‘गवाहों को धमकाना, उनसे जोर-जबरदस्ती और उन्हें अपने पक्ष में कर लेने जैसे मामलों ने भारत में आपराधिक न्याय विधान पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। इन पर जनता की निगाहें हैं। आपराधिक न्याय प्रणाली की विफलता समाज में कानून के क्षरण और अराजकता को जन्म देगी, जिससे कानून और नियम कारगर नहीं रह जाएंगे। दोषी ने भी कई बार कानून को अपने हाथों में लिया है।’ यह कुछ ऐसी बातें हैं, जिन्हें अदालत ने जितेंद्र उर्फ कल्ला को जीवन भर के कठोर कारावास की सजा सुनाते हुए प्रमुखता से रखीं।
रोहिणी की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश डॉ. कामिनी लॉ ने वर्ष १९९९ में अनिल भडाना एवं केएल नैयर हत्याकांड को अंजाम देने वाले जितेंद्र उर्फ कल्ला को सजा सुनाने से पहले कई महत्वपूर्ण तथ्यों पर गौर किया। अदालत ने कल्ला के आपराधिक इतिहास, मामले के दौरान गवाहों को डराने-धमकाने एवं पुलिस कस्टडी से भी फरार होने को गंभीरता से लिया। यहां तक की दिल्ली एवं हरियाणा में उसके द्वारा गई वारदातों को भी कोर्ट ने अपने फैसले में शामिल किया।
कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि ‘हमारा आपराधिक न्याय तंत्र वैज्ञानिक सबूतों तथा चश्मदीद गवाहों पर निर्भर करता है। चश्मदीद गवाह को सबसे अहम सबूत माना जाता है। पिछले कुछ मामलों पर नजर डाली जाए तो आरोपित हरसंभव प्रयास कर खुद को बरी कराना चाहता है। बरी होने में सफल होने के बाद वह गवाहों को धमकाने से लेकर अन्य सभी उपाय करता है। चाहे फिर गवाह को मौत के घाट ही क्यों न उतारना हो।
ऐसी घटनाओं के लगातार सामने आने से शायद ही कोई इस ढहते हुए न्यायिक तंत्र पर विश्वास करे। समय की जरूरत को देखते हुए हर उस व्यक्ति पर शिकंजा कसना जरूरी है, जो न्यायिक प्रकिया को उलटने या उसके खिलाफ जाने की कोशिश करता है। आरोपियों द्वारा उठाए गए ऐसे गैरकानूनी कदमों के चलते समाज में राष्ट्र की न्यायिक प्रकिया पर अविश्वास फैलता है और उनकी सोच भी बदलती है। गवाहों के खिलाफ किया गया कोई भी अपराध जरा भी बर्दाश्त न किया जाए।’
रोहिणी की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश डॉ. कामिनी लॉ ने वर्ष १९९९ में अनिल भडाना एवं केएल नैयर हत्याकांड को अंजाम देने वाले जितेंद्र उर्फ कल्ला को सजा सुनाने से पहले कई महत्वपूर्ण तथ्यों पर गौर किया। अदालत ने कल्ला के आपराधिक इतिहास, मामले के दौरान गवाहों को डराने-धमकाने एवं पुलिस कस्टडी से भी फरार होने को गंभीरता से लिया। यहां तक की दिल्ली एवं हरियाणा में उसके द्वारा गई वारदातों को भी कोर्ट ने अपने फैसले में शामिल किया।
कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि ‘हमारा आपराधिक न्याय तंत्र वैज्ञानिक सबूतों तथा चश्मदीद गवाहों पर निर्भर करता है। चश्मदीद गवाह को सबसे अहम सबूत माना जाता है। पिछले कुछ मामलों पर नजर डाली जाए तो आरोपित हरसंभव प्रयास कर खुद को बरी कराना चाहता है। बरी होने में सफल होने के बाद वह गवाहों को धमकाने से लेकर अन्य सभी उपाय करता है। चाहे फिर गवाह को मौत के घाट ही क्यों न उतारना हो।
ऐसी घटनाओं के लगातार सामने आने से शायद ही कोई इस ढहते हुए न्यायिक तंत्र पर विश्वास करे। समय की जरूरत को देखते हुए हर उस व्यक्ति पर शिकंजा कसना जरूरी है, जो न्यायिक प्रकिया को उलटने या उसके खिलाफ जाने की कोशिश करता है। आरोपियों द्वारा उठाए गए ऐसे गैरकानूनी कदमों के चलते समाज में राष्ट्र की न्यायिक प्रकिया पर अविश्वास फैलता है और उनकी सोच भी बदलती है। गवाहों के खिलाफ किया गया कोई भी अपराध जरा भी बर्दाश्त न किया जाए।’
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