सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि दहेज की छोटी मोटी मांग करने वाले व्यक्ति को तब तक दोषी नहीं ठहराया जा सकता जब तक की दहेज की मांग के कारण किसी को मानसिक या शारीरिक प्रताड़ना नहीं हुई हो और वह उसकी मौत का कारण नहीं बनी हो। न्यायाधीश आर एम लोढ़ा और न्यायाधीश एके पटनायक की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष को इस बात के पुख्ता प्रमाण देने होंगे कि दहेज के लिए महिला को शारीरिक व मानसिक तौर पर प्रताडित किया गया और इस कारण उसकी मौत हो गई।
पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाह 2, 4 और 5 से यह पता चलता है कि जगदीश और गोरधनी की अमर सिंह के लिए मांगे गए स्कूटर और पचीस हजार रूपए में भूमिका थी लेकिन आईपीसी की धारा 498 ए और 304 बी के तहत यह अपराध नहीं है। इन दोनों धाराओं के तहत वही कृत्य अपराध की श्रेणी में आता है जिसमें महिला को उसके पति ने या उसके रिश्तेदारों ने प्रताडित किया हो या क्रूरता की हो। पीठ ने नव विवाहिता की मौत के मामले में उसकी सास गोरधनी और देवर जगदीश को बरी कर दिया। हालांकि मामले में महिला के पति अमर सिंह को दोषी ठहराया।
यह है मामला
राजस्थान के अलवर जिले की रहने वाली संतोष की 8 मार्च 1993 को मौत हो गई थी। सेशन कोर्ट ने इस दहेज हत्या का मामला मानते हुए जगदीश, गोरधनी और अमर सिंह को दोषी ठहराया था। अमर सिंह को उम्र कैद की सजा सुनाई गई। बाद में राजस्थान हाईकोर्ट ने इस मामले में गोरधनी और जगदीश को दोषमुक्त करार दिया था। हालांकि अमर सिंह की उम्र कैद की सजा बरकरार रखी। बाद में राजस्थान सरकार ने गोरधनी और जगदीश को बरी किए जाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। अमर सिंह ने भी खुद को सुनाई गई सजा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाह 2, 4 और 5 से यह पता चलता है कि जगदीश और गोरधनी की अमर सिंह के लिए मांगे गए स्कूटर और पचीस हजार रूपए में भूमिका थी लेकिन आईपीसी की धारा 498 ए और 304 बी के तहत यह अपराध नहीं है। इन दोनों धाराओं के तहत वही कृत्य अपराध की श्रेणी में आता है जिसमें महिला को उसके पति ने या उसके रिश्तेदारों ने प्रताडित किया हो या क्रूरता की हो। पीठ ने नव विवाहिता की मौत के मामले में उसकी सास गोरधनी और देवर जगदीश को बरी कर दिया। हालांकि मामले में महिला के पति अमर सिंह को दोषी ठहराया।
यह है मामला
राजस्थान के अलवर जिले की रहने वाली संतोष की 8 मार्च 1993 को मौत हो गई थी। सेशन कोर्ट ने इस दहेज हत्या का मामला मानते हुए जगदीश, गोरधनी और अमर सिंह को दोषी ठहराया था। अमर सिंह को उम्र कैद की सजा सुनाई गई। बाद में राजस्थान हाईकोर्ट ने इस मामले में गोरधनी और जगदीश को दोषमुक्त करार दिया था। हालांकि अमर सिंह की उम्र कैद की सजा बरकरार रखी। बाद में राजस्थान सरकार ने गोरधनी और जगदीश को बरी किए जाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। अमर सिंह ने भी खुद को सुनाई गई सजा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
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