राशि लेना तीनों ही अलग-अलग होकर राज्य सरकार द्वारा जो अधिसूचना जारी की गई उसमें मात्र कम्पाउण्ड के अधिकार प्रदान किये गए है। 
माण्डावत ने बताया कि कविया ने बयान में यह स्वीकार भी किया कि राज्य सरकार ने २४ फरवरी २००९ को जो अधिसूचना जारी की उसमें पुलिस को हेलमेट के मामले में चालान व इस्तगासा प्रस्तुत करने अधिकृत नहीं किया गया।
 कविया ने यह भी स्वीकार किया कि हेलमेट नहीं पहनना धारा १२९ के तहत अपराध है। मगर राज्य सरकार ने २४ फरवरी २००९ को जो अधिसूचना जारी की उसमें धारा १२९ को शामिल नहीं किया गया है।
मोटर व्हीकल एक्ट की धारा १८४ के मामले में सब इंस्पेक्टर कविया ने इस बात को स्वीकार किया कि मोटर व्हीकल एक्ट की इस धारा में केन्द्र सरकार द्वारा संशोधन किया या नहीं मुझे इसकी जानकारी नहीं है।
एडवोकेट माण्डावत ने बताया कि कविया ने आज कोर्ट में जो बयान दिए उससे साफ हो जाता है कि हेलमेट को लेकर पुलिस को चालान बनाने व इस्तगासा बनाने कोई अधिकार नहीं है तथा उदयपुर पुलिस हेलमेट को लेकर लोगों से कम्पाउंडिंग राशि ले रही है वह भी गलत है।

Wednesday, June 24, 2009

कोर्ट ने पति को सुझाया गांधीगीरी का स्टाइल ।

तुर्की की एक अदालत ने घरेलू हिंसा के आरोपी एक शख्स को आदेश दिया है कि वह अपनी पत्नी को फूल भेंट करे। दियारबाकिर शहर का रहने वाला हैरेतिन सेटिनटास अपनी दो बीवियों और 10 साल के एक बेटे के साथ रहता है। उस पर आरोप है कि वह अपनी एक बीवी की लगातार पिटाई करता रहा है। 
मामले की सुनवाई करने वाले जज ने हैरेतिन को पांच महीने के प्रोबेशन पर इस शर्त पर छोड़ा है कि वह हफ्ते में एकबार अपनी पत्नी को फूलों का गुलदस्ता देगा और बच्चों की परवरिश से जुड़ी पांच किताबें पढ़ेगा। सुनवाई के दौरान हैरेतिन ने कहा, मुझे अपनी पहली पत्नी का बर्थडे याद नहीं है, मुझे हमारी शादी का दिन भी याद नहीं है। मैंने उसे कभी फूल भी नहीं दिए हैं। मुमकिन है कि थकान में मैंने अपने किसी बच्चे की भी पिटाई कर दी हो।

ऑस्ट्रेलिया गए छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करे सरकार - सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है जिसमे कहा गया है कि सरकार ऑस्ट्रेलिया और कनाडा की सरकारों के साथ मिलकर वहां रह रहे भारतीय छात्रों की सुरक्षा को सुनिश्चित करे.
सुप्रीम कोर्ट ने विदेश मंत्रालय एवं मानव संसाधन विकास मंत्रालय को नोटिस जारी किया और कहा कि सरकार को इन देशों के साथ बातचीत करके इस समस्या का कोई स्थायी हल निकालना चाहिए.
कोर्ट ने माना कि ऑस्ट्रेलिया में पढ रहे 96,000 भारतीय छात्रों की सुरक्षा का ध्यान रखना सरकार की जिम्मेदारी है. 

गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए- एम वीरप्पा मोइली

गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कोई प्रणाली स्थापित किए जाने का सुप्रीम कोर्ट द्वारा समर्थन किए जाने की पृष्ठभूमि में विधि मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने मंगलवार को कहा कि इसे आपराधिक न्याय प्रणाली का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। 

मोइली ने कहा कि लोक व्यवस्था पर रिपार्ट में मैंने गवाह की सुरक्षा को जरूरी बताया है और हमें आपराधिक न्याय प्रणाली सुधार में इसे अनिवार्य बना देना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस संबंध में कानून मंत्रालय गृह मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए किसी भी प्रस्ताव पर समीक्षा करने के लिए तत्पर रहेगा। 

गौरतलब है कि 2007 में जमा की गई व्यवस्था रिपोर्ट में गवाह की पहचान को गुप्त रखने पर सांविधिक कार्यक्रम चलाने और विशेष मामलों में गवाह की सुरक्षा को सुनिश्चित करने की बात कही गई थी। इसमें संक्षिप्त सुनवाई में दिए बयान को बदल कर बाद में झूठी गवाही देने के दोषियों के खिलाफ भी कार्रवाई करने की बात कही गई थी। 

अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रभावशाली लोगों के मामलों में जो सामान्य अनुभव मिला है वह यह है कि गवाह डर और दबाव के कारण आगे नहीं आना चाहता। हमारे देश में आपराधिक न्याय प्रशासन को यथार्थवादी बनाने के लिए यह गवाह की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जरूरत को चित्रित करता है।

22 पाकिस्तानियों के खिलाफ गैर जमानती वारंट ।

मुंबई पर हुए हमले की जांच कर रही विशेष अदालत ने पाकिस्तान के 22 आरोपियों के खिलाफ़ आज गैर जमानती वारंट जारी किया. विशेष अदालत के न्यायाधीश एमएल तहलियानी ने इस मामले में जांच कर रहे मुंबई पुलिस आयुक्त, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) निदेशक एवं अन्य जांच अधिकारियो को संबोधित करते हुए आज वारंट जारी किया. अदालत ने सभी आरोपियों को अदालत में हाजिर करने का आदेश दिया है. अदालत ने सिर्फ़ 22 पाकिस्तानी आरोपियों के खिलाफ़ गैर जमानती वारंट जारी किया है, जबकि पांच लोगों के बारे में जानकारी नहीं मिली है. विशेष सरकारी वकील उज्जवल निकम ने कल 35 वांछित आरोपियों में से 27 लोगों के खिलाफ़ जो कि पाकिस्तान के रहनेवाले हैं, वारंट जारी करने की अपील की थी. श्री निकम ने याचिका दाखिल कर कहा था कि सिर्फ़ 27 आरोपियों के खिलाफ़ विस्तृत जानकारी मिल सकी है. इसमें से कुछ लोगों के बारे में दूतावास से जानकारी हासिल की गयी, लेकिन कुछ लोगों का पूरा नाम नहीं पता चल सका. श्री निकम ने अदालत से आग्रह किया था कि इन आरोपियों के खिलाफ़ गैर जमानती वारंट दूतावास चैनल के जरिये भेजा जाए.आरोपियों में से कुछ प्रमुख के नाम और पते मिले हैं जिसमें जकीउर रहमन लखवी, अबू हमजा, हाफ़िज मोहम्मद सइद उर्फ़ हफ़ीज साब, जरार शाह, अबू अब्दुल रहमान, अबू उमर सइद, अबू अल कामा उर्फ़ अमजिद, अबू मुफ्ती सइद और कर्नल आर सदाउतल्लाह शामिल हैं. मुंबई में 26 नवंबर को हमले के मामले में तीन गवाहों से भी पूछताछ हुयी.

विधवा ने एक दशक बाद मिली न्याय ।

एक सरकारी कर्मचारी की विधवा ने एक दशक तक चली कानूनी लड़ाई के बाद अपने पति की सेवा से बर्खास्तगी को उच्चतम न्यायालय से गलत साबित करवाने में अंतत:सफलता पायी। 
बिहार विद्यालय परीक्षा समिति में सहायक के तौर पर काम करने वाले भृगु आश्रम प्रसाद को 1992 में सेवा से बर्खास्त किया गया। उसकी बर्खास्तगी एक न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा उसे छात्रों की अंकतालिका में कथित हेरफेर का दोषी ठहराने और दो साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाने के बाद की गयी। प्रसाद ने इस फैसले को सत्र न्यायालय में चुनौती दी लेकिन अपील की सुनवाई के दौरान ही 1998 में उसकी मृत्यु हो गयी। इसके बाद उसकी पत्नी बसंती ने कानूनी लड़ाई जारी रखी। 
सत्र न्यायालय ने 2005 में प्रसाद को बरी कर दिया। इसके बसंती ने पटना उच्च न्यायालय में एक अपील दायर कर अधिकारियों को यह निर्देश का अनुरोध किया कि मृतक को उसकी बर्खास्तगी की मूल तारीख से सभी बकाया का भुगतान किया कयोंकि उसे दोषी ठहराये जाने के फैसले को खारिज किया जा चुका है। उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश की पीठ ने याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया कि याचिका पर इतने लंबा समय बीत जाने के बाद विचार नहीं किया जा सकता। अदालत का विचार था कि प्रसाद को अपने जीवनकाल में 1992 में अपनी बर्खास्तगी को चुनौती देनी चाहिए थी। बंसती इसके बाद खंड पीठ में गयी लेकिन उसने एकल पीठ के फैसले को बरकरार रखा। इसके बाद प्रसाद की विधवा ने शीर्ष न्यायालय की शरण ली। 
शीर्ष न्यायालय ने बसंती के पक्ष को सही ठहराते हुए कहा कि सामान्य परिस्थितियों में इस तरह की पुराने अनुरोधों पर विचार नहीं किया जाता। लेकिन जब याचिकाकर्ता विलंब के लिए संतोषजनक कारण देने में सक्षम हो तो ऐसे मामलों में अदालत को याचिकाकर्ता को राहत देना ही पड़ेगा।

जेडीए में अब बिना पास एंट्री ।

जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) में पास व्यवस्था मंगलवार को समाप्त कर दी गई। अब आम आदमी दोपहर 2.30 से शाम 6 बजे तक कार्यालय दिवस पर जेडीए में आ-जा सकेंगे। जेडीए के तत्कालीन आयुक्त उमेश कुमार ने यहां छह माह पहले प्रवेश के लिए पास व्यवस्था लागू की थी। इसके तहत हर आगतुंक को पास बनवाना पड़ता था। उसके बाद ही वह संबंधित अफसर से मिल सकता था।
पिछले दिनों जोन-6 में तहसीलदार के साथ मारपीट की घटना के दौरान सामने आया कि कांग्रेस सेवादल के कार्यकर्ता बिना पास के अंदर घुसे थे। यह मामला नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल के पास भी पहुंचा। दोनों पक्षों से सुनवाई के दौरान मंत्री को जब पता चला कि जेडीए में प्रवेश से पहले पास बनवाना जरूरी है तो उन्होंने जेडीए प्रशासन को पास व्यवस्था बंद करने के निर्देश दिए। इसके बाद मंगलवार को इस संबंध में आदेश जारी कर दिए गए। 
जेडीए की अतिरिक्त आयुक्त (प्रशासन) शुचि शर्मा ने बताया कि आगतुंकों को ढाई से छह बजे के बीच पास बनवाने की जरूरत नहीं है। यदि सुबह साढ़े नौ बजे से दोपहर ढाई बजे के बीच कोई मुख्यालय भवन में अपने काम से आता है तो उसे संबंधित अधिकारी की स्वीकृति के बाद ही अंदर प्रवेश दिया जाएगा।

दहेज हत्या के जुर्म में पिता-पुत्र को सजा ।

पाली अपर जिला एवं सेशन न्यायालय (फास्ट ट्रेक संख्या 2) के न्यायाधीश मदन गोपाल व्यास ने हेमावास गांव के बहुचर्चित भाग्यवती कंवर दहेज हत्या के मामले में आरोपी पिता-पुत्र को दोषी ठहराते हुए मंगलवार को 10 साल की सजा सुनाई है। 
मामले में भाग्यवती की सास भी आरोपी है, लेकिन पुलिस उसे अब तक गिरफ्तार नहीं कर पाई है। अदालत ने आरोपी सास के खिलाफ सुनवाई व कार्रवाई पेडिंग रखते हुए अपर लोक अभियोजक गणपतसिंह की दलील स्वीकार कर मंगलवार को अपना फैसला सुनाया। 
अभियोजन के अनुसार जोधपुर निवासी भंवरसिंह राजपूत ने 9 मई, 07 को सदर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि उसकी पुत्री भाग्यवती कंवर (21) की शादी हेमावास गांव के प्रदीपसिंह राजपूत पुत्र देवीसिंह के साथ हुई थी। रिपोर्ट में आरोप था कि और अधिक दहेज की मांग को लेकर ससुराल पक्ष के लोग उसकी पुत्री को अक्सर प्रताड़ित करते थे। 9 मई, 07 को उसकी पुत्री की मौत हो गई। 
आरोप था कि दहेज प्रताड़ना से तंग आकर उसकी पुत्री ने आत्महत्या की। पुलिस ने इस मामले में उसके पति प्रदीपसिंह व ससुर देवीसिंह को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन आरोपी सास अनोप कंवर पुलिस के हाथ नहीं लग पाई। पुलिस ने आरोपी पिता-पुत्र के खिलाफ कोर्ट में चालान पेश कर दिया। मंगलवार को दोनों पक्ष के अधिवक्ताओं की बहस सुनने के बाद न्यायालय ने आरोपी सास के खिलाफ कार्रवाई पेडिंग रखते हुए दोनों आरोपी पिता-पुत्र को दहेज हत्या के मामले में 10-10 साल की सजा सुनाई।

पीठासीन अधिकारी के खिलाफ वकीलों ने मोर्चा खोला

चित्तौडग़ढ मोटरयान दुर्घटना दावा अधिकरण के पीठासीन अधिकारी के खिलाफ कई अधिवक्ताओं ने न केवल मोर्चा खोल दिया बल्कि पीठासीन अधिकारी के खिलाफ आन्दोलन चलाने के लिए एक संघर्ष समिति का गठन कर बुधवार को न्यायालय के बाहर काली पट्टी बांध कर इस अधिकरण के न्यायिक कार्य का बहिष्कार करने का भी एलान किया है।
इस संबंध में चित्तौडग़ढ़ के लगभग १०० अधिवक्ताओं ने अपने हस्ताक्षर युक्त ज्ञापन में बताया कि चित्तौडग़ढ़ मोटर यान दुर्घटना दावा अधिकरण के पीठासीन अधिकारी बलजीत कौर मठारु के क्रियाकलापों को ले कर अधिवक्ताओं में भारी रोष व्याप्त है। अधिवक्ताओं ने इस संबंध में सर्वेच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति, रजिस्ट्रार के साथ ही अन्य कई जनों को प्रेषित ज्ञापन में बताया कि इस अधिकरण में लगभग एक हजार प्रकरण लम्बित चल रहे है। अधिवक्ताओं ने उक्त न्यायालय में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए बताया कि कई मामलों को बिना कोई आदेश पारित किए अन्तरिम राहत के प्रकरणों का निस्तारण कर दिया गया, जबकि इस मामलें में न तो कोई आदेश परित किया गया और न कोई राहत दी गई है।
अधिवक्ताओं ने पीठासीन अधिकारी के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए उनके खिलाफ आन्दोलन चलाने का भी निर्णय लेते हुए संघर्ष समिति का गठन किया है। समिति में चांदमल गर्ग को संयोजक एवं रजनीश पितलिया, नरेन्द्र पोखरना, मुबारिक हुसैन, महेन्द्र पोखरना आदि को सदस्यों के रुप में शामिल किया गया है। इसी तरह बुधवार को प्रात: ८ बजे से न्यायालय के बाहर काली पट्टी बांध कर इस अधिकरण के न्यायायिक कार्ये का बहिष्कार करने की घोषणा करते हुए बताया कि जब तक उक्त पीठासीन अधिकारी का तबादला नहीं हो जाता है, तब तक यह आन्दोलन जारी रहेगा।

Tuesday, June 23, 2009

बिल्ली के रास्ता काटने पर रूके तो जुर्माना.

शकुन-अपशकुन की बातें केवल भारत में ही नहीं होतीं. विदेशों में भी लोग इन पर यकीन करते हैं. अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के शहर द हेग में रहनेवाले सीस शूरमांस को बिल्ली के रास्ता काटने को अपशकुन मानने का खामियाजा भुगतना पड़ा है. वह सड़क पर दो मिनट रूके और उनपर 75 यूरो (4800 रुपये) का जुर्माना ठोंक दिया गया. अपशकुन मानना सीस के लिए महंगा साबित हआ. पुलिस विभाग के अधिकारियों ने बताया कि शूरमांस ग्रीन सिग्नल होने के बावजूद सड़क पर दो मिनट इसलिए रूके रहे क्योंकि एक बिल्ली ने उनका रास्ता काट दिया था. इससे उनके पीछे लगी भीड़ भाड़वाली ट्रैफ़िक और उससे जूझ रहे लोगों को मुसीबत का सामना करना पड़ा. इससे हुयी लोगों की परेशानी की भरपायी शूरमांस को जुर्माना भर कर करनी पड़ी.

रंगीन मिजाज संत लाल साईं गए जेल ।

रंगीन मिजाजी के आरोप में फंसे संत लाल साईं को भोपाल जिला न्यायालय ने सात जुलाई तक के लिए न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया है। संत लाल साईं ने सोमवार को भोपाल के महिला थाने में आत्म समर्पण कर दिया। लाल साईं पिछले आठ माह से फरार चल रहा था। 

लाल कुमार बूलचन्दानी ने संत लाल साईं बनकर भोपाल के बैरागढ़ क्षेत्र में टेम्पल ऑफ सम्बोधि नाम से एक आश्रम बनाया था। जहां वह नाच गाने के साथ आध्यात्म की शिक्षा देता था। उस पर कुछ शिष्याओं के दैहिक शोषण के आरोप लगे और एक लड़की ने तो महिला थाने में बलात्कार का मामला भी दर्ज करा दिया। लाल साईं की पुलिस को पिछले आठ माह से तलाश थी। उस पर पांच हजार का इनाम भी घोषित कर दिया गया था।

रिश्वत के आरोपी पूर्व थानाधिकारी ने किया समर्पण ।

रिश्वत के आरोप में फरार चल रहे माण्डवा, उदयपुर के निलंबित थानाधिकारी ने सोमवार को एसीडी कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने आरोपी को गिरफ्तार कर दो दिन के रिमांड पर लिया।
ब्यूरो के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक दिलीप सिंह चुण्डावत ने बताया कि १३ अप्रेल को माण्डवा थाना क्षेत्र के आमली घाटी निवासी पूनिया पुत्र काला से भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में माण्डवा थाना के तत्कालीन थानाधिकारी हेमाराम बामनिया के खिलाफ पुलिस जांच में रियायत बरतने के लिए रिश्वत मांगने की शिकायत दर्ज करवाई थी। जिस पर ब्यूरो के उपाधीक्षक विजेन्द्र कुमार व्यास ने रिश्वत की मांग का सत्यापन कराया था।
सत्यापन के दौरान हेमाराम बामनिया ने ब्यूरो कार्रवाई पर शक हो जाने से प्रार्थी के तलाशी लेकर जेब में रखे सरकारी मिनी टेप रिकार्डर मय माइक्रो कैसेट तथा २४० रूपए छीन लिए । १४ अप्रेल को ब्यूरो के उपाधीक्षक विजेन्द्र कुमार व्यास ने मय जाप्ता माण्डवा पहुंच कर स्वतंत्र गवाहों के बयान लिए। ब्यूरो की कार्यवाही की भनक पाकर आरोपी थानाधिकारी हेमाराम बामनिया थाना परिसर बने सरकारी आवास से भाग गया। ब्यूरो ने आरोपी की तलाश के लिए जिले में अनेक जगहों पर छापे मारे परंतु आरोपी हेमाराम बामनिया हाथ नहीं लगा ।
आखिरकार सोमवार को हेमाराम ने ब्यूरो के न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया। न्यायालय ने ब्यूरो को सूचना दी। ब्यूरो के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक दिलीप सिंह चुण्डावत ने न्यायालय से पूछताछ के लिए २ दिनों के लिए पुलिस रिमांड पर ले लिया ।

राज्य सरकार ने चोपड़ा आयोग की जांच की समय सीमा तीन माह बढ़ाई।

राज्य सरकार ने राज्यपाल की अनुमति से मेहरानगढ़ दुखांतिका की जांच की समय सीमा तीन माह बढ़ा दी है। जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग में पिछले वर्ष नवरात्रा के दौरान हुई त्रासदी के कारणों की जांच के बने जस्टिस चोपड़ा आयोग से 30 जून तक रिपोर्ट मांगी गई थी। अब सरकार ने इसे अंतिम रूप से बढ़ाकर 30 सितंबर कर दिया है। 
गृह विभाग के उपशासन (सुरक्षा) सचिव घनेंद्र भान चतुर्वेदी की ओर से जारी सूचना के अनुसार आयोग को 30 सितंबर तक आवश्यक रूप से रिपोर्ट प्रस्तुत करनी है। 30 सितंबर 2008 को नवरात्रा के दौरान जोधपुर के मेहरानगढ़ स्थित दुर्ग में चामुंडा माता मंदिर में भगदड़ मच गई थी। इस भगदड़ में सैकडों की संख्या में लोगों की जान चली गई थी। 
सरकार ने भगदड़ के कारणों एवं अन्य पहलुओं पर की जांच के लिए आयोग का गठन किया था। 2 अक्टूबर 2008 को सरकार ने राजस्थान उच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायाधिपति जसराज चोपड़ा के अधीन आयोग को जांच का जिम्मा सौंपा था। आयोग को जांच पूरी कर 30 जून तक रिपोर्ट राज्य सरकार के समक्ष प्रस्तुत की जानी थी।

Monday, June 22, 2009

वाहन दुर्घटना बीमा दावों के संबंध में सर्वेयर की ओर से निर्धारित मुआवजा बाध्यकारी नहीं ।

सुप्रीमकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में  कहा है कि वाहन दुर्घटना बीमा दावों के संबंध में आधिकारिक सर्वेयर की ओर से निर्धारित मुआवजा बीमित व्यक्ति या बीमा कंपनियों पर बाध्यकारी नहीं है। शीर्ष अदालत ने गैर-गंभीर मुकदमों में लोगों का धन जाया करने के मामले में सार्वजनिक क्षेत्र के न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी को भी लताड़ लगाई। 
न्यायमूर्ति डी के जैन और न्यायमूर्ति आर एम लोढ़ा ने फैसले में कहा, 'अधिकृत सर्वेयर की रिपोर्ट बीमा कंपनी पर बीमित व्यक्ति ओर से किए गए दावे के निपटान का आधार हो सकती है पर यह रिपोर्ट न तो बीमित व्यक्ति और न ही बीमाकर्ता कंपनी के लिए बाध्यकारी है।' 
न्यायालय का यह आदेश खासा अहम है, क्योंकि अधिकतर मामलों में बीमा कंपनियों द्वारा मुआवजों का निर्धारण सर्वेयर के आकलन पर आधारित होता है। साथ अधिकत मामलों में राशि दावाकर्ताओं के दावे से कम होती है। 
न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी की अपील को खारिज करते हुए शीर्ष अदालत ने यह फैसला सुनाया। बीमा कंपनी ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग [एनसीडीआरसी] के उस निर्देश को चुनौती दी थी जिसमें एक ट्रक मालिक को 1.58 लाख रुपये का मुआवजा देने की बात कही गई थी। सात नवंबर 1998 को टिहरी [तत्कालीन उत्तर प्रदेश] में सड़क दुर्घटना में ट्रक को खासा नुकसान पहुंचा था। 
एनसीडीआरसी ने आयोग ने जिला और राज्य उपभोक्ता आयोग के फैसले को बरकरार रखते हुए ट्रक मालिक प्रदीप कुमार के पक्ष में यह फैसला सुनाया था। शीर्ष अदालत में बीमा कंपनी ने यह तर्क रखा कि उपभोक्ता अदालत 1.58 लाख रुपये के मुआवजा देने का निर्देश नहीं दे सकती, क्योंकि तीसरे आधिकारिक सर्वेयर बी बी गर्ग ने नुकसान का आकलन 63,771 रुपये किया है। 
इस मामले में बीमा कंपनी ने दो अन्य आकलकर्ता मनोज कुमार अग्रवाल और विवेक अरोड़ा के आकलन को खारिज करते हुए तीसरे सर्वेयर की नियुक्ति की थी। दोनों आकलनकर्ताओं ने 1.66 लाख रुपये का नुकसान का आकलन किया था। 
दलील को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा कि दो पूर्व आकलनकर्ताओं की रिपोर्ट में मुआवजे की राशि का निर्धारण 1.66 लाख किया गया था। लेकिन बीमा कंपनी ने दोनों की रिपोर्ट को खारिज करते हुए तीसरे सर्वेयर की नियुक्ति की जिसने अपेक्षाकृत निम्न मुआवजे की राशि निर्धारित की।

दहेज लेने के आरोप में एडिश्नल डिस्ट्रिक्ट जज गिरफ्तार ।

आंध्र प्रदेश के महबूबनगर जिले के एडिश्नल डिस्ट्रिक्ट जज टी नरसिम्हा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। जज के साथ में पुलिस ने जज के बेटे और पत्नी को भी दहेज मांगने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। 
दरअसल जज की बहू ने ही अपने ससुरवालों पर दहेज मांगने, शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाया था। अदालत ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए आरोपियों की जमानत याचिका को खारिज करते हुए न्यायिक हिरासत में भेज दिया है।



दो रूपये के स्थान पर दस रूपये लेने के लिए 17 हजार खर्च ।

सार्वजनिक तेल कंपनी इंडियन आयल (आईओसी) ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत जानकारी मांगने वाले एक व्यक्ति से ज्यादा शुल्क वसूला और बाद में अपने पक्ष को सही ठहराने के लिए 17 521 रुपये खर्च किए। जबकि यह मामला सिर्फ 102 रुपये में सुलझाया जा सकता था।
यह मामला आरटीआई आवेदक राजेश मधोक से जुड़ा है जिन्होंने आईओसी चंडीगढ़ से कुछ सूचना मांगी थी। 
तेल कंपनी के जन सूचना अधिकारी ने मधोक से 51 पेज की सूचना के लिए दस रुपये प्रति पेज के हिसाब से शुल्क मांगा। आरटीआई कानून के तहत यह शुल्क दो रुपये प्रति पेज ही है। मधोक ने इसे केंद्रीय सूचना आयोग में चुनौती दी।
आयोग ने मामले की सुनवाई करने के बाद आईओसी से कहा कि वह मधोक को वांछित सूचना निशुल्क उपलब्ध कराए। वैसी आयोग में सुनवाई के लिए आईओसी ने दो वरिष्ठ अधिकारी तैनात किए और उनकी विमान एवं रेल टिकट आदि का खर्च आया 17 521 रुपये। हैदराबाद के आरटीआई कार्यकर्ता सी जे करीरा ने कहा मैंने तेल कंपनी में एक आरटीआई याचिका लगाई जिससे मुझे इन अधिकारियों के खर्च की जानकारी मिली।

आयकर अधिकारियों पर मामला दर्ज करने का आदेश ।

जयपुर की एक अदालत ने दो मामलों में सुनवाई कर माणक चौक और विधायकपुरी थाने को आयकर विभाग के तैंतीस से अधिक अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिये हैं। अधिवक्ता जहूर अहूमद नकवी ने दायर मामले के हवाले से बताया कि आयकर विभाग ने जयपुर के एक रत्न व्यवसायी के ठिकानों एवं प्रतिष्ठानों पर गत 20 मई को छापा मारा था। छापे में रत्नों का मूल्यांकन अधिक किया साथ ही करीब तीन करोड़ रूपये से अधिक मूल्य के रत्न और करीब अस्सी हजाररूपये की नकदी गायब हो गई। नकवी के अनुसार आयकर विभाग के अधिकारियों ने छापे की कार्यवाही के दौरान रत्न व्यवसायी के कर्मचारियों से कथित दुर्व्यवहार किया तथा मारपीट भी की। मुख्य न्यायिक मजिस्टेट जयपुर शहर ने दोनों मामलों पर सुनवाई कर माणक चौक और विधायकपुरी थाने को मुकदमा दर्ज कर जांच करने के निर्देश दिये हैं।

Saturday, June 20, 2009

राजस्थान उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार के पत्र से आक्रोशित हैं उदयपुर बार के अधिवक्ता ।

राजस्थान उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार के पत्र को लेकर उद्वेलित हुए अधिवक्ताओं ने हाईकोर्ट बैंच को लेकर प्रभावी आंदोलन चलाने का ऐलान कर दिया है। 
बुधवार को उदयपुर बार के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष शांतिलाल चपलोत की अध्यक्षता में बार एसोसिएशन की संभाग स्तरीय बैठक 11 बजे बार सभागार में आयोजित हुई। बैठक के विशिष्ट अतिथि राजस्थान बार कौंसिल के पूर्व चेयरमेन भीलवाडा के अधिवक्ता सुरेश श्रीमाली थे, जबकि उदयपुर बार एसोसिएशन के अध्यक्ष त्रिभुवननाथ पुरोहित भी मंच पर आसीन थे। बैठक का संचालन बार के महामंत्री हेमंत जोशी ने किया। बैठक में सभी वक्ताओं ने राजस्थान उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार के पत्र पर कडी आपत्ति जताई। वक्ताओं का कहना था कि बिना विचार और कार्रवाई कराए ही मात्र लिख दिया कि उदयपुर में हाईकोर्ट बैंच की आवश्यकता नहीं है जो पूरी तरह गलत है। संभाग आदिवासी बहुल इलाका है और यहां पर हाई कोर्ट बैंच की सख्त आवश्यक है, जिसके सभी प्रमाण व तथ्य सौंपे जा चुके हैं। इसलिए उदयपुर में हाईकोर्ट बैंच के आंदोलन को त्वरित व सुचारू रूप से चलाने के लिए रणनीति तैयार की जाए। बैठक में यह निर्णय लिया गया कि आगामी 7 जुलाई को आंदोलन प्रभावी तौर पर धरना व प्रदर्शन किया जाएगा, इसमें संभाग के सभी सांसदों व विधायकों को भी संघर्ष समिति आमंत्रित करें। रणनीति के तहत सभी जिलों व तहसील स्तर पर यह आंदोलन किया जाएगा। बैठक में बार के पूर्व सचिव रजनीबाला सोनी ने कहा कि रजिस्ट्रार के पत्र को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जानी चाहिए। कुछ सदस्यों ने प्रतिदिन 2-2 घंटे हडताल व धरना का सुझाव दिया। बैठक में यह भी तय किया गया कि 2॰ जून को कद्रीय मंत्री डॉ. सी.पी. जोशी के उदयपुर आगमन पर प्रतिनिधि मंडल उनसे मिलेगा और ज्ञापन देगा। बैठक में मावली बार के अध्यक्ष मदन सिंह त्रिपाठी, डूंगरपुर बार के अध्यक्ष संजीव भटनागर, सचिव कमलेश चौबीसा, बांसवाडा के पूर्व अध्यक्ष सुरेशचंद्र श्रीमाल, गंभीर चंद पाटीदार, चित्तौड के पूर्व अध्यक्ष कन्हैयालाल श्रीमाली, अध्यक्ष दिलीप जैन, सचिव महेंद्र मेडतिया, पूर्व अध्यक्ष सैयद दौलत अली, वल्लभनगर अध्यक्ष पन्नालाल मारू, कानोड अध्यक्ष सज्जन सिंह नलवाया, बार के पूर्व अध्यक्ष रोशनलाल जैन, हीरालाल कटारिया, रमेश नंदवाना, जयकृष्ण दवे, शंभू सिंह राठौड, शांतिलाल पामेचा, रतन सिंह रावत आदि उपस्थित थे। सभी ने एक मत से 7 तारीख के आंदोलन को प्रभावी बनाने का निर्णय लिया। 
नई संघर्ष समिति गठित 
हाईकोर्ट बैंच को लेकर शंभू सिंह राठौड के संयोजन में बनी समिति से आज राठौड ने इस्तीफा दे दिया। बैठक में नई समिति का गठन किया गया, जिसमें बार के पूर्व अध्यक्ष जयकृष्ण दवे को संघर्ष समिति का संयोजक बनाया गया। संघर्ष समिति आगामी 7 तारिख को प्रभावी आंदोलन के दिन हाईकोर्ट बैंच के लिए हडताल की अग्रिम रणनीति सदस्यों के सामने रखेगी।

राज्य उपभोक्ता आयोग में नियुक्ति के आवेदन ।

उदयपुर/ राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग में न्यायिक पृष्ठभूमि वाले एक सदस्य पद पर पूर्णकालिक आधार पर नियुक्ति के लिए आवेदन पत्र आमंत्रित किए गए हैं। 
जिला रसद अधिकारी हिम्मतसिंह भाटी ने बताया कि जिला न्यायालय या इसके समकक्ष अधिकरण के पीठासीन अधिकारी के रूप में कम से कम 10 वर्ष तक कार्यानुभव रखने वाला अभ्यर्थी आवेदन कर सकता है। अभ्यर्थी 35 वर्ष उम्र का हो तथा स्नातक डिग्री रखने वाले पात्र होंगे। इच्छुक अभ्यर्थी अपना आवेदन पत्र 30 जून तक ‘‘राज्य उपभोक्ता प्रतितोष आयोग‘‘ हेण्डलूम हवेली, सी-स्कीम जयपुर को भिजवा सकते हैं।

तलाक के लिए पति- पत्नी की मौजूदगी जरुरी ।

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि कोई भी अदालत पति- पत्नी की आपसी रजामंदी के बावजूद हिन्दु विवाह अधिनियम की 13 बी धारा के अंतर्गत विवाह बंधन को तब तक खत्म नहीं कर सकती जब तक कि वे दोनों व्यक्तिगत रूप से अदालत में हाजिर होकर तलाक नहीं मांगे. मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णनन, न्यायमूर्ति पी सदाशिवम और न्यायामूर्ति अशोक कुमार गांगुली की पीठ ने स्मृति पहाड़िया नाम की एक महिला की ओर से दाखिल याचिका की सुनवाई करते हुए यह बात कही. श्रीमती पहाड़िया ने याचिका में बम्बई उच्च न्यायालय के पांच जून 2008 के बम्बई की एक परिवार अदालत के फ़ैसले को खारिज करने के आदेश को चुनौती दी थी. परिवार अदालत ने इस मामले में पांच दिसंबर 2007 को श्रीमती पहाड़िया और उनके पति के बीच तलाक होने का फ़ैसला सुना दिया था. हालांकि उस समय ये दोनों अदालत में हाजिर नहीं थे. बाद में बम्बई उच्च न्यायालय ने इस फ़ैसले को खारिज कर दिया था. उक्त मामले में 31 पृष्ठों के फ़ैसले में पीठ की ओर से न्यायामूर्ति गांगुली ने कहा कि हिन्दु विवाह अधिनियम की धारा 13 बी के तहत अदालत पति- पत्नी के बीच आपसी रजामंदी के आधार पर उन्हें अलग रहने की अनुमति देने में सक्षम है, लेकिन इसके लिए उन्हें व्यक्तिगत तौर पर यह रजामंदी दिखानी होगी. उन्होंने कहा कि अदालत को इस रजामंदी के प्रति संतुष्ट किया जाना जरूरी है. यदि एक भी पक्ष अदालत में हाजिर नहीं होता है, तो तलाक देना अदालत के दायरे में नहीं आता. श्रीमती पहाड़िया की शादी पांच मार्च 1993 को संजय नाम के व्यक्ति से हुयी थी. वर्ष 2005 में इन दोनों ने आपसी रजामंदी से तलाक लेने के लिए अर्जी दी थी. उच्चतम न्यायालय ने परिवार अदालत से कहा है कि वह दोनों पक्षों को नोटिस जारी कर व्यक्तिगत रूप से तलाक के लिए उनकी सहमति ले. 

वकीलों ने दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से अदालत की सुनवाई हिंदी में भी करने की इजाजत दिए जाने का आग्रह किया।

वकीलों के एक समूह ने गुरुवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से अदालत की सुनवाई हिंदी में भी करने की इजाजत दिए जाने का आग्रह किया। वकीलों का तर्क है कि हिंदी राष्ट्रीय भाषा है और उसका सम्मान किया जाना चाहिए।
ऑल इंडिया लायर्स यूनियन (एआईएलयू) की दिल्ली इकाई ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर कहा कि वकील जब हिंदी में दलील देते हैं तो न्यायाधीश उनकी बातों की ओर ध्यान नहीं देते। अंग्रेजी तो स्टेटस सिम्बल हो गया है।
एआईएलयू की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष अशोक अग्रवाल ने कहा, “हमारे संविधान की धारा 19 ए भी हमें किसी भी भाषा में अपनी बात रखने की आजादी देती है। ऐसे में अदालतों में हिंदी में दलील देने से रोकना मौलिक अधिकारों का हनन है।”
उन्होंने कहा, “अपने देश में हिंदी सम्प्रेषण की सबसे प्रचलित भाषा है। ऐसा नहीं है कि हिंदी बोलने वालों को कानून का ज्ञान कम होता है।”

स्थगन के बाद एलएलबी में दाखिला शुरू ।

बार काउंसिल आफ इंडिया द्वारा निर्धारित उम्र सीमा पर आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के रोक लगाये जाने के बाद सरकारी विधि कालेजों ने आयु सीमा को दरनिकार करते हुए पांच वर्षीय एलएलबी पाठ्यक्रम में दाखिला प्रारंभ कर दिया है। 
बहरहाल बम्बई उच्च न्यायालय में उम्र संबंधी नियम को चुनौती देने वाली यास्मिन तवारिया ने कहा कि दाखिला उच्च न्यायालय में याचिका के निष्कर्षो पर निर्भर करेगा। 
इसके मद्देनजर तवारिया ने बम्बई उच्च न्यायालय में नये नियम को चुनौती देने वाली अपनी याचिका समेत अन्य पांच याचिकाओं पर सुनवाई तेज करने को कहा है। 
इससे पहले उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार और न्यायमूर्ति एस सी धर्माधिकारी की खंडपीठ ने गुरूवार को इस मामले में बार काउंसिल आफ इंडिया से जवाब दाखिल करने तथा सभी जनहित याचिका पर सुनवाई दो सप्ताह के बाद करने का निर्देश दिया। 
गौरतलब है कि बार काउंसिल आफ इंडिया ने पांच वर्षीय एलएलबी पाठ्यक्रम में दाखिले के लिए उम्र सीमा 20 वर्ष और तीन वर्षीय एलएलबी में दाखिले के लिए उम्र सीमा 30 वर्ष करने का प्रस्ताव किया था।

नरेगा में भष्ट्राचार का खुलासा, विभाग अधिकारी 6 हजार की रिश्वत लेते गिरफ्तार ।

भीलवाड़ा जिले में शुक्रवार को भ्रष्टाचार निरोधक विभाग ने रिश्वत लेते हुए सुवाणा पंचायत समिति के विकास अधिकारी और हमीरगढ़ थाने के एएसआई को गिरफ्तार किया है। इस कार्यवाही से नरेगा में हो रहे भ्रष्टाचार में उच्च अधिकारियों के लिप्त होने का भी खुलासा हुआ है।
पंचायत समिति सुवाणा के विकास अधिकारी भरतप्रकाश द्वारा नरेगा के बिल पास करने के नाम पर रीछड़ा के सरपंच देवकिशन गुर्जर से 11 हजार रूपए की मांग की। गुर्जर ने 5 हजार रूपए तो पहले दे दिए लेकिन बाद में छह हजार रूपए की मांग जारी रहने पर सरपंच ने अजमेर स्थित भ्रष्टाचार निरोधक विभाग के कार्यालय में सम्पर्क किया। इस पर विभाग ने शिकायत की पुष्टि की और आज पुलिस निरीक्षक निर्मल शर्मा, हीरासिंह व आरक्षी खुमाणसिंह सुवाणा पहुंचे और जैसे ही सरपंच देवकिशन ने विकास अधिकारी भरतप्रकाश को छह हजार रूपए की रिश्वत राशि दी, टीम ने उसे दबोच लिया। विकास अधिकारी की पेंट की जेब से रिश्वत राशि बरामद कर ली गई। भरतप्रकाश उदयपुर के अम्बामाता थाना क्षेत्र के रहने वाले है। 

न्यायमूर्ति सेन पर भ्रष्टाचार आरोपों की जांच होगी ।

कोलकाता उच्च न्यायालय न्यायाधीश सौमित्र सेन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश डीके जैन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति करेगी। राज्यसभा के सभापति एवं उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने यह जांच समिति गठित की है। इस समिति में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर एवं जाने माने वकील एफएस नरीमन शामिल हैं।  
उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन ने गत वर्ष अगस्त में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर न्यायमूर्ति सेन की महाभियोग के जरिए पद से हटाने की सिफारिश की थी। 


Thursday, June 18, 2009

कसाब का पहचान पत्र फर्जी-गवाह

मुंबई में 26 नवंबर को हुए आतंकवादी हमले के मामले में बुधवार को विशेष अदालत में एक महिला गवाह ने कहा कि आतंकवादी अजमल आमिर कसाब बेंगलुरु में कभी रहा ही नहीं। कसाब को गिरगाँव चौपाटी के समीप से जब उस रात पुलिस ने गिरफ्तार किया तो उसके पास से जो पहचान-पत्र मिला, उसमें बेंगलुरु का पता लिखा हुआ था। विशेष न्यायालय के न्यायाधीश एमएल ताहलियानी के समक्ष बेंगलुरु टीचर कॉलोनी की गवाह उषाश्री शिव कुमार ने कहा कि आतंकवादी से जब्त पहचान-पत्र में बेंगलुरु का जो पता लिखा है, उस स्थान पर कसाब कभी रहा ही नहीं।
विशेष सरकारी वकील उज्ज्वल निकम के एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि उनकी एक कपड़े की कंपनी बेंगलुरु में है और उसका परिवार पहचान-पत्र में अंकित पते पर 1999 से रह रहा है। उन्होंने कहा कि कसाब के पहचान पत्र में दिए गए पते वाला मकान उसके कब्जे में है, लेकिन वह कई वर्षों से खाली है। ऊषाश्री अपने दावे के रूप में अपने साथ उस स्थान का महानगर पालिका द्वारा जारी मालिकाना प्रमाण-पत्र भी साथ में लाई थीं। निकम ने कसाब की ओर इशारा करते हुए गवाह से पूछा कि क्या यह व्यक्ति कभी पहचान-पत्र में बताए गए पते पर ठहरा था, उन्होंने कहा कि नहीं, वह कभी भी वहाँ ठहरा नहीं था और उसका पहचान-पत्र फर्जी है।

राजस्थान सरकार ने विधिक सहायता के लिये वार्षिक आय सीमा 50 हजार तय की।

राजस्थान सरकार ने गरीबों को विधिक सहायता उपलब्ध कराने के लिये पात्र व्यक्ति की वार्षिक आय की अधिकतम सीमा २५ हजार से बढ़ा कर ५० हजार रूपये करने का निर्णय लिया है ।आज मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अध्यक्षता में सम्पन्न राज्य मंत्रिपरिषद की बैठक में यह निर्णय लिया गया । इस निर्णय से गरीब एवं कमजोर वर्गों के लोगों को नि:शुल्क विधिक सेवा का मार्ग प्रशस्त होगा । सरकारी सूत्रों के अनुसार इसके लिये राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण नियम १९९५ के नियम १६ में संशोधन किया जायेगा ।

आस्ट्रेलिया में नस्ली हमले पर उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल ।

उच्चतम न्यायालय में आज एक जनहित याचिका दाखिल की गयी है जिसमें अपील की गयी है कि आस्ट्रेलिया तथा कनाडा में नस्ली हमलों से प्रभावित भारतीय छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित कराने के लिये केंद्र को निर्देश जारी किये जायें।
जनहित याचिका में दलील दी गयी है कि ऐसे हमलों की पुनरावृत्ति रोकने के लिये दोनों देशों के साथ बातचीत शुरू करने के केंद्र को निर्देश दिये जायें। केंद्र विदेशों में अध्ययनरत भारतीय छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित कराने के लिये कड़े कानून और नियमन भी बनवाये।
वकील डी. के. गर्ग की ओर से दाखिल याचिका में केंद्र सरकार पर आस्ट्रेलिया के महज कुछ अधिकारियों से बिना कोई ठोस नतीजा निकाले बिना चर्चा कर घटनाओं की उपेक्षा करने का आरोप लगाया गया है क्योंकि हमलों का सिलसिला जारी है।
याचिका कहती है कि यहां तक कि प्रवासी भारतीयों के मामलों के मंत्री वायलार रवि भी स्वीकार कर चुके हैं कि ये हमले पुलिस की निष्क्रियता दर्शाते हैं पर इसके बाद भी भारत सरकार ने आस्ट्रेलिया की मदद से इन घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिये अब तक कोई कदम नहीं उठाया है।
उधर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने आस्ट्रेलिया में रह रहे भारतीय लोगों और छात्रों पर हमले के विरोध में दायर जनहित याचिका पर सहायक सालिसिटर जनरल आफ इंडिया को केन्द्र सरकार से निर्देश प्राप्त करने का आदेश देते हुए जुलाई माह में सुनवाई तय की है। 
न्यायमूर्ति एस.एन.शुक्ल एवं न्यायमूर्ति एस.एन.एच.जैदी की खण्डपीठ ने वी द पीपुल संस्था की ओर से दायर जनहित याचिका पर यह आदेश पारित किया। 
याचिका के मुताबिक आस्ट्रेलिया में नस्ली भेदभाव के चलते भारतीय लोगों और छात्रों पर हो रहे हमले न केवल दुखद हैं बल्कि संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन भी हैं। 
याचिका में आस्ट्रेलिया में भारतीयों को जानमाल की सुरक्षा मुहैया कराने का अनुरोध किया गया है। याचिका में केन्द्र सरकार भारतीय विदेश मंत्रालय आदि को पक्षकार बनाया गया है।

उच्चतम न्यायालय शिक्षा के निजीकरण पर खफा ।

उच्चतम न्यायालय ने आज शिक्षा के निजीकरण पर नाराजगी जताते हुए कहा कि यह उन लोगों के लिए हितकर होगा जो बगैर मान्यता के शैक्षिक संस्थानों की स्थापना कर छात्रों का शोषण करते हैं।
न्यायमूर्ति बी सुदर्शन रेड्डी और आफताब आलम की अवकाश पीठ ने अपने फैसले में कहा हम लोगों ने उच्च न्यायालय के फैसले का पूरी तरह अध्ययन किया है। इसमें जो नाराजगी जाहिर की गयी है उससे हम सहमत है।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि न्यायालय इस तरह का कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं कर सकता जिससे गैर मान्यता प्राप्त संस्थानों को परीक्षा में बैठने की अनुमति देता हो कयोंकि यह असंवैधानिक है और देश के कानून के खिलाफ है।
पीठ ने कहा इस तरह का कोई भी निर्देश नियमों को तोड़ने वाला होगा। इस तरह का कोई फैसला देकर संविधान को प्रभावित करने के लिए हमारी अंतरात्मा हमारे कर्त्तव्य को अनुमति नहीं देती है।
शीर्ष अदालत ने यह फैसला गैर मान्यता प्राप्त निजी शैक्षिक संस्थानों की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद दिया है। इस याचिका में मध्य प्रदेश में बी.एड पाठ्यक्रम चला रहे कुछ निजी शैक्षिक संस्थानों ने अपने छात्रों को परीक्षा में बैठने की अनुमति देने की मांग की थी। 
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने इससे पहले 196 गैर मान्यताप्राप्त महाविद्यालयों को परीक्षा में बैठने की अनुमति की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया था। इन कालेजों ने छात्रों को वर्तमान शैक्षिक सत्र में परीक्षा में बैठने की अनुमति दिये जाने की मांग की थी।

Monday, June 15, 2009

भारतीय संविधान समय की कसौटी पर खरा उतरा:बालकृष्णन

भारत के मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन ने भारत के संविधान की सफलता का श्रेय संविधान निर्माता बीआर अंबेडकर को देते हुए कहा है कि भारत का संविधान समय की कसौटियों पर खरा उतरा है जबकि पड़ोसी देशों के संविधान समय के साथ शिथिल पड़ गए।
न्यायिक सक्रियता और सामाजिक आर्थिक अधिकारों के पालन पर पहले अंबेडकर स्मृति व्याख्यान में बालकृष्णन ने कहा भारत का संविधान समय की कसौटियों पर खरा उतरा और उसने स्वयं को साबित किया है। यही कारण है कि हमारे लोकतंत्र का अस्तित्व कायम है जबकि हमारे पड़ोसी देशों में संविधान या तो शिथिल पड़ चुके हैं या समस्याओं से घिरे हैं।
बालकृष्णन ने नेहरू सेंटर में कल रात कहा देश में न्यायपालिका के कारण कुछ हद तक सामाजिक संरूपण हुआ है और इसका श्रेय सिर्फ संविधान निर्माता डा अंबेडकर को जाता है।
उन्होंने कहा कि देश में कई सामाजिक परिवर्तन लाने में न्यायपालिका की अहम भूमिका है। ब्रिटेन में भारत के राजदूत शिवशंकर मुखर्जी ने कहा कि भारत के संविधान को कई अन्य देशों में बहुत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है जिनमें अफ्रीका के देश मुख्य रूप से शामिल हैं। उन्होंने कहा हम इतनी दूर तक चले हैं जो सर्फ हमारे संविधान के संस्थापक की बदौलत ही हुआ है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मूलभूत अधिकारों के नियमन के संबंध में नागरिक सीधे उच्चतम न्यायालय तक पहुंच सकते हैं।

पूर्व एनसीपी सांसद 20 जून तक सीबीआई हिरासत में

निम्बालकर हत्याकाण्ड मामले में एनसीपी के पूर्व सांसद पद्म सिंह पाटिल को 20 जून तक के लिए सीबीआई हिरासत में भेज दिया गया है। इससे पहले भी पाटिल सात दिनों के लिए सीबीआई की हिरासत में थे। 
पद्म सिंह पाटिल को आज पनवेल कोर्ट में पेश किया गया। पाटिल के वकील ने कोर्ट को बताया कि पुलिस और सीबीआई के पास पद्म सिंह के खिलाफ कोई सबूत नहीं है। इसलिए उन्हें जमानत पर छोड़ दिया जाना चाहिए। लेकिन सीबीआई ने इसका विरोध किया और केस की तहकीकात के लिए और हिरासत की मांग की। 
इससे पहले पाटिल की पेशी के मद्देनजर आज कोर्ट के बाहर भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया। पुलिस को आशंका थी कि पद्म सिंह पाटिल के समर्थक कोर्ट के बाहर हंगामा कर सकते हैं। 
कोर्ट के बाहर सुनवाई शुरू होने से पहले ही भारी तादाद में पाटिल के समर्थक पहुंच गए। पाटिल के समर्थन में एनसीपी के सांसद संजीव नायक भी कोर्ट पहुंचे। जबकि समाज सेवक अन्ना हजारे के समर्थक, भ्रस्टाचार विरोधी जन आन्दोलन और सत्यमेव जयते संगठन के कार्यकर्ता भी कोर्ट के बाहर मौजूद थे।
दरअसल, आज से तीन साल और तीन दिन पहले 3 जून 2006 को नवी मुंबई का कलंबोली इलाका अचानक गोलियों की आवाज से गूंज उठा। मोटरसायकिल पर सवार दो हथियारबंद लोग एक स्कोडा कार पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा रहे थे।जब गोलियों की आवाज थमी तो लोगों ने पास जाकर देखा कि कार में कांग्रेस नेता पवनराजे निंबालकर और उनके ड्राइवर की गोलियों से छलनी लाश पड़ी हुई है। उस वक्त ये खबर आग की तरह पूरे राज्य में फैली। महाराष्ट्र पुलिस ने भी तेजी के साथ काम करना शुरू किया। लेकिन धीरे-धीरे उसकी जांच सुस्त पड़ती गई। कुछ दिनों बाद ही पुलिस ने निंबालकर की हत्या को जमीनी विवाद का नतीजा बताकर फाइल को ठंडे बस्ते में डाल दिया। उसी वक्त से आज तक पवनराजे निंबालकर का परिवार बार-बार यही कहता रहा कि मुंबई पुलिस ने इस मामले की जांच में ढिलाई बरती।

मानसिक उत्पीड़न की क्षतिपूर्ति सिर्फ व्यक्ति को

सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि फर्म वैयक्तिक जैसे 'मानसिक' उत्पीड़न के लिए मुआवजे का दावा नहीं कर सकती। नैशनल इंश्योरेंस कंपनी से मानसिक यंत्रणा के लिए मुजफ्फरनगर स्थित सिक्का पेपर्स लिमिटेड द्वारा किए गए दावे को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा, 'सिर्फ व्यक्ति ही मानसिक उत्पीड़न के लिए मुआवजे का दावा कर सकता है न कि कोई कंपनी।'
शुरू में नैशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसल कमीशन ने बीमा कंपनी से एक बीमित डीजल जेनरेटर की मरम्मत के लिए 35 लाख रुपये के दावे को खारिज कर दिया था जिसमें मानसिक उत्पीड़न के लिए 10 लाख रुपये भी शामिल थे।
न्यायालय ने उपभोक्ता अदालत के आदेश का समर्थन करते हुए बीमा कंपनी से 10,47,491 रुपये और मार्च 2000 के बाद से भुगतान की तिथि तक 12 प्रतिशत का ब्याज चुकाए जाने को कहा।

दुर्घटना की स्थिति में दोहरा बीमा लाभ नहीं

सर्वोच्च न्यायालय ने नैशनल इंश्योरेंस कंपनी बनाम हमीदा खातून मामले में कहा है कि कोई भी व्यक्ति मोटर व्हीकल्स ऐक्ट और इम्पलॉयज स्टेट इंश्योरेंस (ईएसआई) ऐक्ट दोनों के तहत लाभ हासिल नहीं कर सकता। इस मामले में वाहन के ड्राइवर की उस वक्त मौत हो गई जब बीएसएफ के ट्रक ने उसे टक्कर मार दी थी। उसकी विधवा ने मोटर एक्सीडेंट क्लेम्स ट्रिब्यूनल से मुआवजे की मांग की। ट्रिब्यूनल ने इसे 1.20 लाख रुपये दिए जाने का फैसला सुनाया। बीमा कंपनी इस फैसले के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चली गई। लेकिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ट्रिब्यूनल के फैसले से अपनी सहमति जतायी। ईएसआई एक्ट की धारा 53 के तहत बीमा कंपनी सर्वोच्च न्यायालय में इस फैसले के खिलाफ अपील की। इस धारा के मुताबिक ईएसआई बीमित व्यक्ति या उसके आश्रित नियोक्ता या किसी अन्य व्यक्ति से इस तरह का मुआवजा पाने के अधिकारी नहीं हैं।

विकलांगता आय क्षमता के बराबर नहीं है

सामान्य बीमा कंपनियों द्वारा की गई अपीलों पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि कार्य के दौरान किसी दुर्घटना से हुई विकलांगता की प्रतिशतता श्रमिक की अर्जन क्षमता के नुकसान के समानुपातिक नहीं होगी। कार्य के दौरान दुर्घटना की वजह से आई विकलांगता के मामले वर्कमेन कम्पनसेशन ऐक्ट और मोटर व्हीकल्स एक्ट के तहत विकलांगता के नुकसान के हिसाब से निपटाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, एक मामले में विकलांगता आंशिक है। वर्कमेन ऐक्ट के तहत कमिश्नर ने इसे 20 से 25 फीसदी आंका जबकि उच्च न्यायालय विकलांगता के कारण हुए आय क्षमता के नुकसान को 60 फीसदी तय किया। सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले को यह कहते हुए दरकिनार कर दिया कि उच्च न्यायालय के लिए यह निष्कर्ष निकालने का कोई आधार नहीं है कि विकलांगता की तुलना में आय क्षमता अधिक थी। इसी तरह के मामले 'ऑरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी बनाम मोहम्मद नासिर' में मोटर एक्सीडेंट क्लेम्स ट्रिब्यूनल ने एक ट्रक दुर्घटना के बाद ड्राइवर की विकलांगता को 15 फीसदी आंका था, लेकिन उच्च न्यायालय ने आय नुकसान को बढ़ा कर 100 फीसदी कर दिया।

निचली अदालतों से सुनवाई की समय सीमा तय

सुनवाई के लिए लंबित मामलों की बढ़ती तादाद से निपटने के इरादे से दिल्ली उच्च न्यायालय ने निचली अदालतों के सभी जजों को हर मुकदमे के लिए तीन साल का वक्त तय करने को कहा है।
मामलों के निपटारे की रफ्तार बढ़ाने के लिए निर्देश देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा प्रत्येक अधिकारी किसी मामले के हर चरण .ंजैसे बहस पूरा करने आरोपों के निर्धारण और गवाही दर्ज करने के निपटान के लिए समय सीमा तय करेंगे और सभी संबद्ध लोगों द्वारा इसका पालन सुनिश्चित करेंगे।
उच्च न्यायालय ने कहा दिवानी और फौजदारी दोनो ही मामलों में धीरे धीरे सुनवाई की औसत अवधि को कम करके दो से तीन साल करने की कोशिशें की जाएंगी। इन निर्देशों की खास अहमियत है क्योंकि इस बरस एक फरवरी को राजधानी की सत्र अदालतों में बकाया मामलों की तादाद 22 829 थी जिसमें से 1766 मुकदमे हत्या के थे। 43 024 दिवानी मामले भी लंबित हैं।
निर्देशों के मुताबिक सभी न्यायिक अधिकारियों को हर महीने कम से कम कत्ल के दो मामलों की सुनवाई करने की बात ध्यान में रखने के लिए कहा गया है। जजों द्वारा अदालतों का वक्त ठीक से इस्तेमाल करने के मकसद से उच्च न्यायालय ने कहा हर अधिकारी अदालतों के समय और संसाधनों के अधिकतम इस्तेमाल को सुनिश्चित करने के लिए मुकदमों की सूची पर प्रभावी नियंत्रण रखेगा। मामले के पक्षकारों में सुनवाई टालने के बढ़ते चलन को मद्देनजर रखते हुए उच्च न्यायाल ने यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि ऐसी स्थिति में स्थगन न दिए जाएं खासकर इस आधार पर कि कोई याचिका उच्च न्यायालय में दायर है।
उच्च न्यायालय ने कहा स्थगन उदारतापूर्वक न दिए जाएं जब तक कि कोई बाध्यकारी कारण न हो और कार्यवाही में इसे दर्ज किया जाए। मामले से जुड़ी कोई याचिका उच्च न्यायालय में दाखिल की गई है महज इस आधार पर कार्यवाही न रोकी जाए।
उच्च न्यायालय ने उच्च न्यायकि सेवा के अधिकारियों से नए साल की शुरूआत के वक्त अपनी अदालत में लंबित सभी मामलों के सालाना ब्योरे रखने के लिए कहा है। साथ ही उन्हें हर साल मामलों के निष्पादन का एक यथार्थपरक लक्ष्य रखने के लिए भी कहा गया है जिसकी वे हर तिमाही समीक्षा कर सकें।
उच्च न्यायालय ने उन्हें हत्या सेक्स आर्थिक अपराध नारकोटिक्स ड्रग एंड साइकोट्रोपिक सब्सटांस एक्ट से जुड़े फौजदारी और बच्चों के संरक्षण से जुड़े दिवानी मामलों के शीघ्र और प्रभावशाली निष्पादन पर विशेष ध्यान देने के लिए कहा है।

पावर ऑफ अटॉर्नी पर तनी भौंहें ।

उच्चतम न्यायालय ने जमीन-जायदाद की बिक्री में पावर ऑफ अटॉर्नी के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए पांच राज्यों के मुख्य सचिवों और राजस्व सचिवों को कोई रास्ता तलाशने के लिए कहा है। 
देश की सर्वोच्च अदालत का मानना है कि पावर ऑफ अटॉर्नी के गलत इस्तेमाल से जहां राज्य को राजस्व से हाथ धोना पड़ता है, वहीं भू माफिया इससे फायदा उठा रहे हैं। अदालत ने इन राज्यों से इस मामले में कोई तोड़ निकालने को कहा है।
फिलहाल राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से ही इसकी शुरुआत होगी और दिल्ली विकास प्राधिकरण के फ्लैट और प्लॉटों की बिक्री को इसके दायरे में लाया जाएगा। इसके बाद ही इसे दूसरे राज्यों में आजमाया जाएगा।
दिल्ली के अलावा अदालत ने हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के मुख्य सचिवों को रियल एस्टेट कारोबार में पावर ऑफ अटॉर्नी के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए कहा है। इस मामले में बनाया गया कानून प्रभावशाली साबित नहीं हो पाया है।
यह फैसला हरियाणा की एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी सूरज लैंप इंडस्ट्रीज के एम मामले के आलोक में आया है। इस कंपनी ने पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिये राज्य में जमीन खरीदी है। लेकिन जमीन के मालिक ने दूसरे पक्ष को भी पावर ऑफ अटॉनी के जरिये जमीन बेचने की कोशिश की। कंपनी ने आपराधिक मामला दायर किया और सूचना के अधिकार के तहत आवेदन भी किया।
वैसे उच्चतम न्यायालय ने मामले को अगस्त के अंतिम सप्ताह तक मुल्तवी कर दिया है। अदालत ने जमीन-जायदाद बेचने के लिए पंजीकरण का रास्ता अपनाने की ही हिदायत दी है। दरअसल स्टांप डयूटी और पंजीकरण शुल्क बचाने के चक्कर में बेचने और खरीदने वाले दोनों पक्ष पावर ऑफ अटॉर्नी का रास्ता अख्तियार करते हैं। इन सौदों में वकीलों और प्रॉपर्टी डीलरों की भी अहम भूमिका होती है।

Friday, June 12, 2009

हाईकोर्ट की पुलिस को फटकार

यतीम बालिका अगवा प्रकरण में दौसा पुलिस के नकारापन पर हाईकोर्ट ने कड़ी फटकार लगाते हुए पुलिस के उच्चाधिकारियों से पूछा है कि 'पता-ठिकाना होने के बावजूद आखिर क्यों नहीं मिल रही पुलिस को बालिका!' घटना के दो सप्ताह बाद भी अगवा कर बंधक बनाकर रखी गई बालिका को बरामद कर पाने में पुलिस के विफल रहने कर पर बालिका के चाचा ने राजस्थान उच्च न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पेश की। इस पर न्यायाधीश महेश भगवती ने प्रमुख शासन सचिव पुलिस अधीक्षक और कोतवाली थाना प्रभारी सहित सात लोगों को नोटिस जारी कर एक सप्ताह में जवाब तलब किया है। इस घटना के बाद से जाति विशेष के खिलाफ लामबंद सर्वसमाज धरना, प्रदर्शन, दौसा बंद के बावजूद स्थानीय पुलिस की उदासीनता के कारण आक्रोशित है। उधर, मुसलिम समाज का एक प्रतिनिधिमंडल राजस्थान मुसलिम फोरम के बैनर तले पुलिस महानिदेशक और अन्य उच्चाधिकारियों से मिला। बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में प्रार्थी पक्ष ने अदालत को अवगत करवाया कि स्थानीय थाना पुलिस को बालिका अपहरण हो जाने के बाद अपहर्ताओं द्वारा पीडि़ता को बंदी बनाकर कहां गया है? इसकी जानकारी मिल गई, कोतवाली ने पीडि़ता और नामजद आरोपियों से मोबाइल पर बातचीत की और परिजनों से भी उनकी बातचीत करवाई। इस दौरान आरोपियों के छुपे होने का स्थान भी पुलिस को पता चल गया लेकिन इसके बावजूद बालिका को बरामद कर आरोपियों को पकड़ने की कोई कार्रवाई नहीं की गई। 27 मई को हुई इस घटना के बाद तीन दिन तक पुलिस ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया और नामजद आरोपियों की शर्ते मानने का दबाव डालती रही। नामजद आरोपियों के सवाई माधोपुर जिले में छुपे होने की पुष्टि हो जाने के बाद भी स्थानीय पुलिस और संबंधित जिला पुलिस अधीक्षक से इस बाबत संपर्क नहीं साधना पुलिस की कारगुजारी को पूरी तरह संदेह के घेरे में खड़ा करता है।

रिश्वतखोर इंस्पेक्टर को जेल भेजा

जयपुर-लुहारू मार्ग पर वाहनों से अवैध वसूली के आरोप में गिरफ्तार परिवहन विभाग के इंस्पेक्टर राकेश विजयवर्गीय व गार्ड राजेंद्र को जेल भेज दिया गया है। 
भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने बीती रात राकेश के दस्ते को साढ़े तीन हजार रुपए वसूली करते रंगे हाथों पकड़ा था। गिरफ्तारी के बाद गुरुवार को दोनों आरोपियों को न्यायाधीश न्यायालय भ्रष्टाचार निवारण के समक्ष पेश किया। वहां न्यायाधीश ने जमानत आवेदन खारिज करते हुए दोनों को जेल भेजने के आदेश दिए। 
जयपुर से आई एसीबी टीम के डीएसपी जेके व्यास के मुताबिक ट्रांसपोर्टर राजकुमार व कृष्णकुमार ने इंस्पेक्टर राकेश के खिलाफ मासिक बंधी मांगने की शिकायत की। इसका सत्यापन कराने के बाद मामला साढ़े तीन हजार रुपए में तय हुआ। 
बुधवार रात अग्रसेन सर्किल पर रुपए लेते समय टीम ने इंस्पेक्टर राकेश व गार्ड राजेंद्र को रंगे हाथों दबोच लिया। दस्ते के पास दो लाख रुपए नकदी बरामद हुई, जिसका कोई हिसाब-किताब नहीं मिला। ब्यूरो टीम इसकी जांच कर रही है। कार्रवाई के समय इंस्पेक्टर ने एसीबी टीम के साथ हाथापाई भी की बताई, जिसकी सूचना पर कंट्रोल रूप ने पुलिस की मोबाइल टीम को भेजा। 
आरोपी इंस्पेक्टर राकेश लुहारू मार्ग पर ही अधिकांश समय गुजरता। सुबह 10 बजे के करीब आफिस आने के बाद वह बीहड़ चैक पोस्ट के निकट बड़ के नीचे गाड़ी लगा लेता। रात को फिर इसी रोड पर अग्रसेन सर्किल के आगे खड़ा हो जाता। 
जिला परिवहन कार्यालय में तैनात इंस्पेक्टर राकेश को अधिकृत रूप से अलसीसर, मलसीसर, बिसाऊ, मंडावा व झुंझुनूं का एरिया दिया हुआ था। लुहारू रोड पर वाहनों का आना-जाना अधिक है। ऐसे में अपने एरिया की बजाए इंस्पेक्टर अधिकांश समय पर यहीं पर खड़ा रहता। 
गार्ड करते थे लेन-देन का काम
रिश्वतखोर इंस्पेक्टर राकेश विजयवर्गीय ने वाहन चालकों से रकम वसूलने के लिए भाड़े के गार्ड रखता था। खाखी ड्रेस पहनकर गार्ड सड़कों पर आने-जाने वाले वाहनों को रोकते और चालक को साहब के पास भेज देते। वहां से फटकार लगने के बाद गार्ड ले-देकर मामला निबटा देते।

जैनों को अल्पसंख्यक का दर्जा किस लिए?

सुप्रीम कोर्ट ने अपनी एक सुनवाई में स्पष्ट किया है कि जैन धार्मिक अल्पसंख्यक नही है वह तो हिंदू धर्म का ही एक भाग है महाराष्ट्र में जैनों को दिये गये अल्पसंख्यक का दर्जा विरोधाभासी है। यह मुंबई हाई कोर्ट में दायर की गई एक जनहित याचिका में बताया गया है।
फुले आंबेडक र शाहु टीचर्स एसोशिएशन और अन्य द्वारा दायर की गई जनहित याचिका एक शैक्षाणिक संस्था को दिये गये अल्पसंख्यक दर्जे के लिए है। इस शैक्षणिक संस्था ने जैन संस्था के रुप में मान्यता देकर अल्पसंख्यक का दर्जा दिया है। जस्टिस जे एन पटेल और मृदुला भारकर की खंडपीठ के सामने यह पिटिशन सुनवाई के लिए आई तभी केन्द्र सरकार ने अपना सौगंधनामा पेश किया था, लेकिन उसे रेकार्ड में नही लिया गया दूसरी ओर राज्य सरकार ने प्रपत्र पेश करने के लिए समय मांगा था। 
इस पीटिशन में अन्य जो मुद्दे रखे गये है उन्हें मान्य रखा जाय तो राज्य की कई संस्थाओं को अल्पसंख्यक दर्जे को रद्घ किया जा सकता है सुप्रीमकोर्ट ने एक सुनवाई में कहा कि अल्पसंख्यक संस्था दर्जा मांगने वाली संस्था की स्थापना अल्पसंख्यक संस्था के रुप में ही होनी चाहिए लठ् एज्युकेशन सोसायटी ट्रस्ट सांगली की स्थापना बिन सांप्रदादिक संस्था के रुप में की गई थी उसके सभी समाज के लोगों को शिक्षा दी जाती थी संस्था के प्रार्थना पण से ही इस संस्था को अल्पसंख्यक संस्था के रुप में दिये गये ५० प्रतिशत अल्पसंख्यक आरक्षणे रद्द करने की मांग की गयी थी।

बस का फर्श उखाड़कर दो कैदी फरार

लुधियाना में दो शातिर विचाराधीन कैदी फिल्मी अंदाज में ट्रैफिक जाम में फंसी सरकारी बस का खस्ताहाल फर्श उखाड़ कर फरार हो गए। यह घटना वीरवार सुबह जगराओं पुल पर हुई। कैदियों को बस में सेंट्रल जेल से नई कचहरी में पेशी के लिए लाया जा रहा था। पुलिस देर शाम तक आरोपियों की तलाश में यहां-वहां दबिश देती रही।

थाना डिवीजन नंबर दो पुलिस ने फरार आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। अफसरों ने कैदियों के साथ बस में सवार पुलिस कर्मियों की भूमिका की जांच भी शुरू कर दी है। फरार विचाराधीन कैदियों की पहचान रूद्रपुर, उत्तर प्रदेश निवासी राजू गंजा और आजमगढ़ निवासी सुनील कुमार के तौर पर हुई है। घटना सुबह करीब ग्यारह बजे की है। 

लुधियाना सेंट्रल जेल में बंद करीब 40 कैदियों को पेशी के लिए नई कचहरी लाया जा रहा था। एएसआई शीतल सिंह सहित अन्य चार कांस्टेबल बस में ड्यूटी पर थे। राज गंजा और सुनील कुमार बस की दाई तरफ पीछे की सीटों पर बैठे थे। यह सीट पिछले टायरों के ऊपर है। खस्ताहाल बस के फर्श की टीन कई जगह से उखड़ी हुई थी।

बस जगराओं पुल पर ट्रैफिक जाम में फंस गई। कैदियों के लिए यह अच्छा मौका था। दोनों ने टायर के ऊपर की खस्ताहाल टीन उखाड़ी और निकल कर फरार हो गए। पुलिस कुछ समझ पाते दोनों आरोपी अलग-अलग रास्तों से जेल रोड की तरफ फरार हो गए। बस में ड्यूटी पर तैनात पुलिस कर्मियों ने घटना की जानकारी अफसरों को दी। अन्य विचाराधीन कैदियों को अतिरिक्त सतर्कता से नई कचहरी ले जाया गया। सूचना मिलने पर पुलिस अफसरों ने भी आकर बसों की जांच की।

Thursday, June 11, 2009

कसाब को पहचानते ही फूट पड़ा घायल बच्ची का पिता

मुंबई हमले में सीएसटी रेलवे स्टेशन पर गोली लगने से घायल हुई एक दस साल की बच्ची ने अजमल कसाब को गोली चलाने वाले आतंकी के रूप में पहचाना है। वहीं उसके पिता अपनी बेटी को घायल करने वाले हमलावरों में से एक को सामने देख कर आपा खो बैठे और उन्होंने कसाब को फांसी पर चढ़ाने को कहा। मुंबई हमलों की सुनवाई कर रहे विशेष जज एमएल टाहिलियानी की कोर्ट में मामले की सबसे नन्ही चश्मदीद गवाह देविका रोतावन बुधवार को पेश हुई। पांव में गोली लगने से घायल हुई देविका बैसाखी के सहारे आई और पूरे धैर्य व विश्वास के साथ उसने सवालों के जवाब दिए। कोर्ट ने उससे कठघरे में खड़े तीन आरोपियों में से हमले के दौरान गोली चलाने वाले को पहचानने को कहा। इस पर उसने कसाब की ओर इशारा किया। हमलावरों में कसाब ही अब एकमात्र जीवित है। 

फूट पड़ा नटवरलाल: देविका के पिता नटवरलाल से जब कसाब को पहचानने को कहा गया तो वह आपा खो बैठे। उन्होंने कहा, ‘यही है हमलावर जो वहां बैठा है। उसने मेरी बेटी को गोली मार कर घायल कर दिया। उसे फांसी पर चढ़ा देना चाहिए।’ जज ने उन्हें शांत करने की कोशिश की। नटवरलाल ने कहा कि जिसे चोट लगती है उसी को दर्द का एहसास होता है। उसने कहा, ‘मेरी बेटी की जिंदगी का सवाल था।’

तहसीलदार को कठोर कारावास

जयपुर : टोंक जिले की तहसील देवली के तत्कालीन तहसीलदार नारायण सिंह पटवारी रामप्रसाद शर्मा पर नागरिक श्योजीराम द्वारा आपस में मिलीभगत कर बीसलपुर बांध के डूब क्षेत्र में लगभग साढ़े छह हजार रुपये का मुआवजा दिलाकर राज्य सरकार को चपत लगाने के जुर्म में न्यायालय द्वारा प्रत्येक को एक-एक वर्ष का कठोर कारावास व प्रत्येक को 20 हजार रुपये के अर्थ दंड की सजा सुनाई गई है। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के महानिदेशक ने बताया कि ब्यूरो को सूचना मिली थी कि टोंक जिले की देवली तहसील में तहसीलदार व पटवारी ने आपस में मिलीभगत कर डूब क्षेत्र का नाजायज मुआवजा दिलवाया है। इस पर ब्यूरो ने मुकदमा दर्ज कर जांच करने पर पापा कि तत्कालीन तहसीलदार नारायण सिंह व पटवारी ने लाभार्थी श्योजीराम ने नाम सरकारी भूमि का फर्जी आवंटन दर्शाकर, नामांतरण कर सत्यापन करके बीसलपुर बांध परियोजना में डूब क्षेत्र भूमि को तहत 63 हजार 500 रुपए का मुआवजा दिलवाकर राज्य सरकार को हानि पहुंचाई है। महानिदेशक ने बताया कि ब्यूरो ने इस बाबत मुकदमा दर्ज कर तफ्तीश की तथा नारायण सिंह, रामप्रसाद शर्मा एवं श्योजीराम के खिलाफ फरवरी,1999 में न्यायालय, विशिष्ट न्यायाधीश, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, जयपुर में चालान पेश किया था। न्यायाधीश ने ट्रायल के बाद नारायण सिंह, रामप्रसाद शर्मा एवं श्योजीराम को एक-एक वर्ष का कठोर कारावास व अर्थ दंड की सजा सुनाई है।

जूता बनाने वाले का बेटा बना टॉपर.

पाई-पाई की मोहताज मेहनतकश माता-पिता की होनहार संतान कमलेश कुमार ने 12वीं कला वर्ग में राजस्थान टॉप कर यह दिखा दिया है कि प्रतिभा अभावों के आगे नहीं झुकती। कमलेश के घर की हालत बेहद नाजुक हैं और उसके पिता जूते बनाकर जैसे-तैसे परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं। स्थिति यह थी कि इस होनहार छात्र के पास आगे पढ़ाई जारी रखने के लिए पैसे और संसाधन तक नहीं थे। ऐसे में उसकी मदद विद्यालय के निदेशक अमर सिंह ने की और इसे नि:शुल्क प्रवेश देने के साथ पुस्तकें भी मुहैया करवाई। अमर सिंह ने बताया कि कमलेश कुमार पुत्र बाबू लाल के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से इसे पिछले साल 4 जुलाई को उन्होंने नि:शुल्क एडमीशन दिया। हॉस्टल में भी नि:शुल्क रखा। यहां तक कि एक साल में जब कमलेश विद्यालय घर जाने का किराया भी दिया। कमलेश के पिता चमड़े की जूती बनाने और उसकी मां उन पर कशीदा काढ़ने का काम कर परिवार का पेट पालते हैं। घर की बिगड़ी आर्थिक स्थिति के चलते कमलेश के बड़े भाई की 11वीं के बाद पढ़ाई छूट गई। स्कूल प्रशासन के अनुसार छात्र काफी प्रतिभाशाली है, लेकिन घर की आर्थिक तंगी उसकी पढ़ाई में बाधा बन सकती है। कमलेश को आर्थिक मदद की जरूरत है।

Wednesday, June 10, 2009

सर्वोच्च न्यायालय ने विवाहित महिला के प्रेमियों को सावधान किया

सर्वोच्च न्यायालय ने एक मामले में एक विवाहित महिला के प्रेमी के खिलाफ फैसला सुनाते हुए ऐसे प्रेमियों को सावधान किया है। अदालत ने प्रेमी को विवाहित महिला के पति को आत्महत्या के लिए मजबूर करने का दोषी ठहराया है। 
न्यायमूर्ति मुकुंदम शर्मा और न्यायमूर्ति बी.एस.चौहान की अवकाशकालीन खंडपीठ ने आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा गुंटूर निवासी दामू श्रीनू को सुनाई गई तीन साल के कारावास की सजा को बरकरार रखने का आदेश दिया है।
28 मई को सुनाए गए और मंगलावार को जारी किए गए फैसले के अनुसार श्रीनू का अपने पड़ोसी बित्रा नागार्जुन राव की पत्नी के साथ प्रेम संबंध था। इसके कारण राव ने 8 जून 1996 को आत्महत्या कर ली थी। 
राव को अपनी पत्नी पर श्रीनू के साथ संबंध होने का शक हुआ तो उसने अपनी पत्नी से इस बारे में सवाल किया। इसे लेकर दोनों के बीच लड़ाई हुई। 
राव ने अपने ससुर को बुलाकर पत्नी को ले जाने के लिए कहा ताकि उसका मन बदल जाए। लेकिन श्रीनू 1 जनवरी 1996 को राव के घर आया और उसने राव की पत्नी के साथ अपने संबंधों की बात स्वीकार कर ली। उसने यह भी कहा कि जब तक वह महिला उसे नहीं छोड़ देती तब तक वह उसके साथ संबंध बनाए रखेगा। 
राव की आत्महत्या के बाद मामला पुलिस के पास पहुंचा तो उसने महिला और उसके प्रेमी को गिरफ्तार कर लिया। एक दंडाधिकारी की अदालत ने दोनों को पांच-पांच साल के कारावास की सजा सुनाई। बाद में सत्र अदालत ने दोनों की सजा को घटा कर तीन-तीन साल कर दिया। 
उसके बाद आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने महिला की सजा को घटा कर एक साल कर दी लेकिन श्रीनू के तीन साल के कारावास की सजा को बरकरार रखा। 
अब सर्वोच्च न्यायालय ने भी उच्च न्यायालय के फैसले पर मुहर लगा दी है।

शीतल मफतलाल को जमानत

अघोषित ५१ लाख के सोने और हीरो के आभूषणों के साथ यात्रा करने के आरोप में गिरफ्तार सोशलाईट और उद्योगपति अतुल्य मफतलाल की पत्नी शीतल मफतलाल को मुंबई की एक अदालत ने आज पांच लाख रूपये की जमानत दे दी।
३७वीं महानगरीय अदालत ने जमानत देते हुए शीतल को एक महीने तक हर सोमवार और गुरूवार को जांच एजेंसी के समक्ष पेशी देने और अदालत की अनुमति के बगैर देश न छोडऩे का आदेश दिया।
शीतल को रविवार को मुंबई के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर सीमा शुल्क विभाग ने गिरफ्तार किया था।
उनकी जमानत अर्जी पर कल सुनवाई नहीं हो सकी थी क्योंकि अभियोजन पक्ष ने अदालत से अर्जी पर अपना पक्ष रखने के लिए समय मांगा था। इसके बाद अदालत ने शीतल को न्यायिक हिरासत में भेजने का निर्देश दिया था।

गवाहों को सुरक्षा देना बेहद जरूरी

सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मामलों में गवाहों की सुरक्षा पर चिंता जताते हुए कहा है कि आपराधिक न्याय प्रशासन को सच बनाने के लिए देश मे गवाहों को सुरक्षा दिए जाने की अति आवश्यकता है। 

सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ अंबिकापुर में गवर्नमेंट ग‌र्ल्स कालेज की छात्रा को कैम्पस में जीप से कुचल कर मार डालने के मामले में घटना की चश्मदीद गवाह साथी छात्राओं के अदालत में बयान से मुकर जाने पर गवाहों की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई है। पीठ ने रिकार्ड पर आए चश्मदीद गवाहों के बयानों में झलकते भय का जिक्र किया है। एक छात्रा ने तो गवाही के बाद रोते हुए अदालत से अनुरोध किया कि उसे दोबारा गवाही के लिए न बुलाया जाए क्योंकि वह पूरे साल परेशान रही है। कोर्ट ने कहा कि छात्रा का दर्द समझा जा सकता है। उसके बयानों को ध्यान से पढ़ने पर पता चलता है कि सच न बोलने के लिए उस पर कितना दबाव था। कोर्ट ने कहा कि अगर आपराधिक न्याय प्रशासन को सच्चाई बनाना है तो देश में गवाहों को सुरक्षा दिए जाने की बहुत जरूरत है। पीठ ने कहा कि यह मामला गवाहों को अभियुक्त की धमकियों से सुरक्षित नहीं कर पाने के आपराधिक न्याय प्रशासन की खामी का एक बड़ा उदाहरण है। दुर्भाग्य की बात है जिन मामलें में प्रभावी लोग शामिल होते हैं उनमें सामान्यत: भय और दबाव के कारण गवाह सामने नहीं आते। 

कोर्ट ने इस मामले में जीप चालक समरविजय सिंह की सजा पर मुहर लगा दी है। लेकिन जीप में बैठे बाकी के तीन अन्य साथी अभियुक्तों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि यह सिद्ध नहीं होता है कि इन तीनों का समर विजय सिंह के साथ अपराध में शामिल होने का सामान्य आशय था। 

मामला वर्ष 1998 का है। बीए की छात्रा कुमारी प्रीती अपनी सहेलियों के साथ कैम्पस में बैठी थी। तभी एक जीप कैम्पस में घुसी जिसने प्रीती के बैग व टिफिन बाक्स को कुचल दिया। प्रीती ने बैग और टिफिन के टूटने पर जीप के सामने खडे़ होकर अभियुक्तों से नुकसान की भरपाई की मांग की। अभियुक्तों ने कहा कि अगर वह रास्ते से नहीं हटी तो वह उस पर जीप चढ़ा देंगे। प्रीती नहीं हटी, जिस पर समरविजय ने प्रीती पर जीप चढ़ाई और वह गिर गई। बाद में समर ने जीप को पीछे किया और फिर तेजी से आगे लाकर प्रीती के सिर पर से जीप गुजार दी। इसके बाद सभी अभियुक्त फरार हो गये। सत्र अदालत व हाईकोर्ट ने जीप पर सवार सभी अभियुक्तों को हत्या के जुर्म में दोषी ठहरा कर सजा सुनाई थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने समरविजय को छोड़ कर बाकी को बरी कर दिया है।

लोकल चेक की राशि एक दिन में मिले

जोधपुर. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने एक बार फिर देश की सभी कॉमर्शियल बैंकों को स्पीड क्लियरिंग के माध्यम से लोकल चेक एक ही दिन में क्लियर कर राशि खाते में जमा करने के निर्देश जारी किए हैं। हालांकि बैंक अधिकारियों को इसका सीधा और सरल तरीका समझ में नहीं आ रहा। 

वर्तमान में तीन से चार दिन बाद चेक क्लियरिंग हो पाते हैं। उधर, बैंकों की चिंता इस बात को लेकर है कि एक दिन में चेक की राशि ग्राहकों के खाते में डाल दे तो चेक रिटर्न होने की स्थिति में उनके सामने संकट खड़ा हो जाएगा, क्योंकि तमाम कानूनी प्रावधानों के बावजूद आज भी बड़ी संख्या में चेक बाउंस होते हैं। इसके बावजूद अधिकारी कोई रास्ता निकालने में जुटे हैं ताकि रिजर्व बैंक के निर्देशों की पालना भी हो जाए।

राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के समक्ष वर्ष 2006 में आए मामले में सुनवाई के बाद कमीशन ने 27 अगस्त, 2008 को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को लोकल व बाहरी चेकों के तुरंत भुगतान से संबंधित निर्देश जारी किए थे। निर्देशों के बावजूद बड़े शहरों में लोकल क्लियरिंग की जमा में 4 से लेकर 10 दिन तक का समय लगता रहा है। जोधपुर में तीसरे दिन क्लियरिंग जमा हो पाती है। 

बैंकों में स्थानीय व बाहरी चेक दोपहर 3 बजे तक निकाल कर उनकी लिस्टिंग की जाती है। दूसरे दिन सुबह उन्हें स्टेट बैंक स्थित क्लियरिंग हाउस भेज दिया जाता है। जिन बैंकों की एक से अधिक शाखाएं हैं उनकी क्लियरिंग मुख्य शाखा अथवा सेवा शाखा के माध्यम से भेजी जाती है।

आठवीं बोर्ड में 11 शिक्षकों को जीरो

भीलवाड़ा. आठवीं बोर्ड में जिले के 11 शिक्षकों का परिणाम शून्य रहा है। इसमें छह प्रधानाध्यापक भी शामिल हैं। 33 शिक्षकों का परिणाम 21 से 30 प्रतिशत के बीच रहा है। स्कूलों में संविदा पर कार्यरत विद्यार्थी मित्र व कार्यवाहक प्रधानाध्यापकों को रिजल्ट कम रहने पर होने वाली कार्रवाई के दायरे से बाहर रखा गया है। शिक्षा विभाग तीस प्रतिशत से कम रिजल्ट देने वाले शिक्षकों की सूची तैयार कर उपनिदेशक को भेजेगा। 

16 द्वितीय श्रेणी के अध्यापकों का परिणाम तीस प्रतिशत से कम रहा है। इन शिक्षकों के खिलाफ उपनिदेशक कार्यालय अजमेर द्वारा कार्रवाई की जाएगी। कम परिणाम देने वालों का तबादला, चार्जशीट, सर्विस बुक में एंट्री, नोटिस सहित अन्य अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। 

शिक्षा विभाग प्रारंभिक के अनुसार सहाड़ा के मालीखेड़ा स्कूल में कार्यरत प्रधानाध्यापक अर्चना सोनगर, भैरूखेड़ा कोटड़ी के सीताराम कुम्हार, भभाणा मांडल के भगवतसिंह चुंडावत, बागजड़ा मांडल के रामप्रसाद, कायमपुरा शाहपुरा के जयदीपसिंह बड़गुर्जर व मंडोल रायपुर यूपीएस की सरोज यादव का परिणाम शून्य रहा है। भैरूखेड़ा कोटड़ी में कार्यरत कृष्णमुरारी वैष्णव, भभाणा मांडल के शिवदयाल ओझा, बागजड़ा के ओमप्रकाश, कायमपुरा शाहपुरा के रामसिंह मीणा व मंडोल रायपुर की विद्या टांक का परिणाम शून्य रहा है।

पन्नाधाय योजना पर स्टे

उदयपुर. शहर में चर्चा का विषय रही नगर विकास प्रन्यास की पन्नाधाय नगर आवासीय योजना में 800 भूखंडों के आबंटन पर अदालत ने मंगलवार को अस्थायी निषेधाज्ञा के आदेश जारी किए। सिविल न्यायाधीश कनिष्ठ खंड शहर दक्षिण (ग्रीष्मकालीन विशेष न्यायालय) ने प्रन्यास प्रशासन को निर्देश दिए हैं कि 15 जुलाई को अगली सुनवाई तक यथास्थिति बनाए रखें। पत्रकार कोटे के आवेदक का प्लॉट निरस्त न करें। अदालत ने 800 भूखण्डों की आवासीय योजना पर यथास्थिति के आदेश दिए।

विवाद का कारण

यूआईटी की बलीचा में प्रस्तावित दक्षिण विस्तार योजना में पत्रकार वर्ग से भारत भूषण ओझा ने आवेदन किया था। प्रन्यास ने 12-13 जनवरी 2009 को निकाली गई लॉटरी में पत्रकार कोटे में 17 आवेदकों को चुना। उक्त स्कीम में 1000 वर्गफीट प्लॉट योजना में 11 पत्रकार, 1800 वर्गफीट प्लॉट में 4 पत्रकार तथा 2400 वर्गफीट प्लॉट में 2 पत्रकारों का चयन किया गया। 

परिवादी को प्लॉट नंबर आबंटित कर दिए गए। उसी दौरान कुछ लोगों ने प्रन्यास सचिव को आपत्ति दर्ज कराई की पत्रकार कोटे के प्लॉट अधिस्वीकृत पत्रकारों को ही दिए जाने चाहिए। प्रन्यास सचिव ने स्थानीय निकाय निदेशालय पत्र लिखकर इस संदर्भ में स्पष्टीकरण मांगा था। निदेशालय ने सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय से अधिस्वीकृत पत्रकारों को ही प्लॉट आबंटन का पात्र माना। निदेशालय से मिले निर्देश की पालना में प्रन्यास कार्यालय ने 22 जून को पत्रकार कोटे में सभी भूखण्ड आबंटियों को नोटिस देकर अधिस्वीकरण प्रमाणपत्र पेश करने के आदेश दिए।

उक्त नोटिस को लेकर कथित पत्रकार ओझा ने नगर विकास प्रन्यास प्रशासन के खिलाफ 5 जून को अदालत में स्थायी निषेधाज्ञा का प्रार्थनापत्र पेश किया। प्रार्थनापत्र में बताया गया कि प्रन्यास ने भूखंड आबंटन के लिए जो फार्म बेचे थे उनमें अधिस्वीकृत पत्रकार की शर्त नहीं थी। परिवादी ने अतिरिक्त निदेशक सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय के 21 जून 2007 को जारी पत्र भी अदालत में पेश किया जिसमें पत्रकारों को आवास आबंटन के लिए अधिस्वीकृत होना जरूरी नहीं माना गया है।

Friday, June 5, 2009

राजस्थान उच्च न्यायालय में 28 जून तक ग्रीष्मकालीन अवकाश

राजस्थान उच्च न्यायालय में एक जून से 28 जून तक ग्रीष्मकालीन अवकाश रहेगा। इस अवधि के लिए जोधपुर एवं जयपुर पीठ के लिए अवकाशकालीन न्यायाधीशों का मनोनयन किया गया है। उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार (प्रशासन) की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार मुख्य पीठ जोधपुर में एक से 10 जून तक न्यायमूर्ति सी.एम. तोतला, 11 से 20 जून तक न्यायमूर्ति एस.आर. लोढ़ा तथा 21 से अवकाश समाप्ति तक न्यायमूर्ति डी.एन. थानवी अवकाशकालीन न्यायाधीश का कार्य देखेंगे। इसी प्रकार जयपुर पीठ में एक से 10 जून तक न्यायमूर्ति एम.सी. भगवती, 11 से 20 जून तक न्यायमूर्ति के.एस. चौधरी तथा 21 जून से अवकाश समाप्ति तक न्यायमूर्ति एम.एन.भण्डारी अवकाशकालीन न्यायाधीश के रूप में कार्य करेंगे।

Monday, June 1, 2009

राजस्थान बार कौंसिल द्वारा हाईकोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने का प्रस्ताव

राजस्थान बार कौंसिल ने राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पद पर वरिष्ठतम न्यायाधीश को नियुक्त करने तथा उनकी नियुक्ति कम से कम एक वर्ष रखने का प्रस्ताव 31 मई को कौंसिल की साधारण सभा में पारित किया है। इस बारे में एक प्रतिनिधिमंडल शीघ्र ही भारत के मुख्य न्यायाधीश से मिलकर प्रतिवेदन सौंपेगा। इस बारे में राष्ट्रपति को भी प्रतिवेदन सौंपा जाएगा। प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि कौंसिल को इस बारे में पूर्व में सूचित किया जाए। इस साधारण सभा में बार कौंसिल ऑफ इंडिया के कार्यवाहक अध्यक्ष जयराम बेनीवाल तथा राजस्थान बार के उपाध्यक्ष मनीष सिसोदिया सहित बड़ी संख्या में सदस्यों ने भाग लिया।

सभा में कौंसिल के इस वर्ष होने वाले चुनाव में धरोहर राशि 8 से बढ़ाकर 10 हजार रुपए करने, अधीनस्थ न्यायालयों में पीठासीन अधिकारी के रिक्त पदों को शीघ्र भरने के लिए मुख्य न्यायाधीश से निवेदन करने का निर्णय भी हुआ। बैठक में इसके अलावा भी कई मुद्दों पर विचार विमर्श हुआ।

राजस्थान अधिवक्ता कल्याण कोष की न्यासी समिति एवं बार कौंसिल ऑफ इंडिया एडवोकेट्स वेलफेयर फंड की बैठक भी 31 मई को हुई। इसमें अधिवक्ताओं के मृत्यु, बीमारी आदि दावों का निस्तारण कर करीब 4 लाख रुपए के भुगतान की स्वीकृति प्रदान की गई। नासिर अली नकवी की अध्यक्षता में संपन्न सभा में बार एसोसिएशन किशनगढ़ (अजमेर) के अधिवक्ताओं द्वारा अधिवक्ता कल्याण कोष के टिकट लगाए बिना वकालतनामे पेश करने को गंभीरता से लेते हुए आगे से ऐसा न करने को कहा गया। किशनगढ़ से आए बार के प्रतिनिधि मोहम्मद हुसैन माजवी ने आश्वासन दिया कि भविष्य में इसका ख्याल रखा जाएगा।