पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Tuesday, August 25, 2009

एक जज न्यायपालिका को शर्मसार नहीं कर सकता-मुख्य न्यायाधीश

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन का कहना है कि किसी उच्च न्यायालय के एक जज की टिप्पणी को पूरी न्यायपालिका के लिए शर्मनाक कहना ठीक नहीं है। नई दिल्ली में पत्रकारों के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, "सिर्फ़ एक जज की टिप्पणी से पूरी न्यायपालिका कैसे शर्मिंदा हो सकती है. ये एक बड़ी संस्था है।"
बालाकृष्णन ने ये टिप्पणी उस सवाल के जवाब में की, जब उनसे पूछा गया कि क्या कर्नाटक हाई कोर्ट के जज शैलेंद्र कुमार की टिप्पणी न्यायपालिका के लिए शर्मनाक है।
शैलेंद्र कुमार ने जजों की संपत्ति की घोषणा के मामले में मुख्य न्यायाधीश के अधिकार पर सवाल उठाया था और कहा था कि इस मामले में वो सभी जजों की ओर से नहीं बोल सकते हैं।
मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा कि उन्होंने न्यायाधीशों के बारे में कुछ सामान्य बातें कहीं थी और मुझे लगता है मुझे इसका अधिकार प्राप्त है। उल्लेखनीय है कि कर्नाटक हाईकोर्ट के न्यायाधीश शैलेंद्र कुमार ने संपत्ति की घोषणा के बारे में हाईकोर्ट के तमाम न्यायाधीशों की ओर से प्रधान न्यायाधीश के बोलने के अधिकार पर सवाल खड़े किए थे। इसके बाद रविवार को प्रधान न्यायाधीश ने न्यायाधीश कुमार को प्रचार की चाह रखने वाला बताया था और कहा था कि इस तरह की चीजें किसी न्यायाधीश के लिए अच्छी नहीं हैं। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की संपत्तिकी घोषणा के मामले पर आम सहमति पर पहुंचने की जरूरत है। 

बालाकृष्णन ने कहा कि हाईकोर्ट के प्रत्येक न्यायाधीश को अपनी संपत्ति की घोषणा की स्वतंत्रता है। सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीशों के बीच इस पर आम सहमति बनाने की जरूरत है और इसके बाद हम तय करेंगे। उन्होंने कहा कि सुप्रीमकोर्ट संपत्तिकी घोषणा के मामले में हाईकोर्ट के न्यायाधीशों को सलाह नहीं देता और उन्होंने जो बयान जारी किया था, वह सामान्य प्रकृति का था। 

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मैंने कहा कि हाईकोर्ट के प्रत्येक न्यायाधीश को संपत्तिकी घोषणा की स्वतंत्रता है और हमें इससे कोई दिक्कत नहीं है। इस मामले पर हम हाईकोर्ट के न्यायाधीशों को कोई सलाह नहीं देते। मुझे कुछ सामान्य बातें कहीं थी। मुझे लगता है कि मुझे इसका अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के किसी आम सहमति पर पहुंचने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि अभी तक कोई आम सहमति नहीं बनी है


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