पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Saturday, May 9, 2009

विद्यार्थी मित्रों को नहीं हटाए

राजस्थान हाई कोर्ट ने सरकारी स्कूलों में अनुबंध पर कार्यरत विद्यार्थी मित्रों के मामले में शुक्रवार को निर्णय देते हुए राज्य सरकार को इन्हें पद से नहीं हटाने का आदेश दिया है।

आदेश में कहा कि विद्यार्थी मित्रों को राज्य सरकार तब तक नहीं हटाए जब तक कि उनकी जगह पर आरपीएससी से चयनित शिक्षक या विभागीय पदोन्नति के जरिए या स्थानांतरित होकर आए किन्हीं अन्य शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो जाती। 

न्यायाधीश प्रेम शंकर आसोपा ने यह आदेश दांतारामगढ़ निवासी महेन्द्र कुमार व 640 अन्य याचिकाओं को स्वीकार करते हुए दिया। न्यायाधीश ने राज्य सरकार के 24 फरवरी 09 के उस आदेश को भी निरस्त कर दिया जिसके तहत 15 अप्रैल से विद्यार्थी मित्रों को हटाने के निर्देश दिए थे। यह आदेश याचिकाकर्ताओं के मामले में ही प्रभावी रहेंगे। 

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता धर्मवीर ठोलिया ने बताया कि राज्य सरकार ने सरकारी स्कूलों में विद्यार्थी मित्र योजना के तहत बारह हजार से अधिक अनुबंधित विद्यार्थी मित्रों की नियुक्ति की थी। अनुबंध की शर्त थी कि जब तक आरपीएससी से शिक्षकों की भर्ती नहीं होती या अन्य शिक्षक स्थानांतरित होकर नहीं आ जाते ये काम करते रहेंगे। 

इनका अनुबंध 28 फरवरी, 09 तक था, जिसे बढ़ाकर 15 अप्रैल कर दिया गया। लेकिन बाद में शिक्षा विभाग ने 24 फरवरी को इन्हें नोटिस जारी कर कहा कि उन्हें 15 अप्रैल से हटाया जा रहा है। इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई।

सुनवाई के दौरान अधिवक्ता प्रेमचंद देवंदा ने कहा कि अनुबंध की शर्त के अनुसार विद्यार्थी मित्र जिन पदों पर काम कर रहे हैं उन पर अन्य शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई है और ये पद खाली चल रहे हैं। 

यदि उन्हें बीच सत्र में ही हटाया जाता है तो शैक्षणिक गतिविधियां प्रभावित होंगी। न्यायाधीश ने अधिवक्ताओं की दलीलों से सहमत होते हुए पूर्व में 11 अप्रैल को विद्यार्थी मित्रों को हटाने पर रोक लगा दी। इसके बाद अंतिम आदेश के जरिए शुक्रवार को याचिकाओं को स्वीकार कर इनकी जगह पर तय शर्तो के तहत अन्य शिक्षकों की नियुक्ति नहीं होने तक इन्हें नहीं हटाने के निर्देश दिए।

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