सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्राथमिकी (एफआईआर) कोई एन्साइक्लोपीडिया नहीं होती है, जोकि उसमें किसी घटना का बारीक से बारीक विवरण शामिल हो। इसके साथ ही यह भी जरूरी नहीं कि उसमें वे सभी सबूत मौजूद हों, जिसे अभियोजन सुनवाई के दौरान पेश करे।
न्यायमूर्ति हरजीत सिंह बेदी और न्यायमूर्ति जे.एम.पांचाल की खण्डपीठ ने इलाहाबाद उच्चा न्यायालय द्वारा उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद जिले के एक गांव में छह लोगों की हत्या के आरोप में मौत की सजा पाए तीन आरोपियों को बरी किए जाने के फैसले को पलटते हुए कहा, ""यह कोई जरूरी नहीं कि एफआईआर उन तथ्यों व स्थितियों की एन्साइक्लोपीडिया हो जिस पर अभियोजन निर्भर रहे।"" अदालत ने अपना यह फैसला मंगलवार को दिया था, लेकिन वह शनिवार को उपलब्ध हो पाया। अदालत ने अपने फैसले में कहा, ""एफआईआर दर्ज कराने का मूल उद्देश्य आपराधिक कानून को सक्रिय कर देना भर है, न कि उसमें सभी बारीक विवरण को शमिल करना।"" फैसले में न्यायमूर्ति पांचाल ने कहा, ""जीवन की क़डी वास्तविकता यह है कि जो व्यक्ति दुखद घटना में अपने रिश्तेदारों व नातेदारों को खो बैठा है, वह गहरे सदमे से पीç़डत होगा, ऎसे में कानून उससे इस बात की उम्मीद नहीं करेगा कि वह अपने एफआईआर में या अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के तहत अपने बयान में बारीक से बारीक जानकारी शामिल करे।"" सर्वोच्चा न्यायालय ने इस बात के लिए उच्चा न्यायालय की निंदा की कि उसने सबूतों के आगे किसी मृत व्यक्ति द्वारा मौत से पहले दिए गए मौखिक बयानों पर ध्यान नहीं दिया।
मौखिक बयानों पर अविश्वास करने के पीछे उच्च न्यायालय द्वारा यह कारण बताया गया कि यह बयान गवाह झब्बूलाल द्वारा न तो उसके एफआईआर में दर्ज किया था और न धारा 161 के तहत रिकॉर्ड किए गए उसके बयान में ही।
न्यायमूर्ति हरजीत सिंह बेदी और न्यायमूर्ति जे.एम.पांचाल की खण्डपीठ ने इलाहाबाद उच्चा न्यायालय द्वारा उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद जिले के एक गांव में छह लोगों की हत्या के आरोप में मौत की सजा पाए तीन आरोपियों को बरी किए जाने के फैसले को पलटते हुए कहा, ""यह कोई जरूरी नहीं कि एफआईआर उन तथ्यों व स्थितियों की एन्साइक्लोपीडिया हो जिस पर अभियोजन निर्भर रहे।"" अदालत ने अपना यह फैसला मंगलवार को दिया था, लेकिन वह शनिवार को उपलब्ध हो पाया। अदालत ने अपने फैसले में कहा, ""एफआईआर दर्ज कराने का मूल उद्देश्य आपराधिक कानून को सक्रिय कर देना भर है, न कि उसमें सभी बारीक विवरण को शमिल करना।"" फैसले में न्यायमूर्ति पांचाल ने कहा, ""जीवन की क़डी वास्तविकता यह है कि जो व्यक्ति दुखद घटना में अपने रिश्तेदारों व नातेदारों को खो बैठा है, वह गहरे सदमे से पीç़डत होगा, ऎसे में कानून उससे इस बात की उम्मीद नहीं करेगा कि वह अपने एफआईआर में या अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के तहत अपने बयान में बारीक से बारीक जानकारी शामिल करे।"" सर्वोच्चा न्यायालय ने इस बात के लिए उच्चा न्यायालय की निंदा की कि उसने सबूतों के आगे किसी मृत व्यक्ति द्वारा मौत से पहले दिए गए मौखिक बयानों पर ध्यान नहीं दिया।
मौखिक बयानों पर अविश्वास करने के पीछे उच्च न्यायालय द्वारा यह कारण बताया गया कि यह बयान गवाह झब्बूलाल द्वारा न तो उसके एफआईआर में दर्ज किया था और न धारा 161 के तहत रिकॉर्ड किए गए उसके बयान में ही।
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